हर युवा - रतन लाल जाट की कविताएँ

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कविता-1. हर युवा  देश का हर युवा खड़ा है चौराहे पर देख चारों ओर का नजारा दुविधा में है विवश एक ओर ललचाती दुनिया दूसरी जानता है ...




कविता-1. हर युवा 

देश का हर युवा
खड़ा है चौराहे पर
देख चारों ओर का नजारा
दुविधा में है विवश
एक ओर ललचाती दुनिया
दूसरी जानता है हकीकत
अभिनय बड़ा बनने का
जीना है जीवन दुखद
क्या करें सोच रहा युवा
मंजिल छोड़ बदल गयी राह
जेब खाली शौक हजार यहाँ
करेंगे अनुचित कौन जिम्मेदार
कैसे पतवार बिन जीवन की नैया
पार पहुँचेगी उठा है आँधी-तूफान

- रतन लाल जाट


कविता-2. इन सब में
           
फूलों की तरह
मुस्कुराते हुए बच्चों में
पतंग-सी ऊँची
सपनों की उड़ान में
सभी के साथ मिल
बाँटे जाने वाली खुशी में
एक उत्साही कविता
हमेशा छुपी रहती है
जो लिखी ना जाये
तो भी हृदय से
हमेशा अनुभव
जरूर की जाती है
भूखे और उदास चेहरे पर
दुखी और नम आँखों में
पसरते हुए खाली हाथ बेचारे
एक ऐसी ही करूण कविता कहते हैं
अनाथ बालक की लाचारी
तलाकशुदा स्त्री की ज़िन्दगी
कॉलेज पढ़ने जाती लड़की
और सुबह से शाम तक कहीं
पत्थर उठाते मजदूरों की भी
एक बहुत बड़ी कहानी है
या इन सब में
पूरे उपन्यास के सूत्र दिखते हैं

-रतन लाल जाट



कविता-3. कोई
     
हर कहीं
दीवार या किताब पर
उभर आता है
चेहरा कोई
बात करते हैं
किसी ओर से
तभी याद आ जाता है
अचानक कोई
दुनिया कितना ही
घेरे रहे हमको
लेकिन दिल में तो
बसा है कोई
चाहे सबकुछ है
पर कुछ भी नहीं
दिल बेचारा रोता है
जब पास नहीं होता है कोई
किसी ओर का नाम
पुकारने की जगह
ना जाने क्यों लबों से
निकल जाता है नाम कोई
आँखें अपनी हैं
पर आँसू नहीं
क्योंकि वो आ जाते हैं
जब दुखी होता है कोई
तन अपना है
मन पर वश नहीं
उसे तो चलाता है
इशारे मात्र से कोई

- रतन लाल जाट


कविता-4. किसान की कमाई
       
एक किसान ने
फसल बोयी थी
जब उग आयी
तो खरपतवार उखाड़ी
और समय-समय पर
दिया खाद-पानी
चार माह की तपस्या
हो गयी जब पूरी
तो कटाई के वक्त सोचा
मजदूर लगा दूँ जल्दी
ताकि खेत समय पर
हो जायेगा खाली
और अगली फसल के लिए
करायी ट्रेक्टर से हकाई
फिर उसने फसल बेचकर
हिसाब कर चुकाये उधार सभी
साढे छह हजार में से
एक हजार खाद-बीज-दवाई
डेढ़ मजदूरों के और
एक हजार की हुई जुताई
इस बीच बिजली बिल भरा
एक हजार से कुछ ज्यादा ही
सारा हिसाब कर
अंत में उसने यह कहा कि
इतने दिन खड़े रहे हम
उसकी मेहनत मिल गयी
पर क्या चार महीने की मजदूरी
मात्र दो हजार रूपये कम नहीं होती?

- रतन लाल जाट



कविता-5. बड़ा काम
   
बहुत बड़ा काम है
एक स्त्री के द्वारा
दिनभर मजदूरी कर
दो-ढाई सौ रूपये कमाना
जब पड़ोस में कोई
घर बैठे रोजाना
चन्द मिनटों में
हर किसी से हजार
कमा लेती हो
बिना धूप में गये
पसीना बहाये बिना
सिर्फ चेहरे का
मेकअप दिखा

- रतन लाल जाट

कविता-6. यह बहुत ही आम बात हो गयी
                     
देखो, यह बहुत ही आम बात हो गयी
छोटे-बड़े के बीच हर दीवार गिर गयी
बेटा खुलकर देने लगा है गाली
और बेटी भी घर सिर उठाने है लगी
फिर औकात क्या सगे-संबंधी और पास-पड़ोस की
उनकी अब हिम्मत नहीं है कुछ अधिकार जताने की
पता है, यह बहुत ही खास बात हो गयी
साथ मिलकर बातें करें अश्लील सभी
नहीं कोई शर्म या निजता है छुपी हुई
एक समान हो गये भाई-दोस्त और सभी
अपने-पराये के बीच खींची हर रेखा मिट गयी
और उम्र तो सिर्फ गिनती बनकर शेष रह गयी
क्या, यह बहुत ही बड़ी बात हो गयी?

- रतन लाल जाट


कविता-7. और आज
         
जब घर बैठकर
सभी शाम को टीवी पर
एक ही प्रोग्राम देखा करते थे
क्या वो आनन्द और अपनापन
हर वक्त इन्टरनेट-मोबाइल पर
हम प्राप्त करते हैं
जब महीनों बाद
अपनों से मिलन होने पर
जो खुशी मिलती थी
अब हर रोज होने वाली
विडियो कॉलिंग में कहीं
आपको वो खुशी नजर है आती
जब कोई मिलने आता था
तो दो-चार दिन निकल जाते
और पता ही नहीं चलता
आजकल चाय पीते हुए
एकाध घंटे में ही बार-बार
घड़ी को देखा जाने लगता
गाँव का कोई भी देखकर
सब कुछ उसके भरोसे छोड़
बेफिक्र हो जाया करता था
और आज घर वालों पर ही
नहीं रह गया कुछ भरोसा
कि सौंपे बाल-बच्चे या चाबी

- रतन लाल जाट



कविता-8. कैसी ज़िन्दगी 

एक पिता अपने घर देखता है
बेटी के चारों ओर
मंडराने वालों को
पर कुछ कहता नहीं है
क्योंकि वो क्या कर सकता है
केवल उनका हौसला
आजफाई ही कर पाता है
वो भी चंद स्वार्थ के लिए
बहुत छोटी लगती हैं
इज्जत और ज़िन्दगी
दो-चार नोटों के आगे
उस घर में ही देखते हैं माँ
जो चार कदम और आगे चलती
पति को दूर बैठने को कहकर
आने-जाने वाले पुरुषों से
हँस-हँसकर बातें करती
और अपने साथ-साथ इशारों में
बेटी को भी यह गुर सिखाती
इस तरह सब समझते हैं
हम बहुत कर चुके हैं तरक्की
क्या ऐसी सुखी ज़िन्दगी और कोई
जी रहा है इज्जत और शान से कहीं
उधर वो आने-जाने वाले
ऐसे खुश होते हैं
मानो परमसुख पा लिया है
और बाहर निकलते ही
अपनी होशियारी पर
जोर-जोर से ठहाके लगाते हैं कि
आज अच्छा मौके भूनाया है

- रतन लाल जाट

कविता-9. सत्य

सत्य को गुजरना पड़ता
हर बार अग्नि-परीक्षा से
झूठ के लिए कभी कोई
पाबंदी नहीं होती है
फूल खिलने में दिन लगते
काँटें तो चलते हुए बिछ जाते
बाहर तो सब झाँकते
पर अन्दर कौन देखता है
बहुत इतराते हैं लोग थोथे
और करने को भी बाकी क्या है
राह चलते के टाँग अड़ाते
झूठ के पंख लगा उड़ाते हैं
पर एकदिन जब कुछ नहीं बचता
तब दूध का दूध और पानी का पानी होता है

- रतन लाल जाट

कविता-10. दो रास्ते
         
जब उनके सामने थे
केवल दो रास्ते
मौत और ज़िन्दगी के
समय भी कम था
कुछ सोच-विचार करते
कोई आँख बन्द किये
मर गया अपनों को खड़ा
उस रास्ते पर छोड़कर
कोई जिन्दा होने के नाम पर
देखता रहा अपनों को मरते
क्या बीती होगी
जब हुए दिलों के टुकड़े
लाश से बदतर लोग
जिन्दा लाश हो गये
ना कोई जीने की इच्छा रही
ना रहा कोई सपना
मर भी नहीं सकते थे
ना मरने वालों पर
कभी आँसू बहा सकते थे
या कहें तो
आँसू सूख गये थे
कभी-कभी खून टपकता
ना कोई आहें भरता
ना कोई कुछ कह पाता
किसी एक के नहीं ये
हजारों-लाखों के हालात थे
जब स्वतंत्रता आयी थी
बँटवारे का मुखौटा पहने

- रतन लाल जाट



कविता-11. गाँव के बाहर घर

जब गाँव के बाहर
होता है कोई घर
हर कोई आता-जाता
किसी को भी नहीं पता
कोई रोक-टोक नहीं है
दिन-रात खुले दरवाजे
परिवार को आजादी
तो पड़ोसी भी है सुखी
कितना मुश्किल होता
जब घर गाँव के बीच रहता
तब कितने रोकते
कितने दुखी होते
देखते उनको लुटते
कभी रोते कभी हँसते
तो करते ईर्ष्या कभी
देखते नफरत से सभी
पर यहाँ न पास-पड़ोस
न कोई सगा-संबंधी-दोस्त
चाहे जो करे
कौन है जो रोके
मन की मर्जी
अलग है सबकी

- रतन लाल जाट




कविता-12. यह क्या हो रहा है?

यह क्या हो रहा है?
माँ-बाप आश्रम में धकेले जा रहे हैं
फिर भी पति-पत्नी बीच भरोसा नहीं है
घर-दुनिया सब छोड़ भागते हैं
उस प्रेम विवाह में भी मर्डर हो रहे हैं
यह क्या हो रहा है?
मरते को मूक होके देख रहे हैं
संवेदना समाप्ति के कगार पर है
फोटो खींचना ही धर्म रह गया है
इन्सान पशु से भी बदतर हो गए हैं
यह क्या हो रहा है?
हर तरफ गिराने की कोशिशें है
प्रेम-दया-सहयोग पागलपन लगता है
दगाबाज-शातिर के सब जगह चर्चे हैं
अजनबी के पीछे बहुत-से दुश्मन हैं
यह क्या हो रहा है?
अन्त:आत्मा की आवाज़ गुम है
मन की तरंगें दौड़ा लहरा रही है
अपने ही गैर लगने लगे हैं
तो परायों का कौन भरोसा करता है
यह क्या हो रहा है?
मन की कलुषता सफेद कपड़ों से ढक रहे
हजार रिश्वत लेकर सौ का दान किया जा रहा है
अकेले रहकर भी खून के आँसू पी रहे
हिंसक भीड़ बीच कुछ शुकुन ढूँढ रहे हैं
यह क्या हो रहा है?

- रतन लाल जाट


कविता-13. संसद में नेता

संसद में नेता भ्रष्ट और झूठे,
हत्या-बलात्कार के मुकदमें लड़ते
अनपढ़ और शातिर गुंडे
बोलो, किसी को चाहिए
या राज करने वाले नहीं
नीति पर चलने वाले
आम जनता के बीच से
बेदाग़ निकले लोग चाहिए
जो नाश नहीं निर्माण करे
अर्थशास्त्र नहीं साहित्य सँजोये
अपराध नहीं कर सजा दिलाये
सुविधा अपनी नहीं औरों की माँगे
खून नहीं प्रेम की गंगा बहाये
बोलो,  क्या ऐसा होना चाहिए

- रतन लाल जाट



कविता-14. बच्चे

बच्चे कहाँ जा रहे हैं
किसके साथ समय गुजार रहे हैं
अकेले में क्या कर रहे हैं
बहुत कम ही माता-पिता जानते हैं
कभी कोई सवाल नहीं किया जाता है
ना ही कभी पास बैठकर हाल जाना है
या तो केवल लाड-दुलार ही दिया जाता है
या फिर डाट-फटकार ही हिस्से में आता है
जब तक उनके भीतर नहीं झाँकोगे
मित्र बनकर सारी बातें नहीं करोगे
तब तक उनको पराया ही पाओगे
फिर कैसे अच्छी परवरिश कर पाओगे
इन सबका परिणाम बेहद महत्त्व रखता है
यही भावी जीवन का निर्माण करता है
यही जेल या अनाथालय पहुँचाता है
और यही घर-परिवार को स्वर्ग-नरक बनाता है

- रतन लाल जाट



कविता-15. तीसरे के बारे में

अगर किसी को तीसरे के बारे में
अलग बुलाकर कुछ पूछोगे
तो वह सबकुछ बता देगा
अच्छाई-बुराई सब उगल देगा
केवल इसी एक शर्त पर कि
आप उसकी सारी बातें
कभी उस तीसरे को नहीं कहोगे
फिर चाहे वो दोनों कितने ही खास हो
पर, सामने नहीं तो पीठ पीछे सामान्य ही होगा

- रतन लाल जाट

कवि परिचय-
रतन लाल जाट
s/o रामेश्वर लाल जाट
गाँव- लाखों का खेड़ा
पोस्ट- भट्टों का बामनिया
तहसील- कपासन
जिला- चित्तौड़गढ़ (राज.)
पिन कोड- 312202

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आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया 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रचनाकार: हर युवा - रतन लाल जाट की कविताएँ
हर युवा - रतन लाल जाट की कविताएँ
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