कहानी - आहत -निधि जैन

SHARE:

जनवरी के सर्द महीने की सुबह थी। शिवी और जॉन एक दिन पहले ही अपने क्रिसमस व नये साल की छुट्टियों से वापस आए थे। शिवी ने अलसायी आँखों से जॉन की...

जनवरी के सर्द महीने की सुबह थी। शिवी और जॉन एक दिन पहले ही अपने क्रिसमस व नये साल की छुट्टियों से वापस आए थे। शिवी ने अलसायी आँखों से जॉन की तरफ देखा, वह अभी भी सो रहा था। शिवी बिस्तर से उठी और बाथरूम में चली गयी। बाथरूम से निकल कर वह रसोई घर में अपने लिए कॉफी बनाने लगी। सामने खिड़की पर नजर डाली तो पूरा वैंकूवर बर्फ से ढका था। कॉफी का प्याला ले कर वह हॉल में पड़ी आराम-कुर्सी पर बैठ गयी। उसने मोबाइल पर अपने पुराने मेल एकाउंट को खोला, जिसे वह केवल इतवार वाले दिन ही खोलती थी, हमेशा इस उम्मीद के साथ कि शायद आज माँ का मेल आया हो। लेकिन हर बार केवल निराशा ही उसके हाथ लगती थी। दो साल से हर रविवार की सुबह सो कर जागने के बाद उसका पहला काम यही होता था।

शिवी ने देखा कि इतने इंतजार के बाद एक मेल आया है। उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कुराहट आ गयी। उसे लगा माँ का मेल है, पर वह मेल प्रेमा आन्टी का था। मेल पढ़ते ही शिवी के हाथ से कॉफी का प्याला छूट गया। प्याले के गिरने की आवाज़ सुन कर जॉन भागता हुआ वहां आया। उसने देखा कि शिवी बेजान सी मोबाइल के स्क्रीन पर देखे जा रही थी। जॉन ने पास आ कर उसे हिलाते हुए पूछा “क्या हुआ शी?” शिवी ने जॉन की तरफ देखते हुए कहा “माँ!” आगे वह कुछ भी नहीं कह पायी। उसका गला रुंध गया और आँखों से आँसू बहने लगे।

जॉन ने शिवी के हाथ से मोबाइल ले लिया और स्क्रीन पर खुले मेल को पढ़ने लगा। प्रेमा आन्टी का मेल था “शिवी, आज सुबह तुम्हारी माँ हम सब को हमेशा के लिए छोड़ कर चली गयीं। उनकी ज़ुबान पर आखिरी नाम तुम्हारा था। मैंने उनका मृत शरीर यहाँ के शव-गृह में रख दिया है। यहाँ ज्यादा सुविधाएं न होने के कारण वह लोग हमें शरीर ज्यादा समय तक नहीं रखने देंगे। हम दो दिन तक तुम्हारे जवाब का इंतजार करेंगे, फिर मजबूर हो कर हमें उनका दाह-संस्कार करना होगा। मेल मिलते ही मुझे फोन करना।” जॉन ने मेल की तारीख पर नजर डाली। मेल आए चार दिन हो गये थे।

जॉन ने तुरंत मेल में दिए नम्बर पर फोन मिलाया। दूसरी तरफ से एक अधेड़ उम्र की महिला ने गंभीर स्वर में कहा “हैलो, मैं प्रेमा बोल रही हूँ। शिवी बोल रही हो?” जॉन ने उतनी ही गंभीरता से उत्तर दिया “मैं शिवी का पति, जॉन बोल रहा हूँ। शिवी अभी बात करने की स्थिति में नहीं है।” जॉन अभी बात कर ही रहा था कि शिवी ने उसके हाथ से फोन ले लिया। “प्रेमा आंटी, मैं तुरंत आ रही हूँ। मैं जानती हूँ आप मेरे बिना माँ की अंतिम-क्रिया नहीं कर सकतीं। माँ कहॉ है?” उधर से प्रेमा की आवाज़ आयी “मैं भी जानती थी शिवी कि तुम ज़रुर आओगी। माँ अभी शव-गृह में ही है। मैं तुम्हारा इंतजार कर रही हूँ। जल्दी से आ जाओ। अपनी टिकट करा कर मुझे बता देना। गाड़ी तुम को एयरपोर्ट पर मिल जायेगी।” यह कह कर उन्होने फोन काट दिया। शिवी हताश खड़ी एक टक फोन को देखती रही। उसकी आँखों से निरंतर आँसुओं की धारा बह रही थी। इस बीच जॉन ने जाने की टिकट भी करा ली। चार घंटे बाद फ्लाइट थी। समय कम था, उसने शिवी को जल्दी से तैयार होने को कहा और खुद अपना और शिवी का सामान रखने लगा।

एक घंटे बाद वह दोनों एयरपोर्ट पर थे। सभी औपचारिकताएँ पूरी करके वह बोर्डिंग गेट पर पहुँच गये। शिवी बहुत थका हुआ महसूस कर रही थी। उसने अपना सर जॉन के कंधे पर टिका लिया। जॉन प्यार से उसके बाल सहलाने लगा। सुबह की भाग-दौड़ में दोनों ने कुछ खाया भी नहीं था। जॉन पास के एक कॉफी- हाउस से दो कॉफी और बन ले आया। शिवी का कुछ भी खाने का मन नहीं था, वह तो बस जल्द से जल्द हिंदुस्तान पहुँचना चाहती थी पर जॉन के जिद् करने पर उसने कॉफी और बन ले लिया।

अभी वह कॉफी खत्म भी नहीं कर पाये थे कि बोर्डिंग शुरू हो गयी। बोझिल कदमों से शिवी हवाई-जहाज़ की तरफ चल दी। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे हजारों किलो का वजन उस के सीने पर रखा हो। वह खिड़की के पास वाली सीट पर बैठ गयी और सीट बेल्ट लगा ली। जल्द ही हवाई-जहाज ने उड़ान भरी और शिवी ने सिर खिड़की पर टिका लिया। उसने तिरछी निगाहों से जॉन की तरफ देखा। वह आँखें बंद करके सोने की कोशिश कर रहा था। शिवी ने भी आँखें बन्द कर लीं। उसकी आँखों से आँसुओं की धारा बह निकली।

शिवी ने कभी सोचा भी नहीं था कि माँ उसे बिना माफ किए ही इस दुनिया से चली जायेगी। उसे तो लगता था कि वक्त के साथ वह सब कुछ भूल जायेगी और उसे क्षमा कर देगी। अब जिंदगी भर उसे इस ग्लानि के साथ जीना होगा कि उसने अपनी माँ का दिल तोड़ा था। शायद यही उनकी मौत का कारण भी था। शिवी की बंद आँखो के सामने उसका अतीत एक फिल्म की तरह चलने लगा।

शिवी की माँ, इन्द्राणी मिश्रा, अपने माँ-बाप की इकलौती सन्तान थी। चार साल की उम्र में ही माँ का स्वर्गवास हो गया। पापा ने माँ-बाप दोनों का प्यार दिया पर उनके आदर्श व नियम हमेशा प्यार से ऊपर रहे। इन्द्राणी देखने में खूबसूरत व दिमाग से बेहद बुद्धिमान थी। कॉलेज में एक लड़का अनिल, उसे बहुत पसंद करता था। वह भी मन ही मन उसे पसंद करती थी, पर वह जानती थी कि पिताजी कभी भी उसका विवाह उस लड़के से नहीं होने देंगे। अपने पिता की खुशियों के लिए उसने अपनी भावनाओं को मन में ही दबा लिया। एक दिन जब अनिल ने इन्द्राणी के सामने शादी का प्रस्ताव रखा, तो उसने यह कह कर मना कर दिया कि “मैं विवाह अपने पिता की पसंद से ही करूंगी और वह तुम को तुम्हारी जाति के कारण कभी स्वीकार नहीं करेंगें।”

ऋषिकेश में इन्द्राणी के पिता की जड़ी-बूटियों से दवाईयॉ बनाने की फ़ैक्टरी थी। पढ़ाई पूरी होते ही इन्द्राणी अपने पिता के कारोबार से जुड़ गयी। जल्द ही उसके पिता ने उसके लिए उपयुक्त वर देख कर उसका विवाह कर दिया। दिनेश एक बहुत ही सुलझा हुआ समझदार लड़का था। उसे जीवन साथी के रूप में पा कर इन्द्राणी बहुत खुश थी। दोनो का दांपत्य जीवन अच्छा कट रहा था।

शादी को दो साल हो गये थे। इन्द्राणी और दिनेश दोनो ही अपना परिवार बढ़ाना चाहते थे, लेकिन उसके पिता नहीं चाहते थे कि वह इस समय बच्चे की ज़िम्मेदारी में पड़े। उनकी इच्छा थी कि वह पूरा समय दे कर कारोबार को और आगे बढ़ाये। इधर कुछ समय से उनका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं चल रहा था। उन्होंने फ़ैक्टरी जाना भी कम कर दिया था। इस तरह कारोबार का पूरा भार इन्द्राणी पर आ गया। इस समस्या के समाधान के लिए उसने पिताजी की सलाह से दिनेश को भी अपने कारोबार में शामिल कर लिया। दोनो ने मेहनत व लगन से कारोबार को बढ़ाया। पिताजी खुश तो थे पर पूर्ण रूप से संतुष्ट नहीं।

जल्द ही इन्द्राणी ने एक बच्ची को जन्म दिया। दिनेश और इन्द्राणी ने बड़े प्यार से उसका नाम शिवी रखा। उसकी देख-भाल के लिए दिनेश के घनिष्ठ मित्र ने इन्द्राणी को प्रेमा से मिलवाया। प्रेमा उनके बहुत पुराने व वफादार ड्राइवर की इकलौती बेटी थी। प्रेमा की माँ का देहान्त कई साल पहले हो गया था। पिता ने उसे बी.ए. तक पढ़ाया और फिर बड़े अरमानों से उसकी शादी कर दी। शादी के दो महीने बाद ही उसके पति की मृत्यु हो गयी। ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया। इस तरह प्रेमा, शिवी और इन्द्राणी की जिंदगी में शामिल हो गयी।

एक दिन शाम को जब इन्द्राणी और दिनेश फ़ैक्टरी से वापस आए तो आँधी-बारिश का मौसम हो रहा था। इन्द्राणी ने नौकर को चाय के साथ पकौड़े बनाने को कहा। अभी चाय बन कर आयी भी नहीं थी कि उसके पापा ने दिनेश को देहरादून जा कर किसी व्यापारी से मिलने को कहा। इन्द्राणी के बार-बार मना करने पर भी वह नहीं माने। उन्होने गुस्से में कहा “यदि ऐसी छोटी-मोटी बारिश से डर कर घर में बैठ जायेंगें तो कारोबार कैसे चलेगा। वह आदमी छ: महीने के लिए विदेश जा रहा है। जाने से पहले वह आर्डर दे कर जाना चाहता है। यदि उसने यह आर्डर किसी और को दे दिया तो हमें बहुत बड़ा नुकसान हो जायेगा।” दिनेश ने इन्द्राणी को समझाया “पापा ठीक कह रहे है। देहरादून है ही कितनी दूर। तुम परेशान मत हो। मैं जल्द ही वापस आ जाऊँगा।” कह कर दिनेश देहरादून के लिए निकल गया।

रात भर इन्द्राणी दिनेश का इंतजार करती रही। उसका मन बहुत बेचैन था। सुबह-सुबह पुलिस वाले दिनेश का मृत शरीर ले कर घर आए। उन्होंने बताया “तूफान के कारण एक पेड़ उखड़ कर गाड़ी पर आ गिरा। उसकी टहनी इनके शरीर के आर-पार हो गयी और मौके पर ही इनकी मृत्यु हो गयी।” इन्द्राणी को गहरा सदमा लगा था। उसके मन में अपने पिता के लिए नाराज़गी थी। वह गुस्से में चीख-चीख कर अपने दिल का गुबार निकालना चाहती थी, पर उसने एक शब्द भी नहीं कहा। एकदम शांत पत्थर की मूर्ति की तरह खड़ी रही। उसके पिता भी शोकाकुल थे। उन्होने स्वयं अपनी बेटी का घर उजाड़ दिया था। इस बोझ को वह सहन नहीं कर पाये और हमेशा के लिए बिस्तर पकड़ लिया।

इन्द्राणी एक बार फिर कारोबार में अकेली पड़ गयी थी। उसकी व्यस्तता काफी बढ़ गयी, पर उसने बेटी और माँ दोनों के फर्ज पूरी तरह निभाये। फ़ैक्टरी से बचा सारा समय वह शिवी के साथ ही गुजारती। दिनेश की अनुपस्थिति के कारण वह अपना हर सुख-दुख प्रेमा के साथ बॉटने लगी। धीरे-धीरे प्रेमा ने इन्द्राणी और शिवी की जिंदगी में एक विशेष जगह बना ली।

जब अनिल को दिनेश की मौत के बारे में पता चला तब वह इन्द्राणी से मिलने उसके घर आया। उसने इन्द्राणी के पिता से उसका हाथ माँगा। यह सुन कर पिता की आँखें छलक आयीं। उन्होंने पलकें झपका कर अपनी स्वीकृति दे दी। इन्द्राणी ने अनिल को इंकार करते हुए कहा “जब मैं एक अविवाहित लड़की थी तब मैंने तुम्हें अपने पिता की खुशी के लिए मना कर दिया था। आज जब मैं एक पत्नी और माँ हूँ, तब वह इस प्रस्ताव को स्वीकार कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि वह विचारों से बदल गये है। वह केवल अपने मन का बोझ कम कर रहे है। मैं उन्हें ऐसा नहीं करने दूँगी और सबसे महत्वपूर्ण बात, शिवी ही अब मेरे जीवन का एकमात्र ध्येय है। मुझे उसके लिए माँ और पिता दोनों बनना है। तुम एक अच्छे इंसान हो, कोई अच्छी सी लड़की देख कर शादी कर लो। तुम हमेशा खुश और सुखी रहो, यही मेरी शुभकामनायें हैं।”

पांच साल तक शारीरिक व मानसिक यातना सहने के बाद इन्द्राणी के पापा एक रात चले बसे। जाने से पहले उन्होंने इन्द्राणी के आगे हाथ जोड़े। उनकी आँखों से कुछ आँसू की बूंदें तकिये पर टपक गयीं। इन्द्राणी खामोश खड़ी उन्हें जाते देखती रही। अंतिम सांस तक उसने अपने पिता को माफ़ नहीं किया।

वक्त के साथ शिवी बड़ी हो गयी। इन्द्राणी ने शिवी के लिए माँ-बाप,दोस्त हर किसी की भूमिका निभाई। शिवी भी अपनी हर बात माँ और प्रेमा से साझा करती। तीनों एक दूसरे के बिना ज्यादा देर तक नहीं रह पाते। बचपन से ही शिवी का एक बहुत अच्छा दोस्त था, राहुल। राहुल, दिनेश के उसी मित्र का बेटा था जिसने प्रेमा को इन्द्राणी से मिलवाया था। जैसे-जैसे राहुल और शिवी बड़े हुए उनका रिश्ता और गहरा होता गया। वह दोनों ही अपनी आने वाली जिंदगी के सपने एक साथ देखने लगे। उनके परिवार वालों को भी इस बात पर कोई एतराज़ नहीं था। वह लोग चाहते थे कि पढ़ाई पूरी होते ही इनकी शादी कर दे।

राहुल और शिवी दोनों ने एक साथ आई.आई.टी,दिल्ली से बी.टेक. किया। शिवी की तीव्र इच्छा थी कि वह आई.आई.एम से एम.बी.ए. करे। उसके जिद् करने पर राहुल ने भी वहॉ का फार्म भर दिया। जब प्रवेश परीक्षा का परिणाम आया तो राहुल का दाख़िला तो वहां हो गया पर शिवी का नहीं हुआ। यह बात शिवी को बर्दाश्त नहीं हुई, पर उसने इस बात को किसी के भी सामने व्यक्त नहीं होने दिया। पहली बार ऐसा हुआ था कि उसने माँ और प्रेमा से कोई बात छिपाई थी। उसने माँ से बिना पूछे ही लन्दन के एक कॉलेज में एम.बी.ए. का फार्म भर दिया। दाख़िला हो जाने पर उसने जाने की जिद् पकड़ ली। राहुल ने भी उसका साथ दिया।

माँ ने इस शर्त के साथ हॉ कर दी कि “जाने से पहले तुम राहुल के साथ सगाई करोगी और पढ़ाई पूरी होते ही वापस आ जाओगी।” दूसरी शर्त मानने में उसे कोई झिझक नहीं थी। वह तो छोटी उम्र से ही अपने पारिवारिक कारोबार से जुड़ने के सपने देखती थी। उसने न जाने कितनी बार माँ से कहा था “जब मैं भी कारोबार से जुड़ जाऊँगी तब हम इन्हीं जड़ी-बूटियों से सौन्दृय प्रसाधन भी बनायेंगे।” माँ हँस कर कहती “हॉ, हॉ, जो करना चाहती हो, कर लेना,पहले पढ़ाई तो पूरी कर लो।” पहली शर्त के बारे में इधर कुछ दिनों से वह दुविधा में थी।

शिवी ने माँ से कहा “सगाई की जल्दी क्या है। एक साल की ही तो बात है। मैं और राहुल दोनों अपनी-अपनी पढ़ाई पूरी कर लें, फिर सगाई भी कर लेंगे।” कई दिनों तक माँ-बेटी में तकरार चलती रही। इन्द्राणी अपनी बात पर अड़ी रही और शिवी अपनी। जाने की तारीख पास आती जा रही थी और अभी बहुत सी औपचारिकताएँ पूरी करनी थी। शिवी ने उदास मन से हॉ कर दी। इन्द्राणी ने एक भव्य आयोजन में शिवी और राहुल की सगाई करा दी।

सगाई के दूसरे दिन ही शिवी लन्दन चली गयी। एक साल जैसे पंख लगा कर उड़ गया। शिवी के वापस आने का समय पास आ रहा था। इन्द्राणी बेसब्री से उसके आने का इंतजार कर रही थी। इससे पहले वह कभी शिवी से इतने दिनो तक दूर नहीं रही थी। शिवी का जन्मदिन भी पास आ रहा था। वह सोच रही थी कि इस बार उसका जन्मदिन बड़े धूम-धाम से मनायेगी।

एक दिन जब इन्द्राणी ने शिवी से वापस आने का प्रोग्राम पूछा तो उसने भूमिका बनाते हुए कहा “माँ, मैं सोच रही थी कि जब तक राहुल की पढ़ाई पूरी नहीं होती, तब तक मैं भी यहाँ नौकरी करके कुछ अनुभव ग्रहण कर लूँ।” यह सुन कर इन्द्राणी ने नाराज़ होते हुए कहा “शिवी तुम ने वादा किया था कि तुम पढ़ाई पूरी होते ही वापस आ जाओगी।” माँ की कड़क आवाज़ सुन कर शिवी ने कुछ घबराते हुए कहा, “मुझे यहाँ नौकरी मिल गयी है और...” इन्द्राणी ने उसकी बात बीच में ही काटते हुए कहा “मुझे कुछ कहना-सुनना नहीं है, मैं कल ही तुम्हारी टिकट करा रही हूँ।” शिवी ने कुछ झिझकते हुए कहा “माँ, मैं उनके साथ एक साल के अनुबंध पर हस्ताक्षर कर चुकी हूँ। मेरा अभी वापस आना असंभव है। केवल एक साल की ही तो बात है। तब तक राहुल की भी पढ़ाई पूरी हो जायेगी। तुमने आज तक मेरी कोई बात नहीं टाली है। आज भी तुम बिना नाराज़ हुए मेरी यह बात मान लो।” इन्द्राणी को शिवी की बातें बहुत अनैतिक लगीं। विशेष कर उसका बिना सलाह किये वहॉ नौकरी करने का फ़ैसला ले लेना। यहाँ तक की अनुबंध पर हस्ताक्षर कर देना। यह सब सुन कर वह बहुत उदास हो गयी। राहुल और प्रेमा ने उसे समझाया कि इसमें हर्ज ही क्या है। वैसे भी शादी तो एक साल बाद ही होगी। उन दोनो ने इन्द्राणी को इस बात के लिए भी मना लिया कि वह शिवी के जन्मदिन पर लन्दन जा कर उसे अचरज में डाल देगी।

इन्द्राणी बिना शिवी को बताये लन्दन पहुँच गयी। उसने हवाई अड्डे से टैक्सी ली और शिवी के घर जा पहुँची। हाथ में बड़ा सा केक का डिब्बा और एक तोहफ़ा लिए उसने घर की घंटी बजाई। थोड़ी देर इंतजार के बाद कुछ अस्त-व्यस्त हालत में एक यूरोपियन लड़के ने दरवाज़ा खोला। इन्द्राणी चौक कर थोड़ा पीछे हट गयी। उसने एक बार फिर अपनी निगाह दरवाज़े पर लगे नम्बर पर डाली। नम्बर तो सही था। उसने घबराई हुई आवाज़ में पूछा “क्या शिवी यही रहती है?” उस लड़के ने आँख मसलते हुए कहा “हॉ, आप कौन?” तभी अचानक उसको जैसे बिजली का झटका लगा हो। वह भागता हुआ अंदर चला गया। उसके पीछे-पीछे इन्द्राणी भी अंदर चली आई। वह लड़का हॉल पार करके सामने वाले कमरे में घुस गया। इन्द्राणी ने देखा कि हॉल में एक अधकटा केक रखा था। पास ही एक खाली शॉम्पेन की बोतल व दो गिलास पड़े थे। हॉल पार करके इन्द्राणी कमरे के दरवाज़े पर पहुँच कर ठिठक गयी।

कमरे में पलंग पर शिवी बेसुध अवस्था में पड़ी थी। वह लड़का उसे हिला-हिला कर जगा रहा था। शिवी ने अपनी बाहें उसके गले में डालते हुए कहा “जॉन सोने दो न। कल रात देर से सोए थे, फिर आज छुट्टी भी है। तुम भी सो जाओ।” यह दृश्य देख कर इन्द्राणी के पैरो तले ज़मीन खिसक गयी। यह सब तो वह सपने में भी नहीं सोच सकती थी। उसके पैर कॉप रहे थे और हाथ का सामान छूट कर ज़मीन पर बिखर गया था। सामान गिरने की आवाज़ सुन कर शिवी चौंक कर उठ गयी। जॉन ने दबी आवाज़ में कहा “तुम्हारी माँम!” शिवी की नजर माँ पर पड़ी और वह अंदर तक कॉप गयी। इन्द्राणी बिना कुछ कहे वहॉ से चली आयी।

यह घटना इन्द्राणी के लिए बहुत बड़ी थी। यह सदमा तो उसके लिए दिनेश की आकस्मिक मौत से भी बड़ा था। दिल्ली एयरपोर्ट पर उतरते ही वह बेहोश हो गयी। प्रेमा ने उसे अस्पताल में भर्ती कराया और शिवी को खबर कर दी। दो दिन बाद इन्द्राणी को अस्पताल से छुट्टी मिल गयी। जब वह अस्पताल से बाहर आयी तो शिवी वहॉ खड़ी थी। इन्द्राणी ने उससे मुँह फेर लिया। उसने प्रेमा से भी स्पष्ट शब्दों में कह दिया “तुम मुझ में और शिवी में से किसी एक को चुन लो।” प्रेमा के लिए यह मुश्किल घड़ी थी। उसने शिवी को अपने बच्चे की तरह पाला था और इन्द्राणी ने उसे सब कुछ दिया था। घर, इज़्ज़त, नौकरी, परिवार और अपनापन। शिवी ने प्रेमा से कहा “प्रेमा आन्टी, माँ को आपकी जरूरत है। आप उनका ख्याल रखियेगा। मैं फोन करती रहूँगी।” शिवी वापस लन्दन चली गयी।

इन्द्राणी ने अपनी जिंदगी से शिवी का नामो-निशान भी मिटा दिया। उसने अपनी फ़ैक्टरी के सभी लोगों को सख्त चेतावनी दी कि कोई भी शिवी के साथ किसी भी तरह का संबंध नहीं रखेगा। राहुल को जब जॉन के बारे में पता लगा तो उसने भी शिवी से सभी संबंध खत्म कर लिए और सगाई की अँगूठी इन्द्राणी को वापस दे दी। राहुल को नाराज़गी इस बात से कम थी कि उसने किसी और को पसंद कर लिया। यह बात तो वह शायद कुछ समय के बाद भुला भी देता पर उसकी असली नाराज़गी का कारण था कि शिवी ने लगातार उससे यह बात छिपायी और उसे धोखा देती रही। शिवी की इस गलती को न तो कभी इन्द्राणी माफ कर पायेगी और न ही राहुल।

छ: महीने तक शिवी लगातार दिन में कई-कई बार फोन मिलाती, कभी माँ, कभी प्रेमा आन्टी और कभी राहुल को। कोई भी उसके फोन का उत्तर नहीं देता। सभी ने उससे मुँह मोड़ लिया था। उसने कई बार फ़ैक्टरी के फोन पर भी मिलाया पर वहॉ से भी उसे कोई जवाब नहीं मिला। हताश हो कर वह एक बार फिर अपनी माँ को मनाने घर आयी। इन्द्राणी ने उससे मिलने से भी इंकार कर दिया। उसके साथ वहॉ अजनबियों जैसा व्यवहार हुआ। आहत हो कर वह वापस चली गयी। चलते समय उसने आँखों में आँसू भर कर कहा “अब मैं यहां तब तक नहीं आऊँगी जब तक आप खुद मुझे नहीं बुलायेंगी।”

इस घटना को करीब एक साल बीत गया। शिवी का जन्मदिन था पर उसका मन उदास था। आज के दिन भी माँ ने फोन करना तो दूर उसका फोन उठाया भी नहीं था। जॉन ने तोहफ़े के रूप में उसे सगाई की अँगूठी पहना दी। आँखो में आँसू भर कर वह जॉन के गले लग गयी।

जॉन की कम्पनी उसे दो साल के लिए कनाडा भेज रही थी। उसने शिवी से कहा “मेरे माँ-पापा चाहते है कि मैं कनाडा जाने से पहले शादी कर लूँ।” शिवी ने शादी के लिए हॉ कर दी। उसने माँ को फोन करके बताने की बहुत कोशिश की पर फोन नहीं उठा। वाटसएप, मेल आदि पर भी उसका माँ या किसी और से सम्पर्क नहीं हो पाया।

शिवी की शादी हो गयी और वह जॉन के साथ कनाडा चली गयी। शिवी को भी वहॉ अच्छी नौकरी मिल गयी। दोनों बहुत खुश थे, पर माँ की कमी उसे हमेशा महसूस होती थी। जगह व कम्पनी बदल जाने की वजह से उसका फोन नम्बर व मेल बदल गया था। वह हर इतवार को अपना पुराना मेल इस उम्मीद के साथ खोलती कि शायद माँ ने उसे माँफ करके घर बुलाया हो।

शिवी की यादों की फिल्म पूरी हो चुकी थी। दिल्ली हवाई-अड्डे पर प्रेमा ने गाड़ी भेजी थी। शिवी और जॉन घर पहुँच गये। वहॉ माँ की अंतिम यात्रा की सभी तैयारियॉ पूरी हो चुकी थी। सारा इंतज़ाम प्रेमा और राहुल की देख-रेख में हुआ था। शिवी प्रेमा के गले लग कर रोने लगी। प्रेमा ने उसे सान्त्वना दी। राहुल ने उसे देख कर भी अनदेखा कर दिया। वह अब भी नाराज़ था।

इन्द्राणी की अंतिम क्रिया पूरी हुई। शिवी ने जॉन से कह कर तेरहवीं के अगले दिन की टिकट करवा लीं। उसने प्रेमा को अपने जाने की तारीख व समय सूचित कर दिया। प्रेमा ने उसे इन्द्राणी का पत्र देते हुए कहा “तुम्हारी माँ का आखिरी पत्र। जो उन्होने जाने से चन्द घन्टों पहले ही लिखा था।” शिवी ने पत्र पढ़ना शुरू किया

प्रिय शिवी,

जब तुम्हें यह पत्र मिलेगा तब तक मैं इस दुनिया से जा चुकी होगी। मैंने प्रेमा से कह दिया है कि मेरे जाने के बाद वह तुम्हें बुला कर वह सब सौंप दे, जिस पर तुम्हारा कानूनी तौर पर हक है। फ़ैक्टरी, बँगला, और वह सब कुछ जो मेरा था या जो मैंने तुम्हारी शादी के लिए रखा था। मैं चाहती तो इस में से बहुत कुछ उसे दे सकती थी जो इसके असली हक़दार है, पर मैं तुम्हारे साथ किसी भी तरह का अन्याय नहीं करना चाहती थी।

मेरा और तुम्हारा रिश्ता एक अनोखा रिश्ता था। हम सिर्फ माँ-बेटी नहीं, उससे कहीं ज्यादा एक दोस्त थे। तुम मेरा गुरूर थीं और मुझे हमेशा तुम पर अपने से ज्यादा भरोसा था। तुम मेरी जिंदगी की इकलौती खुशी थीं। मेरे जीने का एक मात्र मकसद। तुम्हें मुझ से कुछ भी छिपाना नहीं चाहिए था। तुम्हारे इस धोखे ने मेरे अंदर जीने की चाह खत्म कर दी।

मेरी जिंदगी काँटो भरी थी। बचपन में ही माँ मुझे छोड़ कर चली गयी। पिता ने सख्त अनुशासन में पाला, न कभी कुछ कहने दिया और न कभी कुछ सुना। एक आदमी जिसने मुझे भरपूर प्यार, इज़्ज़त, प्रोत्साहन सब कुछ दिया उसे मेरे पिता की जिद् ने मुझसे बहुत जल्द छीन लिया। तुम मेरी जिंदगी में बहार बन कर आयीं। मैं अपना सब दुख भूल कर तुम में व्यस्त हो गयी। तुमने कभी सोचा कि मेरा यह सफर कितना मुश्किलों भरा था। एकदम अकेले घर, कारोबार और तुम्हें संभालना। मैंने कभी तुम्हारी जिंदगी में कोई दुख, तकलीफ़ या कमी नहीं आने दी। जीवन के इस कठिन सफर में प्रेमा ने हमेशा मेरा साथ दिया। उसने तुम्हें हमेशा माँ का प्यार दिया है। उसे तुम से अलग करके मैंने अपराध किया है। तुम हमेशा उसका एक माँ के रूप में ख्याल रखना। उसे कोई तकलीफ़ मत होने देना।

राहुल बहुत अच्छा, काबिल व होनहार लड़का है। इतना सब होने के बाद भी उसने मुझसे कभी कोई शिकायत नहीं रखी। एक बेटे की तरह मेरा साथ दिया। कारोबार संभालने में भी और व्यक्तिगत रूप से भी। यदि उसका विवाह तुम्हारे साथ हो जाता तो आज वह इस फ़ैक्टरी का मालिक होता। वह किसी लालच से यहाँ नहीं आया। फ़ैक्टरी की कीमत से कही ज्यादा तो वह उस कम्पनी से कमा लेता जिसे छोड़ कर वह मेरी मदद करने आया था। मेरी तुम को सलाह है कि फ़ैक्टरी राहुल के नाम कर दो। तुम्हारे कुछ गुनाह तो कम हो जायेंगे।

यदि तुम ने ऐसा किया तो समझ लेना कि मैंने तुम्हें माफ कर दिया।

तुम्हारी

माँ

शिवी ने फ़ैक्टरी के कागज़ात तैयार करवा कर फ़ैक्टरी व बँगला राहुल के नाम कर दिया। इन्द्राणी के बैंक में जितना भी पैसा था उसे प्रेमा के बार-बार मना करने पर भी उसके बैंक में जमा करवा दिया। तेरहवीं के बाद अपना सब कुछ यहीं छोड़ कर वह जॉन व अपनी प्रेमा माँ के साथ वापस कनाडा चली गयी, इस उम्मीद के साथ कि उसकी माँ ने उसे माफ कर दिया होगा।

COMMENTS

BLOGGER: 1
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: कहानी - आहत -निधि जैन
कहानी - आहत -निधि जैन
http://lh5.ggpht.com/-znYYGIpkIjs/Uvc3oN_5RfI/AAAAAAAAXbA/jUp-7c9bjeQ/image%25255B2%25255D.png?imgmax=800
http://lh5.ggpht.com/-znYYGIpkIjs/Uvc3oN_5RfI/AAAAAAAAXbA/jUp-7c9bjeQ/s72-c/image%25255B2%25255D.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2019/02/blog-post_87.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2019/02/blog-post_87.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content