मौसम अंगार है - काव्य संग्रह - अविनाश ब्यौहार

SHARE:

मौसम अंगार है        अविनाश ब्यौहार   Publisher :        Centre : 2097/22, Balaji Market, Chah Indara, Bhagirath Place, Delhi-110006. ...

मौसम अंगार है
  
 
 
अविनाश ब्यौहार  

Publisher : 
 
 
 
Centre :
2097/22, Balaji Market, Chah Indara,
Bhagirath Place, Delhi-110006.   

Website : www.kavyapublications.com  
 
ISBN : 978-93-88256-41-4
Price: 160 /-  
Copyright © AVINASH BYOHAR
All rights Reserved.  
No  part  of  this  publication  may  be  reproduced,
transmitted  or  stored  in  a  retrieval  system,  in  any
form  or  by  any  means,  electronic,  mechanical,
photocopying  recording  or  otherwise,  without  the
prior permission of the publisher.
   
 
SDR INNOWAYS INDIA PVT. LTD.
667,Rajaward, Kulpahar/Bhopal/Delhi
With Co-operation:
KAVYA PUBLICATIONS
Abhinav R.H. 4, Awadhpuri, Bhopal.
462002, M.P.
 
पूजनीय  
माता
एवं 
पिता
को समर्पित   
                                
 
प्रकाशक की ओर से 
हमने एक कठोर यथार्थ को रेखांकित किया है और वह ये है कि समूचे विश्व में अपने देश के अन्दर हिन्दी रचनाकारों की जो दुर्दशा है वह किसी से छिपी नहीं है। हिन्दी लेखकों व कवियों को रचनाओं  के  प्रकाशन  में  विशेषकर  उसे  पुस्तकीय  आकार  देने  के लिए मुश्किल से ही कोई प्रकाशक मिलता है।
इस  गुरु  गंभीर  समस्या  के  निदान  के  लिये  हमने  काव्या पब्लिकेशन्स के रूप में रचनाकारों के लिये एक सशक्त मंच देने का प्रयास किया है। यह मात्र एक व्यावसायिक प्रतिष्ठान नहीं है यह रचनाकारों की रचनाऐं प्रकाशित करने का एक रचनात्मक आन्दोलन बनकर उभर रहा है।
देखना  है  कि  देश  के  हिन्दी  भाषी  रचनाकार  इस  मंच  को कितना सशक्त रूप प्रदान करते हैं। आप सभी से निवेदन है कि अपनी रचना के सुगमतापूर्वक प्रकाशनार्थ एवं हिन्दी के सेवार्थ आप हमारे  साथ  कंधे  से  कंधा  मिलाकर  खड़े  हो  सकते  हैं,  इस  हेतु आपका सदैव स्वागत है।
इसी क्रम में श्री अविनाश व्यौहार की रचना ‘मौसम अंगार है‘ आपके  करकमलों  में  है।  उनकी  रचनायें  दर्शाती  है  कि  मानवीय मूल्यों  को  बिखरने  की  पीड़ा  वह  कितनी  गहरी  संवेदना  के  साथ महसूस करते हैं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि उनका ये लेखन भारतीय समाज की सोच को एक नई दिशा प्रदान करेगा।   
हमारे  प्रकाशन  से  उनकी  यह  पहली  पुस्तक  है,  बहुत-बहुत बधाई एवं नवीन सृजन हेतु शुभकामनाएं।
सादर। 
अजय अग्रवाल
प्रबंध संपादक

                               
 

 
 
नवगीत     
                                
  9
 
  नवगीत (एक) 
सूरज ने ताना 
धूप का तिरपाल!
सिवानों पर है
लगा हुआ मेला!
खिले शिरीष औ
महका है बेला!!
पुरइन का
निर्जन में
लहराया ताल!
मृतप्राय पड़ी हुई
रेत की नदी!
धूसरित होती
इक्कीसवीं सदी!!
पंछी का कलरव
अहेरी का जाल.......!!
   
                                
 
10
नवगीत (दो)      
उजियारे के 
छौने लाये  
पर्व दिवाली!
आँगन लिपे
हुये हैं
गोबर से!
पुरसी करे
दिवाली-
पोखर से!!
खिरके में हैं
गौयें बैठे
करे जुगाली!
बम फुलझड़ियाँ
हैं खुसाल
हँसती बतियाती!
रिश्ते हों ऐसे
जैसे की
दीपक बाती!!
हवा चली तो
लचक गई
आमों की डाली........!!
                                
 
11
नवगीत (तीन) 
आई दिवाली
हुये उजाले
सत्तासीन!
दीवट खुश हैं
ठुमकी दीपमालिका!
सजी धजी दीवाली
लग रही कुमारिका!!
टिमटिमाते दीपों
से हुईं
राते रंगीन!
झुग्गी की ड्योढ़ी
पर एक
दिया बालना!
गैया पर
गेरू के
छापे है डालना!!
खोटा खाना
हुआ उल्लू
के आधीन........!!
                                
 
12
नवगीत (चार)
सिंगार हुये हैं
दीवाली के
खील बताशे!
स्वर्ग से
उतरी
भू पर!
लिस गये
दीपक
छू कर!!
अब नहीं चलेंगे
अंधकार के  
कोई झाँसे!
घर-आँगन
लिपे-
पुते हैं!
मावस तो
ओट
छिपे हैं!!
दीपावली में
खीझ भरे दिन
हुये रूआँसे........!!
                                
 
13
नवगीत (पाँच)
चाँद को
है तारापुंज
का निहोरा!
घुलती है
चाँदनी
हवा में!
पूजा के
भाव हैं
जवा में!!
मंदिर की
सीढ़ियाँ धोता
है टोरा!
सड़कों पर
टहल रही
धूप!
नहीं रहे
प्रचलन में
कूप!!
बिलाने हैं
रस्मों रिवाज
से तोरा........!!
                                
 
14
नवगीत (छः)
क्या करे साँकल
जब देहरी
हो चोर!
खुसुर पुसुर करते
मगरे औ छानी!
आँगन के मुख से
फूट रही बानी!!
संदली हवा
चली जाने
किस ओर!
जाड़े से काँप रहे
हैं गाछ-गात!
इठलाती हवा चली
जाने क्या बात!!
काली सी धुंध में
लिपटी है भोर.......!!
   
 
 
                                
 
15
नवगीत (सात)
रात्रि के लिये
एक नया सा
सूर्य उगायें!
जो अंधियारा
धो डालेगा!
उजली किरनें
बो डालेगा!!
दुर्गम राहों
की भी कटी
सभी बाधायें!
रातों में भी
होगी भोर!
छज्जों पर
पंछी का शोर!!
कृष्ण पक्ष की
सदा के लिये
मिटी ब्यथायें.......!!
   
   
                                
 
16
नवगीत (आठ)
मन में आया
एक ख़्याल
ट्वीट कर दिया!
चेहरे में पुती
उदासी है!
खुशियाँ तक हुईं
रूआँसी हैं!!
मुस्कानों का
पड़ा अकाल
ट्वीट कर दिया!
मछली जल की
महारानी है!
और दिखती वो
लासानी है!!
चूम गयी
मछुये का जाल
ट्वीट कर दिया.......!!
 
 
                                
 
17
नवगीत (नौ)
बीड़ी सी
सुलग रही
भोर!
गाँव-शहर
में है
अनबन!
रिश्तों में
बबूल के
वन!!
डूबते
अवसाद में
शोर!
डान बना
आज ये
शहर!
चाँदनी पर
चाँद का
कहर!!
तनी है
तनावों की
डोर......!!
                                
 
18
नवगीत (दस)
भ्रष्टाचार गर 
दैत्य तो
सुरसा मंहगाई!
बढे़ फ्यूल के
अतिशय दाम!
घायल पड़ी
सुकोमल शाम!!
विलास कुंज पावन
तो पद च्युत
हुई पुजाई!
दुष्कर्मी की
पौ बारा है!
नेकी को मिलती
कारा है!!
है कंचन  देह
लेकिन धुली न
मन की काई......!!
 
   
                                
 
19
नवगीत (ग्यारह) 
खबरें लू
लपटों की
बाँचती हवायें!
मौसम अंगार है
सुआ कुतरे आम!
कुत्ते सा हाँफ रहे
हैं आठों याम!!
रातों का
सुरमा है
आँजती हवायें!
सूख रहे झरने
और सूखती नदी!
जेठ की दोपहरी है
दिनों पर लदी!!
आँधियाँ बवंडर
बन नाचती
हवायें....!!
 
   
                                
 
20
नवगीत (बारह)
प्यास के पखेरू हैं
छत पर सकोरे!
फुदक फुदक
आती है
छत पर गौरैया!
द्वारे पे 
खड़े हो
रम्हाती है गैया!!
समुद्र लगे झील से
ताल हैं कटोरे!
आँगन ने
छेड़ा तो
रो पड़ी घिनौची!
लबरी बातें
ही लगतीं
हैं पोची!!
वंचना पंडित हैं
हमी रहे कोरे......!!
 
                                
 
21
नवगीत (तेरह)
खूं के आँसू
मौसम रोया है।
पानी बरसा
फसलें जल गईं!
हरियाली लपटों
में ढल गई।
मेघों ने अंगारा
ढोया है!
पुरवा पछुआ
धुंध मे डूबी।
दंशित पर्यावरण
की खूबी।
अब बेखबर सा
शहर सोया है।।
 
   
   
                                
 
22
नवगीत (चौदह)
उठती है
गंधों की डोली
अब तारों
की छाँव में!
फूलों पर रंगत
और आ गया हिजाब!
कलरव करें पंछी सा
आँखों मे ख्वाब!!
खेत, मेड़, 
खलिहान, बगीचे
मनोहारी हैं
गाँव में!
बागों में होती
अलियों की
गुनगुन है!
आती दूर कहीं से
रबाब की धुन है!!
है मिले सुकूं
भटकी हवाओं को
पीपल की ठाँव में.....!!
                                
 
23
नवगीत (पन्द्रह)
वन जंगल में
भटक रहे हैं
देवपुरूष श्री राम।
बेर खाये
शबरी के जूठे।
आदर्शों में
रहे अनूठे।।
पथरीले पथ पर
डग भरते
चलते थे अविराम।
रूपवती एक
नार नवेली।
करती है उनसे
अठखेली।।
मायामोह
विलग थे उनसे
मन से थे निष्काम।।
 
   
                                
 
24
नवगीत (सोलह)
ऊँट किस करवट
बैठेगा पता नहीं!
काली आँधी
का मौसम!
पत्थर की भी
आँखें नम!!
शिशु क्रीड़ा करते हैं
लेकिन खता नहीं!
मंजिल पाकर
मंजिल खोता!
सावन भादों
बादल रोता!!
युग है स्पर्धा का
किंतु अता नहीं.........!!
 
   
   
                                
 
25
नवगीत (सत्रह) 
हर सू इस शहर
में क्रन्दन है।
आब हवा
बदली बदली है!
सभ्यता दूषित
गंदली है।
भाईचारा होने में
भी निबन्धन है।
निराशाओं के अब्र 
घने हैं।
सपने सारे
धूल सने हैं।
तपन दिखाता
मलयागिरी चन्दन है।।
 
   
   
                                
 
26
नवगीत (अठारह)
चलते पुर्जा शहर,
गाँव अब कन्नी
काट रहे!
फैशन का 
शहरों मे चढ़ता
पारा है!
तंगी नें
गाँवों में पैर
पसारा है!!
रसद के लिये
शहर गाँव से
मतलब गाँठ रहे!
रेला वाहन का
शहरों में
बहता है!
फिजूल खर्ची
इसे गाँव अब
कहता है!!
सुविधाभोगी शहर,
गाँव के
फक्कड़ ठाठ रहे.....!!
                                
 
27
नवगीत (उन्नीस)
घोर घटा
छाई मौसम
है मक्बूल!
अंकुरित
हो आये
फूल पत्ते!
लबालब
भरे हुये
हैं खत्ते!!
शिलापट्ट जेठ
की तपन
गये भूल!
बूंदा बांदी
मतलब मेघों
का प्यार!
चतुर्दिक हो
रही आनंद
की बौछार!!
चिकने पत्ते
बूटे निखर
गये फूल......!!
                                
 
28
नवगीत (बीस)
सुख दुख
दूर खड़े
सब कुछ
मोबाइल है!
कब किस पर
क्या गाज गिरी है!
बहरों से आवाज
गिरी है!!
भूमि नेह
की बाँझ
बदी फर्टाइल है!
नहीं झोपड़े
घास फूस के!
आमों जैसा
फेंक चूस के!!
बिना वजन
न खिसके
सरकारी फाइल है।।
   
                                
 
29
नवगीत (इक्कीस)
जाल रूप का
नवयुवती फेंक रही
जाल रूप का!
कमनीय है
मादक है
उनका इशारा!
नदिया का
जल लगे
जैसे शरारा!!
सुबह हुई लहराया
पाल धूप का!
मौसम रंगीन है
इन्द्रधनुषी शाम!
थरथराये लब लेते
उनका नाम!!
पनिहारिन चूम रही
भाल कूप का.....!!
 
 
                                
 
30
नवगीत (बाईस)
अंधियारा इस जग
में फैला है।
आग उगलती
जल की धारा!
काल कोठरी
में उजियारा।
लोगों का नेचर
हुआ बनैला है।
धोखा धड़ी
बन गई फितरत।
घिरी बबूलों 
से है इशरत।
फ्लर्ट करे मजनूं
की लैला है।
 
   
                                
 
31
नवगीत (तेईस)
महानगर में होते हैं
रोज़ धमाके।
बदहवास सी
भीड़ भाड़ है।
दहशत का
पसरा पहाड़ है।।
अंधी खोहों में
किरणें न झांके।
पुलिस कर रही
है पेट्रोलिंग।
बिगड़ी बाजारों
की रोलिंग।।
एहतियात के नाते
बंद हुये नाके।।
   
   
                                
 
32
नवगीत (चौबीस)
बदनसीबी लगा गई
खुशियों पे महसूल!
आवाजाही गम की
बेखटके है!
चाल चलन रस्ते
से भटके है!!
पैताने सियार के शायद
बैठा है शार्दूल!
कैसा बसंत है
कैसा सावन है!
ढोती कलुष भावना
पावन है!!
करें फूल से जोरा जोरी
बदनिगाह बबूल......!!
   
                                
 
33
नवगीत (पच्चीस)
प्यास के पखेरू हैं
छत पर सकोरे!
फुदक फुदक
आती है
छत पर गौरैया!
द्वारे पे 
खड़े हो
रम्हाती है गैया!!
समुद्र लगे झील से
ताल हैं कटोरे!
आँगन ने
छेड़ा तो
रो पड़ी घिनौची!
लबरी बातें
ही लगतीं
हैं पोची!!
वंचना पंडित हैं
हमी रहे कोरे.....!!
 
                                
 
34
नवगीत (छब्बीस)
हम देहाती
गँवार हैं
वे शहराती हैं।
खेतों की बोनी
खलिहान याद है!
गैया, खूंटा औ
थान याद है।
सांधे सांधे गाँव
तो देश की
थाती हैं।
चौपाल में वट तले
आल्हा गाना।
डाकिये का गाँव में
चिट्ठी लाना। 
श्रम सीकर के
बदले में
ठकुर सुहाती है।।
 
   
                                
 
35
नवगीत (सत्ताईस)
बूढ़ा सूरज
चलता है
किरणों की लाठी को टेक।
वे ऐसे कार्मिक हैं
जिनको कि 
अवकाश नहीं है।
खिले हैं ऐसे
सुमन कि
जिनमें कोई
सुवास नहीं हैं।।
कृत्रिम है
अधुनातन युग
यानि सब का
सब है फेंक।
दोष मुक्ति
अंधियारे को
सजायाफ्ता
उजियारा है।
   
                                
 
36
तंग वक़्त में 
‘रूह आफजा‘
भी लगता
खारा है।।
धींगा मुश्ली
आम हुई 
प्रेक्षक बने
हुये हैं नेक।।  
                                
 
37
नवगीत (अट्ठाईस)
आया मधुमास
विहंस उठे फूल!
दक्षिण से
बहती है
मलयज समीर!
़ऋतुओं की
आहट पा
मौसम अधीर!!
इतराती उड़ती
पगडंडी की धूल!
फागुन में
बहती है
गुनगुनी हवा!
लाल लाल
सूर्य-बिम्ब
जैसे जवा!!
हिरना हैं
चंचल और आखेटक भील......!!
   
                                
 
38
नवगीत (उनतीस)
मुझे सुनाई
पड़ता ये
कोलाहल शहरी है।
गाँव का
भोलापन आ
रहा है रास।
महानगर को 
जकड़े कटुताओं
का नागपाश।
आबशार नातों का
दूषित है,
जहरी है।
रसोई की
साख गिरी,
कैफे गुलजार है।
बिछुये, इंगुर,
पायल, मेंहदी
सब बेजार है।
डरी डरी
सी लगती 
तालों की लहरी है।।
                                
 
39
नवगीत (तीस)
मौसम बांह पसारे,
जब चलती 
है पछुआ!
कल-कल बहती
नदिया में,
है संगीत भरा!
श्रद्धा का एक
दीप जलाए
तुलसी का बिरवा!!
जटा जूट धारी
बरगद को 
है बैराग हुआ!
सर-सर चलीं
हवायें, डोले
पीपल के पत्ते!
घाट नदी का
जिस पर ‘रतिया‘
फींच रही लत्ते!!
हुआ पहरूआ
खलिहानों का
चौकस है महुआ......!!
                                
 
40
नवगीत (इकतीस)
हैं सन्नाटों
की झीलें,
दिवस हुए पुरइन!
फुनगी संग
धूप की
होती कल्लोल!
पिक बंधु
हवाओं में
गंध रहे घोल!!
ताल तलैया
सूने सूने,
है हंसों के बिन!
सफ़र हुआ खत्म
नदिया का
मुहाना है!
फिरदौस में
गंध की
तितली उड़ाना है!!
नदी नाव
संयोग है,
पुलकित हैं पलछिन......!!
                                
 
41
नवगीत (बत्तीस)
दे रही है सुनाई
जाड़े की पदचाप! 
लोकधुन गाते हुए
लोग तापेंगे अलाव।
चाय की गुमटियों के भी
अब बढं़ेगे भाव!
धूप ऐसे खिलेगी
जैसे हल्दी के थाप!
तन में सुई-सी
चुभोती हैं ठंडी हवाएं
आतप स्नान होगा
काँपते तन की दवाऐं!
सूरज को हंसमुख रखने
ऋतुएं करतीं जाप.......!!
   
                                
 
42
नवगीत (तैंतीस)
अमन चैन के
सुग्गे हैं
पटवारी के गाँव में।
कृषकों को
मिलता सहयोग
नहीं किसी को
उनसे क्षोभ।
बने दयानतदार हैं
नहीं पालता कोई दुरोग।
दो पल का चैन मिले 
अमुवा की
शीतल छाँव में।
खसरा खतौनी
गिरदावली।
चाह किया
सबकी भली।
करते हैं जरीब कशी
न्यायधर्म की नाव चली।
खेत मेड़ में
फिरते-फिरते
फंटी बिवाई पाँव में।। 
                                
 
43
नवगीत (चौंतीस)
गाँव ने
अभाव भोगा
सुख भोगा/शहरों ने!
लेम्पपोस्ट से
रौशन सड़कें
गाँव में ढिबरी जलती। 
रहनुमाई शहरों की
हमको रह रह
कर खलती।
बैंड बाजों की
अगवानी
की है बहरों ने।
कोलतार सड़कें
शहरों में
गाँव में है पगडंडी
जर्किन पहने
लोग निकलते
देहाती पहनें बंडी
समय नदी खामोश
हलचल की है लहरों ने।।
                                
 
44
नवगीत (पैंतीस)
गाँव छूटा
बखरी छूटी
केवल जीना है।
बैल बिकाने,
खेत हुये
सिकमी में।
शहरी बाला
घूम रही
बिकनी में।
महानगर में
कुंठाओं का
जहर ही पीना है।
नौकर, चाकर
औ कार-कोठी है।
लेकिन हमको भाती चूल्हे
की रोटी है।
पुष्प सार
खेतों में
बहा पसीना है।।
                                
 
45
नवगीत (छत्तीस)
अंबर पर 
छा रहे हैं
कजरारे बादल।
नाच रहे हैं
मोर बागन में,
छम-छम बरसीं
बूँदें आँगन में।
पत्र मेह के
बाँट रहे हैं
हरकारे बादल।
मौसम में हरियाली ने
है रंग भरा,
दुबली-पती नदिया
का है अंग भरा।
फटी धरा की
प्यास बुझाये
मतवारे बादल।।
   
                                
 
46
नवगीत (सैंतीस)
सांधी सांधी
गंध उठ रही 
माह जुलाई हैं।
आ गया
मौसम काली
घटाओं का!
बाग में
बिखरी मोहक
छटाओं का!!
शिखरों के
मुखड़े पे चिपकी
हुई लुनाई है!
डैने फैलाये
अब्र उड़
रहे हैं!
फुहार लगे 
गूंगे का
गुड रहे हैं!!
वर्षा के पानी
की सरिता करे
ढुलाई हैं.......!!
                                
 
47
नवगीत (अड़तीस)
चुभती बूँदें
बुरे हुए दिन
चुभती बूँदें
शूल सी!
दामिनी सा
दुख तड़का
जेहन में!
ख्वाबों की
जागीर है
रेहन में!!
अल्पवृष्टि लगती
मौसम की
भूल सी!
कैसा मौसम
आया कि
मेह न बरसे!
नदी, ताल, विटप
सहमें हैं
डर से!!
खेतिहर की
सूरत है
मुरझाये फूल सी.....!!
                                
 
48
नवगीत (उनतालीस)
कुछ तो अच्छे लोग मिले
पर कुछ तो बेढंगे।
लाज शरम सब
गिरवी रखकर बेशरमाई ओढ़ी।
जोड़ी ऐसी राम मिलाई
एक अंधा एक कोढ़ी।।
झरे शाख से पत्ते 
यानी पेड़ हुए नंगे।
ऐसा चला समय का पहिया
मरा आँख का पानी।
ऊगे सींग व्यवस्था के
औ मूढ़ हुए ज्ञानी!!
क्या झाँसी
क्या मेरठ
जहाँ तहाँ है 
भड़के दंगे.......!!
   
                                
 
49
नवगीत (चालीस)
सच का ही
यशगान करेगा
घर खपरैल
हुआ तो क्या!
ऊँचे बंगलों
के कंगूरे
बेईमानी की
बातें करते!
महानगर के 
है बाशिंदे
विश्वासों पर
घातें करते!!
कोई तवज्जों 
नहीं मिली
दिल में तुफैल
हुआ तो क्या!
हो गईं
मुंहजोर हैं
शहर में
                                
 
50
चलती हवायें!
भोंडेपन के
दबाव में
आ गईं हैं
हुनर कलायें!!
हमने उनकी
करी भलाई
मन में मैल
हुआ तो क्या.......!!
   
                                
 
51
नवगीत (इकतालीस)
सच को
फटकार मिली
झूठ को शाबासी!
सन्नाटों के
खुले झरोखे!
जीवन में
धोखे ही
धोखे!!
उनकी भी
बुनियादी हिली है,
काम कर रहे
जो चोखे!!
ओस धुली
सुबह भी
लगती है बासी!
नहीं खनक है
अहसासों में!
दिखीं दरारें
विश्वासों में, 
                                
 
52
रेतीले दरिया
की झलकें
दिखती है
परिहासों में!!
किरचों सी
धूप चुभी
छाँव है जरा सी.....!!
   
                                
 
53
नवगीत (बयालीस)
भौरों ने समझे हैं
फूल के जज़्बात!
बागों में
छलक पड़ी
खुशबू की गागर!
नदी के
समर्पण से
लहराया सागर!!
ठंडी हवाओं से
सिहर गये गात!
नरम नरम
धूप लगे
जैसे खरगोश!
शरद में
जाड़े को
आया है होश!!
कंबल, रजाई में
दुबक गई रात......!!
   
                                
 
54
नवगीत (तैंतालीस)
मधुर कंठी
बुलबुल ने 
गाया है गीत।
सपनों में
झरते हैं
फूल हरसिंगार के।
शीतल हवायें हैं
क्षण हैं
अभिसार के।।
है जुन्हाई
गोया पूनम
की प्रीत।
हंसों का
जोड़ा ताल
में दिखा।
मछली का
फंसना जाल
में लिखा।।
टीसते अहसास
हुये बालू
की भीत।।
                                
 
55
नवगीत (चौवालीस)
खिलते हैं
विपरीत समय में
हम शिरीष
के फूल! 
बाट जोहते
द्वार खिड़कियाँ
नयना पथराये!
बीते मास
खुशी के
पल छिन
न आये!!
शिशुओं की
किलकारी सहमी
समय हुआ प्रतिकूल!
आंगन बाड़ी
सिसक रहे हैं
बदल गया परिवेश!
बड़े, बुजुर्गों को
                                
 
56
अब छोटे
देते हैं आदेश!!
बेला उदास,
खुशबुयें गायब,
हँसते हुए बबूल.......!!
   
                                
 
57
नवगीत (पैंतालीस)
प्यास के
हिस्से आया
रेत का कुआँ।
कंदराओं में
किरणें खोजें।
बीहड़ में
बजते अलगोजे।
अब अमराई में
दिखता नहीं सुआ।
आँसू की
नैनों से अनबन।
सहम गई है
काया कंचन।
सपनों ने
पहन लिया
वस्त्र गेरुआ।।
   
                                
 
58
नवगीत (छियालीस)
हँस हँस कर
झूमती बदलियाँ
आँगन का तन
लगी भिगोने!
चुहल करे हरियाली
गद गद हैं खेत!
रसभरी लगती है
मरूस्थल की रेत!!
नदिया की देह
हुईं दोहरी
झरनों के मुख
हुये सलोने!
लगती है खुशबू
कवितायें फूलों की!
तीखी आलोचनायें
बाग के बबूलों की!!
दिशियों के हाँथों से
छूट गये
सांधी सी
गंध के भगोने.......!!
                                
 
59
नवगीत (सैंतालीस)
दरख़्त हमारे साथी
सहचर होते हैं।
देवदार की
बाहों में
हवा रही झूल!
गंध उलीचें
मौलसिरी के
खिलते फूल!!
खाना है आम
तो बबूल क्यों बोते हैं!
कश्मीर में
चार चाँद
लगाते चिनार!
आँखों में खड़ी है
स्वप्न की मीनार!!
मन में विचारों
को हर समय
बिलोते हैं......!!
   
                                
 
60
नवगीत (अड़तालीस)
देहातों में
खुशहाली के
अंखुए उग आए।
झांझ-मजीरे नाच रहे
ढोलक की
थापों पर।
कड़े हुए प्रतिबंध अभी
दुःख संतापों पर।
टहल रहे हैं बागों में
गंधो के साए।
देहरहित इच्छाएँ
हो गईं साकार।
हृदय में उठ रहा
खुशियों का ज्वार।
नैनों में
सपनों का सुग्गा
डैने खुजलाए।
मौसम है सुहाना
मुरादों के दिन।
आए मनुहार
और वादों के दिन।
मैदानों में हौले-हौले
सांझ उतर जाए।। 
                                
 
61
नवगीत (उनचास)
मन में समा गया
रूप एक सलोना!
नयनों से
फूट रहा
रश्मिपुंज नेह का!
मतवाला कर देता
आकर्षण देह का!!
जुगनू सा
चमक उठा
है मन का कोना!
बिखर गया
चाहत का
सिंदूरी रंग।
नस नस में
भर देता
फागुनी उमंग!!
यौवन अंगीठी में
तपे देह सोना......!!
   
                                
 
62
नवगीत (पचास)
नई भोर है
नये साल की
नई भोर है।
नव वर्ष के स्वागत में
हर पल महकेंगे।
आँगन, गली
चौराहों में
पंछी चहकेंगे।
गाँव शहर में
मचा शोर है।
खुशबू के
बादल घर 
आँगन बरसेंगे।
छप्पर, छानी
मगरे मन
को परसेंगे।
जगी उमंगें 
पोर-पोर हैं।।
   
                                
 
63
नवगीत (इक्यावन)
हुआ समय में
फेर फार
त्यौहार हुये फीके!
रामलीला का
वो चाव नहीं,
और खुशियों
में ठहराव नहीं।
रुग्ण हो गये
रस्म रिवाज
तौर-तरीके।
बदचलनी की 
होती पहुनाई,
बम की बाहों
में दीया-सलाई।
भग्न हुए
कानून-कायदे
ढहे सलीके।।
   
                                
 
64
नवगीत (बावन)
पंख दिये हैं
कुदरत ने पर
कैसे भरुँ उड़ान!
अब खतरे में
परवाजें हैं!
गूँगी गूँगी 
आवाजें हैं!!
इतने पर भी
आसमान सोया
है चादर तान!
चुप्पी ढोते
हुये ठहाके!
खेत कर रहे
बेबस फाँके!!
कष्टों का है
खड़ा हिमालय
कण कण में भगवान.......!!
   
                                
 
65
नवगीत (तिरपन)
काट रही 
नेह का बिरवा
स्वारथ की छैनी।
कहीं चली 
बंदूक की गोली
उड़े शाख से पंछी।
सिसक रहे है
कोने बैठे
ढोल, मंजीरे, वंशी।
बैठ अहेरी
टीलों पर हैं
फांक रहे खैनी।
झूठ ने
पहना है किरीट
सच को झुटलाने।
मुजरिम ठहरा
आम आदमी
घूम रहा थाने।
चिंतन हुआ भोंथरा
कुत्सित बातें
हैं पैनी।।
                                
 
66
नवगीत (चौवन)   
सुख हुये
नदिया के कूल
दुःख हुये बबूल! 
अंबर में/डाल लिये
बादल ने डेरे!
दादुर ने/पावस के
चित्र हैं डकेरे!!
हरीतिमा के 
यत्र तत्र
उड़ते दुकूल!
देहों में/यौवन का
बाढ़ सा उफान!
हो गये
गुलाब फिर
फूल के सुल्तान!!
जेहन में/लहराये याद
के मस्तूल।। 
   
                                
 
67
नवगीत (पचपन)
किरणों की
देह हुई
कार्तिक की धूप!
दीवाली बना रही
खुश के
घरांदे!
निविड़
अंधकार में
बिजली सी
कांधे!!
दुर्दिन की
कंकड़
निबेर रहा
सूप!
दीवाली 
उजाले का
मंडप सजाती!
बम औ
पटाखों की
फूल गई छाती!!
जेठ की 
दुपहरी के
ढहते स्तूप........!!
                                
 
68
नवगीत (छप्पन)
दहके अलावों से
टेसू के बाग।
कोकिला ने सुनी
फागुन की टेर।
नवयुवती उचक-उचक
तोड़े झरबेर।
मलो रंग ऐसा
छूटे न दाग।
वासंती गंध भरी
चैती हवायें।
फगुआरे होली में
सरस फाग गायें।
भौरों की हाला है
फूल के पराग।।
   
                                
 
69
नवगीत (सतावन)
अपने हिस्से
आई कयामत
क्या देखें जलवा।
अपना पानी
पी जाती हैं
ऐसी झीलें हैं।
फलक है उजला
अवसादों की
उड़ती चीलें हैं।।
कोने पड़ा हुआ
आँखों के
सपनों का मलवा।
है रहबरी लुप्त
गोया गधे के
सिर से सींग।
करे खयानत
और ऊपर से
हांक रहे हैं डींग।।
चाहा था कि
अमन रहे पर
घटित हुआ बलवा।।
                                
 
70
नवगीत (अठावन)
ख्यालों ने पहन लिये
टेसुई लिबास।
नीदों में स्वप्न जैसे
डाली में फल।
तालों की खामोशी
बुन रही हलचल।
गलियों में तैर रही
चाँदनी बातास।
 
होठों पर आ गई
मुस्कान चुलबुली।
जलती दुपहरी से
छाँव है भली।
भटकती उम्मीदों को
मिल गया आवास।।
   
                                
 
71
नवगीत (उनसठ)
अगवानी हेमंत की
करती है शेफाली!
धूप गुनगुनी
सेंक रही
है देह!
रिश्तों की
गागर से
छलका नेह!!
यौवन फूलों
पे है,
अलि बजायें ताली!
चंपा, जूही, बेला
से महके
हैं सपने!
आजकल रिसाला
में गीत
लगे छपने!!
कौवे बैठे
मंगरे पर
गाते कव्वाली.....!!
                                
 
72
नवगीत (साठ)
पतझर में
फूल रहे आक!
सूरज की किरणें
अंगार हो गई!
सुतली सी
नदिया की
धार हो गई!!
करती हवायें
ताक झांक!
तपती है धूप
गर्म तवा सी!
सूखे हैं कंठ
दिशायें प्यासी!!
मगरे पर बैठा
है काक.....!!
   
                                
 
73
नवगीत (इकसठ)
सूरज धधक
रहा है उसके
तल्ख हुये तेवर!
किरने हैं
लावा सी
बरस रहीं!
प्यासी हिरनी
जल को
तरस रही!
लुटी पिटी
हरियाली उसके
बंधक हैं जेवर!
पतझर से
मुकरा है
हरा भरा नेह!
पत्तों की
पेड़ों से
छूट रही देह!!
गरम मिजाजी
मौसम का 
भांडा हुआ कलेवर.......!!
                                
 
74
नवगीत (बासठ)
हो रही है
संझा बाती
शाम ढले!
खुशनुमा मौसम
है सर्द
हवा है!
दरीचे का
खुलना जीवन में
रबा है!!
नखत फलक
पर मानो  
दीप जले!
पेड़ों में कोटर
कोटर में
नीड़ है।
किस धुन
में चलती
शहरों की
भीड़ है।
खंजन से
नयनों में
स्वप्न पले......!!
                                
 
75
नवगीत (तिरसठ)
अंबर पर 
झूमती घटायें।
हरियाली है
मधुर रिश्तों
का नाम!
पोखर में
डूब गई
नीली सी शाम!!
पल्लव को
चूमती लतायें!
घुंघरू सी
बज रही
बरखा की बूँदें!
नहा रहे
आँगन नयनों
को मूंदे!!
लबालब अंधकूप
कजली गायें।।   
   
                                
 
76
नवगीत (चौंसठ)
मन की
अंगूठी में
याद का
नगीना।
नयनों में 
उगी है
सपनों की
दूब।
मस्ती में
सराबोर
पल छिन की
ऊब।
मछली सी
तैर गई
झील में
हसीना।
पोखर पर
ललछौंही  
शाम ज्यों
                                
 
77
पड़ी।
भौरों की 
कलियों से
आँख यों 
लड़ी।
चंदन सा
महक उठा
देह का 
पसीना।।
   
                                
 
78
नवगीत (पैंसठ)
एक दूसरे
से मुँह फेरे
खेत औ खलिहान!
खुशियों के सपने
सब चूर चूर
हो गये!
छाँव की तलाश
क्ी तो वे 
खजूर हो गये!!
आपस में खटपट
करते हैं
आँगन औ दालान!
बेलों ने 
खींच दिये
पेड़ों पर मांडव!
खार ने
तक़दीर लिखी
दुःख करे तांडव!
ऋणी हो गये
गंध के अपनी
फूलों के बागान......!!
                                
 
79
नवगीत (छियासठ)
ऋतु की
मड़ैया में
ठंड का बसेरा!
चकवा चकई
अब युगल
में मिलेंगे!
डेहलिया के
फूल बाग
में खिलेंगे!!
फेनिल झरने
रचता प्रकृति
का चितेरा!
नरम नरम
दूबों पर
शबनम बिखरी!
ताल औ
तलैयों की
रंगत निखरी!!
फेंक रहा
जाल नदी
में मछेरा।।
                                
 
80
नवगीत (सड़सठ)
नव वर्ष की
हार्दिक शुभकामनायें!
हर घड़ी
खुशियों का
सजना संवरना!
मरूस्थल में
फूट पड़ा
पानी का झरना!!
चतुर्दिक वह रही
संदली हवायें!
चाँद चकोर
का साक्षी
है बाम!
गंध भीने
पल छिन हैं
आठों याम!!
ढेरों आशीष
देती है ऋचायें।।
   
                                
 
81
नवगीत (अड़सठ)
मौसम की
आँखों में
कोहरे की झील!
चाँदनी सी
धूप लगे,
‘चिल्ड‘ हुये दिन!
मुश्किल है
रह पाना
सिगड़ी के बिन!!
सांझ हुई
जल उठे
याद के कंदील!
भाव भंगिमा
हेमंत की
विदू्रप हैं!
‘पुलोवर‘ पहने
हुये अब
धूप है!!
ऋतुओं की
बस्ती में
ठंड की फसील......!!
                                
 
82
नवगीत (उनहत्तर)
जाड़े में
सुबह के
जल रहे
हैं पाँव!
झूठ के
होंठों पर
दूधिया हँसी है!
सच्चाई 
मछली सी
जाल में फंसी है!!
कटखनी
लगने लगी
है नर्म
दूब सी छाँव!
लग गया
है कलंक
नेक इरादों में.....!!
 
                                
 
83
नागफनी
दिखती है
रेशमी वादों में!!
हर मोड़ों पर
घात रचे
शकुनि
के दाँव.....!!
   
                                
 
84
नवगीत (सत्तर)
माघ में
अल्हड़ वसंत
ऋतु आई।
सरसों पियराई
और गंदुम गदराया। 
भाग्य खुले
खेतों के
बदल गई काया।।
ऋतुराज की
चाहत में
महके अमराई।
सूरज की किरनों से
चमक उठा गेह।
बिखराती गंध
मधुको की देह।।
कलियों ने
ली है
मादक अंगड़ाई।।
   
                                
 
85
नवगीत (इकहत्तर)
बहुत याद आये
अड़हुल के फूल!
पगडंडी किनारे
खड़े हुए
कब से!
झाड़ियों कहती हैं
रहते हैं
ढब से!!
पंथी से बतियाये,
अड़हुल के फूल!
कहते है
जवां कुसुम
रंग लाल है।
इससे सुसज्जित
पूजा का
थाल है!!
औषधि बन जाये
अड़हुल के फूल.....!! 
   
                                
 
86
नवगीत (बहत्तर)
सुबह हुई
सूरज ने
आँखें खोली!
पल है रंगीन
और शहतूती
सी बातें!
दूब में
शबनम सी
चमकी मुलाकातें!
उड़ान भरने
पंछी ने
पाँखे खोलीं!
काँटों ने
फूलों का
दिल बहुत
दुखाया!
खिले खिले/बागों में
पतझर का साया!
सच हो/बेदाग यह
सलाखें बोली।।
                                
 
87
नवगीत (तिहत्तर)
संध्या ने
फिर बिखराये
रेशम से गेसू!
किंशुक फूले
महके आमों
के बौर!
बहकती हवाओं
को मिला
नहीं ठौर!!
मधुऋतु की
तरंग में
अंगार हुये टेसू!
फूलों ने
खोल दिया
गंधों का जूड़ा!
फागुन में
उफनाया
रंगों का बूड़ा!!
उड़ा रहे
बादल गुलाल के
नटखट ‘केसू‘.....!!
                                
 
88
नवगीत (चौहत्तर)  
मुश्किल से आई
कर्फ्यू में ढील!
धारदार चाकू,
कट्टा और दराँनी है।
राष्ट्रधर्म की छलनी
होती छाती है।
नातों की खून से
लथपथ सबील!
कहाँ गुम हो गया
पंछियों का शोर!
दूर तक पसरी
चुप्पी चारों ओर!!
खंडहर का बाशिंदा
है अबाबील......!!
   
                                
 
89
नवगीत (पचहत्तर)
वनों में पलास हँसे,
गुलमोहर मुस्काया।
लो नया साल आया।।
अंजुरी भर-भर दिये,
रश्मियां उलीच रहे।
होली के रंगों का,
नक्श एक खींच रहे।।
अंखियन में फागुन का
स्वप्न झिलमिलाया।
लो नया साल आया।।
खेतों में हल चले,
मेड़ों पर उगे फूल।
सोंधी सी गंध लिये,
सड़कों पर उड़े धूल।।
मीठा सा गाँव एक
सुधियों पर छाया।
लो नया साल आया।।
   
                                
 
90
नवगीत (छिहत्तर)
सच है
झूठ के होते
नहीं हैं पाँव!
तनावों से
भरे दिन
और उदासी है!
झीलों में
तैरती हर मीन
प्यासी है!!
आखिर कहाँ  
मिलेंगे अब
मस्तियों के गाँव!
नदिया की
मर्यादा है
दोनों कूल!
भौरों के
स्वागत में
खिलते हैं फूल!!
लहरों संग
अठखेलियाँ करती
है नाव.......!!
                                
 
91
नवगीत (सतहत्तर)
क्या सुनहरा वक्त
निर्मम हो
गया है।
अराजकता की
मुट्ठी में 
संविधान है!
आदमी अब
पहरू से
सावधान है!!
खंडहर को
बसने का
भरम हो गया है।
बस्तियों में
आँधियाँ इठला
रहीं है!
आपदाओं का
संदेशा ला
रहीं हैं!!
फूल, काँटों सा
बेरहम हो
गया है.......!!
                                
 
92
नवगीत (अठहत्तर)
काका बैठे सोच रहे हैं
क्या ओसारे में !
रिश्ते बिखरे पड़े हुए हैं
टूटे काँच से!
दूषित होती लोक संस्कृति
भोंडे़ नाच से!!
पेड़ों पर  लटके चमगादड़
बड़े भिनसारे में! 
घोर तम से जूझ रहीं
जलती मशालें हैं!
सच्चाई का चीरहरण करतीं
चौपालें हैं!!
समझ नहीं आता
क्या कह दें
किसके बारे में.........!! 
   
                                
 
93
नवगीत (उन्नासी)
अपने फर्जों से मुकर गईं
आज दरांती हैं! 
सत्व फसल का चूस
रही है खाद!
महानगर में
बलवे और फसाद!!
खून पसीना तेल पिये
दीपक की बाती है!
गाली देना बहुत सहज है
मुस्काना मुश्किल!
ऐसे में क्या खाक़ मिलेंगे 
दिल से दिल!!
नफरतों की सिल्लियां
दुखों की 
थाती है.......!!            

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: मौसम अंगार है - काव्य संग्रह - अविनाश ब्यौहार
मौसम अंगार है - काव्य संग्रह - अविनाश ब्यौहार
https://4.bp.blogspot.com/-x8N6lZixw20/XMazN1RMRHI/AAAAAAABO5o/8Z-2PkMgVQo35h73O3mnB_4TDrbHoDN_ACK4BGAYYCw/s320/20190429_134556%257E2-777057.jpg
https://4.bp.blogspot.com/-x8N6lZixw20/XMazN1RMRHI/AAAAAAABO5o/8Z-2PkMgVQo35h73O3mnB_4TDrbHoDN_ACK4BGAYYCw/s72-c/20190429_134556%257E2-777057.jpg
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2019/04/blog-post_39.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2019/04/blog-post_39.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content