दृढ़ संकल्प - लघुकथाएँ - राजेश माहेश्वरी

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- राजेश माहेश्वरी परिचय राजेश माहेश्वरी का जन्म मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर में 31 जुलाई 1954 को हुआ था। उनके द्वारा लिखित क्षितिज, जीवन कैसा ह...

- राजेश माहेश्वरी

परिचय

राजेश माहेश्वरी का जन्म मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर में 31 जुलाई 1954 को हुआ था। उनके द्वारा लिखित क्षितिज, जीवन कैसा हो व मंथन कविता संग्रह, रात के ग्यारह बजे एवं रात ग्यारह बजे के बाद ( उपन्यास ), परिवर्तन, वे बहत्तर घंटे, हम कैसे आगे बढ़ें एवं प्रेरणा पथ कहानी संग्रह तथा पथ उद्योग से संबंधित विषयों पर किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं।

वे परफेक्ट उद्योग समूह, साऊथ एवेन्यु मॉल एवं मल्टीप्लेक्स, सेठ मन्नूलाल जगन्नाथ दास चेरिटिबल हास्पिटल ट्रस्ट में डायरेक्टर हैं। आप जबलपुर चेम्बर ऑफ कामर्स एवं इंडस्ट्रीस् के पूर्व चेयरमेन एवं एलायंस क्लब इंटरनेशनल के अंतर्राष्ट्रीय संयोजक के पद पर भी रहे हैं।
आपने अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी, फ्रांस, इंग्लैंड, सिंगापुर, बेल्जियम, नीदरलैंड, स्विट्जरलैंड, हांगकांग आदि सहित विभिन्न देशों की यात्राएँ की हैं। वर्तमान में आपका पता 106 नयागांव हाऊसिंग सोसायटी, रामपुर, जबलपुर (म.प्र) है।

दृढ़ संकल्प

ठंड से ठिठुरती हुयी, घने कोहरे से आच्छादित रात्रि के अंतिम प्रहर में एक मोटरसाइकिल पर सवार नवयुवक अपने घर वापिस जा रहा था, उसे एक चौराहे पर कचरे के ढ़ेर में से किसी नवजात बच्चे के रूदन की आवाज सुनाई दी। जिसे सुनकर वह स्तब्ध होकर रूककर उस ओर देखने लगा, वह यह देखकर अत्यंत भावुक हो गया कि एक नवजात लडकी को किसी ने कचरे के ढ़ेर में फेंक दिया है। अब उस नवयुवक के भीतर द्वंद पैदा हो गया कि इसे उठाकर किसी सुरक्षित जगह पहुँचाया जाए या फिर इसे इसके भाग्य के भरोसे छोड़ दिया जाए। इस अंतद्र्वंद में उसकी मानवीयता जागृत हो उठी और उसने उस बच्ची को उठाकर अपने सीने से लगा लिया और उसे तुरंत नजदीकी अस्पताल ले गया। वहाँ पर उपस्थित चिकित्सक से उसने अनुरोध किया कि आप इस नवजात शिशु की जीवन रक्षा हेतु प्रयास करें यह मुझे नजदीक ही कचरे के ढ़ेर में मिला है। इसकी चिकित्सा का संपूर्ण खर्च मैं वहन करने के लिए तैयार हूँ। यह सुनकर डॉक्टर उस नवजात को गहन चिकित्सा कक्ष में रखकर इसकी सूचना नजदीकी पुलिस थाने में दे देता है।

कुछ समय पश्चात पुलिस के दो हवलदार आकर उस नवयुवक जिसका नाम राकेश था, उससे कागजी खानापूर्ति कराकर अपनी सहानुभूति व्यक्त करते हुए उसकी प्रशंसा करते हुए चले जाते है। दूसरे दिन सुबह राकेश अपने घर पहुँचता है और अपने माता पिता को रात की घटना की संपूर्ण जानकारी देता है। जिसे सुनकर उसके माता पिता भी स्तब्ध रह जाते है और कहते है कि आज ना जाने मानवीयता कहाँ खो गयी है। वे राकेश की प्रशंसा करते हुए कहते है कि तुमने बहुत नेक काम किया है। वह नवजात बच्ची जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष करते हुए अंततः प्रभु कृपा से बच जाती है। उस बच्ची को देखने के लिए राकेश के माता पिता भी अस्पताल पहुँचते है। वे उस लड़की का मासूम चेहरा देखकर भावविह्ल हो उठते है और आपस में निर्णय लेते है कि अपने परिवार के सदस्य की तरह ही उसका पालन पोषण करेंगें। इस संबंध में राकेश सभी कानूनी कार्यवाही पूरी कर लेता है। वे बच्ची का नाम किरण रख देते है। कुछ वर्ष पश्चात राकेश के माता पिता उसके ऊपर शादी के लिए दबाव डालने लगते है। यह सब देखकर राकेश एक दिन स्पष्ट तौर पर उन्हें बता देता है कि वह शादी नहीं करना चाहता और सारा जीवन इस बच्ची के पालन पोषण और उज्जवल भविष्य हेतु समर्पित करना चाहता है। राकेश की इस जिद के आगे उसके माता पिता भी हार मान जाते है।

किरण धीरे धीरे बडी होने लगती है और अत्यंत प्रतिभावान और मेधावी छात्रा साबित होती है। कक्षा बारहवीं प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण करने के पश्चात वह उच्च शिक्षा के साथ साथ राकेश के पैतृक व्यवसाय दुग्ध डेरी का कार्य भी संभालने लगती है और अपनी कडी मेहनत और सूझबूझ से अपने व्यवसाय को बढाकर उसे शहर के सबसे बडे डेयरी फार्म के रूप में विकसित कर देती है। उसकी इस प्रतिभा के कारण मुख्यमंत्री द्वारा उसे प्रदेश की बेटी कहकर संबोधित करते हुए उत्कृष्ट महिला उद्यमी के रूप में सम्मानित किया जाता है। वह दिन राकेश के लिए अविस्मरणीय बन जाता है।

समय धीरे धीरे व्यतीत हो रहा था और राकेश के मन में किरण के विवाह की चिंता सता रही थी। एक दिन उसने अपने इन विचारों को किरण के सामने रखा और किरण ने आदरपूर्वक उन्हें बताया कि अभी उसने विवाह के विषय में कोई चिंतन नहीं किया है। अभी फिलहाल मेरा सारा ध्यान आपकी सेवा और पढाई एवं व्यवसाय की उन्नति के प्रति है। इस के बाद भी राकेश ने कई बार इस बारे में बात करने का प्रयास किया परंतु हर बार किरण उसे वही जवाब देकर इस विषय को टाल देती थी।

एक दिन डेयरी के कार्य से दूसरे शहर से लौटते समय किरण को एक जगह भीड लगी दिखाई देती है। उसके पूछने पर पता होता है कि कोई अपनी नवजात कन्या को यहाँ छोड़ गया है। यह सुनकर उसका हृदय द्रवित हो उठता है और वह गाडी से उतरकर उस बच्ची को अपने साथ तुरंत अस्पताल ले जाती है। जहाँ पर डॉक्टरों के प्रयास से उस बच्ची को बचा लिया जाता है और सभी औपचारिकताएँ पूरी करने के बाद वह उसे अपने घर ले आती है। राकेश को जब इन बातों का पता होता है तो वह किरण की बहुत प्रशंसा करता है और अपने कमरे में जाकर पुरानी यादों में खो जाता है जहाँ उसे वे दिन और घटनायें याद आने लगती है जब वह किरण को अपने घर लाया था।

समय ऐेसे ही निर्बाध गति से आगे बढ रहा था परंतु एक दिन अचानक ही हृदयाघात से राकेश की मृत्यु हो जाती है। यह देखकर किरण स्तब्ध और किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाती है और अत्यंत गमगीन माहौल में वह स्वयं अपने पिता का अंतिम संस्कार करने का निर्णय लेती है। कुछ दिनों बाद सारे सामाजिक कर्मकांडों से निवृत्त होकर वह एक दिन राकेश के लॉकरों को बंद करने के लिए बैंक जाती है और उन लॉकरों में उसे फाइलों के सिवा कुछ नहीं मिलता है। वह सारी औपचारिकताएँ पूरी करके उन फाइलों को घर ले आती है। उसी दिन रात्रि में वह उन फाइलों को देखती है और पढ़ने के बाद स्तब्ध रह जाती है कि वह राकेश की सगी बेटी नह़ीं है बल्कि कचरे के ढेर में मिली एक लावारिस बच्ची है जिसे राकेश ने अपनी बेटी के समान पाल पोसकर बडा किया और वह सुखी रहे इसलिए शादी भी नहीं की। राकेश के त्याग, समर्पण व स्नेह की यादें लगातार उसके मन में आती रही और सारी रात वह इन्हीं विचारों में खोयी रही।

कुछ वर्ष पश्चात शहर में एक सर्वसुविधा संपन्न अनाथ आश्रम एवं चिकित्सा केंद्र का उद्घाटन हुआ जिसमें अनाथ बच्चों के लालन पालन, शिक्षा एवं चिकित्सा की समस्त सुविधाएँ उपलब्ध थी और इसका निर्माण किरण ने अपने पिता स्वर्गीय राकेश की स्मृति में कराया था। ऐसे बच्चों की सेवा को ही उसने अपना ध्येय बना लिया था और इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने अपने पिता के समान ही आजीवन अविवाहित रहने का दृढ़ संकल्प ले लिया था।

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हृदय परिवर्तन

नर्मदा नदी के किनारे एक संत करते थे। उनके आश्रम के बगल में ही एक कसाई रहता था जिसकी नीयत स्वामी जी के आश्रम की जमीन हड़पने की थी। वह चाहता था कि स्वामी जी किसी प्रकार से यहाँ से चले जाये और वह जमीन पर कब्जा कर ले। अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए वह प्रतिदिन एक मुर्गी को मारकर उसकी हड्डियाँ, आश्रम के मुख्य द्वार के पास फेंक आता था इससे वहाँ पर बदबू फैलने के कारण स्वामी जी एवं आश्रम में आने जाने वाले उनके अनुयायियों को काफी कष्ट होता था। यह जानकर वह कसाई मन ही मन प्रसन्न हुआ करता था। उसके विचित्र स्वभाव के कारण उसकी पत्नी और उसका बेटा उसके छोडकर अन्यत्र निवास करते थे।

कुछ माह के पश्चात शहर में प्लेग नामक बीमारी का प्रकोप अचानक फैल गया। शहर में रहने वाले लोग इसके प्रकोप से बचने हेतु शहर छोड़कर बाहर जाने लगे। इसी दौरान वह कसाई भी इस बीमारी की चपेट में आ गया। उसकी पत्नी और बेटा पहले ही शहर छोडकर जा चुके थे। स्वामी जी ने ऐसी विकट परिस्थितियों में उसकी बहुत सेवा की जिससे अभिभूत होकर उसने एक दिन स्वामी जी से पूछा कि मै तो आपका अहित चाहता था और आपके आश्रम की जमीन हड़पना चाहता था। मेरे इतने दुर्भावना पूर्ण व्यवहार के बाद भी आप इतने तन, मन से मेरी सेवा कर रहे है। ऐसा क्यों ?

स्वामी जी ने मुस्कुराते हुए कहा कि मानव में मानवीयता के साथ मानव की सेवा करने की मन में भावना एवं उसे कार्यरूप में परिणित करना ही वास्तविक धर्म है। मैंने केवल अपने कर्तव्य का पालन किया है। यह सुनकर वह कसाई स्वामी के चरणों में गिरकर अपने द्वारा किये गये पूर्व कृत्यों के लिए माफी माँगता है। स्वामी जी की बातों से उसका हृदय परिवर्तन हो चुका था। उसने अपनी जमीन भी आश्रम को दान देकर स्वयं उनका शिष्य बनकर सेवा का संकल्प ले लिया। इससे हमें यह शिक्षा प्राप्त होती है कि निस्वार्थ सेवा के द्वारा कठोर व्यक्ति का भी हृदय परिवर्तन हो सकता है।

प्रतिभा पलायन

भारतीय रेल्वे में अपनी उत्कृष्ट व कर्तव्यनिष्ठ सेवा प्रदान करने हेतु डायेरक्टर जनरल के स्तर पर गोल्ड मैडल, जनरल मैनेजर अवार्ड आदि से सम्मानित आई आई टी मुंबई से उत्कृष्ट अंको से उत्तीर्ण सचिन शुक्ला वर्तमान में जबलपुर में डिप्टी जनरल मैनेजर के पद पर कार्यरत है।

उन्होंने अपना अनुभव बताते हुए कहा कि वे जब आई आई टी मुंबई में इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में पढ़ रहे थे तब उनके अधिकतर मित्र व सहपाठी अमेरिका के विश्वविद्यालयों में उच्च अध्ययन हेतु जाने के लिये लालायित थे। अमेरिका के विश्वविद्यालय भी भारत के अच्छे अंक प्राप्त करने वाले आई आई टी के छात्रों को बहुत पसंद करते है क्योंकि ऐसे विद्यार्थी बहुत मेहनती, बुद्धिमान एवं अपने कार्य के प्रति समर्पित रहते है। मेरे अधिकांश सहपाठियों को अमेरिका के विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा छात्रवृत्ति देकर उन्हें प्रवेश प्राप्त हो गया था और वे सब इतने खुश हुये कि मानो भगवान ने उन्हें एक नयी जिंदगी दे दी हो।

मुझे भी मेरे मित्रों ने सुझाव दिया कि तुम भी अमेरिका चले जाओ क्योंकि यहाँ अपने देश में योग्यता का सही मूल्यांकन नहीं है। यहाँ तो सिर्फ जातिगत आरक्षण और भ्रष्टाचार है। यहाँ अच्छे और ईमानदार लोगों को तरक्की के अवसर मिलने में बहुत कठिनाई होती है। यदि तुम अमेरिका चले जाओगे तो तुम्हें उन्नति के अवसर आसानी से प्राप्त होते रहेंगे और तुम आर्थिक रूप से भी बहुत संपन्न हो जाओगे। उनकी बात मानकर मैं भी अमेरिका जाने हेतु प्रयासरत हो गया और प्रभु कृपा से मुझे भी छात्रवृत्ति के साथ वहाँ प्रवेश मिल गया। मैंने जाने की तैयारी शुरू कर दी थी परंतु इससे मुझे बहुत प्रसन्नता महसूस नहीं हो रही थी और मैं अपनी अंतरात्मा में सोचता था कि अपनी अच्छी जिंदगी के लिए देश छोड़कर विदेश में क्यों बस जाऊँ ? क्या अपने देश में ही ईमानदारी से काम करना संभव नहीं है ? यदि हमारे देश की प्रतिभाओं का इसी तरह पलायन होता रहेगा तो हमारे देश की उन्नति और तरक्की कैसे हो सकेगी ?

मैं इसी उधेड़बुन में उलझा हुआ था तभी मुझे भारतीय रेल्वे में उच्च पद पर कार्य करने का अवसर प्राप्त हो गया, फिर भी लोगों का मत था कि अपने देश में केवल चापलूस और भ्रष्ट लोगों की जल्दी प्रगति होती है। तुम अमेरिका में बस जाओगे तो आराम से रहोगे। इसी उधेड़बुन में मैं उलझा हुआ था तभी मुझे बचपन में पढा हुआ एक श्लोक याद आया कि जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी अर्थात जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान होती है। यह स्मरण आते ही मैंने दृढ़ निश्चय कर लिया कि यदि हम स्वयं ऐसी स्थिति को आगे बढ़कर समाप्त करने का प्रयास नहीं करेंगे तो हमें ऐसे तंत्र को दोष देने का कोई अधिकार नहीं है।

किसी भी शासन तंत्र को सुव्यवस्थित ढंग से चलाने हेतु शासन प्रणाली में अच्छे लोगों की आवश्यकता रहती ही है। यदि ईमानदार और समर्पित लोग नहीं होंगे तो शासन तंत्र जनता के हित में सुचारू रूप में कैसे चल पायेगा ? मन में यह विचार आते ही मैंने अमेरिका जाने की सोच को अलविदा करके भारत में ही रहकर भारतीय रेल में नौकरी करने का निश्चय कर लिया। मेरा युवाओं को संदेश है कि मैंने जीवन में जो रास्ता चुना वह सही था। मेरी प्रतिभाशाली युवाओं से प्रार्थना है कि वे सिर्फ आर्थिक दृष्टिकोण के कारण देश से पलायन करने का निर्णय ना लेकर अपने देश में ही रहकर सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ने हेतु कृत संकल्पित हों।

संत का मार्गदर्शन

एक ग्रामीण इलाका जो कि शहरी विकास से बहुत दूर था, प्रतिवर्ष गर्मी के दिनों में सूखे से प्रभावित होता रहता था जिससे वहाँ के निवासी तो कष्टप्रद जीवन तो जीते ही थे इसके साथ ही साथ उन्हें पशुधन की भी हानि उठानी पड़ती थी। एक दिन एक संत वहाँ पर आये और उन्हें जब इस कठिनाई का पता हुआ तो उन्होंने इसे दूर करने का बीडा उठा लिया। उन्हें वहाँ के निवासियों से पता हुआ कि ऊपर पहाडी पर एक बरसाती झरना है जो कि बरसात के दिनों लबालब बहता रहता है। उस पानी का कोई उपयोग नहीं हो पाता है और वह व्यर्थ ही बह जाता है। यह सुनकर संत जी ने गांव वालों के सहयोग से एक तालाब को खुदवाया और उसमें ऐसी व्यवस्था कर दी कि बरसात में उसे झरने से बहने वाला जल सीधे तालाब में आकर इकट्ठा होने लगा इसके साथ साथ उन्होंने बरसात के पानी से भूमिगत जल स्तर बढाने के लिए गांव में कुए खुदवाये एवं आसपास फलदार वृक्ष लगवाकर एवं पौधारोपण को बढावा दिया। स्वामी जी के इन प्रयासों से अगली बरसात में तालाब पानी से लबालब भर गया एवं पौधारोपण के कारण भूमिगत जल का स्तर जो लगातार नीचे जा रहा था वह भी बढ़ने लगा। बारिश की वजह से कुएं भी पानी से भर गये। इस प्रकार उनके एवं गांववालों के संयुक्त प्रयास से बरसाती जल को इकट्ठा करने के कारण सूखे की समस्या का हमेशा के लिये निदान हो गया। वहाँ पर वृहद पौधारोपण के कारण हरियाली भी बढ़ गयी। इस प्रकार एक महात्मा के निस्वार्थ सेवा एवं मार्गदर्शन के कारण उस गांव को आदर्श ग्राम के रूप में शासन ने चुन लिया और अब उसी आधार पर अन्य सूखा प्रभावित गांवों में भी विकास कार्य प्रारंभ हो गये।

विश्वास

मुम्बई की एक बहुमंजिला इमारत में मोहनलाल जी नाम के एक बहुत ही सज्जन व दयालु स्वभाव के व्यक्ति रहते थे। उसी इमारत के पास एक महात्मा जी दिन भर ईश्वर की आराधना में व्यस्त रहते थे। मोहनलाल जी के यहाँ से उन्हें प्रतिदिन रात का भोजन प्रदान किया जाता था। यह परम्परा काफी समय से चल रही थी। एक दिन उन महात्मा जी ने भोजन लाने वाले को निर्देश दिया कि अपने मालिक से कहना कि मैंने उसे याद किया है। यह सुनकर मोहनलाल जी तत्काल ही उनके पास पहुँचे और उन्हें बुलाने का प्रायोजन जानना चाहा। महात्मा जी ने कहा कि मुझे आप पर आने वाली विपत्ति का संकेत प्रतीत हो रहा है। क्या आप कोई बहुत बड़ा निर्णय निकट भविष्य में लेने वाले हैं ? मोहनलाल जी ने बताया- मैं अपने दोनों पुत्रों के बीच अपनी संपत्ति का बंटवारा करना चाहता हूँ। मैं और मेरी पत्नी की आवश्यकताएं तो बहुत सीमित हैं जिसकी व्यवस्था वे खुशी-खुशी कर देंगे। महात्मा जी ने यह सुनकर कहा कि आप अपनी संपत्ति के दो नहीं तीन भाग कीजिये और एक भाग अपने लिये बचाकर रख लीजिये। इससे आप दोनों जीवन में किसी पर भी निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।

मोहनलाल जी यह सुनकर बोले कि हम सभी आपस में बहुत प्रेम करते है। उन्होंने महात्मा जी की बात पर ध्यान न देते हुये बाद में जब संपत्ति का वितरण किया तो उसके दो ही हिस्से किए।

कुछ समय तक तो सब कुछ सामान्य रहा फिर उन्हें धीरे धीरे अनुभव होने लगा कि उनके बच्चे उद्योग-व्यापार और पारिवारिक मामलों में उनकी दखलन्दाजी पसन्द नहीं करते हैं। कुछ माह में उनकी उपेक्षा होना प्रारम्भ हो गयी और जब स्थिति मर्यादा को पार करने लगी तो एक दिन उन्होंने अपनी पत्नी के साथ दुखी मन से अनजाने गन्तव्य की ओर प्रस्थान करने हेतु घर छोड़ दिया। वे जाने के पहले उन महात्मा जी के पास मिलने गए। उन्होंने पूछा आज बहुत समय बाद कैसे आना हुआ ? तो मोहनलाल जी ने उत्तर दिया कि मैं प्रकाश से अन्धकार की ओर चला गया था और अब वापिस प्रकाश लाने के लिये जा रहा हूँ। मैं अपना भविष्य नहीं जानता किन्तु प्रयासरत रहूँगा कि सम्मान की दो रोटी प्राप्त कर सकूं। महात्मा जी ने उनकी बात सुनी और मुस्कराकर कहा कि मैंने तो तुम्हें पहले ही आगाह किया था। तुम कड़ी मेहनत करके सूर्य की प्रकाश किरणों के समान प्रकाशवान होकर औरों को प्रकाशित करने का प्रयास करो।

मेरे पास बहुत लोग आते हैं जो मुझे काफी धन देकर जाते हैं जो मेरे लिये किसी काम का नहीं है। तुम इसका समुचित उपयोग करके जीवन में आगे बढ़ो और समाज में एक उदाहरण प्रस्तुत करो। ऐसा कहकर उन महात्मा जी ने लाखों रूपये जो उनके पास जमा थे वह मोहनलाल जी को दे दिये।

मोहनलाल जी ने उन रूपयों से पुनः व्यापार प्रारम्भ किया। वे अनुभवी एवं बुद्धिमान तो थे ही, बाजार में उनकी साख भी थी। उन्होंने अपना व्यापार पुनः स्थापित कर लिया।

इस बीच उनके दोनों लड़कों की आपस में नहीं पटी और उन्होंने अपने व्यापार को चौपट कर लिया। इधर मोहनलाल जी पहले से भी अधिक समृद्ध हो चुके थे। व्यापार चौपट होने के कारण भारी आर्थिक संकट का सामना कर रहे दोनों पुत्र उनके पास पहुँचे और सहायता मांगने लगे।

मोहनलाल जी ने स्पष्ट कहा कि इस धन पर उनका कोई अधिकार नहीं है। वे तो एक ट्रस्टी हैं जो इसे संभाल रहे हैं। जो कुछ भी है उन महात्मा जी का है। तुम लोग जो भी सहायता चाहते हो उसके लिये उन्हीं महात्मा जी के पास जाकर निवेदन करो। जब वे वहाँ पहुँचे तो महात्मा जी ने उनकी सहायता करने से इन्कार कर दिया और कहा कि जैसे कर्म तुमने किये हैं उनका परिणाम तो तुम्हें भोगना ही होगा।

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: दृढ़ संकल्प - लघुकथाएँ - राजेश माहेश्वरी
दृढ़ संकल्प - लघुकथाएँ - राजेश माहेश्वरी
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