tag:blogger.com,1999:blog-15182217.post1235380460695494107..comments2024-03-25T10:13:31.176+05:30Comments on रचनाकार: रामवृक्ष सिंह का आलेख : हिन्दी को बुधुआ की लुगाई न बनने देंरवि रतलामीhttp://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-15182217.post-29732167938130869312015-02-24T10:10:34.175+05:302015-02-24T10:10:34.175+05:30शेषनाथ जी,
धन्यवाद.
अयंगर.शेषनाथ जी,<br />धन्यवाद.<br />अयंगर.Madabhushi Rangraj Iyengarhttps://www.blogger.com/profile/13810087916830518489noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15182217.post-3853135176736023992015-02-13T20:42:45.914+05:302015-02-13T20:42:45.914+05:30सम्मान्य अयंगर जी,
भाषा पर अधिकार के लिए एम.ए...सम्मान्य अयंगर जी,<br /> भाषा पर अधिकार के लिए एम.ए., डी.फिल.की आवश्यकता नहीं होती. <br /> हिमांशु को हिमांशु की तरह ही लिखा जाएगा. यहाँ मा के बाद अंतस्थ वर्ण श है. हिंदी व्याकरण के नियमानुसार म में स्वर वर्ण अा जुड़ा हुआ है ( म्+आ) और इसके बाद अंतस्थ वर्ण श है. अतः सवरयुक्त व्यंजन मा के बाद और अंतस्थ वर्ण श के पूर्व अनुस्वार की स्थिति होगी. ध्यान दें--मां में अनुस्वार का उच्चारण मा के बाद और श के पहले होता है.<br /> मैं अनुरोध करूँगा कि आप अपना क्रोध थूक दें.<br /> यह पञ्चाङ्ग की तरह नहीं लिखा जाएगा.Sheshnath Prasadhttps://www.blogger.com/profile/12846059616209808824noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15182217.post-39790189615117069472015-02-13T13:18:34.128+05:302015-02-13T13:18:34.128+05:30श्रीमान शेषनाथ जी,
आपकी - स्वयं निर्णय करें - मुझ...श्रीमान शेषनाथ जी,<br />आपकी - स्वयं निर्णय करें - मुझे समझ नहीं आई. मैंने हिंदी में एम ए या डी फिल नहीं किया है. इसलिए चाहूँगा कि यदि हिंमांशु को ब्ना अनुस्नवार के पञ्चाङ्ग जैसा लिखा जा सकता है तो लिपि दर्शाएं. आभारी रहूँगा. Madabhushi Rangraj Iyengarhttps://www.blogger.com/profile/13810087916830518489noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15182217.post-25500870549256028102015-02-12T15:06:07.329+05:302015-02-12T15:06:07.329+05:30सम्मान्य अयंगर जी,
अनुस्वार के योग संबंधी टिप्प...सम्मान्य अयंगर जी,<br /> अनुस्वार के योग संबंधी टिप्पणी में थोड़ी भूल हो गई है. अनुस्वार (ं) का न तो स्वर वर्ण के साथ योग होता है न व्यंजन वर्ण के साथ. यह केवल स्वरों के सहारे चलता है और अर्थ का वहन करता है. दूसरा अंतस्थ (य र ल व) और उष्म (ष,श,स,ह) के पूर्व अनुस्वार प्रयोग होता है. अब आप स्वयं निर्णय कर लें.<br /> पूर्व की टिप्पणी में की गलती के लिए क्षमा.<br /> <br />Sheshnath Prasadhttps://www.blogger.com/profile/12846059616209808824noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15182217.post-72131911223357404152015-02-12T12:17:24.397+05:302015-02-12T12:17:24.397+05:30अयंगर जी द्वारा उठाए कुछ प्रश्नों का उत्तर रामवृक्...अयंगर जी द्वारा उठाए कुछ प्रश्नों का उत्तर रामवृक्ष जी ने अपने लेख में दिया है -<br /><br />http://www.rachanakar.org/2015/02/blog-post_42.html रवि रतलामीhttps://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15182217.post-37203583405664484002015-02-12T11:41:18.787+05:302015-02-12T11:41:18.787+05:30श्री शेषनाथ जी,
आपकी टिप्पणी पढ़ी. तो क्या यह मानन...श्री शेषनाथ जी,<br />आपकी टिप्पणी पढ़ी. तो क्या यह मानना उचित होगा कि जैसे पंचांग के पञ्चाङ्ग लिखा जा सकता है वैसे हिमांशु को किसी तरह नहीं लिखा जा सकता और उसे हिमांशु ही लिखना होगा. यदि यह सही न हो तो विस्तार दें. <br />सादर,<br /><br />अयंगर.Madabhushi Rangraj Iyengarhttps://www.blogger.com/profile/13810087916830518489noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15182217.post-40754077603424915862015-02-11T22:25:42.526+05:302015-02-11T22:25:42.526+05:30सम्मान्य डॉ. साहब,
ऐसा लगता है कुछ बातें आपकी नज...सम्मान्य डॉ. साहब,<br /> ऐसा लगता है कुछ बातें आपकी नजर में अभी आई नहीं हैं. प्रसिद्ध भाषाशास्त्री डॉ सुनीति कुमार चाटुर्ज्या ने बाकायदा रोमन लिपि में देवनागरी वर्णों के लिए एक वर्णमाला तैयार की थी. लेकिन अन्य भाषाशास्त्रियों ने उसे अस्वीकार कर दिया था. चेतन भगत की बातों से आप क्यों चिंतित हाते हैं. <br /> पंचमाक्षर के लिए संयोग में अनुस्वार रखने का नियम मनमाना नहीं है. यह हिंदी वैयाकरणों द्वारा स्वीकृत तथ्य है और हिंदी व्याकरण का हिस्सा बन चुका है. और यह हिंदी की प्रकृति के अनुसार भी है. आप जिस नियम का हवाला दे रहे हैं वह संस्कृत भाषा का नियम है और हिंदी और संस्कृत के व्याकरण के नियम अलग हैं. <br /><br />सम्मान्य रंगराज अयंगर जी, <br />आपके प्रस्न का समाधान मैं दे रहा हूँ.. <br />हिमांशु का विग्रह है --- हिम+अंशु. यहाँ अं अक्षर में दो वर्णो का संयोग है, स्वर अ और अयोगवाह अनुस्वार ( ं ) का. अनुस्वार.किसी व्संजन से युक्त नहीं होता पर अर्थ का वहन करता है. और इसका संयोग अंतस्थ और उष्म व्यंजनों के साथ होता है. जैसे-- संयत. अयंगर. अहं, अंत. <br /><br /> Sheshnath Prasadhttps://www.blogger.com/profile/12846059616209808824noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15182217.post-45479695268194785662015-02-11T16:01:31.134+05:302015-02-11T16:01:31.134+05:30डॉक्टर साहब,
आपका लेख पढ़ा. विचारोत्तेजक लगा. मेरे...डॉक्टर साहब,<br />आपका लेख पढ़ा. विचारोत्तेजक लगा. मेरे विचार देना चाह रहा हूँ-<br />1. चेतन भगत तो क्या इस देश में किसी को भी अपने विचार रखने का हक है. इसे आप इस कदर जलील न करें, ऐसी मेरी सोच है. शायद आपको पसंद नहीं आए. आप अपनी राय स्पष्ट व सुशील शब्दों में रख सकते थे.<br />2. यह कोई जरूरी नहीं कि भगत जी का प्रस्ताव मान ही लिया जाए. जो मानने या अस्वीकार करने के हकदार हैं, वे निर्णय ले लेंगे. मैं उन पर छोड़ना चाहता हूँ.<br />3. मैंने भी भगत जी का लेख पढ़ा है और वह अखबार सँजो कर रखा है. मुझे लगा कि इस देश में जो (खासकर अहिंदी भाषी) लोग हिंदी बोल पाते हैं पर लिख नहीं पाते उनके लिए यह सहायक हो सकती है.<br />4. अहिंदी भाषियों के आकर्षण से हिंदी का विस्तार और बढ़ेगा. धीरे धीरे उन्हें हिंदी सीखने के लिए प्रेरित किया जा सकता है.<br />5. आपने पंचमाक्षर नियम का उल्लेख किया है. मैंने कई जगह ( नेट पर भी) पूछकर जानना चाहा है कि "हिमांशु" को विस्तृत तौर पर सही कैसे लिखा जाए. शायद आप मुझे इस बारे में सीख दे सकेंगे... कृपया धन्य करें.<br />6. आपने अपनी देवनागरी में लिखी अंग्रेजी में हिंदी को नेशनल लेंग्वेज कहा है. मेरा मानना है कि ऐसा नहीं है. हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं राजभाषा है.<br />लेख के बाकी अंशों में मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूँ.<br />मेरी हिंदी रुचि के लिए आप hindikunj.com पर "राजभाषा हिंदी" विषय पर मेरे लेखों की शृंखला देख सकते हैं. रचनाकार में भी कुछ लेख-कहानी- कविता प्रकाशित हो चुकी हैं.<br />मेरी टिप्पणी में समाए विचारों के प्रति आपकी कोई भी असहमति हो तो अवश्य अवगत कराएं. अंत में एक बार फिर आग्रह करना चाहूँगा कि "हिमांशु "का विस्तार दे और धन्य करें.<br />सादर-शुभाकाँक्षी,<br />माड़भूषि रंगराज अयंगर. (laxmirangam.blogspot.in)<br />8462021340Madabhushi Rangraj Iyengarhttps://www.blogger.com/profile/13810087916830518489noreply@blogger.com