tag:blogger.com,1999:blog-15182217.post2680763006573493969..comments2024-03-25T10:13:31.176+05:30Comments on रचनाकार: एस के पाण्डेय का व्यंग्य : नार्थ इंडियनरवि रतलामीhttp://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-15182217.post-84020979458964658652011-02-08T19:21:24.488+05:302011-02-08T19:21:24.488+05:30ब्यंग पढ़ कर बहुत अच्छा लगा धन्यवाद|
आप को बसंत पं...ब्यंग पढ़ कर बहुत अच्छा लगा धन्यवाद|<br /><br />आप को बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ|Patali-The-Villagehttps://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15182217.post-60865333994319387042011-02-07T22:32:53.707+05:302011-02-07T22:32:53.707+05:30डॉ एस के पाण्डेय जी!
आपने इस व्यंग्य में क्षेत्रव...डॉ एस के पाण्डेय जी! <br />आपने इस व्यंग्य में क्षेत्रवाद की समस्या को लक्ष्य किया है। व्यंग्य लेखन के लिए साधुवाद! व्यंग्य को रण-मूलक लेखन कहा गया है। यह अन्याय के खिलाफ एक युद्ध है। असंअगतियों-विसंगतियों को बढ़ावा देने वाले तत्वों के लिए मुंहनोचुवा है। पाठकों को जागरूक कर संघर्ष के लिए अभिप्रेरित करना इसका निहितार्थ है। व्यंग्य की कचोट और कुरेद का तीखा और मार्मिक होना स्वाभाविक है। समाज में कुछ ऐसे भी असमाजिक तत्व होते हैं जो पर्दे के पीछे रह कर कानून को अपने पाँव तले रखते हैं। व्यंग्यकार शब्दों की घेराबंदी करके उन्हें जन-अदालत में खड़ा कर वगलें-बगलें झाँकने पर मजबूर कर देता है। हिंदी साहित्य के प्रारंभिक दौर में कबीर ने इस काम को बाखूबी से किया। व्यंग्य को नुकीला और पैना बनाना व्यंग्यकार की साधना का अंग है। इससे उनकी चोट बड़ी मारक बनती है। शब्दों की मितब्ययता के चमत्कार को व्यंग्य में ’विट’ कहा गया है। यह व्यंग्य का प्राण-तत्व है। मंगलकामनाओं सहित....।<br />सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवीडॉ० डंडा लखनवीhttps://www.blogger.com/profile/14536866583084833513noreply@blogger.com