tag:blogger.com,1999:blog-15182217.post4033161362460088205..comments2024-03-25T10:13:31.176+05:30Comments on रचनाकार: श्याम गुप्त का आलेख - ये मेरी संस्कृति जो हैरवि रतलामीhttp://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-15182217.post-51870968630965141672014-10-13T23:39:57.822+05:302014-10-13T23:39:57.822+05:30धन्यवाद शेषनाथ जी ...इतनी सावधानी से आलेख पढ़ने हेत...धन्यवाद शेषनाथ जी ...इतनी सावधानी से आलेख पढ़ने हेतु......मेरे विचार से अद्वितीय एवं अनन्य में अंतर है..अद्वितीय स्पष्टोक्ति विशेषार्थक शब्द है जबकि अनन्य सामान्यार्थक शब्द है........अनन्य =अन+अन्य ..जो सामान्य श्रेणी का विशेषण है ...अतः अनन्यतम उत्तम कोटि का......अर्थात जो अन्य से पृथक है उन सबमें श्रेष्ठ ....श्रेष्ठतम.........डा श्याम गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/03850306803493942684noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15182217.post-75994205683534995602014-10-05T08:18:18.711+05:302014-10-05T08:18:18.711+05:30लेख कितना भी अच्छा हो कुछेक शब्दों का असावधान प्रय...लेख कितना भी अच्छा हो कुछेक शब्दों का असावधान प्रयोग लेख के सौंदर्य को बिगाड़ के रख देता है. आपने भारतीय संस्कृति की महत्ता को दिखाने के लिए अनन्यतम शब्द का प्रयोग किया है. अनन्य तो स्वयं ही अद्वितीय है, फिर उसमे तम लगाकर कौन-सा अर्थ साधना चाहते हैं. यह तो अद्वितीय से अद्वियतम बनाने जैसा है. अनन्यतम की व्युत्पत्ति यों होगी- अन् + अन्यतम. तब अर्थ होगा श्रेष्ठ नहीं. यह तो आप चाहते नहीं होंगे.<br /><br />Sheshnath Prasadhttps://www.blogger.com/profile/12846059616209808824noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15182217.post-46709318217714903802014-10-03T18:17:01.958+05:302014-10-03T18:17:01.958+05:30धन्यवाद रवि जी....धन्यवाद रवि जी....डा श्याम गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/03850306803493942684noreply@blogger.com