tag:blogger.com,1999:blog-15182217.post4456514877172500721..comments2024-03-25T10:13:31.176+05:30Comments on रचनाकार: श्याम गुप्त की लघु कथा - मोड़ जीवन केरवि रतलामीhttp://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-15182217.post-14238543090998143032010-12-08T18:39:56.361+05:302010-12-08T18:39:56.361+05:30सही कहा, कौशलेन्द्र, ग्यान की कोई सीमा नहीं होती.....सही कहा, कौशलेन्द्र, ग्यान की कोई सीमा नहीं होती...डा श्याम गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/03850306803493942684noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15182217.post-18797048143035137912010-12-08T13:50:38.484+05:302010-12-08T13:50:38.484+05:30---बहुत सही कहा कौशलेन्द्र, वस्तुतः देखा जाय तो हि...---बहुत सही कहा कौशलेन्द्र, वस्तुतः देखा जाय तो हिन्दी की सेवा व कालजयी साहित्य रचना, हिन्दी से इतर लोगों ने ही अधिक की है..प्रेमचन्द, प्रसाद, महावीर प्र. द्विवेदी, आदि ...आज कल भी....हिन्दी की रोटी खाने वाले...यूनीवर्सिटी--कालेजों-संस्थानों मे कार्यरत हिन्दी सेवी व्यक्ति/ कवि/ साहित्यकार आदि कालजयी साहित्य कहां रच रहे.अपितु चिकित्सक, इन्जीनियर,विभिन्न विभागों मे कार्यरत लोग काफ़ी काम कर रहे हैं....वास्तव में इस कथा के मूल में यही विचार था भी.....डा श्याम गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/03850306803493942684noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15182217.post-35101376019674952812010-12-07T19:59:26.575+05:302010-12-07T19:59:26.575+05:30कई वर्ष पहले ग्वालियर मेडिकल कॉलेज के वार्षिक सांस...कई वर्ष पहले ग्वालियर मेडिकल कॉलेज के वार्षिक सांस्कृतिक कार्यक्रम में जाने का अवसर मिला था ... उस दिन काव्य संध्या थी. कवितायें सुनकर लगा की छात्रों के द्वारा नहीं बल्कि मंजे हुए साहित्यकारों द्वारा कवितायें पढी जा रही हैं . ...साहित्य तो हृदय की अनुभूति है ...पढ़ाई से इसका क्या लेना-देना ?बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.com