tag:blogger.com,1999:blog-15182217.post7004743488775672458..comments2024-03-25T10:13:31.176+05:30Comments on रचनाकार: नन्दलाल भारती का आलेख : साहित्य और भारतीय समाजरवि रतलामीhttp://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-15182217.post-22998267310279636432012-01-21T19:08:03.392+05:302012-01-21T19:08:03.392+05:30राष्ट्र भाषा स्वीकार करो
शान यही है...राष्ट्र भाषा स्वीकार करो<br /> <br />शान यही है मन यही है प्राणों सम मुझको प्यारी है<br />पूजा करते है हम इसकी जग में पहिचान हमारी है<br /><br />हें गर्व है हरपाल इस पर हर जन को गले लगाती है<br />पूर्व पच्छिम उत्तर दक्षिण चहु दिशि का सेतु बनती है<br /><br />हर समाया सताया गया इसे पर यह भारत की गहना है<br />तमिल तेलगु मलयालम और कन्नड़ की प्यारी बहना है<br /><br />मतभेद नहीं करती जन मेंहर भाषा को गले लाया है<br />उर सागर जैसा है विशाल माँ जैसा धर्म निभाया है<br /><br />भाषा चाहे कोई भी हो मिल कर सब सम्मान करो<br />माँ के माथे की बिंदिया है मत इसका अपमान करो<br /><br />हिमगिरि का गौरव है हिंदी यह बाणी का श्रंगार है<br />तोड़ देश के सीमाओं को करती जग में विस्तार है <br /><br />ज्ञान न हो जिस भाषा का क्यों उसको गले लगाते हो<br />है उरजिसका हिमगिर सा विशाल उसको ही ठुकराते हो<br /><br />जो जग में फहराती हो परचम मत उसका त्रिरस्कार करो<br />कर मुक्त राजभाषा बंधन से सब राष्ट्र भाषा स्वीकार करोDEV DUTTA PALIWAL"NERBHYA"https://www.blogger.com/profile/00294998231777064522noreply@blogger.com