tag:blogger.com,1999:blog-15182217.post7887431291711537064..comments2024-03-25T10:13:31.176+05:30Comments on रचनाकार: पुस्तक समीक्षा - परत-दर-परत सचरवि रतलामीhttp://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-15182217.post-26242375545335398052014-09-26T09:20:56.742+05:302014-09-26T09:20:56.742+05:30'परत-दर-परत' गजल संग्रह की समीक्षा पढ़ी. स...'परत-दर-परत' गजल संग्रह की समीक्षा पढ़ी. समीक्षा का प्रयास अच्छा है. पर इसमें कबीर का एक दोहा देकर उसका जो अर्थ किया गया है वह खटक गया. डॉ शर्मा को अर्थ करने में सावधानी बरतनी चाहिए थी.<br />प्रथम तो इस दोहे के दोनों अंत्य पद गलत हैं. ये पद 'अघइ' की जगह 'अघट्ट' (न घटने वाली) और 'हइ' की जगह 'हट्ट' (बाजार) होना चाहिेए. द्वितीय यह कि इस दोहे का अर्थ गलत किया गया है. <br />यह दोहा कबीर ने गुरु की बंदना में लिखा है. इसमें उन्होंने गुरु की महिमा का बखान किया है. वह कहते हैं- मेरे गुरु ने मेरे दीपक रूपी शरीर में स्नेह (प्रेम) रूपी तेल भर दिया है और उसमें ज्ञान की बत्ती डास दी है. मैंने इस संसार रूपी बाजार में जीवन को जीने के लिए आवशयक सारी खरीद पूरी कर ली है. अब पुनः मैं इस संसार में नहीं आउँगा अर्थात आवागन के चक्र में पड़नेवाला नहीं हूँ.<br />अगर डॉ साहब के किए अर्थ के अनुसार कबीर को यदि बाजार से ही प्रेम रूपी तेल और ज्ञान रूपी बाती मिल गई तो इसका अर्थ यह हुआ कि ये मूल्यवान चीजें सरे बाजार मिलती है. तब तो इन्हें जो चाहे, जब चाहे मूल्य देकर खरीद सकता है. क्या जरुरत है अनथक पापड़ बेलने की.<br />Sheshnath Prasadhttps://www.blogger.com/profile/12846059616209808824noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15182217.post-40197396402602955462014-09-24T19:42:15.189+05:302014-09-24T19:42:15.189+05:30बहुत बढ़िया पुस्तक समीक्षा प्रस्तुति बहुत बढ़िया पुस्तक समीक्षा प्रस्तुति कविता रावत https://www.blogger.com/profile/17910538120058683581noreply@blogger.com