tag:blogger.com,1999:blog-15182217.post7916384685062926606..comments2024-03-25T10:13:31.176+05:30Comments on रचनाकार: बालकवि बैरागी की कहानी - तेल का खेलरवि रतलामीhttp://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-15182217.post-51015567222700240322012-08-22T14:54:43.886+05:302012-08-22T14:54:43.886+05:30माननीय राजीवजी,
सादर नमस्कार,
यदि उचित समझें तो...माननीय राजीवजी,<br /><br />सादर नमस्कार,<br /><br />यदि उचित समझें तो कृपया अपना अता-पता दीजिए। आपकी टिप्पणी पढकर आपसे सम्पर्क करने की भावना मन में आई है।<br /><br />कृपाकांक्षी,<br />विष्णु बैरागीविष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15182217.post-86458224065604600892012-08-15T15:29:31.715+05:302012-08-15T15:29:31.715+05:30वाह भाई वाह
बालकवि जी से पहला परिचय तब हुआ था जब ध...वाह भाई वाह<br />बालकवि जी से पहला परिचय तब हुआ था जब धर्मयुग में उनकी कहानियां और लेख आया करते थे। बहुत ही सशक्त हस्ताक्षर हैं बालकवि जी हमारे युग के। उन्हें प्रणाम। तू चंदा मैं चांदनी-- गीत के साथ तीन सांसदों का संबंध ( उस समय सुनील दत्त जी, दीदी लता मंगेशकर और बालकवि जी सांसद थे) पर एक लेख, बहुत अच्छा लेख धर्मयुग में छपा था।<br />उनकी चार लाइनें मैं अक्सर सुना दिया करता हूं- बल्कि दिल्ली के प्रति अपनी अनिच्छा, डर और लघुता के समर्थन में कहता हूं-<br /><br />आंता कूं जांता करैं,<br />भोगणियां ने भोग ली।<br />मरद देख नात्यौ करै,<br />दिल्ली रांड़ दोगली।<br />(हो सकता है कि वर्तनी में कुछ अशुद्धि हो) । <br /><br />आज तेल का खेल कहानी पढ़कर (मन-ही-मन गुल्पा का गणित तेज हो गया।) मन ही मन आज की राजनीति और समाज में मौजूद पात्रों पर नजर चली गई, सभी पात्र आज भी मौजूद हैं और अंत में होने वाला भगवान का न्याय भी। एक शोध होना चाहिए प्रेमचंद से लेकर बालकवि बैरागी जी के पंच परमेश्वरों के नैतिक चरित्र में आई गिरावट पर । <br /><br />बालकवि जी को प्रणाम और रचनाकार मंच का आभार इतनी सुंदर रचना पढ़ने का अवसर देने के लिए- आज की भागमभाग में, रावन जैसी मशीनी इंटरनैटी दुनिया में सजीव पात्रों तेली, गुल्पा, मीरासी,तूती, घाणी----- आदि की जीवंत दिनचर्या और शब्दावली के रस में-शुष्क हो चुके भाव ऊतकों को रसाक्त करने के लिए। <br />राहुल बाबा की पीढ़ी ने तो शायद घाणी, तूती भी न देखी होंगी। <br />बैरागी जी ने जिस अंदाज में कहानी को बया के घोंसले की तरह बुना है, वह बहुत ही<br />आनंद देने वाला है। वाह . <br /><br />सादरrajeev rawathttps://www.blogger.com/profile/04828599673001127161noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15182217.post-40763618041821841952012-08-15T12:39:41.594+05:302012-08-15T12:39:41.594+05:30aisa laga ki siraaaaafffffff bal kavi ji ne hi gha...aisa laga ki siraaaaafffffff bal kavi ji ne hi ghavn dekha hai .....ashok banthianoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15182217.post-91911671270146705312012-08-14T07:57:39.465+05:302012-08-14T07:57:39.465+05:30सोंधी खुश्बू भरी हुई कहानी.प्रस्तुति के लिए धन्यवा...सोंधी खुश्बू भरी हुई कहानी.प्रस्तुति के लिए धन्यवाद.<br />Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/12683980199228988001noreply@blogger.com