tag:blogger.com,1999:blog-15182217.post8076803674159104769..comments2024-03-25T10:13:31.176+05:30Comments on रचनाकार: ‘ विरोधरस ‘ [ शोध-प्रबन्ध ] विचारप्रधान कविता का रसात्मक समाधान +लेखक - रमेशराजरवि रतलामीhttp://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-15182217.post-19025686710840069082016-10-25T14:02:30.723+05:302016-10-25T14:02:30.723+05:30-----वही पुराना किस्सा यारो....
----कविता का जन्म ...-----वही पुराना किस्सा यारो....<br />----कविता का जन्म आक्रोश से नहीं हुआ अपितु प्रथम कविता प्रकृति के प्रति सौन्दर्यानुभूति से अभिभूत होकर उद्भूत हुई ..ऋग्वेद ७/७२ में एक वर्णन देखें--<br /><br />.“एषा शुभ्रा न तन्वो विदार्नोहर्वेयस्नातो दृश्ये नो अस्थातु <br />अथ द्वेषो बाधमाना तमो स्युषा दिवो दुहिता ज्योतिषागात |<br />एषा प्रतीचि दुहिता दिवोन्हन पोषेव प्रदानिणते अणतः<br />व्युणतन्तो दाशुषे वार्याणि पुनः ज्योतिर्युवति पूर्वः पाक: ||” ----प्राची दिशा में उषा इस प्रकार आकर खड़ी होगई है जैसे सद्यस्नाता हो | वह अपने आंगिक सौन्दर्य से अनभिज्ञ है तथा उस सौन्दर्य के दर्शन हमें कराना चाहती है | संसार के समस्त द्वेष-अहंकार को दूर करती हुई दिवस-पुत्री यह उषा प्रकाश साथ लाई है, नतमस्तक होकर कल्याणी रमणी के सदृश्य पूर्व दिशि-पुत्री उषा मनुष्यों के सम्मुख खडी है | धार्मिक प्रवृत्ति के पुरुषों को ऐश्वर्य देती है | दिन का प्रकाश इसने पुनः सम्पूर्ण विश्व में फैला दिया है <br /> shyam guptahttps://www.blogger.com/profile/11911265893162938566noreply@blogger.com