tag:blogger.com,1999:blog-15182217.post8400737328839975091..comments2024-03-25T10:13:31.176+05:30Comments on रचनाकार: विजय शिंदे का आलेख - विवेकी राय के कथा साहित्य में नारी शिक्षारवि रतलामीhttp://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-15182217.post-52958689768243779432013-03-22T09:14:35.410+05:302013-03-22T09:14:35.410+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.साहित्य और समीक्षा डॉ. विजय शिंदेhttps://www.blogger.com/profile/18249451298672443313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15182217.post-13641609978084844732013-03-22T09:13:40.714+05:302013-03-22T09:13:40.714+05:30गिरीराज जी नमस्कार।
आपने सही कहा हमें अंग्रेजी को ...गिरीराज जी नमस्कार।<br />आपने सही कहा हमें अंग्रेजी को नकार कर लाभ होगा नहीं पर देशी रंग, भाषा होकर भी अगर कोई अंग्रेजियत प्रवृति वाला बन रहा है तो उसे नकारा जाना जरूरी है। विवेकी राय जी की गांवों को लेकर बडी तडप है और उस बहाने उन्होंने उसके विविध आयामों का वर्णन भी किया। शिक्षा की अहं भूमिका होती है, गांव के लिए। और गांव में स्त्री का भी अहं स्थान होता है पर उसे शिक्षित बनाने की समाज की मानसिकता नहीं होती। इससे पीडित होकर राय जी ने स्त्रियों की दयनियता का रेखांकन किया है।साहित्य और समीक्षा डॉ. विजय शिंदेhttps://www.blogger.com/profile/18249451298672443313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15182217.post-78216705442810928582013-03-21T10:35:32.569+05:302013-03-21T10:35:32.569+05:30गिरीराज जी सादर प्रणाम'
परिचय नहीं पर आत्मा के...गिरीराज जी सादर प्रणाम'<br />परिचय नहीं पर आत्मा के सूत्र मिल रहे हैं और साथ ही विचार के भी। विवेकी जी की तडप इसी बात को लेकर रही है कि देश बदल रहा है स्वागत करे पर संस्कृति ना छोडे। गांवों के रिश्ते-नाते, आचार-विचार, संस्कृति... पर व्यापक विचार उन्होंने किया है। साथ ही शिक्षा के ढांचे के चरमराने पर अफसोस भी जताया है।<br />टिप्पणी के लिए धन्यवाद।साहित्य और समीक्षा डॉ. विजय शिंदेhttps://www.blogger.com/profile/18249451298672443313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15182217.post-55905091872622009602013-03-11T22:29:48.610+05:302013-03-11T22:29:48.610+05:30विजय भाई, आलेख बढिया है, शिक्षा और संस्कृति मे संत...विजय भाई, आलेख बढिया है, शिक्षा और संस्कृति मे संतुलन आवश्यक है, जैसे अंग्रेज़ी से नही अंग्रेज़ियत से बचना ज़रूरी है। शिक्षा ऐसी हो कि हमारी भरतीयता बची रहे ।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/11431986637466998622noreply@blogger.com