tag:blogger.com,1999:blog-15182217.post8517571459758007943..comments2024-03-25T10:13:31.176+05:30Comments on रचनाकार: कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -106- शिखा कौशिक की कहानी : पापा मैं फिर आ गयारवि रतलामीhttp://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-15182217.post-61079989855626988022012-10-07T15:55:57.144+05:302012-10-07T15:55:57.144+05:30shikha ji aapki post par jo tippani veerubhai ne k...shikha ji aapki post par jo tippani veerubhai ne kee hai usse behtar tippani main nahi kar sakti .man me bahut dukh ho raha hai patron ke dukh ko anubhav karke.bahut sundar bhavnatmak kahani .Shalini kaushikhttps://www.blogger.com/profile/10658173994055597441noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15182217.post-4426068612147744112012-10-05T04:49:15.567+05:302012-10-05T04:49:15.567+05:30.उन्होंने कहा है मैं अकेला ही एक ब्रीफकेस (के)....... .उन्होंने कहा है मैं अकेला ही एक ब्रीफकेस (के)......के .....फ़ालतू है यहाँ .... लेकर वहां पहुँच जाऊं । ..आगे पुलिस के साथ मिलकर वे दोनों संभाल लेंगें। ''<br /><br />आगे पढ़ें: रचनाकार: कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -106- शिखा कौशिक की कहानी : पापा मैं फिर आ गया <br /><br />http://www.rachanakar.org/2012/10/106.html#ixzz28NBGNERu उसे पांच मिनट बाद सामने की ओर से ईख हिलते(हिलती ) नज़र आये(आई ) और पीछे से भी कुछ कदमों <br /><br />की आहट सुनाई दी। .वह सावधान हो गया। <br /><br /><br /><br />। उनमें से एक ने रिवॉल्वर मुकेश की कांपती.......(कनपटी ) ....से सटा दिया ।<br /><br />प्रियांशु (के )......को ...बुखार है और मीनाक्षी उसकी देखभाल में लगी रहती है। <br /><br />-मिनाक्षी (मीनाक्षी )घर के बहार (बाहर )लॉन में इंतजार करती दिखाई देगी । ..वैसा कुछ नहीं हुआ क्योंकि मिनाक्षी.....(मीनाक्षी )........ उसे नहीं दिखाई दी।<br /><br />मुकेश की नज़र दीवार पर गयी तो वही.....(वहीँ )... टिक गयी<br /><br />इस तरह तुम और मीना यहाँ दिल्ली में ऐसे दुखी रहोगे तो हम वहां कानपूर......(कानपुर ).... में कैसे चैन से रह पाएंगे <br /><br />..उन्होंने मरकर भी उस नन्ही सी जान को सुकून न लेने दिया। प्रियांशु की शिनाख्त छिपाने के लिए उसका चेहरा मरने.....(मारने ) ...के बाद तेजाब से झुलसा दिया। <br /><br />शिरीष ,उत्तम और संगीता अस्पताल लगभग रोज़ आते थे पर तुम्हारे सामने आने.....(का ).छूट गया है ...का ...... साहस न कर पाते कि कहीं उनके मुंह से ये बात न निकल जाये। <br /><br />..लेकिन हाँ अब ध्यान से सुनों......(सुनो )...... ..मैं <br /><br />और तुम्हारी माँ कल को कानपूर (कानपुर )लौट जायेंगे। ..तुम्हे और मीनाक्षी को मजबूत दिल का होकर प्रियांशु के हत्यारे को फांसी के तख्ते तक पहुँचाना है। '' <br /><br />बहुत ही कसावदार है इस कहानी का तानाबाना एक भी शब्द फ़ालतू नहीं .पाठक की आशंका मुकेश के साथ -साथ ही आगे बढती जाती है .<br /><br />एक छोटा सा फ्लेश बैक का आभास भी जैसे मुकेश हिमांशु की याद से बाहर निकल आया हो तब जब उसने कहा हाँ ...हत्यारे को फांसी .....<br /><br />हिन्दुस्तान में घटित इन हृदय विदारक घटनाओं का ऐसा मार्मिक ,कारुणिक चित्र आपने उकेरा है किसी चित्रकार की कूची से .बधाई इस सशक्त कहानी के लिए .एक मारक सन्नाटा <br /><br />बुनती है कहानी ,तदानुभूति क्या पाठक उस हादसे को जीने ही लगता है .<br />virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15182217.post-82153781992333854712012-10-04T11:24:49.673+05:302012-10-04T11:24:49.673+05:30बेहद संवेदनशील और मार्मिक कहानी बेहद संवेदनशील और मार्मिक कहानी vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15182217.post-57369866570520138382012-10-03T21:55:20.668+05:302012-10-03T21:55:20.668+05:30आदरणीय रवि जी -
आपके द्वारा प...आदरणीय रवि जी -<br /> आपके द्वारा प्रकाशित मेरी कहानी अधूरी है .मैंने इस मेल के बाद तुरंत अगले मेल द्वारा पूरी कहानी भेजी थी .आपसे विनम्र निवेदन है कि आप पूरी कहानी प्रकाशित करने की कृपा करें -मैंने फिर से मेल कर दिया है .<br /> सादर<br /> डॉ शिखा कौशिक ''नूतन'' Shikha Kaushikhttps://www.blogger.com/profile/12226022322607540851noreply@blogger.com