सोमेश शेखर चन्द्र का यात्रा संस्मरण : एवरेस्ट का शीर्ष - 2

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एवरेस्ट का शीर्ष - सोमेश शेखर चन्द्र ( पिछले अंक से जारी ....) जिस तरह अपने यहाँ कई तरह की मान्यताएं है और टोटके हैं और उन टोटकों को लोग...



एवरेस्ट का शीर्ष
- सोमेश शेखर चन्द्र

(पिछले अंक से जारी....)

जिस तरह अपने यहाँ कई तरह की मान्यताएं है और टोटके हैं और उन टोटकों को लोग, सच की तरह मानते हैं और करते हैं उसी तरह की मान्यताएं और टोटके अमेरिकी समुदाय में भी प्रचलित है। यहाँ पर क्रिसमस के समय में बर्फ़बारी का होना बड़ा शुभ माना जाता है। उनका मानना है कि क्रिसमस के समय बर्फबारी होने से, सुख, समृद्धि और शांति का आगमन होता है। अमरीका में दिसंबर के महीने से बर्फबारी होना शुरू हो जाती है लेकिन जिस साल बर्फबारी नहीं होती लोग काफी मायूस हो उठते हैं। कालोनियों में घूमते हुए मैंने प्राय: हर घर के सामने, बड़े बड़े कोहड़े रखे देखे। किसी किसी के घर के दरवाजे पर तो इतना बड़ा कोहड़ा रखा हुआ देखा कि उतना बड़ा कोहड़ा मैं अपनी जिंदगी में नहीं देखा था। घरों के दरवाजे पर कोहड़े रखने की प्रथा यहाँ की किसी मान्यता या टोटके के रूप में ही थी।

कालोनियों में घूमने के बाद हम एक बड़े माल में घूमने निकल गए थे। यहाँ पर जितने भी माल और स्टोर है, जितने बड़े रकबे में वे बने होते हैं, उसके चार गुना रकबे के बराबर उस माल, स्टोर के सामने कार पार्किंग बनी होती है। कारण इसका है कि कोई भी यहाँ, बिना कार के चल ही नहीं सकता। जिस माल को हम देखने गए थे वह, काफी लंबी चौड़ी जगह में बना था और उस लंबे चौड़े माल के आगे, उससे चार गुना बड़ी जगह की कार, पार्किंग थी लेकिन उसमें कही एक भी कार खड़ा करने की जगह नहीं थीं। जगह तभी होती थी जब कोई, अपनी कार निकाल कर वहाँ से बाहर निकलता था। अपने यहाँ ऐसी जगहों की नीलामी होती है और स्टैंड वाले, कारों को स्टैंड में खड़ा करने के लिए निर्धारित राशि वसूलते हैं तो साथ ही साथ वे, कारों को निकालने और रखने में लोगों की मदद भी करते हैं। लेकिन यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं होता। माल के सामने जेब्रा लाइन बनाकर कारें खड़ी करने की जगह बनाई हुई होती है और दो लाइनों के बीच इतनी जगह छोड़ी हुई होती है कि बड़ी से बड़ी कार अंदर घुसने के साथ साथ बाहर भी निकल सके। कार पार्किंग का क्षेत्र इतना बड़ा था लेकिन, वहाँ पर एक भी कार लगाने की जगह खाली नहीं थी। काफी चक्कर लगाने के बाद, लड़के ने कार को माल के भीतर बने कार पार्किंग की तरफ मोड़ दिया था। यह माल पाँच छ तलों का था और जितना बड़ा माल था उसके किनारे किनारे उसी बिल्डिंग के चारों तरफ हर तल्ले में, चारों तरफ, कार पार्किंग भी बना हुआ था। लोग पार्क करने के लिए उसमें ऊपर से नीचे तक अपनी कारें लेकर घूमते रहते थे जहाँ किसी को कोई अपनी कार निकालते दिखता था वह अपनी कार वहीं रोककर खड़ा हो जाता था। माल में बना कार पार्किंग, कई सेक्टरों में बंटा हुआ था और हर सेक्टर में जितनी भी कार की लाइनें थी सबमें उस सेक्टर का नाम और कार की लाइन का नंबर लिखा हुआ था। अगर किसी ने भूल से अपनी कार स्टैंड का नंबर नहीं लिया या वह उस जगह को भूल गया तो कारों के उस समुद्र में से अपनी कार ढूँढ लेना करीब करीब असंभव था।
वह माल इतना बड़ा था कि अगर उसे कोई घूमकर देखना चाहे तो उसे कम से कम चार पाँच घंटे तो जरूर चलते रहना होगा। वृहदाकार और चार पांच तल्लों में फैला वह माल, कई सेक्टरों में बंटा हुआ था और हर सेक्टर एक दूसरे से जुड़े हुए थे और ऊपर नीचे आने जाने के लिए रोलर सीढ़ियां घूमती रहती थी। उस माल में जब हम घूम रहे थे तो सत्रह से बीस साल के बीच के पांच छ: लड़के एक जगह गोल बनाकर खड़े हुए थे। हमें आता देख वे हमें चिढ़ाने के लिए बंगलादेश, बंगलादेश कहकर हम पर फब्तियाँ कसने और आपस में कुछ बोल बोलकर और तालियाँ ठोंक ठोंक, कर हमारी खिल्ली उड़ाने लगे थे। उनका वैसा असभ्य व्यवहार देख, मुझे बड़े जोरों की गुस्सा आ गया था. मन में आया था उन लड़कों को जवाब में मैं भी कुछ खरी खोटी सुना दूँ लेकिन एक तो पराया देश, दूसरी उद्दंड बच्चे और साथ में वर्षों से यहाँ रह रहा मेरा बेटा साथ था और वह उनकी बातों और कटाक्षों को अनदेखी करता, अपना सिर नीचे किए, आगे बढ़ गया था तो उन लोगों के मुँह लगना मुझे भी उचित नहीं लगा था। उस उल्लास के माहौल में किसी से उलझना, खासकर बच्चों से मुझे किसी भी सूरत में ठीक नहीं जंचा था इसलिए हम लोग अपना सिर नीचे रखकर आगे बढ़ गए थे। हमारे गुजर जाने के बाद भी वे लड़के हमें चिढ़ाने के लिए कुछ बोल बोलकर हँसते रहे थे। मैं समझता था अमरीका में नस्लवाद नहीं है लेकिन लड़कों का, अपने साथ, वैसा व्यवहार देख, मुझे बड़ी व्यथा हुई थी। लेकिन उस एक घटना को छोड़कर, मैं उस महान देश में चार महीनों से ऊपर रहा था और मालों, दूकानों, बाजारों, झीलों और नदियों के किनारों तथा दर्शनीय स्थलों में काफी घूमा था लेकिन उस तरह के उद्दंड व्यवहार वाले लोग, मुझे फिर कहीं नहीं मिले थे। जहाँ जहाँ मैं गया था हर जगह या तो लोग हम लोगों से या तो निरपेक्ष रहते थे, जैसा कि अमूमन अनजानों के साथ लोग रहते हैं या सब के सब सुहृद सहयोगी और आत्मीय मिले।

माल के एक स्टूडियो में, देखा एक व्यक्ति सांताक्लास की पोशाक में था और छोटे छोटे बच्चों के साथ या उन्हें गोदी में लेकर, फोटो खिंचवा रहा था। उस माल के बीचों बीच टेनिस कोर्ट के बराबर एक जगह थी। यह माल का सेंटर था और सबसे ऊपरी तल्ला फाइबर की छत से ढंका हुआ था इसके अलावे ऊपर से नीचे तक समूची जगह खाली थी। वहाँ के किसी भी तल्ले में खड़ा होकर नीचे फर्श की जगह जो भी कार्यक्रम होता था उसे स्पष्ट देखा जा सकता था। नीचे फर्श वाली जगह को चारों तरफ से लोहे के ग्रिलों से घेरा हुआ था और बीच वाली लंबी चौड़ी जगह में बर्फ जमा दी गई थी। उस बर्फ पर बच्चों और बड़ों के सरकने के लिए स्केट मिलते थे जिसे लोग अपने पांवों में बांधकर बर्फ पर सरक रहे थे। कोई कोई उसमें बड़े कलात्मक तरीके से नृत्य सा करता सरक रहा था। छोटे बच्चों में सरकते समय, यदि कोई गिर जाता, तो दूसरा उसे दौड़कर उठा लेता था। कुछ बच्चे जो एकदम नौसिखुवा थे वे गिरने के डर से ग्रिल पकड़कर सरक रहे थे। उसी बर्फ के मैदान में एक लड़का और लड़की, बड़ी देर से थिरक रहे थे। जब उन्हें थिरकते और कलाबाजियाँ करते काफी समय गुजर गया तो लड़का मैदान के एक किनारे पहुँचकर अपने घुटनों पर बैठ गया था। लड़की मैदान में तीन चार चक्कर थिरकने और कलाबाजियाँ करने के बाद, लड़के के सामने आकर खड़ी हो गई थी। घुटनों पर बैठे बैठे ही लड़के ने अपने दोनों हाथ लड़की की तरफ बढ़ाकर उससे उजुर सा करता कुछ कहा था लेकिन लड़की ने उसके उजुर को स्वीकार नहीं किया था। इसके बाद लड़का लड़की को मनाकर राजी करने की मुद्रा में उससे कुछ कहना शुरू किया था। थोड़ी देर की मान मनोबल के बाद लड़की राजी हो गई थी। अपनी सहमति व्यक्त करने के लिए उसने लड़के के सामने अपना हाथ बढ़ा दिया था। लड़की के सहमति व्यक्त करते ही चार पाँच तल्लों के उस माल में जो लोग उस दृश्य को देख रहे थे सब उ आ ऽ ऽ ऽ की जोर की आवाज निकाल कर तालियाँ बजाने लग गए थे इसके साथ ही ऊपर से नीचे तक के तल्लों पर कैमरों के फ्लैश चमक उठे थे। लड़के ने अपनी जेब से निकालकर, लड़की की उंगली में एक अंगूठी पहनाया था इसके बाद दोनों एक दूसरे का हाथ चूमने के बाद आलिंगन-बद्ध होकर एक दूसरे को चूमने लग गए थे। उस दृश्य को फिल्माने के लिए कैमरे लगातार चमक रहे थे और लोग उसी तरह हो हो करके दोनों को बधाइयाँ दे रहे थे। यहाँ पर कई लोग अपनी मंगनी को यादगार बनाने के लिए इसी तरह के खास मौकों और जगहों को चुनकर उसे अपनी यादों में हमेशा हमेशा के लिए पैबस्त कर लेते हैं। माल के उस जगह पर एक विशाल क्रिसमस ट्री सजाया हुआ था जो जमीन से उठकर माल की छत तक चला गया था। क्रिसमस ट्री विशाल होने के साथ साथ इतना कलात्मक और खूबसूरत था और उसमें दिपदिपाते छोटे छोटे रंगीन बल्ब उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा रहे थे। देखने में वह इतना दिव्य दिखता था कि उसे देखकर लगता था कि वह सचमुच का कोई देव वृक्ष है।

माल के बीचों बीच के, उस जगह का अद्भुत नजारा देखने के बाद हम वापस घर लौटने के लिए चले तो एक दूकान के सामने एक अंग्रेज दंपति अपनी एक बहुत बड़ी समस्या सुलझाने में जुटे हुए थे। दरअसल यहाँ पर क्रिसमस का दिन, माँ बाप अपने बच्चों को कोई न कोई गिफ्ट जरूर देते हैं। बच्चों को गिफ्ट, वे सीधा उनके हाथ में न देकर उनसे कह कर रखते हैं कि आज रात, सांताक्लाज तुम्हारे लिए, तुम्हारी मनपसंद का गिफ्ट लेकर आएगा और जब तुम सो जाओगे तो चुपके से वह गिफ्ट, तुम्हारे सिरहाने रखकर चला जाएगा। इस तरह रात में जब बच्चे सो जाते हैं तो माँ बाप, बच्चों का गिफ्ट चुपके से, उनके सिरहाने रख देते हैं। सुबह जब बच्चा सोकर उठता है तो अपना मनपसंद गिफ्ट, अपने सिरहाने पाकर खुशी से उछल पड़ता है। माँ बाप का, अपने बच्चों को गिफ्ट देने की यह तरकीब, जब तक बच्चे छोटे, अबोध और नासमझ होते हैं तब तक तो कारगर होती हैं लेकिन जब वे थोड़ा बड़े हो जाते हैं और बहुत कुछ समझने लगते हैं तो, वे यह बात समझ जाते हैं कि, उनका गिफ्ट सांताक्लाज नहीं बल्कि उनके माँ बाप, खुद बाजार से खरीदकर लाते हैं, और दिन के समय वे उसे, किसी गुप्त जगह पर उनसे छुपाकर रख देते हैं और रात जब वे सो जाते हैं तो, उसे उनके सिरहाने लाकर रख देते हैं। बच्चे, होशियार तो पृथ्वी के हर भूभाग के होते हैं और वे माँ बाप की सारी चालाकियाँ, बड़ी जल्दी ताड़ लेते हैं उन अंग्रेज दंपति की यही समस्या थी। उनके बच्चे भी समझदार और होशियार रहे होंगे। उनके लिए गिफ्ट तो दोनों ने खरीद लिए थे लेकिन उसे वे छुपाकर घर के किस गुप्त जगह पर रखे कि बच्चे उसे खोजकर निकाल न लें यही उनकी समस्या थी और इसी पर दोनों माथापच्ची करने में जुटे हुए थे। पत्नी ने पति को सुझाव दिया था, गिफ्ट को हम छत के ऊपर एयरकंड़ीशनर के बाक्स-नुमा जगह में छुपाकर रख देंगे। अरे तुम उन बदमाशों को नहीं जानती हो, वे अपना गिफ्ट, सीढ़ी लगाकर, वहाँ से भी ढूंढ निकालेंगे। पत्नी के सुझाव पर पति बड़ा झल्लाते हुए उसे सुनाया था। मेरा बेटा, दुकान से कोई चीज खरीदने के लिए उसके अंदर गया हुआ था और मैं बाहर उसके निकलने के इंतजार में, गिफ्ट छुपाने को लेकर माथा पच्ची करते उस दंपति की बातें, उनकी बगल, कुछ दूरी पर खड़ा सुन रहा था।

पश्चिमी सभ्यता, और वहाँ के लड़के लड़कियों की, उन्मुक्त जीवनशैली, खासकर सेक्स को लेकर भारत के लोगों में ऐसी धारणा है, कि वे चरित्र के मामले में एकदम गिरे हुए होते हैं। लड़के लड़कियाँ थोड़ा समझदार होते ही सेक्स करने लगते हैं। उनके माँ बाप भी उन पर कोई अंकुश नहीं लगाते। इस तरह की और ऐसी ही, दूसरी तमाम तरह की बातें सुना, सुनाकर हमारे यहाँ, बहुत से लोग, पश्चिमी सभ्यता, खासकर मर्दों, औरतों तथा लड़के लड़कियों के संबंधों को लेकर ऐसा खाका खींचते हैं कि सुनने वाले को लगता है कि पश्चिम के लोग, चरित्र के मामले में, निहायत गिरे हुए और घटिया किस्म लोग होते हैं। पश्चिम के लोगों के चरित्र के मामले में, मेरी भी धारणा काफी हद तक वैसी ही थी लेकिन अमरीका आकर, मैंने जब सबकुछ अपनी आँखों से देखा था और यहाँ के सामाजिक ताने बाने, पारिवारिक व्यवस्था, जीवनवृत्ति की बारीकियाँ समझा था तो मेरी आँखें खुल गई थी।

पश्चिमी सामाजिक-तंत्र, जीवनशैली और उनके जीवन-मूल्यों को समझाने के लिए मैं भारतीय सामाजिक-तंत्र पर थोड़ी चर्चा करना जरूरी समझता हूँ। यहाँ पर बच्चा पैदा होने से लेकर, उसके सक्षम और समर्थ होने तक, उसकी सभी तरह की जिम्मेदारियाँ उसके माँ बाप, परिवार और समाज के जिम्मे होती है। जिस समाज और परिवार में वह पैदा होता है वहीं पर उसे अच्छा शहरी बनाने के लिये उसकी रीतियाँ, मर्यादाओं तथा जीवन मूल्यों में संस्कारित और दीक्षित करने की व्यवस्था की गयी होती है। कहने का मतलब यह है कि हमारे यहाँ परिवार और समाज, बच्चों को अच्छा शहरी बनाने के लिये एक संस्थान का काम करते हैं। जहाँ पर उसे, मनुष्य बनाने के लिये ढाला और संस्कारित किया जाता है। पारिवारिकता और सामूहिकता हमारे सिस्टम और जीवन तंत्र के अहम स्तंभ है। हमारे सिस्टम में, सिर्फ हमारा खुद का परिवार और समाज शामिल नहीं है बल्कि इसमें समूची पृथ्वी पर फैले मानव तथा उसके दूसरे तमाम बाशिंदे, समूह, परिवार की हमारी अवधारणाओं और हमारे सिस्टम में शामिल है। समूची पृथ्वी, सबके रहने लायक आदर्श जगह हो, इसके लिये सहिष्णुता, सरसता और समरसता, एक अनिवार्य शर्त है और यह शर्त पूरी तभी होगी, जब हम दूसरे के सहयोगी होने के साथ साथ, एक दूसरे के सुख और दुख दोनों में सहभागी होंगे। भारतीय समाज का ताना बाना, न सिर्फ इसी कंसेप्ट पर बनाया गया है बल्कि समूचा तंत्र, सुचारु रूप से नियंत्रित और संचालित हों, उसके लिए मर्यादाओं तथा आचार संहिताओं के निर्धारण के साथ साथ करणीय, अकरणीय, सदाचार, दुराचार तथा पाप, पुण्य तथा स्वर्ग नरक का भी रेखांकन किया गया है। मर्यादाओं में रहकर और इसकी आचार संहिताओं का पालन करते हुए, जीवन निर्वहन करने वाला, सदाचारी तथा इसका उल्लंघन और अतिक्रमण करने वाला दुराचारी तथा व्यभिचारी कहलाता है। दुराचारी को सुधारने और दंडित करने के लिए परिवार और समाज से, उपेक्षा, अवहेलना, निंदा और अपने बीच से बहिष्कृत करने जैसा इनबिल्ट सिस्टम बनाया हुआ है। इस तरह यहाँ का पूरा सामाजिक तंत्र संचालित और नियंत्रित होता है। दुराचारी को दंडित करने के लिए देश का जो दंड विधान है वह तो है ही।

जिस तरह हमारे सिस्टम में, जीवन के सुव्यवस्थित और सुचारु संचालन के लिए मर्यादाएं और आचार संहिताएँ बनाई हुई है उसी तरह सेक्स की भी हमारे यहाँ एक मर्यादा है। सेक्स की हमारी वह मर्यादा, यह है कि औरत और मर्द, विवाह करके, पति पत्नी बनने के बाद ही सेक्स कर सकते हैं। इसके पहले सेक्स करना न सिर्फ वर्जित है बल्कि इसे करना, यहाँ पर दुराचार और व्यभिचार माना जाता है। पश्चिम के लोग, इसे योनि शुचिता का नाम दिये हैं और वे लोग इसे हमारी रूढ़ियाँ कहकर हम पर हँसते भी है। ऐसा वे इसलिए करते हैं कि उन्हें हमारे इस सिस्टम के पीछे के विज्ञान की समझ नहीं है। हमारे यहाँ के इस सिस्टम के पीछे का विज्ञान, औरत और मर्दों का एड्स सिफलिस जैसी छुतही बीमारियों से जो बचाव करने का है वह तो है ही विवाह के पहले, लड़के लड़कियाँ, निर्माण की प्रक्रिया से गुजर रहे होते हैं यदि उस समय वे सेक्स के चक्कर में फंस गए तो अपने लक्ष्य और उद्देश्य से भटक जाएंगे। इस सबके अलावे इसके पीछे का जो अहम विज्ञान है, वह है यहाँ की शुद्धता और शुचिता का विज्ञान। यहाँ की शुचिता का आशय है आत्म शुद्धता। हमारे सिस्टम में आत्म शुद्धता क्या है, इसे हम भोजन का उदाहरण लें, तो उसे आसानी से समझा जा सकता है। भोजन चाहे जितनी सफाई से रॉधा और परोसा जाए, तय नहीं है कि वह शुद्ध और पौष्टिक होगा ही होगा। उसके शुद्ध और पौष्टिक होने के लिए, उसकी साफ सफाई के साथ-साथ उसके बनाने में प्रयुक्त सभी घटक, अनाज, तेल, मसालों का शुद्ध और पौष्टिक होना एक अनिवार्य शर्त है और उसके घटक, शुद्ध और पौष्टिक तभी होंगे, जब वे पौष्टिक बीज और अहानिकर उर्वरकों के प्रयोग से उगाये गए होंगे। ठीक उसी तरह, से सेक्स को, हमारे सिस्टम में, दो विपरीत सेक्स के लोगों का, मजे के लिए, की जाने वाली योनि क्रीड़ा नहीं बल्कि इस महान सृष्टि के सृजन के लिए किया जाने वाला महायज्ञ माना गया है। ऐसी सृष्टि के सृजन का महायज्ञ जिसमें प्रकृति के सभी जीव तथा जड़ चेतन परस्पर एक दूसरे का पोषक बनकर न सिर्फ खुद, बल्कि, आगे की नस्लें भी चैन और सुकून की जिंदगी जिएं। इस तरह हमारे यहाँ शुचिता का अर्थ सिर्फ योनि पवित्रता से नहीं है, बल्कि इसका अर्थ है शुद्ध और खांटी और भोजन की तरह ही यह शुद्ध और खांटी तभी होगा जब इसके वर्तमान तथा पूर्व के घटक दादा-दादियों और नाना-नानियों से लेकर उसकी आदि दादा-दादियों और नाना-नानियों तक शुद्ध और खांटी होंगे।

मैं यहाँ चार महीने से ऊपर रहकर जो समझ पाया हूँ वह यह है कि पश्चिम के समाज का सिस्टम, उनकी जीवन शैली, और कंसेप्ट हमारे सिस्टम और कंसेप्ट से पूरी तरह भिन्न तरह का है। वहाँ के लोग चरित्र निर्माण, नैतिकता, आदर्श, मर्यादा तथा सदाचार, दुराचार तथा व्यभिचार जैसी बातों के लफड़े में पड़े ही नहीं। बारीकी से देखने से पता चलता है कि यहाँ का अस्तित्व विज्ञान, पूरी तरह चिड़ियों के अस्तित्व के विज्ञान पर आधारित लगता है। चिड़ा और चिड़ी युवा होने पर जब खुद सृष्टि के सृजन लायक हो जाते हैं तो वे अपना जोड़ा ढूँढकर रतिक्रिया करते हैं। इसके बाद मादा अंडे देती है और इन अंडों पर बैठकर बच्चे निकलने तक उन्हे सेती है। बच्चों के अंडे से बाहर निकलते ही माँ बाप खिलाने के लिए दिनभर चारे, खोज खोज कर लाते हैं और उन्हें खिलाते रहते हैं। बच्चा जब उड़ने लायक हो जाता है तो कुछ दिनों तक तो वे उसे अपने साथ लेकर उड़ते हैं और जंगल के परिवेश में जिंदा रहने और चारा जुगाड़ने की ट्रेनिंग देते हैं जब बच्चा जंगल की जिंदगी से अभ्यस्त होकर अपना चारा खुद जुगाड़ने में सक्षम हो जाता है तो या तो वह खुद ही माँ बाप को छोड़कर, अपना आकाश तलाशने के लिए उड़ लेता है या माँ बाप, खुद ही उसे, अपने से अलग करके, उसे अपना खुद का आकाश ढूँढ लेने के लिए खदेड़ देते हैं। इसके बाद उस पर प्रकृति के जीव जगत का वह सिद्धांत तैरो या डूबकर मर जाओ’’ लागू हो जाता है। ठीक यही सिद्धांत पश्चिम के बच्चों पर भी लागू होता है। वहाँ माँ बाप, बच्चे के पैदा होने से लेकर, जब तक वह अपने खुद का आकाश तलाशने लायक नहीं हो जाता, तब तक उसकी अच्छी परवरिश और देखभाल करते हैं लेकिन जब वह बड़ा हो जाता है तो वह अपने माँ बाप से अलग होकर अपना खुद का, स्वतंत्र जीवन जीने लगता है या माँ बाप खुद ही उसे अपने से खदेड देते हैं। इसी तर्ज पर यहाँ के माँ बाप भी अपना दायित्व पूरा करके खुद का स्वतंत्र जीवन जीते हैं। भारत की तरह, यहाँ के माँ बाप, अपने बच्चों से यह उम्मीदें कतई नहीं करते कि बूढे या अक्षम होने की अवस्था में, हमारे बच्चे हमें अपने नीड़ में ले जाकर हमारी सेवा सुश्रुषा या देखभाल करेंगे या वे खुद उड़कर अपने बच्चों के नीड़ में पहुँचकर अपनी शेष जिंदगी, उनके परो की ऊष्मा और उनकी संरक्षा में गुजारेंगे। प्रकृति के जीव जगत का एक सिद्धांत यह भी है कि, जो यहाँ फिट और चुस्त है, सिर्फ वही जीने का हकदार है। इसके अलावे, प्रकृति अपने साम्राज्य में, अपनी रियाआ के लिए जो नियम, आचार संहिता और मर्यादाएँ निर्धारित की हुई है, उसका पालन करवाने के लिए वह किसी के पीछे डंडा लेकर नहीं पड़ती बल्कि उसका उल्लंघन या अतिक्रमण होने पर वह, दुराचारी को दंडित करने में एकदम से बेमुरव्वत हो जाती है। अमरीकी सामाजिक व्यवस्था और समूचे तंत्र को जितना तक मैं समझा हूँ वह यह कि उसके जीवन का रेशा रेशा और जर्रा जर्रा, प्रकृति के इन्हीं विधानों के अन्तर्गत संचालित और नियंत्रित होता है।

हमारे यहाँ, बच्चों के गर्भ में आने से लेकर उसका प्रसव, तथा रखरखाव पूरी तरह महिलाओं का विषय होता है और उसकी जिम्मेदारी, शिशु की माँ, दादियों, नानियों तथा परिवार की ताइयों और चाचियों पर होता है। महिलाओ के इस क्षेत्र में पुरूषों का प्रवेश करीब करीब वर्जित सा है। कारण इसका है कि, यहाँ पर, न सिर्फ परिवार बल्कि पूरा कुनबा और समूह, इस काम के लिए हाजिर होता है। लेकिन पश्चिम में ऐसा कुछ भी नहीं है। वहाँ पर पति पत्नी के अलावे तीसरा यदि कोई उनकी मदद के लिए होता है तो सिर्फ डाक्टर और नर्सें होती है दादियाँ और नानियाँ बच्चे के जन्म की खबर मिलने पर, उन्हें देखने पहुँच लें इतना ही काफी होता है। इसलिए वहाँ पर बच्चे के गर्भ में आते ही, माँ बाप पूरी तरह डाक्टर के हवाले हो जाते हैं। डाक्टर, गर्भस्थ शिशु का नियमित चेकअप करके, भ्रूण विकास और उसकी कमियों और खामियों का निवारण करने के साथ पति पत्नी दोनों को बच्चे की देखभाल, एवं उसके रखरखाव की विधिवत, ट्रेनिंग देकर उन्हें अच्छे माता पिता बनने के लिए तैयार करता है और इसी तैयारी के अंतर्गत प्रसव के समय अस्पताल में डाक्टर और नर्सों के साथ, पत्नी की बगल, उसके पति की मौजूदगी अनिवार्य होती है। वह इसलिए कि प्रसव, औरत की जिंदगी, का भीषण कष्टकर और नाजुक समय होता है। हमारे यहाँ कहावत है कि, बच्चे को जन्म देने पर माँ का पुनर्जन्म होता है। इस कहावत के पीछे का यह सत्य कि, माँ बनने पर औरत को जो मातृत्व की एक अलौकिक अनुभूति होती है और इस घटना के बाद वह पूरी तरह एक नए रूप में अवतार लेती है वह तो है ही इस कहावत के पीछे का दूसरा सत्य यह है कि प्रसव के दौरान वह जिस भयानक पीड़ा से गुजरती है बच्चे को जन्म देने के लिए वह जिस तरह जूझती है उसकी वह पीड़ा और जद्दो जहद, मौत से जूझने से कम नहीं होती। ऐसे भीषण यंत्रणा से जूझते हुए मौके पर, अगर कोई उसका सबसे बड़ा हमदर्द हो सकता है तो वह उसका पति ही हो सकता है। इसीलिए बच्चे के प्रसव के समय, पति अपनी पत्नी के साथ होता है और उसे सहला दुलराकर उस नाजुक दौर से पार होने में उसका पूरा सहयोग करता है।

यहाँ, पर बच्चे को, उसके जन्म के बाद, सिर से नीचे पाँव तक, सारा शरीर, कोमल कपड़े में लपेट कर, रखते हैं। उसे ऐसा रखने के पीछे का विज्ञान यह है कि जब बच्चा, माँ की कोख में होता है तो वह पूरी तरह बंधा छना होता है, जन्म लेने के बाद, उस बंधन से मुक्त होने के चलते, उसे, उसकी यह नई दुनिया, बड़ी बेतुकी और अटपटी लगती है, उसका वह अभ्यस्त नहीं होता इसलिए वह डरता है चिहुंकता है। बच्चे को, माँ के गर्भ के भीतर का माहौल देने के लिए, जिससे कि वह चिहुंके और डरे नहीं, इसके लिए, उसका सारा शरीर कपड़े में बांध कर रखते हैं। भारत की तरह अस्पताल से डिस्चार्ज, करने के बाद अस्पताल वाले, बच्चे को उनके माँ या बाप की गोद में नहीं सौंपते और न ही माँ बाप, बच्चों को एक खास उम्र तक, जब तक वह खुद से खुद को संभालने लायक नहीं हो जाता, अपनी गोद में बैठाकर घर से कहीं बाहर घुमाने फिराने या दूसरे किसी काम से बाहर ले जा सकते हैं। ऐसा करने की यहाँ पर किसी को इजाजत ही नहीं हैं। डिस्चार्ज करने के बाद, अस्पताल वाले बच्चे को कार सीट में बांधकर माँ बाप के हवाले करते हैं और माँ बाप उन्हें, अपनी कार की पिछली सीट पर बांधकर (यहाँ पर हर कार में बच्चे की, कार सीट बांधने की व्यवस्था होती है।) अपने घर ले जाते हैं। इसके बाद, जब भी वे, बच्चे को लेकर बाहर निकलते हैं तो उसे कार सीट में बांधकर ही बाहर ले जाते हैं। ऐसा यहाँ, किसी दुर्घटना होने की अवस्था में, बच्चा सुरक्षित रहे, इसके लिए किया जाता है।

भारत की तरह, यहाँ पर माँ बाप अपने बच्चों को अपने बिस्तरे में नहीं सुलाते। बच्चे के सोने और खेलने के लिए, माँ बाप की पलंग के बराबर, उनका अलग बिस्तर लगाया जाता है जिसे क्रिव कहते हैं। इस क्रिव में, घोड़े, हाथी, शेर तथा दूसरे जानवरों जैसे खिलौने झुला दिए जाते हैं। जगा होने पर बच्चा उन खिलौनों से खेलता और बोलता बतियाता है। यहाँ पर बच्चा पैदा होते ही उसे डाइपर पहनाना शुरू कर देते हैं उसी डाइपर में बच्चा टट्टी पेशाब करता है और समय समय पर माँ बाप उसे बदलते रहते हैं। बच्चा जब थोड़ा समझदार हो जाता है और खुद से टट्टी पेशाब करने लायक हो जाता है तो लोग उसे डाइपर पहनाना छोड़ देते हैं। थोड़ा और सयाना होने पर वे उसे, उसका एक अलग कमरा देकर अपने से अलग कर देते हैं। यह उसका अपना खुद का कमरा होता है जहाँ पर वह स्वतंत्र रूप से रहकर खुद से अपना सारा काम सम्पन्न करता है और जब बच्चा खुद से कुछ उपार्जन करने लायक हो जाता है तो वह कोई छोटा मोटा काम, या दफ्तरों और स्टोरों में पार्टटाइम करके अपनी पढ़ाई, खाने पीने, कपड़े और, सैर सपाटे का खर्च खुद से उपार्जन करने लगता है। इतनी उम्र तक पहुंचते पहुंचते वह स्वतंत्र रूप से अपने जीवन से संबंधित सारे निर्णय खुद से, लेने लग जाता है। उसके निर्णय में, उसके माँ बाप, परिवार या समाज का कोई हस्तक्षेप नहीं होता।

भारत के लोगों का, अपने बच्चों को अनुशासित रखने के लिए, उनकी पिटाई, एक अहम और कारगर अस्त्र है और इसका इस्तेमाल भी वे खूब करते हैं। ऐसा करने की न सिर्फ यहाँ पूरी छूट है बल्कि समाज से उसे मान्यता भी प्राप्त है। लेकिन अमरीका में यदि किसी माँ या बाप ने, बच्चे को पीट दिया और बच्चा, इसकी शिकायत स्कूल में अपनी टीचर या पुलिस से कर दिया या कि, किसी ने, बच्चे को पिटता देखकर उसकी शिकायत पुलिस या बच्चों पर नजर रखने वाली संस्था में कर दिया तो पुलिस या संस्था वाले बच्चे को उसके माँ बाप से छीनकर अपने कब्जे में ले लेते हैं, और दोनों को जेल की सलाखों के पीछे डाल देते हैं। बच्चों के, उद्दंडता करने पर, यहाँ पर उन्हें दंडित करने का एक अलग ही तरीका है। बच्चे जब छोटे होते हैं तो, उद्दंडता करने पर माँ बाप, उन्हें नाटी कार्नर में खड़ा कर देते हैं। नाटी कार्नर घर की एक निश्चित जगह होती है जहाँ बच्चे को दंडित करने के लिए माँ बाप, उसे खड़ा करते हैं। बच्चे के उद्दंडता करने पर सबसे पहले माँ बाप उसे बताते हैं कि तुम्हारी ए हरकतें असभ्य हरकतें हैं हमें वे पसंद नहीं है इसलिए इन्हें मत करो। उनके समझाने पर यदि बच्चा नहीं संभला तो वे उसे नाटी कार्नर में खड़ाकर देने की धमकी देते हैं। उनकी धमकी के बाद भी यदि वह नहीं माना, तो वे उसे नाटी कार्नर में खड़ा कर देते हैं। नाटी कार्नर में बच्चे के खड़ा होने पर, उसकी सारी गतिविधियाँ बंद हो जाती है और वह एक कोने में कैद हो जाता है इसलिए
बच्चे नाटी कार्नर में जाने से डरते हैं। वे बच्चे जो थोड़ा बड़े और समझदार होते हैं उन्हें दंडित करने का यहाँ एक अलग ही तरीका है। उनके उद्दंडता करने पर, माँ बाप उसकी कोई भी बात सुनना और उससे बोलना बंद कर देते हैं, या यदि वे उसे लेकर कही घूमने फिरने का प्रोग्राम बनाए होते हैं तो उसे कैंसिल कर देते हैं, यह कहकर कि तुम्हारी इन हरकतों के चलते तुम भले लोगों के बीच जाने के काबिल ही नहीं हो इसलिए हम अपना आउटिंग का प्रोग्राम रद्द करते हैं। उसे कोई गिफ्ट देने का वादा किए रहते हैं तो वे उसे वह गिफ्ट नहीं देकर उसे दंडित करते हैं लेकिन बच्चे को दंड देने के पहले वे उसे वार्निंग देकर संभलने का पूरा मौका देते हैं बावजूद इसके यदि वह नहीं संभला तो, वे टाइम आउट कर देते हैं।

जिस तरह, बच्चे के जन्म के बाद, अपने यहाँ उसकी छठ्ठी बरही की जाती है और उस फ़ंक्शन में, लोग शिशु को तरह तरह के तोहफे देते हैं वैसा ही एक सिस्टम यहाँ पर भी है। इस सिस्टम को यहाँ बेवी सावर्स कहते हैं। अपने यहाँ छठ्ठी बरही, बच्चे के जन्म के बाद होती है, जबकि यहाँ पर बेवी सावर्स, बच्चे के जन्म लेने के पहले ही कर दिया जाता है। अपने यहाँ बच्चे की छठ्ठी बरही का फ़ंक्शन, बच्चे के माँ बाप और परिवार वाले करते हैं। इस मौके पर लोग अपने सगे संबंधियों और मित्रमंडली को बाकायदा आमंत्रित करते हैं जबकि यहाँ बेवी सावर्स करने का तरीका, ठीक उसके उलट है। यहाँ पर, जिसके यहाँ बेबी सावर्स होना होता है, पति और पत्नी दोनों पक्ष के लोग, आपस में चुपके से मंत्रणा करके पहले उसका एक दिन निश्चित कर लेते हैं तथा बच्चे के लिए, किसे क्या गिफ्ट देना है उसे भी आपस में तय करके खरीद लेते हैं। जिस दिन, वेबी सावर्स का दिन निश्चित होता है, उस दिन, उन्हीं लोगों में से कोई एक, औरत को, किसी बहाने से, अपने यहाँ बुला लेता है और उसके बाहर होते ही लोग, उसके घर में भड़भड़ा कर घुस जाते हैं और पूरे घर को गुब्बारों, तथा दूसरी सजावटों से सजाने लग जाते हैं। फ़ंक्शन में जो खाना पीना चलता है उसका मेन्यू लोग पहले से तय करके, मेन्यू का आइटेम आपस में बाँट लेते हैं और उसे निर्धारित दिन, अपने घर से तैयार करके अपने साथ लाते हैं। जब सारी तैयारियाँ और सजावटें पूरी हो जाती हैं तो लोग फोन करके औरत को बुला लेते हैं। घर में, उसके घुसने के पहले, लोग इधर उधर छुप जाते हैं और जैसे ही वह घर में प्रवेश करती है सब, ऊ ऊ वा ऽ ऽ ऽ की आवाज निकालते, उसके सामने प्रकट हो जाते हैं। ऐसा वे उसे सरप्राइज देने के लिए करते हैं।

उस फ़ंक्शन में लोग नाचना गाना सभी कुछ करते हैं, कंपटीशन के कई आइटम भी रखते हैं जिसमें, वहाँ आए जोड़ों के बीच, बेवी को कपड़े पहनाने, उसके डाइपर बदलने का कंपटीशन होता है। जो जोड़ा, जितनी जल्दी और ठीक ढंग से उसे कर लेता है वह विजयी घोषित होता है। उसी दौरान लोग, अपनी तरफ से बच्चे का कई नाम लिख कर देते हैं जो उसके नामकरण में सहायक होता है। अपने यहाँ, बच्चे के जन्म के बाद, उसके जन्म का पंजीकरण करवाने के लिए लोगों को कितने पापड़ बेलने होते हैं इसे बताने की जरूरत नहीं हैं लेकिन यहाँ पर बच्चे के जन्म के बाद, अस्पताल वाले, माँ बाप से पूछकर बच्चे का नाम लिख लेते हैं उसका पता और दूसरी तमाम जानकारियाँ वे लोग, प्रसूता को अस्पताल में भर्ती लेने के समय ही दर्ज किए रखते हैं। बच्चे के जन्म के बाद, वे बच्चे का नाम और पूरा विवरण अमरीका के स्टेट डिपार्टमेंट के संबंधित विभाग को भेज देते हैं और वहाँ से, एक हफ्ते के भीतर बच्चे का सिक्योरिटी नंबर और उसके जन्म के पंजीकरण का प्रमाण पत्र, घर के पते पर पहुँच जाता है। यही पंजीकरण सर्टीफिकेट और सिक्योरिटी नंबर, न सिर्फ उस बच्चे का अमरीकी नागरिक होने का पुख्ता प्रमाण होता है बल्कि भविष्य में, स्कूल में एडमीशन से लेकर तमाम सरकारी और गैर सरकारी जगहों पर, नौकरी, व्यवसाय, वीजा पासपोर्ट के लिए सिर्फ, उसे ही पेश करना होता है।

(क्रमशः अगले अंकों में जारी...)

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मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर 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रचनाकार: सोमेश शेखर चन्द्र का यात्रा संस्मरण : एवरेस्ट का शीर्ष - 2
सोमेश शेखर चन्द्र का यात्रा संस्मरण : एवरेस्ट का शीर्ष - 2
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