सोमेश शेखर चन्द्र का यात्रा संस्मरण : एवरेस्ट का शीर्ष - 3

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एवरेस्ट का शीर्ष - सोमेश शेखर चन्द्र ( पिछले अंक से जारी ....) अमरीका में, किसी भी तरह का काम, करवाने के लिए, चाहे वह सरकारी हो या ग...



एवरेस्ट का शीर्ष
- सोमेश शेखर चन्द्र

(पिछले अंक से जारी....)

अमरीका में, किसी भी तरह का काम, करवाने के लिए, चाहे वह सरकारी हो या गैर सरकारी, उसके लिए, किसी भी तरह की दौड़ भाग, दफ्तर के चक्कर लगाने हाकिम या बाबू से चिरौरी मिन्नतें करने, सोर्स सिफारिश भिड़ाने या कोई अवांछित रास्ता अख्तियार करने की जरूरत नहीं होती। राष्ट्रपति आफिस से लेकर, सिटी आफिस तक के बड़े से बड़ा या छोटे से छोटा, लोगों के सभी तरह के काम घर बैठे ही होते रहते हैं। यहाँ का यह सिस्टम मेरे लिए एकदम अजूबा था और उसे देखकर मैं दंग था। भारत में, बहुत मामूली से मामूली काम, तय नहीं है कि महीनों दफ्तरों के चक्कर लगाने और तमाम जुगत भिड़ाने के बाद भी हो जाएगा। यहाँ पर कोई भी काम बिना दौड़भाग या पैरवी के हो सकना करीब करीब असंभव है। लेकिन अमरीका में हर छोटा बड़ा काम, घर बैठे ही होता है। कारण इसका है कि यहाँ पर हर काम आनलाइन होने की व्यवस्था की हुई है और उस काम से संबंधित, सारी जानकारियाँ, औपचारिकताएँ, कितने अवधि में वह काम हो जायेगा, सब कुछ इंटरनेट पर उपलब्ध होती है। सबसे बड़ा ताज्जुब तो मुझे, यह जानकर हुआ, कि काम होने की जो अवधि निर्धारित की हुई होती है, अमूमन सारा काम उस अवधि के भीतर ही हो जाता है और इसकी सूचना भी इंटरनेट पर ही, लोगों को मिल जाती है, किसी कारणवश, यदि निश्चित अवधि के भीतर काम होने की सूचना इंटरनेट पर नहीं आई, तो लोग मान लेते हैं कि उनका काम हो गया। वैसे ऐसा बहुत कम होता है कि निश्चित अवधि के भीतर किसी का काम न हुआ हो। मिसाल के तौर पर, यदि किसी वर्क परमिट होल्डर को एक प्रांत में अपनी नौकरी छोड़कर दूसरे प्रांत में जाकर करना हुआ तो उसे नए प्रांत का वीजा लेना अनिवार्य होता है। इसके लिए वह इंटरनेट से वीजा का फार्मडाउन लोड करता है उसे भरकर संपोर्टिग कागज़ात के साथ, वीजा विभाग के साइट पर मेल कर देता है। उसका मेल पहुँच गया, इसकी सूचना तो उसे, सेंड की जगह, कर्सर क्लिक करते ही मिल जाता है। इसके बाद विभाग में उसकी फाइल पर क्या कार्यवाही हुई और उसका स्टेटस क्या है सब इंटरनेट पर फ्लैश होता रहता है। यदि उसके फार्म में कोई त्रुटि मिली या कोई जरूरी कागज़ात लगाना छूट गया होता है तो वह उस त्रुटि का निवारण इंटरनेट से ही कर देता है और छूटा हुआ कागज़ात भी इंटरनेट से ही भेजकर निश्चित हो जाता है। मान लो कि वीजा मिलने की अवधि तीन महीने की है और वह तीन महीने की अवधि बीत गई तो, यह मान लिया जाता है कि आवेदक को वीजा जारी कर दिया गया है और आवेदक संबंधित स्टेट में जाकर अपनी नौकरी ज्वाइन कर लेता है। इतना ही नहीं वह प्रतिष्ठान भी, जो उसे, अपने यहाँ काम पर रखने का आफर किया हुआ होता है वह भी बेहिचक उसे काम कर रख लेता है।

यहाँ की ऐसी व्यवस्था देखकर मैं चमत्कृत था। भारत में लोग, सुबह सोकर उठने के साथ पानी, बिजली, गैस की समस्या से लेकर, दिनभर चारों ओर, जिसको देखो, समस्याओं से ही जूझता मिलता है और लोग, उसी से जूझते अपना जीवन गुजार देते हैं। अपना असल काम करने का मौका उन्हें कम ही मिलता है। जबकि अमरीका में समस्या नाम की कोई चीज है ही नहीं। यहाँ पर, लोगों के सभी काम, आनलाइन घर में बैठे हो जाने की जो व्यवस्था है वह तो हई है, इसके अलावे वैसे काम, जिनका संबंध, सीधा अधिकारियों और कर्मचारियों के सिफारिश से ही होना संभव है, इन कामों के लिए भी, किसी को, किसी भी तरह की भाग दौड़, जुगत जुगाड़ सोर्स सिफारिस या जूता घिसाई करने की आवश्यकता नहीं होती। उसे करवाने के लिए भी लोग, संबंधित विभाग को कम्प्यूटर पर एक मेल भेज देते हैं या कि फोन से विभाग को अपनी समस्या की सूचना दे देते हैं। सूचना पाते ही उस विभाग के लोग, उसके दरवाजे पहुँचकर, उसकी समस्या सुनते हैं और उसका वहीं का वहीं निराकरण कर देते हैं। काम हो जाने का वादा करना या आश्वासन देकर चले जाने की प्रथा यहाँ पर है ही नहीं। वह इसलिए कि भारत में जिस तरह चपरासी से लेकर मिनिस्टर तक का अधिकार क्षेत्र, पता नहीं कितने स्टेजों में बंटा हुआ है और कोई भी काम होने में फाइलें, एक स्टेज से दूसरे स्टेज तक, किस रफ्तार से बढ़ती है और उसे आगे बढ़वाने के लिए लोगों को क्या क्या करने होते हैं और कितने नाकों चने चबाने होते हैं इसे बताने की जरूरत नहीं है, उलट इसके अमरीका में एक ही कुर्सी पर बैठा स्टाफ हर बला का निदान करने के लिए अधिकृत होता है और उसने जो निर्णय ले लिया, वही अंतिम निर्णय है। उसका लिया गया निर्णय, यदि अमरीका का राष्ट्रपति भी चाहे कि बदल दे, तो वह भी उसे नहीं बदल सकता। इसके पीछे कारण यह नहीं है कि, यहाँ का संविधान, अपने छोटे से छोटे स्टाफ को, ऐसा अकाट्य निर्णय लेने के लिए अधिकृत किया हुआ है कि उसका लिया गया निर्णय वहाँ का राष्ट्रपति भी नहीं उलट सकता। इसके पीछे कारण यह है कि यहाँ पर काम सम्पन्न होने के जो नियम बने हुए है, यदि वह काम, उस नियम में दायरे के भीतर है तो वह काम होगा ही होगा, और जो काम नियम के दायरे में नहीं है वह काम चाहें लाख सिर पटक लो किसी भी सूरत में नहीं होगा। अमरीका के राष्ट्रपति के कहने पर भी नहीं। अपने यहाँ लोगों की जैसी आदत है कि अगर उनका काम, किसी टेबुल से नहीं हुआ तो वे उसे करवाने के लिए, संबंधित टेबुल के स्टाफ पर दबाव बनाने के लिए किसी रसूख वाले को भिड़ा देते हैं या दूसरे तमाम हथकंडे अपनाकर अपना काम निकलवा लेते हैं, अमरीका में वैसा करने की कोई सोचता तक नहीं। यहाँ पर यदि स्टाफ ने ना कर दिया तो वह ना हो गया इसके बाद, वह किसी भी सूरत में हाँ हो पाना संभव नहीं है। भारत के लोग इस सिस्टम से अभ्यस्त नहीं होते। इसलिए जब कोई बच्चा, अमरीका जाने को होता है तो उसे वहाँ का सिस्टम समझाने के लिए तीन दिनों की बाकायदा ट्रेनिंग दी जाती है और उसमें उसे, यह बात प्रमुखता से समझाई जाती है कि अमरीका में यदि किसी स्टाफ ने, आपको नहीं कह दिया, तो आप वहाँ जुगत भिड़ाकर या उससे रो घिघियाकर अपना काम निकलवाने की गलती कभी मत करिए, उसकी ना सुनते ही वहाँ से फूट लीजिए। यहाँ की सभी तरह की व्यवस्था इतनी पुख्ता, चुस्त और पूर्ण है कि उसे देखकर दंग रह जाना पड़ता है। बिजली यहाँ चौबीसों घंटे निर्बाध सप्लाई होती रहती है। उसी तरह गर्म और ठंडा पानी भी यहाँ चौबीसों घंटे घरों में सप्लाई होता रहता है। पानी को गरम करने के लिए यहाँ पर हर घर में बड़ा गीजर लगा हुआ होता है जहाँ से गर्म पानी उसी फोर्स में निकलता है जिस फोर्स में ठंडा पानी। सिर्फ नलके का हत्था दाहिने या बाएँ ठेलने की जरूरत होती है। पानी की तरह गैस भी यहाँ, पाइपों के जरिए, घरों में सप्लाई होती रहती हैं। पानी बिजली गैस के इस्तेमाल पर यहाँ किसी भी तरह का प्रतिबंध या रोक नहीं है। यहाँ पर मैं जितने दिनों रहा और उस दौरान जहाँ तक घूमा, जीवन के हर क्षेत्र में, वहाँ जैसी व्यवस्था देखा, उसे देखकर मैं हैरान था। आदमी के जिम्मे जो व्यवस्था होगी, उसमें कही न कही थोड़ी सी तो खोट होगी ही। जब तक मैं वहाँ रहा और जहाँ भी गया, उनकी व्यवस्था की खोट ही खोजता रहा था लेकिन मेरे लाख खोजने के बाद भी मुझे वहाँ किसी भी क्षेत्र में कहीं एक छोटी सी भी खोट नहीं दिखी थी। जो कुछ भी मुझे दिखा, सब उत्कृष्ट दिखा। हर व्यवस्थाओं की तरह यहाँ की पुलिस व्यवस्था भी काफी चुस्त हैं और वह सभी तरह की संभावित आपदाओं से निपटने में प्रशिक्षित और आला दर्जे के वैज्ञानिक उपकरणों से लैस होती है। उनकी चुस्ती और काम करने का ढंग अपने यहाँ के ब्लैक कैट कमांडोज की तरह का होता है। अगर किसी क्रिमिनल से उनका सामना हो गया, तो एकदम से युद्ध शुरू हो जाता है। क्रिमिनल के सामने, उस समय, दो ही विकल्प होता है या तो वह अपना दोनों हाथ ऊपर उठाकर अपने को सरेंडर कर दे या पुलिस की गोली से मारा जाए। पुलिस वाले भी उसी तरह मर जाएंगे ठीक है, लेकिन जब तक उनकी जान में जान है तब तक वे उससे जूझते रहते हैं। यहाँ पर पुलिस हर जगह और किसी भी जगह तीन मिनट के भीतर पहुँचने का दावा करती है और वह वहाँ पहुँचती भी है। बस उसे सूचना भर मिलना चाहिए। यहाँ पुलिस को सूचना देने पर, अपने यहाँ की तरह, उसे अपना नाम बल्दियत बताने के साथ साथ स्ट्रीट गली और मकान नंबर और उस जगह का पूरा भूगोल समझाने की जरूरत नहीं होती और न ही पुलिस वाले किसी से वैसा कुछ पूछते ही है। कंट्रोल की घंटी बजते ही, अपने सिस्टम पर, बटन दबाने वाले ने, किस मकान गली रोड, हाईवे या जंगल से फोन किया गया है, इसकी उसे पुख्ता जानकारी हो जाती है और वह तुरंत, बिना एक पल गवाएं उस जगह के लिए कच कर जाती है। घटना चाहे बड़ी हो या छोटी, पुलिस दोनों को एक जैसी तवज्जो देती है। वह यह मानकर चलती है कि, बटन दबाने वाला, किसी भयानक विपत्ति में फंसा हुआ है। सूचना यदि किसी, मकान के भीतर से हुई, तो पुलिस पहले, उस घर की घेराबंदी करके, क्रिमिनल के भागने के सारे रास्ते बंद कर देती है उसके बाद वह, कमांडो की तरह ऐक्शन में आ जाती है। घर का दरवाजा खटखटाने पर यदि, दरवाजा खुल गया तो ठीक है नहीं तो वह दरवाजा या खिड़की तोड़कर अंदर घुसकर अपना मिसन पूरा कर देती है। अमरीका से भारत को फोन मिलाने के लिए 91 का बटन दबाना होता है। 91 यहाँ का, एस0टी0ड़ी0 कोड है। भारत को फोन मिलाते समय, कोई यदि 91 की बटन दबाने के बाद, किसी कारणवश आगे का नंबर नहीं दबाया, और अपना फोन आफ करना भी भूल गया तो भी उसके घर पुलिस पहुँच जाती है। पुलिस के पहुँचने पर घर वाला, उसे यह बताता है कि उसने गलती से बटन दबा दिया था, यहाँ सब कुछ ठीक है मुझे किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं है आप लोग जा सकते हैं, उसकी इतनी सफाई और आश्वासन के बाद, पुलिस उसके घर से बाहर निकल तो लेती है, लेकिन वह वहाँ से जाती नहीं है बल्कि बाहर छुपकर, घर के भीतर की सारी गतिविधि पर नजर रखती है। शक उसे यह रहती है कि हो सकता है कि क्रिमिनल उस आदमी को, पुलिस को कुछ भी बताने पर उसे जान से मार देने की धमकी देकर वही कहीं छुपकर बैठ गया हो, और उसकी धमकी के चलते, आदमी पुलिस को कुछ भी बताने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। काफी देर वहाँ छुपकर नजर रखने के बाद जब पुलिस वालों को पूरा इत्मीनान हो जाता है कि उस आदमी पर सचमुच कोई खतरा नहीं है तो वह फिर एक दफा, उस आदमी से पूछती है कि आपको सचमुच कोई खतरा नहीं है न? नहीं, मुझे सचमुच कोई खतरा नहीं है, उस आदमी के इतना बताने के बाद ही पुलिस वहाँ से हटती है। यहाँ पर पुलिस तीन मिनट के भीतर, कहीं भी पहुँच लेती है, इसलिए यहाँ पर क्रिमिनल को यदि कुछ छीनना या लूटना हुआ तो वह, रिवाल्वर अपने शिकार पर सटाकर जैसा वह कहता है उससे तुरंत वैसा कर देने को कहता है यदि उसके कहने पर शिकार ने वैसा नहीं कर दिया तो, वह उसे गोली मार देता है और उसे लूट कर चंपत हो जाता है। ऐसा वह इसलिए करता है कि उसके पास गंवाने के लिए, समय ही नहीं होता। उसके लिए समय गंवाने का मतलब है अपनी जान से हाथ धोना। यहाँ पर जो लोग, किसी लुटेरे या क्रिमिनल की चपेट में आ जाते हैं, तो वे तुरंत, जैसा वह कहता है वैसा कर देते हैं, इसे न करने पर उन्हें अपने जान से हाथ धोना पड़ सकता है।

हमारे घर की लाइन में दक्षिण भारतीय एक परिवार रहता है। उस घर की महिला, अपने दो साल के बच्चे को लेकर, कुछ खरीददारी करने के लिए, स्टोर गई हुई थी। सारी खरीदी करने के बाद, अपनी कार्ट और बच्चा लेकर, वह अपनी कार के पास आई, कार का दरवाजा खोला और बच्चे को आगे की सीट पर बैठाकर, सामान पीछे की सीट पर रखी और पीछे का दरवाजा बंद करके, कार में बैठने के लिए दूसरी तरफ जा ही रही थी कि बच्चा कार का दरवाजा बंद करके उसे अंदर से लॉक कर दिया। कार की चाभी महिला ने कार के आगे की डेक पर रख दिया था। यह जानकर कि पूरी कार लॉक हो गई है और उसकी चाभी भी अंदर ही रह गई है, महिला बुरी तरह घबरा गई थी। उसका बच्चा भीतर बंद हो चुका था, यदि ज्यादा देर तक वह उसमें बंद रहा तो दम घुटने से वह मर भी सकता है यह बात सोच कर वह पागलों की तरह, कभी कार के आगे तो कभी पीछे और कभी उसके दाएं तो कभी बाएं जिस तरीके से हो, उसका गेट खोलने में जुट गई थी लेकिन कार तो भीतर से लॉक हो चुकी थी। उसका बच्चा भी इतना छोटा था कि कार का लॉक खोलने लायक नहीं था ऊपर से शीशा बंद होने के चलते, बाहर से महिला के चिल्लाने के बावजूद, भीतर बंद बच्चे तक उसकी आवाज भी नहीं पहुंच रही थी। बच्चे की जान बचाने के लिए, कार का दरवाजा तुरंत खुलना जरूरी था और उसे खोलने का न तो उसके पास और न ही वहाँ किसी के भी पास कोई उपाय था। वह उस समय रोए या चीख उसकी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। लोगों से मदद के लिए गुहार लगाने पर भी वहाँ उसके आसपास उसकी सुनने वाला कोई नहीं था। वैसे अगर कोई वहाँ होता भी, तो उसके पास कार का दरवाजा खोलने लायक जरूरी उपकरण कहाँ से होते। उसके सामने जैसी स्थिति आ खड़ी हुई थी वैसे में उसने समझ लिया था कि अब मेरा बच्चा मेरी ही आँखों के सामने, मर जाएगा, यह सोचकर वह एकदम से विमूढ़ होकर जमीन पर धम्म से बैठ गई थी। लेकिन थोड़ी ही देर में देखती क्या है कि पुलिस की एक गाड़ी हाऊं हाऊं करती उसकी कार की बगल आकर खड़ी हुई थी और तीन चार पुलिस वाले अपने उपकरण के साथ कार के भीतर से कूदकर, उसकी कार का दरवाजा खोलने में जुट गए थे और कुछ ही सेकंडों में उसे खोल, जिस फुर्ती से वहाँ आए थे उसी फुर्ती से वहाँ से चले भी गए थे। हुआ यूँ था कि महिला को परेशान, कार के चक्कर लगाते, किसी ने देख लिया था और उसी ने पुलिस वालों को इसकी सूची दे दिया था।

जार्ज फर्नांड़ीज साहब, उस समय भारत के विदेश मंत्री थे अपने सरकारी काम से वे अमरीका दौरे पर गए हुए थे। लौटने लगे तो, एयरपोर्ट पर, सिक्योरिटी वालों ने उनके जूते उतरवा लिए थे। इसे लेकर भारत में लोगों ने, काफी शोर शराबा किया था लेकिन यहाँ के लोगों को यह नहीं पता है कि, सिक्योरिटी चेक की लाइन में, यदि वहाँ का राष्ट्रपति भी खड़ा होता, तो उसे भी, अपने जूते, जैकट बेल्ट, पर्स, पेन तथा जो भी सामान उसके पास है सब निकालकर एक ट्रे में रख देना होता और उस ट्रे में रखा सामान एक्सरे मशीन में, पूरी तरह चेक होने के बाद ही, उसे मिलता।

राष्ट्रपति बुश की लड़की, शराब पीकर, किसी सार्वजनिक जगह में कोई अभद्र हरकत कर दी। पुलिस वाले उसे पकड़ लिए और ऐसा करते पकड़े जाने पर, जैसा वहाँ का विधान है उसके मुताबिक उसे दंडित भी किए, इसके लिए अमरीका के अखबार, राजनैतिक पार्टियाँ यहाँ तक कि जनता के बीच से भी कोई कुछ बोला हो ऐसा सुनने में नहीं आया। अखबारों में उस घटना की एक खबर जरूर छपी थी बस। भारत में राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री के बेटे, बेटी ने यदि ऐसा किया होता तो बहुत बड़ा बवंडर उठ खड़ा होता। लेकिन वहाँ वैसा कुछ भी नहीं हुआ था। हाँ अगर पुलिस वाले उसे, राष्ट्रपति की बेटी समझकर छोड़ देते तो समूचे अमरीका में जरूर बवाल उठ खड़ा होता। इन बातों का जिक्र मैंने महज यहाँ की व्यवस्था और लोगों की सोच को समझाने के लिए किया है।

अमरीका की सड़को पर जितनी कारें दौड़ती है उतनी कारें शायद ही विश्व के किसी दूसरे देश की सड़कों पर दौड़ती होगी। ताज्जुब मुझे, यह देखकर हुआ था कि, यहाँ पर इतना बड़ा ट्रैफिक है लेकिन उसके नियंत्रण के लिए हाईवे से लेकर गली कूचों, की सड़कों, तथा यहाँ के व्यस्ततम चौराहों तक पर, कही एक भी पुलिस वाला या दूसरा कोई खड़ा दिखाई नहीं पड़ता, बावजूद इसके सारा ट्रैफिक, बिना किसी बाधा या व्यवधान के सिर्फ, लाल और हरी बत्तियों के इशारों पर निर्बाध बहता रहता है। इसके पीछे का रहस्य भी मुझे, थोडे ही दिनों में समझ में आ गया था। इसके पीछे का रहस्य यह है कि यहाँ के लोग, नियम के विपरीत एक कदम भी आगे नहीं बढ़ते। रिहायशी बस्तियों में जहाँ दो रोड, एक दूसरे को क्रास कर रही होती है या एक रोड दूसरे से मिल रही होती है वहाँ, उनके मिलने के पाँच गज के पहले, स्टाप का एक बोर्ड लगा हुआ होता है। लोग अपनी कार लेकर जब उस स्टाप के बोर्ड के पास पहुँचते हैं, तो यह देखते हुए भी कि सड़क के किसी भी तरफ से कोई आ, जा नहीं रहा है, फिर भी वे वहाँ दो सेकंड के लिए ही सही, अपनी कार जरूर रोक देते हैं। इसके अलावे, यदि उन्होनें देख लिया कि कोई आदमी सड़क पार कर रहा है या करना चाहता है तो वे अपनी कार रोक कर खड़े हो जाते हैं और उसके सड़क की दूसरी पटरी पर पहुँच लेने पर ही आगे बढ़ते हैं। कभी-कभी तो मैं यहाँ तक देखा हूँ कि, कार में बैठे आदमी ने देख लिया कि कोई आदमी रोड क्रास करने वाला है और उसके रोड के किनारे पहुँचने तक वह अपनी कार निकाल ले जाएगा, फिर भी वह अपनी कार रोककर खड़ा हो जाता है। रोड क्रास करने वाला, उससे कहता भी है कि आप निकल जाइए, इसके बावजूद वह अपनी कार आगे नहीं बढ़ाता और इशारा करके उसे पहले रोड पार कर लेने को कहकर, अपनी कार रोके खड़ा रहता है। यहाँ पर, कार का हार्न बजाने का मतलब है जिसके लिए उसने हार्न बजाया है उसे गाली देना। हार्न बजाना यहाँ मना नहीं है लेकिन अगर किसी ने, हार्न बजा दिया, तो लोगों को लगता है कि बजाने वाले ने उन्हें गाली दे दिया और वे चिढ़ जाते हैं। इसलिए कार की हार्न यहाँ व्यस्त से व्यस्त रोड पर भी कभी सुनाई नहीं पड़ती। यहाँ पर हाईवे से लेकर हर जगह, कार दौड़ाने की रफ्तार निर्धारित की हुई होती है। इसे चेक करने के लिए पुलिस, किसी जगह छुपकर अपना राडार लेकर बैठ जाती है और आती जाती कारों की स्पीड चेक करती रहती है। जो कार स्पीड लिमिट से ज्यादा रफ्तार में भाग रही होती है उसके पीछे वे अपनी कार दौड़ा देते हैं, और पुलिस की कार अपने पीछे लगी देख या उसका सिगनल पाते ही, तेज रफ्तार कार दौड़ाने वाला अपनी कार एक किनारे रोक कर स्टिल मुद्रा में अपनी सीट पर बैठ जाता है। उस समय जब पुलिस उसके पास पहुँचती है तो, किसी को भी हिलडुल करने की इजाजत नहीं है, अगर उसने हिलडुल किया तो पुलिस उसे गोली मार सकती है इसलिए लोग एकदम से स्टिल होकर बैठ जाते हैं और जब पुलिस उन्हें इसकी इजाजत देती है तभी वे हिलडुल करते हैं। पकड़े गए आदमी से पुलिस निर्धारित जुर्माना वसूलने के साथ, उसके लाइसेंस में यह घटना दर्ज कर देती है। तीन दफा उसी तरह की गलती करते पकड़े जाने पर, उसका लाइसेंस रद्द हो जाता है। अमरीका में किसी के कार का लाइसेंस रद्द होने का मतलब है उसके पाँव तोड कर उसे अपंग बना देना।

यहाँ पर पुलिस, ज्यादातर मामलों में समूची घटना की वीडियो बनाती चलती है। अगर उसने किसी को कोई जुर्म करते पकड़ लिया, और वह आदमी पुलिस से रहम के लिए गिड़गिडाने लगा या उसे धमकाने, अपने प्रभाव या रसूख का रौब झाड़ने लगा या उसके काम में बाधा डालने के लिए दूसरा कोई हथकंडा अपनाने लग गया तो पुलिस उसे, उसके हर कदम पर, अगाह करने के साथ, उसके हर व्यवहार पर दंड की संबंधित धाराएं लगाती चलती है। मिसाल के तौर पर, अगर पुलिस ने किसी को अवांछित हरकत करते पकड़ लिया और हरकत करने वाला, पुलिस से, अपने को छुड़ाने के लिए, उसके सामने रोने, घिघियाने लगा तो पुलिस वाले, उसे आगाह कर देते हैं कि तुम्हें ऐसी या इस तरह की कोई बात नहीं करना चाहिए था तुमने ऐसा किया, इसलिए तुमने अपने असल जुर्म के साथ एक और जुर्म कर दिया है और इस जुर्म की सजा यह है और हम तुम्हारे ऊपर, इस जुर्म के लिए, फला धारा के अन्तर्गत, एक नया मुकदमा दर्ज करते हैं। यहाँ के लोग, यह सब अच्छी तरह जानते हैं इसलिए पुलिस जब उन्हें, जुर्म करते पकड़ लेती है तो वे, किसी भोली गाय की तरह, जैसा वह कहती है वैसा करते चले जाते हैं। उससे कोई तीन तकड़ या बहस मुबाहसे के चक्कर में नहीं पड़ता। कोर्ट में जज के सामने भी पुलिस को बार-बार अपना पक्ष रखने के लिए पेश होने की जरूरत नहीं होती, जुर्म करने वाले के सारे बयान, सबूत मय वीडियो फिल्म के, उनका अटार्नी, जज के सामने पेश कर देता है। वैसे यहाँ पर पुलिस इतना सक्षम होती है कि छोटे मोटे मामले, मौके पर ही जुर्माना वसूलकर, फाइनल कर देती है। मिसाल के तौर पर अगर, रोड पर कही दो कारों में भिड़ंत हो गई तो पुलिस दोनों को पकड़कर थाने नहीं ले जाती। घटना स्थल का जायजा लेकर वह देख लेती हैं कि गलती किसकी है जिसकी गलती उसकी समझ में आ जाती है, उस पर जुर्माना ठोंककर उसके लाइसेंस में इसे दर्ज कर देती है, और साथ ही उनकी कारें, कितने प्रतिशत तक डैमेज हुई है मौके पर ही इसका आंकलन करके इंश्योरेन्स कंपनी को लिखकर दे देती हैं, और कंपनी पुलिस के उसी लिखे पर उस केस का निपटारा कर देती है। इंश्योंरेस कंपनियाँ यदि आदमी चाहे, तो उसकी कार को, गैरेज में ले जाकर, मरम्मत करवा देते हैं यदि नहीं तो उन्हें, टूट फाट के पैसे दे देती हैं। इसके लिए किसी को, अपना काम धंधा छोड़कर, किसी के आगे पीछे भागने की, या दफ्तरों के चक्कर लगाने की जरूरत नहीं पड़ती।

यहाँ पर, रोड पर या किसी और जगह, यदि कोई दुर्घटना घट जाती है, तो पुलिस की गाड़ियों के साथ इमर्जेंसी और फायर ब्रिगेड की गाड़ियाँ एक साथ हाउॅ हाउॅ करती घटना स्थल की तरफ दौड़ पड़ती है। हॉउ हॉउ की आवाज सुनते ही जिस लेन से वे जा रही होती है, वह लेन छोड़कर लोग अपनी कारें, दूसरी लेन पर लेकर चले जाते हैं और वे गाडयाँ, बिना किसी रूकावट या बाधा के, सरसराती, घटनास्थल की तरफ बढ़ती चली जाती हैं। यदि घटना, किसी ऐसी जगह पर हुई हो, जहाँ गाड़ियों का पहुँचना असंभव होता है, तो उस जगह के लिए हेलीकाफ्टर रवाना हो जाते हैं। यहाँ पर पुलिस की पहली प्राथमिकता होती है घायल या विपत्ति में फंसे आदमी की जान बचाना।

अमरीका में पिस्टल, रिवाल्वर से लेकर दूसरे तमाम छोटे बड़े हथियार गाजर-मूली की तरह, दुकानों में बिकने के लिए रखे हुए होते हैं। जिसका जितना जी चाहे और जैसा हथियार, पैसा भुगतान करके खरीद सकता है। हथियार खरीदने या रखने के लिए, यहाँ पर न तो किसी पर कोई पाबंदी या बंदिश है और न, ही उसके लिए किसी को किसी तरह की अनुमति या लाइसेंस ही लेने की जरूरत होती है। यहाँ पर अपने बचाव के लिए यदि किसी ने, किसी को गोली मार दिया तो यहाँ का कानून, गोली मारने वाले के ही पक्ष में खड़ा होता है। सिर्फ उसे इतना भर, साबित करने की जरूरत होती है कि, गोली उसने अपनी जान बचाने के लिए मारा था। इसे समझने के लिए, यहाँ एक घटना का जिक्र कर रहा हूँ। वह घटना कुछ य है कि एक बदमाश किसी का घर लूटने के लिए, उसके घर की खिड़की तोड़ने लगा। संयोग से उस घर के आदमी को, इस बात की जानकारी हो गई। उसने, इसकी सूचना पुलिस कंट्रोल को दे दिया, इसी बीच लुटेरे को भी भनक लग गई कि घर का मालिक, पुलिस को फोन कर दिया है इसलिए वह वहाँ से भाग खड़ा हुआ। पुलिस वाले आए और अपनी गाड़ी, कहीं दूर खड़ी करके, उस घर के बाहर के उस कोने से, जहाँ अंधेरा था वहाँ से चुपके चुपके घर की तरफ बढ़े, भीतर बैठा आदमी समझा लुटेरे, फिर चुपके चुपके उसके घर की तरफ बढ़े आ रहे है जैसे ही पुलिस उसके घर के नजदीक पहुँची उसने अपनी राइफल उठाया और दो पुलिस वालों को वहीं ढेर कर दिया था। यह घटना कोई छोटी घटना नहीं थी। इसके लिए उसे आजीवन जेल की सजा हो सकती थी लेकिन उसे कुछ भी नहीं हुआ था, इस ग्राउंड पर कि उसने पुलिस वालों को बदमाश समझ कर मारा था।
इस समय जब मैं अपना यह संस्मरण लिख रहा हूं तो मुझे अपने साथ घटी एक घटना की याद हो आई है और उसके याद आते ही मैं सिहर उठा हूँ। जैसा मैं पहले ही बता चुका हूँ कि अमरीका में चाहे जितनी बड़ी रिहायशी कालोनी हो, उसके भीतर हमेशा श्मशान का सन्नाटा पसरा हुआ रहता है। लगता है हम किसी ऐसे बियाबान में पहुँच गए है जहाँ घर तो बहुत है लेकिन उसके बाशिंदे उसे छोड़कर कहीं चले गए हैं। मुझे सुबह, टहलने की आदत थी। ठंड के चलते मैं सुबह कहीं नहीं निकलता था लेकिन दोपहर में, अपनी ही लाइन के घरों के किनारे किनारे, चलने के लिए बनी पगडंड़ी पर आठ दस चक्कर लगा लिया करता था। रास्ता भटकने के डर से मैं, उसके आगे कभी नहीं बढ़ता था। लेकिन, जब मुझे वहाँ रहते हुए कुछ अर्सा गुजर गया तो, एक दिन मन में आया, कि चलो आज कालोनी में ही कुछ दूर तक चक्कर मार, आते हैं। चलते चलते मैं, एक ऐसी जगह पहुँचा, जहाँ पर घरों के सामने, लगे पेड़ों में फल आए हुए थे और उन फलों के चलते, वहाँ पर रकम रकम के परिंदे, जो भारत में दिखाई नहीं पड़ते और जिनकी बोलियाँ बड़ी मधुर और अनोखी थी, भारी तादाद में, पेड़ों पर फुदक रहे थे। पेड़ों की ऊँचाई, ज्यादा से ज्यादा, हरसिंगार के पेड़ के बराबर की थी और करीब करीब, हर पेड़ पर, पक्षियों ने अपने घोंसले बना रखे थे। उन खूबसूरत परिंदों को देखते और उनकी मोहक बोलियाँ सुनते, मैं काफी दूर निकल गया था। लौटने लगा तो मैं अपने घर की दिशा की तरफ जाती सड़क पकड़ कर आगे बढ़ा लेकिन थोड़ी ही दूर जाने पर, सड़क का डेड एंड आ गया था और वही पर वह यू टर्न ले ली थी। मैं उस सड़क को पकड़ कर आगे बढ़ा, तो काफी आगे जाकर उसने फिर यू टर्न ले लिया था और इस तरह, दो तीन यू टर्न और डेड एंड के बाद मैं अपने घर की दिशा भी भूल गया था। सड़कें एकदम वीरान थी और वहाँ चारों तरफ चिड़ियों की चहचहाहट को छोड़कर, दूसरी कोई आवाज सुनाई नहीं पड़ती थी। मैं जिस भी तरफ जाता कुछ आगे जाने पर मुझे वही यू टर्न और डेड एंड मिल जाता। एक जगह पहुँचा तो मुझे घर के पिछवाड़े से, निकलता एक रास्ता दिखाई पड़ा। सोचा पिछवाड़े के रास्ते का शार्टकट पकड़कर मैं यू टर्न के उस चक्रव्यूह को भेद लूँगा। पिछवाड़े के रास्ते से आगे बढ़ा तो उस कालोनी का पहला आदमजात मुझे दिखाई पड़ा था। वह एक औरत थी जो अपने मकान के पीछे, अपना गैरेज खोलकर उसमें से, अपनी कार बाहर निकालने या उसे बंद करने जा रही थी। उसे देखकर मैंने, अपने हाथ उठाकर उसे हैलो किया और सोचा कि उससे अपने घर का रास्ता पूछ लूं लेकिन मेरे हैलो कहते ही उसके दो ऊँचे, पिलंद और खूँखार कुत्ते, जो उसके पास ही खड़े थे उनकी नजर मुझ पर पड़ गई थी और दोनों भॉव भॉव करते मुझ पर टूट पड़े थे। दोनों कुत्ते, देखने में इतने भयानक और खूँखार थे और वे जिस तरह, मुझ पर टूटे थे, मुझे लगा कि दोनों मुझे चीर फाड़कर रख देगे। लेकिन कुशल यह हुआ था कि कुत्तों के मेरे ऊपर टूटते ही औरत ने कुत्तों का नाम लेकर नो डागी नो, स्टाप, स्टाप देयर कहकर, उन्हें डाटना शुरू किया था और वे दोनों उसकी डाट सुनकर वहीं रूक गए थे। कुत्तों का, रौद्र रूप और उनका अपने पर टूट पड़ना देख, मेरा तो खून ही सूख गया था। इसके बाद मेरी उस औरत से अपने घर का रास्ता पूछने की हिम्मत ही नहीं पड़ी थी और मैं वहाँ से तेजी से चलता पिछवाड़े का रास्ता तय करके मुख्य सड़क पर आ गया था। इसके बाद इस आस में कि हो सकता है फिर कोई आदमजात मुझे मिल जाएगा जो मुझे मेरे घर का रास्ता बता दे या चलते चलते मैं खुद, अपने घर का रास्ता ढूँढ लूँ, मैं पुनः सड़क पर भटकने लग गया था। थोड़ी देर भटकने के बाद, मुझे दस ग्यारह साल का एक लड़का, अपने टेरियर कुत्ते को जंजीर से पकड़े, अपने घर के सामने टहलता दिखाई पड़ गया था। मैं उसके पास पहुँचा, तो उसने अपने कुत्ते की जंजीर ढीली करके, मेरी तरफ दौड़ा दिया था। कुत्ता जब मेरे पास पहुँचा, तो मैं रूक गया था। मैंने लड़के से पूछा क्या तुम्हारा कुत्ता मुझे काटने के लिए मेरी तरफ दौड़ा आ रहा है? मेरे इतना पूछते ही लड़का बुरी तरह घबरा गया था और ना आ-ऽ ऽ उ कह कर उसने कुत्ते को, जंजीर से खींचकर मेरे पास से हटा लिया था। देन ओ के0 बात यह है कि मैं अपने घर का रास्ता भूलने के चलते यहाँ भटक गया हूँ क्या तुम बता सकते हो कि यहाँ फलॉ स्कूल किस तरफ है? दरअसल कालोनी के उस स्कूल से थोड़ी ही दूर पर मेरा घर पड़ता था, वहाँ पहुँच लेने पर मैं, अपने घर, आसानी से पहुँच लेता और स्कूल जैसी जगह को यहाँ का बच्चा बच्चा, जानता होगा, इसलिए मैंने, उस लड़के से, स्कूल का लोकेशन पछा था। लेकिन लड़का मुझसे इतना डरा हुआ था कि मेरी तरफ बिना देखे ही उसने ना आ ऽ ऽ उ कहकर, अपने कुत्ते को खींचता, अपने घर के भीतर घुस गया था।

(क्रमशः अगले अंकों में जारी...)

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मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ 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रचनाकार: सोमेश शेखर चन्द्र का यात्रा संस्मरण : एवरेस्ट का शीर्ष - 3
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