कहानी संग्रह - 21 वीं सदी की चुनिन्दा दहेज कथाएँ - (9) शुभकामनाओं का महल

SHARE:

कहानी संग्रह 21 वीं सदी की चुनिन्दा दहेज कथाएँ संपादक - डॉ. दिनेश पाठक 'शशि' अनुक्रमणिका 1 -एक नई शुरूआत - डॉ0 सरला अग्रवाल 2 -...

image

कहानी संग्रह

21 वीं सदी की चुनिन्दा दहेज कथाएँ

संपादक - डॉ. दिनेश पाठक 'शशि'

अनुक्रमणिका

1 -एक नई शुरूआत - डॉ0 सरला अग्रवाल
2 -बबली तुम कहाँ हो -- डॉ0 अलका पाठक
3 -वैधव्‍य नहीं बिकेगा -- पं0 उमाशंकर दीक्षित
4 - बरखा की विदाई -- डॉ0 कमल कपूर
5- सांसों का तार -- डॉ0 उषा यादव
6- अंतहीन घाटियों से दूर -- डॉ0 सतीश दुबे
7 -आप ऐसे नहीं हो -- श्रीमती मालती बसंत
8 -बिना दुल्‍हन लौटी बारात -- श्री सन्‍तोष कुमार सिंह
9 -शुभकामनाओं का महल -- डॉ0 उर्मिकृष्‍ण
10- भैयाजी का आदर्श -- श्री महेश सक्‍सेना
11- निरर्थक -- श्रीमती गिरिजा कुलश्रेष्‍ठ
12- अभिमन्‍यु की हत्‍या -- श्री कालीचरण प्रेमी
13- संकल्‍प -- श्रीमती मीरा शलभ
14- दूसरा पहलू -- श्रीमती पुष्‍पा रघु
15- वो जल रही थी -- श्री अनिल सक्‍सेना चौधरी
16- बेटे की खुशी -- डॉ0 राजेन्‍द्र परदेशी
17 - प्रश्‍न से परे -- श्री विलास विहारी

(9) शुभकामनाओं का महल

डॉ. उर्मिकृष्‍ण

भैया ने टिकट हाथ में थमाते हुए कहा, ‘परसों का रिजर्वेशन मिला है चीनू।' टिकट पकड़ते हुए मेरा दिल धक-से बैठ गया। मुझे आए पन्‍द्रह दिन बीत गए। पन्‍द्रह दिन तो भैया और माँ ने लगवा दिए, मैंने तो आते ही ऐलान कर दिया था कि एक सप्‍ताह रहूँगी। दूसरे ही दिन से सीट रिजर्व करवा देने के लिए भैया के पीछे पड़ गई थी। ‘‘तीन साल में तो आई हो चीनू। कम-से-कम एक महीना तो रहो।'' भैया के मुँह से बार-बार जब यही वाक्‍य सुना तो पन्‍द्रह दिन के लिए रह ही जाना पड़ा। रुकने का आग्रह तो नन्‍हें भतीजे से लेकर भाभी, माँ, बाबू जी और पड़ोस के चाचा जी तक ने किया। मैं जानती थी, माँ का आग्रह तो कभी चुकने वाला नहीं। छः महीने रह जाँऊ, फिर भी जाने के लिए नहीं कहेगी। और सभी के आग्रह में स्‍नेह-पगा व्‍यवहार था। पन्‍द्रह दिन जैसे हवा में उड़ गए। बुआ, चाचा, ताऊ के यहाँ दावतें, सखी-सहेलियों के साथ सैर-सपाटे, भतीजे-भतीजी के साथ खेल, भाभी की चुहल और देर रात तक माँ के साथ बतियाते ये दिन गुजर गए।

भैया मुझे टिकट थमा यह कहते बाजार चले गए थे कि तेरे लिए कुछ मिठाई वगैरह का आर्डर दे आऊँ।

मेरी मुटठी में टिकट था और मैं बरामदे में खड़ी थी। इस समय माँ पूजा में बैठी थी। भाभी रसोई में व्‍यस्‍त। बच्‍चे स्‍कूल में और बाबूजी सब्‍जी-बाजार गए थे यानी मैं अकेली बरामदे में खड़ी बाहर लॉन की घास देख रही थी। नन्‍हीं दूब, जिसे हम भाई-बहनों ने मिलकर खेल-खेल में रोपा था। इसमें प्रथम बार एक-एक हरी पत्ती ने हमें कैसी अवर्णनीय प्रसन्‍नता दी थी। बाबुल के इस घर का सब कुछ बदल चुका है, पिछले छह सालों में सिवाय इस दूब के।

भैया का बिजनेस खूब अच्‍छा चल निकला है और पिछले साल उन्‍होंने बाबुल के इस पुराने घर को बंगले में बदल डाला है। पड़ोस की कुछ और जमीन खरीदकर घर के छोटे-छोटे कमरे अब बड़े-बड़े कर दिए गए हैं। चार कमरों को मिला, एक बड़ा ड्राइंगरूम निकलता है जिसकी सज्‍जा सुघड़ भाभी की सुरुचि और सौंदर्य-बोध का परिचय देती है। पहले दिन जब मैं आई थी तो माता जी और पिताजी ने बड़े गर्व से घूम-घूम कर यह घर दिखाया था। माँ ने अपना बाथरूम दिखाते हुए कहा, मुझे तो अब बड़ा आराम हो गया बेटी। सोने के कमरे के साथ बाथरूम है, नहीं तो इस बुढ़ापे में आंगन पार करके रात-बिरात गुसलखाने जाना मेरे बस का कहाँ था। तुम्‍हारे बाबू जी ने पढ़ने-लिखने के कमरे के साथ भी गुसलखाना बनवा दिया है राज से।'

माँ, भैया बिजनेस में अच्‍छे जम गए हैं न?'

‘बेटी पांच लाख से बिजनेस शुरु किया, फिर भी न जमता भला। पैसे को पैसा खींचे है बिटिया।'

पांच लाख! मेरी आँखें फटी रह गई। ‘इतना तो बाबू जी के पास था नहीं'?' कहते हुए मैंने आश्‍चर्य से माँ को देखा। अपने मन की बात भी होठों तक आई, जिसके लिए मैंने इतनी दूर की यात्रा की थी।

‘था तो नहीं। पर कहीं-न-कहीं से जुगाड़ किया, बेटे की खातिर।' माँ ने कह डाला।

‘बेटी के लिए भी कुछ सोच लेती।' बात होठों तक आकर रुक गई। और हमें पांच-दस हजार जुटाने में जो मुश्‍किलें आ रही थीं, वे आँखों के आगे नाच-नाच गईं।

‘मन में पक्‍की धुन हो तो.............' माँ के शब्‍द मेरे हृदय में गहराई तक उतर गए-फिर भी माँ, कैसे जुटाया इतना रुपया?

‘बेटी दो लाख बैंक से लोन लिया। पचास, हजार तेरे भैया ने अपनी नौकरी से इकटठे किए, पचास हजार तेरी भाभी के पिता ने दिए और दो लाख तेरे बाबू जी ने दिए जो तेरी शादी, दहेज के लिए रखे थे।' मैं आश्‍चर्य में डूबी अबोली ही रह गई। मुझे यह तो पता था कि मेरे दहेज के लिए पिता ने काफी रुपया जुटा रखा है, पर वह दो लाख होगा, यह कल्‍पना नहीं की थी। मैंने बहुत सादे-समारोह से शादी करने का निश्‍चय कर रखा था। फिर विजातीय समीर के साथ शादी करने का फैसला घर में बवाल खड़ा कर गया। जब मैंने यह सुनाया तो पिता जी की आँखों से चिंगारियाँ फटने लगी थीं। बहुत क्रोध, चिढ़ रोने-पीटने के बाद वे माने थे, पर दिल खोल कर दहेज देने में पीछे हट गये। हमने स्‍वाभिमान में उतना भी नहीं लिया, जितना वे दे रहे थे। पिछले साल से समीर मेरे पीछे पड़ा हुआ था। तुम सहारनपुर जा कर पिता या भैया से कुछ रुपयों का इंतजाम करने को कहो।

‘समीर, अब मुझ से नहीं मांगा जाएगा भैया या पिता जी से कुछ।' ‘दीपा! मैं उधार माँगने को कह रहा हूँ दहेज या खैरात नहीं। जैसे ही हमारे पास होंगे, लौटा देंगे।'

‘उधार ही माँगना है तो फिर कहीं से माँगलो।'

‘कहाँ से? पिता देंगे नहीं, तुम्‍हें पता है। बबली और रमेश मना कर चुके हैं। और फिर मैं समझता हूँ बाबू जी से माँगने में क्‍या बुरा? रही हमारे स्‍वाभिमान की बात, तो अपनों से कैसा स्‍वाभिमान?

अब वह सब बातें पुरानी हो चुकी हैं। बाबूजी हमें कितना चाहते हैं।

पिछली बार तो जब मैं उनसे मिला था, वे मुझ से भी नौकरी छोड़ कोई बिजनेस करने को कह रहे थे।'

‘फिर तुमने उनसे क्‍यों नहीं की पैसों की बात?'

‘बस मैं संकोच कर गया। और बिजनेस करने का तो मेरा मूड भी नहीं था। यह अधूरा मकान बन जाए बस।'

‘एक बार तो मैंने समीर को दृढ़ता से मना कर दिया था-जो कुछ करना होगा, नौकरी में से बचा कर ही करेंगे। पर महंगाई थी जो किसी तरह बचत शब्‍द को बीच में आने ही नहीं देती थी। समीर के ऑफिस में चलने वाली राजनीति के कारण दो साल से उसका प्रमोशन रुका पड़ा था। जो कुछ थोड़ी बहुत बचत हुई थी, उसे जमीन खरीदने में लगा दी। अब किराए के एक कमरे में रहना मुश्‍किल हो रहा था, छोटा देवर पढ़ने के लिए रहने आ गया था। चार कमरे का मकान जल्‍दी बना लेने की योजना इसलिए भी थी कि फिर एक कमरे में मैं अपना ब्‍यूटी-पार्लर चला लूंगी। आखिर, वह डिप्‍लोमा कब काम आएगा? खूब लंबी झड़प और बहस के बाद मैं बाबू जी से कुछ रुपये उधार मांगने की बात सोच कर आ ही गई थी। तीन साल बाद आई थी। इसलिए सब बड़े खुश हुए मुझे देख। उस दिन खाना खाते समय बाबूजी ने पूछा था, अब कितना रह गया है तुम्‍हारा मकान चीनू?'

मैंने बड़े ठंडे शब्‍दों में कहा था, ‘अभी तो बहुत है बाबूजी।' पैसों की मुश्‍किल आ रही है, यह कहना चाह कर भी न कह सकी, जैसे जीभ बंध गई।

उस दिन माँ ने बाबूजी की किताबों का कमरा दिखाते हुए कहा था, तुम्‍हारे बाबू जी ने अब अपने पास कुछ नहीं रखा है सिवाय इन किताबों के।'

एक बार मन में आया, माँ से ही कह दूँ कि वह भैया से कुछ दिलवा दें। पर माँ बेचारी का भोला मुँह देख कुछ कहने का साहस नहीं हुआ। इसे क्‍यों उलझन में डालूं अब बुढ़ापे में, भैया से सीधे क्‍यों न बात कर लूँ। आखिर मैं भी बराबरी की हिस्‍सेदार हूँ। दूसरे ही क्षण मुझे समझ आ गई, भैया की कमाई में मेरा क्‍या हिस्‍सा? रही पैत्रिक मकान की बात, तो उस जर्जर मकान के हिस्‍से में पांच-सात हजार रुपए हक का मांग कर ओछी तो बनूंगी ही साथ ही इकलौते भैया का स्‍नेह भी गंवा बैठूं शायद। जिंदगी में स्‍नेह का रंग भरने वाले तीज-त्‍यौहारों का महत्‍व इतने से हक की मांग करने में सदा के लिए डूब सकता है। नहीं-नहीं यह कभी नहीं होगा। भैया के साथ नाश्‍ते की मेज पर उपरोक्त बातें सोचते, मेरा सिर हिल उठा था। कुछ अस्‍फुट शब्‍द भी फिसल गए थे।

‘क्‍या बात है चीनू?'

‘कुछ नहीं भैया।'

‘तुम कुछ परेशान हो?'

‘नही तो?'

‘समीर की याद आ रही होगी।' प्‍लेट में पकौड़े डालते हुए भाभी ने मजाक किया। मैं बमुश्‍किल मुस्‍कराई।

‘हाँ, तुम्‍हारे मकान का क्‍या रहा? अभी तक मैंने उसका तो कुछ पूछा ही नहीं। भैया ने दूसरी बात छेड़ी थी।'

‘अभी तो नींव भरी पड़ी है बस।'

‘उसे जल्‍दी बनवा डालो! आगे सीमेंट, लोहा, लकड़ी सब महंगा हो जाने वाला है।' भैया ने अनुभवी व्‍यापारी वाली बात कही थी।

‘चाहते तो हम भी यही हैं। कुछ आर्थिक हालत ठीक होते ही पहले मकान ही पूरा करेंगे भैया।' मैंने कह तो डाला, पर फिर भैया की सूरत देखने का साहस नहीं हुआ उस समय।

‘मैंने टिकट लाकर पर्स में रख दिया और भाभी को यह समाचार सुनाने रसोई में पहुँची, परसों का रिजर्वेशन मिल गया है भाभी।'

‘बहुत जल्‍दी हो रही है तुम्‍हें, मियां के पास जाने की। कुछ दिन और रह जाती।' भाभी के अंतिम शब्‍द उदासी भरे थे।

परसों चीनू को जाना है। यह खबर बाहर फैलते ही सब मेरी तैयारी में जुट गए। माँ ने नौर को दर्जी के पास भेजा, ब्‍लाउज सिले या नहीं। पुराने ट्रंक खोलकर मुझे कई तरह की चीजें, बटुआ, डिबिया, मोती, सीप, पुराने सिक्‍के, कई तरह की कलमें और जाने क्‍या-क्‍या दिखाने लगी माँ, कहती रही इसे ले जा, इसे ले जा। यह मोतियों की माला मुझे खूब पसन्‍द थी बचपन में।

‘माँ तुम क्‍यों भूल जाती हो, अब मैं बड़ी हो गई हूँ।' माँ हँसकर मुझे देखती है, मेरे लिए तो सदा छोटी ही रहोगी।'

‘पिता भैया को पूरी तरह लिस्‍ट लिखवा रहे थे- आम, पापड़, बड़ियां, सराफे से काजू-बर्फी, रसभरी अच्‍छी पैक करवाना, फलों का टोकरा, एक आम का अलग बना लेना।'

‘मिठाई के लिए तो मैं कालू हलवाई को आर्डर दे भी आया बाबूजी।' भैया ने लिस्‍ट बनाते हुए कहा।

‘मैं नहीं ले जाऊँगी इतना सामान। इतना सामान कैसे जाएगा?'

‘तुझे कौन सिर पर रखना है। यहाँ से हम रखवा देंगे, वहाँ समीर उतरवा लेगा।' भैया ने जितने प्‍यार से कहा, उसके आगे मैं बोल न सकी।

घर में अधिक काम हो रहा था, पर लड़की की विदाई की उदासी सर्वत्र झलक रही थी। तीन बजे तक रसोई की व्‍यस्‍तता से निबट भाभी मेरे पास आ बैठीं। कुछ साड़ियाँ दिखाने लगीं। मेरे बहुत मना करने पर भी एक साड़ी रखनी ही पड़ी।

छोटा भतीजा स्‍कूल से आया। आदतन उसने किताबें एक ओर फेंकीं और ट्रांजिस्‍टर के कान उमेठ दिए उनमें दर्द भरी आवाज फूट पड़ी-भैया की दीन्‍हें महल दुमहल हमको दियो परदेश........। गाना सुनते ही मेरी आँखें छलछला आईं। भाभी ने देखा तो बोल पड़ीं ‘खुद परदेश रहना पसंद किया बीबी रानी, अब क्‍यों मन भारी करती हो।' भाभी के सीने पर टिकते ही मेरी छलछलाई आँखें बरसात बन गईं। काश, भाभी को कह सकती मैं अपना दर्द!

दो दिन तो पलक झपकते बीत गए। मिलने वालों का तांता लगा रहा। छोटे-मोटे उपहारों से एक और बैग तैयार हो गया। दरवाजे पर टैक्‍सी खड़ी थी। मैं माताजी, पिताजी के गले लगकर फूट-फूट कर रो पड़ी। माँ ने आँचल से आँसू पोंछते हुए कहा, इतना तो तू शादी की विदाई में भी नहीं रोई चीनू। मत रो बेटी, लम्‍बा सफर है सिर दूखेगा।

टैक्‍सी में बैठते हुए मैंने नन्‍हें भतीजे को प्‍यार करते हुए कहा, ‘अब तुम आना जल्‍दी बुआ के यहाँ।'

उत्तर भाभी ने दिया, ‘कह दे बेटे, बुआ जी तुम नए मकान का मुहूर्त करोगी, तब जरुर आएंगे।'

मेरी आँखें एक बार छलक आईं। भैया ने ड्राइवर से जल्‍दी चलने को कहा। गाड़ी न निकल जाए। टैक्‍सी की रफ्‍तार तेज हो गई। पिछली खिड़की से माँ, बाबूजी, भाभी, चाचा, बुआ नन्‍हा और बहुत से पड़ोसी हाथ हिलाते दिखते रहे। मकान के नुक्‍कड़ के मोड़ पर टैक्‍सी मुड़ी तो सब कुछ ओझल हो गया था। एक बार गर्दन पीछे देखने फिर घूम गई। अब दीख रही थी-भैया की ऊपरी मंजिल की खिड़की, सांझ के सूरज की किरणों में शीशा चमक कर सुनहरा रंग लौटा रहा था। कितना सुंदर लग रहा था भैया का महल। अनेकों शुभकामनाओं से मेरा मन भर गया, उस महल के लिए।

टे्न चलने लगी तब भैया ने कहा, ‘पहुँच कर पत्र जल्‍दी लिखना और मकान जल्‍दी पूरा करवा लेना चीनू। समीर से कहना कुछ दिन चाहे छूटटी ले ले।' ‘भैया..... ट्रेन के चलने की छुक-छुक और प्‍लेटफार्म के शोर में मेरे शब्‍द डूब गए। समीर का कैसे सामना करुँगी? सोचते-सोचते नींद आ गई।

मुझे लेने आए समीर का प्रफुल्‍लित चेहरा देख कर मेरा बुझा मन कुछ राहत पा गया। उसने मुझे दरवाजे से उछल कर उतार लिया, ‘दीपा-बहुत कमजोर लग रही हो?' ठीक तो रही ना।'

‘बहुत मजे किए। पन्‍द्रह दिन चुटकी बजाते निकल गए।'

‘मैंने भी जोर-शोर से मकान शुरु करवा दिया है।'

‘मकान! पैसों का इन्‍तजाम हो गया?'

‘बहुत गुरू हो, बनो मत। तुम्‍हारे जाने के एक सप्‍ताह में ही भैया का भेजा ड्राफ्‍ट मिल गया था। पचास हजार में तो बहुत कुछ खड़ा कर लूँगा। रहने लायक तो हो ही जायेगा। बाकी सजावट बाद में करते रहेंगे।'

टैक्‍सी घर की ओर भाग रही थी। मेरे मन में बाबू जी और भैया के लिए शिकायतों का जो पहाड़ खड़ा हो गया था, एक क्षण में टूट कर चूर-चूर हो गया। उस सपाट जगह पर खड़ा था भैया के लिए शुभकामनाओं का एक और महल। मैं कितनी बौनी लग रही थी उस महल के नीचे।

'''

संपा. शुभ तारिका, कहानी लेखन

महाविद्यालय, अम्‍बाला छा. (हरि.)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: कहानी संग्रह - 21 वीं सदी की चुनिन्दा दहेज कथाएँ - (9) शुभकामनाओं का महल
कहानी संग्रह - 21 वीं सदी की चुनिन्दा दहेज कथाएँ - (9) शुभकामनाओं का महल
http://lh5.ggpht.com/-GUWmI6mPdIU/TeXzQpwhnsI/AAAAAAAAJ70/oag_xPrFNws/image2.png?imgmax=800
http://lh5.ggpht.com/-GUWmI6mPdIU/TeXzQpwhnsI/AAAAAAAAJ70/oag_xPrFNws/s72-c/image2.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2011/06/21-9.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2011/06/21-9.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content