1. मैं बच्चा बनके फिर से रोना चाहता हूं...
के अपनी बदगुमानियों से उकता गया हूं,
मैं बच्चा बनके फिर से रोना चाहता हूं।
न हमराह न हमराज़ इन गलियों में लेकिन,
मैं इस शहर में अपना एक कोना चाहता हूं।
सुकूं आराम की मोहलत के कैसी ये क़ज़ा* है,
मैं अपनी मां के आंचल सा बिछौना चाहता हूं।
के यूं ख्वाहिश जगी दाग़ औ कीचड़ के फाहों की,
मैं बच्चा बनके राह गलियारों में सोना चाहता हूं।
सिसकना सब्र से ईमां का अब होता नहीं रक़ीब*,
ना बन दस्त ए गिरह रफ़ीक*, मैं खोना चाहता हूं।
मुसल्लम ए ईमां हूं क़ाफिर की सज़ा पाई है,
अब बोसा* ए संग ए असवद* भी धोना चाहता हूं.. (पंशु.)
क़ज़ा- मौत। रक़ीब - दुश्मन। रफ़ीक - दोस्त।
बोसा - चुंबन। संग ए असवद - मक्का का पवित्र पत्थर।
2. तेरी लाडो मुन्नी मेरी..
दर ओ दीवार कभी बनते हैं घरों से सजते हैं,
रहा करे सुपुर्द ए खाक़ मेरी बसुली*, कन्नी मेरी।
दरिया ए दौलत में उसे सूकूं के पानी की तलाश,
तर बतर करती बूंद ए ओस सी चवन्नी मेरी।
तू सही है गलत मैं भी नहीं ना कोई झगड़ा है,
वो आसमां उक़ूबत* का ये घर की धन्नी मेरी।
मेरी गुलाटियों औ मसखरी को मजबूरी न समझ,
उछाल रुपये सा न मार ग़म की अठन्नी मेरी।
रगों में इसकी खून मेरा तो हो दूध तेरा भी,
सर ए दुनिया रहे चमके तेरी लाडो मुन्नी मेरी।
बसुली - राजमिस्त्री का औजार। उक़ूबत - दर्द
3. सलाम ए सितमगर..
लो आ गया वो फिर से उसी शहर उन्हीं गलियों में,
नसीब उसका, रिवायत वही राह ए गुजर बनने की।
ना कर वादे, वादों पे नहीं अब और ऐतबार उसे,
मर चुकी ख्वाहिश भी हमराह ए सफर बनने की।
अपने शागिर्द की उस्तादी का भरम वो तोड़ चला,
हो के रुसवा बढ़ी चाहत यूं रूह ए इतर बनने की।
उसका एहतराम वो संगदिल भी थोड़ा सनकी भी,
हो के बेगैरत पड़ी आदत ज़िक्र ए फिक़र बनने की।
उसने परखा परखने में कोई अपना नहीं निकला,
मुए की आदत थी मुई लख़्त ए जिगर बनने की।
© पंकज शुक्ल। 2011।
परिचय:
संप्रति: रीजनल एडीटर, नई दुनिया/संडे नई दुनिया, मुंबई
जन्मं- 30 दिसंबर 1966। मंझेरिया कलां (उन्नाव, उत्तर प्रदेश) में।
परिचय- शुरुआती पढ़ाई जोधपुर और फिर गांव के प्राइमरी स्कूल में। कॉलेज की पढ़ाई कानपुर में। सिनेमा की संगत बचपन से। सरकारी नौकरी छोड़ पत्रकारिता सीखी, अमर उजाला में तकरीबन एक दशक तक रिपोर्टिंग और संपादन। फिर ज़ी न्यूज़ में स्पेशल प्रोग्रामिंग इंचार्ज। प्राइम टाइम स्पेशल, बॉलीवुड बाज़ीगर, मियां बीवी और टीवी, बोले तो बॉलीवुड, भूत बंगला, होनी अनहोनी, बचके रहना, मुकद्दर का सिकंदर, तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे, बेगम की महफिल, वोट फॉर खदेरन और वोट फॉर चौधरी जैसी टीआरपी विनिंग सीरीज़ का निर्माता-निर्देशक रहने के दौरान चंद बेहतरीन साथियों से मिलना हुआ। एमएच वन न्यूज़ और ई 24 की लॉन्चिंग टीम का हिस्सा। ज़ी 24 घंटे छत्तीसगढ़ का भी कुछ वक्त तक संचालन। बतौर लेखक-निर्देशक पहली फीचर फिल्म "भोले शंकर" रिलीज़। फिल्म ने शानदार सौ दिन पूरे किए। अमिताभ बच्चन, लता मंगेशकर और बेगम अख्तर पर वृत्तचित्रों का निर्माण व लेखन-निर्देशन। बतौर पटकथा लेखक-निर्देशक 4 शॉर्ट फिल्में - अजीजन मस्तानी, दंश, लक्ष्मी और बहुरूपिया। चारों राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित और प्रशंसित। कई फिल्म फेस्टिवल्स में शामिल। विज्ञापन फिल्मों और कॉरपोरेट फिल्मों के लेखन और निर्देशन में भी सक्रिय।
संपर्क: pankajshuklaa@gmail.com
बहुत खूब लिखी है गजले अपने...
उत्तर देंहटाएंरवि शंकर जी,....
उत्तर देंहटाएंपंकज जी तीनो गजलें बेहद खूब शूरत लगी,
आपने गजलों से रूबरू कराया,...आभार,.
मेरे नए पोस्ट स्वागत है,...
अच्छी हैं. ग़ज़ल की पाबंदियों से थोड़ी दूर हैं. रदीफ़ और क़ाफिये पर थोड़ा ध्यान दें तो बेहतर होगा.
उत्तर देंहटाएंपंकज शुक्ल और रविशंकर जी अभिवादन ..सुन्दर ..प्यारी कृति
उत्तर देंहटाएं..भ्रमर ५
सुकूं आराम की मोहलत के कैसी ये क़ज़ा* है,
मैं अपनी मां के आंचल सा बिछौना चाहता हूं।
के यूं ख्वाहिश जगी दाग़ औ कीचड़ के फाहों की,
मैं बच्चा बनके राह गलियारों में सोना चाहता हूं।
बहुत खूब सर! तीनों ही गजलें एक से बढ़ कर एक हैं।
उत्तर देंहटाएंसादर
teeno ki teeno gazle umda, lajawaab.
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