मेजर हरिपालसिंह अहलूवालिया - एवरेस्ट की चुनौती : अंतिम भाग 4

SHARE:

एक पर्वतारोही की एवरेस्ट फतह की रोमांचक दास्तान (अंतिम भाग) पिछले अंक से जारी... इसी बीच फू दोरजी ने काफी तैयार कर ली जिसे पीकर हम आ...

image[2]_thumb_thumb

एक पर्वतारोही की एवरेस्ट फतह की रोमांचक दास्तान

(अंतिम भाग)

पिछले अंक से जारी...

इसी बीच फू दोरजी ने काफी तैयार कर ली जिसे पीकर हम आगे चलने के लिए तैयार हो गए। जब हमने अगली चढ़ाई आरंभ की, सुबह के ५-३० बजे थे। पहले मैं और फू दोरजी चले, कुछ मिनट बाद हमारे पीछे रावत और बोगी ने चढना शुरू कर किया। हम सब सामान से बुरी तरह लदे थे जो प्रतिव्यक्ति साठ पौण्ड के लगभग था। इसमें आक्सीजन के सिलेण्डर कैमरे व इनकी फिल्में तथा और दूसरी चीजें थीं। इस शिविर से आगे पांच सौ गज लम्बी एक पहाड़ी थी। इस पहाड़ी के बारे में मैंने पहले बहुत कुछ पढ़ रखा था। और अब मैं खुद इसके ऊपर चढ़ रहा था। यह पहाड़ी बहुत संकरी और तीखी है और इसके दोनों ओर गहरे ढाल हैं। इसलिए इसे 'रेजर्स एज' कहते हैं। इसके दाहिनी तरफ बर्फ का एक बड़ा-सा टुकड़ा निकला हुआ है, क्योंकि यहां हवा हर वक्त चलती रहती है। हमें इस बर्फ से सतर्क रहना होता है, क्योंकि इस पर पैर पड़ते ही यह टूट कर गिर सकती है। मैंने एक या दो कदम ही आगे रखे होंगे कि मैं भीतर से मानो जम ही गया। हवा बहुत तेज चल रही थी। आक्सीजन लेते रहने पर भी सांस लेना बहुत मुश्किल हो गया और मुझे लगा कि फेफड़े फट जाएंगे। फू दोरजी मुझसे १५ फुट आगे था। बैल- गाड़ी में बंधे हुए बैल की तरह मैं वहीं रुक गया। मेरे पैर जड़ हो गए। फू दोरजी मेरी कठिनाई को समझ गया और उसने मुझे इशारा करके बताया कि मैं बर्फ में जितनी भी जोर से पैर मार सकूं मारूं। लेकिन यह करना बहुत कठिन सिद्ध हुआ। तभी मुझे अपने भीतर गर्मी और रक्त फिर से नसों में दौड़ता महसूस हुआ और मैं आगे बढ़ने लगा। थोड़ो ही देर में हमने रेजर्स एज को आधा पार कर लिया।

हवा बहुत तेज चल रही थी। कई बार उसके कारण खड़े रहना भी कठिन हो जाता था। हमने अपनी कुल्हाड़ियां बर्फ में जमा दीं और रस्सों को एक बार फिर से कस लिया। हवा मानों बड़ी निर्दयता से हमारे ऊपर वार कर रही थी और हड्डियों के भीतर तक घुसी चली जाती थी। कई बार मुझे लगता कि अब रुकना पड़ेगा।

मुख्य पहाड़ी अब समाप्त हो गई थी और हम बायीं ओर मुड़े। अब हमारे सामने इससे भी कठिन कार्य था-स्लेट की चट्टानों की एक विशाल दीवार को पार करना। इस पर हाथ या पैर टिकाने की कोई जगह नहीं थी। एक बार फिसलने का अर्थ होता १५,००० फुट नीचे तिब्बत में जा गिरना। इन चट्टानों पर हम धीरे-धीरे चढते रहे।

आखिरकार ये काली चट्टानें खत्म हुई और हमने 'येलो बैण्ड' क्षेत्र में प्रवेश किया। इन पर चढना अपेक्षाकृत सरल था। इन्हें पार कर हम दक्षिणी शिखर के आधार तक पहुंचे जहां से बिलकुल सीधी चढ़ाई शुरू हो जाती है।

मेरे सिलेण्डर को आक्सीजन कहीं से निकल रही थी इसलिए मुझे सांस लेने में कठिनाई होने लगी। यह जानकर मैं बहुत चिंतित हुआ। मैंने देखा कि सिलेण्डर से मुंह तक आक्सीजन ले जानेवाली नली में छेद हो गया है। यह छेद मेरे बूटों की एक कील से हुआ था। आसपास कहीं बैठने की कोई जगह नहीं थी, इसलिए लू दोरजी ने बर्फ काटकर एक छोटासा प्लेटफार्म बनाया। यहां बैठकर मैंने टेप और थोड़ी सी फिल्म की सहायता से यह छेद बंद किया। अब हम खुश होकर आगे बढ़ने ही वाले थे कि मुझे लगा कोई आदमी हमारी ओर हाथ हिलाता 'तौर हांफता हुआ बहुत धीरे-धीरे बढ़ रहा है। कुछ देर बाद जब वह पास पहुंचा तो पता लगा कि वह रावत था। उसके साथ जो घटना हुई उसे मैं उसीके शब्दों में बयान कर रहा हूं :

'' आहलू और फू दोरजी चल पड़े थे। हम भी उनके पीछे निकले। बोगी को कुछ तकलीफ होने लगी और 'रेजर्स एज' पर चढना उसे बहुत कठिन जान पड़ने लगा। वह शिविर से कुछ ही फुट आगे बढ़ा ओगा कि वह नीचे बैठ गया और बिलकुल रुक गया। पछली रात उसे पित्ती उभर आई थी और वह सारी रात अपना बदन खुजाता रहा था। इसलिए वह बलकुल शिथिल हो गया था और आगे बढ़ने लायक

नहीं रहा था। बोगी ने मुझसे आग्रह किया कि मैं अकेला ही आगे बढ़।

'' बोगी ने कहा कि अंतिम कैम्प पर वे हमारे लौटने का इंतजार करेंगे। निर्णय जल्दी ही लेना था। मेरी कठिनाई यह थी कि मैं आहलू और दोरजी से नहीं मिला तो मैं क्या करूंगा? लेकिन मैं जानता था कि मैं अंतिम शिविर पर हमेशा वापस लौट सकता हूं। मैं यह बात भली भांति जानता था कि अभी तक इतनी ऊंचाई पर कोई भी अकेला नहीं चढा है, लेकिन मैं यह खतरा मोल लेने के लिए तैयार था। मैंने आगे बढ़ने का निश्चय किया और अनमने मन से बोगी को अपने रस्से से खोलकर विदा कर दिया। ''

हवा तेजी से चल रही थी। मैं बहुत भयभीत था लेकिन फिर भी 'रेजर्स एज' का आधा हिस्सा मैंने पार कर लिया। मैं सोचता रहा कि मैं आहलू और फू दोरजी से मिल सकूंगा या नहीं? मैं जरा-सा भी फिसल जाता तो मौत के गड्ढ़े में जा गिरता। हवा के तेज थपेड़ों के कारण मेरे पैर डगमगा रहे थे। अपना संतुलन बनाये रखने के लिए मैं कुल्हाड़ी को बर्फ में जमा देता, लेकिन 'रेजर्स एज' पर सीधे खड़े रहना संभव नहीं था। इन सब कठिनाइयों के बावजूद मैं हिम्मत बांधे धीरे-धीरे आगे बढ़ता रहा। कई जगह मैं घुटनों के बल चला क्योंकि मैंने सोचा कि इसी तरह हवा के थपेड़ों से बचा जा सकता है। पीठ पर थैले में लटकते सिलेण्डर का वजन मुझे और भी तकलीफ दे रहा था। मैं सांस ठीक से नहीं ले पाता था और मुझे लगता था कि मेरे फेफड़े फट जाएंगे। एक क्षण के लिए मुझे लगा कि मैं आगे बिलकुल ही नहीं बढ़ सकूंगा, न पीछे ही जा सकूंगा। मेरा हर अगला कदम आखिरी कदम लगता था। मैं अपनी घड़ी भी नहीं देख पा रहा था। मैं नहीं जानता था कि यह सब कितनी देर तक और चलेगा। मुझे विश्वास था आहलू फू दोरजी शिखर पर पहुंच रहे होंगे। अब मेरे सामने इसके सिवा कोई चारा नहीं था कि मैं किसी छोटी-सी चट्टान को ढूंढ़ लूं और उस पर बैठकर फू दोरजी और आहलू का इंतजार करूं। इसके लिए मैंने 'येलो बैण्ड' की चट्टानें पार कीं और तभी मैंने ऊपर देखा तो पाया कि दक्षिण शिखर के आधार पर आहलू और फू दोरजी बैठे हुए हैं। मैं अपनी आंखों पर विश्वास, नहीं कर सका। यह एक चमत्कार के समान दीखा। ''

रावत हमारे पास पहुंच गया तो मुझे कुछ ढाढस हुआ। समय कम था। रावत को हमने अपनी रस्सी के बीच में जगह दे दी और जो रस्सा केवल दो व्यक्तियों के लिए था, उसी पर हम तीन दक्षिण शिखर पर चढ़ने लगे। अभी तक कभी भी एक रस्से पर तीन व्यक्तियों ने एवरेस्ट की चढ़ाई नहीं की थी। दो व्यक्तियों के साथ एक रस्से पर चढ़ना तीन व्यक्तियों की अपेक्षा कहीं सरल होता है। इसलिए हमारी आगे बढ़ने की रफ्तार काफी कम हो गई। हम पर चारों तरफ से हवा के थपेड़े पड रहे थे। कई दफा हवा के साथ दक्षिण शिखर से बहुत-सी बर्फ आकर हमारे चेहरों से टकराती, लेकिन चूंकि हमारे चेहरे आक्सीजन के मुखपटों से और आंखें चश्मों से विशेष प्रभाव नहीं पड़ रहा था। हम धीरेधीरे ऊपर चढते चले गए। हम मशीन की तरह एकएक कदम आगे बढ़ रहे थे। दो कदम चढ़ने के बाद हम दो या तीन मिनट रुककर आराम करते। हमारे भीतर कोई आवाज मानों बार-बार यह कह रही थी-''तुम हट नहीं सकते, तुम्हें चढना ही है, तुम्हें सफल होना ही है! '' धीरे-धीरे बहुत सतर्कतापूर्वक हमने दक्षिण शिखर के बड़े-बड़े पत्थर पार किए। हम एकदम सीधे शिखर पर नहीं पहुंचे और शिखर से ७० फुट नीचे बायीं ओर मुड़ गए। इसमें बहुत वक्त लगा क्योंकि एक बार में एक ही व्यक्ति चल सकता था। जब एक चलता तो अन्य दोनों सम्भालकर रस्से को थामे रहते। अब हम एक संकरी गली में पहुंच गए जिसे मैंने 'इडियाज डेन' नाम दिया। यह गली दक्षिण कोल से 'हिलेरी की चिमनी' के बीच है। यहां पहुंचकर हम बहुत प्रसन्न हुए। यह स्थान हवा की ओट में था। जगह इतनी ही थी कि हम तीनों खड़े हो सकें। फू दोरजी ने एक बोतल निकाली जिसमें फलों का रस था। इसे हम सबने पिया। रस पहुंचते ही शरीर में मानो नवजीवन कासंचार होने लगा। यहीं हमने आक्सीजन की बोतल खोलकर देखी तो पाया कि आधी बोतल अभी भरी हुई थी। लेकिन अब हमने तक नईबोतल से आक्सीजन लेना शुरू कर दिया जिससे हम शिखर तक पहुंचकर यहां तक लौट भी सकते थे। ईश्वर न करे, अगर इससे पहले ही आक्सीजन खत्म हो जाय तो बचने का कोई रास्ता नहीं था। हमने फलों के रस की बोतल यहीं छोड़ दी। जिससे बेकार वजन न ढोना पड़े। हम बिलकुल हलके होकर ही आगे बढना चाहते थे। अब मुझे सबसे बड़ी चिन्ता 'हिलेरी की चिमनी' की थी क्योंकि पहले के विवरणों के अनुसार शिखर के मार्ग में यही सबसे बड़ी बाधा थी। लगभग '३० फीट एक सीध में नीचे उतरकर हम कुछ चट्टानों तक पहुंचे। यहां से एक संकरा-सा रास्ता चिमनी तक जाता था। दक्षिण की ओर बर्फ के बड़े-बड़े ढेर थे और हमें बड़ी कुशलता से उन पर कदम रखे बिना आगे बढ़ जाना था। उन्हें देखकर डर लगता था। बीच में चल रहे रावत ने जिम्मा लिया कि हम दक्षिण की ओर न जाएं और हमारे कदम चट्टानी हिस्से पर ही पड़ते रहें। यहां कुछ बहुत बड़ी-बड़ी चट्टानें थीं जो नीचे से ढीली भी थीं। कई बार हमें कूदकर एक से दूसरी चट्टान पर जाना पड़ता। इन चट्टानों के बीच से नीचे की ओर नजर डालते ही हम थर्रा उठते-नीचे आठ से दस हजार फुट तक गहरे गार थे। अब हम 'हिलेरी की चिमनी' के ठीक नीचे पहुंच गए। इसी बाधा का मुझे सबसे अधिक डर था। हर पर्वतारोही इस चिमनी से परिचित है, जो चट्टान और बर्फ के ढेर के बीच चालीस फुट ऊंची खड़ी है। चट्टान पर हाथ या पैर जमाने की कोई जगह नहीं है और बहुत ज्यादा चिकनी होने के कारण यह बहुत बड़ी समस्या है।

मैंने कोशिश की कि हाथ रखने की कोई जरा-सी भी जगह पा जाऊं, पर मुझे कुछ नहीं मिला। बर्फ के ढेरों के कारण दक्षिण की ओर से इसे पार करना बहुत खतरनाक था। बाई ओर और भी ढलवां चट्टानें थीं, जिन्हें पार करना लगभग असंभव था। फू दोरजी ने इस पर चढ़ने की कुछ कोशिश की पर वह बार-बार फिसलता ही रहा। तब उसने चट्टान में बर्फ की कुल्हाड़ी की मदद से छेद करने की कोशिश की और उसके सहारे ऊपर चढा। वह जमी हुई बर्फ में अपने जूतों की कीलें गाड़ देता और कुल्हाड़ी की मदद से शरीर का वजन संतुलित करते हुए अचानक कुल्हाड़ी को घुमाकर ऊपर दीवार में गाड़ देता और इस तरह ऊपर चढ जाता। रावत उसे सहारा दिए था। फू दोरजी तनिक-सा भी फिसलता तो हम तीनों नीचे आ रहते, क्योंकि तीनों एक ही रस्से से बंधे हुए थे। आखिरकार फू दोरजी बिलकुल ऊपर पहुंच गया और हमें दिखाई देना बंद हो गया। वह चिमनी की चोटी पर पहुंच गया था। रावत चट्टान पर फिसल रहा था और उसे तथा उसके बाद मुझे फू दोरजी ने ऊपर खींच लिया। यहां भी बड़ी-बड़ी चट्टानें थीं और जैसे ही हमने उन पर पैर रखा, वे हिलने लगीं। इस बाधा को पार करने में हमें बीस से तीस मिनट लगे होंगे। अब हम बर्फ के एक चबूतरे पर थे और वहां हम कुछ देर सुस्ताने के लिए रुके। यहां से आगे ढलान कुछ कम होते गए और पहले की ही तरह बायीं ओर चट्टान और दाईं ओर बर्फ थी। पहाड़ी अभी खत्म नहीं हुई थी। इस पर चट्टान या बर्फ के या दोनों के मिले-जुले बड़े-बड़े टुकड़े थे। ये टुकड़े एक के बाद एक सामने आते चले जाते। हम एक टुकडे से गुजरते कि दूसरा उस से भी बड़ा सामने आ जाता। चिमनी पार करके हम यह सोचकर खुश हो रहे थे कि अब हम शिखर के बिलकुल पास आ गए हैं लेकिन पहाड़ी का यह टुकड़ा खत्म होने में ही नहीं आ रहा था और हमारा संघर्ष अधिक कठिन होता जा रहा था। सांस लेना भी पहले से अधिक मुश्किल हो गया था। मैं गहरी सांस लेने की कोशिश करता लेकिन वह हिचकी बनकर टूट जाती। चढ़ाई क्या कभी खत्म नहीं होगी? अब हर कदम बहुत ही थका देने वाला साबित हो रहा था। बर्फ और चट्टानों के टुकड़े एक के बाद एक आते जा रहे थे। मैंने सोचा हमें कब तक और चढते रहना पड़ेगा। स्थिति यह थी कि मेरे मन और शरीर ने जवाब दे दिया था। लेकिन भीतर कहीं से यह भी आवाज उठ रही थी कि हमें आगे बढ़कर चढ़ाई पूरी करनी ही है। शिखर अब अधिक से अधिक 50 फुट और रहा होगा। लेकिन ढाल खत्म होने में ही नहीं आ रहा था। लग रहा था जैसे इसका कभी अंत ही नहीं होगा। पर तभी, अचानक, अंत सामने आ गया। अब बर्फ के ढेर सामने नहीं थे-हम से जरा ही ऊपर एक छोटी सफेद घुमावदार मेहराब-सी थी-और यही एवरेस्ट का शिखर था।

हम चोटी तक पहुंच रहे थे। परस्पर बांहें डालकर हम कुछ फुट और ऊपर चढ़कर शिखर के बिलकुल अंतिम भाग तक पहुंच गए। अब हमें और चढना नहीं था। आक्सीजन के मुखपटों और बर्फ के टुकड़ों से चेहरे बिलकुल ढके होने पर भी हम एक-दूसरे से अपनी प्रसन्नता छिपा नहीं सके। हमने एक-दूसरे से हाथ मिलाया और गले मिले-तथा एक दूसरे की पीठ जोर-जोर से ठोंकी। पिछले दल द्वारा गाड़ा हुआ तिरंगा झंडा हालांकि फट गया था, लेकिन गर्व से अभी तक लहरा रहा था। इधर-उधर पिछले अन्य दलों के झण्डे तथा निशानियां भी पड़ी हुई थीं। कड़ाके की सर्दी थी। अचानक हवा रुक गई। हमने इसे धरती मां का विशेष उपहार माना। हमने

घूमकर चारों ओर लम्बी नजर डाली। हमें मकालू, ल्होत्से तथा नुप्त्से के शिखर दिखाई दिए और दूर क्षितिज पर छोटो-मोटी चोटियों के अतिरिक्त कंचनचंगा का शिखर भी दिखाई दिया। यह सब चोटियां हमसे नीचे ही थीं। चारों ओर पहाड़ियां, चट्टानें, ग्लेशियर, हिमपात और घाटियां दिखाई दे रहे थे। हमने उत्तर की ओर तिब्बती पठार पर एक नजर डाली और फिर दक्षिण की ओर भारत के मैदानों की तरफ देखा। कुछ दूर पर आइने की तरह चमकता और सबेरे की धुंध में तैरता व्यांगबोचे मठ दिखाई दिया। यह दृश्य अविस्मणीय था। संसार की इस छत पर खड़े होकर और अपने नीचे मीलों दूर तक देखते हुए मेरे मन में जो भावनाएं उठीं उनमें सबसे प्रमुख भावना विनय की थी। मेरा रोम-रोम यह कह रहा था-ईश्वर की कृपा है कि चढ़ाई समाप्त हो गई। मुझे एवरेस्ट की चढ़ाई करने वाले उन सब आरोहियों की याद आयी जो मुझ से पहले यहां आ चुके थे और मेरे बाद यहां आएंगे। मैं शिखर छूने वाले ब्रिटिश, स्विस, अमेरिकी और अपने ही देशवासी आरोहियों के बारे में सोचने लगा। मुझे उन कुछ लोगों की याद आई जो इस शिखर तक पहुंचने में सफल रहे, और उन बहुत से लोगों को भी याद आई जिन्होंने प्रयत्न तो किया परन्तु सफल नहीं हो सके। रावत ने झुककर शिखर पर दुर्गा की एक मूर्ति रखी और उसके सामने जरा-सी धूप जलाई। मैंने गुरु नानक का एक फोटो और माला रखी। फ दोरजी ने चांदी का एक लाकेट रखा जिसमें दलाई लामा का फोटो लगा हुआ था। उसने भेंट स्वरूप चाकलेट, बिस्किट, मिठाइयां आदि भी रखे। मैं ठीक दस बजे शिखर पर पहुंच गया था। आक्सीजन खत्म हो रही थी, इसलिए मैंने बिना समय नष्ट किए फोटो खींचने शुरू कर दिए। मूवी कैमरा निकाला तो पता लगा कि वह काम ही नहीं कर रहा है। इससे हमें बड़ी निराशा हुई। फिर मैंने दूसरे निकन कैमरे से चारों ओर के बहुत-से फोटो खींचे। इनमें सबसे प्रमुख फोटो तिब्बत में रंगबुक ग्लेशियर का था। मैंने उत्तरी पहाड़ी और उत्तरकोल की ओर दृष्टि डाली। इसी रास्ते से १९२० तथा १९३० के बाद के आरंभिक अभियान दल चढ़े थे। फिल्म शीघ्र हो खत्म हो गई। फौरन कुछ फीट नीचे की ओर हटकर और झुककर मैंने दूसरी फिल्म चढ़ाई। फिल्म चढाने में मुझे बड़ी कठिनाई हुई और मेरी उंगलियां सुन्न पड़ गयीं।

फिल्म चढाकर मैं फिर ऊपर आया, तब तक फू दोरजी ने थैले से गर्म काफी निकाल ली थी। अकेले उसी ने यहां तक काफी का फ्लास्क लाने का जिम्मा लिया था जिसकी यहां हमें बहुत जरूरत थी। अपने इस सरल और निस्वार्थ साथी के प्रति मेरा मन उमड़ उठा।

शिखर पर हमारा समय सपने की तरह बीत रहा था। अब तक हमें यहां आधे घण्ठे से ज्यादा गुजर चुका था और अब धरती माता को प्रणाम करके वापस लौटना था। यह सोचते ही मैं बहुत उदास हो गया। मेरी उदासी का क्या यह कारण था कि चढ़ाई की जो सबसे बड़ी ऊंचाई है, उसे मैंने छू लिया था और इससे बड़ी कोई ऊंचाई चढ़ने को नहीं रह गई थी?

हमने उतरना शुरू किया तो मुझे याद आया कि आज 29 मई है'। आज से बारह साल पहले १९५३ में आज के ही दिन और लगभग इसी समय हिलेरी और तेनजिंग पहली बार यहां चढ़ पाने में सफल हुए थे। शिखर की पहाड़ी और 'हिलेरी की चिमनी' होकर हम नीचे उतरने लगे। अब तीस फीट की चढ़ाई सामने आई। हमने दक्षिण शिखर पार किया। 'इंडियाज डेन' पहुंचकर हमने आक्सीजन की बोतलें बदलीं। अचानक मुझे ज्ञात हुआ कि मेरी बोतल में बहुत ही कम दबाव आक्सीजन है। यह चिंता की बात थी क्योंकि आखिरी कैम्प तक पहुंचने से पहले बोतल की आक्सीजन खत्म हो जानी थी। इस वक्त दोपहर के सवा बजे थे और हम येलो बैण्ड की डगमगाती चट्टानों को पार कर रहे थे। मेरी आक्सीजन खत्म हो रही थी और सांस लेना मुश्किल होता जा रहा था। मेरे कदम धीमे होते जा रहे थे। मैं हांफने लगा। हवा की गरज भी बढ़ती चली जा रही थी। 'रेजर्स एज' पर आकर मेरी आक्सी- जन बिलकुल खत्म होगई। मैं बुरी तरह हांफने लगा। मेरे चश्मे पर बर्फ जम गई थी। पैर सीसे की तरह भारी हो गए थे। धीरे-धीरे हाथ भी सुन्न पड़ते चले गए। मुझे बहुत भय भी लगा ।सांस लेने के लिए मैं तड़प रहा था और मुझे लग रहा था कि मेरे फेफड़े फट जाएंगे। 'रेजर्स एज' को घुटनों के बल और कभी-कभी बिलकुल पेट के बल गिरकर रेंगते हुए मैंने पार किया। यहां से अंतिम कैम्प के तम्बू दिखाई देने लगे। हमने सहायता के लिए बोगी को आवाजें दीं लेकिन कोई जवाब नहीं आया। बोगी पहले ही नीचे जा चुका था। रेंगते हुए किसी प्रकार हम अंतिम कैम्प पर पहुंचे।

दोपहर बाद 3.30 बजे हम वहां पहुंच गए। बोगी यहां आक्सीजन के दो सिलेण्डर छोड़ गया था। यह उसकी ओर से एक बहुत ही निस्वार्थ कार्य था क्योंकि उसने अपने हिस्से की आक्सीजन का हमारे लिए त्याग किया था। मैं नहीं जानता कि आक्सीजन के बिना और बिलकुल अकेले उसने अपने नीचे की यात्रा किस प्रकार पूरी की होगी। पहाड़ों पर सहयोग और मित्रता ही सबसे महत्वपूर्ण वस्तुएं हैं। आप उस व्यक्ति को नहीं भूल सकते जो चढ़ने में आपके साथ रहा। पर्वत हमें यही शिक्षा देते हैं।

फू दोरजी ने स्टोव जलाया और फलों का रस ' गर्म किया। यह रस हमने पिया। हमारे पास चूंकि आक्सीजन की बड़ी कमी थी, इसलिए हमने तुरन्त नीचे के लिए चल पड़ने का फैसला कर लिया। अंतिम कैम्प छोड़ते हुए हम अपने साथ कुछ भी नहीं ले गए। खाने-पीने की सब चीजें हमने यहीं छोड़ दीं। इस कैम्प ने हमारा बड़ा साथ दिया था। हमने उस की ओर आखिरी नजर डाली और नीचे की ओर चल पड़े।

हम करीब घण्टे भर चले होंगे कि मेरी आक्सीजन ने लीक करना शुरू कर दिया। मुझे रेग्युलेटर से उसके निकलने की आवाज भी सुनाई देने लगी। पन्द्रह मिनट में सिलेण्डर बिलकुल खाली हो गया और उसे फेंक देना पड़ा। इसके बाद मेरी रपतार इतनी कम हो गई कि मुझे लगने लगा कि मैं दक्षिण कोल कभी नहीं पहुंच सकूंगा। मेरे सामने बर्फ का विशाल पठार था जिस पर डूबते सूर्य की किरणें गिरकर चारों ओर बिखर रही थीं। मेरे पैरों ने चलने से इन्कार कर दिया। मैं आगे बढ़ने की कोशिश करता था लेकिन पैर हिल ही नहीं रहे थे। फू दोरजी और रावत भी, जो मेरी बाजुएं पकड़कर कुछ दूर तक मुझे ले आए, अब थक गए थे। लकड़ी, के कुन्दों की तरह हम तीनों नीचे गिर पडे।

हवा बढ़ रही थी और अंधेरा होता जा रहा था। बर्फ में गड्ढा कर के रात वहीं बिताने के अलावा हमारे सामने कोई चारा नहीं था। बच पाने का यही उपाय था। हवा बहुत तेज थी। हमारे पैर सुन्न पड़ चुके थे। सांस लेने के लिए हमारे पास आक्सीजन बिलकुल भी नहीं बची थी। बर्फ में गड्ढ़ा करने लायक ताकत भी नहीं रही थी। अंधेरा हो चुका था। हम बारह से तेरह घण्टे तक बिना आराम किए लगातार चलते रहे थे। हमारे पास कोई आधा कप काफी और आधा कप फलों का रस था। पानी बिलकुल भी नहीं था। हम थक तो चुके ही थे, हमारे शरीर का जल भी समाप्त हो चुका था।

नीचे बैठकर हमने गड्ढा खोदना शुरू किया। मै कुल्हाड़ी से बर्फ पर चोट करता लेकिन एक खरोंच से ज्यादा खुदाई न होती। हमारी शक्ति बिलकुल खत्म हो गयी थी। हम मूर्च्छित होकर गिरने ही वाले थे कि मैंने किसी को टार्च हाथ में लिए अपनी ओर आते देखा। यह मानो एक चमत्कार था। यह पेम सुन्दर शेरपा था जो गर्म फलों के रस का एक बड़ा थर्मस लिये चला आ रहा था। उसे देखते ही हम सब में जान पड़ गयी।

आठ बजे हम तम्बू के भीतर घुसे। मुझमें इतनी ताकत भी नहीं थी कि अपने सोने के थैले में घुस पाता। सारी रात तम्बू के चारों ओर हवा गरजती रही। मैं चूंकि बिलकुल बहुत थक चुका था और मेरे शरीर का जल समाप्त हो चुका था, इसलिए मुझे बहुत अजीब सपने दिखाई दिए। मुझे लगा जैसे रावत मेरी हत्या किए डाल रहा है। मैं तम्बू फाड़ डालता हूं और लड़खड़ाता हुआ बाहर निकलकर आक्सीजन को पुरानी बोतलें इकट्ठा करता फिर रहा हूं। मैं सारी रात पागल को तरह बोतलें इकट्ठा करता रहा और उनकी बची-खुची आक्सीजन पीता रहा।

दूसरे दिन सबेरे कुछ शेरपा दक्षिण कोल का यह कैम्प बंद करने आए तो उन्होंने मुझे जगाया। मेरे भीतर चूंकि बिलकुल भी शक्ति नहीं रह गई थी, इसलिए वे ही मेरे बूट और दूसरी चीजें पहनाकर मुझे ले चले। पौने दस बजे हम कैम्प-4 पहुंचे। यहां मैंने फलों का रस, काफी और सूखे मेवों का नाश्ता किया। रावत और फू दोरजी मुझसे आगे चल रहे थे। दोपहर बाद साढ़े तीन बजे के लगभग हम अगले बेस कैम्प के समीप पहुंचे। सब लोग तंबुओं से बाहर निकल आए। वे सब खुशी से चिल्लाए और हमें गले लगाने लगे। रसोई घर का तंबू खाने-पीने की सामग्री से भरा-पूरा था। मोहन ने मुझे कुछ ब्राण्डी दी। शाम को जब हम भोजन के लिए बैठे, हमारी सफलता का समाचार आकाशवाणी द्वारा प्रसारित किया जा रहा था। उस घटना के बारे में, जो अब स्वप्न सी लग रही थी, समाचार सुनकर हम बहुत रोमांचित हुए। हमारी सफलता के कारण तम्बू का हर व्यक्ति संतुष्ट और प्रसन्न दिखाई दे रहा था। इससे हमारे देश की प्रतिष्ठा तो बढ़ी ही थी, इसने पर्वतारोहण के मानचित्र पर हमें संसार के अन्य देशों से बहुत आगे खड़ा कर दिया था। शिखर पर एक के बाद एक कई व्यक्ति भेजकर हमने विश्व का रिकार्ड तोड़ दिया था। इसके अलावा तीन व्यक्तियों को एक साथ शिखर पर भेजकर भी नया रिकार्ड स्थापित किया था। किसी देश को यह कर पाने में अभी बहुत समय लगेगा।

अब जब मैं इस महान सफलता की ओर नजर ' डालता हूं तो ' मुझे लगता है कि इसमें दल के सदस्यों की सहयोग भावना तथा कठिन श्रम के अलावा सौभाग्य का भी कुछ योग था। हमारे शेरपा बहुत ही अच्छे थे। जिन उपकरणों का हमने इस्तेमाल किया, वे भी प्रथम श्रेणी के थे। एवरेस्ट की चढ़ाई केवल शारीरिक चढ़ाई नहीं होती, इसमें अन्य बातों का भी योग होता है। जो व्यक्ति चढ़ाई पूरी कर आता है, वह लौटकर एक दूसरा ही व्यक्ति बन जाता है। पहाड़ी से उसे बहुत कुछ प्राप्त होता है। इस विशाल संसार में उसे अपनी लघुता का भान होने लगता है। मनुष्य का मन भी एवरेस्ट के समान ही है। इसमें चोटियां और बहुत गहरे गड्ढे दोनों ही हैं।

हममें से हर एक को अपने इस एवरेस्ट पर चढना पड़ता है। अगर हमें अपने भीतर और जो काम हम कर रहे हैं, उस पर पूरी आस्था हो तो अपने दैनिक जीवन में इस एवरेस्ट पर चढना हमारे लिए कठिन नहीं होता।

समाप्त

---

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: मेजर हरिपालसिंह अहलूवालिया - एवरेस्ट की चुनौती : अंतिम भाग 4
मेजर हरिपालसिंह अहलूवालिया - एवरेस्ट की चुनौती : अंतिम भाग 4
http://lh5.ggpht.com/-O_YFXXZZmCc/T0oYDCBmNEI/AAAAAAAALRs/NGSmJQQTmm8/image%25255B2%25255D_thumb_thumb_thumb.png?imgmax=800
http://lh5.ggpht.com/-O_YFXXZZmCc/T0oYDCBmNEI/AAAAAAAALRs/NGSmJQQTmm8/s72-c/image%25255B2%25255D_thumb_thumb_thumb.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2012/02/4.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2012/02/4.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content