ईश्वर का न्याय
एक ईमानदार व्यक्ति का ईश्वर ने दिमाग खराब कर दिया और उसने खटिया पकड़ ली, खाना-पीना, शौच आदि सभी बिस्तर पर ही करने को मजबूर हो गया परंतु उस व्यक्ति को अपने भोग का एहसास ही नहीं, दुख और तकलीफ से ईश्वर ने उसे
उपर उठा दिया था.
इच्छापूर्ति
बच्चे की इच्छुक माँ शहर के नामी बाबा भूतनाथ से मिलने गयी. हाथों को जोड़कर अपने क्रम का इंतजार करने लगी. बाबा भूतनाथ को जब उसने बताया कि शादी के दस वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद भी उसकी गोद आज तक सूनी है तो बाबा भूतनाथ ने उसे एक गुलाब का फूल देते हुए कहा कि तुम्हें बच्चा अवश्य होगा परंतु मेरे आश्रम में तुम्हें कुछ दिनों मेरी की सेवा करनी होगी. महिला बाबा की सेवा का अर्थ समझ चुकी थी, उसने बाबा भूतनाथ से मिलने के बजाए बच्चे की इच्छापूर्ति के लिए
चिकित्सक से मिलने का मन बना लिया था.
वकील साहब
वकील साहब अपनी दलीलें जज साहब के सामने कुछ यूं पेष कर रहे थे, मी लार्ड, जो पकड़ा गया और जबतक जूर्म साबित हो जाए तो ही हम उसे मुजरिम कह सकते है. कानूनी इतिहास गवाह है कि जिन लोगों ने कानून बनाए है उन्हें जेल नहीं होनी चाहिए क्योंकि कानून बनाने वाला कानून से बड़ा है. कानून बनाने वालों के साथ वकीलों की फौज है और सबसे बड़ी बात उसके साथ ईश्वर है. इसलिए मी लार्ड, मेरा मोवक्किल कानून बनाने वाले के वर्ग में आता है उसे बाइज्जत बरी किया जाना चाहिए.
देटस ऑल, मी लार्ड.
ईमानदारी भगाओ
एक नेशनल पार्टी से घोटाला के आरोप में बलात् पदमुक्त कर दिए गए एक नेताजी ने अपने अनुयायियों से कह रहे थे, जैसे घट-घट में भगवान है वैसे ही घट-घट में बेईमान है. बेईमानों की तादात देशव्यापी है परंतु एक ईमानदार व्यक्ति ही काफी है ईमानदारी को महामारी की तरह फैलाने में. ऐसा अगर हो गया तो हमलोग लुटने के लक्ष्य से भटक सकते है. छियासठ सालों से सोयी जनता को अपनी असली ताकत बताते हुए नेताजी ने सर्वसम्मति से सरकारी फंड़ खाने को अपनी राजनीतिक का लक्ष्य बताते
हुए कहा कि भारत जैसा है अगर उसे वैसा ही रखना चाहते हो दोस्तों, तो ईमानदारी भगाओ.
देष कैसे आजाद है ?
जगतपाल बाबू कहते है कि अंग्रेजों ने जो कायदा-कानून, सीपीसी, सीआरपीसी, साक्ष्य कानून, संविधान, संसदीय लोकतंत्र, न्याय व प्रशासनिक व्यवस्था, शिक्षा प्रणाली, भाषा सब कुछ तो आज भी वैसा ही है जैसा अंग्रेज छोड़ गए थे तो फिर
हमारा देश आजाद कैसे है ?
रवायत
नेताजी कह रहे थे कि हमारे देश में अनाज की किल्लत इसलिए हो गयी है क्योंकि देश के पच्हतर प्रतिशत गरीब जनता एक वक्त के बजाए दो वक्त का खाना खाने लगे है. गरीबों को अपनी औकात में रहना चाहिए. अरे हमारे देश की तो यह रवायत रही है कि यहां के गरीब घासफूस के घरों में आधा नंगा एक वक्त का खाना खाकर मजे में रहते आए है. ये रवायत टूटनी नहीं चाहिए क्योंकि लंबी अवधि से चली आ रही रवायत को कनवेशन कहते है जो अपने आप में कानून है जिसे तोड़ने पर सामाजिक
रूप से दंड़ भी दिया जा सकता है.
जानवर और आदमी में फर्क
एक नेताजी गांव में भाषण दे रहे थे कि हमने स्कूलों में फ्री भोजन की व्यवस्था की पर लोग शिकायत करने लगे कि जो चावल और दाल स्कूलों को सप्लाई किया जा रहा है वह जानवरों के खाने लायक भी नहीं है. नेताजी कहिन कि अभी तक किसी जानवर ने तो यह शिकायत नहीं की. जानवर और आदमी में यही बुनियादी फर्क है. जानवर भूखा भी रहता है तो शिकायत नहीं करता पोलिथीन वगैरह खाकर पेट भर लेता है लेकिन आदमी छोटी-मोटी बातों पर आसमान सर पर उठा लेता है. जब हम
जानवर से ही आदमी बने है तो हमें जानवर की राह पर ही चलना चाहिए
राजीव आनंद
संपर्क ः 9471765417
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