अजय गोयल की कहानी - वेलेंटाइन डे

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वेलेंटाइन डे - अजय गोयल अनीता ने फोन पर विक्रम से पूछा, 'पलाश, अशोक या रजनीगंधा को पहचानते हो'' वह समझ गया कि-क्या कहना चाहती थी...

वेलेंटाइन डे

- अजय गोयल

अनीता ने फोन पर विक्रम से पूछा, 'पलाश, अशोक या रजनीगंधा को पहचानते हो''

वह समझ गया कि-क्या कहना चाहती थी अनीता। बोला, 'गाँव में अभी भी वसंत आकर हर द्वार पर थाप देता है। हर खिड़की खटखटाता है। अपने कमरे की खिड़की से मुझे आज भी दिन फूटता और सांझ उतरती दिखायी देती है। लो मैं कविता कहने लगा। तुम्हारा साथ ही ऐसा है। तुम्हारा एस०एम०एस० पढा। अच्छा लगा। पलाश का दहकता वसंत नव का आख्यान वसंत, जीवन का गान वसंत, रंग का वरदान वसंत।'

विक्रम जानता है कि अनीता अपनी अध्यापिका माँ की डायरी से पढ़कर उसे एस०एम०एस0 करती थी।

यह उसे अनीता ने ही बताया कि मम्मी को कविताएँ लिखने का शौक है।

यह बात अलग है कि क़स्बे में जन्मीं पली अनीता के पास कहने के लिए कोई श्लोक तो क्या कोई चौपाई तक नहीं होती थी। जबकि चौंध मारता जमाना चारो ओर था। वह सोचती कि हरपल चारों ओर होने वाली दुर्घटनाओं से उसे कौन आकर बचाएगा? नर्सिग-होम की रिसेप्सिनिस्ट बनकर उसका भविष्य क्या है?''

विक्रम सोचता. 'मेरे पास भी कितना आसमान है? और ... पैरों के नीचे कितनी धरती है? ग्रेजुऐशन तो पानी सा बह गया। तीन साल होम करने के बाद इस नर्सिंग होम का एक बैल ही तो हूँ। माँ कहती है कि चक्कर-घिन्नी बनाकर रख दिया है इन मियाँ-बीवी डाँक्टरों ने। पूंछ पकड़ रखी है ना। कभी भी हाँक ले जाते हैं। अड़ता भी तो नहीं। घंटी बजती नहीं कि तुरत-फुरत जुए में गर्दन फंसा देता है।

विक्रम जानता था कि माँ उसकी जेब में अटके रहने वाले मोबाइल फोन से खासी चिढ़ती है। उनके लिए वह एक खिलौना था 1 जो जब चाहे, जहाँ चाहे सोते बच्चे-सा हड़बडा कर ऑखें खोलता। जुगनू-सा चमकते हुए प्यासे डंगर-सा डकराने लगता था। लेकिन उस क्षण विक्रम के लिए वक्त थम जाता। वह जल्दी-जल्दी जींस चढाता, शर्ट पहनता. जूते कसता और. हवा हो जाता। यदि रात होती तो घर के बाहर नर्सिग होम की वेन उसे लेने के लिए पहुँच चुकी होती। वैन का हॉर्न बजने से पहले वह घर से बाहर निकल आता। फिर पीछे रह जाता कच्चा घर-आँगन और .... ईंटों वाला गाँव का रास्ता।

पिछले तीन साल विक्रम के लिए चढते जेठ की दोपहरी से बीते। इस बीच जींस व शर्ट में कसे विक्रम को दादी छैला बाबू पुकारने लगी और कच्चे ऑगन में गृहस्थी की जुगाड़ लगाती अनपढ माँ उसके आने-जाने की धमक सुन पाती।

नर्सिंग होम पहुँचने से पहले विक्रम को फोन पर बता दिया जाता कि किस ऑपरेशन के लिए तैयारी करनी है। हिस्ट्रेक्टमी होनी है या सीजर या लेपरोस्कोपिक ' एक बार ऑपरेशन थियेटर में प्रवेश के बाद उसे नहीं पता होता कि कितने घंटे बाद वह बाहर निकलेगा। ऑपरेशन के बाद उपयोग किए औजारों को स्टरलाइज करने के उपरान्त वह बाहर निकलता।

विक्रम को एक ऑपरेशन थियेटर दुनिया का सबसे पवित्र स्थान लगता। जहाँ सर्जन जाग्रत देवता होता। हर कदम अपने आप में एक चमत्कार होता। सबसे पहले मरीज को अचेत किया जाता। उसके बाद विकारग्रस्त अंग की मरम्मत कर दी जाती। और ..... मरीज को पुन: सचेत कर दिया जाता। इन सब चमत्कारों का वह साक्षी बनता।

शुरू-शुरू में ऑपरेशन थियेटर की ड्यूटी से घबरा ही गया विक्रम। उस समय अनीता ने उसे समझाया। बताया कि नर्सिंग होम स्टाफ में ओ०टी० टेक्नीशियन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण व्यक्ति होता है। इसका विक्रम को एक दिन अहसास भी हुआ। जब डा० दिनेश ने उसे एक सेलफोन देते हुए कहा कि विक्रम तुम्हें अब कभी भी बुलाया जा सकता है। रात-बेरात, तैयार हो?

विक्रम ने स्वीकृति में सिर हिला दिया। उसे लगता भी कि उसका निर्णय सही था। ग्रेजुएशन ने उसे खाने कमाने के लिए क्या दिया' पिता ने खेत की मेढ के पास फटकने तक से मना कर दिया। वक्त को बॉचते हुए बोले कि नये जुमाने में मिट्टी के काम में आदमी मिट्टी हो जाता है। उन्होंने अपना गेहूँ एक कम्पनी को बेचा। क्योंकि सरकार से ज्यादा पैसा कम्पनी दे रही थी। यह जानते हुए भी कि एक दिन कोई कम्पनी गाँव भर के खेत ठेकेदारी पर ले लेगी, और गाँव-शहर की गंदगी बढाने के लिए उजड़ जाएगा।

पिताजी के दो टूक जवाब देने के बाद विक्रम ने शहर की तरफ देखा। डा० दिनेश को उसमें एक ईमानदार व्यक्ति बैठा नजर आया और थोडे दिन वार्ड ड्यूटी लगाने के बाद उसे ऑपरेशन थियेटर भेज दिया गया।

अनिता इसे भाग्य कहती है।

- 'भाग्य ही है। तभी तुम्हारे नजदीक आने का मौका मिला। विक्रम सोचता।

ऑपरेशन सम्बन्धी सूचनाऐं विक्रम को रिसेप्शन से अनीता ही देती और. .... विक्रम भी किसी न किसी बहाने से फोन पर अनीता से बात करना चाहता।

एक दिन अनीता ने साफ कह दिया, 'ऐसी बात नहीं है, कि वह समझती नहीं है कि तुम मुझसे बात करने के बहाने ढूँढते हो।

- 'ही। मैं तुम्हारे नजदीक आना चाहता हूँ। विक्रम बोला।

उस दिन के बाद घर लौटने की जल्दी को विराम लग गया। फुर्सत के लम्हों की विक्रम को तलाश रहती। कभी-कभी व्यस्तता सताती तो अनीता उसे एस०एम०एस० करना नहीं भूलती। जैसे कि वक्त तुम्हें छू कर जाता कमी होली-सा झूमता कभी दीपों में सज जाता, कभी बधंक-सा थक जाता, वक्त तुमसे जीवन पाता।

विक्रम कहने भी लगा था कि उसके एस०एम०एस० की ट्रिन-ट्रिन कानों से पहले दिल तक जा पहुँचती हैं और फोन आँखें खोलकर चिट्ठी पकडा देता है। उन क्षणों को वह अपने लिए वक्त की सौगात समझता। उसे महसूस होता कि जिन्दगी कुछ और भी है।

परिवर्तन विक्रम में था भी। माँ भी कहने लगी, 'अकड़ में तनक नरमी है अब, पैरों में पहिए लग गये हैं, हवा मैं उडता-सा लगे है मोय।

सुबह उठता विक्रम। अक्सर पाता कि अनीता के एस०एम०एस० उसकी प्रतीक्षा कर रहे होते। जिन्हें पढ़ कर वह अनुभूतियों के संसार में डूब जाता। जहाँ उसे जगत रंगमंच दिखता, पक्षियों का कलरव। ऋचाओं सा ओजपूर्ण लगता और जीवन सम्पूर्णता में एक महोत्सव की अनुभूति देता।

० ० ०

उन दिनों अनिता छुट्टी पर थी। लगभग पूरे सप्ताह के अवकाश पर। एक दिन ऑपरेशन थियेटर में रात-भर व्यस्त रहा विक्रम। लगातार तीन ऑपरेशन हुए। एक सीजर व दो ऑपरेशन डी० दिनेश ने किए। सुबह तक थक कर चूर था वह। बाहर निकलते हुए उसकी नजर सेलफोन पर पडी, तो एस०एम०एस० को उसने मुस्कराते हुए पाया। तुम्हारी याद शीर्षक से अनीता ने भेजा था। जैसे स्वर का अनुवाद जैसे ज्योत का प्रकाश, जैसे देव का आभास, जैसे मन्दिर का प्रसाद।

लगभग तीन घंटे यात्रा के बाद विक्रम दिल्ली में रामकथा आयोजन स्थल के बाहर था। दस बजे तक पंडाल के निकट मन्दिर परिसर में अनीता भी आ गयी। कथा प्रारम्भ लगभग दो बजे होनी - तुमने एस०एम०एस० रात में पढ़ लिया होता तो क्या रात में ही चल देते। अनीता ने पूछा।

- 'यदि फ्री होता, तो।

- 'तुम खतरनाक हो।

कुछ क्षण चुप रहा विक्रम। फिर बोला, 'जल्दी वापस आ रही हो ना?'

- 'तीन दिन कम-से-कम रूकना ही है। वादा किया है मम्मी से। कथा सुननी है। वे तो कथा सुनने के लिए सात दिन रूकेगी। महान संत हैं सुनाने वाले। '

दोनों आयोजन स्थल के आस-पास घूमते रहे।

-''ईश्वर भी हमें मिलाना चाहता है 1' ' यह बात विक्रम ने देवदर्शन के समय कही। उस समय अनीता का हाथ उसके हाथ में था। विक्रम को स्पर्श से एक-दूसरे की नसों में उतर जाने जैसी अनुभूति हुई।

मंदिर से बाहर आकर दोनों ने जलेबियाँ लीं। ''मम्मी भी पिता जी को जलेबियाँ खिलाती थी। जब विवाह से पहले पिताजी उनसे मिलने स्कूल में आते। ' अनीता ने उसे बताया।

तभी एस०एम०एस० की एक बार फिर ट्रिन-ट्रिन थी। अनीता के सामने बैठे विक्रम के लिए एक बार फिर उसकी चिट्ठी। 'तुम मेरा आसमान बुन दो। सावन आए, बिजली चमके, इंद्रधनुष पतवार बनाए, चिडिया संसार जमाए, चाहती हूँ प्यार में छत चू जाए और .... भरे आंगन में सपने खिल जाएं।''

- 'तुमने देवता से क्या कहा'' एस०एम०एस० पढ़ने के बाद विक्रम ने पूछा।

थोड़ी देर चुप रही अनीता। बोली. ''देवता यदि देखता होगा तो समझ नहीं रहा होगा। फिर कहने का क्या फायदा ? तुमने देवता से क्या कहा ?''

- यही कि हम अपने समय के लायक नहीं बन सके। समय के लायक होते तो मैं भी किसी को सेलफोन पकडा उसकी पूंछ अपने काबू में रखता। किसी से ऑपरेशन के पच्चीस हजार लेता तो किसी से उसी ऑपरेशन के पचास हजार वसूलता। फिर इंडिया को बेकार कहता। कुछ खरीदने के लिए सिंगापुर या दुबई की उडान भरता। वहाँ से कम-से-कम तुम्हारे लिए लाख रूपये की इटालियन मार्का चप्पल लाकर कुछ सुकून महसूस करता। पर अपने आश्रितों को चवन्नी भी मुश्किल से देता। मैंने डा० दिनेश से कुछ पैसे देने के लिए कहा। वह भी एडवांस। डाँक्टर साहब हैं कि सुन ही नहीं रहे हैं। तीन साल की कडी मेहनत का यह फल। जब भी कहता हूँ तो कहते हैं कि सोचूँगा। सोचूँगा। सोचूँगा। पर कब? बाल दिवस आ जाएगा तब। परसों घर पहुँच गया तो मुझे देख आग-बबूला हो गए। बोले कि डिस्टर्ब करने चला आया। जा। जाके नर्सिंग होम में टी०वी० देख। बेटा इंडिया शाइन कर रहा है, वर्ड इकनोमिक फोरम में चिकन खिला रहा है, शराब परोस रहा है, सितार की जगह कूल्हे मटका रहा है। इतना कह डाँक्टर दिनेश अन्दर चले गये। इंडिया शाइन कर रहा था, मैं भीख माँग रहा था। गहरे अवसाद में डूबकर विक्रम बोला।

गम्भीर माहौल को हल्का करना अनीता को आता था। बोली, मुझे वापस मामा के यहाँ जाना है। मम्मी के साथ फिर आना है कथा-श्रवण के लिए। पुण्य का भागी बनने के लिए। लगता नहीं है कि तुम मुझे कथा सुनने की इजाजत दोगे।

- 'चाहता तो यह ही हूँ मैं। विक्रम बोला।

- 'ठीक है। मैं मम्मी के साथ वापस आती हूँ। फिर भीड़ में पाँच बजे तक के लिए गुम होकर तुम्हारे पास वापस आ जाती हूँ। तब तक इंतजार का सुख प्राप्त करें। ' कहकर अनीता चली गयी।

० ० ०

पंडाल में भक्तगण स्थान ग्रहण करने आने लगे थे। मंच से बार-बार प्रसारित हो रहा था कि यह विशेष कथा आयोजन है। इस महान आयोजन का सीधा प्रसारण समस्त विश्व में होगा। समस्त विश्व के भक्तगण सीधे हमारे साथ पुण्य के भागी हो सकेंगे।

अनीता आयी तो विक्रम ने व्यंग किया, 'तो आप इस महान आयोजन में भीड़ बढाने आयी हैं जो पापी अमरीका को पुण्यवान करने के लिए किया जा रहा है।

एकाएक ठिठक गयी अनीता। समझी तो मुस्कराने लगी।

- मेरे लिए ऑपरेशन थियेटर एक क्लास रूम है। कम-से-कम अपने वक्त में झाँकने की तमीज इन डाँक्टरों की संगत में थोडी बहुत मुझमें आयी है। इन आयोजकों से पूछो, इनका यह ताम-झाम महान है या विदेशी तकनीक जिसके माध्यम से सीधा प्रसारण संभव होगा। तुम्हें मालूम है, पिछले दिनों अपने शहर में एक हठयोगी पधारे। जिन्होंने बारह साल से एक हाथ उठाये रखने की जादूगरी की हुई थी। इन साधु महात्माओं के प्रताप से हम बसंत में अशोक के फूल चुनने के स्थान पर चॉकलेट पसंद करते हैं।

पाँच बजे कथा सम्पन्न होनी थी। अनीता बोली, 'गुमशुदा की तलाश शुरू हो इससे पहले ही मुझे वापस पहुँच जाना चाहिए।

विक्रम मुस्कराया। साथ ही वादा भी ले लिया कि चौदह फरवरी को पूरे दिन वह साथ रहेगी।

उस शाम दिल्ली से विक्रम वेलेंटाइन वीक मनाने की योजना के साथ लौटा। वह सोचता कि जलेबियाँ, चिट्ठी के इंतजार और साधारण सिनेमा हॉलों में फिल्म देखने का समय अब बीती बातें हैं। अब साधारण से सात गुनी बडी सिल्वर स्कीन आइमेक्स का जुमाना है। जब ये डाँक्टर हवाखोरी करने के लिए सिंगापुर तक उड़ सकते हैं. तो हम क्या दिन भर के लिए भी सांस नहीं ले सकते? आदमी हूँ कोई जानवर नहीं कि सिर झुकाकर पिलता रहूँ।

वेलेंटाइन वीक रोज डे से आरम्भ हुआ। साधारण से चार गुने रूपयों में रेड रोज खरीद कर विक्रम ने वेलेंटाइन वीक की शुरूआत की। चॉकलेट डे पर दोनों ने मिलकर विदेशी चॉकलेट का स्वाद लिया।

- अब तक बाजार में वेलेंटाइन डे की धमक सुनाई पडने लगी। विक्रम को आलम बदला-बदला लगने लगा था।

किस डे पर अनिता ठिठक गयी। विक्रम कुछ कहता इससे पहले वह ही बोल पड़ी. 'ड्यू रहा। उसकी आँखो में उमड़ता विनय देखकर वह मुस्करा कर चला गया।

14 फरवरी के कार्यक्रम की निश्चित रूपरेखा विक्रम अनिता को बता चुका था। सबसे पहले शॉपिंग-मील पहुँचकर अनीता को अपने लिए एक परिधान खरीदना था। दोपहर को साथ-साथ लंच लेने के बाद शाम को आइमेक्स में पिक्चर देखनी थी। देर रात लौटना था। कार का प्रबन्ध वह कर चुका था।

12 फरवरी की शाम को विक्रम का सेलफोन एक् बार फिर घनघनाने लगा। डॉ दिनेश ने उसे तुरन्त नर्सिंग होम पहुँचने का आदेश दिया। उनका स्वर कुछ बदला-सा था। पहली बार उसे अनजाना डर-सा लगा। नर्सिंग होम में पहुँचा तो विक्रम ने महसूस किया कि नये मरीज की कोई हलचल वहीं नहीं थी। अनीता ने ही इशारे से सीधे डा० दिनेश के चैम्बर में जाने के लिए कह दिया। अपने चैम्बर में डा० दिनेश थे। माफी माँगने के लिए गिडगिड़ाता मैडिकल स्टोर वाला राहुल उनके पैरों में बैठा था। दोनों को देखकर विक्रम के आगे धरती-आसमान घूम गया।

विक्रम को देख राहुल फुर्ती से उठा। स्तब्ध विक्रम की जेब में रखे हजार-हजार के नोट निकालकर डाँक्टर साहब को दे दिए। जो उसने दोपहर को उसे को दिए थे।

अनीता भी चैम्बर के दरवाजे के पास खड़ी हो गयी।

'मेरी ओ०टी० से मैडिसन चोरी हो रही हों, तुमने यह कैसे मान लिया कि मुझे इसका अहसास नहीं होगा। तुम जैसे कई पिल्लों को मैं लात मार -चुका हूँ। औकात में रहना नहीं जाना। चोर बन गया। एडवांस नहीं दूंगा तो चोरी करेगा। तू क्यों माँग रहा था यह मुझे मालूम था। तेरी इतनी बेइज्जती काफी है। राहुल से मैं निपटता रहूंगा। जा दफा हो जा। डाँ० दिनेश ने बिना किसी उत्तेजना दिखाए यह सब कहा।

नर्सिंग होम से बाहर निकलते समय विक्रम को महसूस हुआ कि एक छलांग में पार की जा सकने वाली तीनों सीढियाँ उसके लिए तीन सदियों के बराबर हो चुकी हैं। बाहर बाजार वेलेंटाइन वीक की आंधी में उड़ रहा था। डिस्कों धुनें भांगडा कर रही थीं। दुकानें दिल की आकृति की बंदनवारों से सजी थीं। उसी समय विक्रम को डा० दिनेश की बात याद आयी। नब्बे प्रतिशत भारत यदि 1० प्रतिशत इंडिया की होड़ करेगा तो बेइज्जत होगा ही।

- अजय गोयल

निदान नर्सिंग होम, फ्रीगंज रोड, हापुड़-245101

मो० - ०9837259731

a.ajaygoyal@rediffmail.com

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रचनाकार: अजय गोयल की कहानी - वेलेंटाइन डे
अजय गोयल की कहानी - वेलेंटाइन डे
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