रामानुज मिश्रा की कहानी - काली माई

SHARE:

काली माई रेशम सी मुलायम अगहनी धूप दीवार पर धीरे-धीरे उतरकर आंगन को छूने लगी है। पल भर के लिए कटोरे में ठहरी धूप की एक किरण सुमन की आँखों मे...

काली माई

image

रेशम सी मुलायम अगहनी धूप दीवार पर धीरे-धीरे उतरकर आंगन को छूने लगी है। पल भर के लिए कटोरे में ठहरी धूप की एक किरण सुमन की आँखों में चमक भर देती है। चकाचौंध से खींझ का एक टुकडा उसके मन में समा जाता है। टोकरी भर बर्तन मलने के बाद अभी-अभी तो बरामदे में बैठी है पीछे पर। बन्द हुई आँखों में भीतर का रातवाला गुस्सा जाग उठता है।

संध्या प्रस्थान के बाद ही वह जब घर की कोठरियों में दीया दिखाने लगी कोनों में चुपचाप बैठी खामोशी भी पीछे-पीछे चलने लगी। दालान तक पहुँचते-पहुँचते उसने देखा माँ ठीक दरवाजे की चौखट पर बैठी है, बगल में ही है कडे से भरी खंचिया। बाबू लौट आये है पगिया से। उनकी पगडी साफ-साफ दिख रही है उनचन पर। वापस घर लौटते हुए सुमन ने महसूस किया-माँ की आँखों में हमेशा की तरह कई सवाल हैं।

'का भयल'

'का होई उहे भयल, जवन न होखे के चाही'

नहकार गईलें का?'

'लेन-देन पर त नाहीं बिगड्‌ल, लेकिन......'

सुमन को आभास हो रहा है,सवाल-जवाब में गरमी आयेगी।

लड़िका क मतारी भीतर से साफ-साफ कहलस हमके लड़की गोर-अंगार चाही, करिया कलूटी नाहीं। पढाई-लिखाई लेके चाटव का?'

ओकर भतारों कुछ कहलस

'ऊ का कही। चुप्पी साध लेहलस। मेहरी के वश में ह ससुरा। '

उसकी माँ का गुस्सा वहाँ से लौटकर अब अपने पति जगरदेव पर भहरा पडा।

'हम जानत हई। तू कुछ नाहीं कय सकता। लड़की दिन पर दिन सयान हो गइल। अरे ऊ मुँहझौंसा क मुँह फूक देवे के चाहत रहल ह। घरे त शेर बनयला तू-बाहर बकरी बन जाला?

यह तय था कि बात केवल बात से खत्म नहीं होगी। दोनों ओर का क्रोध सारी रात अपनी चाल चलेगा। सांझ खत्म होते ही रात आगे बढने लगी थी, पर सुमन को नींद कहाँ? बीच में पल भर के लिए रुका महाभारत फिर लौट आया। 'तू खुदयं कुलच्छनी हई, करिया कलूटी लईका पैदा कइली। ' 'देखा हमसे कहावा जिन, अपने बुढ़वा के भुलाय गइला अलकतरा जइसन, लाड़ अलगे से। सारी जिनगी भचकते बीतल। '

अँधेरे में लहराते माँ के हाथ कौन देख सकता था। लालटेन कब की भभककर बुझ गई थी।

देख हमरे बाप-दादा पर मत जो। बात बिगड़ जाई। बताव हमरे खनदान में अइसन कलुटी रहल कोई?'

'नानी के आगे ननिअबुरे क बखान जिन करा। अपने फुलवा के भुलाय गइला। लतियाय के भगाय देहले रहलयं सब। '

जगरदेव का तमाचा ज्योंही माँ के गाल पर पड़ता, सुमन बीच में आकर उसे बचा ली। गुस्से में बढती बातें गाली-गलौज का रूप ले ली।

बाबू तमक कर बंसखट से कई बार उठे, पर माँ चौखट से तिल भर नहीं हिली। एक-दो बार तो बाप के तने हुए तमाचे बड़बड़ाती माँ के मुँह तक पहुँच गये- सुमन ने उसे ढाँपकर बचा लिया था। समूची रात लडाई में गुजरी। न चूल्हा जला, न अन्न का दाना किसी के मुँह में गया। अँधेरा जब ढीला होकर भोर के पास पहुँचा, मियाँ-बीवी की लड़ाई में पराजित जगरदेव लोटा लेकर बाहर गया तो चिरौरी कर सुमन ने माँ को चौखट से हटाया। हाँ, तब जाती हुई रात सुमन के लिए नींद का एक नन्हा टुकडा जरूर फेंक गयी।

धूप तुलसी चौरे को रंगते हुए सिर पर खड़ी होने लगी है। उसका मन सोच-विचार की कटीली झाडी में उलझता ही जा रहा है। बेबसी बार-बार उसे ही क्यों चिढ़ाती है। लडकी है वह माँ-बाप के कन्धों पर मानों वजनी बोझ हो चली है। यह बोझ आज का तो नहीं पैदाइशी है। माँ ने बताया था- जब वह पैदा हुई, दादी ने चूल्हे में खौलता अदहन का पानी उड़ेल दिया था। अनगिनत गालियों से प्रसूता का सत्कार हुआ था।

image

बचपन के दिन खेलते-कूदते कम, गालियाँ सुनते ज्यादा बीते। जैसे-जैसे वह बडी होती गई, उसके रंग की करिअई और गाडी होती गयी। स्कूलवाले मैदान में खेलते वक्त उसके लिए अक्सर करझौंसी शब्द हवा में उछलते रहते। वह भी कलूटी के बदले कई-कई गालियाँ साथी बच्चों की ओर झोंक देती-तोरे माई क. तोरे बाऊ क.। जब लतखोर बच्चे इतने से भी नहीं मानते तो नकबहनी भुक्खड़, चोट्टा कहकर उनका मुँह बन्द करा देती। अब तो अपनी त्वचा के रंग से देर तक दुख नहीं

पहुंचता। जल्दी ही सब कुछ भूल गोट्टी, लंगड़गुदिया खेलने लग जाती। घर में देर से सोकर उठने के बाद माँ भी तो कलूटी शब्द ही उसके लिए प्रयोग करती। बाऊ भी क्रोध में आकर घूरते, कुछ बोलते नहीं- तब वह सन्न रह जाती। अनजाना सा भय मन में पैठ जाता।

धीरे-धीरे उसने अपने आपको मनाना सीख लिया। अपने नाम का पर्याय मान लिया कलूटी को। लेकिन जब कोई बाहरी आदमी उसे इस नाम से पुकारता, उसके भीतर कुंडली मारकर बैठा करइत भीतर ही भीतर रेंगने लगता। पर गुस्सा बाहर आते-आते मिट्टी का परशुराम बन जाता। धीरे- धीरे जुटनेवाले अन्तर्साहस में सरेआम सेंध लग जाती।

हालांकि सुमन के पिता ने उस पर एक कृपा जरूर की। पढाई का अटूट सिलसिला जारी रखा। प्राइमरी स्कूल से होते हुए वह महाविद्यालय तक पहुँच गयी। अपने अध्ययन के पारिवारिक कारणों की उधेड़बुन में वह कम पड़ती-शायद ऊँची पढाई से उसकी शादी में मदद मिले। पर पड़ोसियों को उसका यहाँ तक पहुँचना कभी अच्छा नहीं लगा। बगलवाली सुमन बुआ ने तो प्राइमरी पास होते ही उसे सयानी घोषित कर दिया। वह घोषणा करती कि कउने घर जाई, के बियाह करी?' माँ उनकी बात पर ध्यान कम देती लेकिन इन्टरमीडिएट में पहुँचते ही एक दिन उसे अनजाने से दर्द ने विचलित कर दिया तो माँ ने उसकी ओर घूरकर देखा था। शायद उसकी आँखों में आगत की चिन्तायें थीं। उस दिन से वह विशेष बन गई थी।

बीए. अन्तिम साल तक पहुँचते-पहुँचते मीरा, कबीर, जायसी, निराला, महादेवी उसके मित्र बन गये। मन की अतल गहराइयों में वे अपने-अपने तरीके से बैठ चुके थे। बिहारी ने उसके भीतर छिपी युवती को जागृत कर दिया। प्रेम के शारीरिक पक्ष की अनिवार्यता अब स्वयं सिद्ध होने लगी। प्रलय के बाद एकान्त में विचरण करते निराश मनु के जीवन में आशा का संचार करनेवाली श्रद्धा उसकी विश्वस्त सहेली बन गई।

खाना बनाने, परोसने तथा खुद खाने के बाद जब वह बिस्तर पर पहुँची तो लगा कि उसका मन एकदम खाली है। धीरे-धीरे ऊबन परेशान करने लगी। काल्पनिक पगडंडी पर विचार यायावर बन दिशाओं में तैरने लगे। खिड़की से आती ठंडी हवा के झोंके ने भटकते मन को वापस लौटा दिया। अब नींद चुपचाप शायद उसके पास आ जायेगी।

नींद आई किन्तु अकेली नहीं, सपने भी साथ आये। दूर-दूर तक फैला सन्नाटा। चाँदी की बिछी हुई बर्फ और ऊँची-ऊँची बर्फ सनी चोटियाँ। उन्नत शिखर में मृदंग की थाप धीरे-धीरे तेज हो रही है। चोटियों को चूमते बादलों की चादर को परे सरका वंशी के स्वर धीरे-धीरे नीचे उतर रहे हैं। वंशी और मृदंग के स्वरों का मनोहारी संयोग। प्रकट होते हैं कैलाशवासी महादेव शक्ल हवाओं के संग। वंशी के स्वर रुकते हैं, मृदंग की थाप थम जाती है। सुमन सिर नीचे किये वरदान की इच्छुक हथेलियों को गौरीपति के सामने फैला देती है। तभी बादल नीले आकाश से नीचे उतरते हँ, बिजली चमकती है। नीचे झुककर मेघ शंकर के कानों में कुछ कह रहे है. एक संगीतमय शंखनाद प्रतिध्वनित होता है।

बालिके तुम्हें अभी और तपस्या करनी है। '

नींद ने साथ छोड़ दिया. वह बड़बड़ा रही थी। बगल में सोई मां की निद्रा सुचेत हो गई। 'चुप रह, बड़बड़ा मत। करवट बदल ले, चित्त मत सो' उसने कहा।

रातवाला पूरा अंधेरा न जाने कहाँ विलीन हो गया। सूरज की एक पतली किरण चौखट छूने लगी। रात के सपने से भयभीत सुमन की निद्रा अभी टूटी नहीं। उसे अच्छी तरह से पता है- गिन बटोरती माँ रोज-रोज की तरह उसके लिए कई आधी-अधूरी व्यंग्य भरी गालियाँ कोठरी में भेज देगी. 'महारानी उठ. ए सहुरे तोके कुच दीहैं सब। ' आंगन की सटर-पटर ने उसे जगा ही दिया। उसे पता है बहुत काम करने हैं घर में। चूल्हा चौके से लेकर बर्तन माँजना है. हैंडपम्प से गगरी भर पानी लाना है फिर बाबू के लिए खराई भी बनानी है। खेती में भी बहुत सपराना है. तीसी बिननी है, सरसों काढ़ना है। कथरी को मोड़कर सिरहाने रख. बिना हाथ मुंह धोये बर्तन साफ करने पहुँच गयी। भातवाली बटलोही में चावल लग गया है. उसे करोने के लिए दायाँ हाथ जैसे ही वह भीतर डालती है, महसूस हुआ किसी ने उसके हाथ को पकड लिया है। मन यहाँ से भागकर पहुँच गया रातवाले सपने के पास- बालिके तुम्हें अभी और तपस्या करनी है। '

महाविद्यालय पहुँचने का रास्ता आज छोटा पड़ गया। घर का श्रापित नैराश्य तो पहले ही मोड़ पर छूट गया, लेकिन पड़ोसियों के जहर से सने कटाक्ष अगले मोड पर ही उससे अलग हो पाये। रास्ते की बेहूदी बेनाम निगाहें रोज की हिस्सा थी। उसे देख मजनुओं का मुँह बिचकाना आज स्वत: पीछे छूट गया। उसे अब न इन पर गुस्सा आता है. न ही तरस। सड़क का तीसरा मोड़ पार करते ही उसके महाविद्यालय का गेट दिखाई देने लगा। अपने सहपाठी विद्यार्थियों को ठेलते, धकियाते वह सीख्यिाँ चढ़ने लगी। आखिरी सीढ़ी पर पहुँचते-पहुँचते फिर रात का सपना रास्ता छेंककर खड़ा हो गया। थिरकते पाँव थम गये-कैसी तपस्या और कब तक? गालों पर झुक आयी लट को झटका देकर ऊपर पहुंच गयी। खचाखच भरा क्लास-आज कुछ लेट है क्या?

गंभीर किस्म के लडके, लड़कियां आगे की सीटों पर आसीन है, ताक-झांकवाले मध्य में बाईं ओर। सरिता के बगल में बैठते ही उसने पीछे मुड़कर देखा, प्रतीक्षा थी। उसने लक्ष्य किया कि वह तो नेत्र-संधान के बीचो-बीच पड गयी है। उसने देखा ' एक लड़का मुँह बिचका रहा है जैसे किसी ने कड़वी ककरी उसके मुँह में डाल दी हो। सर जी का अब तक पता नहीं। घड़ी के हिसाब से क्लास पन्द्रह मिनट लेट है। उसे ऑफिस में जाना चाहिए। यहाँ पर और बैठी रही तो गाँववाली चाची के नुकीले व्यंग्य बाण उसे बेधने लगेंगे- 'ई करझौंसी से कवन बियाह करी?' नहीं, वह हिन्दी सर को देखेगी।

ऑफिस की सीढ़ियाँ चढते-चढते उसे ध्यान आया कि वह अकेली है, प्रभा को भी साथ ले आना चाहिए था। खिड़की से उसने देख लिया- हिन्दीवाले सर और इतिहास की मैडम किसी रोचक वार्ता में मगन हैं। उसके वहाँ खड़े होते ही दोनों के चेहरे का रंग बदल गया था। खींझ उभर आयी थी हिन्दीसर की मुख मुद्रा में। वापस लौटते उसने कहा, 'सर जी, पूरा क्लास 15 - 20 मिनट से आपका इन्तजार कर रहा है। ' चलो मैं आ रहा हूँ न। उनके स्वर में आकस्मिक क्रोध प्रवेश कर चुका था। सुमन भारी मन से सीढियाँ उतरने लगी। अन्तिम सीढ़ी तक पहुँचते ही सर की तल्ख आवाज कानों में पडी- 'दाई, इ कलुई कैसे आ गई ऑफिस में, रोकी क्यों नहीं? बार-बार करिअई झलकाने चली आती है। ' उसके पाँवों में बिजली का करंट सा लग गया। सारा शरीर क्रोधाग्नि में धधकने लगा। क्लासरूम की बजाय फिर ऑफिस में उलटे पाँव धमक पड़ी।

हां सर, मैं कलुटी हूँ, कलुई भी। आप बता सकते हैं इसमें मेरा क्या दोष है? रोस से भरा उसका सारा शरीर काँप रहा था। आखिर जिस सष्टा ने गोरे लोगों को बनाया, उसी ने तो मुझे भी बनाया है। यदि नहीं बनाया तो आप क्यों कहते हैं, सारी सृष्टि का सर्जक एक ही ईश्वर है?'

'सुनो भाई, सुनो। नाराज क्यों हो रही हो?' सर की आँखों में एक विकलांग प्रतिवाद झलकने लगा था।

'सर, मैं नाराज नहीं, अपनी बात कह रही हूँ। आपने ही तो इस बात को बार-बार हमें बताया था। ' अब उसका गुस्सा छत से टकराने लगा था।

'आप ही तो अक्सर जायसी के व्यक्तित्व का उदाहरण देते हैं-मोहि पे हँसेसि कि कोहरहिं। उस वक्त तो बादशाह के चुगलखोर दरबारी चुप रह गये थे, लेकिन आज आपको बोलना पड़ेगा। उस निर्माता परमेश्वर पर क्यों नहीं हँसते?'

इतिहासवाली वर्मा मैडम काठ की पुतली बनी कभी हिन्दी सर को, कभी सुमन को देखने लगी थीं।

'अरे सुनो, सुनो। मेरा मतलब ऐसा कुछ नहीं था। ' उनकी आवाज में एक नपुंसक कायरता आ चुकी थी।

'सर, आपको यह भी बतलाना पड़ेगा कि कृष्ण सांवले थे, काले थे तो घर-परिवार, समाज की लोकमर्यादा त्याग वंशी की तान पर वे क्यों दौड़ जाती थीं? राधा और तमाम गोपियों को कालिन्दी का श्याम तट ही क्यों भाता था?'

'सुनो, मैंने तुम्हें कुछ कहा तो नहीं। ' सुमन को न तो कुछ सुनाई पड़ रहा है, न ही कुछ दिखाई। हिन्दीवाले सर के माथे पर पसीनें की कई बूँदें झलमला रही थीं। ऑफिस की तेज बातें क्लास रूम तक पहुंच गयी थीं। लड़के-लड़कियों का खामोश जमाव धीरे-धीरे बाहर होने लगा।

'सर जी, आप लोग तो विद्वान हैं, सौन्दर्य शास्त्र की सटीक परिभाषा जानते हैं और उसे हमें बताते भी हैं। ' क्रोधावेग में उसकी हथेलियाँ बार-बार मेज पर पड़ रही थीं। कालिंग बेल लड़खडाकर फर्श पर गिर पड़ा था।

'क्या गोरा रंग ही सुन्दरता का मूलाधार है। अगर ऐसा है, तो अफ्रीका के सभी मूल निवासी बदसूरत हैं। उन्हें आप लोग अपनी दुनिया से बाहर क्यों नहीं निकाल देते? ताकत है किसी में। ' उसकी आवाज के सिवाय ऑफिस में कोई दूसरी और आवाज नहीं थी।

'सर, आप लोग अपने को गोरा समझते हैं. सुन्दर भी। पर आप क्यों भूल जाते हैं-यूरोपियनों की निगाह में सारा हिन्दुस्तान ब्लैक है, काला है। '

' अब तो चुप हो जाओ, बहुत हो गया। '

'क्यों? बताइये न सर जी। आप तो संवेदनशील साहित्यिक पुरुष हैं... अफसोस कि सुन्दरता को केवल चेहरे पर देखते हैं. भोगते हैं। बार-बार मन को धोखा देते हैं। चुप क्यों रहूँ? क्या गलती है मेरी?' 'मैडम, आप ही बताइये न लोग मन के आन्तरिक भाव-जगत की खुशबू से खिलवाड़ क्यों करते हें?'

एक विवश सन्नाटा कॉलेज को छू रहा है। अन्तहीन प्रश्नों के आवेग से मैडम वर्मा अवाक सी हो गयी थीं। हिन्दीवाले सर के स्वर में बहुरुपिया कायरता उभरने लगी।

'सुमन तुम तो कोई बात सुन ही नहीं रही हो। काली माई सवार हो गई हैं तुम पर। ' बिलकुल नहीं सर, मेरे ऊपर कोई सवार नहीं.... मैं काली स्वयं हूँ। मुझ पर कोई सवार हो ही नहीं सकता

---

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: रामानुज मिश्रा की कहानी - काली माई
रामानुज मिश्रा की कहानी - काली माई
http://lh4.ggpht.com/-VvuAnpEIMJs/VRD_fomVMeI/AAAAAAAAgas/5zH-rqjHAi0/image_thumb.png?imgmax=800
http://lh4.ggpht.com/-VvuAnpEIMJs/VRD_fomVMeI/AAAAAAAAgas/5zH-rqjHAi0/s72-c/image_thumb.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2015/03/blog-post_741.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2015/03/blog-post_741.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content