कहानी उपनिवेश

SHARE:

अजय गोयल ऑपरेशन के चौथे दिन डॉ. नेहा का निर्देश था कि नलिनी को दो-चार कदम चलाया जाए। इसलिए भाभी ने उसे सहारा देकर बैठाया। उसकी चोटी की। जि...

image

अजय गोयल

ऑपरेशन के चौथे दिन डॉ. नेहा का निर्देश था कि नलिनी को दो-चार कदम चलाया जाए। इसलिए भाभी ने उसे सहारा देकर बैठाया। उसकी चोटी की। जिन्दगी में वापस मुझने का उसे अहसास हुआ। अपने काँपते पैरों से नलिनी जब बेड से उतरकर खड़ी हुई तो सारी दुनिया उसे हिलती महसूस हुई थी। उस समय भाभी ने उसे सँभाला। मुश्किल से क्‌दमभर चलकर वह वापस बेड पर बैठ गई थी।

''कदम भर चलने में इतनी थकान एक इवेंट मैनेज करने पर भी नहीं होती।'' नलिनी ने बैठे हुए सोचा था। भाभी ने सहारा देकर उसे बेड पर लिटा दिया। फफक पड़ी थी नलिनी। भाभी के हाथों को पकड़कर बोली ' 'ललित क्या मुझे मरने के लिए छोड़ गया था? मम्मी और पापाजी ने भी मेरे खून का इंतजाम नहीं किया। भाई और आप नहीं आते तो... ?' ' बाकी शब्द उसके गले में अटक गए थे।

नलिनी के प्रश्नों के उत्तर भाभी के पास नहीं थे। अपने सास-श्वसुर को आदर में वह मम्मी-पापाजी कहती। यही संबोधन ललित भी उन्हें करता। भाई सतीश उसका अपना सहोदर था। वह नलिनी का ऑपरेशन संपन्न होने से पहले नर्सिग होम पहुँच चुका था। डॉक्टर ने 24 घंटों में लगभग 5 यूनिट ब्लड का प्रबन्ध करने के लिए कहा था। भाई का अपना शहर था नहीं, फिर भी उसने अचार-मुरब्बे बेचने वाले पकड़े और कुछ ही घंटों में खून का प्रबंध हो गया।

मम्मी-पापाजी और ललित के पलायन कर जाने का अहसास नलिनी को कल हुआ। जब उसका हालचाल पूछने जगपाल फ्ताइट से आया था। उसे समझ नहीं आया कि बच्चे को बचाने के लिए वक्त रहते सिजेरियन सेक्शन क्यों नहीं कराया गया और आखिर में हिस्टरेक्टमी की नौबत कैसे आन पड़ी चलते वक्त जगपाल ने नलिनी से पूछ लिया, ''ललित कही है, भाई? तुम्हारे सास-श्वसुर भी गायब हैं। मैं तुमसे कहता था कि जिंदगी इतनी आसान नहीं हैं, जितनी तुम समझ रही हो।''

उस वक्त नलिनी ने सतीश की ओर देखा। उत्तर देने में वह अचकचा गया था। अन्यथा वह नलिनी को सबकुछ सामान्य होने की दिलासा देता आ रहा था।

जगपाल के जाने के बाद अपनी कमजोर आवाज में नलिनी ने सतीश से कहा, ' 'या तो सच बताएँ, नहीं तो मैं ग्लूकोज की नली निकालकर फेंक दूँगी। कोई दवा नहीं लूंगी। मेरे पास खोने के लिए ज्यादा कुछ नहीं बचा है। बच्चा जा चुका है। बच्चेदानी निकाली जा चुकी है।' ' तभी सतीश ने उसे बताया कि ललित ऑपरेशन वाले दिन चला गया था, जबकि मम्मी-पापाजी दूसरे दिन निकल लिये थे।

नलिनी सोचती कि हर शिखर पर झंडा फहराने का इरादा रखने वाले ललित की समझ में नहीं आया होगा कि जब बच्चा मर चुका हो और डिलीवरी के बाद लगातार रक्त-स्राव के कारण पत्नी की जान बचाने की खातिर बच्चेदानी बाहर निकलवानी पड़े और आगे की उम्मीद- तक खत्म हो जाए, तब क्या किया जाए। ...और मम्मी-पापाजी? शायद उन्होंने सोचा तक न था कि घर में पहले लड़की कदम रख सकती है।

मुम्बई से प्रसव के लिए पिछले महीने ससुराल आई थी नलिनी। तब मम्मीजी ने इशारों-इशारों में मन की थाह जता दी थी, ' 'घर लड़के की किलकारियों से गूँजे तो दिल को चैन मिले। ललित के समय रोजाना सुबह-शाम पूजा करती थी मैं। आज जमाना बदल गया है। मेरी सास ने साफ कह दिया था कि लड़का न हुआ तो बस...। पर तुम तो पूजा-पाठ नहीं करती। बहुत कहने पर हाथ जोड़ लेने का अहसान भगवान पर जरूर कर देती हो।' '

जबकि नलिनी ने गर्भ के नौ महीनों में होने वाले मानवीय विकास का लेखा-जोखा रट डाला था। उसे पता था कि गर्भ के चौथे सप्ताह में मछली जैसे मानव भूण के गिल, जबड़े, गर्दन और चेहरे के अंगों के रूप में विकसित होते हैं, और आठवें सप्ताह में एक नन्हा दिल धक-धक करने लगता है। अट्‌ठाईसवें सप्ताह तक था के हाथ-पैर विकसित हो चुके होते हैं।

मम्मीजी को लगता है कि घर के बाहर तक यानी उनका सब कुछ उनके पूजा-पाठ ने साध रखा है। वे समझतीं कि उन्हें प्राप्त पुत्रों के रूप में दोनों संतानें, बस पूजा से संभव हो सकीं। अपने अतीत को खँगालकर वे बतातीं, ' 'फँस गए थे एक बार तुम्हारे पापाजी रिश्वत लेते हुए। फिर क्या था? मैंने भी डाल दिया अपने इष्ट को पानी में, कहा कि जब तक हम डूबे हैं, तब तक तुम भी डूबे रहो।' ' ईश्वर के साथ ऐसा ऐसा खुला, बीजगणितीय सम्बन्ध सुनकर नलिनी का मुँह खुला का खुला रह गया था। फिर भी पूजा-पाठ से बच्चे के लिंग का सम्बन्ध उसे हास्यास्पद लगता। पर लक्षणों के आधार पर मम्मीजी ने लड़के होने की भविष्यवाणी कर दी थी। जबकि नलिनी एक स्वस्थ बच्चे की कामना करती। उसे मम्मीजी का व्यवहार अल्ट्रासाउंड रूप में असहज लगा। उस समय वह प्रसव-पीड़ा में तड़प रही थी और गर्भ में बच्चे के दिल की धड़कनें कम होने लगी थीं। डॉ. नेहा के बगल में मम्मीजी खड़ी थीं। वह अल्ट्रासाउंड टेबिल पर थी। रह-रहकर दर्द की लहर-सी उठती तो लगता, समूचा जिस्म फट जाएगा। रूम के बाहर ललित व पापाजी थे। तभी मम्मीजी ने डॉक्टर से पूछा था, ' लड़का होगा न।' '

' 'नहीं, लड़की है।'' एक झटके में डॉक्टर बता गई थी। दूसरे ही क्षण अपनी गलती का एहसास हुआ, पर तीर निकल चुका था। बोली, ' लड़की या लड़के से क्या फर्क पड़ता है? गर्भ में बच्चा उल्टा है। धड़कनें कम हो गई हैं। ऐसी स्थिति में सिजेरियन सेक्शन करना है मुझे।' '

नलिनी ने देखा कि मम्मीजी पस्त-सी रूम से निकल गई थीं। क्या हुआ दो मिनट बाद लौटकर बोलीं, ' 'ऑपरेशन के बिना डिलीवरी नहीं हो सकती क्या? कोशिश करें, डॉक्टर साहब।''

' 'आपको लिखकर देना होगा कि आप 'वजाइनल डिलीवरी' चाहते हैं। बच्चे को कुछ होता है, तो इसके जिम्मेदार आप होंगे।'' सपाट-सा उत्तर था डॉक्टर साहब का।

एकाएक पीड़ा के ज्वार में नलिनी अल्हासाउंड टेबिल से उतरकर फर्श पर बैठ गई। नर्स ने उठाया उसे। वह बोली, ' मम्मीजी ऑपरेशन हो जाने दें। मेरे बच्चे को कुछ नहीं होना चाहिए।''

नर्स नलिनी को सहारा देकर ले जाने लगी। पीछे से मम्मीजी की आवाज थी, ' 'सब्र कर। लड़की तो आ रही है।''

वह रास्ते में कुछ नहीं बोल पाई। कमरे में जाकर उसने एक बार फिर कहा, ''ऑपरेशन हो जाने दीजिए।'' उस समय पीड़ा से फटी जा रही उसकी कमर को मम्मीजी सहला रही थीं। तभी ललित कमरे में आकर बोला, ' 'डॉ. वन्दना आ रही हैं। यदि वे भी सिजेरियन के लिए कहती हैं, तो...।' '

नर्स फिर कमरे में आई थी। डॉप्लर से बच्चे के दिल की धड़कनें सुनने लगी। शायद बहुत कम हो गई थीं धड़कनें। तेजी से वह कमरे से बाहर निकल गई। तभी नलिनी को 'लेबर रूम' में शिष्ट कर दिया गया। चौथे दिन शाम को नलिनी दो-चार कदम कमरे में चल पाई। भाभी ने उसे सहारा दिया था। उस समय उसने पूछा, ' 'डॉ. वन्दना को देर क्यों हुई ?''

पहले वे अपने केस में व्यस्थ थीं। उसके बाद ट्रैफिक जाम में फँस गई। जब बच्चे की धड़कनें एकाएक डॉप्लर से सुनाई नहीं दीं, तो डॉ. नेहा ने ललित को लिखकर देने के लिए कहा या तुम्हें कहीं और शिष्ट कर लेने के लिए बोला।''

' 'ललित ने लिख दिया था क्या ?'' पूछा था नलिनी ने।

' 'दस्तख्‌त उसके भी हैं।'' भाई का उत्तर था।

उसने जब सुना, तो गिरते-गिरते बची। भाई ने सँभाला। नलिनी सिसकने लगी थी। समझ में नहीं आ रहा था कि इतना कुछ, वह भी इतनी जल्दी कैसे घटित हो गया। बच्चे को बचाने के लिए क्यों नहीं सिजेरियन करा सकी। जबकि इस वक्त दुनिया मानवीय अंगों को चूहे की पीठ बनता देख रही है, और ...वह अपना बच्चा तक बचा नहीं पाई। साथ में यूट्‌रस खो बैठी।

नलिनी को डिलीवरी रूम में थोड़ी-सी देर के लिए कराहता बच्चा याद था। लेबर टेबिल पर वह तड़पती रही। जन्म के बाद बच्चा कुछ देर के लिए कराहा भर था। जीते जी वह उसे छूना तो दूर, देख भी नहीं सकी। डिलीवरी के बाद अधिक रक्तस्राव को रोकने के लिए डॉक्टर ने पहले उसे यूट्‌रस की पैकिंग कर दी और उसे कमरे में शिफ्ट कर दिया। वही आकर वह तड़पती रही। उसने ललित को पकड़कर झँझोड़ तक दिया था। सांत्वना देती मम्मीजी की ओर उसने गुस्से से देखा तक नहीं।

देखती क्या? ससुराल में देशी-विदेशी फिल्में देखकर समय व्यतीत किया था। मम्मीजी भी साथ बैठ जाती थीं। उस क्षण वह अवाक् रह जाती, जब ईश्वर की सत्ता को चुनौती देने वाले किसी पात्र का मम्मीजी समूल नाश देखना चाहने लगती हैं। उसे याद था, नौ-दस साल का फूल-सा पावेल। जिसका पिता नास्तिक था। पावेल ईश्वर के अस्तित्व से बेखबर खेल में मगन रहता था। क्रिसमस की छुट्टियों में पावेल का पिता आइस-स्केट्‌स लाया। उसने इस शर्त के साथ स्केट्‌स पावेल को दिए कि वह बर्फ से जमी झील पर स्केटिंग नहीं करेगा, पर बच्चे लापरवाह होते हें। एक दिन पावेल झील में जमी बर्फ की सतह पर स्केटिंग करते समय डूब गया। पावेल की मौत पर नलिनी का गला रुँध गया था। आँखें भर आई थीं। उसने देखा, मम्मीजी पावेल के पिता पर गुस्सा थीं। बोलीं, ' 'नास्तिक था। ईश्वर दंड देता कि नहीं।' ' इतना सुनकर सन्त रह गई थी नलिनी। अस्पताल के बेड पर पड़ी नलिनी ने सोचा, मम्मी जी के अनुसार तो उसके लिए ईश्वरीय दंड है यह। जबकि उम्र के अनुसार शरीर पर पड़ने वाली किसी झुर्री का अंतिम सीमा तक विरोध करती हैं वह।

ऑपरेशन के बाद पहले दो दिन नलिनी अर्द्धचेतना में रही। चेतना लौटती, तो वह भयंकर दर्द में तड़पने लगती 1 इस स्थिति में डॉक्टर को इंजेक्शन देना पड़ता। अर्द्धचेतना में नलिनी विगत में लौटती। कभी वह अपनी किसी इवेंट में होती तो कभी वह अपनी माँ के गिन में होती। चौक में बैठकर माँ अचार-मुरब्बे बनाती थी। उन दिनों ताजा जीवनयापन का यही एक सहारा था। नलिनी बहुत छोटी थी और खेल-खेल में उनकी परिक्रमाएँ करती जाती। अकेला भाई घर में कहीं टिकता था, बाहर मटरगश्ती करता रहता। पिता अक्सर महीनों बाहर रहते। उनके किरदार को वह बहुत बाद में समझ सकी थी। जीवन की डोर माँ ने ही साथ-स्व-रखी थी। बड़े अरमान में भरकर कहती, ' 'तुम्हें अपने पैरों पर खड़ा होना है। गाँठ बाँध के रखना।''

ऑपरेशन के बाद की बेहोशी में नलिनी को यह याद कहीं था कि माँ दो साल पहले जा चुकी थी।

' 'अब चलूँगी मैं।'' माँ ने कहा था। नलिनी बोली थी, ' 'मुझे भी साथ ले चलो।' '

' 'तुझे जिन्दगी में कुछ करना है। मैं हूँ न तेरे साथ।'' अपने ही अंदर से नलिनी को उनकी आवाज आई थी।

पाँचवें दिन राउंड पर आई डॉ. नेहा को नलिनी ने बताया कि वह आज बरामदे तक चलकर आई है। तभी उसने पूछा, ' 'बच्चे की धड़कन अचानक एकदम क्यों कम हो गई थी ?''

' 'बच्चे की ऑवल नाल उसके गले के चारों ओर लिपटी थी। बच्चा थोड़ा नीचे खिसका तो उसे दिक्कत होनी ही थी। इसीलिए मैं तुरंत ऑपरेशन के लिए कह रही थी।'' डॉ. नेहा का उत्तर था।

शायद डॉ. नेहा का उत्तर नलिनी पूरा नहीं सुन सकी, कुछ क्षणों के लिए शून्य में अटक गई थी वह। एक गहन मूर्च्छा-सी थी। नर्स ने घबराकर झँझोड़ा, ' 'मैडम, क्या हुआ आपको।' '

होश में आई, तो उसने पाया नर्स ने पकड़ रखा था। भाई भी हक्का-बक्का रह गया था। पसीने-पसीने हो गई थी नलिनी। सोचने लगी, अभी-अभी तो उसके हाथ में कराहता हुआ बच्चा था। सहसा उसे लगा कि वह किसी पार्टी में है, और चिल्ला रही है, ' 'बचा लो... बचा लो...! ...मेरे बच्चे को बचा लो।' '

अवचेतन में अटकी नलिनी को सहसा झटका लगा। चेतना लौटी तो उसे याद आया, वह गंगा-तट था। ऋषिकेश का।

वहाँ वह जगपाल के साथ इवेंट मैनेजर के रूप में गई थी। दिल्ली के किसी धन्ना सेठ की सालगिरह मनाई जानी थी। उसने खासतौर से विदेशी लिलीज और अफ्रीकन फूलों से सज्जा कराई थी। पार्टी में मोमबत्तियों की रोशनी थी। थीम के अनुसार सुनहरे बालों के पंख लगाए दो लड़कियाँ मत्स्य कन्या बनी थीं। इन सबके बीच उसने अपने आपको बच्चा लिये भागते हुए पाया था। बदहवास-सी वह जगपाल को ढूँढ रही थी।

वह उसकी एक कामयाब परफार्मेंस थी। उस रात जगपाल ने कहा था कि 'मिस वर्ल्ड' जैसी इवेंट मैनेज करने की उसकी हसरत के लिए वह अपने को कुर्बान कर देगा। बस, उसके साथ 'लीविंग इन रिलेशन' निभाना होगा।

जगपाल घाट-घाट का पानी पिए था। उसकी कम्पनी ने उसे एक स्वतंत्र इवेन्ट मैनेजर के रूप में मौका दिया था।

जगपाल की मानें, तो वह नलिनी का इंतजार कर रहा था। उसके स्पोर्टसिस्टम यानी गुरु की भविष्यवाणी थी कि न अक्षर की इवेंट मैनेजर उसके लिए भाग्यशाली होगी। टैरो कार्ड विशेषज्ञ गुरु ने बौद्ध और सूफी दर्शन का अध्ययन किया था। और... उनके मुरीदों की सूची में फिल्म-निर्माताओं से लेकर फैशन डिजाइनर थे। जगपाल उनके साथ वोदका के सरूर में बातें करता। उसने नलिनी को एक बार मिलवाया भी। उनकी भविष्यवाणी थी कि जगपाल के साथ वह किसी भी ऊँचाई तक पहुँच सकती है।

नलिनी की इस उलझन को माँ ने सुलझाया था। माँ उसके लिए मंत्र थी और तराजू भी। अपनी गरिमा के लिए उन्होंने जीवन में कठोर परिश्रम किया था।

' 'तुम शादी-गुदा हो। मेरी क्या स्थिति होगी।' ' नलिनी ने जगपाल से पूछा था।

' 'ललित तुम्हारे पीछे मँडरा रहा है। उसके साथ क्या हालत होगी तुम्हारी? कैरियर को आग लगाकर बच्चे पैदा करोगी और अच्छी मम्मी बनने के फेर में अपने को तबाह कर दोगी। बेबी, जो आसमानी हसरतें रखते हैं, उनमें उड़ने का दम-खम होना चाहिए।'' कंधे पर हाथ रखते हुए जगपाल बोला था।

' 'अब माँ बनने की कोई आशा तक नहीं रही।' ' नलिनी यह सोचकर व्यथित हो जाती। डॉक्टर ने उसे यूट्‌रस बचाने की पूरी कोशिश की थी, पर रक्तस्राव पैकिंग के बाद भी नहीं रुका। फिर... उसकी जान तो बचानी ही थी।

नलिनी ने ललित से मोबाइल फोन पर कई बार बात करनी चाही। ललित ने उसको उत्तर नहीं दिया। वह समझ नहीं सकी कि ऑपरेशन के दिन से ललित अस्पताल से क्यों चला गया। जबकि विवाह उसने ऐसे ललित से किया था, जो बर्फीले प्रदेश में रहने वाले एस्कीमो को भी बर्फ बेचने की क्षमता की बातें करता था। एक बार धूप सेंकते हुए वह बोला था, ' 'मैं चाहता हूँ हमारा बच्चा सिकंदर जैसा हौसला और न्यूटन जैसी काबिलियत लेकर पैदा हो। यह सब जैनेटिक इंजीनियरिंग से संभव है, जैसी टमाटरों को ज्यादा दिनों तक तरोताजा रखने के लिए उनमें ठंडे पानी में रहने वाली मछली के जींस प्रविष्ट कर दिए जाएँ।''

''तुम बुद्ध में अपनी मुक्ति क्यों नहीं ढूँढ़ते? मेरी माँ कहती थी कि नवजात बालक रावण की क्षमताएँ आठ साल के बच्चे जैसी थीं।' '

इसका ललित के पास कोई उत्तर नहीं था नलिनी ने उन दिनों कैरियर से थोड़े दिनों की छुट्टी ल ली थी। उसका मन करता कि ढेर सारा आराम किया जाए। नयी-नयी थीम्स सोची जाएँ। वह सोचती कि कितनी तेजी से बदल रहा है समय। दरबान अब अपने को सुरक्षा अधिकारी कहने लगे हैं, और बैरे पेय विशेषज्ञ। कितना बड़ा होता है एक अदना से अधिकारी आदमी का अहम्। वह हैरत में पड़ जाती। देखती कि पार्टियों में फिल्मी अभिनेताओं के पुतलों को अक्सर गोली मारी जाती है और खून का आभास देने के लिए 4००-500 साँस की बोतलों को बहा दिया जाता है। उसकी मनःस्थिति भाँपकर जगपाल कहता कि उसे अपनी माँ के 'दादी-नानी का आचार' में खप जाना चाहिए था।

शादी के बाद नलिनी सोचती कि माँ होती तो कितना सारा बतियाती उनसे! चौथे माले पर डिब्बेनुमा फ्लैट में रहना-सहना है, जिसकी न कोई छत, न गिन। चन्दा घर ऑगन आकर कहीं सारी रात रतजगा करे। यहाँ सूरज सुबह-सुबह किसी तेजस्वनी विद्वान की तरह ड्‌योढ़ी पर दस्तक नहीं देता। फ्लैट में किसी कोण से आकाश में सेंध लगाई जा सकती है। इसी तरह चलते हुए जिन्दगी बहुत दूर तक आ गई है। अब सब कुछ तैयार पैकेट में उपलब्ध है। तुम्हारे जमाने के लट्ठे के पाजामे और पॉपलीन की शर्ट या सूती धोती बहुत पीछे छूट गई है। अब वह घर में भी जीन्स और टॉप में रहती है। विवाह में मन टीसता रहा। न तुम थी, न पिताजी, तुम होती, तो... वरमाला तुम्हारे सामने ललित के गले में डालना काफी होता।

वरमाला शकुन्तला की तरह स्वयं नलिनी ने बनाई थी। मंदिर जाकर देवी महिषासुर-मदिर्नी के समक्ष ललित को वरा था। न कोई उत्सव था, न आयोजन, न ही धूम-धड़ाके का प्रबन्ध। ललित कहता रहा था कि कुछ होना चाहिए। आजकल फिल्मी स्टार भी विवाहों में उतर आते हैं।

' 'मैं चाहती हूँ 'मानव शेरों' का नृत्य हो। करा सकोगे ?' ' नलिनी ने पूछा।

ललित की समझ में नहीं आया कि 'मानव शेर' क्या होते हैं, फिर भी पूछा, ' 'किसी फिक्शन की बात कर रही हो?''

मुस्कराने लगी थी वह, फिर बोली, ' 'फिलहाल हम हैं तो उस पीढ़ी के प्रतिनिधि - जो माइकल जैक्सन द्वारा बरते टॉवल को लाखों में खरीदकर अपने जीवन को धन्य मानते हैं।''

'मानव शेरों' का नृत्य नलिनी को पिताजी ने दिखाया था। पीले रंग में पुते, लँगोट तक पीला और कसा हुआ। काले रंग की शेर जैसी छौहें के साथ पीले रंग के दस्ताने। शेर का मुखौटा पहने कलाकार दुर्गा अष्टमी के दिनों में देवी के समक्ष प्राण-पण से नृत्य करते और न्यौछावर में सन्तुष्ट हो जाते पिताजी लकड़ी की टाल का पुश्तैनी धंधा छोड्‌कर नक्कारा वादक बन चुके थे। चाहते थे सितारवादक बनना, पर उस्ताद ने उनके लिए नक्कारा चुना, जिसके वे दो मोमबत्ती रियाज के कलावंत बन चुके थे। कई बार उन्होंने दूरदर्शन और आकाशवाणी के नौटंकी कार्यक्रमों में नक्कारा बजाया भी था। गोपीचन्द, पूरन भक्त, हकीकत राय, लैला-मजनूँ जैसी कितनी नोटकियों में वह नक्कारा बजा चुके थे। नोटकी के चौबोला, ख्‌याल, लावणी, कुंडलियाँ, तान, दोहों और कौवालियों में माहिर हो चुके थे। ऐसी ही एक नौटंकी में जगपाल को खींच ले गई थी नलिनी। कलाकारों को टीपदार बुलंद आवाज में नक्कारे की संगत सुनने वालों का मन मोह रही थी। बाद में नलिनी ने कहा, ' 'फ्यूजन और मिक्सिंग के दौर में पार्टियों के स्पेस में क्या इन सबको जगह नहीं मिल सकती ?''

उस रात 'मानव-शेरों' का नाच देखकर पिताजी के साथ जब नलिनी लौटी, तो ताई-ताऊ रौद्र मुद्रा में थे 1 ताई ने उलाहना दिया, ' 'कौआ चला हंस की चाल, अपनी भी भूल गया। रविशंकर बनने के बड़े ख्वाब सजाए थे। क्यों जी, बड़ा भाई ही लकड़ी की टाल में क्यों पसीना बहाए? कल को कुछ बन गया, तो हमें दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंकेगा।''

नलिनी को याद है, पिताजी ने इतना कहा था, ''अब कुछ बनकर ही लौटूँगा।'' और उसी रात घर छोड्‌कर चले गए थे।

कहीं नक्कारा, और कहीं सितार! सोचकर नलिनी सिहर जाती, फिर भी जानती थी कि पार्टियों में एक बार चल गया, तो फैशन बनने में देर नहीं लगेगी। जरूरत कुछ नया रंग देने की होती है।

माँ नलिनी को बताती, ''तेरे पिताजी लकड़ी की टाल से कतराते थे। बार-बार कहते, कुछ और करना चाहता हूँ। सपने सँजोने की बुरी आदत थी। बस, भागे-भागे फिरते। इस बार तो ठानकर गए हैं।' '

पिताजी के जाने के बाद अक्सर माँ के मुख से नलिनी एक गीत सुना करती। उसके भाव थे, स्वामी तुम चाहे सुनो, मैं तुम्हारे गीत गाए बिना न रह सकूँगी। स्वामी, तुम चाहो सुनो, न सुनो, मैं तुम्हारे गीत गाए बिना न रह सकूँगी। स्वामी, तुम चाहे देखो, न देखो, मैं तुम्हें देखे ललचाए बिना न रह सकूँगी। स्वामी, तुम चाहे रीझो, न रीझो मैं तुम्हें अंक भरे बिना न रह पाऊँगी। माँ के बिस्तर के सिरहाने नलिनी को पिताजी का फोटो अक्सर रखा मिलता। एक दिन माँ ने उससे कहा, ' 'जिन्दगी बनिए के गुणा-भाग से नहीं चलती। यदि बच्चों को माँ चुनने की आजादी होती, तो सारे-के-सारे एक से ही पैदा होना चाहते।' '

अपने विश्वास के बलबूते माँ ने उसे आगे बढ़ाया था और एक दिन थककर दुनिया छोड़ने का इंतजाम कर लिया। उनकी मृत्यु का समाचार अकस्मात् आया था।

उस दिन नलिनी जीवन-मृत्यु और अमरत्व को समेटता 'कठोपनिषद्' के यम और नचिकेता के संवादों की शूटिंग में बतौर इवेंट मैनेजर व्यस्त थी। वे संवाद किसी फिल्म का हिस्सा बनने जा रहे थे। बजट सीमित था। शहर के आसपास ही मृत्युलोक जैसा वीराना उसे ढूँढ़ना था, जहाँ जीवन के पाँव तक न दिखते हों। नलिनी शहर के साथ बहती नदी के चौड़े पाट के बीच में निकल आई पीठ से द्वीप पर गई। ललित भी उसके साथ था। दोनों में नजदीकियों बढ़ चुकी थीं। वहाँ पहुँचकर लगा कि यही खड़े रहना नाले में स्नान करने से बदतर होगा। दुर्गन्ध शूल-सी चुभ रही थी। एक जिंदा नदी नाला बन चुकी थी। लौटते वक्त वह ललित से बोली, ''आदमी सबसे घिनौना जानवर लगता है। जो प्रकृति और आदमी दोनों को खा रहा है। मैंने पढ़ा था, वियतनाम युद्ध से लौटे अमरीकी सैनिकों द्वारा की गई आत्महत्याओं की संख्या वहाँ मारे गए अमरीकी सैनिकों से ज्यादा थी।'' आखिर में निर्देशक को नलिनी द्वारा सुझाया गया सरकारी स्कूल का सूखा मैदान पसंद आया। दृश्य के लिए सूर्यास्त के समय मैदान के बीच थोड़ी अग्नि प्रज्वलित की गई। कैमरा भी क्रेन पर रहना था, जिससे अग्नि, पात्र व आसपास का सूखा मैदान ही दृश्य में सीमित हो।

जीने से उतरते समय पैर फिसलने से माँ की मृत्यु हुई थी। उनकी इच्छानुसार उनका अग्निदाह उसी स्थान पर किया गया, जहाँ कभी नानी का हुआ था, खेतों के बीच। वह कहती थीं कि देह सीधे मिट्‌टी में मिल जाए, तो सद्‌गति होती है। शेष रही अमरता। वह तो विरासत है। नचिकेता यम संवादों के लिए उपयुक्त स्थान खोजती नलिनी को यही समझ आया था। माँ ने अपनी यात्रा के अंतिम पड़ाव पर अचार-मुरब्बों का अच्छा-खासा व्यवसाय छोड़ा था, जिसे सतीश ने सँभाल लिया, फिर भी पिताजी की लंबी अनुपस्थिति का दर्द उनके मृत चेहरे से झाँकता हुआ लगा था।

ऑपरेशन के बाद दो-तीन टाँकों में पस पड़ गया था। अब तक खामोश रहा भाई डॉक्टर पर उबल पड़ा। नलिनी को उसे शांत करना पड़ा। थकी हुई-सी बोली, ' 'गलती मुझसे हुई है। मैंने ही बोल्ड स्टेप नहीं लिया। तुम्हारे आने में देर हो गई।' '

उस दिन नलिनी को लगा, कितना जटिल है नैतिकता चिन्हित करना! उसे याद थी वह फिल्म, जिसे देखने के बाद हुसैन सागर के बगीचे में उसके व ललित के बीच अच्छी-खासी बहस हो गई थी। फिल्म की- नायिका दोनाता थी, जिसका पति दुर्घटना के कारण कोमा में था। इलाज एक बूढ़ा डॉक्टर कर रहा था। दोनाता एक संगीतकार थी और अपने एक सहकर्मी के साथ प्रेम करती थी, जिससे उसको गर्भ ठहर गया था। दोनाता डॉक्टर से मिलकर पूछती है कि उसके पति के ठीक होने की कितनी संभावना है? यह बता सकने में बूढ़ा डॉक्टर अपने को असमर्थ पाता है। उत्तर में केवल इतना ही कहता है कि वह प्रयास करेगा। साथ में दोनाता से यह सब जानने का कारण भी वह हा डॉक्टर जानना चाहता है। दोनाता स्पष्ट कहती है कि वह दो पुरुषों के बीच उलझी है। यदि पति ठीक हो सकता है, तो उसे गर्भपात कराना पड़ेगा, क्योंकि गर्भ पति का नहीं था। वह दोनों को ही बहुत प्यार करती है। अन्तत: दोनाता गर्भपात कराने का फैसला करती है। डॉक्टर के सामने पेशे की नैतिकता का सवाल है। गर्भपात का दिन निश्चित हो जाता है। वह बूढ़ा डॉक्टर बच्चे को बचाने की खातिर कहता है कि उसके पति के बचने की संभावना न के बराबर है। दोनाता गर्भपात का विचार छोड़ देती है। बाद में उसका पति आश्चर्यजनक ढंग से कोमा से निकल आता है। हा डॉक्टर उसे दोनाता के माँ बनने की खुशखबरी देता है। बहस में ललित इस बात पर अड़ा रहा कि दोनाता दोषी है। उसका निर्णय नलिनी को अच्छा नहीं लगा। उस समय उसे ध्यान आया कि जीते-जी माँ ने पिताजी के लिए कोई अपशब्द नहीं कहा था। नलिनी समझ नहीं पाती थी कि ऐसा वह संस्कारवश करती थी या यह एक स्त्री की विवशता थी, क्योंकि वह पति का नाम तक न लेने वाली पीढ़ी से थी।

बहस के दौरान एक जोड़ा उनके सामने से गुजरा था। वे दोनों ही जीन्स में कसे थे। लड़की ने हाई हील सैंडिल पहनी थी। माँग में सिन्दूर भरे वह अपने गले में मंगलसूत्र पहने थी। नलिनी को लगा कि हम हवाई जहाज में उड़ना चाहते हैं पर हमारी पूँछ पाँच हजार साल पुराने खूँटे में अटकी है। उसे हँसी आ गई थी। वह सोचती कि नैतिकता के डंडे से सबसे ज्यादा औरत पिटती है। माँ कहती भी थी, ' 'पाँच तत्त्वों से बना यह संसार। पाँच में सिमटा है नारी संसार। धरती-पुत्री सीता, अग्नि-दुहिता द्रौपदी, मंदोदरी, अहिल्या, तारा इनसे आगे जीवन अभी निकला ही कहां है ?''

माँ की जिंदगी के इन दस्तावेजी कथनों से नलिनी परिचित थी।

पिताजी घर से निकले तो ताऊजी ने मौका देखकर कारोबार समेट लिया। माँ ने अपनी पीड़ा को ऊर्जा में परिवर्तित कर लिया था। अचार-मुरब्बों की विरासत माँ के लिए ढाल बन गई। ताऊजी चाहते थे कि माँ के साथ उनका देह सम्बन्ध बने। माँ ने दादी से शिकायत की। दादी का स्वर विवशता से भरा था। उनका कहना था कि घर की बात घर में रहेगी। सहारा मिलता रहेगा। दादी का यह रुख माँ को कुपित कर गया, फिर एक दिन नलिनी ने देखा की चूल्हे से जलती लकड़ी निकाल माँ ने ताऊ पर तान दी। वह दहल गई थी। तभी स्कूल से आई थी और अचार से रोटी खा रही थी। ताई उन दिनों मायके गई हुई थीं।

' 'चली है महिषासुरमर्दिनी बनने।'' ताऊ ने मुड़कर माँ को डराना चाहा।

माँ फुंकारने लगी। ताऊ डरकर पीछे हट गए।

बाद में नलिनी ने माँ को देवी का रूप बताया था तो वह बोली थी, ' 'मेरा कोई सगा-सम्बन्धी देवता थोड़े है, जो मुझे बचाने आएगा। देवता को अपने अंदर जगाना पड़ता है।''

माँ महिषासुरमर्दिनी का लॉकेट जरूर पहनती थी। घर से निकलते वक्त माँ ने नलिनी को भी पहनाया था। ' 'किसी साफ्टवेयर की तरह समूची माँ मेरे अंदर फीड है।'' नलिनी ने ललित से कहा था। वे हैदराबाद के बिड़ला मंदिर परिसर में थे। वहाँ से कुछ दूर हुसैन सागर के बीचोंबीच बुद्ध की आत्मलीन मुद्रा में मूर्ति थी। रात में वहाँ से हाईटेक सड़क के दोनों ओर लगे हैलोजन के चमचमाते बत्वों को देखते हुए लगता कि तारों को पृथ्वी ने अपनी गोद में समेट लिया है।

उसी समय ललित ने नलिनी से विवाह का प्रस्ताव किया था। कपूर के स्वाद वाला दक्कन का चरणामृत ले दोनों मंदिर से बाहर आकर बैठे थे। नलिनी को अच्छा लगा कि प्रस्ताव उसने मंदिर परिसर में किया। उसने पूछा कि ऐसा उसने यहीं क्यों कहा।

''तुम्हारा महिषासुरमर्दिनी का लॉकेट देखकर मुझे लगा कि सचमुच तुम विलक्षण हो।'' उसने उसे गहरे तक देखते हुए कहा।

एक अनजान से कस्बे की माँ अपनी लाडली को किस विश्वास के सहारे छोड़ती। नलिनी ने बुद्ध की प्रतिमा की तरफ देखते हुए सोचा था कि आस्था के नाम पर यह लॉकेट था बस।

ललित ने पहली बार नलिनी को अन्तराष्ट्रीय हवाई अड्‌डे पर देखा था। उन दिनों ट्रेनी इवेंट मैनेजर नलिनी 'रामायण सम्मेलन' में आने वाले विदेशी आगुन्तकों का गुलाब के हार पहनाकर स्वागत कर रही थी। साथ में पंचपात्र में आचमन के लिए गंगाजल के साथ तुलसी दल प्रस्तुत कर रही थी। ललित वहाँ था, अपने बीस के साथ और अपने चाचा-चाची के स्वागत के लिए वही पहुँचा था। यह ललित ने उसे बाद में बताया कि उस समय खुले बालों में कुमकुम लगाये भव्य परिधान में लिपटी वह अजन्ता से आई अनासक्त साध्वी लग रही थी।

छटे दिन नलिनी बरामदे में बिना सहारे घूम रही थी। राउंड पर आई डॉ. नेहा ने उससे पूछा, ' 'क्या आप कानूनी कार्यवाही करना चाहती हैं ?' '

डॉक्टर का आशय वह कुछ देर में समझ सकी। धीमी आवाज में पूछा उसने, ' 'सिजेरियन-सेक्शन होता, तब भी हिस्टरेक्टमी हो सकती थी क्या ?' '

' हाँ, जरूरत पड़ने पर। '' डॉक्टर का नपा-तुला उत्तर था।

' 'यानी बच सकता है। ललित।' ' नलिनी ने सोचा, फिर भी कार्यवाही होनी ही चाहिए, अन्यथा सोचेगा कि उसे फंसाने वाला कोई पैदा नहीं हुआ है।

एक दिन ललित ने यह कहकर नलिनी को चिढ़ाया था, ' 'वह उसके द्वारा फेंके गए समाजवादी भ्रमजाल में फॅस गई, क्योंकि मिडिल क्लास को कुछ नारे जैसी लाइनें बहुत भाती हैं। जैसे मजदूरों का कोई देश नहीं होता। पूजा खून से नहाती है। भूमण्डलीकरण सॉफ्ट इम्पीरियलिज्म है। बिजनेस मैनेजमेंट आदमी को शिकारी बनाता है। जिससे उस जैसी प्रतिभा से लेकर कॉरपोरेट के स्टील फ्रेमों से बने शेरों तक का शिकार किया जा सके।' '

ललित का मजाक अंदर तक नलिनी को छील गया था। उसे बेचैनी होती, जब शुरू-शुरू में मम्मीजी चाहती कि वह सुबह उठे, नहाए-धोए और घर की सुख समृद्धि के लिए उनके साथ घंटा-भर पूजा करे। पूजा के इतने लम्बे कार्यक्रम का उसमें कोई संस्कार नहीं था। उसे ध्यान आता कि माँ को ही फुर्सत नहीं थी पूजा-पाठ की। वे कहती कि टाँगें अपनी खम्भा, तन देवालय, सर कलश है। मम्मीजी के आग्रह से वह चिढ़ जाती। रही-सही कसर ललित अखबार में छपी किसी रेसिपी की शानदार डिश की कोई कतरन पकड़ाकर पूरी कर देता और कहता, ' 'शाम को तैयार रखना।''

तनावग्रस्त नलिनी को देखकर मम्मीजी कहतीं कि गृहस्थी का जुआ तो सर लेना पड़ेगा। आज नहीं तो कल। नलिनी सोच में पड़ जाती, क्योंकि विवाह जीवन का उत्सव मनाने के लिए किया था। कुछ और समय के लिए वह विवाह स्थगित रखती, यदि जगपाल ने उसे आकर दबोचा न होता। वह लगातार तीन दिन चलने वाले एक ओद्योतिक परिवार के 'ब्राइड रिसेप्शन' का ऑफर झटक लाया था। हर रात अलग-अलग थीम पर सज्जा होनी थी, जिसमें जिसमें अलग-अलग वर्ग के लोग आमंत्रित थे। नलिनी ने तीनों रात के लिए तीन थीमें चुनी थीं, अरेबियन नाइट्‌स, राजस्थानी और गोवानी। वह एक देशी थीम में 'मानव शेरों' के नृत्य को सम्मिलित करने लिए जगपाल से स्वीकृति चाहती थी। तभी जगपाल ने उसे खींच लिया और बोला, ' 'कलियुग की कोठरी में सतयुगी दीये जलाने की क्या जरूरत है? मैं तुझे पिंजरे में बंद करना चाहता हूँ। ज्यादा मत फड़फड़ाना।'' ' 'ऐसा तो मेरी मजबूर माँ ने भी नहीं स्वीकारा।' ' कहकर नलिनी झटके से खड़ी हुई और कमरे से बाहर निकल आई। जगपाल से उसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। अस्त-व्यस्त मनःस्थिति में नलिनी को ललित याद आया था। उन दिनों वह अपनी विदेशी मल्टीनेशनल कम्पनी के ब्रांड-प्रोशन' कार्यक्रम में व्यस्त था। ब्रांड-एम्बेसडर बनी सिने स्टार स्टेज शो कर रही थी। कार्यक्रम में फिल्मी गानों के लाइव शो के साथ दो-चार हिट फिल्मी लाइनें भी कही जातीं। ब्रांड का प्रचार होता ही। साथ में इसका भी जोर-शोर से प्रचार किया जाता कि मुनाफे का एक हिस्सा कम्पनी माता वैष्णो देवी मार्ग के रख-रखाव के लिए खर्च करेगी।

नलिनी ने ही ललित से कहा भी, ' 'मेरे आने का कारण नहीं पूछोगे।''

' 'नहीं।'' उसका सीधा उत्तर था। गम्भीर होकर बोला, ''बहुत-सी बातें हैं, जो पूछी जानी चाहिए, जैसे हमारी कम्पनी से पूछना चाहिए कि वैष्णों देवी मार्ग की चिन्ता करने वाली भीमकाय कम्पनी इस देश की हर साल पच्चीस प्रतिशत बर्बाद हो जाने वाली सब्जियों की चिंता क्यों नहीं करती? या अपनी ब्राण्ड-एम्बेसडर बनी सिने

स्टार से पूछना चाहिए ? पैसों की खातिर विदेशी कम्पनी की दलाल क्यों बन गई है? इस तरह तो हमारे देश में दलाल रह जायेंगे या ग्राहक। कितनी तरक्की होने वाली है, देखो।''

उस समय नलिनी ललित द्वारा बिछाए जा रहे जाल को महसूस नहीं कर सकी थी। यह ललित ने बाद में बताया था कि नलिनी के अकस्मात् पहुँचने पर जगपाल और ललित के बीच फोन पर जमकर झड़प हुई थी... और जगपाल ने उसके साथ जबरदस्ती करने की कोशिश भी अपने सपोर्ट सिस्टम यानी गुरु के इशारे पर की थी।

सातवें दिन डॉ. नेहा के राउण्ड से पहले जगपाल का फोन आ गया। ऑपरेशन के बाद से वह प्रतिदिन मोबाइल फोन पर नलिनी की कुशलक्षेम पूछ रहा था।

' 'तुम्हारी बहुत चिन्ता कर रहा है, जगपाल।'' सतीश ने नलिनी से कहा।

लगभग स्वस्थ थी वह। डॉ. नेहा डिस्चार्ज करने के लिए कह गई थीं।

' 'मुझे फँसाने के लिए फोन कर रहा है। औरत को आखिरी बूँद तक निचोड़ लेना चाहता है आदमी। मुझे अब अपनी अलग कम्पनी बनानी है।'' कहकर नलिनी ने करवट बदल ली थी।

सतीश हक्का-बक्का रह गया था 

 

- अजय गोयल.

निदान नर्सिग होम

फ्री गंज रोड

हापुड़ – २४५१०१

a.ajaygoyal@rediffmail.com

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: कहानी उपनिवेश
कहानी उपनिवेश
http://lh3.googleusercontent.com/-EsD2bMFEsm4/VYUSLz1NGBI/AAAAAAAAkA0/YEODYE365y8/image%25255B2%25255D.png?imgmax=800
http://lh3.googleusercontent.com/-EsD2bMFEsm4/VYUSLz1NGBI/AAAAAAAAkA0/YEODYE365y8/s72-c/image%25255B2%25255D.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2015/06/blog-post_51.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2015/06/blog-post_51.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content