परीदेश की सैर - 2 / रोमांचक बाल उपन्यास / श्रीनाथ सिंह

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(इसके पहले की कहानी यहाँ पढ़ें) वह एक बौना था । उसका सारा शरीर लाल था । बड़ाई में वह गोपाल से भी कुछ छोटा था । पर उसकी मूछें बहुत. ही बड़ी-ब...

(इसके पहले की कहानी यहाँ पढ़ें)

वह एक बौना था । उसका सारा शरीर लाल था । बड़ाई में वह गोपाल से भी कुछ छोटा था । पर उसकी मूछें बहुत. ही बड़ी-बड़ी थीं । और दोनों तरफ मोर के दुम की तरह फैली थीं । उसकी दाढ़ी भी अजीब थी । पैर तक बढ़ती चली गई थी।

और जब वह चलता था तब दाढ़ी भी जमीन पर घिसटती हुई चलती थी । यहाँ यह बताने की जरूरत नहीं कि उसकी यह दाढ़ी और मूछें भी लाल थीं ।

गोपाल के करीब आते ही वह बौना चौंककर खड़ा हो गया और अपनी दोनों तरफ की मूछों को ऐसे तान लिया जैसे नाचते समय मोर अपनी दुम को तान लेता है । यह उस बौने के सलाम करने का ढंग था । परी देश के रहने वालों से यह, इसी तरह सलाम किया करता था ।

जब गोपाल ने कोई जवाब न दिया तब, इस बौने को. मालूम हो गया कि यह लड़का परीदेश का रहने वाला नहीं है । उसने उसकी तरफ अपनी दाढ़ी से इस तरह इशारा करके,. जैसे हाथी अपनी सूंड से किसी तरफ इशारा करता है, पूछा- जनाब आप कौन हैं? इस देश में क्या आप पहले ही पहल आ' रहे हैं?

गोपाल की यह आदत थी कि जब उससे कोई सवाल एक: साथ किये जाते थे तब वह हमेशा आखिरी सवाल का जवाब ही देता था और बाकियों को छोड़ देता था ।.

उसने जवाब दिया-हाँ, आप जो पूछेंगे मैं सब बताऊँगा।' परन्तु पहले मुझे कुछ बातें पूछ लेने दीजिये

''अच्छी बात है प्यारे बच्चे अच्छी बात है ।'

गोपाल ने पूछा-पहले यह बताइये कि आपके सामने यह जो चीज झूल रही है यह आपकी दाढ़ी है या सूँड् है?

''यह मेरी दाढ़ी है । पर मनुष्यों की दाढ़ी की तरह यह 'बेकाम नहीं है । मैं इससे बहुत से काम ले सकता हूँ ।''

''कैसे? ''

बौने ने अपनी दाढ़ी को सामने की ओर फेंक कर कहा- आप चाहें तो इस पर बैठ सकते हैं ।

गोपाल को उसकी दाढ़ी किसी दीवाल से बाहर की ओर निकली हुई कड़ी की तरह दिखाई पड़ी । उसने कहा-आपको धन्यवाद है ।

बौना मुस्कराकर बोला-नहीं-नहीं जरा बैठ कर तो देखिए।

''आप मेरा बोझा सँभाल लेंगे ?''

ओफ मैं इस दाढ़ी पर पहाड़ उठा सकता हूँ ?''

''बेशक आप बड़े मजबूत होगे इस दाढ़ी से आप और क्या काम लेते हैं .''

''इस पर खाना रखकर खाता हूँ ।'' बौना यह कहने भी .न पाया था कि उसकी दाढ़ी पर खीर से भरा एक लाल कटोरा दिखाई देने लगा ।

बौना कहने लगा-परी देश में यह बड़ा बुरा है कि जिस -चीज की इच्छा करो वह तुरन्त हाजिर हो जाती है । मुझे इस समय बिल्कुल भूख नहीं है । पर क्या आप मेरे ऊपर कृपा करके यह खीर खा सकते हैं?

गोपाल दिन-भर का भूखा-प्यासा और- थका था । बौने के यह कहते ही खीर पर टूट पड़ा और इसके लिये उसे धन्यवाद: देना भी भूल गया । चार कौर खाने के बाद ही उसके शरीर में वही ताजगी और फुर्ती आ गई जो उस समय थी जब वह चमेली के साथ घर से निकला था । उसने कहा- पानी ।

बौने की दाढ़ी पर पानी से लबालब भरा एक लाल गिलास,- दिखाई देने लगा ।

गोपाल ने खूब पेट भर कर खीर खाई और पानी पिया । परन्तु खीर के कटोरे से न तो एक चावल कम हुआ और न- गिलास से एक बूँद पानी, दोनों बर्तन ज्यों के- त्यों भरे थे ।' गोपाल को बड़ा आश्चर्य हुआ । बौना बोला-यहाँ कोई चीज- कभी कम नहीं होती ।

गोपाल बोला-आपकी दाढ़ी तो बड़े मजे की जान पड़ती- है । इसमें और कोई खास बात हो तो बतलाइए?

बौना तुरन्त दाढ़ी पर हाथ फेरने लगा । उसकी दाढ़ी पेट- से मिलती हुई पर तक पहुंच गयी । बौना दाढ़ी के ऊपर पेट के बल लेट गया । और अपनी मोर की दुम की तरह फैली- पूंछों को इस तरह फड़फड़ाने लगा जैसे चिड़िया अपने पंख फड़फड़ाती हैं । वह उड़ चला, देखते ही देखते अँधेरे में गायब हो गया ।

गोपाल ने चिल्लाकर कहा-बस, बस लौट आइये । समझ गया । अभी मुझे आपसे और भी बहुत सी बातें पूछनी हैं ।

बौना लौट आया ।.

गोपाल ने पूछा-आप यहाँ बैठे-बैठे क्या. कर रहे हैं?.

बौना बोला--यह परी देश की सीमा है । इसके उस तरफ मनुष्यों का देश है । मनुष्यों के देश में मार-पीट लड़ाई-झगड़े बहुत होते हैं । यह सब बातें यहाँ नहीं होतीं । इसलिए कुछ परियां मनुष्यों का देश देखने जाती हैं । उन्हीं के जाने के लिये यह रास्ता बनाया गया है । वे शाम को जाती हैं और सबेरे सूरज निकलने से पहले लौट आती हैं । जब तक सब परियाँ वापस नहीं आ जातीं तब तक मैं यहाँ रहता हूँ । उसके बाद दरवाजा बन्द करके परी शहर को चला जाता हूँ । यह रास्ता परियों के सिवाय और किसी को मालूम नहीं । आप इधर से कैसे आ गये?

गोपाल ने अपनी सारी कथा कह सुनाई जिसे सुनकर बौने का हृदय भर आया । परी देश के लोग बड़े दयावान होते हैं और किसी की जरा भी मुसीबत की बात सुनते हैं तो उनकी आँखों में आंसू आ जाते हैं ।

बौना गोपाल की पीठ पर हाथ फेरने लगा । गोपाल ने बौने की दाढ़ी पकड़ कर कहा-यदि ऐसी ही दाढ़ी मेरे भी होती तो बड़ा अच्छा होता?

अरे यह क्या? गोपाल ने देखा उसके एक लम्बी दाढ़ी निकल आई है । उसने यह देखने के लिए कि शायद मूँछें भी निकल आई हों, ऊपर के ओंठ पर हाथ फेरा । सचमुच बड़ी- बड़ी मूँछें भी निकल आई थीं ।

अब सबेरा हो रहा था । पूर्व दिशा खूब लाल हो रही थी आसमान में चारों तरफ लाली दौड़ गई थी । सबेरे की उस धीमी रोशनी में गोपाल ने देखा कि उसका शरीर भी लाल हो गया है । उसके हाथ-पाँव की अँगुलियाँ नाखून सब लाल हो

गए थे । उसनें कुछ उदास होकर कहा-''परी देन में सचमुच यह बहुत बुरा है कि यहां वो इच्छा करो वही हो जाता है अब तो यहां बहुत सोच समझ कर इच्छा करनी होगी ।''

बौना बोला --इसमें क्या शक है?

इसी बीच. में उन्हें सुरंग में से गाने की आवाज सुनाई ।

आपस में लड़ जीव जगत के उठा रहे हैं क्लेश

प्रेम दया का परियो उनको पहुँचाओ सन्देश।

बौने ने कहा – प्यारे गोपाल। एक तरफ हो जाओ। परियाँ आ रही हैं।

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भाई की तलाश

अब चमेली का भी थोड़ा सा हाल सुन लो । जब तक गोपाल दिखाई पड़ा तब तक वह चिल्लाती. रही-दौड़ी लोगों दौड़ो! मेरे भैया को बचाओ । और उसकी तरफ दौड़ती रही । जब गोपाल आखों से ओझल हो गया तब वह एक जगह पर खड़ी होकर .रोने लगी ।

इस तरह रोते हुये और दौड़ते हुये चमेली बहुत दूर निकल आई थी और ऐसी जगह पहुँच गई थी जहाँ से उसे अपने घर का रास्ता भी नहीं मालूम था । उसके जी में आया कि घर में जाकर माँ-बाप से गोपाल के उड़ जाने की बात बतावे । पर अब पर पहुँचे कैसे ? रास्ता तो उसे मालूम नहीं । बेचारी बड़े चक्कर में पड़ गई । करे तो क्या करे? उसकी समझ में कुछ न आया । वह और भी जोर-जोर से रोने लगी । छोटे बच्चों का और लड़कियों का यह स्वभाव होता है कि जब उनके मन के अनुसार कोई बात नहीं होती तब वे रोने लगते हैं । तब भला चमेली क्यों न रोती? आखिर वह बेचारी भी एक छोटी लड़की ही तो थी ।

जहाँ चमेली खड़ी रो रही थी वहाँ पास ही एक किसान का खेत था । कुछ दिन निकलने पर किसान अपना खेत देखने आया । चमेली को देखकर उसे कुछ आश्चर्य हुआ । इस सुनसान जगह में यह लड़की कहाँ से आई? किसान सोचने लगा- बड़ी भोली लड़की है । शायद रास्ता भूल गई है । अरे! यह तो रो रही है ।

तुम्हें यह बात मालूम होगी कि किसान लोग किसी को दुःख में नहीं देख सकते । वे हमेशा सब के सुख-दुःख में शरीक होने को दौड़ते हैं और खुद तकलीफ सहकर दूसरों की मदद करते हैं ।

किसान फौरन चमेली के पास पहुँचा और बोला-बेटी रोती क्यों हो ' मत रोओ अपना हाल बताओ । मैं तुम्हारी मदद करूंगा । क्या रास्ता भूल गई हो?

चमेली ने सिसकते हुये कहा-''मेरा भैया उड़ गया है ''कैसे बेटी! आदमी को तो मैंने उड़ते नहीं देखा ।''

चमेली ने गोपाल के उड़ने का सारा किस्सा कह सुनाया । किसान बोला-अच्छा अब समझा! हाँ! तो बेटी वह किस तरफ उड़कर गया है?

चमेली ने कहा-सामने! उत्तर को तरफ-वह जो ऊँचा- ऊँचा पहाड़ दिखाई पड़ता है उसों तरफ ।

''कितनी देर हुई होगी बेटा ?''

''अभी-अभी को बात है बाबा ।''

''अच्छा तो फिर चलूं! तुम्हारे भैया की तलाश करूं:! तुम्हारे मां-बाप किस गांव में रहते हैं ? वे तुम्हारे लिए परेशान तो न होंगे ?''

चमेली ने कहा-अब तो मुसीबत आ ही गई है । बिना भैया को पाये मैं अकेली घर नहीं लौटना चाहती । माँ-बाप जरूर परेशान होंगे । पर अब तो इसका कोई उपाय नहीं है?

क्या आप कृपा करके उस तरफ चल सकते हैं जिधर मेरा भैया गया है?

किसान चमेली के कन्धे पर हाथ रखकर बोला-क्यों नहीं? यह भी कोई कहने की बात है बेटी! मैं अभी चलता हूँ । पर जरा तुम मेरे घर तक चलो । कुछ खाने-पीने का सामान ले लूँ । कौन जाने? लौटने में दो चार दिन लग जायँ?

किसान चमेली को लेकर अपने घर पहुँचा । उसकी स्त्री दूध गरम कर रही थी । किसान बोला-कुछ खाने-पीने का सामान है? मुझे इस लड़की के साथ जरा दूर तक जाना है ।.

इसका भाई खो गया है ।

किसान की स्त्री ने कहा-हाय! इसका भाई खो गया है?

अरे, रोते-रोते बेचारी की आँख लाल हो गई हैं । बैठ जाओ बिटिया कुछ खाओगी?

चमेली बैठ गई ।

किसान की स्त्री ने अपने हाथ से उसका मुँह धोया । अपने आँचल से पोंछा और उसके सामने एक कटोरे में थोड़ा सा द्रव और रोटी रखकर कहा-बिटिया घबड़ाना मत तुम्हारा भैया जरूर मिल जायगा । फिर उसने किसान से कहा-जरा दूर

तक ढूंढना जी! जब तक इसका भैया मिल न जाय, वापस न आना । खबरदार! सुनते हो?

किसान बोला-हाँ हाँ! कुछ बाकी न लगा रक्खूंगा। कहो तो अपना ऊँट भी तैयार कर लूं ..............

हाँ हाँ! नहों तो यह बेचारी लड़की थक न जायेगी । आह! बेचारी बड़ी भोली है । बेटी तुम्हारा क्या नाम है ?'

'चमेली! '

'आह! बड़ा प्यारा नाम है । मेरे भी एक लड़की थी । उसका भी नाम चमेली था । पर हाय! उसे भगवान ने उठा लिया ।'' किसान की स्त्री रोने लगी ।

किसान बोला-देखो! यात्रा के समय रोते नहीं ।

किसान की स्त्री ने कहा-नहीं-नहीं रोती कहाँ हूँ । फिर उसने चमेली से कहा-बेटी तुम्हारा भैया मिल जाय तो-और मुझे विश्वास है कि- जरूर मिल जायगा-तो इसी तरफ से आना! देखूंगी वह कैसा है ।

चमेली ने सिर्फ इतना कहा- 'अच्छा! ' उसके बाद उससे बोला नहीं गया । बेचारी बड़ी उदास थी ।

अब किसान बिल्कुल तैयार हो चुका था । ऊँट पर उसने एक गठरी में कुछ सत्तू, कुछ गुड और थोड़ा सा खोआ रख दिया था और एक घड़ा पानी काठी से बांधकर लटका दिया था । थोड़ा सा आटा और ई धन भी बांधकर उसने रख लिया .था । उसके हाथ में एक बड़ा सा बाँस का डंडा था । कमर में गाढ़े की एक मोटी चादर बँधी थी । चादर के अन्दर लोटा और डोरी लिपटी थी ।

ऊँट दरवाजे पर बैठा था । उसको पीठ पर बकायदे काठीं रखी थी । किसान ने चमेली को गोद में लेकर ऊँट पर बैठाल दिया और उसकी नकेल को पकड़ा दिया. उसके पीछे आप बैठ गया। ऊँट उठकर खड़ा हो गया।

किसान की स्त्री ने उसका बांस का डंडा उसे पकड़ा दिया। और कहा देखो जल्दी लौटना।

ऊँट चल पड़ा। चमेली को ऐसा जान पड़ा मानों वह ढेकी पर चढ़ी हो। ऊँट पर इसके पहले वह कभी नहीं चढ़ी थी। उसने पूछा – बाबा! ऊँट तो रेगिस्तान का जानवर है। क्यों?

किसान बोला – क्या मालूम बेटी। हमने कुछ पढ़ा नहीं है । पर हाँ सूखे मौसम से यह बहुत खुश रहता है। बरसात में बीमार हो जाता है।

बाबा! तुमने सवारी के लिये ऊँट क्यों पाला है । घोड़ा क्यों नहीं पाला ।''

किसान बोला-बेटी मैं गरीब .आदमी हूँ । फिर मुझे काम भी ज्यादा करना पड़ता है । घोड़ा पालूं तो सारा समय उसी की खिदमत में चला जाय । उसके लिए चारा भूसा इकट्‌ठा करने में बड़ी मेहनत पड़ती है । पर ऊँट झाड़ी और पेड़ की पत्तियाँ खाकर गुजर कर लेता है । इसके चारे के लिए मुझे बहुत फिक्र नहीं करनी पड़ती ।

चमेली बोल, ओ-हाँ, यह बात तो है । जहाँ हम पेड़ के पास पहुँचते हैं वहीं यह पत्तियाँ नोचने के लिए अपनी गर्दन उठाता है । मजे में खाता-पीता चला चलता है ।

किसान ने कहा-हाँ, जहाँ पेड़ आया करे वहाँ जरा झुक जाया करो । मुझे डर है तुम्हारे कहीं चोट न आ जाय । बेटी यह ऊँट मेरी बड़ी मदद करता है । इस पर गल्ला लाद कर मैं बाजार में बेचने ले जाता हूँ । सब तरह के किसानी के काम का बोझा इस पर लाद सकता हूँ ।

''जरूर लादते होंगे बाबा ।''

इस रह ऊँट पर बैठे आपस में बातें करते किसान और चमेली दोनों चले जा रहे थे । बीच-बीच में चमेली आँखें फाड़- फाड़ कर चारों तरफ देखती जाती थी । खेत मिले, मैदान मिले जंगल मिले, गांव मिले पर गोपाल के मिलने की कोई सूरत नजर न आई ।

चमेली ने पूछा-बाबा! क्या मेरा भैया नहीं मिलेगा? किसान बोला-बेटी अभी हम आए ही कितनी दूर हैं ।

चमेली चुप हो रही । किसान ने कहा-अब दोपहर हो गई है । सामने बड़ा ऊँचा-सा जो पीपल का पेड़ दिखाई पड़ता है उसके नोचे सुस्ताकर और कुछ खा-पीकर फिर आगे चलेंगे । चमेली ने कोई जवाब नहीं दिया ।

किसान ने अपनी कमर से वह मोटी चद्‌दर खोली जिसे वह घर से बांध कर चला था । लोटा और डोर दोनों चीजें जमीन पर गिर पड़ी । किसान ने कहा-ओह इनका खयाल ही नहीं रहा ।

चद्दर को उसने पेड़ के नीचे बिछा दिया और चमेली से कहा-बेटी बैठो ।

चमेली बैठ गई । थोड़े फासले पर खूब हरी भरी झाड़ी थी । ऊंट पत्तियां खाने के इरादे से झाड़ी की ओर बढ़ने-लगा । ऊँट का नाम भोला या । किसान ने डांटकर कहा-ठहर भोला । वह ठहर गया।

किसान उसके पास जाकर बोला-भोला! बैठ तो! ऊँट बैठ गया।

चमेली ने कहा – बाबा, यह तुम्हारी सब बातें समझता है।

किसान ने ऊँट पर से सतुए की गठरी उतारते हुए कहा – हाँ, सिर्फ जवाब नहीं दे सकता। इसको भी तो भगवान ने वही जी दिया है जो हमको दिया है । मगर फिर भी बहुत से ऐसे आदमी हैं जो जानवरों के प्राण को कुछ समझते ही नहीं ।

चमेली ने उत्तर दिया-हाँ बाबा यह बात तो है । मैंने एक शिकारी को देखा था । वह पेड़ पर बैठी बेकसूर चिड़ियों को और जंगल में चरते हुए हिरन के बच्चों को जहाँ देखता था वहीं मार गिराता था ।

किसान बोला-सच है बेटी और इनमें से बहुत से शौक के लिए शिकार करते हैं । इसे वे खेल कहते हैं । जरा सोचो तो कि एक की जान जाती है और दूसरे को मजा आता है ।

चमेली ने कहा-मैं सब जानवरों को प्यार करती हूँ।

बहुत अच्छा करती हो बेटी'' कहते हुए किसान ने ऊँट को ले जाकर उसी झाड़ी से बांध दिया । और खड़ा होकर इधर-उधर देखने लगा । पास ही एक छोटी सी नदी बह रही थी। वह बहुत चौड़ी नहीं थी पर उसका पानी बहुत साफ था।

किसान ने लौटकर कहा – बेटी तुम जरा यहीँ बैठी रहो, मैं दौड़कर नहा आऊँ। झाड़ी के पास एक छोटी सी नदी है.

“अच्छी बात है।“

किसान नहाने चला गया । चमेली उदास मन से इधर उधर देखने लगी। चारों तरफ हरे-भरे खेत थे। पर दोपहर की वजह से सन्नाटा था । खेतों पर काम करने वाले लोग अपने घरों को चले गये थे । कोई आदमी दिखाई पड़ता तो शायद चमेली उससे पूछती कि क्या उसनें गोपाल को गुब्बारे' के साथ उड़ते हुए देखा है ।

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(अगले अंकों में जारी…)

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रचनाकार: परीदेश की सैर - 2 / रोमांचक बाल उपन्यास / श्रीनाथ सिंह
परीदेश की सैर - 2 / रोमांचक बाल उपन्यास / श्रीनाथ सिंह
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