हास्य-व्यंग्य / तराई का फ़ार्म / रवीन्द्र नाथ त्यागी

SHARE:

भगवान बुद्ध ने एक स्थान पर कहा है कि संसार दुःखों का समुद्र है। यह बात अब भी उतनी ही सच है कि जितनी कि गौतमबुद्ध के समय में थी । सच्ची स्थ...

image

भगवान बुद्ध ने एक स्थान पर कहा है कि संसार दुःखों का समुद्र है। यह बात अब भी उतनी ही सच है कि जितनी कि गौतमबुद्ध के समय में थी । सच्ची स्थिति तो यह है कि दुःखों की संख्या इन दिनों कुछ बढ्‌ ही गयी है और ऐसे अनेक दुखों का प्रादुर्भाव हो गया है जो कि भगवान के समय में' नहीं थे । उदाहरण के लिये रेल छूटने का दुःख, नायब तसीलदारी में न लिये जाने का दुःख या बीमे की रसीद वक्त पर न आने का दुःख । पुराने जमाने में गिनती के दो-चार दुःख होते थे जिनमें दूसरे की सुंदर सी और राज्य न छीन पाने का दुःख कदाचित सबसे ऊंचा स्थान रखता था । आज के युग के जो दुःख हैं? उसके सामने परायी स्त्री और दूसरे के राज्य का दुःख कुछ भी नहीं । हमसे पूछिये, लोकल ट्रेन में यदि खिड़की के पासवाली सीट मिल जाये तो रसखान के शब्दों में तीनों लोकों के सुखों को न्यौछावर कर दें । मनुष्य के पास काम न होने का दुःख भी अपने किस्म की एक अलग चीज है । जिन लोगों को बेकारी झेलने का साबका नहीं पड़ा, वे इसके मजे कभी समझ ही नहीं सकते । बेकारी से मेरा अर्थ काम के लिये काम ढूंढने से नहीं है-वैसा करना तो शास्त्र के विरुद्ध होगा, क्योंकि गीता में इस बात पर जोर दिया गया है कि मनुष्य सम्यक् बुद्धि की सहायता से कर्मों के बंधन को काटे । मेरे कहने का अभिप्राय यहां धन के लिये काम खोजने से है । यह जो मुद्रा का राक्षस है यह बड़ा विकट है । संस्कृत साहित्य में भी मुद्राराक्षस नाटक इन्हीं कारणों से ऊंचा माना जाता है ।

उन दिनों की बात मुझे हमेशा याद रहेगी जब कि मैं रात-दिन काम की खोज में मारा- मारा फिरता था । काम का विरह यक्षिणी के विरह से जियादा भयंकर होता है । वैसे मैं मानता हूं कि वह दुःख भी किसी-किसी स्थिति में काफी तीव्र होता है पर फिर भी बेकारी के सामने वह कुछ नहीं । जहां तक मेरा विचार है, मेघदूत का यक्ष भी खाने-पीने की चिंता से मुक्त था । मेरे खयाल से ये हजरत काफी शौकीन किस्म के आरामतलब इंसान थे जो छोटा नागपुर की पहाड़ियों पर किसी रेस्ट हाउस में रहते थे । आरामतलबी के बारे में तो कहना ही क्या- अलकापुरी से निकाले ही इस चार्ज पर गये थे । हां, तो ये रेस्ट हाउस में रहते थे सुबह उम्दा नाश्ता किया और फिर बगीचे की सैर को निकल गये । इसके बाद खानसामा के साथ कुछ गप्पें मारीं और फिर एक श्लोक स्टेनोग्राफर को डिक्टेट कर दिया । तीसरे पहर स्थानीय सुंदरियों के साथ चौपड़ खेलने निकल गये और बस छुट्टी । दूसरे शब्दों में, ये अपनी प्रिया को ठीक उसी तरह याद करते थे जैसे कि दौरे पर आजकल साहब लोग याद करते हैं । मेरा यह निश्चित मत है कि मेघदूत का यक्ष सच्चा प्रेमी नहीं था । सच्चा प्रेमी कभी इतनी व्याकरण सम्मत और प्रांजल भाषा में इस प्रकार का छंदोबद्ध काव्य नहीं रचता-वह तो टूटे-फूटे शब्दों में दिल की बात कहता है और उसके बाद आत्महत्या कर लेता है ।

आत्महत्या करने के बाद वह किसी घरेलू लड़की से विवाह करता है । परिवार नियोजन की सारी सरकारी योजनाओं को खल्लास करता है और इसके बाद स्थानीय कवि-सम्मेलनों में प्रयाण-गीत नाम की पुरानी कविता को सस्वर दो बार पढ़कर सुनाता है ।

हां, तो बात उन दिनों की चल रही थी जबकि मैं बेकार था । मेरे प्रदेश के एक नेता थे जो लखनऊ में रहते थे । इलेक्शन के दिनों में एक बार मैंने उनके लिये काफी काम किया था । वे मुझसे बड़ा स्नेह करते थे और प्राय: और लोगों के सामने कहा करते थे कि लड़का बड़ा होनहार है-बड़ा होकर कुछ न कुछ सुरूर बनेगा । बाद में विचार करने पर महसूस किया कि उन्होंने कितनी सच्ची बात कही थी-कुछ न कुछ तो हमें बनना ही था । इन सज्जन से मिलने मैं किसी तरह लखनऊ तक गया । काउंसिल हाउस के लॉन पर भेंट हुई बडे स्नेह से मिले । अपने चुनाव क्षेत्र के बारे में इतनी दिलचस्पी से प्रश्न पूछने शुरू किये जैसे कोई दक्षिणी ध्रुव के बारे में पूछ रहा हो । देश-विदेश, साहित्य और संस्कृति-इन सभी पर काफी विचार- विमर्श हुआ । जो सज्जन चुनाव में प्राय: इनके विरुद्ध खड़े होते थे और जिन्हें पिछले दिनों दमे का दौरा पड़ा था, उनके स्वास्थ्य के बारे में आँख मार-मारकर पूछते रहे । राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्थिति की चर्चा के उपरांत व्यक्तिगत स्थिति की चर्चा करना कुछ असंगत तो लगा पर क्या करता-मजबूरी थी । खैर, मेरी परेशानी सुनकर वे कतई अप्रसन्न नहीं हुए और न उन्होंने मुझसे पीछा छुड़ाने की कोशिश की । पान खिलाया और फिर कहा कि पंचवर्षीय योजनाओं के बाद देश का हर एक नवयुवक खुशहाल होगा । इसके बाद आधे घंटे तक कुछ आंकड़े बतलाये और उसके बाद वे मुझसे सहसा बोले कि तुम तराई में एक बड़ा-सा फार्म क्यों नहीं खोल लेते?

मैंने बात सुनी और स्थिति साफ करते हुए बताया कि विचार तो उत्तम है पर यदि मैं तराई में फार्म खोलने की स्थिति में होता तो इस वक्त लखनऊ में न होकर तराई में ही होता, मगर दुर्भाग्य देखिये कि मैं तराई में क्या, कहीं भी किसी तरह का फार्म खोलने की स्थिति में नहीं हूं । इस पर उनका चेहरा कुछ विरक्त-सा हो गया और वे पूछने लगे कि फिर तुम मूर्तियों का एक बाड़ा ही क्यों नहीं शुरू कर देते? चाहो तो एक मुर्गी से भी काम शुरू कर सकते हो, क्योंकि इस पक्षी में एक खास बात यह है कि यह अंडा देता है जिससे फिर एक मुर्गी निकलती है । यूं चाहो तो अंडे से आमलेट भी निकाल सकते हो, पर वह आपकी मर्जी पर है । जहां तक शुरू की मुर्गी का प्रश्न है, तुम चाहो तो उसकी चोरी भी कर सकते हो । इसके बात उन्होंने विरोधी दल के एक सदस्य के घर का पता भी बताया जहां से मैं मुर्गी चुरा सकता था । मेरा हौसला बढ़ाते हुए उन्होंने यह भी कहा कि यदि चोरी से बचना चाहते हो तो बजाय मुर्गी के, अंडे से ही अपना कारोबार शुरू कर दो-यह तो बड़ा पुराना प्रश्न है कि पहले मुर्गी आयी कि अंडा । और हां, जब धंधा बढ़ जाये तो अंडे विदेशों को सुरूर भेजना-इससे विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है । इस संदर्भ में यदि कोई कठिनाई पड़े तो हमसे संपर्क सुरूर स्थापित करना । अपने क्षेत्र की जनता को मैं कभी नहीं भूल सकता ।

उनकी सरस्वती से सचमुच मुझे बहुत प्रोत्साहन मिला । अंडे खरीदने को तो पैसे अपने पास शायद थे नहीं, हां, अलबत्ता मुर्गी की चोरीवाली सलाह अपनी आत्मा को विशेष रुचिकर लगी । वैसे भी यह अपना है और वह पराया है, यह मनःस्थिति बड़ी संकीर्ण है और जाहिर है कि स्वाधीन देश इस प्रकार की मनोवृत्तियों के आधार पर कभी आगे नहीं बढ़ सकता । मैं विरोधी दल के उन सदस्य की कोठी पर गया और मुर्गियों पर एक निगाह डाली । मगर वे मुर्गियां मुझे इतनी सतर्क और चालाक नजर आयीं कि मैं तो उनकी चोरी क्या करता, हां, वे चाहतीं तो मुझे सुरूर चुरा सकती थीं देश का दुर्भाग्य देखिये कि इस छोटे-से अलबत्ता ।

पक्षी के असहयोग से यह देश एक विशाल पोल्ट्री-फार्म से हमेशा के लिये वंचित रह गया । रोजगार के दफ्तर के न जाने कितने चक्कर लगाये । इस दफ्तर ने मुझे कई जगह जाने की सलाह दी । एक छोटी-सी फैक्टरी के स्वामी के यहां कुछ जगह खाली थी मगर वहां इल्लत यह थी कि फैक्टरी के मालिक जहां सुंदर लड़की की तरजीह देते थे, वहां उनकी पत्नी खिलाड़ी लड़कों को पसंद करती थीं । लड़का तो मैं था पर खिलाड़ी नहीं था ( और लड़की तो मैं किसी भी तरह की नहीं था) और इस कारण मैं नहीं लिया गया । वे पुराने जमाने के दिन थे और उन दिनों यौन-परिवर्तन जरा कम ही होता था । जियादातर लोग अगर लड़का पैदा होते थे तो जीवन- भर लड़का ही रहते थे । एक दूसरी जगह मैं गया तो मुझे बड़ी शालीनता के साथ ड्राइंगरूम में बिठाया गया । इसके बाद बताया गया कि काम कुछ टेक्निकल किस्म का है और इस कारण मुझे छ: माह तक सीखना पड़ेगा । सीखने की अवधि में मुझे वेतन नहीं मिलेगा । हमारी स्थिति यह थी कि यदि तीन महीने भी और काम न मिलता तो शरीर और आत्मा हमेशा के लिये एक-दूसरे से अलग- अलग हो जाते ।

एक बार एक नौकरी रेल में मिली पर हम वहां नहीं गये । पता नहीं क्यों, रेल के इंजन को देखकर हमें हमेशा आत्महत्या करने की इच्छा होती थी । एक-दो दिन तो हम अपनी इच्छा को दबा सकते थे पर अपने साथ इससे जियादा जियादती बरतना हमारे लिये असंभव था ।

पत्रकारिता का अनुभव भी मुझे इन्हीं दिनों हुआ । एक स्थानीय साप्ताहिक था, उसमें मैं काम करने लगा । संपादक के अतिरिक्त हम तीन व्यक्ति थे और एक दफ्तरी था । यह पत्र इस जिले का सर्वप्रमुख पत्र माना जाता था, पर छपते इसमें शोकप्रस्ताव और चुटकुले ही थे । संपादक जी काफी ईमानदार व्यक्ति थे और अपने जमाने में वे अपने ढंग से जेल भी गये थे । पत्रकारिता का उन्हें सच्चा शौक था और अपनी सारी पूंजी वे उसी में स्वाहा कर चुके थे । जिन दिनों मैं उनके यहां भरती हुआ था, वे उस पत्र के अंतिम दिन थे । संपादक जी जीवन से काफी निराश हो गये थे और गाहे-बगाहे अफीम भी खाने लगे थे । जिस दिन वे जोरदार अग्रलेख लिखते, हम समझ जाते कि वे नशे में हैं । हम तीन सहयोगियों में से एक अदालतों और थानों से समाचार इकट्ठा करता था, दूसरा रिक्शेवालों और दूधवालों से देहात की घटनायें इकट्ठी करता था और तीसरा विज्ञापन बटोरता था । हालत यह थी कि जब तक नई खबरें मिलें तब तक पुरानी खबरें ही कुछ रद्‌दोबदल के साथ छपती रहती थीं । चाहे सर्दी हो चाहे गर्मी, संपादक जी हमेशा एक बनियाइन और लुंगी में सारा दिन काम करते थे । लोग कहते थे कि पुराने जमाने में वे कपड़ों के काफी शौकीन थे, मगर इस पत्र के लिये उन्होंने सब कुछ विसर्जित कर दिया । हुआ यह कि वेतन न मिलने पर कोई शेरवानी ले गया तो कोई पाजामा । किसी को जूते फिट आये तो उसने जूते पहन लिये, किसी को गुलूबंद ठीक लगा तो उसे वह ले गया । जिन दिनों हमारी तनख्वाह के दिन आये, इन पर एक लुंगी और एक बनियाइन थी । सुबह-शाम चाय और दोपहर का खाना संपादक जी सबको खिलाते थे । मैं उनके साथ कोई तीन माह रहा । कुछ दिनों बाद किसी ग्रामीण नेता ने मुकदमेबाजी शुरू करके उस पत्र को हमेशा के लिये बंद करा दिया । ऐसा लगता था कि इन सज्जन की मृत्यु या गिरफ्तारी का गलत समाचार उस पत्र के मुखपृष्ठ पर तीन माह तक बिना नागा छपता रहा था । इसके बाद संपादक जी मुझे एक बार एक स्टेशन पर मिले थे, तो सिर्फ लुंगी में थे । घोर गरीबी के दिनों में मेरे चरित्र का कोई विकास नहीं हुआ । अब्राहम लिंकन ने कहा था कि वह गरीबी की ही पाठशाला में पढ़कर अमेरिका का राष्ट्रपति हुआ था । हमारे साथ ऐसा कभी नहीं हुआ । हम न तो अभी तक अमेरिका के राष्ट्रपति हुए और न निकट भविष्य में होने की कोई संभावना ही दिखाई देती है । गरीबी के दिनों में मैं हर तरह टूटा ।

यक्षिणी के विरह की भांति मेरे दिनों के पहिये ने भी पलटा खाया । बेकारी खत्म हुई । इन दिनों तो स्थिति इतनी सुखद हो गई है कि यदि कोई होनहार और गरीब नवयुवक मेरे पास आकर काम मांगता है तो मैं बड़े स्नेह से उसे तराई की तरफ एक बड़ा-सा फार्म खोलने की सलाह देता हूं ।

(लफ़्ज, सितम्बर - नवंबर 2007 से साभार)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: हास्य-व्यंग्य / तराई का फ़ार्म / रवीन्द्र नाथ त्यागी
हास्य-व्यंग्य / तराई का फ़ार्म / रवीन्द्र नाथ त्यागी
https://lh3.googleusercontent.com/-_oN5C5ZjXw4/V-EJEC4OGGI/AAAAAAAAwKE/uv1bMYc0tU0/image_thumb%25255B3%25255D.png?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-_oN5C5ZjXw4/V-EJEC4OGGI/AAAAAAAAwKE/uv1bMYc0tU0/s72-c/image_thumb%25255B3%25255D.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/09/blog-post_96.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/09/blog-post_96.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content