कहानी // मैं लड़की नहीं हूँ क्या? // अमिताभ वर्मा

SHARE:

शाम हौले से अपना पल्लू समेट रुख़सत हो चुकी थी। रात को जवानी की दहलीज़ पर कदम रखने में देर थी। सुरेखा अपने कमरे में थी, दुतल्ले पर। छोटा-सा एक ...

निरोद नलिनि बेहरा की कलाकृति

शाम हौले से अपना पल्लू समेट रुख़सत हो चुकी थी। रात को जवानी की दहलीज़ पर कदम रखने में देर थी। सुरेखा अपने कमरे में थी, दुतल्ले पर। छोटा-सा एक कमरा। तीन तरफ़ बिखरा दीवारों-दरवाज़ों का मायाजाल; एक तरफ़ एक झरोखा। यही उसकी मनपसंद जगह थी। उसका बिस्तर इसी झरोखे से सट कर लगा था। खिड़की का पर्दा हवा के झोंकों में इठलाता; पर्दे में टँकी नन्ही-नन्ही घंटियाँ टुनटुनातीं। बिस्तर से सुरेखा को आसमान में टिमटिमाते तारे और उनसे अठखेलियाँ करता चाँद दिखता।

[ads-post]

पास-ही आले पर रखे रेडियो पर एक गीत बज रहा था। सुरेखा आँखें मींच कर गीत सुनने लगी। अचानक मधुर स्वर लहरी को कर्कश ध्वनि ने डँस लिया। शोर में गीत का वजूद गुम हो गया। शोर, जो कई आवाज़ों के मेल से बना था। लोहे के लोहे से टकराने की आवाज़। शीशा छनछना कर टूटने और किर्च-किर्च बिखरने की आवाज़। सड़क के पत्थरदिल सीने पर फ़ौलाद के घिसटने की आवाज़। और फिर, कोई आवाज़ नही - सन्नाटा! दिल दहला देने वाला सन्नाटा! सुरेखा घबराई। उठी। खिड़की से नीचे सड़क की ओर झाँका।

सड़क पर जुगनू-ही-जुगनू बिखरे थे। उसे विश्वास न हुआ। ध्यान से देखा। वे काँच के टुकड़े थे जिन पर लैम्प पोस्ट की रोशनी चमक रही थी। एक ओर एक स्कूटर ढुलका पड़ा था। दूसरी ओर पड़ा था एक शरीर। बस, एक शरीर। ज़िंदा या मुर्दा, मालूम नहीं। सुरेखा थोड़ी देर ताकती रही। शायद कोई सड़क से गुज़रे। शायद वह शरीर हिले। पर नहीं। न कोई सड़क से गुज़रा; न सड़क पर पड़े लावारिस जिस्म में कोई हरकत हुई।

सुरेखा को अहसास हुआ - यह एक सड़क दुर्घटना थी। एक ऐसी दुर्घटना जिसमें आहत करने वाला सुनसान रास्ते का फ़ायदा उठा कर फ़रार हो गया था। सुरेखा लपक कर नीचे उतरी। भाई घर नहीं लौटा था। माँ-बाबूजी को बताया। इससे पहले कि माँ-बाबूजी ठीक से समझ पाते, सुरेखा सड़क पर थी। बाबूजी भी लपकते हुए आए। वे ज़ख़्मी को पलटने की कोशिश करने ही वाले थे कि सुरेखा ने चेतावनी दी - ’’नहीं! न उसे हिलाइए, न उठाइए। गर्दन या पीठ में चोट हो सकती है, बाबूजी!’’

गनीमत थी कि अजनबी ने हेलमेट पहना हुआ था। वह अचेत था। सुरेखा फिर बोली, ’’बाबूजी, प्लीज़! टॉर्च ... ’’ आधे रास्ते आई माँ पलट कर वापस गईं और टॉर्च ले आईं। सुरेखा ने अजनबी के मुँह में दो उँगलियाँ डाल कर मुँह के अन्दर इकट्ठा चीज़ें निकालीं - एक अदद पूरा दाँत, दाँत का आधा टुकड़ा, और ख़ून का थक्का। अजनबी के गालों से रक्त बह रहा था।

सुरेखा फिर बोली, ’’एक जग पानी! सैवलॉन!’’

थोड़ी देर बाद अजनबी सुरेखा के ड्राइंग रूम में था। मुश्किल से बोल पा रहा था, पर ठीक था। कुछ इशारों से, कुछ डायरी की मदद से, और कुछ बोल कर उसने बताया कि उसका नाम अक्षत है, वह पी एच डी का छात्र है, और छात्रावास में रहता है। सुरेखा का भाई, विनय, अक्षत को छात्रावास छोड़ आया।

मध्यमवर्ग के शान्तिप्रिय परिवार के लिए यह घटना टी वी सीरियल से ज़्यादा अहम थी। उस रात सोने तक इसी घटना की चर्चा होती रही। और होता रहा बखान सुरेखा की समझदारी का। जैसे वह एम ए की छात्रा न हो कर एम बी बी एस की छात्रा हो, या फ़्लोरेंस नाइटिंगेल हो! सुरेखा बिस्तर पर लेटी तो ज़रूर, पर नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी। पास थे ख़याल, जीवन की नश्वरता के। जीवन जैसे माला हो मनकों की। मनकों के आकर्षण पर तो सब रीझते हैं, पर डोर की कमज़ोरी की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता।

दुर्घटना को दो दिन बीत गए। बात आई-गई हो गई। बचे, तो सड़क पर स्कूटर घिसटने के दाग़। सुरेखा ने विनय से पूछा, ’’उस लड़के को देखा था जिसका एक्सिडेंट हो गया था?’’

’’हाँ! क्या हुआ उसे?’’ विनय उल्टा पूछ बैठा।

’’अरे, मैं ये पूछ रही हूँ कि फिर जा कर देखा था उसे हॉस्टल में?’’

’’पागल हो क्या? उसके दोस्त-वोस्त होंगे, वार्डन-शार्डन होंगे - देख ही लेंगे। हमने पहले ही ज़रूरत से ज़्यादा कर दिया है उसके लिए।’’ विनय लापरवाही से कॉलर ठीक करता हुआ बोला।

बाबूजी, माँ, दोनों सुन रहे थे। सुरेखा की बात उन्हें ठीक लगी। विनय को जाना पड़ा अक्षत को देखने। वापस आया तो बोला, ’’माँ! उसका गाल तो फ़ुटबॉल की तरह फूल गया है। बुख़ार भी है।’’

’’दवा-दारू चल रही है या नहीं?’’ माँ ने पूछा।

’’दवा तो चल रही है, दारू के बारे में पता नहीं!’’ विनय शरारत से बोला। फिर सुरेखा की तरफ़ अर्थपूर्ण नज़रों से देखता हुआ बोला, ’’हम सबको धन्यवाद दे रहा था। ख़ास तौर पर दीदी को।’’

सुरेखा को थोड़ा गुस्सा आया, पर चुप रही। माँ को सब्ज़ियाँ काटती छोड़ वह ऊपर चली गई, अपने कमरे में। विनय बाहर निकल गया दोस्तों में। सुरेखा काफ़ी देर बाद नीचे उतरी, जब माँ ने खाना खाने के लिए आवाज़ दी। चुपचाप खाना खाया, एक-आध ज़रूरी बात की, और चली गई वापस अपनी शरणस्थली, अपने कमरे में।

गुमसुम रहना न जाने कब से सुरेखा का स्वभाव बन चुका था। बाबूजी, माँ, विनय - सब इस बात से वाक़िफ़ थे। कब, कौन-सी बात सुरेखा के जी को छू जाएगी, कहना मुश्किल था। एक बार उदास हो जाए तो पूरा दिन, और कभी-कभी तो कई दिन लग जाते थे उसे सामान्य होने में। उसके स्वभाव की गुत्थियाँ सुलझाने में सब पस्त हो जाते, हार जाते। सच पूछिए, तो अब सबने यह प्रयास ही छोड़ दिया था। तनहाई ही हमदर्द थी, हमराज थी सुरेखा की। बाक़ी साथी जैसे कोई था ही नहीं।

एक सुबह सुरेखा नहा कर खिड़की के पास खड़ी थी। नीचे नज़र गई, तो देखा, कोई ऊपर की तरफ़ ही ताक रहा है। एक फूला, काला गाल; एक गोरा पिचका गाल लिए अक्षत उसे देख रहा था।

सुरेखा को देख कर अक्षत ने हाथ हिलाया। शायद कुछ ज़्यादा ही ज़ोर से, क्योंकि मुँह विकृत कर दायें हाथ को बायें से तुरत थाम लिया अक्षत ने। उसने कुछ ऐसा मुँह बनाया, कि सुरेखा को हँसी आ गई। सीढ़ियाँ उतरते समय भी उसके होठों पर हँसी खिल रही थी। अक्षत ड्राइंग रूम में आ चुका था। बाबूजी और विनय भी वहीं थे।

सुरेखा ने छूटते ही पूछा, ’’कहिए! कैसे हैं?’’

’’बस, आपकी दया से बच गया उस दिन, वरना ... ’’ अक्षत कृतज्ञता से बोला।

’’ऐसी कोई ख़ास चोट तो नहीं लगी थी आपको। बस, मुँह पर एक खिड़की खुल गई।’’ सुरेखा ने शरारत से कहा।

’’एक दरवाज़ा भी!’’ अक्षत के नहले पर दहला जड़ते ही सब हँस पड़े।

थोड़ी देर बाद अक्षत चला गया।

सुरेखा ने चहकते हुए कहा, ’’माँ, देखा? अक्षत कितना ठीक हो गया है!’’

माँ ख़ुश थीं। बाबूजी भी। पर, सुरेखा को विनय की आँख में एक विचित्र भाव दिखाई दिया। एक ऐसा भाव जो पहले कभी नहीं दिखा था।

शाम को अक्षत का फ़ोन आया। अगली शाम को भी। फ़ोन रखने के बाद माँ की निगाहें सवालिया सी लगीं सुरेखा को। निर्विकार थे तो सिर्फ़ बाबूजी। वह थोड़ा सिटपिटाई। थोड़ा गुस्सा भी आया। न जाने किस पर। हर कोई अपनी जगह ठीक था। हर प्रतिक्रिया तर्कसम्मत थी। पर उसे न जाने क्यों कटघरे में खड़ा कर जाती थी। हाल ये हो गया, कि अक्षत का नाम आते ही सुरेखा के चेहरे का रंग बदल जाता।

एक दिन सुरेखा ने बड़ी देर तक बात की फ़ोन पर। माँ ने सुनने की, हावभाव भाँपने की कोशिश की। सुरेखा कभी ख़ुश होती, खिलखिलाती, और कभी संजीदा हो जाती। कभी देर तक चुप रहती, मानो डेड रिसीवर थामे हो। माँ की समझ में कुछ न आया, तो वे वापस जुट गईं अपनी दिनचर्या में।

थोड़ी देर बाद सुरेखा उतर कर आई, बाहर जाने को तैयार। माँ चौंकीं, ’’कहाँ जा रही हो सुरी?’’

’’अक्षत के पास।’’ सुरेखा ने छोटा-सा जवाब दिया।

’’अक्षत के पास? कोई ख़ास बात है क्या?’’

’’हाँ!’’

जवाब इतना संक्षिप्त था कि कि माँ सकपका गईं। कुछ अंदेशा-सा हुआ उन्हें। लेकिन बोल सिर्फ़ इतना भर सकीं, ’’जल्दी आ जाना, बेटा।’’

सुरेखा ने, पता नहीं, सुना भी या नहीं। माँ को सीने में दर्द-सा महसूस हुआ। सुरेखा को गए पाँच मिनट भी न हुए थे कि वे घड़ी देखने लगीं। बार-बार। हिसाब जोड़तीं, सुरेखा को गए कितना समय हुआ। थोड़ी देर बाद विनय भी आ गया। वैसे तो उसे घर के कामकाज से कोई सरोकार न था, पर आज माँ से पूछ बैठा, ’’माँ! सब ठीक तो है?’’

माँ बेचारी क्या कहतीं! दिल-ही-दिल में सोचने लगीं, ’’लड़की इतनी बड़ी हो गई। इनकी समझ में तो कुछ आता नहीं। इतना कहा कि अच्छा लड़का देख कर शादी तय कर दी जाए, पर कहाँ? अब न जाने कहाँ गई है! कुछ कर न बैठे। अगर कर लेगी, तो क्या मुँह दिखाऊँगी सबको? फूल जैसी बच्ची, इतने प्यार में पली, और अब ... ’’ माँ रुआँसी हो गईं।

खाने का समय गुज़र गया था। विनय खाना खा चुका था, बाबूजी खाना खा रहे थे। माँ कभी पतीलों को देखतीं, कभी घड़ी को। बाप-बेटे दोनों को ही बताया था कि सुरेखा किताब ख़रीदने गई है, शायद देर से लौटे। पर कब तक यह रहस्य छुपातीं कि सुरेखा अक्षत के पास गई है बाहर जाने के कपड़े पहन कर, शायद कभी न लौटने के लिए!

कदमों की आहट से माँ की तंद्रा टूटी। हड़बडा कर उठीं। बाबूजी के हाथ में कौर धरा रह गया। दरवाज़े से अंदर आने वाला पहला कदम अक्षत का था। उसके पीछे थी सुरेखा।

अक्षत के नमस्कार का ठीक से जवाब नहीं दे पाए माँ-बाबूजी। सुरेखा सकुचाते हुए बोली, ’’अक्षत आशीर्वाद माँगने आए हैं।’’

’’किस बात का?’’ माँ ने सहज होने की असफल चेष्टा के साथ पूछा।

’’शादी का!’’

’’शादी?’’ बाबूजी, माँ चैंक गए। विनय भी बगल के कमरे से आ गया, पाजामे बनियान में।

’’हाँ, शादी!’’

’’पर, तुम ... ’’ माँ-बाबूजी के ऊपर जैसे कोई बम फट पड़ा था।

’’माँ! अक्षत का यहाँ कोई है नहीं। उस घटना के बाद से हमें ही अपना समझने लगे। तो बस, शादी का आशीर्वाद लेने हमारे ही घर आ गए।’’

माँ-बाबूजी सकते में थे। ख़ामोश रहे। अक्षत भी असमंजस में था। सुरेखा ने ही बात आगे बढ़ाई, ’’माँ, बहू को तो बुलाइए! कब तक बाहर खड़ी रहेगी बेचारी?’’

’’हाँ, हाँ ... ’’ माँ तपाक से बाहर निकलीं, जहाँ शर्म से दोहरी एक युवती खड़ी थी।

माहौल ऐसे बदल गया, जैसे अंतिम गेंद पर छक्का जड़ हारा मैच जीत लिया गया हो! काफ़ी देर तक ठहाके, खिलखिलाहट गूँजती रही। फिर युवती बोली, ’’सुरेखा जी, आपको कैसे धन्यवाद दूँ! आपने रात के समय एक ऐसे शख़्स की मदद की जो आपके लिए अजनबी था। अगर समय पर मदद न मिलती, तो शायद ये दुर्घटना एक हादसे में बदल जाती। बाद में भी आपने अक्षत का खयाल रखा, सिर्फ़ इंसानियत के नाते। संवेदनशील होने की वजह से। आपके और अक्षत के सामीप्य का कुछ दूसरा अर्थ भी निकल सकता था। शायद आप कुछ झंझावातों से भी गुज़री हों, पर ... ’’

’’यह सब आपको कैसे मालूम?’’ सुरेखा ने मासूमियत से पूछा।

’’मैं लड़की नहीं हूँ क्या?’’ युवती मुस्कराई। बाबूजी और अक्षत भी। माँ की आँखों में बादल घुमड़ रहे थे। सुरेखा विनय की आँखों में न देख पाई।

उसकी आँखें नीची जो थीं।

--

लेखक परिचय -

अमिताभ वर्मा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय प्रौद्योगिक संस्थान से खनन अभियांत्रिकी में स्नातक हैं। उन्होंने निजी क्षेत्र की विभिन्न कम्पनियों में पैंतीस वर्ष कार्यरत रहने के बाद 2016 में अवकाश ग्रहण किया। वे आकाशवाणी से बतौर समाचार सम्पादक और समाचार वाचक सम्बद्ध रहे हैं। उनके तेरह-तेरह एपिसोड के दो धारावाहिक नाटक - बाल-श्रम के विरुद्व ’अब ऐसी ही सुबह होगी’ तथा कन्या-संरक्षण पर ’नन्ही परी’ - आकाशवाणी पर प्रसारित हुए। वे सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के टेलिविज़न तथा रेडियो कार्यक्रमों में अभिनय तथा पटकथा लेखन द्वारा योगदान करते रहे है। उनकी रचनाओं का संकलन, ’कृतिसंग्रह’, बहुत सराहा गया। उन्होंने एक अंग्रेज़ी पुस्तक, ’स्टेइंग इन्सपायर्ड’, भी लिखी है। अभी हाल में उनकी ई-बुक - कहानी-संग्रह ’उसने लिखा था’ - प्रकाशित हुई है।

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: कहानी // मैं लड़की नहीं हूँ क्या? // अमिताभ वर्मा
कहानी // मैं लड़की नहीं हूँ क्या? // अमिताभ वर्मा
https://lh3.googleusercontent.com/-RZO-Yh2pPH8/WaPk4-kf3uI/AAAAAAAA6jg/t8fjBzj3Yg8i0d0PWaI6RbmAr4I5n3eLwCHMYCw/image_thumb%255B6%255D?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-RZO-Yh2pPH8/WaPk4-kf3uI/AAAAAAAA6jg/t8fjBzj3Yg8i0d0PWaI6RbmAr4I5n3eLwCHMYCw/s72-c/image_thumb%255B6%255D?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2017/08/blog-post_88.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2017/08/blog-post_88.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content