आकाश सक्सेना सुबह जब दफ़्तर पहुँचा, तब कम ही लोग आए थे. जो आए थे वे ई.टी. पढ़ रहे थे या फिर आपस में फैशन, फूड या फ़िल्म में से किसी एक विषय ...
आकाश सक्सेना सुबह जब दफ़्तर पहुँचा, तब कम ही लोग आए थे. जो आए थे वे ई.टी. पढ़ रहे थे या फिर आपस में फैशन, फूड या फ़िल्म में से किसी एक विषय पर गपशप कर रहे थे.
आकाश को ऐसी मंडलियों में बैठना अच्छा नहीं लगता. ...कलीग इस तरह बातें करते हैं जैसे बहुत बड़े दार्शनिक हों. जबकि उनके पास सतही सूचनाएं होती हैं और वे उसे ज्ञान समझने की खुशफहमी पाले रहते हैं.
आकाश सक्सेना ने चाय मंगवाई. अभी उसने कुछ घूँट ही भरे थे कि इंटरकॉम की बेल बजी. डीएम आकाश सक्सेना को अपने केबिन में बुला रहा था.
आकाश मन ही मन मुस्कराया. चाय ख़त्म की. मन ही मन बुदबुदाया – बिस्मिल्लाह ही ख़राब हो गया.
आकाश सक्सेना डी.एम. केबिन में था. बड़ी सी टेबल. रिवाल्विंग चेयर. टेबल पर शीशा. शीशे के नीचे सर्कुलर... पेपर... देवी देवताओं की तस्वीरें. कमरे में गणेश जी की मूर्ति. अगरबत्ती. खुशबू... फर्श पर महरून कलर का कालीन. सनमाइका की चमचमाती दीवारें... ए.सी... वातानुकूलित वातावरण... बाहर का मौसम गर्म... शरीर को झुलसाता... लेकिन केबिन में वातावरण सुखद... केबिन में प्रविष्ट होते ही सुख का अहसास होता था. सुख की उपस्थिति हर कहीं थी- डी.एम. के चेहरे पर... मेज़ पर... कालीन पर... ऐसा लगता था बाहरी जगत की हाय तौबा, दुःख, उदासी, ऊब और बदहाली से यह केबिन निस्संग था. निस्संगता किसी पात्र की तरह थी जो यहाँ मौजूद थी. ...डी.एम. के चेहरे पर तृप्ति का भाव था और आँखों में किसी शिकार कथा का रोमांच! टेबल पर कुछ फ़ाइलें थीं जिन पर डी.एम. ने अपने रिमार्क्स लिख दिए. कुछेक पर साइन कर दिए थे. बड़ी सी टेबल के साथ केबिनेट था. उस पर दो फोन रखे थे. दो फोन टेबल पर रखे थे. डी.एम. के बिलकुल पास गोल्डन पेन और नोकिया का मोबाइल रखा था.
जब डी.एम. के कमरे में आकाश सक्सेना पहुँचा, डी.एम. किसी क्लाएंट से फोन पर बात कर रहा था. आकाश सक्सेना ने आखिरी वाक्य सुना- ‘शाम को यार्क में मिलते हैं.’
जब तक डी.एम. फोन रखता, आकाश सक्सेना कुर्सी खींचकर बैठ चुका था. डी.एम. को आकाश सक्सेना की ऐसी बातें नागवार लगती हैं. बाकी एम्प्लाई खड़े रहते हैं. इंतज़ार में रहते हैं. डी.एम. कुछ पल बाद कहता है – ‘प्लीज़, टेक दि चेयर.’ वे तब बैठते हैं. डी.एम. से एक तरह की इज़ाजत ली जाती है. डी.एम. का यह सुखवाद है. एम्प्लाई जानते हैं. समझदार हैं. डी.एम. खुश तो बहुत सारे रास्ते साफ!
आकाश सक्सेना सोच रहा था शाम को यह डी.एम. यार्क में किसी क्लाएंट के साथ डिनर लेगा. आर.सी. के दो-तीन पैग के दौरान क्लाएंट और डी.एम. में ‘अंडरस्टैंडिंग’ बनेगी. अगले दिन उस क्लाएंट की फ़ाइल फिर से ‘मूव’ होगी. सर्वेयर को दोबारा सर्वे रिपोर्ट भेजने के लिए कहा जाएगा. दूसरी सर्वे रिपोर्ट साफ सुथरी होगी. सारे ऑब्जेक्शन हटा दिए जाएंगे. क्लेम अप्रूव हो जाएगा – सर्वे रिपोर्ट के अनुसार! और यह डी.एम. मिस्टर साहनी चिकना-चुपड़ा चेहरा लेकर हॉल में एम्प्लाइज़ को संबोधित करेगा – फ्रेंड्ज़, आर. ओ. (रीजनल ऑफ़िस) से सरकुलर आया है. डिसिप्लिन ज़रूरी है. लाइफ़ को एंजॉय कीजिए – लेकिन डिसिप्लिन के साथ! वन थिंग मोर! ‘क्लेम रेशो’ इंक्रीज हुआ है. हमारा डिविजनल ऑफ़िस प्रॉफ़िट में नहीं जा रहा. वी ऑल शुड बी वरीड अबाउट दिस!
डिविजनल मैनेजर प्रत्येक मींटिंग में इसी तरह की बातें किया करता था. और प्रत्येक मीटिंग में आकाश सक्सेना डी.एम. को भद्दी सी गाली देता था. गालियाँ और लोग भी देते थे. पवित्र-सी भाषा बोलने वाला डी.एम., मक्कारी के जाल बुनना जानता था. संवेदना पार्थिव हो चुकी हो तो हाथ ऐसे चाकू हो जाते हैं जो अपने-पराए का लिहाज़ नहीं करते. प्रायः सभी डी.एम. इसी प्रवृत्ति के थे. सब डी.एम. ऐसी कठपुतलियाँ थे जिनकी डोर एजीएम के हाथ में थी और एजीएम की डोर अपने किसी आका के हाथ में. कंपनी के बड़े अधिकारी तुच्छता के कीचड़ में धंसे थे. लेकिन जब वे सुबह-सवेरे दफ़्तर पहुँचते तो लगता कि मनुष्य नहीं कोई ‘देवता’ चला आ रहा है.
दफ़्तर के इन ‘देवताओं’ के हाथ लम्बे लेकिन दिल छोटे थे. स्वार्थ किसी स्थाई भाव की तरह मौजूद था. दिमाग हमेशा कुछ खुराफ़ातें बुनता हुआ. चेहरा सख़्त. जैसे हँसने के लिए ‘परहेज़’ बताया हो किसी डाक्टर ने. सख़्त चेहरे का अपना फायदा था. एम्प्लाई या फिर अपने से नीचे छोटे ऑफ़ीसर थोड़ा डिस्टेंस बनाकर रखते थे. सत्ता का सुख भोगने के लिए यह परम आवश्यक था कि सबार्डिनेट्स की शख़्शियत को औक़ात में बदल दो. उनकी कमज़ोरियों को समझो और वक़्त आने पर उन कमज़ोरियों पर वार करो.
डी.एम. इस कला में निपुण था.
सामने बैठे आकाश सक्सेना को उसने बैठा रहने दिया. डी.एम. की यह ‘अदा’ थी या कोई खामोश-सा अटैक ! सामने बैठा ‘बंदा’ बेचैन होने लगता. डी.एम. दूसर को बेचैन करने की हद तक ले जाकर बात शुरू करता.
‘ओह, आई एम सॉरी मिस्टर सक्सेना... फोन पीछा नहीं छोड़ते.’ डी.एम. ने बनावटी किस्म का खेद प्रकट किया.
‘सर, आपका सर्कल बहुत बड़ा है.’ आकाश सक्सेना ने डी.एम. की किसी ख़ास लहज़े के साथ प्रशंसा की. डी.एम. समझ नहीं पाया.
कुछ क्षण बाद डी.एम. ने किंग साइज़ सिगरेट निकाला. लाइटर से सिगरेट को जलाते हुए, लाइटर को बंद करते हुए बोला, ‘क्या करें, फ्रेंड्ज़ बहुत हैं.’
‘सर, फ्रेंड्ज़ या क्लाएंट्ज़ ?’ यह सवाल तीखा था. मार करता. डी.एम. ने सिगरेट का कश लेकर आकाश सक्सेना को बड़े ठण्डेपन से देखा.
‘क्या क्लाएंट्ज़ फ्रेंड नहीं हो सकते ?’ डी.एम. की आवाज़ शुष्क थी. बल्कि हिकारत का भाव भी था.
‘हो सकते हैं सर, क्यों नहीं हो सकते. लेकिन ऑब्जेक्ट दूसरा होता है.’ आकाश सक्सेना ने तीर छोड़ा.
‘मैं तुम्हारी बात के मीनिंग समझ रहा हूँ सक्सेना ! फ़ील्ड के एक्सपीरिएंस तुम्हारे बहुत कम हैं. फ्रेंडशिप के पीछे हमेशा कोई न कोई परपज़ छुपा होता है... यू नो ?... बिजनेसमैन पार्टियाँ अरेंज करते हैं किसलिए ? रिलेशन बढ़ाने के लिए और ‘डील’ के लिए.’
‘सर, फ्रेंडशिप ‘डील’ का दूसरा नाम है.’
‘इस तरह एनालाएज़ करेंगे तो परेशान हो जाएंगे. ऐनी हाऊ, यस्टरडे यू वर नाट इन दि ऑफ़िस.’
‘आइ वाज़ आन लीव सर !’
‘ओह आई सी !’ डी.एम. ने सिगरेट का धुआं छोड़ा. रिवाल्विंग चेयर को थोड़ा घुमाया. कई सारी आवाज़ें निकलीं. फिर बोला, ‘आई वांट डिसिप्लिन इन दि ऑफ़िस.’
‘वाई नॉट सर ! ... डिसिप्लिन भी कैरेक्टर का एक हिस्सा होता है’
‘आई एप्रिशिएट युअर फ़ीलिंग.’
‘थैंक्यू सर.’
‘मिस्टर सक्सेना आप चाय लेंगे ?’ डी.एम. ने अफसरीय अदा को थोड़ी देर के लिए स्थगित रखते हुए दोस्ती का जाल फेंका. सियासी नज़रिया रखनेवाला हर बड़ा अधिकारी इस तरह के जाल फेंकना जानता है.
‘सर, आपके साथ चाय पीना मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी.’ आकाश सक्सेना ने जाल फेंके जाने के लिए जगह बनाई.
‘मेरे लिए भी. आकाश सक्सेना जैसा जीनियस, फुटबाल का प्लेयर, लिटरेरी टेस्ट रखने वाला एम्प्लाई मेरे साथ चाय पिए... मुझे भी अच्छा लगेगा.’
‘थैंक्यू सर ! आप मेरी कुछ ज्यादा ही प्रशंसा कर रहे हैं’
‘यू डिज़र्व इट मिस्टर आकाश सक्सेना.’ डी.एम. ने कहा.
यह खेल शह और मात का था जो दोनों खेल रहे थे.
चाय पीते हुए आकाश सक्सेना बोला, ‘ऐसे अच्छे कप में चाय पीना, चाय को एंज्वाय करन जैसा होता है.’
‘रियली मिस्टर सक्सेना... आई फ़ील इट सो.’ डी.एम. थोड़ा हँसा. उसे लगने लगा था कि माहौल सहज हो रहा है. आकाश सक्सेना जैसा कड़ियल और अड़ियल एम्प्लाई रास्ते पर आ रहा है.
डी.एम. चाय का घूँट भरते हुए बोला, ‘मिस्टर सक्सेना कभी-कभी तुम परेशान नज़र आने लगते हो... यह डिविजनल ऑफ़िस एक फैमिली जैसा है. कोई परेशानी हो तो मुझे बताओ यार ! ’
आकाश सक्सेना सतर्क हो गया. सहानुभूति के दास्ताने डालकर अभी यह बंदा उसका गला पकड़ लेगा.
‘बिलकुल सर, परेशानी होगी तो आपको ही बताऊँगा.’ आकाश सक्सेना ने डी.एम. की चाल को चलने दिया. यहाँ नासमझी जरूरी थी. इसी नामसमझी के जरिए डी.एम. को शिकस्त दी जा सकती थी. इस बीच डिविजन मैनेजर ने फोन अटैंड किया. वो पंजाबी में बात कर रहा था, ‘राजन, की हाल ने यार !...बड़े दिनां बाद फोन कीता. ...कम्म ? ...केड़ा कम्म ? ...टोटल लास क्लेम ? ... वैसे उस क्लेम का हम रिपेयर खर्च दे रहे थे... नब्बे हजार...सानूं की पता सी गड्डी तेरे रिलेटिव दी है...ऐनी हाऊ... डोंट वरी ! मैं देखता हूँ... हो जाएगा. फ़ाइल रिजनल ऑफ़िस चली जाती तो सब गड़बड़ हो जाता... मैं अब्बी स्क्रूटिनी बनवाता हूँ. ये तो अच्छा हुआ सर्वेयर से मैंने दोनों तरह की रिपोर्ट मंगवा ली थीं. ... रिपेयर की और टोटल लॉस की.’
डिविजन मैनेजर ने फोन रखा. आकाश सक्सेना की तरफ देखते हुए मुस्कराया - ‘माई ओल्ड फ्रेंड !... बहुत पुराना दोस्त है...हमने एक साथ बहुत ख़ुराफ़ातें की हैं.’
एक ख़ुराफ़ात अब भी करने जा रहा है बेटे... आकाश बुदबुदाया.
‘कुछ कहा तुमने ?’ डी.एम. ने कहा
‘सर, मैं कह रहा था कि आप ग्रेट हैं अपनी पुरानी दोस्ती को अभी तक निभा रहे हैं.’
डी.एम. ने आकाश सक्सेना की तरफ देखा. मुस्कराते हुए बोला, ‘अब तो नहीं निभ पा रही दोस्ती.’
‘सर, कैसे नहीं निभ पा रही ? ... रिपेयर के असेसमेंट को आप टोटल लॉस में बदल रहे हैं.’
‘मिस्टर सक्सेना, करना पड़ता है.’ डी.एम. ने मेज़ के शीशे के नीचे रखी विष्णु भगवान की तस्वीर पर हाथ रखते हुए कहा, ‘मैं तो रब्ब से डरता हूँ सक्सेना. किसी का बुरा नहीं करता... बोत बुरा वक्त देखा है. गरीबी देखी है... मेहनत से ऊँचाई पर पहुँचा हूँ.’
डी.एम. – आकाश मन ही मन बोला- जिसे ऊँचाई कह रहा है तू, वह सब नकली रंगों का खेल है. वरना खड़ा तू अब भी तलघर में है डी.एम. तुच्छता के तलघर में.
‘कुछ कहा तुमने सक्सेना ?’ डी.एम. को लगा जैसे सक्सेना ने कुछ कहा है.
‘सर मैंने कहा है कि आप शिखर पर खड़े हैं.’
‘नहीं सक्सेना... आई एम नाट सेटिस्फाइड... मैं यहीं नहीं रुके रहना चाहता. मैं ग्रो करना चाहता हूँ... ईश्वर ने चाहा तो मैं जल्दी...’
‘जी.एम. तो आप बन ही जाएंगे.’ आकाश सक्सेना डी.एम. के मन की बात समझते हुए बोला.
‘लेट्स सी.’ डी.एम. ने कहा. मुस्कराया.
डी.एम. को महसूस हुआ आकाश सक्सेना अब लाइन पर आ गया है. डी.एम. मेज़ पर झुकते हुए और आकाश सक्सेना को राजदार बनाते हुए बोला, ‘सक्सेना, एक बार तुम मुझे सेटिसफाई कर दो... फिर देखो...’
‘क्या देखो सर ?’ सक्सेना, डी.एम. के नाटक का पात्र बनते हुए बोला.
‘फिर तुम्हारी सारी टेंशनें ख़त्म !’ डी.एम. के चेहरे पर कुटिलता थी.
‘थैंक्यू सर !’ आकाश उस कुटिलता को गेंद बनाकर खेलने लगा.
‘सक्सेना... तुम्हें एक बात बताऊँ ?... मोरेलिटी जैसा रद्दी शब्द और कोई नहीं.’ डी.एम. अनौपचारिक हो गया था.
‘दिस इज़ युअर ग्रेट एक्सपीरिएंस सर !’
‘मनी मेक्स ए मीयर गो.’
‘ठीक कहा सर आपने.’
‘पवित्रता का डायमीटर पता है कितना है... आरती की थाली जितना. थाली के बाहर दूसरी दुनिया है.. आई मीन...’ डी.एम. वाक्य अधूरा छोड़कर एक आँख को थोड़ा दबाकर मुस्कराया.
आकाश सक्सेना भी मुस्कराया.
आकाश सक्सेना उठने लगा तो डी.एम. बोला,
‘डी.एल. थी सी बत्तीस पचपन फ़ाइल...’
‘सर, टोटल लॉस क्लेम ?’
‘वेरी शॉर्प यू आर मिस्टर सक्सेना.’
‘थैंक्यू सर !’
सक्सेना उठ खड़ा हुआ
आकाश सक्सेना कुर्सी को खींचकर, बाहर निकलने की जगह बनाने लगा.
डी.एम. को लगा ‘एनेस्थेसिया’ का डोज़ अभी पूरा नहीं दिया गया. उसका अनुभव पुराना था. उसने अच्छे-अच्छे महारथियों को अपने कब्ज़े में ले लिया था. सिक्कों की खनक और उनकी चमक के आगे सबकी आँखें चुंधिया गई थीं. वे ‘पालतू’ बनते चले गए थे. उन्होंने अपनी रीढ़ की हड्डियाँ डी.एम. के सामने रख दी थीं. वे रीढ़ विहीन केंचुए हो गए थे.
डी.एम. मिस्टर साहनी जिस दफ़्तर में गया उसने यही खेल खेला. कइयों को फालतू बना दिया, कइयों को पालतू ! ... सिस्टम के लिए यह खेल खेलना जरूरी होता है. पालतू बनाकर, एम्प्लाइज़ को अपने कब्जे में रखो. फिर मन चाही सामंती व्यवस्था चलाओ. क्या मजाल कोई बोल जाए. सब के सब कारिन्दे... सबके सब याचक! जी हजूरी की प्रार्थनाएँ गाते. चापलूसी का चूरण चाटते!
डी.एम. मिस्टर साहनी एक-एक एम्प्लाई को अपने केबिन में बुलाता. गहराई नापता. उसी अनुपात का जाल फेंकता. जाल इतना महीन होता कि एम्पलाई को पता न चलता कि वह फांस लिया गया है.
डी.एम. मिस्टर साहनी के ही नहीं, अन्य डिविजनल मैनेजरों ... ब्रांच मैनेजरों के ‘विश्वासपात्र’ थे. इन्हीं विश्वासपात्रों के जरिए दफ़्तर चलता था. ‘सिस्टम’ बना रहता था. रुकी हुई क्लेम फ़ाइलें ‘मूव’ होती थीं. बोगस क्लेम ‘पास’ हो जाते. औकात के मुताबिक अंश मिल जाता.
डी.एम. जब अपने बहुत करीबी दोस्तों के साथ यार्क, होस्ट, गेलार्ड, परिक्रमा में दो तीन ड्रिंक्स ले लेता, दिमाग ऊँची उड़ान उड़ने लगता. शराब खून में मिलती और खून में सोया अहंकार का तत्व जाग उठता. डी.एम. साहनी घूँट भरता, झूमता और दाएँ हाथ को उठाकर, सामने बैठे करीबी दोस्त से कहता, ‘स्किल... स्किल होनी चाहिए कालरा... वो स्किर मुझमें हैं.... तुम नहीं जानते... मैं जानता हूँ सिस्टम किसे कहते हैं... वो दांव चलने और जीतने का नाम है... वो अपना ‘अम्पायर’ खड़ा करने का नाम है.... मैंने यही किया है. मैं हर डी.ओ. में अपनी सल्तनत खड़ी करता हूँ... फिर हुकूमत करता हूँ....सब बिकाऊ माल हैं यार ! सस्ते में बिक जाते हैं. मैं खरीद लेता हूँ.’ डी.एम. घूँट भरता. गिलास को मेज़ पर रखता. फिर हाथ ऊपर उठता, ‘सिस्टम पता है क्या सिखाता है ?... टुकड़े फेंको, छोटे बड़े टुकड़े फैंको. यू नो ? लोग छोटे-छोटे टुकड़े बटोरने में लगे रहेंगे... सिस्टम यही सिखाता है... उन्हें मश्गूल रहने दो टुकड़ों के खेल में... आप सत्ता का सुख भोगो. ’
डी.एम. साहनी और अन्य अधिकारी सचमुच सत्ता का सुख भोगते थे. उन सबने यही किया कि एम्प्लाइज़ की आवाज़ तो नहीं छीनी... अलबत्ता, मुंह पर ताला लगा दिया... चाबी अपने पास रख ली.
बहुत सारे खुराफाती थे. जिन्होंने टुकड़े नहीं चुने थे. जो अधिकारियों के खेल में शामिल नहीं हुए जिनके पास अपनी आवाज़ मौजूद थी. उनके मुँह पर व्यवस्था अपनी संवेदन शून्यता का ताला भी नहीं लगा पाई थी.... ऐसे खुराफातियों से डी.एम., ए. डी.एम., ब्रांच मैनेजर ही नहीं, जी.एम. तक डरते थे... क्या पता किस फ़ाइल की जीरोक्स कराकर अपने पास रख ली हो... हर तीसरी फ़ाइल में कोई न कोई ‘लू-पोल’ होता था. अधिकारी ऐसी फ़ाइलों को ‘संभाल’ कर रखते. खुराफाती लोग उनकी ताक में रहते. ऐसी फ़ाइलों की फोटोकॉपी करवा कर रख लेते. यही विचलन का कारण बनता.
खुराफ़ातियों में आकाश सक्सेना नाम का एम्प्लाई भी था. दबंग. मस्त. कूल ! सबसे बड़ी बात घर फूंक तमाशा देखने वाला.
डी.एम. साहनी, सक्सेना से डरता था. इस डर को साहनी ने अपने अंदर छुपाकर रखा हुआ था. कभी ‘शो’ नहीं होने दिया था. लेकिन डर तो डर था. और आकाश सक्सेना... उसने तो सर पर कफ़न और हथेली पर सर रखा हुआ था.
दोनों क्लेम फ़ाइलें जानबूझकर मिस्टर साहनी ने आकाश सक्सेना को दी थीं. वरना स्क्रूटिनी तो वह किसी से भी बनवा सकता था.
इस बात को आकाश सक्सेना भी जानता ता कि क्लेम फ़ाइलें एक तरह का लिटमस टेस्ट हैं कि वह मिस्टर साहनी का ‘वफादार’ बनता है कि नहीं ?... कि वह केंचुए की भूमिका निभा सकता है कि नहीं ?
दोनों फ़ाइलें आकाश सक्सेना की टेबल पर रखी हैं. मेरीन क्लेम में कंसाइनमेंट सही हालत में इंश्योर्ड के गोदाम में पहुँची. गोदाम में वही कंसाइनमेंट डैमेज हुई. क्लेम इंश्योरेंस कंपनी से मांग रहा है. और डिविजनल मैनेजर मिस्टर साहनी चाहते हैं कि एक लाख सत्तर हजार का क्लेम पास कर दिया जाए.
दूसरी फ़ाइल मोटर क्लेम की है. एक क्लेम फ़ाइल में दो तरह की सर्वे रिपोर्ट ने आकाश सक्सेना का दिमाग चकरा दिया है. क्लेम फ़ाइल ऊपरी सतह पर कम्प्लीट नज़र आती है. लेकिन है नहीं. बहुत देर तक फ़ाइल स्टडी करने के बाद आकाश सक्सेना ने छिद्र ढूंढ लिया है. ड्राइविंग लाइसेंस ‘फेक’ है. चालक के पास एक्सीडेंट के दौरान ड्राइविंग लाइसेंस था ही नहीं. बाद में किसी दूसरे का ड्राइविंग लाइसेंस लगा दिया गया. चालक का नाम के. लाल है और ड्राइविंग लाइसेंस किसी कृष्ण लाल का है. एफ़.आई.आर. तक सादे कागज पर है.
क्लेम टोटल लॉस का है. यानी दो लाख चालीस हजार का. ... आकाश सक्सेना गहरी सोच में डूबा है क्या करे ?... प्रत्येक डिविजनल ऑफ़िस में इसी तरह के क्लेम आते हैं और उनका ‘पेमेंट’ हो जाता है... लेकिन वह क्या करे ? अपनी आत्मा को मार दे ? अपने मिज़ाज के ख़िलाफ़ चला जाए ?... विकृति का वह हमेशा प्रतिवाद करता आया है. आज भी उसे विरोध करना चाहिए. लेकिन आज वह दुविधा में है. अपने भीतर के अंतर्विरोध से उसकी ठनी है. वह जानता है कि अकेले आदमी की लड़ाई हमेशा पराजय में बदल जाती है.
तत्काल मन में दूसरा स्वर उभरता है- तो क्या वह अव्यवस्था और विकृति का विरोध करना छोड़ दे... पालतू बन जाए... यह लड़ाई लड़कर हारने से पहले की पराजय होगी... ज़मीर की पराजय ! अपने भीतर के व्यक्ति की पराजय !
आकाश सक्सेना अच्छी तरह जानता है कि उसके द्वारा बनाई गई ‘नो-क्लेम’ की स्क्रूटिनी का डी.एम. पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा. यह खेल तो जानबूझकर खेला गया है उसके साथ. .. उसे डी.एम. ने अपनी प्रयोगशाला का गिनीपिग बनाया है. वह फ़ाइलें देखकर मुस्कराएगा. अपने भीतर के आक्रोश को दबा लेगा वह अच्छी तरह जानता है. कुछ पल सोचता रहेगा. इसके बाद वह अपने ‘विश्वासपात्रों’ में से किसी एक को बुलाएगा... क्लेम की फिर से स्क्रूटिनी बनेगी- पास फार पेमेंट की. आकाश सक्सेना तिलमिलाकर रह जाएगा.
डी.एम. विरोधी के हथियारों को कुंद करने की तरकीबें जानता है.
आकाश सक्सेना बहुत देर तक सिस्टम की जड़ता पर विचार करता रहा. फिर उसने अपने आपको समझाया- आकाश, एक क्षीण-सा स्वर सही... इस दफ़्तर में है तो सही! यह स्वर भी समाप्त हो गया तो तन्त्र पूरी तरह निरंकुश हो जाएगा....
आकाश सक्सेना ने गहरी सांस ली. थोड़ा मुस्कराया. पेन उठाया. दोनों फ़ाइलों पर नो-क्लेम संबंधी डिटेल देने के बाद लिखा- क्लेम फ़ाइल सबमिटेड फार रेपुडिएशन !
आकाश सक्सेना ने फ़ाइलें डी.एम. के पास भिजवा दीं. कैंटीन से चाय मंगवाई. पीने लगा. उसने अपने आप को देखा. उसे लगा जैसे उसके कद में थोड़ा सा इज़ाफ़ा हो गया है.
मन ही मन वह अपने आप को तैयार करने लगा- अब तेरी ट्रांसफर निश्चित है सक्सेना. ...तू सस्पैंड भी हो सकता है. एक्शन का रिएक्शन तो होना ही है.
वह मन ही मन मुस्कराया. बुदबुदाया – सब ठाठ पड़ा रह जाएगा... जब लाद चलेगा बंजारा...
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रचनाकार – ज्ञानप्रकाश विवेक के सात कहानी संग्रह, एक कविता संग्रह तथा दो उपन्यास प्रकाशित हैं.
चित्र: ऋतु चौधरी की कलाकृति
कहानी सच्ची घटना सी है।
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