कहानी - लोकतंत्र का राजा

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-सत्येंद्र प्रसाद श्रीवास्तव पूरे राजमहल में दहशत और बेचैनी का माहौल था। हर शख्स परेशान। किसी अनहोनी की आशंका से खौफ़जदा। ऐसा पहली बार हुआ था...




-सत्येंद्र प्रसाद श्रीवास्तव

पूरे राजमहल में दहशत और बेचैनी का माहौल था। हर शख्स परेशान। किसी अनहोनी की आशंका से खौफ़जदा। ऐसा पहली बार हुआ था। राजा लापता था। पिछले तीन दिनों से उसका कोई सुराग नहीं था। हर जगह ढूंढ लिया गया था लेकिन राजा की कोई ख़बर न थी। मजबूरी ये थी कि इस ख़बर को लीक भी नहीं किया जा सकता था। लोकतंत्र में राजा का इस तरह लापता होना शुभ संकेत नहीं था। विरोधी दलों को बैठे बिठाए एक मुद्दा मिल जाता। और केवल विरोधी दल ही क्यों कुर्सी पर नज़र गड़ाए अपने ही दल के लोग हंगामा बरपा देते।राजा राघवनाथ के तीन भाई ही सबसे पहले गेम शुरू कर देते। इसलिए पूरी गोपनीयता बरती जा रही थी। सबसे बड़ा डर इस बात का था कि अगर टेलीविजन चैनल वालों को पता चल गया तो फिर राजा का तमाशा बन जाएगा। लोकतंत्र गहरे संकट में था।

राजमाता के चेहरे पर शिकन साफ़ देखा जा सकता था। अपने चार बेटों में से उन्होंने राघवनाथ को केवल इसलिए राजा की कुर्सी दी थी क्योंकि उसका अपना कोई व्यक्तित्व नहीं था। सीधा - सादा - गौ आदमी। डरने वाला। राघवनाथ के जरिए राजमाता अपना राज चलाती थी। राघवनाथ पूरी तरह राजमाता के शिकंजे में था। कठपुतली राजा। राजमाता के बाकी तीन बेटे उससे बिल्कुल अलग थे। इसलिए राजमाता को उन पर भरोसा नहीं था। हो सकता था कुर्सी मिलते ही वो राजमाता को ही किक मार कर सत्ता से अलग कर देते। राजमाता को पक्का विश्वास था कि राघव राजमहल से बाहर नहीं जा सकता। उसके अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी। मंत्रीसभा में भी कोई ऐसा नहीं था जो राजा को महल से बाहर ले जाने की हिमाकत करता। राजमाता ने अपने ख़ास लोगों को बुलाकर एक बार फिर राजमहल की गहन तलाशी का फ़रमान जारी किया। उनका निर्देश था कि महल का चप्पा - चप्पा छान मारा जाय। एक बार फिर महल में राजा की तलाश शुरू हो गई।

राजा अपने शयन कक्ष में ही मिल गया था। अपने पलंग के नीचे छिपा हुआ। पकड़े जाने पर राजा पलंग के नीचे से निकल कर शयन कक्ष के एक कोने में जाकर दुबक गया। बिल्कुल साधारण कपड़ों में। ऐसे बकरे की तरह वो कोने में दुबका हुआ था , मानो उसे अभी काटा जाएगा। उसने राजसी वस्त्र उतार फेंके थे। राजमुकुट भी शयन कक्ष में एक ओर लुढ़का हुआ था। अपने कमरे में सैनिकों को देखते ही वो रिरियाने लगा --'' मुझे छोड़ दो। मैं राजा नहीं हूं। मैं राजा नहीं हूं। ''

सभी घबड़ा गए। एक सैनिक हिम्मत कर उनके पास गया और समझाने की कोशिश की -'' महाराज , आपको क्या हो गया है ? आप ही राजा हैं। हमारे भाग्य विधाता हैं। ''

'' नहीं , नहीं '' राघवनाथ चिल्ला उठा , '' मैं राजा नहीं हूं। मैंने कुछ नहीं किया। मैं राजा नहीं हूं। ''

पूर राजमहल में आग की तरह ख़बर फैल गई कि राजा पागल हो गए हैं। वो खुद को राजा मानने को तैयार नहीं। कुर्सी से दीमक की तरह चिपके रहने वाले राघवनाथ का ये कहना कि वो राजा नहीं हैं -- किसी अजूबे से कम नहीं था। जब राजमाता की पार्टी ने चुनाव जीता था और उनके चार बेटों में से किसी एक को राजा चुना जाना था तब कितनी उठापटक हुई थी , ये आज तक सबको याद है। डरपोक राघवनाथ रात के अंधेरे में राजसभा में जाकर राजा की कुर्सी पर बैठकर राजा का स्वांग रचता। कुर्सी को चूमता , सहलाता। जब एक ख़ास चाटूकार ने पूछा था कि वो ऐसा क्यों करता हैं तो उसने बिना किसी लागलपेट के कहा था कि वो राजमाता के सामने अपनी मांग नहीं रख सकता लेकिन राजा बनने की इच्छा तो रखता ही हैं। इसलिए रात को चुपचाप राजा की कुर्सी पर बैठकर अपनी ये इच्छा पूरी कर रहा हैं। अगर कुर्सी नहीं मिली तो कम से कम मलाल नहीं रहेगा। अब वही राघवनाथ लोगों को ये बता रहा हैं कि वो राजा नहीं हैं।

ख़बर मिलते ही राजमाता लगभग दौड़ते हुए राघवनाथ के कमरे में पहुंची थीं। उन्हें इस बात से राहत मिली थी कि राघवनाथ मिल गया लेकिन उसकी दिमागी हालत की ख़बर से वो चिंतित भी हुईं। अगर राघवनाथ पागल हो गया तो उसे राजा की कुर्सी पर बिठाए नहीं रखा जा सकता और अगर ऐसा हुआ तो सत्ता राजमाता के हाथों से निकल जाएगी। राजमाता को पागल नहीं कमजोर राघवनाथ चाहिए था।

राजमाता को देखते ही राघव और जोर - जोर से चीखने लगा , '' मैं राजा नहीं हूं। मुझे छोड़ दो। मैं राजा नहीं हूं। ''
राजमाता जैसे - जैसे उसके करीब पहुंच रही थीं , वो और सिकुड़ता जा रहा था। मानो राजमाता उसे कच्चा निगल जाएंगी। राजमाता जब उसके करीब पहुंची , वो आदमी से सिकुड़ कर लगभग गेंद बन गया था। राजमाता ने जैसे ही उसके सिर पर हाथ रखा , वो फफक - फफक कर रो पड़ा , '' मुझे छोड़ दो , मुझे छोड़ दो , मैं राजा नहीं हूं। '
'' राघव ये क्या हो गया है तुम्हें ? तुम्हीं राजा हो। इस देश के भाग्यविधाता हो। '

'' नहीं , नहीं , मैंने कुछ नहीं किया। मैं राजा नहीं हूं।मैं निर्दोष हूं। मुझे छोड़ दो , मुझे मुक्ति दो। मैं राजा नहीं हूं। ''
राजमाता वहीं जमीन पर धम्म से बैठ गईं। वहां मौजूद लोगों का दिल भी बैठ गया। राजमाता को इतना टूटते शायद ही कभी किसी ने देखा था। आखिर क्या हो गया राघव को ? किस बात से इतना खौफ़जता है राघव ? आखिर वो कौन सा डर है , जिसकी वजह से वो राजा होने की बात से ही इनकार कर रहा है ? किस बात ने उसे इतना डरा दिया है ? किसने उसे इतना डरा दिया है ? एक बार पता चल जाय , राजमाता उसे नहीं बख्शेगी। राजमाता के दिल में तरह - तरह की आशंकाओं के बादल उमड़ - घुमड़ रहे थे। किस साज़िश का शिकार हो गया राघव ? कहीं ये राजमाता को सत्ता से बेदखल करने का कोई खेल तो नहीं है ? कहीं अपने ही बेटे तो उनके दुश्मन नहीं बन गए ? उनके दिमाग में विरोधी दल की साज़िश की बात बहुत बाद में आई थी , पहले संदेह अपनों की ओर ही गया था। कहीं राघव के भोजन में कुछ ऐसा मिला कर तो नहीं दे दिया गया , जिससे उसकी दिमागी हालत बिगड़ गई है ? क्या होगा अब ? कैसे निपटेगी अब वो इस समस्या से ? राजमाता का दिल बैठा जा रहा था। उन्होंने इशारे से कमरा खाली करने को कहा। सारे सैनिक बाहर चले गए।कमरे में रह गए राघवनाथ और राजमाता। दरवाजा भी बंद कर दिया गया।

राजमाता ने राघव का सिर अपनी गोद में रख लिया , ' राघव डरो नहीं। मैं तुम्हारी मां हूं। बताओ क्या हुआ है ? किसने डराया है तुम्हें ?'

लेकिन राघव पर अभी भी डर हावी था। वो रिरियाने लगा , '' मैं राजा नहीं हूं। मैं राजा नहीं हूं। '
अब राजमाता को गुस्सा आ गया। वो चीख पड़ीं , ' राघव बंद करो ये नाटक। मुझे ये रोना - धोना बिल्कुल पसंद नहीं है। बताओ क्या हुआ है ?'

राघव की सिट्टीपिट्टी गुम। राजमाता का गुस्सा प्रलयंकारी होता है। उनका गुस्सा बेटे और दुश्मन में फर्क नहीं समझता। राघव ने अपना सिर झट उनकी गोद से हटा लिया। क्या पता गोद में ही सिर कलम हो जाय। अब वो पहले से ज्यादा डरा हुआ था। थर - थर कांप रहा था।

राजमाता फिर चीख पड़ी , ' बताओ क्या बात है ? इतने बड़े लोकतंत्र का राजा इतना ज्यादा क्यों डरा हुआ है , जबकि मेरा वरदहस्त तुम्हारे सिर पर है ?'

राजा राघवनाथ की बोलती बंद हो गई थी। उसके गले से आवाज् भी नहीं फूट रही थी। उसने अपने बिस्तर की ओर इशारा किया। बिस्तर पर देश का सबसे बड़ा अखबार पड़ा हुआ था। पहले पेज पर मोटे - मोटे अक्षरों में हेडलाइन थी , ' भ्रष्टाचारियों को लैंपपोस्ट पर लटका दिया जाना चाहिए '

राजमाता की आंखें फटी की फटी रह गईं। पिछले तीन सालों से उन्होंने अखबार नहीं पढ़ा था। जबसे उनकी पार्टी सत्ता में आई थी , तब से उन्होंने अखबार पढ़ना छोड़ दिया था। उन्हें पता था कि अखबार वाले सरकार को ही गाली देते हैं , तरह - तरह की समस्याएं छापते हैं और सरकार की आलोचना करते हैं। राजमाता को ऐसी ख़बरें परेशान करती थीं , इसलिए उन्होंने अखबार पढ़ना ही छोड़ दिया था। लेकिन आज उन्हें लपककर अखबार उठाना पड़ा था। पूरी ख़बर पढ़ गई वों --'' देश की सर्र्वोच्च अदालत ने एक अपराधी की ज़मानत पर सुनवाई करते हुए कहा कि जिसे देखो , वह देश को लूट लेना चाहता है। ऐसे हालात में भ्रष्टाचारियों को सरेआम लैंपपोस्ट पर लटका दिया जाना चाहिए लेकिन हम जानते हैं कि ऐसा हमारे अख्तियार में नहीं है। '

राजमाता कुछ देर स्तब्ध खड़ी रहीं। फिर जोर - जोर से हंसने लगीं। उनके ठहाकों से पूरा कमरा हिल उठा।
' इतने बड़े लोकतंत्र का इतना बड़ा राजा बस इतनी छोटी सी ख़बर से इतना डर गया कि राजा होने से ही मना करने लगा ' राजमाता फिर ठहाके लगाने लगीं।

राघवनाथ की आंखों में हैरानी थी , ' आप इसे छोटी ख़बर कह रही हैं ?'
' और नहीं तो क्या ? ये एक जज की निजी भड़ास है। लेकिन इसमें उसकी लाचारगी भी तो झलक रही है कि ये उसके अख्तियार में नहीं है '

राघवनाथ अभी भी खौफ़ में थे। उन्हें अपने गले में फांसी के फंदे की सरसराहट महसूस हो रही थी , '' राजमाता , आज अदालत ने राय जाहिर की है , कल किसी धारा के तहत फ़रमान भी जारी कर सकती है। क्या हम हाल के दिनों में कई बार अदालती आदेशों के कारणों असुविधाजनक स्थिति में नहीं फंसे हैं ?'

' लेकिन तुम निश्चिंत रहो। ' राजमाता ने राजा राघवनाथ को भरोसा दिया , ' कोई भी अदालत इस तरह सरेआम लैंपपोस्ट पर लटकाने का आदेश जारी नहीं कर सकती। हमारे देश की संविधान इस बात की इजाजत नहीं देती। '
'' राजमाता आप जरा भविष्य की सोचिए। एक जज का ये गुस्सा किसी दिन जनता के गुस्से में भी तब्दील हो सकता है। अदालत हमारी नहीं , जनता की बोली बोल रही है। संविधान , सरकार , राजा - सब कुछ तो जनता से ही है। अगर जनता ने ही भ्रष्टाचारियों को लैंपपोस्ट पर लटकाना शुरू कर दिया तो ?'

अब राजमाता की आंखें खुली। उनका सिर चकरा गया। उन्होंने सपने भी नहीं सोचा था कि राघवनाथ भी इतने दूर की सोच सकता है। सचमुच अब ये गंभीर समस्या लग रही थी। इस तरह की भाषा से तो जनता भड़क सकती है। कुछ करना होगा। करना ही होगा। उन्होंने राघवनाथ को भरोसा दिया कि वो डरे नहीं। इसी बहाने उन्होंने खुद को भी तसल्ली दी कि सत्ता की बागडोर उनके ही हाथों में रहेगी। उन्होंने राघवनाथ को राजा की कुर्सी पर बैठने की नसीहत दी और कहा कि वो इस समस्या का समाधान जरूर निकालेंगी। उन्होंने राघव को निर्देश दिया कि आज ही नवरत्नों की बैठक बुलाई जाय।


राजमाता , राजा राघवनाथ और नवरत्नों की बैठक चल रही थी। पूरा माहौल गंभीर था। बैठक कक्ष में मौत का सन्नाटा पसरा हुआ था। राजमाता और राघवनाथ ने समस्या और भविष्य में पड़ने वाले दूरगामी प्रभाव से नवरत्नों को अवगत करा दिया था। अब नवरत्नों को सुझाने थे उपायों। पूरे राजमहल में मौत का सन्नाटा था। जैसे ही महल के निवासियों को पता चला कि नवरत्नों की बैठक हो रही है , उन्हें मानो लकवा मार गया। नवरत्नों की बैठक तभी बुलाई जाती थी , जब देश किसी गंभीर संकट से गुजर रहा होता है। इस बात से भी हैरानी थी कि नवरत्नों की बैठक में भी राघवनाथ साधारण कपड़ों में ही गए थे। राजा के कपड़े पहनने में उन्हें अभी भी डर लग रहा था। ये सारे नवरत्न कबीना स्तर के मंत्री थे और सबके पास बड़े - बड़े मलाईदार विभाग थे। इसलिए ये समस्या उन सब की थी।

एक ने सुझाया -'' हमें कुछ ऐसा करना चाहिए कि सर्वोच्च अदालत की नज़र ही हम पर न पड़े। न हम पर नज़र पड़ेगी , न ही वो हमारे बारे में ऐसी बातें कहेगी , जिससे लोगों के भड़कने का खतरा हो। ''
राजमाता ने पूछा -'' इससे बात बनेगी ?''

दूसरे नवरत्न ने तत्काल कहा -'' जरूर , जब सर्वोच्च अदालत की नज़र ही नहीं पड़ेगी तो कोई समस्या ही नहीं होगी। और किसी की तो हिम्मत है नहीं कि सरकार के खिलाफ कुछ बोल सके। ''
'' लेकिन ये होगा कैसे ?'' राघवनाथ की चिन्ता जायज थी।

'' अनुसंधान करना पड़ेगा। वैज्ञानिकों को इस काम में लगाना पड़ेगा। मैंने कल ही एक फिल्म देखी मिस्टर इंडिया ? उसमें हीरो एक अंगुठी पहनता है और फिर सबकी नज़रोें से ओझल हो जाता है। वो सबको देख सकता है लेकिन उसे कोई नहीं देख पाता ''

'' अगर ऐसा हो गया तो न केवल हम कानून की निगाह से बच जाएंगे बल्कि हमारा काम भी और आसान हो जाएगा। तब तो शायद कैमरे भी हमें पैसे लेते हुए नहीं पक़ड़ पाएंगे '' एक नवरत्न की ऐसी राय से सबको और ताकत मिली।

तत्काल राजा के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार को तलब किया गया। मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार को देश की जरूरत से अवगत कराया गया। बताया गया कि देश को किस तरह अपने वैज्ञानिकों की इस महान सेवा की ज़रूरत है लेकिन मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार का जवाब निराश करने वाला था। जान बख्शने की अपील करते हुए उसने बताया था कि फिल्म में जो कुछ भी दिखाया गया है , सचमुच की जिंदगी में ऐसा करना संभव नहीं है। ऐसा नहीं कि वैज्ञानिक ऐसी कोशिश नहीं कर रहे हैं लेकिन अभी तक कामयाबी नहीं मिली है।

राजमाता का गुस्सा सातवें आसमान पर था।वैज्ञानिक अनुसंधान पर सरकार इतना पैसा खर्च करती है लेकिन ये एक छोटा सा काम भी नहीं कर सकते राष्ट के लिए। मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार को तो तत्काल बर्खास्त करने का फरमान जारी कर दिया गया। ये भी पता चला कि वो पिछली सरकार में भी इसी पद पर था। राघवनाथ नवरत्नों पर बरस पड़े। दूसरी पार्टी की सरकार का आदमी अभी तक इतने बड़े पद पर कैसे आसीन था ? अगर कोई अपना आदमी होता तो कम से कम कोशिश तो करता।

जो भी हो समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई थी। राघवनाथ ने नवरत्नों से कहा -'' ये हमारी - आपकी और पूरे देश के अस्तित्व का सवाल है। आपलोग कुछ सोचिए। जल्दी सोचिए। ''
नवरत्न फिर मगजमारी करने लगे। एक नवरत्न ने मन ही मन सोचा -'' सत्ता में आकर भी सोचना पड़ा रहा है। दिमाग का इस्तेमाल करना पड़ रहा है। कितने अभागे हैं हम ''

तभी एक आइडिया और कौंधा -'' क्यों न हम सर्वोच्च अदालत की आंखें ही निकाल लें ?''
जबर्दस्त आइडिया लेकिन एक नवरत्न ने कहा -'' मुझे जहां तक याद आ रहा है , सर्वोच्च अदालत के बाहर कानून की जो मूर्ति लगी हुई है , उसकी आंखों पर तो पट्टी बंधी हुई है। यानी अदालत तो पहले से ही नहीं देख पाती ''
'' नहीं ये बात नहीं है , ये पट्टी इस बात का प्रतीक है कि कानून केवल इंसाफ करेगी। इस पट्टी के जरिए वो इस बात का संकेत देती है कि उसके सामने सभी बराबर है। ''

'' ये तो और खतरनाक बात है। फिर तो कानून की नज़र में हमारी कोई हैसियत ही नहीं है। हमें संविधान में संशोधन करना चाहिए ''
राजमाता ने कहा -'' कैसे निकालेंगे कानून की आंख ? आप क्या सोच रहे हैं इस पर हंगामा नहीं होगा। विपक्ष चुपचाप बैठा रहेगा ''

देश के स्वास्थ्य मंत्री भी नवरत्नों में शामिल थे। उन्होंने सलाह दी -'' क्यों न हम इलाज के बहाने उसे ऐसी दवाएं दें , जिससे उसकी आंखों की रोशनी धीरे - धीरे चली जाय ''
राघवनाथ ने कहा -'' आइडिया बुरा नहीं है लेकिन कानून तो बीमार नहीं है। आखिर क्या कह कर हम कानून का इलाज शुरू करेंगे ''

फिर वही तनाव। कानून की आंख फोड़ने का आइडिया जबर्दस्त था लेकिन इसे लागू करने में काफी दिक्कतें थीं। लोकतंत्र में कानून को अंधा करना इतना आसान भी नहीं था। अब राजा को ही नहीं , नवरत्नों को भी लगने लगा था कि सबसे बड़ी बीमारी लोकतंत्र ही है। तो क्या आखिर एक दिन सबको लैंपपोस्ट पर लटका दिया जाएगा ? क्या देश की सेवा करने के लिए कोई नहीं बचेगा ? ये सवाल अब नवरत्नों को सालने लगा था।राजमाता परेशान थीं तो राघवनाथ अभी तक डरा हुआ था। लेकिन राजमाता तो राजमाता थी।उन्होंने इसका हल ढूंढ ही निकाला। उन्होंने कहा -'' मैंने इस समस्या का समाधान ढूंढ लिया है। ''


सब खुशी से उछल पड़े। बाकी किसी की हिम्मत तो नहीं पड़ी लेकिन राघवनाथ ने पूछ ही लिया कि क्या समाधान ढूंढा है उन्होंने। राजमाता ने कहा - अभी वो इसका खुलासा नहीं करेंगी। सर्वदलीय बैठक बुलाओ। सर्वदलीय बैठक में सब मिलकर इसे अपनी मंजूरी देंगे। सभी चकरा गए लेकिन राजमाता के आदेश पर सवाल नहीं किया जा सकता था। दूसरे दिन सर्वदलीय बैठक बुलाई गई। अचानक बैठक बुलाए जाने से विरोधी दल भी हैरान थे। राजमाता और राजा तो किसी भी मामले में कभी उन्हें इतनी अहमियत नहीं देते थे। देश के किसी भी फ़ैसले में उन्हें विश्वास में नहीं लिया जाता था लेकिन आज अचानक क्या हो गया। हैरान परेशान सभी विरोधी नेता बैठक में पहुंच गए थे। मीडिया को भी भनक लग गई थी। टेलीविजन वाले कैमरा लिए बैठक कक्ष के बाहर मौजूद थे लेकिन किसी को भी बैठक का एजेंडा मालूम ही नहीं था तो फिर कोई कहता क्या ? अटकलों का बाज़ार गर्म था।
बैठक तय समय पर ही शुरू हुई थी। राजमाता ने खुद अखबार पढ़ कर सुनाया और विरोधी दलों को सर्वोच्च अदालत की राय से वाकिफ़ कराया। ख़बर तो सबने पढ़ी थी लेकिन इतनी गहराई से इस पर विचार नहीं किया था , जितना राजमाता और राजा राघवनाथ ने किया था। जब राजमाता ने सबको उनका भविष्य बताया तो सबको सांप सूंघ गया। राजमाता ने कहा - ये हमारी या आपकी समस्या नहीं है। ये पूरे देश की समस्या है और इसलिए हम चाहते हैं कि फैसला भी मिल बैठकर एक साथ किया जाय।

राजमाता की इस राय से सभी ने इत्तफाक जताई। राजमाता ने कहा - हमने कई हल ढूंढे लेकिन कुछ भी समझ में नहीं आया। आखिरकार हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि देश में कोई लैंपपोस्ट रहने ही नहीं दिया जाय। सारे लैंप पोस्ट तुड़वा दिए जायं। बस मुझे तो यही एक हल दिख रहा है , आप लोगों का क्या कहना है ?
विरोधियों को भी समाधान भा गया लेकिन आशंका भी थी। इससे तो पूरा देश अंधेरे में डूब जाएगा।क्या जनता मानेगी ?

राजमाता ने समझाया - इसीलिए तो आपलोगों को बुलाया है। अगर हम सब मिलकर जनता को समझाएं कि रोशनी से ज्यादा अहम राजा है तो जनता मान जाएगी। जनता को बरगलाना तो हमारे - आपके बाएं हाथ का काम है।बस अगर ये काम हम मिलकर करें तो किसी को संदेह नहीं होगा।
बैठक में राजमाता की जय - जयकार होने लगी।

http://satyendra2007.blogspot.com

रचनाकार संपर्क - सत्येन्द्र प्रसाद श्रीवास्तव
फ़्लैट नं. G-2, प्लाट नं-156
मीडिया एनक्लेव, सेक्टर-6
वैशाली , गाजियाबाद

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COMMENTS

BLOGGER: 2
  1. वाह ! क्या कहानी लाए हैं आप ? बिना रुके पूरा पढ़ गई । मजा आ गया पर इसके सत्य से दुख भी हुआ । कुल मिला कर बहुत अच्छी कहानी ।
    घुघूती बासूती

    जवाब देंहटाएं
  2. रतलाम जी, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। हिंदी के प्रति आपका समर्पण किसी प्रशंसा का मोहताज नहीं है। हंस में छपी मीडिया जगत से जुड़ी कई हस्तियों की कहानी को प्रकाशित कर आपने बहुत अच्छा किया। यह कहानी भी अपने बिंब और प्रतीकात्मकता से बेहद प्रभावकारी बन पड़ी है। सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह और संप्रग के भीतर खींचतान को इन्होंने सटीक चित्रण किया है। साधुवाद।
    राजेश राज,
    उप संपादक, नईदुनिया, रायपुर

    जवाब देंहटाएं
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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: कहानी - लोकतंत्र का राजा
कहानी - लोकतंत्र का राजा
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