विनय 'मघु` की चंद रचनाएं

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  विनय मधु की ये ग़ज़ल-नुमा रचनाएँ पाठकों को बेरदीफ बेकाफिया लग सकती हैं मगर, अनगढ़ किस्म की ये रचनाएं वज़न से भरपूर हैं. मसलन –   जब बेटा...

 

विनय मधु की ये ग़ज़ल-नुमा रचनाएँ पाठकों को बेरदीफ बेकाफिया लग सकती हैं मगर, अनगढ़ किस्म की ये रचनाएं वज़न से भरपूर हैं. मसलन –

 

जब बेटा अपने संसार में खो जाता है,

तब बूढ़ी माँ की नसीहत बूढ़ी लगती है।

 

या फिर, ये निहायत मौलिक सोच –

 

नफ़रत और दहशत की इस दुनिया में,

प्यार खेले खेल मेरे सपनों में।

 

पढ़ें, आनंद लें व हौसला आफजाई करें. – सं.

 

(१)

'इंसान खुदा बन`

 

इन्सान खुदा बन कर घूमे गली गली हर एक शहर में,

जाने किसका दामन लुटने वाला है आने वाले पहर में ।।

खुदा का हो चाहे इन्सान का हो

गरीब का धर ही जला है हर इक कहर में

 

जाने अनजाने हवा ने जब भी रूख बदला है,

चिंगारियाँ जल उठी हैं हवा की हर इक लहर में ।।

 

गम के मारे मिल जाते हैं हर इक गली में

शायद वो बात नहीं रही जहर में ।।

 

रात चाहें कितनी भी अंधेरी या काली हों

'मधु` सब से कह दो धबराओ मत

सूरज निकल ही आएगा आने वाले सहर में ।।

 

(२)

‘धरौंदों और महलों में`

 

समंदर की हर एक बूंद पे, लहरों का हक है ।

ये कैसी हवा है कि हर इंसां की नीयत पे शक है ।।

 

ऐ खुदा तेरी बनाई हुई इस दुनिया में,

धरौंदो और महलों में क्यूं इतना फर्क है।।

 

भूल गया है इंसान, चंद लम्हें महलों में बिता के,

कि धर के पास इक तपती हुई लम्बी सड़क है ।।

 

इंसा चेहरे पे मुखौटे चाहे लाख लगा लें,

'मधु` यहीं पे स्वर्ग, यहीं पे नरक है ।।

 

(३)

इक ऐसा रेगिस्तान हूँ

 

ना फ़रिश्ता, ना मसीहा हूँ, हूँ तो इक इंसान हूँ

चीर दूं बेदर्द का दिल इक ऐसा बयान हूँ।

 

धरती ने ओढ़ रखी है चादर तपती हुई,

जल कर भी जो चुप हैं इक ऐसा रेगिस्तान हूँ।

 

बूढ़ा बाप कहे जवान बेटे से - नहीं चाहिए

सहारा तेरा कंघों से अभी मैं जवान हूँ।

 

जरुरत पड़ी तो रक्त से लिख दूंगा,

मगर विश्वास हैं आँखों से पढ़ लिया जाऊँगा

 

माना की नया हूँ मगर हर दिल को दहला जाऊँगा 'मधु`

इक नयी सुबहा सा, इक नया फरमान हूँ।

 

(4)

जिन्दगी के सफर में

 

रोशनियाँ कैद हैं अंधेरों के घर में,

दर्द झलकता हैं जिन्दगी के सफर में।

 

अब इंसान को कफ़न नसीब नहीं होते,

खुशियाँ जब से लिपटी पड़ी हैं कफ़नों में।

 

नफ़रत और दहशत की इस दुनिया में,

प्यार खेले खेल मेरे सपनों में।

 

गैरों ने थामा नहीं, अपनों ने छोड़ा नहीं,

कोई मुझे बतलाए क्या फर्क है गैरों और अपनों में।

 

(5)

'वफ़ाओं के किरदार`

 

हम वफ़ाओं के किरदार निभाए जाते हैं,

वो हमारे धर को आग लगाए जाते हैं ।।

 

हर शख्स पे उठ जाती हैं उंगलियाँ उनकी,

खुद को दुनिया की नजरों से बचाए जाते हैं ।।

 

आँसुओं से दूर रखा हमने जिनको सदा,

वही दमान को आँसुओं से भिगोए जाते हैं।।

 

पागल दरिया की तरह लोग हमें

गहरे समंदर में डुबाए जाते हैं ।।

 

'मधु` एहसान करके आज कोई भूलता नहीं,

हर दिन हज़ार बार एहसान गिनाए जाते हैं ।।

 

(6)

सूखे पत्ते की मौत

 

प्यार की हवा जब चारों तरफ चलेंगी,

नफ़रत कांटों से लिपट कर मर जाएगी।

 

दहशतगर्दी जो सब के दिलों में छाई है आज,

कल छोटे बच्चे की हँसी को देख कर डर जाएगी।

 

अब वो दिन दूर नहीं यारों,

जब सूखे पते की मौत भी चमन में बहार कर जाएगी।

 

सज़दा करता हूँ उन खुशियों को, जो

बहती आंखों से आँसू हर लाएगी।

 

चार बेटों का बाप, फिक्र में पागल है 'मधु`

कब छोटी बिटिया अपने धर जाएगी।

 

(7)

वक्त़ की रोटी

 

जब अपनों की बात दिल पे लगती है

तब जिन्दगी की हर शाम आधी-अधूरी लगती है।

 

जब बेटा अपने संसार में खो जाता है,

तब बूढ़ी माँ की नसीहत बूढ़ी लगती है।

 

कहने को कदम इंसा के चाँद को छू आए हैं मगर,

आज भी कई आखों को दो वक्त़ की रोटी सपना लगती है।

 

दिल के गुलशन पे जब पतझड़ का साया हो,

बहती नदियाँ भी तब सूखी लगती है।

 

औरत को कई रिश्तों में बांघ रखा है इंसां ने,

फिर भी इंसां की नीयत भूखी लगती है।

 

जब जवान बेटा आंखों से कहीं दूर चला जाता है

'मधु` तब जिन्दगी अंधेरी गुफाओं सी लगती हैं।

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रचनाकार परिचय

नाम : विनय 'मधु`

पिता का नाम : श्री वीर सिहँ

उम्र : २१ साल (४-०७-१९८६)

रूचियाँ : कहानियाँ, ग़ज़लें तथा कवितायें लिखना और

पढ़ना, पेंटिंग करना ।

दुष्यंत, शमशेर, सरदार पंछी और गोपालदास 'नीरज` को पढ़ना पसंद करता हूँ।

पता : श्री मंगल सिंह

श्री वीर सिंह,

मकान नं: २५१,

गली नं: १४,

सेक्टर न: ६, नानक नागर (जम्मू)

e-mail me: singhviney@rediff.com

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COMMENTS

BLOGGER: 2
  1. बेनामी6:31 pm

    FIRST I THANKS TO MR. RAVI RATLAMI WHO PUBLISHED THE GREAT GHAZALS OF GREAT YOUNG POET (OR GHAZALKAR)MR. VINAY "MADHU" AND SECOND,I THANKS TO MR. VINAY "MADH" WHO WROTE THESE VERY EMOTIONAL AND SENITIVE GHAZALS FOR OUR.
    EVERY LINE OR OR SHER OR EVERY GHAZAL IS VERY VERY EMOTION AND TOUCH THE HEART OF HUMAN BEING VERY EASILY AND DEEPILY. THE GHAZALS OF MR. "MADHU" ARE DIFFERENT TO OTHER POETS WHO ALREADY PUBLISHED IN RACHANAKAR.
    WHEN I READ THE GHAZALS OF MR. MADHU I SHOCKED FROM INSIDE. HOW A 21 YEARS OLD YOUNG BOY WROTE THESE VERY EMOTIONAL GHAZALS.
    THOSE PEOPLE WHO WILL READ THE GHAZLAS OF MR. MADHU, I AM SURE, THEY DON'T STOP THEMSELF EMOTION. AND TEARS OF EYES WILL BE CAME AUTOMATICALLY FROM THEM EYES.
    MY FULL BLESSING AND A SUGGESTION FOR MR. "MADHU" PLEASE DON'T STOP THE WRITING IN FUTURE BECAUSE WE NEED OF YOUR GREAT THOUGH. AND YOU ARE THE ONE WHO DIFFERENT FROM OTHERS.
    AND I HAVE ALSO A SUGGETION, OF MR. RAVI RATLAMI PLEASE PUBLLISH THE MORE GHAZALS OR POEMS OF MR. MADHU WHO IS THE YOUNG WRITTER IN PREENT.
    IN LAST I AM BIG FAN OF MR. MADHU.
    MY ALL THE FRIENDS READ THE GHAZALS OF MR. MADHU AND ALSO APPREICATE THE GHAZALS OF MR. MADHU. THE NAME OF FRIENDS IS BELOW.
    SANJAY SURI
    (BOMBAY)
    Varun, Krishan, AMIT, ROHIT, VIKRAN, SOURAV, MOHIT, CHOOTU, and SURBHI.

    जवाब देंहटाएं
  2. मधु जी की गज़लें पढीं...विचार प्रस्तुती,शब्दों का विन्यास तो ठिक है,मगर एक प्रश्न था युं ही क्या सारे मिश्रे शेर की कसौटी पर उतरते हैं?रदीफ़ कादिया और सबसे बडी बात है बहर न रहे तो फ़िर गज़ल की शिष्टता क्या,अनुशासन कहां?

    जवाब देंहटाएं
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मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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विनय 'मघु` की चंद रचनाएं
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