हास्य कविताएं -अरुण मित्तल ‘अद्भुत’ कैसे कैसे उत्पाद एक जगह बहुत भीड़ लगी थी एक आदमी चिल्ला रहा था कुछ बेचा जा रहा था ...
हास्य कविताएं
-अरुण मित्तल ‘अद्भुत’
कैसे कैसे उत्पाद
एक जगह बहुत भीड़ लगी थीएक आदमी चिल्ला रहा था
कुछ बेचा जा रहा था
आवाज कुछ इस तरह आई
शरीर में स्फुर्ति न होने से परेशान हो भाई
थकान से टूटता है बदन
काम करने में नहीं लगता है मन
खुद से ही झुंझलाए हो
या किसी से लड़कर आए हो
तो हमारे पास है ये दवा
सभी परेशानियां कर देती है हवा
मैंने भीड़ को हटाया
सही जगह पर आया
मैंने कहा इतनी कीमती चीज
कहीं मंहगी तो नहीं है
वो बोला आपने भी ये क्या बात कही है
इतने सारे गुण सिर्फ दो रुपए में लीजिए
भाई साब दिलदार बीड़ी पीजिए
फुटकर हास्य कविताएँ -
1पिताजी ने बेटे को बुलाया पास में बिठाया,
बोले आज राज की मैं बात ये बताऊंगा।
शादी तो है बरबादी मत करवाना बेटे,
तुमको किसी तरह मैं शादी से बचाऊंगा।
बेटा मुस्कुराया बोला ठीक फरमाया डैड,
मौका मिल गया तो मैं भी फर्ज ये निभाऊंगा।
शादी मत करवाना तुम कभी जिन्दगी में,
मैं भी अपने बच्चों को यही समझाऊंगा।
2
एक नए अखबार वाले सर्वे कर रहे थे
मैंने कहा मैं भी खूब अखबार लेता हूं
जागरण, भास्कर, केसरी ओ हरिभूमि
हिन्दी हो या अंगरेजी सबका सच्चा क्रेता हूं
पत्रकार बोला इतनों को कैसे पढ़ते हैं
मैंने कहा ये भी बात साफ कर देता हूं
पढ़ने का तो कोइ भी प्रश्न ही नहीं है साब
मैं कबाड़ी हूं पुराने तोलकर लेता हूं
3
एक हास्य कवि जी के पास एक नेता आया
बोला हॅंसाने की कला हमें भी सिखाइए
कवि ने कहा कि योगासन है अलग मेरा
सुबह सुबह चार घंटे आप भी लगाइए
बुद्धि तीव्र हो जाएगी नाचने लगेगा मन
सीख लीजिए ना व्यर्थ समय गवांइए
नेताजी ने कहा कविराज बतलाओ योग
कवि बोला यहां आके मुर्गा बन जाइए
4
जीवन का किसी क्षण कोई भी भरोसा नहीं
जोखिम ना आप यूं अकेले ही उठाइए
सबसे सही है राह फैलाए खड़ी है बांह
बीमा कम्पनी को इस जाल में फंसाइए
पति पत्नी से बोला फायदे का सौदा है ये
प्रिय आप भी जीवन बीमा करवाइए
पत्नी बोली करवा रखा है आपने जनाब
उससे कोई फायदा हुआ हो ता बताइए
डर नहीं लगता
उस रात मैं बहुत डर रहा थाक्योंकि मैं एक कब्रिस्तान के पास से गुजर रहा था
एक तो मौसम बदहाल था
और दूसरा गर्मी से मेरा बुरा हाल था
अचानक मेरी आंखें फटी की फटी रह गईं
जब मेरी नजरें कब्र पर बैठे एक आदमी पर चढं गईं
मैंने कहा इतनी रात को यहां से कोई
भूलकर भी नहीं फटकता
यार तू कब्र पर बैठा है
तुझे डर नहीं लगता
मेरी बात सुनते ही वो ऐंठ गया
बोला इसमें डरने की क्या बात है
कब्र में गरमी लग रही थी,
इसलिए बाहर आके बैठ गया
टुकड़े टुकड़े हास्य
1कमबख्त
गम जुदाई सब साथ कर गया
अच्छे अच्छों को माफ कर गया
मैंने सोचा दिल पर रख रहा है हाथ
कमबख्त जेब साफ कर गया
2
विशेष छूट
हेयर ड्रेसर ने, विशेष छूट के शब्द, इस तरह बताए
बाल काले करवाने पर, मुंह फ्री काला करवाएं
दोहे
पढ़कर सुनकर देखकर निकला यह निष्कर्ष
योद्धा बन लड़ते रहो जीवन है संघर्ष
जग में सबके पास है अपना अपना स्वार्थ
केवल तेरा कर्म है मानव तेरे हाथ
कर्मक्षेत्र में जो डटे लिया लक्ष्य को साध
वही चखेंगे एक दिन मधुर जीत का स्वाद
रखती है प्रकृति सदा परिवर्तन से मेल
शूरवीर नित ढूंढते सदा नया इक खेल
मौन हुआ वातावरण मांग रहा हूंकार
वक्त पुकारे आज फिर हो जाओ तैयार
जागो आगे बढ़ चलो करो शक्ति संधान
केवल दृढ़ संकल्प से संभव नवनिर्माण
कुछ तो ऐसा कर चलो जिस पर हो अभिमान
इस दुनिया की भीड़ में बने अलग पहचान
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कविता खुशबू का झोंका
कविता खुशबू का झोंका, कविता है रिमझिम सावनकविता है प्रेम की खुशबू, कविता है रण में गर्जन
कविता श्वासों की गति है, कविता है दिल की धड़कन
हॅंसना रोना मुस्काना, कवितामय सबका जीवन
कविता प्रेयसी से मिलन है, कविता अधरों पर चुंबन
कविता महकाती सबको, कविता से सुरभित यह मन
कभी मेल कराती सबसे, कभी करवाती है अनबन
कण कण में बसती कविता, कवितामय सबका जीवन
कविता सूर के पद हैं, कविता तुलसी की माला
कविता है झूमती गाती, कवि बच्चन की मधुशाला
कहीं गिरधर की कुंडलियां, कहीं है दिनकर का तर्जन
गालिब और मीर बिहारी, कवितामय सबका जीवन
कविता है कभी हॅंसी तो, कभी दर्द है कभी चुभन है
बन शंखनाद जन मन में, ला देती परिवर्तन है
हैं रूप अनेकों इसके, अदभुत कविता का चिंतन
मानव समाज का दर्शन, कवितामय सबका जीवन
ये है पर्यावरण हमारा, इसकी रक्षा सबका धर्म
ये है पर्यावरण हमारा, इसकी रक्षा सबका धर्म
इसमें प्राण बसे हैं सबके, करले मानव यह शुभ कर्म
खेतों से हरियाली खो गई, उजडे जगल सारे
देख धरा की ऐसी हालत, रोते चांद सितारे
मारे वन्य जानवर सारे, कुछ तो कर मानव तू शर्म
ये है पर्यावरण हमारा, इसकी रक्षा सबका धर्म
प्राण बसे हैं मानव तेरे, शुद्ध हवा में जल में
जीने की सुध सीखी, तूने कुदरत के आंचल में
पल में वरना बनते खाक, ये तेरे हाड मांस और चर्म
ये है पर्यावरण हमारा, इसकी रक्षा सबका धर्म
अगर प्रदूषण यूं फैलेगा, हम सब होंगे रोगी
त्यागो अपनी नादानी को, बनो न इतने भोगी
योगी होकर पुण्य कमाओ, समझो ये कुदरत का मर्म
ये है पर्यावरण हमारा, इसकी रक्षा सबका धर्म
कब तक नारी यूं दहेज की बली चढाई जाएगी
कब तक यूं खूनी दलदल में, धंसा रहेगा मनुज समाज
कब तक औरत को रौंदेगा, ये दहेज का कुटिल रिवाज
कब तक इस समाज में अंधी, रीत चलाई जाएगी
कब तक नारी यूं दहेज की, बली चढाई जाएगी
नारी पूजा, नारी करुणा, नारी ममता, नारी ज्ञान
नारी आदर्शों का बंधन, नारी रूप रंग रस खान
नारी ही आभा समाज की, नारी ही युग का अभिमान
वर्षों से वर्णित ग्रंथों में, नारी की महिमा का गान
नारी ने ही प्यार लुटाया, दिया सभी को नूतन ज्ञान
लेकिन इस दानव दहेज ने, छीना नारी का सम्मान
उसके मीठे सपनों पर ही, हर पल हुआ तुषारापात
आदर्षों पर चलती अबला, झेले कदम कदम आघात
चीखें उठती उठकर घुटती, उनका क्रंदन होता मौन
मूक बना है मानव, नारी का अस्तित्व बचाए कौन
कब तक वो यूं अबला बनकर, चीखेगी चिल्लाएगी
कब तक नारी यूं दहेज की, बली चढ़ाई जाएगी
इस समाज में अब लडकी का, बोझ हुआ देखो जीवन
नहीं जन्म पर खुशी मनाते, होता नहीं मृत्यु का गम
एक रीति यदि हो कुरीति, तो सब फैलें फिर अपने आप
इस दहेज से ही जन्मा है, आज भ्रूण हत्या सा पाप
वो घर आंगन को महकाती, रचती सपनों का संसार
पर निष्ठुर समाज नें उसको, दिया जन्म से पहले मार
कोई पूछो उनसे जाकर, कैसे वंश चलाएंगे
जब लडकी ही नहीं रहेंगी, बहू कहां से लाएंगे
लडकों पर बरसी हैं खुशियां, लडकी पर क्यूं हुआ विलाप
प्रेम और करुणा की मूरत, बन बैठी देखो अभिशाप
कब तक उसके अरमानों की, चिता जलाई जाएगी
कब तक नारी यूं दहेज की, बली चढाई जाएगी
इस दहेज के दावनल में, झुलसे हैं कितने श्रृंगार
कितनी लाशें दफन हुई हैं, कितने उजड़े हैं संसार
स्वार्थों के खूनी दलदल हैं, नैतिकता भी लाशा बनी
पीड़ित शोषित और सिसकती, नारी टूटी स्वास बनी
धन लोलुपता सुरसा मुख सी, बढती ही जाती प्रतिक्षण
ये सचमुच ही है समाज के, आदर्षों का चीरहरण
खुलेआम लेना दहेज, ये चलन हुआ व्यापारों सा
अब विवाह का पावन मंडप, लगता है बाजारों सा
इस समाज का यह झूठा, वि”वास बदलना ही होगा
हम सब को आगे आकर, इतिहास बदलना ही होगा
कब तक अदभुत यह कुरीती, मानवता को तडपाएगी
कब तक नारी यूं दहेज की बली चढ़ाई जाएगी
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जो सपनों को तोड़ चुके हैं -----
हम रो रोकर लिखते हैं वो यूं हंसकर पढ़ जाते हैं
जो सपनों को तोड़ चुके हैं वो सपनों में आते है
आंसूं बरसाती आंखों ने टूटे ख्वाबों को ढोया
वादों की यादों में पड़कर जाने मन कितना रोया
अब धीरे धीरे ग़ज़लों से जख्मों को सहलाते हैं
तड़पाया है हमें जगत ने उलझे हुए सवालों से
फिर भी मन को हटा न पाया उनके मधुर खयालों से
तन्हाई में ही जीना है ये दिल को समझाते हैं
दर्दों गम की दीवारों में जब से कैद हुए हैं हम
सांसों में अहसास नहीं है बीते कोई भी मौसम
अब समझा हूं लोग इश्क में क्यों पागल हो जाते हैं
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रचनाकार संपर्क:
अरुण मित्तल ‘अद्भुत’`
(एमबीए, एमफ़िल, पीएच डी (शोधार्थी), लेक्चरर, बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉज़ी)
हरियाणा टिम्बर स्टोर
काठ मण्डी, चरखी दादरी
भिवानी ; हरियाणा
दूरभाष- ०१२५०-२२१४८०
भ्रमणभाष- 09818057205
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डा० कान्ति प्रकाश त्यागी हास्य व्यंग्य कविताएँ
गधे के सींग
अदालत में एक विशेष केस पेश हुआ,
केस सुनकर न्यायाधीश बेहोश हुआ।
हूज़ूर ! फ़रज़ू का कहना है,
धरमू उसका गधा मांगने आया,
काम के बाद, जब गधा लौटाने आया,
वह बिना सींग का गधा लौटाने लाया।
फ़रज़ू के साथ न्याय किया जाय,
उसके गधे के सींघ लौटये जाय
धरमू का कहना है,
जो गधा वह ले गया था,
उस गधे के सींग नहीं थे,
अतः सींगवाला गधा, कहां से लौटाय
फ़रज़ू को झूठ की सज़ा दी जाय।
दोनों पक्ष के वकील बहस शुरु करें,
अपना पक्ष विस्तार से प्रस्तुत करें।
हूज़ूर ! गर्धभराज हैं, हमारे बैशाखनंदन,
घास खाकर करते रहते नित क्रन्दन।
हमारा गधा बहुत काम का है,
यह बहुत ही बड़े नाम का है।
अल्ला ने इसे बहुत अवसर दिये,
परन्तु सब के सब ठुकरा दिये।
तुम गधा छोड़ कर, हाथी घोड़ा कुछ भी बन जाओ,
प्रभु ! इसी जीवन से खुश हूँ, अधिक ना ललचाओ।
हूज़ूर! इसके पास नैतिकता है, जो किसी के पास नहीं है,
इसकी वाणी में पवित्रता है, जो किसी की वाणी में नहीं है।
बेचारे ने बिना घास खाए, धरमू का काम किया ,
धरमू ने क्या किया, उसे बिना सींग वापिस किया।
जनता में, एक दूसरे से विश्वास उठ जायेगा,
फिर भी गधा ही, आदमी के काम आयेगा।
दूसरे पक्ष के वकील को बुलाया जाय,
अपनी बात कहने का मौका दिया जाय।
हूज़ूर ! मेरे मुवक्किल ने जो गधा लिया,
उसके सींग नहीं थे, वैसे भी गधे के सींग नहीं होते,
वह गधा ही नहीं होता, अगर उसके सींग होते।
शेर जंगल का राजा होता है, उसके सींग नहीं होते,
गधा शहर का राजा होता है, उसके सींग नहीं होते।
शेर को किसी का डर नहीं, वह सींग नहीं रखता है
गधा भोला है, किसी को डर नहीं, सींग नहीं रखता है
वादी पक्ष के गवाह बुलाओ,
उनकी गवाही दिलवाओ।
फ़रज़ू ने, धरमू को गधा दिया,
हां हूज़ूर! गधा मेरे सामने दिया।
उस समय गधे के सींग थे,
हूज़ूर ! गधे के सींग थे।
अगर थे, तो कितने थे ?.
नहीं मालूम, कितने थे
रात का समय था, घन घोर अंधेरा था
हूज़ूर ! मुझे रतौंधी आती है,
आँख की रोशनी भाग जाती है।
ठीक ठीक नहीं कह सकता,
कितने और कैसे सींग थे ?.
यह दावे के साथ कह सकता हूँ,
कि फ़रज़ू के गधे के सींग थे।
दूसरे गवाह को बुलाया जाय,
उसकी भी गवाही ली जाय।
क्या फ़रज़ू के गधे के सींग थे,
माई बाप !, उसके गधे के सींग थे।
अगर सींग, गधे के सर पर नहीं होगें,
हूज़ूर सींग क्या, आपके सर होगें।
कितने सींग थे, और कितने लम्बे थे,
चश्मा नहीं था, कैसे बताऊं, कितने लम्बे थे।
लम्बाई, मैं दावे के साथ नहीं पता सकता,
भगवान के डर से, ईमान नहीं बेच सकता।
तीसरे गवाह को अभी बुलाओ,
अदालत का समय ना गंवाओ।
क्या धरमू सींगवाला गधा लाया था,
हां, हूज़ूर मेरे कुए पर पानी पिलाया था।
दो सिपाही अभी तुरन्त जायें,
कुआ देख कर फौरान बतायें।
हूज़ूर ! कुआ तो चोरी हो गया,
यह क्या, नया ग़ज़ब हो गया।
सींगों का फ़ैसला से देने पहले, चोरी हुए कुए को ढूढ़ा जाय,
पता लगाने के लिए यह केस, सी बी आई को दिया जाय।
सी बी आई ने केस में तीन साल लगाये,
कुए की चोरी के ,कुछ यूं तथ्य बतलाये।
कुआँ बनाने सरकारी ऋण लिया गया,
सरकारी दफ़्तर से नक्शा पास किया गया।
ऋण कागज़ों पर गवाहों के हस्ताक्षर हैं ,
कुआँ उदघाटन पर मंत्री के हस्ताक्षर हैं।
बहुत ढूढ़ा गया , परन्तु कुआँ ना मिला,
मिला तो फ़ालतु काग़ज़ों का पुलिंदा मिला।
अतः इस केस को बन्द किया जाय,
कुआ चोरी हो गया, मान लिया जाय।
केस ने देश में भयानक रूप धारण कर लिया,
देश को हिंसा-आगज़नी की चपेट में लपेट लिया।
विपक्ष ने संयुक्त संसद कमेटी की मांग उठाई,
सरकार ने यह बात बिलकुल निराधार बताई।
सरकार, यह तय करने में सक्षम है,
गधे के सींग होते हैं अथवा नहीं,
अगर होते हैं, तो कितने होते हैं,
अगर नहीं होते, तो क्यूं नहीं होते।
विपक्ष ने संसद को चलने ही नहीं दिया,
सरकार ने विपक्ष की मांग को मान लिया।
सभी पार्टियों के सांसदों को प्रतिनिधित्व मिला,
सभापति का पद, सरकारी सांसद को ही मिला।
जे पी सी, विदेशों में जायेगी ,
वहां जाकर अध्ययन करायेगी।
गधे विकसित होते हैं, विकसित देशों में
अथवा आधुनिक विकासशील देशों में
उनके सींग के रंग और लम्बाई में कुछ अन्तर है,
यदि अन्तर है, तो वह औसतन कितना अन्तर है।
सभी सांसद अपने साथ में पैमाना लेकर जायेगें
गधे के सींग की ठीक से लम्बाई नाप कर आयेगें
सभी सांसदों ने अपनी अपनी रिपोर्ट दी,
कमेटी ने रिपोर्ट की पूरी तरह समीक्षा की।
रिपोर्ट से लोग संतुष्ट नहीं हुए,
देश में और अधिक दंगे हुए।
संसद में हल्ला हुआ,
सड़कों पर हल्ला हुआ।
सरकार ने अनेक कमीशन बिठाये,
कोई ठोस तथ्य सामने नहीं आये।
कमीशनों के कार्यकाल भी बढ़ते रहे,
लोग अपनी बात पर अडिग अड़ते रहे।
धरमू इस ग़म से परलोक सिधार गया कि,
उस पर गधे के सींग चुराने का आरोप लगा।
गधा भी इस दुख में परलोक सिधार गया कि,
उस निर्दोष पर सींग रखने का आरोप लगा।
फ़रज़ू मस्त है, हृष्ट पुष्ट है, खुश है
उसे पूर्ण विश्वास है, सरकार एक दिन
उसकी बात मानेगी,अगर न्याय पालिका नहीं मानेगी,
तो सरकार कानून में संशोधन करके बिल लायेगी।
इस देश में गधे के सींग होते हैं,
मूर्ख़ हैं, जिनके सींग नहीं होते हैं।
जिनके सींग नहीं है, देश छोड़ कर चले जाओ
सींग वालो, बिना सींगवालों से देश मुक्त कराओ
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उल्टे फेरे
पति पत्नी में प्रायः अनबन रहती थी,
बात बेबात में, तू तू ,मैं मैं रहती थी।
सगे सम्बंधियों ने समझाया बुझाया,
पर दोनों की समझ कुछ नहीं आया।
एक अच्छे मित्र ने सलाह दी,
यदि प्यार से नहीं रह सकते,
प्यार से अलग तो हो सकते।
प्यार की मिसाल पेश करो,
तलाक की अर्ज़ी पेश करो।
तलाक लेने की विधि बताइए,
विधि बहुत, लेने वाले चाहिए।
हिन्दी में, तलाक डाट काम,
अंग्रेज़ी में डिवोर्स डाट काम।
फ़ेसबुक पर आपको,अनेक मिल जायेगें,
तलाक दिलाने में,सहयोगी बन जायेगें।
तुम में किसी को अपना साथी बना ले,
अपने साथी को, तुम्हारा साथी बना दे।
परिवार योजना में असफल सरकार,
अब तलाक योजना चला रही है।
तलाक का आधा खर्च,सम्मान पत्र,
और वेतन वृद्धि तक दिला रही है।
सलाह तो तुम्हारी बहुत नेक है,
फिर भी वकीलों के बहुत रेट हैं।
तुम सीधी बात, नहीं समझ रहे हो,
तलाक न लेने के बहाने ढूंढ रहे हो।
किसने कहा, तुम वकील के पास जाओ,
सीधे, शादी वाले पंडित के पास जाओ।
आज़कल वे टू इन वन चला रहे हैं,
शादी के साथ, तलाक भी करा रहे हैं।
समझदार लोग, दोनों काम एक साथ करा लेते हैं,
अगर एक में फेल हुए, दूसरे में पास हो जाते हैं।
दोनों काम की संयुक्त फ़ीस कम है,
आज़कल इस बात में बहुत दम है।
मित्र की सलाह मानी,
पंडित पर जाने की ठानी
पंडित जी, आपने शादी कराई थी
अब आप ही तलाक भी दिलवायेगें ,
यजमान बैठ जाइए, ठन्डा पानी पीजिए,
ठीक है ,हम ही आपको तलाक दिलवायेगें।
संसार गतिमान है,
समय गतिमान है,
विवाह के बाद तो,
तलाक का प्रावधान है।
यजमान मेरी बात ध्यान से सुने,
जैसा मैं कहता जाऊं, वैसा ही करें।
पति और पत्नी शब्द में, प्रथम अक्षर क्या है,
दोनों ने एक साथ, "प", कहा।
पति और पत्नी शब्द में, द्वितीय अक्षर क्या है,
दोनों ने एक स्वर में , "त", कहा।
शुरु में आप, प्रथम अक्षर पर थे,
आप मे प्यार था, दुलार था
आप चल कर, द्वितीय अक्षर आ गए
अतः , "त", से तकरार हो गया
तकरार से तलाक तक आ गया।
तलाक समारोह कराना है,
सगे संबंधियों को बुलाना है।
तलाक कार्ड छपवा लीजिए,
जिन्हे बुलाना , बुलवा लीजिए।
बहुत सुन्दर कार्ड छपा,
स्वर्ण अक्षरों मे लिखा
श्रीमान राकेश पुत्र रमेश व सुधा,
श्रीमती संध्या पुत्री रमण व प्रभा
के तलाक समारोह में,
सभी परिजन सादर आमंत्रित हैं।
कृपया इस शुभावसर पर पधार कर,
सभी को कृतार्थ करें,
श्रीमान व श्रीमती को आशीर्वाद प्रदान करें।
तलाक स्थल खूब सज़ाया गया,
काफ़ी लोगों को बुलाया गया।
पत्नी घोड़ी पर चढ़ कर आई,
पति ने की उसकी अगुवाई।
खूब गाजे बाज़े बज़े,
लोग खूब नाचे कूदे।
वधु माला की रस्म करायी,
रस्म धूम धाम से मनायी।
पति पत्नी को आसन पर बिठाया,
उनके सभी बच्चों को बुलाया।
बच्चे मम्मी-पापा का दान करेंगे,
मम्मी पापा का कल्याण करेंगे।
हम, मम्मी पापा को आशीर्वाद देते हैं,
उनके अच्छे भविष्य की कामना करते हैं।
पति पत्नी को , अग्नि समक्ष सात फेरे लेने हैं,
चार फेरे पति को, तीन फेरे पत्नी को लेने हैं।
प्रारंभ में पति आगे, पत्नी पीछे चलेगी,
पश्चात पति पीछे, व पत्नी आगे चलेगी।
फेरे लेते समय, उलटा चलना होगा,
तलाक संस्कार का धर्म निभाना होगा।
अब आपने उलटे फेरे लगा कर संस्कार पूरा किया,
इस तरह कर्तव्य निभा कर, सब को धन्य किया।
दाया अंग आने से पहले,
पत्नी को पति के वाम अंग बैठना होगा
यज्ञ,दान,आजीवन भरम-पोषण, धन की रक्षा,
संपत्ति क्रय-विक्रय में सहमति, समयानुकूल व्यवस्था,
सखी सहेलियों में अपमानित न करने ,
आदि वचनों से मुक्त करना होगा।
पति भी, बिना आज्ञा के पिता के घर न जाना,
कहीं भी बता कर जाना,
आदि बंधनों से पत्नी को मुक्त कर देगा।
पत्नी पति, मुद्रिका निष्कासन मे भाग लेंगे,
अपनी दी अंगूठी, एक दूसरे से उतारेंगे।
पति, मंगल सूत्र उतारो,
पत्नी, सुहाग चिन्ह उतारो।
पत्नी वाम अंग छोड़कर ,दायें अंग आयेगी,
तलाक संस्कार की अंतिम रस्म निभायेगी।
अब आप दोनों, पत्नी पति के बंधन से मुक्त हुए,
इसी क्षण दोनों सांसारिक कर्तव्यों से मुक्त हुए।
कन्या चाहे, राखी बांध सकती है,
भर्ता से, भ्राता बना सकती है।
सभी जन दोनों प्राणियों पर पुष्प वर्षा करें,
उनके सुखद भविष्य की शुभ कामना करें।
आप सभी सम्पति आधी आधी बांट लें,
अति प्रेम पूर्वक एक दूसरे से विदा लें।
दोनों एक साथ बोले, सभी चीज़ तो बांट लेंगे,
परन्तु बच्चे तीन हैं, उन्हें हम कैसे बाट लेंगे।
तब तो आपको, एक साल इंतज़ार करना होगा,
चौथे बच्चे के बाद ,तलाक के लिए आना होगा।
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ग़रीब रेखा
यह ग़रीबी रेखा है, ग़रीबी उन्मूलन
अथवा ग़रीबों का पूर्णतया उन्मूलन
यह ग़रीब की रेखा क्या है ?.
कौन है, किसने उसे देखा है ?.
यह ग़रीब की रेखा है :
उसकी लाचारी, बीमारी,बेरोज़गारी,
भूख़मरी, शोषण, चिन्ता,
बचपन में ही बुढ़ापे जैसी झुर्रियां,
तन न ढकने की मज़बूरियां,
भूख़ से पेट में पड़ी लकीरें,
रेत में आशा की लकीरें,
समुद्र में उठती हुई लहरें,
भाग्य की मिटी लकीरें,
नितदिन बिगड़ती तकदीरें,
असफल होती हुई तदबीरें,
यह रेखा उसकी बेटियां है, उसे बड़े ही लाड़ चाव से पाला है
उसे खिलाने न निवाला है, स्वयं के लिए न चाय का प्याला है
उसकी रेखा को नेता, अभिनेता
पत्रकार, समाचार, अर्थशात्री, समाज़शात्री
हर कोई भुनाने में लगा है
हर कोई अपनी भाषा में , परिभाषा बताने लगा है
फ़िल्म निर्माता का, आस्कर पुरुस्कार का चक्कर,
ग़रीब- रेखा को अधिकाधिक दिखाने की टक्कर।
भूख़ से शरीर हो गया, कंकाल अस्थि पंजर,
जिसका शरीर नोचना चाहते हैं, कितने भ्रमर।
बलात्कार बाद, घोंप दिया जाता है उसे खंज़र,
जिसकी रक्षा करने आए न अभी तक नटवर।
राजनेता भाषण देकर , राजनैतिक लाभ चाहता है,
मीडिया पत्रकार केवल , बिक्री बढ़ाना चाहता है।
समाज़शास्त्री, समाज़ में नाम कमाना चाहता है,
शोध कर्ता, बस शोध कर उपाधि लेना चाहता है।
यह रेखा कभी छोटी हो जाती है,
कभी अचानक बड़ी हो जाती है।
कुछ इसको छोटा करने में लगे हैं,
कुछ इसको बड़ा दिखाने में लगे हैं।
ग़रीब रेखा है वह क्षितिज़ रेखा,
जिसे कभी किसी ने नहीं देखा।
अपनी अपनी कल्पना में देखा,
जैसा देखा, वैसा दिया लेखा जोखा।
ग़रीब रेखा के ज्ञाता, आयेंगे माँगने तेरा वोट,
पांच साल सारोकर नहीं, बाटेंगे एक दिन नोट।
तुझको रेखा से एक दिन ऊपर उठायेंगे,
ख़ुद भिखारी बन कर, तुझे दाता बनायेंगे।
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स्वर्ग नर्क
एक लड़की साधु के पास आई
चरण छूकर, यह व्यथा सुनाई,
बाबा! मुझे नींद नहीं आती
कोई भी चीज़, नहीं सुहाती।
न भूख़ लगती है,
न प्यास लगती है।
घर वाले दबाब डाल रहे हैं,
मैं शादी अवश्य करूं।
मैं समझ नहीं पा रही ,
शादी करूं या ना करूं।
शादी शुदा भी दुखी हैं ,
बगैर शादी शुदा दुखी हैं।
आदमी शादी करता क्यूं है ?.
फिर करके पछताता क्यूं है ?.I
बाबा! , मैं हूँ बहुत परेशान ,
आप ही निकालिए समाधान।
बच्चा! शादी एक लड्डू है ,
प्रत्येक के मन में फूटता है।
हो जाय तो भी ना हो भी ,
हर तरह से मन टूटता है।
जो खाय, वह पछताय ,
जो न खाय, वह पछताय।
कभी यह सख़्त हो जाता है ,
क्भी यह नरम हो जाता है।
फिर भी तुम शादी कर लो ,
मन के अरमान पूरे कर लो।
शादी के बाद जब मृत्यु लोक जाओगी ,
तब ही इसका मतलब समझ पाओगी।
स्वर्ग मिलेगा, तो अच्छा लगेगा।
नरक मिला, तो घर जैसा लगेगा।
डा० कान्ति प्रकाश त्यागी
Dr.K.P.Tyagi
Prof.& HOD. Mech.Engg.Dept.
Krishna institute of Engineering and Technology
13 KM. Stone, Ghaziabad-Meerut Road, 201206, Ghaziabad, UP
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कुबेर की हास्य व्यंग्य कविता भाया! बहुत गड़बड़ है
बहुत गड़बड़ है,
भाया! बहुत गड़बड़ है।
इधर कई दिनों से
दिन के भरपूर उजाले में भी
लोगों को कुछ दिख नहीं रहा है
दिखता भी होगा तो
किसी को कुछ सूझ नहीं रहा है
फिर भी
या इसीलिए सब संतुष्ट हैं?
कोई कुछ बोल नहीं रहा है।
भाया! बहुत गड़बड़ चल रहा है।
गंगू तेली का नाम उससे जुड़ा हुआ है
क्या हुआ
वह उसके महलों से दूर
झोपड़पट्टी के अपने उसी आदिकालीन -
परंपरागत झोपड़ी में पड़ा हुआ है?
षरीर, मन और दिमाग से सड़ा हुआ है।
पर नाम तो उसका उससे जुड़ा हुआ है?
उसके होने से ही तो वह है
गंगू तेली इसी बात पर अकड़़ रहा है?
भाया! बहुत गड़बड़ हो रहा है।
उस दिन गंगू तेली कह रहा था -
'वह तो ठहरा राजा भोज
भाया! क्यों नहीं करेगा मौज?
जनता की दरबार लगायेगा
उसके हाथों में आश्वासन का झुनझुना थमायेगा
और
आड़ में खुद बादाम का हलवा और,
शुद्ध देसी घी में तला, पूरी खायेगा
तुम्हारे जैसा थोड़े ही है, कि-
नहाय नंगरा, निचोय काला?
निचोड़ने के लिये उसके पास क्या नहीं है?
खूब निचोड़ेगा
निचोड़-निचोड़कर चूसेगा
तेरे मुँह में थूँकेगा।
मरहा राम ने कहा -
''गंगू तेली बने कहता है,
अरे! साले चूतिया हो
अब कुछू न कुछू तो करनच् पड़ही
नइ ते काली ले
वोकर थूँक ल चांटनच् पड़ही
कब समझहू रे साले भोकवा हो,
भीतर-भीतर कितना,
क्या-क्या खिचड़ी डबक रहा है?
अरे साले हो!
सचमुच गड़बड़ हो रहा।''
गंगू तेली ने फिर कहा -
''वह तो ठहरा राजा भोज!
हमारी और तुम्हारी सडि़यल सोच से
बहुत ऊँची है उसकी सोच।
एक ही तो उसका बेटा है
उसका बेटा है
पर हमारा तो युवराज है
अब होने वाला उसी का राज है
उसके लिये जिन्दबाद के नारे लगाओ
उस पर गर्व करो
और, मौका-बेमौका
उसके आगे-पीछे कुत्ते की तरह लुटलुटाओ -
दुम हिलाओ
जनता होने का अपना फर्ज निभाओ।
युवराज के स्वयंवर की शुभ बेला है
विराट भोज का आयोजन है
छककर शाही-दावत का लुत्फ उठाओ
और अपने किस्मत को सहराओ।''
'बढि़या है, बढि़या है।'
गंगू तेली की बातों को सबने सराहा।
मरहा राम सबसे पीछे बैठा था
उसे बात जंची नहीं
उसने आस्ते से खखारा
थूँका और डरते हुए कहा -
''का निपोर बढि़या हे, बढि़या हे
अरे! चूतिया साले हो
तूमन ल दिखता काबर नहीं है बे?
काबर दिखता नहीं बे
जब चारों मुड़ा गुलाझांझरी
अड़बड़-सड़बड़ हो रहा है।''
बहुत गड़बड़ हो रहा है,
भाया! बहुत गड़बड़ हो रहा है।
वह तो राजा भोज है
हमारी-आपकी ही तो खोज है
उस दिन वह महा-विश्वकर्मा से कह रह था -
''इधर चुनाव का साल आ रहा है
पर साली जनता है, कि
उसका रुख समझ में ही नहीं आ रहा है
बेटा साला उधर हनीमून पर जा रहा है
बड़ा हरामी है
जा रहा है तो नाती लेकर ही आयेगा
आकर सिर खायेगा
सौ-दो सौ करोड़ के लिये फिर जिद मचायेगा।''
यहाँ के विश्वकर्मा लोग बड़े विलक्षण होते हैं
समुद्र में सड़क और-
हवा में महल बना सकते हैं
रातों रात कंचन-नगरी बसा सकते हैं।
राजा की बातों का अर्थ
और उनके इशारों का मतलब
वे अच्छे से समझते हैं
पहले-पहले से पूरी व्यवस्था करके रखते हैं।
दूसरे दिन उनके दूत-भूत गाँव-गाँव पहुँच गये,
बीच चौराहे पर खड़े होकर
हवा में कुछ नट-बोल्ट कँस आये, और
पास में एक बोर्ड लगा आये।
बोर्ड में चमकदार अक्षरों में लिखा था -
'शासकीय सरग निसैनी, मतलब
(मरने वालों के लिये सरग जाने का सरकारी मार्ग)
ग्राम - भोलापुर,
तहसील - अ, जिला - ब, (क․ ख․)।'
और साथ में उसके नीचे
यह नोट भी लिखा था -
'यह निसैनी दिव्य है
केवल मरने वालों को दिखता है।
देखना हो तो मरने का आवेदन लगाइये,
सरकारी खर्चे पर स्वर्ग की सैर कर आइये।
जनहितैषी सरकार की
यह निःशुल्क सरकारी सुविधा है
जमकर इसका लुत्फ उठाइये
जीने से पहले मरने का आनंद मनाइये।'
महा-विश्वकर्मा के इस उपाय पर
राजा भोज बलिहारी है
और इसीलिए
अब उसके प्रमोशन की फूल तैयारी है।
मरहा राम चिल्लाता नहीं है तो क्या हुआ,
समझता तो सब है
अपनों के बीच जाकर कुड़बुड़ाता भी है
आज भी वह कुड़बुड़ा रहा था -
''यहा का चरित्त्ार ए ददा!
राजा, मंत्री, संत्री, अधिकारी
सब के सब एके लद्दी म सड़बड़ हें
बहुत गड़बड़ हे,
ददा रे! बहुत गड़बड़ हे।''
गंगू तेली सुन रहा था
मरहा राम का कुड़बुड़ाना उसे नहीं भाया
पास आकर समझाया -
''का बे! मरहा राम!
साला, बहुत बड़बड़ाता है?
समझदार जनता को बरगलाता है
अरे मूरख
यहाँ के सारे राजा ऐसेइच् होते हैं
परजा भी यहाँ की ऐसेइच् होती है
यहाँ तेरी बात कोई नहीं सुनेगा
इत्ती सी बात तेरी समझ में नही आती है?''
लोग वाकई खुश हैं
कभी राजा भोज के
पिताश्री के श्राद्ध का पितृभोज खाकर
तो कभी उनके स्वयं के
जन्म-दिन की दावत उड़ाकर
झूठी मस्ती में धुत्त्ा् हैं।
मरहा राम अब भी कुड़बुड़ा रहा है,
तब से एक ही बात दुहरा रहा है -
''कुछ तो समझो,
अरे, साले अभागों,
कब तक सोते रहोगे,
अब तो जागो।''
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कुबेर
जिला प्रशासन (राजनांदगाँव) द्वारा
गजानन माधव मुक्तिबोध
सम्मान 2012 से सम्मानित
(जन्म - 16 जून 1956)
प्रकाशित कृतियाँ
1 - भूखमापी यंत्र (कविता संग्रह) 2003
2 - उजाले की नीयत (कहानी संग्रह) 2009
3 - भोलापुर के कहानी (छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह) 2010
4 - कहा नहीं (छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह) 2011
5 - छत्तीसगढ़ी कथा-कंथली (छत्तीसगढ़ी लोक-कथाओं का संग्रह) 2013
प्रकाशन की प्रक्रिया में
1 - माइक्रो कविता और दसवाँ रस (व्यंग्य संग्रह)
2 - और कितने सबूत चाहिये (कविता संग्रह)
3 - सोचे बर पड़हिच् (छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह)
4 - ढाई आखर प्रेम के (अंग्रेजी कहानियों का छत्तीसगढ़ी में अनुवाद)
संपादित कृतियाँ
1 - साकेत साहित्य परिषद् सुरगी, जिला राजनांदगाँव की स्मारिका 2006, 2007, 2008, 2009, 2010, 2012
2 - शासकीय उच्चतर माध्य. शाला कन्हारपुरी की पत्रिका 'नव-बिहान' 2010, 2011
पता
ग्राम - भोड़िया, पो. - सिंघोला, जिला - राजनांदगाँव (छ.ग.)
पिन - 491441
मो. - 9407685557
कुबेर
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हलीम आईना की हास्य व्यंग्य कविताएँ
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दोहे
आजादी को लग चुका घोटालों का रोग ।
जिस के जैसे दाँत हैं, कर ले वैसा भोग । ।
खाकी में काला मिला उस में मिला सफेद ।
यही तिरंगी रूप है, लोक-तन्त्र का भेद । ।
छत पर मोरा-मोरनी बैठे आँखें भींच ।
इक अबला का चीर जब दुष्ट ले गया खींच । ।
जीवन भी इक व्यंग्य है, इस को पड़ ले यार!
जिस ने खुद को पड़ लिया, उस का बेड़ा पार । ।
माँ है मन्दिर का कलश, मस्जिद की मीनार ।
ममता माँ का धर्म है, और इबादत प्यार । ।
जब जुगनू से सामने दीप करे खुद रास ।
' आईना ' तब जान लो अन्त दीप का पास । ।
बेटे -बहुओं को लगे बूढ़ी अम्मा भार ।
दो रोटी के वास्ते रोज चले तकरार । ।
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आदमी से अच्छा हूँ...
भेड़िए के चंगुल में फँसे
मेमने ने कहा-
' मुझ मासूम को खाने वाले
हिम्मत है तो
आदमी को खा! '
भेड़िया बोला-
' अबे! तू ने मुझे
ऋ का पट्टा
समझ रखा है क्या?
मैं जैसा हूँ, ठीक हूँ
ज्यादा खर
नहीं बनना चाहूँगा
मैं आदमी को खाऊँगा
तो आदमी न बन जाऊंगा?
बेटा! तू अभी बच्चा है,
अक्ल का कच्चा है!
अरे! भेड़िया ही तो
अ:ज-कल
आदमी से अच्छा है:..!'
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भेड़ जिस-से डरते हैं भेड़िए...
जंगल के सारे भेड़िये
खौफजदा हैं
सिर्फ एक भेड़ से
जिस ने
ताक में रख दी है ' भेड़-चाल ' ।
वह ' एकला चालो रे ' का
सिद्धान्त ले कर
चल पड़ी है
मनुष्यता की राह पर ।
भेड़िये उड़ाते हैं उस का उपहास
आदमी- भेड़िया कह कर ।
भेड़िये चाहते हैं-
वह भेड़-चाल को कतई न छोड़े
भेड़पन से कभी नाता न तोड़े ।
ईमान-धारी भेड़
बेखौफ है
शान्त है
खुश रहती है सदा ।
भेड़िये खत्म कर देना चाहते हैं
अमन का आदर्श बनी भेड़ को
उन्हें डर है
कि कहीं वह
जंगल में आतंक की सत्ता का
मटियामेट न कर दे
जंगल के जानवरों में
आदमीयत न भर दे... ।
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आज-कल
प्रत्येक मनुष्य का दिमाग
इक्कीसवीं
सदी में
घूम रहा है,
इसी लिए तो-
दिल
पाषाण-युग की
दहलीज चूम रहा है ।
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विडम्बना-1
आज-कल
उर्वशी, मेनका व रम्भा
भी रोती है,
क्यों कि-
अब तपस्वी की तपस्या
' काम ' से नहीं
' दाम ' से भंग होती है ।
विडम्बना-2
भारतीय महिला की
अजब कहानी
रात को रानी
और सुबह
नौकरानी ।
- विडम्बना-3
ये कैसी
विडम्बना है
मन के मन्दिर में
धन की वन्दना है ।
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इलेक्शन आया है...
दरियादिल सरकार, इलेक्शन आया है
वादों की बौछार, इलेक्शन आया है
कविताबाजी में भैया रक्खा है क्या
बन नेता का बार इलेक्शन आया है
रैली और आरक्षण के हंगामों ने
खूब रँगे अखबार, इलेक्शन आया है
इक-दूजे पर कीचड़ फैंक रहे जम के
होली-सी फटकार इलेक्शन आया है
पण्डित-मुल्ला मिल कर सारे एक हुए
अब होगा व्यापार, इलेक्शन आया है
कर गुण्डों की खेप रवाना बस्ती को
बम भी हैं तैयार इलेक्शन आया है
यारो! है गणतन्त्र-दिवस भी अब बेबस
लोक हुआ लाचार इलेक्शन आया है
पूड़ी भाजी अण्डे मुर्गे उड़ने लगे
मस्त पिएं सब यार इलेक्शन आया है
तू भी उल्लू सीधा कर ' आईना ' जब
सब हैं पॉकिटमार इलेक्शन आया है
(कविता संग्रह - हँसो भी हँसाओ भी से साभार)
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