सीमा सचदेव का खण्डकाव्य : ब्रजबाला

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ब्रजबाला -सीमा सचदेव ब्रजबाला में श्री राधा -कृष्ण के अमर प्रेम को व्यक्त करने का एक अति लघु प्रयास है |जब श्री राधा जी को पता चलता है कि श...



ब्रजबाला

-सीमा सचदेव

ब्रजबाला में श्री राधा -कृष्ण के अमर प्रेम को व्यक्त करने का
एक अति लघु प्रयास है |जब श्री राधा जी को पता चलता है
कि श्री कृष्ण ब्रज छोड़ कर मथुरा जाने वाले है तो तो वह
व्याकुल हो उठती है | इसी का वर्णन इस कविता के
माध्यम से किया गया है |यह पाँच भागों में विभक्त है:- १.प्रार्थना २ व्याकुल मन ३.शक्ति स्वरूपिणी राधा ४. देव स्तुति ५.राधा-कृष्ण संवाद

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ब्रजबाला

१.प्रार्थना

स्वामिनी मेरी श्री राधिका
मैं ब्रजरानी की दास
पावन चरणन में प्रीति रख
लेकर के अटल विश्वास
श्री बिहारी जी की प्रेरणा
और प्रिया दर्शन की आस
करती हूँ कर जोरि के
तुम्हें बार-बार प्रणाम
मेरे ह्रदय को तृप्त करो
पावन है तुम्हारो नाम
भव सागर से तर जाऊं मैं
गाऊं मैं आठों याम
तेरा नाम सुमिर श्री राधिका
पाऊं श्री कृष्ण पद धाम
यही आशा इस मन की है
गुण-गान तेरा गाते-गाते
जीवन को सफल बनाऊं मैं
इस दुनिया से जाते-जाते
मैं नहीं काबिल लेकिन फिर भी
चाहती हूँ कुछ तो काम करूँ
है सोच-सोच कर देख लिया
क्यों न मैं तेरा ध्यान धरूं
हैं शब्द नहीं लेकिन फिर भी
मैं तेरा ही गुण-गान करूँ
जो थाह मिले तेरे चरणन की
फिर क्यों मैं चारों धाम करूँ
माँ मुझे इतनी सद् बुद्धि दे
तेरे नाम का मैं गुण-गान करूँ
ये भाव हृदय के बहा करके
इस जीवन का कल्याण करूं

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२ व्याकुल मन

सखि व्याकुल आज मेरा मन क्यों ?
क्यों चैन कहीं नहीं पाता है ?
तड़प-तड़प कर ह्रदय यह,
जैसे बाहर को आता है |
हैं फरक रहे दाहिने अंग क्यों ?
अमंगल संकेत कराते हैं |
यह नेत्र मेरे अश्रु जल से,
क्यों बार-बार भर जाते हैं ?
मेरा रोम-रोम क्यों काँप रहा ?
ज्वाला ह्रदय में धधक रही |
दर्शन की प्यासी यह आँखें,
क्यों बार-बार यों छलक रहीं ?
कहीं फिर न हों संकट में प्रियतम,
यह बार-बार दिल गाता है |
हे गौरी माँ हो रक्षक तुम,
तू जाग-जननी शक्ति माता है |
हे शिव शंकर तुम सदा शिव हो,
कुछ मेरा भी कल्याण करो |
कान्हा का बाल न बांका हो,
चाहे मेरे ही तुम प्राण हरो |
हे ब्रह्म सुनो सृष्टि करता,
हे भाग्य विधाता दुख हरता |
अपना यह नाम साकार करो,
मेरे प्राण-प्रिय का उधार करो |
हे गणपति बाबा जगनआनंदन,
करती हूँ तेरा अभिनंदन |
देखो यह मेरा करुण रुदन,
जल्दी काटो हमरे बंधन |
हे राम भक्त बजरंग बली,
देखो अब मेरी जान चली |
दे दो तुम ऐसी संजीवन,
हो जाए हमारा मधुर मिलन |
ललिते, तुम भी क्यों खड़ी मौन,
कहो लाई हो संदेस कौन ?
कहो कौन सा देव मनाऊं मैं?
अपने प्रियतम को बचाऊं मैं |
मुख मंडल तेरा उदास क्यों?
लग रही है मुझे निरास क्यों?
सखि राधिके न हो तू अधीर,
कर सकते हैं क्या हम अहीर |
सुनती हूँ मैं यह दूर-दूर,
मथुरा से आया है अक्रूर |
कान्हा को ले जाने मथुरा,
बहाना उसका है साफ सुथरा |
जसुदा का सुत नहीं है गिरधर,
कहा रख कर जान हथेली पर |
वासुदेव छोड़ गये थे कान्हा,
ले गये उठा नंद की कन्या |
अब कंस कृष्ण को बुलाता है,
वह धनुष यज्ञ करवाता है |
वहाँ दुष्ट रिपु ललकारेगा,
धोखे से कृष्ण को मारेगा |
नहीं,नहीं करती हुई कान बंद,
बोली राधा हो कर उद्दंड |
कान्हा जो मथुरा जाएगा,
सृष्टि में प्रलय मच जाएगा
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३.शक्ति स्वरूपिणी राधा

सुनो ब्रह्मा विष्णु औ महेश
गंधर्व मुनि किन्नर औ शेष
हे गौरी चन्डी काली शक्ति,
की मैने जो जीवन में भक्ति
उस बल पर मैं पुकारती हूँ
रिपु कंस को मैं ललकारती हूँ
कान्हा से प्रेम किया है तो
जीवन भर उसे निभाऊंगी
प्रण करती हूँ यह कंस को मैं
मारूंगी या मार जाऊंगी
कान्हा जो नही रह पाएगा
सृष्टि में न कोई बच पाएगा
मैं भयंकर प्रलय मचा दूँगी
दुनिया को कर स्वाह दूँगी
राधा ने ये जो शब्द बोले
शिवजी ने तीन नेत्र खोले
सृष्टि में हाहाकार हुआ
भयभीत सारा संसार हुआ
तूफान उठे बिजली कड़की
जलधारा उल्टी बह निकली
त्रिलोक में हुआ कंपन
भयभीत हुए सब देवगन
शिवजी से करने लगे पुकार
सृष्टि का कहीं न हो संहार
हे ब्रह्म पिता सृष्टि पालक
रक्षा करो सृष्टि की मलिक
हे विष्णु जग पालन करता
हे करुणा निधि हे दुख हरता
अपना यह रूप साकार करो
त्रिलोक का उद्धार करो
सब लगे सोचने देवगन
गंधर्व मुनि नर औ किन्नर
साधारण नहीं है ये नारी
सृष्टि जिसके सम्मुख हारी
इस सृष्टि का विनाश होगा
ब्रह्मा के सृजन का नाश होगा
कोई भी नहीं बच पाएगा
केवल शून्य रह जाएगा
रोका नहीं तो अनुचित होगा
संहार रोकना उचित होगा
किसकी हिम्मत जो जा के कहे
माँ धैर्य धरे और शांत रहे
हैं कृष्ण नहीं साधारण जन
फिर क्यों अस्थिर है माँ का मन
माँ से ही तो जग पलता है
उसको विनाश कब फलता है
गिरधर तो सब का प्यारा है
वह कहाँ किसी से हारा है
क्या कंस कृष्ण का बिगाड़ेगा
निश्चय ही अहम वश हारेगा
क्या भूल गई हैं ब्रजरानी
श्री कृष्ण की इतनी कुर्बानी
मुरली की सुन के मधुर धुन
हो जाते हैं त्रेलोक मगन
गिरिराज उठा जो सकता है
कौन उसके सम्मुख टिकता है
सेवा में जिसकी शेषनाग
पी थी जिसने दो बार आग
विष का जिस पर न प्रभाव हुआ
उल्टे दुष्ट का उद्धार किया
जिसने इतने दानव तारे
भेजे जो कंस ने वो सब मारे
भ्रम ब्रज वालों का दूर किया
अभिमान इंदर का चूर किया
नाथ कर के शेषनाग काला
विष मुक्त यमुना को कर डाला
गया माया का प्रभाव फैल
टूटे ताले खुल गई जेल
मथुरा से आ गये गोकुल
हुई न ज़रा सी भी हलचल
नारायण हैं वे श्री कृष्ण
जागपालक हैं वे श्री कृष्ण
दुख हरते हैं वे श्री कृष्ण
सुख करते हैं वे श्री कृष्ण
शिव,ब्रह्मा,विष्णु विचार करें
श्री कृष्ण की क्यों न पुकार करें
यह लीला उनकी वही जानें
श्री कृष्ण से ही राधा माने
जगजननी माँ श्री राधा को
श्री कृष्ण ही सबसे प्यारे हैं
लीलाधारी की लीला के
खेल अदभुत और न्यारे हैं
सब देवता श्याम स्तुति गाते
कर के पद कमलों की सेवा
श्री कृष्ण गोविंद हारे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव

********************

४.देव स्तुति

जय कृष्ण कृष्ण जय जय गोपाल
जय गिरधारी जय नंदलाल
जय कृष्ण क्न्हैया मुरलीधर
जय राधा वल्लभ जय नटवर
जै बंसी बजैया मन मोहन
हम आए हैं तेरी शरणम
जय जय गोविंद जय जय गोपाल
जै रास रचैया दीं दयाल
जय जय माधव जय मुरलीधर
हम आए तेरे दर नटवर
जय रसिकेश्वर जै जै घनश्याम
हे मन भावन हे सुंदर श्याम
जय ब्रजेश्वर जय जय गिरधर
किरपा करो वृंदावनेश्वर
जय जय माधव जय मधुसूदन
जय दामोदर जय पुरुषोत्तम
जय नारायण जय वासुदेव
जय विश्व रूप जय जय केशव
जय सत्य हरी जय नारायण
जय विष्णु केशव जनार्दन
जय कृष्ण कन्हैया दीं दयाल
जय मुरली मनोहर जय गोपाल
जन जीवन का उद्धार करो
सब कष्ट हरो सब कष्ट हरो
धरती को पाप मुक्त करने
आए दुखियों के कष्ट हरने
करें हाथ जोरि कर निवेदन
राधा का कोप न बने विघ्न
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५.राधा-कृष्ण संवाद
राधा-कृष्ण संवाद
सुनी देवों की जो करुण पुकार
हुई कृष्ण की दृष्टि भी अपार
जब देखी उग्र रूप राधा
कान्हा ने यह निर्णय साधा
किसी तरह राधा को मनाऊँ मैं
अपना स्वरूप बताऊं मैं
कान्हा ने मन में विचार किया
चतुर्भुज रूप साकार किया
राधा ने देखा जो सम्मुख
कान्हा को देख के हुई चकित
गिर कर के राधा चरणों पर
रो-रो कर कहती, हे नटवर
राधा की सौगंध है तुमको
मथुरा न जाओ तजकर हमको
बिन तेरे जी न पाएँगे
तुम्हें बिन देखे मार जाएँगे
अधूरी है तुम बिन यह राधा
इस लिए मैने निर्णय साधा
जो मधुपुरी को तुम जाओगे
जिंदा न मुझे फिर पाओगे
मैं प्राण त्याग दूँगी कान्हा
रहेगा तुम पर यह उलाहना
इक प्रेम दीवानी मौन हुई
कहो प्रेम में ग़लती कौन हुई?
गिरा ब्रजरानी का अश्रुजल
धुल गये कान्हा के चरण-कमल
हाथों से उसे उठाते हैं
फिर प्यार से गले लगाते हैं
राधा के पोंछते हुए नयन
बोले कान्हा यह मधुर वचन
तुम क्यों अधीर हो रही प्रिय
अब ध्यान से मेरी सुनो विनय
तुम प्रेम की देवी हो राधे
सब प्रेम से ही कारज साधें
फिर रूठी है क्यों मेरी प्रिया
कहो,तुम बिन मैने किया है क्या?
राधे तुम मेरी शक्ति हो
तुम ही मेरी भक्ति हो
अधूरा है तेरे बिना कृष्ण
तुम बिन नहीं माने मेरा मन
दो शरीर और एक प्राण
करते हुए ऐसा आलिंगन
गिर रहे राधा के अश्रुकन
भावुक हो गया कान्हा का मन
कहने को नहीं कोई शब्द रहे
कोई क्या कहे? और कैसे कहे?
प्रिया-प्रियतम दोनो हुए मौन
दोनों को समझाएगा कौन?
फिर कान्हा ने तोड़ते हुए मौन
लेकर राधा का मधुर चुंबन
मैने तेरी हर बात मानी
शक्ति हो तुम मेरी आह्लादिनी
राधा और कृष्ण कहाँ हैं भिन्न
मोहन राधा,राधा मोहन
दिखने में तो हम दो हैं तन
पर एक है हम दोनो का मन
प्रिया-प्रियतम मिलकर हुए एक
कहो किसकी है ऐसी भाग्य रेख?
वो जगत-पिता,वो जग-माता
करुणा से ह्रदय भर जाता
दोनो कोमल दोनों सुंदर
बस समझे उसको मन-मंदिर
इक पीत वरण ,इक श्याम-गात
छवि देख के मनुजनमा लजात
एक टेक दोनों रहे देख
कुदरत ने भी खोया विवेक
थम गई सारी चंचलता
रुक गया सूर्य का रथ चलता
दोनों हैं बस आलिंगनबद्ध
प्रकृति भी हो गई स्तब्ध
वो करूण ह्रदय,वो भावुक मन
नयनों में भरे हुए अश्रुकन
नहीं अलग हो रहे उनके तन
जल रहे ज्वाला में शीट बदन
बस प्रेम है उनके नयनों में
उनके तन में,उनके मन में
ह्रदय की हर धड़कन में
और बार-बार आलिंगन में
सब कहने की है उनकी आशा
पर प्यार की होती है कब भाषा
भाषा है प्यार की आँखों में
बस प्रेमी ही समझें लाखों में
मूक है आँखों की भाषा
कह देती मन की अभिलाषा
प्यार की भाषा के अश्रुकन
पढ़ सकते जिसको प्रेमीजन
देख के उन आँखों की चमक
हो जाते उनमें मग्न प्रियतम
बस आँसू उनको ख़टकते हैं
निस दिन जो बरसते रहते हैं
मुँह से बोला नहीं शब्द एक
प्रिय-प्रिया फिर भी हो गये एक
कह दी उन्होंने बातें अनेक
कोई भी समझ पाया न नेक
घायल हो जाते हैं दो दिल
बिन बोले कैसे जाएँ मिल?
बिन बोले हो न सके अपने
लेकर के आँखों में सपने
प्रिया-प्रियतम फिर अलग हुए
और प्यार से ही कुछ शब्द कहे
हो गये दोनों के नेत्र सजल
जैसे खिले हों कोई नील कमल
नहीं प्यार के उनके कोई सीमा
हो रहे भावुक प्रिय-प्रियतमा
राधा फिर धीरे से बोली
और प्यार भारी अँखियाँ खोली
कान्हा,राधा हो न जाए ख़त्म
न जाओ मधुपुरी, तुम्हें मेरी कसम
जो तुम चले जाओगे मथुरा
कैसे जी पाएगी राधा?
जीवन भर साथ निभाने का
किया था तुमने मुझसे वादा
छू कर राधा गिरधर के चरण
न भूलो अपना दिया वचन
दिखा कर मुझको सुंदर सपने
क्या भूलोगे वायदे अपने?
जब पकड़ा तुमने मेरा हाथ
अब छोड़ चले क्यों मेरा साथ
मुझे याद है तेरा पहला स्पर्श
भर दिया था मन मेरे में हर्ष
तुम भूल भी जाओ पर नटवर
मैं भूल न पाऊँगी मरकर
यह प्यार था तुम्हीं ने शुरू किया
जब पहली बार तूने मुझे छुआ
तेरी प्यार चिंगारी अब गिरधर
बन गई ज्वाला मेरे अंदर
दिन-रात ये मुझे जलाती है
आँखों से नीर पिलाती है
जब प्रेम निभा ही नहीं सकते
फिर प्रेम दिखाते हो क्यों मोहन?
जब प्यार भरा दिल नहीं रखते
करते हो फिर क्यों आलिंगन?
मैं थी जब जल भरने आई
तूने लेते हुए अंगड़ाई
पूछा था मुझे इशारे से
कब बजेगी तेरी शहनाई?
मैने भी कहा इशारे से
तू माँग मेरी को अभी भर दे
तब तूने अपनी माँ से कहा
माँ मेरी भी शादी करदे
लिखी फिर तूने प्रेम-पाती
हम भी होंगे जीवन-साथी
नहीं मिलेंगे फिर हम छिप-छिपकर
हो जाएँगे एक,अति सुंदर
फिर जब मैं जाने लगी घर
ले गये तुम मुझको पकड़ भीतर
ले जा के मुझे इक कोने में
मेरे नयना थे रोने में
कहे थे तुमने बस इतने शब्द
तुम रोयोगी मुझको होगा दर्द
लिए झट से मैने आँसू पोंछ
सुध-बुध भूली, नहीं रहा होश
मुझे जब भी तूने दी आवाज़
मैं भूल गई सब काम-काज
और चली आई तज लोक-लाज़
फिर छोड़ चले तुम मुझको आज
क्यों तुमने मुझे सताया था?
सखियों के मध्य बुलाया था
ले-ले कर तुमने मेरा नाम
कर दिया मुझको सब में बदनाम
मैं रोक सकी न चाह कर भी
तुम छेड़ते थे मुझे राह पर भी
मैं लोगों में थी सकुचाती
पर मन ही मन खुश हो जाती
जब मिले थे मुझको कुंज गली
मैं दधि की मटकी ले के चली
साथ थी मेरे सब सखियाँ
फिर भी न रुकीं तेरी अखियाँ
आँखों से मुझे बुला ही लिया
नयनों से तीर चला ही दिया
वह तीर लगा मेरे सीने में
फिर कहाँ थी राधा जीने में?
सुध-बुध खोकर मैं गिर ही गई
सब सखियों से मैं घिर ही गई
फिर आए थे तुम जल्दी-जल्दी
और उठा लिया अपनी गोदी
ह्रदय में ज्वाला रही धधक
इक टेक बाँध गई अपनी पलक
उस भावना में हम बह ही गये
इक दूजे के बस हो ही गये
तब भूल गई हमको सखियाँ
मुस्का रहीं थी उनकी अँखियाँ
तुम यमुना तट पर आ करके
और वंशी मधुर बजा करके
जब तुमने पुकारा था राधा
तब तोड़ दी मैने सब बाधा
मैं आई थी तब भाग-भाग
और लगा था किस्मत गई जाग
तुम मीठी-मीठी बातों से
सताते थे मुझको रातों में
बस साथ है तेरा सुखदाई
हर रात मैं तुझे मिलने आई
मुझसे लिपटी मानस पीड़ा
जब कर रहे थे हम जलक्रीड़ा
जल रहे थे हम यमुना जल में
और आग थी पानी की हलचल में
प्रकृति ने छेड़ा था संगीत
थी गीत बन गई अपनी प्रीत
बस-बस राधे न हो भावुक
न छेड़ो वह बातें नाज़ुक
क्यों भूल रही हो तुम राधा?
कान्हा है तेरे बिन आधा
नारी नहीं हो तुम साधारण
फिर क्यों विचलित है तेरा मन
राधा से भिन्न कहाँ कान्हा
फिर कैसा तेरा उलाहना?
दो देह मगर इक प्राण हैं हम
क्योंकि भू पर इंसान हैं हम
करने पुर कुछ सत्य कर्म
लिया है हमने यह मानव जन्म
उस कर्म को पूरा करना है
फिर क्यों कंस से डरना है
ऐसा नहीं कर सकती राधा
नहीं कर्म में बन सकती बाधा
तुम याद वह अपना रूप करो
और धैर्य धरो बस धैर्य धरो
मेरा वादा है यह तुमसे
तुम भिन्न नहीं होगी मुझसे
पहले तुम स्वयम को पहचानो
शक्ति हो मेरी यह मानो
बिन शक्ति के क्या मैं लड़ सकता?
क्या प्यार को रुसवा कर सकता?
सुन राधा ने नेत्र किए बंद
देखा तो पाया वह आनंद
राधा तो कृष्ण में समा ही गई
परछाई अपनी छोड़ चली
छाया भी न रह सकी बिन कान्हा
दिया उसने भी एक उलाहना
विचलित है छाया का भी मन
ले लिया उसने भी एक वचन
जो मुझे छोड़ कर जाओगे
तुम मुरली नहीं बजाओगे
मुझको अपनी मुरली दे दो
तुम जाके कर्म पूरा करदो
अब मुरली तुम जो बजाओगे
मुझे नहीं अलग कर पाओगे
मुरली सुन मैं आ जाऊंगी
और कर्म में बाधा बन जाऊंगी
अब तुम बिन मैं ब्रज में रहकर
मुरली से हर सुख-दुख कहकर
मानव का कर्म निभाऊंगी
जाओ तुम मैं रह जाऊंगी
मुरली को सौंप गये कान्हा
क्या लीला हुई? कोई न जाना
कान्हा का खेल निराला है
कहाँ कोई समझने वाला है
उसका यह रूप निराला है
पर शक्ति तो ब्रजबाला है

**************************************

(चित्र - साभार कालिदास अकादमी)

संपर्क:

सीमा सचदेव

7ए, 3रा क्रास

रामाजन्या लेआउट

माराथल्ली

बैंगलोर-37

e-mail:- ssachd@yahoo.co.in , sachdeva.shubham@yahoo.com

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 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. 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श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: सीमा सचदेव का खण्डकाव्य : ब्रजबाला
सीमा सचदेव का खण्डकाव्य : ब्रजबाला
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