श्याम नरायण कुंदन की कहानी - इंटरव्यू

SHARE:

कहानी इण्टरव्यू -श्याम नरायण ‘कुन्दन‘ ...


कहानी
इण्टरव्यू

-श्याम नरायण ‘कुन्दन‘


अब हम तीनों लोग बस स्टाप पर थे। रंग-बिरंगी गाड़ियाँ सामने से सर्र से निकल जाती थी। हरी और पीली रंग की बसें लोगों की एक भारी भरकम भीड़ बस स्टाप पर छोडती और दूसरे ही पल वह भीड़ दूसरी बसों द्वारा बादलों की मानिद छँट जाती।

विचित्र दुनिया। माडलों सी दीखने वाली लडकियाँ इतराकर चलती थीं, जैसे वे लडकियाँ नहीं थीं, तितलियाँ थीं, तितलियाँ, रंग-विरंगी तितलियाँ। उनकी उपस्थिति मात्र से ही पूरा का पूरा माहौल एक अजीब किस्म के आकर्षण से भर जाता था।

युवकों के क्या कहने। सब के सब निराले। अगर कोई अकेला था तो कोई बात नहीं, लेकिन जिनकी साथ गर्लफ्रैंड साथ में थी तो कार्यक्रम रंगारंग। वे उचकते थे, खिलखिलाते थे और अंग्रेंजी में पता नहीं क्या-क्या कह जाते थे।

लोगों से बेखबर कभी वे अपनी गर्लफ्रैंड को अपने बगल में दबा लेते तो कभी उनके आँखों मे आँखें डालकर उनके नितम्बों को हौले-हौले ठोक देते। फिर उनके कमर में हाथ डालकर भीड़ के परे खींच ले जाते।

लडकियों को भी किसी तरह कम नहीं कहा जा सकता। वे भीड़ को चिढ़ाने के लिए हर पल कुछ नये-नये तरीके ईजाद कर-कर रहीं थी। साथी लड़कों को अपने उपर हावी होने के लिए उकसा रही थी।

हम सबको अभिभूत देख रहे थे। सभी को लेट लतीफी का भूत सवार था। हर चेहरे पर संभावित समय पर पहुँचने का भय व्याप्त था। पर हमारे पास न समय का अभाव था न ही कुछ खोने का भय, बल्कि हम तो चाहते थे कि समय वहीं थम जाए।

इलाका साकेत का था। हम वहाँ इण्टरव्यू के लिए गए थे और इण्टरव्यू की समाप्ति के बाद हमें वापस कटवरिया सराय जाना था।

मन चिड़चिड़ा था और चेहरे का भाव ऐसा जैसे हम पचासों जूते खाकर चले आ रहे हों। सिर में दर्द, आँखों में जलन और भूख के मारे का बुरा हाल था।

आते समय तो हम कुल दस थे, पर लौटते समय अब केवल तीन थे। मैं, संतोष और कोई तीसरा।

उम्र और डिग्रियों के मामले में मैं अपने दोनों साथियों पर भारी था, लेकिन व्यवहारिकता और तर्कपटुता में मैं संतोष के सामने बिल्कुल ही लिजलिजा था। इसलिए मैं उससे बात करने से हमेशा कतराता रहता था।

उस दिन भी मैं उससे बात करने से बच रहा था लेकिन जब कटवरिया सराय की तरफ जाने वाली अनगिनत बसें आकर चली गई तो मुझसे रहा नहीं गया और हकलाते हुए मैंने उससे पूछ ही लिया- ‘यार संतोष चलना नहीं है क्या।‘

‘चलो, मैंने कब मना किया है चलने को।
संतोष ने मेरी तरफ कनखी नजर से देखते हुए जवाब दिया।
‘लेकिन प्रायवेट बस तो आने दो।‘ थोड़ा रुककर उसी ने फिर कहा।
‘प्रायवेट बस ही क्यों? तीसरा उत्सुकता बस पूछ बैठा।

‘क्योंकि प्राइवेट बस में कण्डक्टर की नजर बचाकर बिना टिकट यात्रा किया जा सकता है। पकड़े जाने पर वे अधिक से अधिक लताड़कर छोड देते है पर डी.टी.सी. वाले तो जुर्माना अदा न करने पर लताड़ते भी हैं और हवालात की हवा भी खिलाते हैं।‘

इतना कहकर संतोष चुप हो गया और सामने की तरफ देखने लगा। हम दोनों ही उसके चालाक दिमाग पर दंग रह गये।

उस पल मैं सामने की तरफ न देखकर संतोष के तरफ ही देख रहा था, सोच रहा था कि- ‘वह सामने देखकर भी सड़कों पर आती-जाती गाड़ियों की तरफ नहीं देख रहा होगा, बल्कि वह सामने खड़ी टाइट जींस वाली लड़कियों के नितम्बों के पार अपने भाग्य को देख रहा होगा।‘

निःसन्देह वह भाग्यवादी था और मैं भाग्य विरोधी। हम दोनों ही अपने पक्ष के प्रति अड़ियल रुख रखते थे लेकिन वाद-विवाद के क्रम में मुझे याद नहीं है कि मैं कभी भी संतोष से विजयी हुआ हूँगा। पता नहीं क्यों उसके तर्क के सामने मेरी हमेशा ही घिग्घी बँध जाती थी और मैं उसके सामने एक मेमने की भाति सिर्फ में... में....में ही करता रह जाता था। अन्त में वह विजयी मुद्रा में कहता जाता- ‘भाग्य से अधिक न आज तक किसी को कुछ मिला है न ही भविष्य में मिलेगा।‘

मुझे लगा जैसे संतोष उस पल चुप रहकर अपने उसी अवधारणा को पुष्ट कर रहा हो।
कभी-कभी तो मुझे संतोष की बातें बिल्कुल भी गलत नहीं लगती। लगता उसका भाग्यवाद ही सही और बाकी सब झूठ। मैं और मेरी अक्खड़ता तो बस एक छलावा है, जिसके बल पर मैं केवल तुतला तो सकता हूँ, लेकिन कुछ पा नहीं सकता। जैसे लाख प्रयास के बाद भी मैं एक छोटी सी नौकरी नहीं पा पाया। हाँ वही नौकरी जिसके लिए मैंने कहाँ-कहाँ इण्टरव्यू नहीं दिया लेकिन कही अंग्रेजी के नाम पर छंट गया तो कहीं घूस न दे पाने के कारण। कहीं मेरी डिग्रियाँ छोटी पड़ गयी तो कही अनुभव की न्यूनता बाधा बन गयी।

वैसे कहने के लिए तो मैंने उँचे-उँचे विश्वविद्यालयों से उँची-उँची डिग्रियाँ हासिल की है। देश के महानतम विश्वविद्यालयों की लाईब्रेरियों में दिन-रात बैठकर आँखे फोड़ी है। प्रतियोगिता के नाम पर बडे-बडे लोगों के सामने सारगर्भित व्याख्यान देकर अपने ज्ञान का लोहा भी मनवाया है लेकिन परिणाम नगण्य।
यह कितनी अजीब बात है, जिन्होंने कुछ नहीं किया, वे मेरे आँखों के सामने ही उँचाइयों पर पहुँच गए और मैं सब कुछ करके भी जहाँ का तहाँ रह गया। यह भाग्य का खेल नहीं तो और क्या है?

सामने के फुटपाथ पर दो विदेशी मूल की युवतियाँ कोका-कोला पी रही थी। उनके बगल में ही कुछ लोग गरमा गरम चाट-पकौड़े का आनन्द ले रहे थे। उनको देखकर मुझे भान हुआ कि कल शाम से ही मैं कुछ भी नहीं खाया हूँ। पेट में चूहे कूद रहे हैं और आँखों के सामने लुत्तियाँ नाच रहीं हैं।

पता नहीं कब रुम पर पहुँचना होगा? वैसे भी रुम पर कौन सा मनभोग लगाकर रखा होगा? अब तो दुकानदार उधार मांगने पर बकाया पैसा मांगने लगता है। उपर से मकान मालकिन। बाप रे ! डायन है डायन। कुत्ते की तरह सजग कान है उसके। कितना ही पांव दबाकर उपर की सीढयाँ चढूँ, वह जान जाती है। दरवाजा खोला नहीं कि जहर की घुट्टियाँ पिलाने लगती है।

क्या आज वापस जाने पर वह छोड़ देगी? कदापि नहीं। पहुँचते ही डाँट कर पूछेगी- ‘क्या रे ! पैसा आया की नहीं तेरा ? जब कहूगां नहीं ऑन्टी थोडा सब्र करो, बस एक दो दिनों में आने ही वाला है। तब वह गरजेगी- ‘तेरा तो दो महीणे से इसी तरह पैसा आ रहा है। बहुत सुण चुकी हूँ मैं, पर अब एक ण सुणूँगी........मेरा किराया चाहिए ..... और वह भी इसी समय।‘

‘मगर आन्टी‘ बिगडती बात देखकर जब मैं उसके सामने दाँत निपोरुगाँ तो वह मुझे धिक्कारेगी और चिल्लाकर फिर डांटेगी -‘चुप बे झूठे, चोर, बेईमाण कहीं के।‘
ऐसे ही न जाने क्या-क्या कहेगी वह। और उसके जाते ही मैं तीर खाए पक्षी की तरह बिस्तर पर गिर पडूँगा। सारी रात बिना खाए करवट बदलते बितेगी। सुबह होगा, पेपर वाला पैसे के लिए तगादा करेगा। उसके सामने भी मैं गिड़गिड़ाउगाँ। जब वह चला जाएगा तो नवभारत टाइम्स के वर्गीकृत विज्ञापन में नजरें गड़ा दूँगा। रोज की ही भाँति हाथ में डिग्रियों का पुलिंदा दबाए इण्टरव्यू के लिए निकल जाऊगाँ। जैसे रोज निकलता हूँ, जैसे आज निकला था।
‘अरे वह प्राइवेट बस।‘ तीसरा चिल्लाया तो मेरे बड़बड़ाने की श्रृंखला टूटी।

‘अरे हाँ ! दौडो....पकडो...।‘ संतोष ने भी उसके हाँ मे हाँ मिलाया।
हम तीनों जान छोड़कर दौड़े पर दिल्ली की बसों में चढ़ने के लिए केवल दौड़ने भर से काम नहीं चलता, बल्कि भीड़ को धकियाने की शक्ति भी चाहिए जो शायद उस पल हम तीनों में किसी के अन्दर नहीं थी और अगर कहीं शक्ति थी भी तो बिना टिकट यात्रा का भय हमें आगे बढ़कर बस में चढ़ने से रोक रहा था।

कुल मिलाकर हम तीनों ही बस में चढ़ने का ढोंग करते हुए जहाँ के तहाँ रह गये और बस स्टाप बेसुमार भीड़ को लादकर चलती बनी।
हम वापस आकर फिर अपनी सीट पर बैठ गए। मैं अपने चारों ओर एक सरसरी नजर डाला तो पाया कि हमारे अलावा कुछ और भी लोग थे वहाँ जो बस में चढ़ने से वंचित रह गए थे, जैसे हमारी दायी तरफ खड़ा एक पागल, बायीं तरफ अपनी सात वर्ष की बेटी का सहारा लिए खड़ा एक कोढी भीखमंगा, तथा ठीक हमारे पीछे कूड़े के ढेर से अपना भाग्य तलाशकर खड़ा एक युवा।

उस पल मुझे लगा कि उनमें और हममें कोई खास अन्तर नहीं है। बल्कि कई मामलों में तो वे हमसे भी अच्छे हैं क्योंकि वे जो हैं, हैं, उन्हें हमारी तरफ कलई उघडने का भय नहीं रहता। जो मिला खा लिया, जो पाया पहन लिया, जहाँ नींद आयी सो लिया।
ठीक उसी समय सामने कोलाहल बढ़ा। शायद किसी स्कूल की छुट्टी हुई थी।

एक से एक सुन्दर बच्चे। जरुर अंग्रेजी माध्यम के होंगे। हिन्दी माध्यम के बच्चे इतने चिकने और चंचल नहीं होते। उन्हें इतने सुन्दर कपड़े और जूते भी पहनने को नहीं मिलता। वे गंदे कपड़े पहनते हैं और वे ठीक उसी के अनुरूप काले और भदेस होते हैं। मेरा मन पूर्वाग्रही हो आया। बोला- ‘आखिर ये फूल से कोमल और मक्खन से मुलायम बच्चे देश के किस काम आएंगे भला?‘

मेरे इस बचकाने सवाल पर धीरे-धीरे इकट्ठी होती भीड़ की कई एक मुण्डियाँ मेरी तरफ मुड़ गयी। कुछ पलों के लिए तो मैं समझ नहीं पाया कि भीड़ की वे तमाम मुण्डियाँ मेरे पक्ष में मुड़ी थी या विपक्ष में। लेकिन जैसे ही संतोष ने मुझे खा जाने वाली नजरों से घूरा, मैंने जान लिया कि मेरी खैर नहीं है।
संतोष के स्वभाव से मैं अच्छी तरह वाकिफ था। मैं यह भलीभाँति जानता था कि संतोष बिना वजह मेरे किसी बात में हस्तक्षेप नहीं करता। लेकिन जब करता है तो उसका मतलब बड़ा होता है।

‘सरासर गलत और निराधार बात।‘ संतोष ने अपने एक-एक शब्द पर जोर देते हुए कहा।
अब लोगों के मुण्डियों के मुड़ने की बारी संतोष की तरफ थी। संतोष ने आगे भी कहना जारी रखा- ‘जिसे आप इतना सुकोमल और कमजोर कह रहे हैं वे उस स्थान पर पूरी मजबूती और शक्ति के साथ खड़े हो सकते हैं, जहाँ अब से कुछ ही घण्टे पहले खड़े होने में हम सभी के शरीर की नसें चटकने लगीं थीं। हम पसीने-पसीने हो आए थे। पांवों में कम्पन था और थोबड़े पर जीवन निरर्थक होने का बोध।‘

बस स्टाप के उस भीड़ में मेरी सांसें उपर नीचे होने लगी। मैं चाह रहा था कि संतोष वापस कटवरिया सराय चलकर कुछ भी कह ले, मुझे इसके लिए जो भी सजा देना चाहे, दे ले लेकिन यहाँ इतने लोगों के बीच में मेरी इज्जत की धज्जियाँ मत उधेड़े। पर संतोष तो संतोष था वह जब एक बार शुरू हो जाता था तो रूकने नाम नहीं लेता था।
‘वे सामने के गोरे और डिब्बे के दूध वाले डाक्टर और इंजीनियर बन सकते हैं, विदेश मंत्री और प्रधानमंत्री बनकर विदेश जा सकते हैं, क्योंकि विदेशों में हिन्दी नहीं बल्कि अंग्रेजी ही चला करती है। यही नहीं वे अभिनेता और अभिनेत्री भी बन सकते हैं। मि. इंडिया और मिस इंडिया बनकर तहलका मचा सकते हैं। क्योंकि इसके लिए अंग्रेजी बोलने वाले मीठे चेहरों की ही जरुरत होती है, हम जैसे हिन्दी बोलने वाले बदसूरत चेहरों की नहीं।‘

‘अरे चुप यार संतोष, चुप। मैं भी तुम्हारी बात से पूरी तरह सहमत हूँ। वह बात तो मेरे मुँह से गलती से निकल गयी थी।‘ मैंने संतोष को चुप कराने की गरज से बोला।

‘गलती........गलती...........गलती आखिर एक बात मेरी समझ में नहीं आती कि हमेशा आप ही से गलती क्यों हो जाती है। आखिर कोई भी बात कहने से पहले आप अपनी जड़ों की ओर क्यों नहीं देख लेते। क्यों नहीं मान लेते कि हम हिन्दी वाले हिन्दी जानकर सिर्फ और सिर्फ असभ्य और गंवार हैं, बाहर तो कहीं जा नहीं सकते, अपने ही देश में एक छोटी सी नौकरी भी प्राप्त नहीं कर सकते।‘

‘और अगर कुछ कर सकते हैं तो सिर्फ इतना कि भूखों रहकर, इण्टरव्यू से निकाले जाकर, दाढी बढ़ाकर, बस स्टाप पर बैठकर, अंग्रेजी जानने वाली महानगरीय लडकियों की खूली जाँघों, उरोजों, पुष्ट नितम्बों और गहरी नाभि को लपलपाती नजरों से निहार सकते हैं और नहीं तो हिन्दी में कविता बनाकर खुद को ही सुना सकते हैं, क्योंकि इसमें अंग्रेजी जानने की जरुरत नहीं पड़ती, सिर्फ हिन्दी जानने भर से काम चल जाता है।

--------
संपर्क:
श्याम नरायण ‘कुंदन’
311-एमएचसी,
हैदराबाद विश्वविद्यालय
गाची बावली (GACHI BOWLI)
हैदराबाद -500046
ईमेल- shyam_kundan@yahoo.co.in

--------

COMMENTS

BLOGGER: 5
  1. सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार हों !

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत अच्छी कहानी है...चित्रण और संवाद जोरदार हैं।

    जवाब देंहटाएं
  3. मजा आ गया लग रहा है कि प्रेमचंद ने कहानी लिखी है। आ हा हा हा...

    जवाब देंहटाएं
  4. लगा कि प्रेमचंद ने लिखा है। आ हा.. हा.. हा, मजा आ गया।

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: श्याम नरायण कुंदन की कहानी - इंटरव्यू
श्याम नरायण कुंदन की कहानी - इंटरव्यू
http://bp0.blogger.com/_t-eJZb6SGWU/SC2YZL9RnMI/AAAAAAAAC-k/u7DkGHxbCuQ/s400/soch2.jpg
http://bp0.blogger.com/_t-eJZb6SGWU/SC2YZL9RnMI/AAAAAAAAC-k/u7DkGHxbCuQ/s72-c/soch2.jpg
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2008/05/blog-post_727.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2008/05/blog-post_727.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content