अनुज खरे का व्यंग्य : सूरमा भोपाली का एक्सक्लूज़िव इंटरव्यू

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व्यंग्य सूरमा भोपाली का ‘‘ एक्सक्लूसिव इंटरव्यू ’’   -अनुज खरे   सूरमा भोपाली फिर बुधवारा की गली के मोड़ पर मिल गए। उसी खास ...

व्यंग्य

सूरमा भोपाली का ‘‘एक्सक्लूसिव इंटरव्यू’’

 

-अनुज खरे

 

सूरमा भोपाली फिर बुधवारा की गली के मोड़ पर मिल गए। उसी खास गली के मोड़ पर जहां वे फिल्मों में जाने से पहले रहते थे’, मजमा जमाते थे । हालांकि अब हाल बदरंग है लेकिन उनकी लकड़ी की टाल पर अभी भी कुछ चमक बाकी है । वे भी अपने पुराने रंग में बदस्तूर बोलने की मशीनगन बने हुए हैं । यानि गली-टाल, वे और उनका मजमा हमकदम- हमनवा टाइप दिखाई दे रहे हैं । वे गली के मोड पर इसलिए मिलते हैं कि यहीं वो ऐतिहासिक ठियाहै जहां वे जाहिरा तौर पर बैठकर उन- उन को सुन-सुना और गरिया सकते हैं । जिन्हें वे कई बार भोपाली तहजीबके कारण बख्शदेते थे । अब वे जब गली के मोड पर टकरा ही गए तो बात जम गई कि उनका एक इंटरव्यू ही कर लिया जाए । क्या पता वे कब फिर फिल्मों की ओर रुख कर लें ।

....और सुनाओ सूरमा भाई, क्या चल रहा है ? हमने कहा ।

सूरमा भाई- अमां पैलवान, चलेगा क्या ? वोई चल्लरिया है ।

वोई, सूरमा भाई...। वोई क्या? इस बार हमें कुछ अतिरिक्त जानने की कुनमुनाहट हुई ।

सूरमा-अमां भाई, तुम तो बिना गियर के इस्कूटर हो रिये हो, वोई माने एकदम झक्कास चल्लरिया है । जब से भोपाल लौटा हूं जिंदगी में सुकून आरिया है । बोडी पे मटन के पिलस्तर चढरिये हैं, उदर बांबे में तो बोत ही भन्नोट लाइफ हो री थी ।

पर सूरमा भाई बांबे और भोपाल में अब क्या अंतर बचा है । वो ही क्राइम, बिल्डिंगें, वैसे ही लोग हमने अपनी अतिरिक्त जानकारी का प्रक्षेपण किया ।

सूरमा भाई- मियां पठान’, तुम्हारे तो पिलग-पोंट में गर्दा आरिया दिखता है। बांबे में तो खोपडी श्ययाली जीरो बटा सन्नाटा हो री थी । भां तो कन्ने कट गिये थे अपने, दिमाग चरिया हुआ तो रवान्नगी डाल ली। सिटी तो खांभोपाल है, जन्नत है, मियां जन्नत। वोई तालाब, वोई झीलें, झां घुसते ही तीन रोज तो बिरयानी की जगह मियां अपन तोयहां कि देसी हवा ही खाते रहे ।

पर सूरमा भाई देखो तो झीलें-तालाब कितने गंदे हो रहे हैं? अब शहर के बारे में हम साक्षात. एफएमनुमा प्रसारण पर उतर आए थे।

सूरमा भाई- खां, तुम मामूपने की बात कौं कर रिए हो। दो लपाड़ लगाउंगा रख के अबी नई तालीम की चर्बी रोड पे फैल के नाली में बैठ जाएगी। तुमको जरा बिठा के चोंच से चोंच का भिड़ाई। तुम तो साले सेर’(शहर) पे भट-सुअरचलान लगे। देखो पैलवान झां कायदे की बात करना हो तो बैठो नईं तो निक्कललो पतली गली से। साले खुद से तो कुछ हो नहीं सकता सेरको कोसने चले आरिये हैं । पैले भी एक खांने ऐसई जुर्रत की थी। अपन ने रख के एक लपाड़ दी तो साला हियां पैरे में गिर के रोन लगा। बोला, सूरमा भाई गलती हो गई। हमने भी कहा अबकी हो गई, सो हो गई, दुबारा हुई तो ऐसी कनपटी बजाउंगा कि म साउथ में बोडी नार्थ में घूम जाएगी। अपने सेरकी बेज्जती पे तो अपन साले जय-वीरु को ना बख्शें...

जय-वीरु ...! सूरमा भाई, जय-वीरु क्या कर रहे हैं आजकल? उनकी दोस्ती का क्या हुआ? हमें आंखों के सामने शोलेकी मोटरसाइकिल में दोनों आते साक्षात् दिखने लगे।

सूरमा भाई- लाहौल विला कुव्बत, ‘अमांपठान, तुम्हारी याद्दाश्त का तो कसम से चुम्मीलेने को दिल चारिया है। क्या भिन्नोट बात याद दिला रिये हो मियां’, खैरियत से हैं दोनों। वो लंबा वाला मिल गया था भांबांबे में वीटी इसटेशनपर, फिर रिया था, हमने भी लपक कर गिरेबान पे हाथ डाल दिया। पूछा कौं खांयिहा कां तफरीह कर रिए हो। बोला, गांव से वीरु आ रिया है। हमने भी रख के दिया। का-धन्नो के साथ। लंबू बोला-नईं सूरमा भाई बसंती के साथ वईं गांव में रैता है, खेती करता है, बीच-बीच में भतीजोंको देखने मैं भी आता-जाता रैता हूं। सुनके खांअपन ने तो जय को भईं झाड़ पिला दी। का पठानवो तो उधर सैट हो गया, तू क्यों झां मर रिया है। भईं क्यों नईं चला जाता। सुनकर खांलंबू मेरी बुश्शर्ट पकडकर रोने लगा, बोला-झां बुढापे में भी खूब काम मिल रिया है, सूरमा भाई कैसे जाऊं...? मैंने भी कै दिया, तू भोपाल आजा भईं रहेंगे, बोला-मेरी तो नजदीकी है तुम्हारे सेरसे, तुम्हारी भाभी भईं की तो हैं। खूब आया हूं। क्या सेरहै, क्या लोग हैं, क्या तहजीब है, क्या झीलें हैं, क्या कबाब हैं..., वहीं बैंच पे बैठा के हाथ नचा-नचा के लंबू सेरके लिए वाइस ओवरकरने लगा। हमने तो उसे वीरु की ट्रेन दिखाके दुडकी मार ली। नई तो खांशहर के नाम पे इतना इमोसनलहो के फैल रिया था लंबू कि वीरु को लेने के बजाए दूसरी ट्रेन से हमारे साथ भोपालई आ जाता। बड़ी मोहब्बत है लंबू के दिल में सेरके लिए।

...और सूरमा भाई शहर का चक्कर लगाया क्या? अबकी बार हमने भी कुछ इमोसनलहोते हुए लोकल मामलात में उनका फीडबैक चाहा।

सूरमा भाई-...तो का झां बैठ के कनकौवे उडा रिए हैं खां। मिनी बस में घूम के देखा है पूरा सेर। क्या भिन्नौट आवाजें लगाते हैं। दस... ग्यिरह... बारह... नाका!, कौं खांकां जाना है? ऐसा लगता है सारी उमर झंईं बसों में बैठा घूमता रहूं।

अबकी बार सूरमा भाई नासटेल्जिकहोते से दिख पडे। हमने भी बात बदली और कहा सूरमा भाई भोपाली तहजीब के बारे में कुछ बताओ, कुछ चेंज दिखा क्या? या वैसा ही सब कुछ लग रहा है आपको।

सूरमा भाई- पठान मियां’, अबे तुम जिंदगी में कुछ सीलोचलोगे तो तब ना जानोगे तहजीब को, उर्दू के शब्द रट लिए, तहजीब-तहजीब करने लगे। पहले दिमाग पर झाडन फिराओ मियां। अब सूरमा भाई नफासत-नजाकत का क्रिया कर्म करके मुझपर निकलते से दिखे। बोले- अबे, तहजीब कोई विलायती फूड जैसी ऐसई-वैसई चीज है क्या कि खाया और रैपरफेंका। यिहीं दिल-जिगर-फेफडों में बसी है तहजीब-अखलाक-रवायतें। कसम से, कब्र में भी साथ जाएगी। अबकी बार सूरमा भाई के चेहरे पर मुझे दिल नजर आने लगा। वे फिर बोले तुम्हारी इंगलिश... चंद रुपए... रिश्तों को, भाषा को भुला देंगे क्या? अब सूरमा भाई की आंखें छलकने लगीं और मुझे अपनी बात पर अफसोस सा होने लगा। अरे, इसलिए नहीं कि सूरमा भाई इमोसनलहो रहे हैं, बल्कि यूं कि वे अब ज्ञान देने वाले थे। हां-हां करने पर भी और न-न करने पर तो और भी ज्यादा कि शायद मैं ठीक से समझ नहीं पा रहा हूं इसलिए । सामने वाले को गंभीर होता देख पुरानी बीमारी की तरह उनकी लीडराना प्रवृत्ति उभरने सी लगती थी।

मैंने भी बातों को गियर कुछ बदलते हुए उनसे पूछा कि कब के गए आप अब लौट रहे हैं। इतने वर्षों में शहर में क्या बदलाव देख रहे हैं?

सूरमा भाई-अमां मियां’, ‘ बनकबाबखाओ, नमकीन चाय पिओ तो तुम्हारे भेजे की वर्जिश होगी और जै ऐसई-वैसई बातें भां से निकलना बंद होंगी। कहकर सूरमाभाई फिर लपकालेने लगे। बोले-जां तुम्हें बता-बता के हलक सुखो रिया हूं कि सेर-सेरहै, जाफरान जैसा... महक जाती नईं है, तुम हो मियांकी राशन-पानी लेकर सेरपर चढ़े-दौड़े आरिए हो। जिंदा कौमों की खुश्बू से महकता है सेर। तुम तो अमां कब्रिस्तान के चिराग होरिये हो रोशनी के बजाए लपलपाते ही जारिये हो। हमें देखो मियां पूरी उमर सेरके नाम खाते रहे, भाषा के नाम पर रोजी चलाते रहे। मां जैसा सैरने संभाला- भाषा- हुनर दिया। आज सूरमा भाई का इंटरव्यू कर रहे हो खां, कौं सूरमा भाई भी ह्स्ती बन गया है इसलिए न। अपने लोग की दुआ से काबिलियत आई है। जो लोग सेरमें बुराइयां देखते हैं । मेरे कन्ने एकबार लाओ तो जरा सीना खोल कै दिलदिखाएगा सूरमा भाई। नईं तो लपाड़ा लगाकै भेजे की बैटरी के वायर टाइट कर देगा।

सूरमा भाई फिर पुराने रंग में आते दिखाई देने लगे। मैं भी उन्हें उनके मजमे के हवाले करके निकल लिया। दिल में कसक लिए कि शहर को बिसूरते लोगों को काश एक बार में सूरमा भाई का यह एक्सक्लूसिव इंटरव्यूपढ़वा सकूं।

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COMMENTS

BLOGGER: 3
  1. Maza a giya aur budhware ki chai aur smoson ki yaad aa gai.
    shivesh

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  2. wah janab wah whi budh ware ki yadein taza hon gain jab mai pappu bhai ke saath filim dekhne giya tha.

    जवाब देंहटाएं
  3. वाकई खालिस भोपाली जुबान में लिया गया इंटरव्यू है। अपने को भी वोई बड़ा तलाब याद आ गिया। झां गिए बिना हम भोपालियों के पेट का पानी नइ पचे।

    जवाब देंहटाएं
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रचनाकार: अनुज खरे का व्यंग्य : सूरमा भोपाली का एक्सक्लूज़िव इंटरव्यू
अनुज खरे का व्यंग्य : सूरमा भोपाली का एक्सक्लूज़िव इंटरव्यू
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