चार्ली चैप्लिन की आत्मकथा (5)

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मेरी आत्मकथा चार्ली चैप्लिन   चार्ली चैप्लिन की आत्मकथा -अनुवाद : सूरज प्रकाश ( पिछले अंक 4 से जारी …) सात 1909 में ...

मेरी आत्मकथा

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चार्ली चैप्लिन

 

चार्ली चैप्लिन की आत्मकथा

-अनुवाद : सूरज प्रकाश

suraj prakash

(पिछले अंक 4 से जारी…)

सात

1909 में मैं पेरिस गया। फोलीज़ बेरजेरे ने कार्नो कम्पनी को एक महीने की सीमित अवधि के लिए प्रदर्शन करने के लिए अनुबंधित किया था। मैं दूसरे देश में जाने के ख्याल से ही कितना उत्तेजित था। यात्रा शुरू करने से पहले हमने एक सप्ताह के लिए वूलविच में प्रदर्शन किये। ये एक वाहियात शहर में बिताया गया वाहियात और सड़न भरा सप्ताह था और मैं परिवर्तन की राह देख रहा था। हमें रविवार की सुबह निकलना था। मुझसे गाड़ी, बिल्कुल छूटने वाली ही थी। किसी तरह भाग कर मैंने प्लेटफार्म से छूटती गाड़ी पकड़ी। मैं सामान वाला आखिरी डिब्बा ही पकड़ पाया था। उन दिनों मुझे गाड़ियां मिस करने में महारत हासिल थी।

चैनल पर तेज धूंआधार बरसात होने लगी। लेकिन कोहरे में लिपटे फ्रांस को पहली नजर से देखना कभी न भूलने वाला रोमांचक अनुभव था। ...ये इंगलैंड नहीं है। मुझे अपने आपको बार-बार याद दिलाना पड़ रहा था। ये महाद्धीप है। फ्रांस। मैंने अपनी कल्पना में हमेशा इसे देखने की अपील की थी। मेरे पिता आधे फ्रेंच थे। दरअसल, चैप्लिन परिवार मूलत: फ्रांस से इंगलैंड में आया था। वे फ्रांसीसी प्रोटैस्टेंट इसाई ह्यूग नॉट्स के वक्त इंगलैंड की धरती पर उतरे थे। पिता के चाचा अक्सर गर्व से कहा करते कि एक फ्रांसीसी जनरल ने चैप्लिन परिवार की इंगलैंड शाखा की नींव रखी थी।

ये ढलती शरद ऋतु के दिन थे। और कैलाइस से पेरिस तक की यात्रा बेमज़ा थी। इसके बावजूद, जैसे-जैसे हम पेरिस के निकट पहुंचते गये, मेरी उत्तेजना बढ़ती चली गयी। हम अंधेरे, अकेले गांवों से गुज़र कर जा रहे थे। धीरे-धीरे धूसर आसमान में हमने रौशनी के दर्शन किये।... वो ही है पेरिस का प्रतिबिंब, गाड़ी में हमारे साथ यात्रा कर रहे एक फ्रेंच आदमी ने बताया।

पेरिस में वह सब कुछ था जिसकी मैं उम्मीद कर रहा था। गारे दू नोर्द से रू ज्योफ्रे मारी तक की यात्रा ने मुझे उत्तेजना और अधैर्य से भर दिया। मैं हर नुक्कड़ पर उतर कर पैदल चलना चाहता था। इस समय शाम के सात बज रहे थे। कैफ़े से आमंत्रित करती सी सुनहरी बत्तियां चमक रही थी। और उनके बाहर सजी मेज़ें जीवन के आनंद की बातें कर रही थीं। कुछेक कारों के नये आगमन के अलावा ये अभी भी मौने, पिसारो तथा रेनॉइर का ही पेरिस था। रविवार का दिन था और लग रहा था जैसे हर आदमी उत्सव के मूड में है। उत्सव और उल्लास वहां की फ़िजां में थे। यहां तक कि रूओ ज्योफ्रे मारी में मेरा पत्थर की दीवारों वाला कमरा जिसे मैं अपनी कारागार कहता था, मेरे उत्साह को दबा नहीं पाया क्योंकि सारा वक्त तो मैं बिस्‍त्रा और कैफे के बाहर लगी मेज़ों पर ही बैठा रहता था।

रविवार की रात फ्री थी। इसलिए हम फोलिज़ बेरजेरे में शो देख पाये। हमें यहीं पर अगले सोमवार से अपना नाटक शुरू करना था। मैंने सोचा कि कोई भी थियेटर इतने अधिक ग्लैमर के साथ, अपनी चमक-दमक और ठाट-बाट के साथ अपने दर्पणों और बड़े बड़े स्फटिक के फानूसों के साथ चमका नहीं था। मोटे-मोटे कालीन बिछे फोयर में तथा ड्रेस सर्किल में सारी दुनिया मौजूद थी। बड़ी-बड़ी गुलाबी रत्न जड़ित पगड़ियां बांधे भारतीय युवराज, कलगी लगे टोपों में फ्रेंच और टर्की अधिकारी जो शराब घरों में कोनियाक की चुस्कियां लेते नज़र आ रहे थे। बाहर की ओर बड़े फोयर में संगीत की लहरियां बज रही थीं और महिलाएं अपनी पोशाकों को और अपने फर कोटों को सहेजती, संभालती घूम रही थीं और अपने संगमरमरी सफेद कंधों की झलक दिखा रही थीं। वे ऐसी महिलाओं का संसार था जिन्हें फोयर में बने रहने और ड्रेस सर्कल में मौजूद रहने की लत लगी हुई थी और वे चतुराई से वहां अपनी मौजूदगी दर्ज करातीं और चहकती फिरतीं। वे उन दिनों वाकई खूबसूरत और विनम्र हुआ करतीं।

फोलिज़ बेरजेरे में व्यावसायिक दुभाषिये भी थे जो अपनी टोपी पर दुभाषिया का बिल्ला लगाये थियेटर के फोयर में घूमते रहते। मैंने उनमें से प्रमुख दुभाषिये से दोस्ती कर ली जो बहुत सारी भाषाएं धड़ल्ले से बोल सकता था।

शाम को अपने प्रदर्शन के बाद मैं अपनी स्टेज की शाम वाली पोशाक पहन लेता और मज़ा मारने वालों की भीड़ में शामिल हो जाता। उनमें से मुझे एक ऐसी हसीना मिली जिसने मेरा दिल ही छीन लिया। इस तन्वंगी हसीना की गर्दन हंसनुमा थी और उसकी रंगत सफेद थी। वो छोकरी छरहरी थी और बेहद खूबसूरत थी। उसकी सुतवां नाक और लम्बी गहरी बरौनियां थीं। उसने काली मखमली पोशाक पहनी हुई थी और हाथों में सफेद दस्ताने थे। जब वह ड्रेस सर्कल की सीढ़ियां चढ़ने लगी तो उसने अपना एक दस्ताना गिरा दिया। मैंने लपक कर उसका दस्ताना उठा लिया।

"..माफ करना "उसने कहा

"काश, आप इसे एक बार फिर गिरातीं!" मैंने बदमाशी से कहा।

"माफ करना?"

तब मैंने महसूस किया कि उसे अंग्रेजी नहीं आती और मुझे फ्रेंच बोलनी नहीं आती। इसलिए मैं भागा-भागा अपने दुभाषिए दोस्त के पास गया,"उधर एक बला की खूबसूरत लड़की खड़ी है जिसने मेरी कामुकता जागृत कर दी है। लेकिन वह खासी महंगी लग रही है।"

उसने कंधे उचकाये,"एक लुइस से ज्यादा नहीं,"

"तक तो ठीक है," मैंने कहा, हालांकि उन दिनों एक लुइस भी अच्छी खासी रकम हुआ करती थी। मैंने सोचा, और ये थी भी।

मैंने दुभाषिए से एक पोस्टकार्ड की दूसरी तरफ कई फ्रेंच अभिव्यक्तियां लिखवा कर रख ली थीं जैसे जब से मैंने आपको देखा है, मैं होश खो बैठा हूं। इत्यादि जिन्हें मैं ऐसे पवित्र मौकों पर इस्तेमाल करने का इरादा रखता था। मैंने दुभाषिए से कहा कि वह शुरुआती धंधेदारी की बातें करवा दे और उसने हमारे लिए दूत का काम किया। इधर से उधर संदेशों का अदान प्रदान करता रहा। आखिर वह वापिस आया और कहने लगा,"सब कुछ तय हो गया है। एक लुइस में। लेकिन तुम्हें उसके घर तक जाने और वापिस आने का टैक्सी का किराया देना होगा।"

मैं एक पल के लिए चकराया,"वह रहती कहां है?" मैंने पूछा।

"किराये में दस सेंट से ज्यादा नहीं लगेंगे।"

दस सेंट्स की रकम दिल दहला देने वाली थी क्योंकि मैंने इस अतिरिक्त खर्च की उम्मीद ही नहीं की थी। मैंने मजाक में पूछा,"क्या वो पैदल नहीं चल सकती?"

"सुनो, लड़की आला दर्जे की चीज़ है। सिर्फ किराये के लिए लफड़ा मत करो।" उसने बताया।

मैं आखिर तैयार हो गया।

जब सब कुछ तय कर लिया गया तो मैं ड्रेस सर्कल की सीढ़ियों पर उसके पास से गुजरा। वह मुस्कुरायी और मैंने मुड़ कर उसकी तरफ देखा।..."आज शाम!"

"अच्छी बात है महाशय"

चूंकि हमारे प्रदर्शन पूरा होने में टाइम था, मैंने उससे वायदा किया कि हम प्रदर्शन के बाद वहीं मिलते हैं। मेरे दोस्त ने कहा,"तुम टैक्सी मंगाना और मैं तब तक लड़की लेकर आऊंगा, इससे टाइम बरबाद नहीं होगा।"

"टाइम बरबाद?"

हमारी गाड़ी जब बोलेवियर दे इतालियंस के पास गुजरी तो उसके चेहरे पर रौशनी और छाया के चहबच्चे अठखेलियां कर रहे थे। मैंने अपने पोस्टकार्ड पर लिखी फ्रेंच पर उड़ती सी निगाह डाली और उससे कहा..."आप मुझे बहुत अच्छी लगी हैं!"

वह अपने सफेद चमकीले दांत झलकाती हुई हँसी,"आप बहुत अच्छी फ्रेंच बोल लेते हैं।"

मैं भावुक हो कर आगे बोलता रहा," जब से मैंने आपको देखा है, मैं होश खो बैठा हूं।"

वह फिर हँसी और उसने मेरी फ्रेंच सुधारी...और समझाया कि मैं अनौपचारिक जबान का इस्तेमाल करूं और उसे तू या तुम कहूं। उसने इसके बारे में सोचा और फिर हँसी। तब उसने अपनी घड़ी की तरफ देखा। लेकिन घड़ी बंद हो गयी थी। तब उसने इशारे से बताया कि वह समय जानना चाहती है। और बताया कि ठीक बारह बजे उसे एक बहुत ही जरूरी एपाइंटमेंट पर जाना है।

"आज शाम तो नहीं," मैंने झिझकते हुए जवाब दिया।

"हां आज शाम ही"

"लेकिन आप तो आज की पूरी शाम के लिए इंगेज हैं मोहतरमा? पूरी रात के लिए"

वह अचानक बदहवास दिखने लगी,"ओह, नहीं, नहीं, पूरी रात के लिए नहीं।"

इसके बाद वह जिद पा आ गयी,"फिलहाल के लिए बीस फ्रांक!"

"ये क्या है?" उसने जोर दे कर जवाब दिया।

"आयम सौरी," मैंने कहा,"मेरा ख्याल है हम टैक्सी यहीं रुकवा दें।"

और तब टैक्सी को उसे फालिज़ बेरजेरे में वापिस छोड़ आने का भाड़ा दे कर मैं टैक्सी से उतर गया। उस समय मुझसे ज्यादा उदास, और मोहभंग आदमी कौन रहा होगा।

हमें फालिज़ बेरजेरे में दस हफ्ते तक प्रदर्शन करने थे क्योंकि हम बहुत अधिक सफल जा रहे थे लेकिन कार्नो साहब की दूसरी बुकिंग थी। मेरा वेतन छ: पाउंड प्रति सप्ताह था और मैं इसकी पाई पाई खर्च कर रहा था। मेरे भाई सिडनी का एक कज़िन, जो उसके पिता की ओर से उसका कोई लगता था, मेरे परिचय में आया। वह अमीरजादा था और तथाकथित उच्च वर्ग से नाता रखता था। जिन दिनों वह पेरिस में था, उसने मुझे खूब समय भी दिया और घुमाया भी। उसे भी स्टेज के कीड़े ने काटा था और वह स्टेज का इस हद तक दीवाना था कि उसने अपनी मूंछें तक मुंड़वा डालीं ताकि वह हमारी ही मंडली के किसी सदस्य जैसा लग सके और उसे बैक स्टेज में आने दिया जाये।

दुर्भाग्य से उसे इंगलैंड लौट जाना पड़ा, जहां मेरा ख्याल है कि उसके मां बाप ने उसकी अच्छी खासी सिकाई की और उसे उसके महान माता पिता ने दक्षिण अफ्रीका भेज दिया।

पेरिस में जाने से पहले मैंने सुना था कि हैट्टी की मंडली भी फालिज़ बेरजेरे में ही प्रदर्शन कर रही है, इसलिए मुझे पूरा यकीन था कि उससे वहां पर मुलाकात हो जायेगी। जिस रात मैं वहां पहुंचा तो मैं बैक स्टेज में गया और उसके बारे में पूछताछ की। लेकिन वहाँ पर एक बैले लड़की से मुझे पता चला कि उनकी मंडली एक हफ्ता पहले ही मास्को के लिए रवाना हो चुकी है। जिस वक्त मैं उस लड़की से बातें कर रहा था, सीढ़ियों से एक बहुत ही रूखी आवाज सुनायी दी,"तुरंत इधर आओ, अजनबियों से बात करने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?" ये लड़की की मां थी। मैंने समझाने की कोशिश की कि मैं तो सिर्फ अपनी एक मित्र के बारे में जानकारी लेना चाह रहा था लेकिन मां ने मेरी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया,"उस आदमी से बात करने की कोई ज़रूरत नहीं है। चलो एकदम अंदर आ जाओ।"

मैं उसकी इस बदतमीजी पर खासा खफा हुआ। अलबत्ता, बाद में मैं उसका अच्छा परिचित बन गया। वह भी उसी होटल में ही रहती थी जिसमें मैं रुका हुआ था। उसकी दो लड़कियां थीं जो फालीज़ बेरजेरे बैले की सदस्याएं थी। उनमें से छोटी वाली तेरह बरस की थी और मुख्य अदाकारा थी। वह सुंदर और विदुशी थी जबकि पंद्रह बरस की बड़ी वाली न तो सुंदर थी और न ही उसमें अक्कल ही थी। मां फ्रेंच थीं भरे पूरे शरीर की मालकिन थीं। उनकी उम्र चालीस बरस के आस पास थी। उन्होंने एक स्कॉटमैन से शादी रचाई थी और वह इंगलैंड में रहता था। जब हमने फालीज़ बेरजेरे में अपने प्रदर्शन शुरू किये तो वे मेरे पास आयीं और माफी मांगने लगीं कि वे इतने बेहूदे तरीके से पेश आयी थीं। ये एक बहुत ही शानदार दोस्ताना संबंध की शुरुआत थी। मुझे अक्सर उनके कमरे में चाय के लिए बुला लिया जाता। चाय वे लोग बेडरूम में ही बनाया करती थीं।

मैं अब जब पीछे मुड़ कर देखता हूँ तो मैं बेहद मासूम था। एक दोपहर को जब बच्चियां बाहर गयी हुई थीं और मामा और मैं अकेले थे उनका व्यवहार बदल गया और जब वे चाय छान रही थीं तो उनका बदन कांपने लगा। मैं उस वक्त अपने सपनों और अपनी उम्मीदों की बात कर रहा था, अपने प्यार और अपनी निराशाओं की बात कर रहा था, और वे बेहद भावुक हो गयीं। जब मैं मेज पर अपनी चाय का प्याला रखने के लिए उठा तो वे मेरे पास आयीं ... तुम कितने अच्छे हो। उन्होंने कहा और अपने हाथों में मेरा चेहरा भरते हुए मेरी आंखों में गहरे देखते हुए कहा...तुम इतने प्यारे बच्चे हो कि तुम्हारा दिल नहीं तोड़ा जाना चाहिये। उनकी निगाहें झुकती होती चलीं गयीं। अजीब तरह से और मंत्रबिद्ध हो गयीं और उनकी आवाज़ कांपने लगी...तुम्हें पता है, मैं तुम्हें अपने बच्चे की तरह प्यार करती हूँ। उन्होंने कहा और अब भी अपने हाथों में मेरा चेहरा भरे हुए थीं। तब हौले से उनका चेहरा मेरे चेहरे के पास आया और उन्होंने मुझे चूम लिया।

"थैंक यू," मैंने विनम्रता पूर्वक कहा और भोलेपन से उन्हें चूम लिया। वे अपनी बेधती आंखों से मुझे बांधे रहीं और उनके होंठ कांपते रहे। और उनकी आंखों में पनीली चमक आ गयी। तभी अचानक अपने आपको संभालते हुए वे एक कप चाय और ढालने के लिए चली गयीं और पल भर में उनका बात करने का तरीका बदल गया और मधुर हंसी से और हास्य बोध से उनका चेहरा दमकने लगा," तुम बहुत ही प्यारे लड़के हो...मैं तुम्हें बहुत पसंद करती हूँ।"

उन्होंने अपनी लड़कियों के बारे में मुझे कई रहस्य बताये,"छोटी वाली बहुत अच्छी लड़की है।" उन्होंने बताया,"लेकिन बड़ी वाली पर निगाह रखने की जरूरत होती है। वह समस्या बनती जा रही है।"

शो के बाद वे मुझे अपने बड़े वाले बेडरूम में खाने के लिए आमंत्रित करतीं। इस बेडरूम में वे और उनकी छोटी वाली लड़की सोया करते थे। अपने कमरे में लौटने से पहले मैं उन्हें और छोटी वाली को गुड नाइट किस करता। उसके बाद मुझे एक छोटे वाले कमरे से गुज़र कर जाना पड़ता जहाँ पर बड़ी वाली सोती थी। एक रात जब मैं उस कमरे से हो कर गुज़र रहा था तो वह एकदम मेरे पास आ गयी और फुसफुसा कर बोली,"रात को अपने कमरे का दरवाजा खुला रखना। जब परिवार सो जायेगा तो मैं तुम्हारे कमरे में आऊंगी।" मेरा यकीन करें या न करें, मैंने उसे हिकारत से उसके बिस्तर पर धकेला और लपक कर कमरे से बाहर आया। फालिस बेरजेरे में उनके अंतिम प्रदर्शन के बाद मैंने सुना था कि उनकी बड़ी वाली लड़की, जो मुश्किल से पन्द्रह बरस की हुई थी, साठ बरस के एक मोटे से जर्मन डॉग ट्रेनर के साथ भाग गयी थी।

लेकिन मैं उतना भोला नहीं था जितना दिखता था। अपनी मंडली के साथियों के साथ रातों में अक्सर मैं वेश्यालयों के चक्कर काटता और वहां वे सब हरकतें करता जो जवान लोग करते हैं। एक रात, कई पैग चढ़ा लेने के बाद, मैं एनी स्टोन नाम के एक भूतपूर्व लाइट हैवी वेट ईनामी फाइटर के साथ भिड़ गया। ये लफड़ा रेस्तरां में शुरू हुआ। और जब वेटरों ने तथा पुलिस ने हमें अलग किया तो वह बोला,"मैं तुम्हें होटल में देख लूंगा।" हम दोनों एक ही होटल में ठहरे हुए थे। उसका कमरा मेरे कमरे के ऊपर था। सुबह चार बजे मैं जब अपने होटल में लौटा तो मैंने उसका दरवाजा खटखटाया।

"आ जाओ," वह जल्दी से बोला," और अपने जूते उतार दो ताकि कोई शोर शराबा न हो।"

जल्दी ही हम छाती तक नंगे हो गये और एक दूसरे के सामने आ गये। हम काफी देर तक एक दूसरे को हिट करते रहे और एक दूसरे के वार भी बचाते रहे। इसी में मानो सदियां लग गयीं। कई बार उसने सीधे ही मेरी ठुड्डी पर वार किया, लेकिन कोई असर नहीं हुआ। "मैंने सोचा, तुम पंच मारोगे," मैं ताना मारा। उसने एक छलांग लगाई लेकिन उसका वार खाली गया। और उसका सिर दीवार से जा टकराया। वह अपने आप ही पस्त हो चला था। मैंने उसे खत्म करने की सोची, लेकिन मेरे पंच कमजोर थे। उसे खतरनाक ढंग से हिट कर सकता था, लेकिन मेरे पंच के पीछे जोर नहीं था। अचानक उसने जोर से मेरे मुंह पर एक ज़ोर का घूंसा मारा, जिससे मेरे आगे के दांत हिल गये, और इससे मेरा तन बदन गुस्से के मारे जलने लगा।"...बहुत हो गया," मैंने कहा,"मैं अपने दांत नहीं गंवाना चाहता।" वह मेरे ऊपर आया और मुझसे लिपट गया। और तब शीशे में देखने लगा। मैंने उसका चेहरा कुतर कर छलनी कर दिया था। मेरे हाथ इतने सूज गये थे मानों दस्ताने पहन रखे हों। छत पर, दीवारों पर और परदों पर खून के दाग नज़र आ रहे थे। मैं नहीं जानता, खून सब जगह कैसे पहुंच गया था।

रात को खून मेरे मुंह के पास से सरकता हुआ मेरे गरदन तक आ पहुँचा था। सुबह के वक्त जो नन्हा छोकरा जो मेरे लिए चाय का प्याला ले कर आता था, ये देख कर चिल्लाया। उसने सोचा कि मैंने आत्महत्या कर ली है। और उसके बाद मैंने किसी से झगड़ा नहीं किया।

एक रात दुभाषिया मेरे पास आया और बोला कि एक प्रसिद्ध संगीतकार मुझसे मिलना चाहता है, और क्या मैं उससे बॉक्स में जाना चाहूँगा?

आमंत्रण रोचक था क्योंकि उनके साथ वहाँ पर एक बहुत ही खूबसूरत, भव्य महिला बैठी हुई थीं जो रूसी बैले की सदस्या थी। दुभाषिये ने मेरा परिचय कराया। उन महानुभाव ने कहा कि वे मेरा काम देख कर बहुत खुश हुए हैं और जानना चाहते हैं कि मेरी उम्र क्या है। इन तारीफ भरे शब्दों को सुन कर मैं सम्मानपूर्वक झुका और बीच-बीच में मैं चोर निगाहों से उनकी मित्र को भी कनखियों से देख लेता था,"आप जन्मजात एक संगीतकार और नर्तक हैं।"

यह महसूस करते हुए कि इस तारीफ के बदले शब्द कोई मायने नहीं रखते और जवाब में सिर्फ मुस्कुराया ही जा सकता है, मैंने दुभाषिये की तरफ देखा और झुका। संगीतकार महोदय उठे और मुझसे हाथ मिलाया, तब मैं भी खड़ा हो गया," हां," उन्होंने मेरा हाथ हिलाते हुए कहा,"आप एक सच्चे कलाकार हैं।"

जब वे लोग चले गये तो मैं दुभाषिये से पूछा,"उनके साथ वह महिला कौन थी?"

"वे एक रूसी बैले डांसर है मिस...।" यह एक बहुत ही लम्बा और मुश्किल नाम था। "और इस महाशय का क्या नाम था?" मैंने पूछा।

"डेबुसी," उसने जवाब दिया,"वे एक विख्यात कम्पोजर हैं।"

"मैंने तो उनका नाम कभी नहीं सुना," मैंने टिप्पणी की।

ये बरस मैडम स्टेनहैल के कुख्यात स्कैंडल और मुकदमेबाजी का बरस था। उन पर मुकदमा चला था और उन्हें अपने पति की हत्या को दोषी नहीं पाया गया था। ये बरस सनसनीखेज "पॉम पॉम डांस" का था जिसमें जोड़े कामुकता का प्रदर्शन करते हुए अशोभनीय तरीके से गोल गोल घूम कर नृत्य करते थे। ये बरस व्यक्तिगत आय पर प्रति पाउंड पर लगाये गये छ: पेंस के अविश्वसनीय दिमाग खराब करने वाले कर का था। इसी बरस डेबुसी ने इंगलैंड में अपना फ्रेंच नाटक प्रस्तुत किया जिसे जनता ने नकार दिया और दर्शक हॉल से बाहर निकल गये।

भारी मन के साथ मैं इंगलैंड लौटा और प्रदेशों के दौरे पर निकल गया। ये पेरिस के कितना विपरीत था। उत्तरी शहरों में वे मनहूसयित भरी रविवार की शामें। सब कुछ बंद, और सब कुछ याद दिलासी वह उदासी भी जो कामातुर युवकों और पतुरियों के साथ-साथ चलती। ये अंधियारी हाई स्ट्रीट में और पिछवाड़े की गलियों में गश्त लगाते घूमते रहते। रविवारों की शामों को यही उनका टाइम पास होता था।

इंगलैंड में मुझे वापिस आये छ: माह बीत चुके थे और मैं अपने सामान्य रूटीन का आदी हो चला था। और तभी लंदन कार्यालय से एक ऐसी खबर आयी जिसने मुझे रोमांच से भर दिया। मिस्टर कार्नो ने खबर दी कि द' फुटबाल मैच के दूसरे दौर में मुझे मिस्टर हेरी वैल्डन की जगह लेनी है। अब मुझे महसूस हुआ कि अब मेरे सितारे बुलंदी पर हैं। अब पत्ते मेरे हाथ में थे। हालांकि मैं अपनी रिपेटरी में ममिंग बर्डस् और दूसरे नाटकों में सफलता के झंडे गाड़ चुका था, वे सारी चीजें द फुटबाल मैच में मुख्य भूमिका निभाने के सामने कुछ भी नहीं थीं। और सबसे बड़ी बात तो ये थी कि हमें ऑक्सफोर्ड से शुरुआत करनी थी। ये लंदन का सबसे महत्त्वपूर्ण संगीत हॉल था। हम सबसे बड़ा आकर्षण होने जा रहे थे। और ये पहली बार होने जा रहा था कि पोस्टरों में और विज्ञापनों आदि में मेरा नाम सबसे ऊपर जाता। ये बहुत ऊंची छलांग थी। अगर मैं ऑक्सफोर्ड में सफल हो जाता तो इससे मैं एक नया नाम बनता और मैं तब इस स्थिति में होता कि और अधिक पगार की मांग कर सकता था और एक दिन ऐसा भी आ सकता था कि मैं अपने खुद के स्कैच लिखता। दरअसल, इससे हर तरह की शानदार योजनाओं के द्वार खुलते थे। चूंकि कमोबेश उसी कास्ट को ही द' फुटबाल मैच के लिए रखा जा रहा था, इसलिए हमें सिर्फ एक ही हफ्ते की रिहर्सल की ज़रूरत थी। मैंने इस बारे में बहुत ज्यादा सोचा कि मैं नाटक में अपनी भूमिका कैसे निभाऊंगा। हैरी वेल्डन लंकाशायर उच्चारण में बोलते थे, मैंने तय किया कि मैं इसे कॉकने शैली में करूंगा।

लेकिन पहली ही रिहर्सल में मुझे स्वर यंत्र की गड़बड़ी का दौरा पड़ गया। मैंने अपनी आवाज़ को बचाने के लिए सब कुछ करके देख डाला, फुसफुसा कर बात की, भाप को अपने भीतर लिया, गले पर स्प्रे किया, और तब तक लगा रहा जब तक चिंता ने मुझसे मेरी कोमलता और सारी कॉमेडी छीन ली।

नाटक की पहली रात मेरे गले की नस-नस तनी हुई रस्सी की माफिक खिंची हुई थी। लेकिन मेरी आवाज़ सुनी नहीं जा सकी। कार्नो बाद में मेरे आस-पास मंडराते रहे। उनके चेहरे पर निराशा और हिकारत के मिले जुले भाव थे,"कोई भी तो तुम्हारी आवाज़ नहीं सुन सका।" वे झिड़कते हुए बोले, लेकिन मैंने उन्हें आश्वस्त किया कि अगली रात मेरी आवाज़ ज़रूर बेहतर हो जायेगी। लेकिन अगली रात भी वही हाल रहा। सच तो ये है कि अगली रात वह और खराब हो चुकी थी। इसका कारण ये था कि मैंने आवाज़ के साथ इतनी जोर आजमाइश कर ली थी कि मुझे खतरा लगने लगा कि कहीं मेरी आवाज़ पूरी तरह से चली ही न जाये। अगली रात मेरी भी मेरा यही हाल रहा। नतीजा यह हुआ कि पहले हफ्ते के बाद ही प्रदर्शनों का पर्दा गिर गया। ऑक्सफोर्ड में प्रदर्शन के मेरे सारे सपने चूर चूर हो चुके थे और मेरी निराशा का यह आलम था कि मैं एन्फ्लूंजा का मरीज हो कर बिस्तर पर पड़ गया।

हैट्टी से मिले मुझे एक बरस से ज्यादा हो गया था। फ्लू के प्रकोप के बाद कमज़ोरी और उदासी के आलम में मुझे एक बार फिर उसका ख्याल आया और मैं एक रात देर को कैम्बरवैल में उसके घर की तरफ घूमता-घामता पहुँच गया। लेकिन घर खाली था और दरवाजे पर `किराये के लिए खाली' का बोर्ड लटका हुआ था। मैं बिना किसी खास मकसद के गलियों में भटकता रहा। अचानक रात के अंधेरे में से एक आकृति उभरी, सड़क पार करते हुए और मेरी तरफ आते हुए।

"चार्ली, आधी रात को तुम यहाँ क्या कर रहे हो?" ये हैट्टी थी। उसने काला सील की खाल वाला कोट पहना हुआ था और सील की खाल का ही गोल हैट पहना हुआ था।

"मैं तुमसे मिलने आया था,' मैंने मज़ाक में कहा।

वह मुस्कुरायी,"बहुत कमज़ोर हो गये हो तुम?"

मैंने उसे बताया कि मैं अभी ही फ्लू से उठा हूँ। वह अब सत्रह बरस की हो रही थी और खासी सुंदर नज़र आ रही थी और उसने कपड़े भी काफी सलीके से पहने हुए थे।

"लेकिन सवाल ये है कि तुम इस वक्त यहाँ क्या कर रही हो?" पूछा मैंने।

"मैं अपनी एक सहेली से मिलने आयी थी और अब अपने भाई के घर जा रही हूं। आना चाहोगे तुम मेरे साथ?" उसने जवाब दिया।

रास्ते में उसने बताया कि उसकी बहन ने एक अमरीकी करोड़पति फ्रैंक से शादी कर ली है और वे नाइस में रह रहे हैं। वह सुबह लंदन छोड़ कर उनसे मिलने के लिए जा रही है।

उस रात में उसे ठगा-सा खड़ा देखता और वह अपने भाई के साथ इठला-इठलाकर नाचती रही। वह अपने भाई के साथ मूर्खतापूर्ण और ठगिनी की तरह एक्टिंग कर रही थी। और मैं, अपने आप के बावजूद, इस भावना से अपने आपको मुक्त नहीं कर पा रहा था कि मेरी जुस्तजू उसके लिए ज़रा सी भी कम नहीं हुई थी। अगर वह किसी साधारण जगह से ताल्लुक रखती होती? किसी भी और सामान्य लड़की की तरह? इस ख्याल ने मुझे उदास कर दिया और मैं उसकी तरफ वस्तुपरक निगाहों से देखता रह गया।

उसके शरीर में भराव आ गया था और मैंने उसकी छातियों के उभारों की तरफ देखा और पाया कि उनकी गोलाइयां छोटी थीं और बहुत ज्यादा आकर्षक नहीं थी। अगर मेरी हैसियत हुई तो क्या मैं उससे शादी कर पाऊंगा? नहीं, मैं किसी से भी शादी नहीं करना चाहता था।

उस ठंडी और चमकीली रात को मैं जब उसके साथ घर की तरफ आ रहा था तो मैं ज़रूर ही बहुत अधिक उदास तरीके से तटस्थ रहा होऊंगा क्योंकि मैंने उससे इस बात की आशा व्यक्त की कि उसका जीवन बहुत सुखी और शानदार होगा।

"तुम इतने उदास और टूटे लग रहे थे कि मैं एकदम रोने रोने को थी।" उसने कहा था।

उस रात मैं एक विजेता की तरह घर लौटा क्योंकि मैंने उसे अपनी उदासी से छू लिया था और अपने व्यक्तित्व को महसूस करा दिया था।

कार्नो ने मुझे फिर से ममिंग बर्डस् में रख लिया था और विडंबना ये कि मेरी आवाज़ को पूरी तरह से ठीक होने में एक महीना लग गया था। द' फुटबाल मैच के बारे में मेरी जो निराशा थी, मैंने तय किया कि अब उसे हावी नहीं होने दूंगा। लेकिन एक ख्याल भी मुझे सताये जा रहा था कि शायद मैं वैल्डन की बराबरी करने या उनकी जगह लेने के काबिल नहीं था। और इससे सबके पीछे फोरेस्टर थियेटर में मेरी असफलता ही काम कर रही थी। अब तक चूंकि मेरा आत्म विश्वास पूरी तरह से लौटा नहीं था, जिस भी नये नाटक में मैंने मुख्य भूमिका निभायी, वह डर का एक ट्रायल था। और अब सबसे अधिक चौंकाने वाला और अत्यधिक निर्णायक दिन आ गया जब मैंने मिस्टर कार्नो को बताया कि मेरा करार खत्म होने को है और मुझे वेतन में बढ़ोतरी चाहिये।

कार्नो जिसे भी पसंद नहीं करते थे उसके प्रति क्रूर और सनकी हो सकते थे। चूंकि वे मुझे पसंद करते थे इसलिए मैंने उनके व्यक्तित्व के इस पक्ष के दर्शन नहीं किये थे लेकिन वे सचमुच बहुत ही बदतमीज़ी भरे तरीके से चूर-चूर कर सकते थे। अपने किसी कामेडियन के प्रदर्शन के दौरान अगर उन्हें वह कामेडियन पसंद नहीं आता था तो वे विंग्स में खड़े हो कर इतने ज़ोर से नाक सिनकने का नाटक करते थे कि सबको सुनायी दे जाये। वे अक्सर ऐसा करने लगते थे कि कामेडियन मंच छोड़ कर ही आ जाता था और उसके साथ हाथा-पाई करने लगता था। वह आखिरी बार थी जब उन्होंने इस तरह की हरकत की थी और अब मैं उनके पास वेतन में बढ़ोतरी के लिए भिड़ने जा रहा था।

"ठीक है," उन्होंने रूखेपन के साथ मुस्कुराते हुए कहा, "तुम वेतन में वृद्धि चाहते हो और थियेटर सर्किट उसमें कटौती करना चाहता है।" उन्होंने कंधे उचकाये,"ऑक्सफोर्ड म्यूज़िक हाल के हंगामे के बाद हमारे पास सिर्फ शिकायतें ही शिकायतें हैं। उनका कहना है कि कम्पनी उस लायक नहीं है... दो कौड़ी का क्रैच क्राउड§

कार्नो की मंडली में हमें कम से कम से छ: महीने लगते थे कि हम परफैक्ट टैम्पो विकसित कर पाते और तब तक उसे क्रैच क्राउड के नम से पुकारा जाता था।

"लेकिन उसके लिए मुझे ही तो दोषी नहीं ठहरा सकते," मैंने जवाब दिया।

"लेकिन वे तो दोषी ठहराते हैं।" उनका जवाब था। वे चुभती निगाहों से मेरी तरफ घूर रहे थे।

"उन्हें क्या शिकायत है?" पूछा मैंने।

उन्होंने अपना गला खखारा और फर्श पर देखने लगे,"उनका कहना है कि तुम सक्षम नहीं हो।"

हालांकि उनकी यह टिप्पणी सीधे मेरे पेट में जा कर शूल की तरह चुभी, इससे मुझे गुस्सा भी आया, लेकिन मैंने शांत स्वर में जवाब दिया,"ठीक है, दूसरे लोग ऐसा नहीं सोचते। और वे मुझे उससे ज्यादा देने को तैयार हैं जितना मुझे यहाँ मिल रहा है।" ये सच नहीं था। मेरे सामने कोई प्रस्ताव नहीं था।

"उनका कहना है कि शो फालतू है और कामेडियन दो कौड़ी का है। देखो," उन्होंने फोन उठाते हुए कहा,"मैं एक स्टार को फोन करूंगा, बेरमाँडसे को, और तुम उनसे अपने आप सुन लेना।... मेरा ख्याल है पिछले हफ्ते तुम्हारा शो बहुत ही खराब रहा था।" उन्होंने फोन पर बात की।

"वाहियात..." फोन पर आवाज आयी।

कार्नो ने खींसें निपोरी,"आप इसे किस श्रेणी में डालेंगे?"

"दो कौड़ा का...शो"

"और चैप्लिन के बारे में क्या ख्याल है? हमारे प्रधान कामेडियन? क्या उसका काम भी ठीक नहीं?"

"वह तो बू मारता है।"

कार्नो साहब ने फोन मुझे थमा दिया,"अपने आप ही सुन लो..."

मैं फोन लिया। "...हो सकता है वह बू मारता हो लेकिन उससे आधा भी नहीं जितना आपका सड़ांध भरा थियटर बू मारता है।" मैंने जवाब दिया।

कार्नो साहब की मुझे औकात दिखाने की तरकीब काम नहीं आयी। मैंने उनसे कहा कि अगर वे भी मेरे बारे में यही राय रखते हैं तो करार का नवीकरण करने का कोई मतलब नहीं है। कई मायनों में कार्नो बहुत ही काइयां आदमी थे। लेकिन वे मनोवैज्ञानिक नहीं थे। बेशक मैं बू मारता था तो भी ये कार्नो साहब को शोभा नहीं देता था कि फोन की दूसरी तरफ से किसी और से ये कहलवायें। मुझे पांच पाउंड मिल रहे थे और हालांकि मेरा आत्म विश्वास डगमाया हुआ था, फिर भी मैं छ: की मांग कर रहा था। मेरी हैरानी का ठिकाना नहीं रहा जब कार्नो साहब ने मुझे छ: पाउंड देना स्वीकार कर लिया और मैं एक बार उनकी निगाहों में राज दुलारा बन गया।

आल्फ रीव्ज़, जो कार्नो साहब की अमेरिकी कम्पनी में मैनेजर थे, इंगलैंड वापिस आये और उन्होंने ये अफवाह फैला दी कि वे अपने साथ अमेरिका ले जाने के लिए किसी प्रधान कामेडियन की तलाश में हैं।

ऑक्सफोर्ड म्यूजिक हॉल के उस बड़े हादसे के बाद से मैं अमेरिका जाने के ख्यालों से भरा हुआ था। अकेले जा कर थ्रिल और रोमांच के लिए नहीं, बल्कि वहाँ जाने का मतलब हमेशा नयी आशाएं और नयी दुनिया में एक नयी शुरुआत। सौभाग्य से, मैं जिस नये नाटक स्केटिंग में प्रमुख भूमिका निभा रहा था, बरमिंघम में सफलता के झंडे गाड़ रहा था, और जब मिस्टर रीव्ज़ वहाँ आ कर कम्पनी में शामिल हुए तो मैंने अपनी भूमिका को बेहतर बनाने में जान लड़ा दी और इसका नतीजा ये हुआ कि रीव्ज़ साहब ने कार्नो साहब को तार भेजा कि उन्हें अमेरिका के लिए अपना कामेडियन मिल गया है। लेकिन कार्नो साहब ने मेरे लिए और ही मंसूबे बांधे हुए थे। इस वाहियात खबर ने मुझे हफ्तों तक पेसोपेश में डाले रखा जब तक कि वे वॉव वॉव नाम के नाटक में दिलचस्पी नहीं लेने लग गये। ये नाटक सीक्रेट सोसाइटी में किसी सदस्य को लिये जाने के बारे में प्रहसन था। मुझे और रीव्ज़ साहब को ये नाटक वाहियात लगा, बिना सिर पैर का, बिना किसी खासियत के लगा, लेकिन कार्नो साहब पर इसका नशा सवार था और वे अड़ गये कि अमेरिका सीक्रेट सोसाइटियों से भरा पड़ा है। और उन पर इस तरह का कटाक्ष करने वाला नाटक ज़रूर सफल होगा। मेरी खुशी और राहत का ठिकाना न रहा जब कार्नो साहब ने मुझे ही इसकी प्रधान भूमिका के लिए चुना। अमेरिका के लिए वॉव वॉव।

मुझे अमेरिका जाने के लिए इसी तरह के किसी मौके की जरूरत थी। इंगलैंड में मुझे लग रहा था कि मैं अपनी संभावनाओं के शिखर पर पहुँच चुका हूँ और इसके अलावा, वहाँ पर मेरे अवसर अब बंधे बंधाये रह गये थे। आधी-अधूरी पढ़ाई के चलते अगर मैं म्यूजिक हॉल के कामेडियन के रूप में फेल हो जाता तो मेरे पास मजदूरी के काम करने के भी बहुत ही सीमित आसार होते।

अमेरिका में संभावनाओं का अंनत आकाश था।

यात्रा शुरू करने से पहले की रात मैं लंदन के वेस्ट एंड में घूमता रहा, लीसेटर स्क्वायर, कोवेन्टरी स्ट्रीट, द माल, और पिकाडिल्ली में रुका। उस समय मेरे मन में उदासी भरी भावना थी कि ये आखिरी बार होगा कि मैं लंदन घूम रहा हूँ क्योंकि मैं मन ही मन तय कर चुका था कि मुझे स्थायी रूप से अमेरिका जाकर ही बसना है। मैं आधी रात तक दो बजे तक भटकता रहा, सुनसान गलियों और मेरी खुद की उदासी की कविता में डूबता उतराता।

मैं विदा के दो शब्द कहने से बच रहा था। अपने नातेदारों से और दोस्तों से बिछुड़ते समय आदमी जो कुछ भी महसूस करता है, उनके द्वारा विदाई दिये जाने के बारे में, उसमें और धंसता ही है। मैं सुबह छ: बजे ही उठ गया था। इसलिए मैंने इस बात की ज़रूरत नहीं समझी कि सिडनी को जगाऊं। लेकिन मैंने मेज पर एक पर्ची छोड़ दी,"अमेरिका जा रहा हूँ। तुम्हें लिखता रहूँगा। प्यार। चार्ली।"

………

आठ

हमें यात्रा करते हुए बारह दिन हो चुके थे, और हमारा अगला पड़ाव क्यूबेक था। बेहद खराब मौसम और चारों तरफ लहराता हुआ महासमुद्र। तीन दिन तक तो हम टूटी पतवार लेकर पड़े रहे, इसके बावज़ूद मैं तो एक दूसरी ही दुनिया में जाने के विचार से उल्लसित था और अपने आपको बहुत हल्का महसूस कर रहा था। मवेशियों वाली नाव पर हम कनाडा हो कर जा रहे थे। नाव पर गाय, बैल, भेड़, बकरी भले ही न हों, पर चूहे ढेर सारे थे और रह-रह कर वे बड़ी हेकड़ी से मेरी बर्थ पर आ धमकते और जूता चलाने पर ही भागते।

सितंबर की शुरुआत थी और न्यू फाउंडलैंड हमने कोहरे में पार किया। आखिर मुख्य भूमि के दर्शन हुए। फुहार पड़ रही थी और दिन में भी सेंट लांरेस नदी के तट निर्जन नज़र आ रहे थे। नाव से क्यूबेक उस चहारदीवारी की तरह लग रहा था जहाँ हैमलेट का भूत चला करता होगा। मेरा मन स्टेट्स के बारे में कुतूहल से भर उठा।

पर जैसे-जैसे हम टोरंटो की ओर बढ़ते गए, पतझड़ के रंगों से देश और खूबसूरत होता चला गया और मेरी उम्मीदें पहले से ज्यादा रंगीन हो उठीं।

टोरंटो में हमने गाड़ी बदली और अमेरिकी आप्रवासन के दफ्तर से होकर गुज़रे। आखिरकार रविवार सुबह दस बजे हम न्यूयार्क आ पहुँचे। टाइम्स स्क्वायर में जब हम टैक्सी से उतरे तो कुछ निराशा सी हुई। सड़कों और फुटपाथों पर अखबार इधर-उधर उड़ रहे थे। ब्रॉडवे बेरौनक दिख रहा था, मानो फूहड़-सी कोई औरत अभी-अभी बिस्तर से उतरी हो। प्राय: हरेक नुक्कड़ पर ऊंची ऊँची कुर्सियां थीं जिसमें जूतों के साँचे लगे थे और लोग बिना कोट वगैरह के, केवल कमीज़ पहने हुए आराम से बैठ कर अपने जूते पॉलिश करवा रहे थे। देख कर लगा, मानो वे लोग सड़क पर ही शौच आदि से निवृत्त हुए हों। कई लोग अजनबियों सरीखे लगे जो फुटपाथों पर यूं ही खड़े थे मानो अभी-अभी रेलवे स्टेशन से बाहर निकले हों और अगली गाड़ी के आने तक का समय काट रहे हों।

जो भी हो, ये न्यू यार्क था, रोमांचक, अक्कल चकरा देने वाला और कुछ-कुछ डरावना। दूसरी तरफ पेरिस ज्यादा दोस्ताना था। मैं फ्रेंच भले ही नहीं बोल पाता था पर बिस्तास और कैफे वाले पेरिस ने हरेक नुक्कड़ पर मेरा स्वागत किया था। लेकिन न्यू यार्क बड़े कारोबार की जगह थी। गर्व से भरी निष्ठुर, ऊँची-ऊँची आकाश को छूने वाली इमारतों को आम आदमी की तकलीफ से कोई सरोकार नहीं था। सैलून बार में भी ग्राहकों के बैठने की कोई जगह नहीं थी। सिर्फ पीतल की लम्बी रेलिंग लगी हुई थी जिस पर आप पैर टिका सकें, और खाने की नामी जगहें, बेशक साफ-सुथरी थी, सफेद संगमरमर लगे हुए थे वहां लेकिन ये जगहें भी मुझे बेजान और अस्पतालनुमा लगीं।

फोर्टी-थर्ड स्ट्रीट से कुछ दूर ब्राउन स्टोन हाउसेस में मैंने पिछवाड़े का एक कमरा लिया, जहाँ अब पुरानी टाइम्स बिल्डिंग खड़ी है। घर बड़ा ही मनहूस और गंदा था और इसे देख कर मुझे लंदन और अपने छोटे से फ्लैट की याद सताने लगी। बेसमेंट में धुलाई और इस्तरी का कारोबार चलता था और हफ्ते के दिनों में भाप के साथ ऊपर उड़कर आती इस्तरी होते कपड़ों की बू मेरी परेशानियों को और बढ़ाती।

उस पहले दिन मैंने अपने आपको बहुत ही अधूरा पाया। किसी रेस्तरां में जाना और कुछ ऑर्डर करना तो अग्नि परीक्षा थी क्योंकि मेरा अंग्रेज़ी उच्चारण उनसे अलग था और मैं धीरे-धीरे बोलता था। कई लोग इतने फर्राटे से और झटका देकर बोलते थे कि मुझे इस डर से असुविधा होने लगती कि मैं बोलने चला तो हकलाने लगूंगा और उनका भी समय बरबाद होगा।

ये चमक-दमक और ये रफ्तार मेरे लिए नई थी। न्यू यॉर्क में छोटे से छोटे कारोबार वाला आदमी भी फुर्ती से काम करता है। जूता पॉलिश करने वाला लड़का पॉलिश वाले कपड़े को फुर्ती से झटकता है, बार में बियर देने वाला ही वैसी ही फुर्ती से बार की चमचमाती सतह पर बीयर आपकी ओर सरका देगा। अण्डे की जर्दी मिले माल्ट देते वक्त सोडा क्लर्क किसी कूदते फांदते कलाबाज की तरह काम करता है। एक ही बार में वह एक गिलास झटकता है और जो भी चीज़ें डालनी हैं, उन पर टूट पड़ता है। वनीला फ्लेवर, आइसक्रीम का छोटा-सा टुकड़ा, दो चम्मच माल्ट, कच्चा अण्डा, बस एक बार में फोड़ डाला, दूध मिलाया, फिर इन सबको लेकर एक बर्तन में ज़ोर से हिला कर मिलाया और लीजिए पेश है। ये सब कुछ एक मिनट से भी कम समय में।

एवेन्यू पर उस पहले दिन कई लोग वैसे नज़र आए जैसा मैं महसूस कर रहा था - अकेले और कटे-फटे। इनमें से कुछ ऐसे हाव-भाव में थे जैसे वही उस जगह के मालिक हों। कई तो बड़े ढीठ और बदमिजाज थे मानो सज्जनता और विनम्रता से पेश आएंगे तो कोई उन्हें कमज़ोर समझ लेगा। लेकिन शाम को गर्मियों के कपड़े पहनी हुई भीड़ के साथ जब मैं ब्रॉडवे होकर जा रहा था तो जो देखा उससे मेरा मन आश्वस्त हो गया। कड़ाके की सितंबर के ठंड के बीच हमने इंगलैण्ड छोड़ा था और झुलसा देने वाली अस्सी डिग्री की गर्मी में न्यू यार्क पहुँचे थे। अभी मैं चल ही रहा था कि बिजली की ढेर सारी रंग-बिरंगी बत्तियों से ब्रॉडवे जगमगाने लगा और बेशकीमती जवाहरात की तरह चमकने लगा। गर्मी की उस रात में मेरा नज़रिया बदला और अमेरिका का नया मतलब मेरे ज़ेहन में उतरता चला गया। बहुमंज़िला इमारतों, चमकती खुशनुमा रोशनियों और गुदगुदा देने वाले विज्ञापनों ने मेरे मन में आशा और रोमांच की हलचल मचा दी। यही है - मैंने अपने आपसे कहा - मैं इसी जगह से वास्ता रखता हूँ।

ब्रॉडवे पर लगता था हर कोई किसी न किसी कारोबार में है: अभिनेता, हास्य कलाकार, मजमे वाले, सरकस में काम करने वाले और मनोरंजन वाले हर जगह थे। सड़क पर, रेस्तराओं में, होटलों और डिपार्टमेंटल स्टोरों में हर आदमी धंधे की बात कर रहा था। थिएटर मालिकों के नाम जहाँ-तहाँ सुनने को मिल जाते: ली शुबर्ट, मार्टिन बैक, विलियम मॉरिस, पर्सी विलियम्स, क्ला एंड इरलैंगर, फ्रॉइमैन, सुलिवन एण्ड कान्सिडाइन, पैंटेजेज़। घरेलू नौकरानी हो, लिफ्ट वाला हो, वेटर हो, टैक्सीवाला हो, बारमैन हो, दूध वाला हो या बेकरी वाला, जिसे देखो, शो मैन की तरह बात करता। राह चलते लोगों की बातचीत के सुनायी पड़ते अंश भी वही। बूढ़ी हो चली माताएं, दिखने में किसानों की बीवियों की तरह और बातें सुनिए तो - वह अभी-अभी वेस्ट में पैंटेज़ेज के लिए काम करके लौटा है। एक दिन में तीन-तीन शो थे। सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो बड़ा हास्य कलाकार बनेगा।

एक दरबान कह रहा है,"तुमने विंटर गार्डन में जॉनसन को देखा?"

"जरूर, उसने जेक के शो की लाज रख ली।"

अखबारों का एक पूरा पन्ना हर दिन थिएटर को समर्पित होता था जिसमें रेसकोर्स वाले घोड़ों के रेसिंग चार्ट की मानिंद खबरें होतीं। हास्य कला में किसने कितना नाम कमाया, किस पर अधिक तालियां बजीं, इसके आधार पर रेस के घोड़ों की तरह पहले, दूसरे और तीसरे स्थान दिए जाते थे। अभी इस दौड़ में हम शामिल नहीं हुए थे और मुझे इस बात की चिंता रहती कि चार्ट में हम किस पोजीशन पर आएंगे। 56 हफ्तों तक हमारा कार्यक्रम पर्सी विलियम्स सर्किट में था। इसके बाद और कोई बुकिंग नहीं थी। हमारा अमेरिका में टिकना इसी कार्यक्रम के परिणाम पर निर्भर था। नहीं चले, तो इंगलैंड लौट जाएंगे।

हम लोगों ने एक रिहर्सल रूम लिया और द' वाउ वाउज़ की एक हफ्ते तक रिहर्सल की। हमारे दल में ड्ररी लेन का प्रसिद्ध बूढ़ा सनकी जोकर वाकर था। सत्तर पार कर चुका था। आवाज़ तो बड़ी गंभीर थी पर रिहर्सल में पता चला कि साफ-साफ तो बोल ही नहीं पाता। ऊपर से प्लॉट का एक बड़ा हिस्सा दर्शकों को समझाने का काम उसी को करना था। ऐसी कोई लाइन जैसे - मज़ाक बेहन्तहा डरावना होगा उससे बोला ही न जाए और वह कभी बोल पाया भी नहीं। पहली रात वह एब्लिब-एब्लिब बड़बड़ाया। बाद में यह एब्लिब ही रह गया, पर आखिर तक सही शब्द नहीं ही निकला।

अमेरिका में कार्नो का बड़ा नाम था। इसलिए बेहतरीन कलाकारों के कार्यक्रम में सबसे ज्यादा आकर्षण का केन्द्र हम ही होते थे। भले ही मुझे उस स्केच से नफरत थी, मैंने इसका भरपूर उपयोग किया। मुझे उम्मीद थी कि शायद यही वो चीज़ हो जाये जिसे कार्नो खालिस अमेरिका के लिए कहा करते थे।

पहली रात स्टेज पर आने से पहले मैं कितना नर्वस था, किस तकलीक और पसोपेश में था, मैं इसका बयान नहीं कर सकता और न ही इसका कि स्टेज के साइड में खड़े अमेरिकी कलाकार हमें देख रहे थे तो मुझ पर क्या बीत रही थी। इंगलैंड में मेरे पहले लतीफे पर ज़ोरदार ठहाके लगते थे और इससे पता चल जाता था कि बाकी की कॉमेडी कैसी चलेगी।

कैंप का सीन था, एक तंबू में चाय का कप लिए मैं प्रवेश करता हूं।

आर्ची (मैं) : गुड मार्निंग हडसन। मुझे थोड़ा-सा पानी चाहिए। देंगे ?

हडसन : जरूर, पर किसलिए

आर्ची : मैं नहाना चाहता हूँ।

(दर्शकों की ओर से एक हल्की आधी-अधूरी हँसी और फिर बेरुखी चुप्पी)

हडसन : रात की नींद कैसी रही, आर्ची?

आर्ची : अरे, मत पूछो। सपने में देखा, एक इल्ली मुझे दौड़ा रही है।

अब भी दर्शकों में वैसी ही मुर्दनगी। इस तरह हम बड़बड़ाते रहे और स्टेज के बगल में खड़े अमेरिकियों के थोबड़े और ज्यादा लटकते गए। लेकिन हमारे उस अंक को खत्म करने से पहले ही वे जा चुके थे।

ये स्केच बचकाना और नीरस था, और मैंने कार्नो को सलाह दी थी कि इससे शुरुआत न करें। हमारे पास दूसरे ज्यादा मज़ेदार स्केचेज थे जैसे स्केटिंग, द डैंडी थीव्स, द पोस्ट ऑफिस और मिस्टर पर्किंस, एम.पी. जो अमेरिकी दर्शकों को पसंद आते। लेकिन कार्नो अपनी ज़िद पर अड़े रहे।

जो भी कहिए, परदेस में नाकामी से तकलीफ तो होती ही है। हर रात ऐसे दर्शकों के सामने ह़ाजिरी बजाना वाकई दुष्कर काम था जो एक के बाद एक गुदगुदा देने वाली इंगलिश कॉमेडी के आगे बेरुखी से सन्नाटा ओढ़े बैठे रहें। स्टेज पर हमारा आना-जाना शरणार्थियों की तरह होता था। ये बेइज़्ज़ती हम लोगों ने छह हफ्ते तक झेली। दूसरे कलाकार हम लोगों से यूं अलग-थलग रहते थे जैसे हमें प्लेग हुआ हो। इस तरह से पटकनी खाने और ज़लील होने के बाद जब हम जाने के लिए स्टेज के पास खड़े हुए तो लगा मानो लाइन में खड़ा करके हम गोली मारी जानी है।

हालांकि मैं अपने आपको अकेला और ठुकराया हुआ महसूस करता था, फिर भी इस बात के लिए शुक्रगुजार था कि मैं अकेला रह रहा हूँ। कम से कम दूसरों के साथ अपनी बेइज़्ज़ती शेयर तो नहीं करनी पड़ती थी। दिन में मैं लंबी अंतहीन वीथियों पर चहलकदमी किया करता था। कभी चिड़िया घर, तो कभी पार्क, मछलीघर और कभी संग्रहालय जाकर मन बहला लेता था। अपनी नाकामी के बाद न्यू यार्क अब एकदम अपराजेय लगता था। इमारतें इतनी ऊँची जहाँ पहुँचा न जा सके और उनका प्रतिस्पर्धी परिवेश इतना दबाने वाला कि जिसके आगे आप खड़े नहीं हो सकते। इसकी शानदार ऊँची इमारतें और फैशनबेल दुकानें बेरहमी से मुझे मेरे अधूरेपन का अहसास कराती थीं। फिफ्थ एवेन्यू के परे आलीशान मकान सफलता के स्मारक थे, घर नहीं।

मैं पैदल चल कर शहर भर की धूल फांकता रहता और शहर से होते हुए झोपड़ पट्टी वाले इलाकों की ओर चला जाता। मेडिसन स्क्वायर के पार्क से होकर, जहाँ लावारिस बूढ़े अपने पैरों की तरफ भाव शून्यता से घूरते हुए हताशा में बेंच पर बैठे रहते थे। इसके बाद मैं सेकण्ड और थर्ड एवेन्यू की ओर चला। गरीबी यहां बेरहम, तीखी और मारक थी। जहाँ-तहाँ पसरी हुई, एक गुर्राती, अट्ठहास करती और चिल्लाती हुई गरीबी; दरवाजों पर, चिमनियों पर फैलती हुई और रास्तों पर वमन करती हुई गरीबी। मेरा दिल बैठने लगा और मेरा मन जल्द से जल्द ब्रॉडवे लौटने का करने लगा।

अमेरिकी आदमी आशावादी होता है। अथक चेष्टा करने वाला और सैकड़ों सपनों में डूबा रहने वाला। वह जल्द से जल्द बाजी मार लेना चाहता है। वह जैक पॉट हिट करो! निकल चलो! बेच डालो!। कमाओ और भागो! कोई दूसरा धंधा कर लो! में विश्वास करता है। लेकिन हद से गुज़र जाने के इसी अंदाज़ ने मेरी हिम्मत बँधानी शुरू कर दी। दूसरी ओर से देखा जाये तो अपनी नाकामियों के चलते मैं काफी हल्का महसूस करने लगा। ऐसा लगने लगा मानो अब कोई रुकावट नहीं है। अमेरिका में और भी कई संभावनाएं थीं। मैं थिएटर की दुनिया से क्यूँ चिपका रहूँ? मैं कला को समर्पित तो था नहीं। कोई दूसरा धंधा कर लेता। मुझमें आत्म विश्वास लौटने लगा। जो हो गया सो हो गया, मैंने अमेरिका में टिकने की ठान ली थी।

असफलता से ध्यान हटाने के लिए मैंने सोचा, कुछ पढूँ और अपना शैक्षिक स्तर उठाऊं। मैंने पुरानी किताबों की दुकानों के चक्कर लगाने शुरू किए। कई पाठ्य पुस्तकें खरीद डालीं - केलॉग्स रेटरिक, एक अंग्रेजी व्याकरण और एक लैटिन अंग्रेजी डिक्शनरी - और उन्हें पढ़ने की ठानी। लेकिन मेरा संकल्प धरा का धरा रह गया। किताबों को देखते ही मैंने उन्हें अपने संदूक में एकदम नीचे रख दिया और भूल गया - और स्टेट्स में दूसरी बार आने पर ही उनकी ओर देखा।

न्यू यार्क में पहले हफ्ते के कार्यक्रम में एक नाटक था, गस एडवार्ड्स स्कूल डेज। बच्चों को लेकर बनाया गया। इस मण्डली में एक आकर्षक चरित्र था जो दिखने में छोटा था, पर चाल-ढाल और तौर-तरीकों से पहुँची हुई चीज लगता था। उसे सिगरेट के कूपनों से जूए की लत थी जिसके बदले में युनाइटेड सिगार स्टोर से निकल प्लेटेड कॉफी के बरतनों से लेकर शानदार पियानो तक मिलने का चांस रहता था। उनके लिए वह किसी के भी साथ पाँसा फेंकने को तैयार था। वाल्टर विंचेल नामक यह व्यक्ति असाधारण तेज़ी से बात कर सकता था। उम्र हो जाने पर भी उसका धुँआधार बोलना जारी रहा, पर कई बार मुँह से कुछ का कुछ निकल जाया करता था।

हालांकि हमारा शो चला नहीं। व्यक्तिगत रूप से मैं लोगों का ध्यान खींचने में सफल रहा। वेरायटी के सिम सिल्वर मैन ने मेरे बारे में कहा,"मण्डली में कम से कम एक मज़ेदार अंग्रेज़ था, और वो अमेरिका में चलेगा।"

अब तक हम लोग बोरिया-बिस्तर समेट कर छ: हफ्तों के बाद इंगलैण्ड लौटने का मन बना चुके थे। पर तीसरे सप्ताह हमने अपना नाटक फिफ्थ एवेन्यू थिएटर में खेला। यहां ज्यादातर दर्शक अंग्रेज नौकर और खानसामे थे। सोमवार, पहली रात को हम धमाके से चले। हर चुटकुले पर वे हँसे। हम सभी चकित थे, मैं भी, क्योंकि मैंने भी हमेशा जैसी बेरुखी की उम्मीद की थी। मुझे लगता है, कामचलाऊ प्रदर्शन से मेरे ऊपर दबाव नहीं था और मैंने कोई गलती नहीं की।

उस सप्ताह एक एजेंट ने हम लोगों से मुलाकात की और सालिवन एण्ड कॉन्सिडाइन सर्किट में बीस हफ्तों के दौरे के लिए बुक कर लिया। ये चलताऊ रंगारंग विविध शो कार्यक्रम था, और हमें दिन में तीन शो करने थे।

सालिवन कॉन्सिडाइन के उस पहले दौरे में कोई जबर्दस्त धमाका तो हम लोगों ने नहीं किया लेकिन औरों के मुकाबले बीस ही रहे। उन दिनों मिडिल वेस्ट लुभावना था। उतनी भाग-दौड़ नहीं थी और माहौल रोमांटिक था। हरेक ड्रग स्टोर और सैलून में घुसते ही चौसर की टेबल होती थी जहां हर उस चीज के लिए पाँसा फेंका जा सकता था जो वहाँ बिक रही हो। रविवार की सुबह मेन स्ट्रीट खड़खड़ाते डाइस की प्यारी और दोस्ताना आवाज़ से भरी होती थी। कई बार मैं भी दस सेंट में एक डालर की चीज़ें जीत जाता।

जीवन यापन सस्ता था। एक हफ्ते में सात डॉलर पर किसी छोटे होटल में एक कमरा और दिन में तीन बार भोजन मिल जाता था। खाना बहुत ही सस्ता था। सैलून का फ्री लंच काउंटर हमारी मंडली के लिए बहुत बड़ा संबल था। एक निकल (पाँच सेण्ट) में एक गिलास बीयर और खाने की सबसे स्वादिष्ट और खास चीज़ें मिल जाया करती थीं। सूअर की रानें होती थीं, स्लाइस्ड हैम, आलू सलाद, सार्डिन मछलियां, मैकरॉनी चीज़, लीवर वुर्स्ट, कुलचा और हॉट डॉग! हमारे कुछ सदस्य इसका फायदा उठाते और अपनी प्लेटों पर तब तक ढेर लगाते जाते जब तक बार मैन टोक न दे,"ओए, उतना लाद कर कहाँ चल दिए - क्या क्लोनडाइक की तरफ?"

हमारे दल में पन्‍द्रह या कुछ अधिक लोग थे। ट्रेन की बर्थ के पैसे देने के बाद भी हर मेम्बर कम से कम अपना आधा मेहनताना बचा लेता था। मेरी तनख्वाह थी एक हफ्ते में पचहत्तर डॉलर और इसमें से पचास तो शान से बैंक ऑफ मैनहटन में नियमित रूप से पहुँच जाते।

दौरे के सिलसिले में हम लोग कोस्ट पहुँचे। रंगारंग कार्यक्रम की उसी टीम में हमारे साथ पश्चिम की तरफ चलने वालों में टेक्सास का एक सुंदर युवक था जो कसरती झूले पर करतब दिखाता था। वह ये तय नहीं कर पा रहा था कि और आगे भी अपने पार्टनर के साथ ही बना रहे या ईनामी दंगल लड़ा करे। रोज सुबह मैं बॉक्सिंग के दस्ताने पहन कर उसके साथ उतरता। वह बेशक मुझसे लंबा और भारी था, फिर भी मैं उसे जब जैसे चाहता, हिट कर सकता था। हम बहुत अच्छे दोस्त बन गए और बॉक्सिंग की एक पारी के बाद हम साथ लंच लेते। वो कहा करता था कि उसके आदमी टेक्सॉस के सीधे सादे किसान हैं। वह फार्म की ज़िंदगी के बारे में घण्टों बतियाता। जल्दी ही हम लोग थिएटर का धंधा छोड़ने और साझेदारी में सूअर पालने के बारे में बात करने लगे।

हम दोनों के पास कुल मिलाकर दो हजार डॉलर थे और था, ढेर सारा पैसा कमाने का एक सपना। हमने योजना बनायी। अरकसॉन्स में पचास सेन्ट प्रति एकड़ के हिसाब से दो हज़ार एकड़ जमीन शुरू में ली जाए और बाकी पैसा सूअर खरीदने में लगाया जाए। हमने जोड़-जाड़ कर देखा कि अगर सब कुछ ठीक-ठाक चला तो सूअरों के बढ़ते चक्रवृद्धि ढंग से पैदा होने और औसतन हर साल पाँच के हिसाब से बच्चे जनने के हिसाब से पाँच वर्षों में हम एक लाख डॉलर बना सकते हैं।

रेलगाड़ी में सफ़र करते हुए हम खिड़की से बाहर देखते और सूअर बाड़ों को देखकर जोश से भर उठते। हमारे खाने, सोने और यहाँ तक कि सपने में भी सूअर ही सूअर। सूअर पालने के वैज्ञानिक तौर तरीकों पर मैंने एक किताब न खरीद ली होती तो शो बिजनेस छोडकर सूअर पालक बन गया होता। लेकिन उस किताब ने, जिसमें सूअरों को बधिया करने के सचित्र तरीके दिए गए थे, मेरा जोश ठण्डा कर दिया और जल्दी ही मैं इस धंधे को भूल गया।

इस दौरे पर अपने साथ मैं वायलिन और सेलो लेकर चला था। सोलह बरस की उम्र से ही अपने बेडरूम में मैं हर दिन चार से छह घण्टे इन्हें बजाने का अभ्यास किया करता था। हर हफ्ते मैं थिएटर संचालक से या जिसे वो कहता उससे वायलिन के सबक लेता था। मैं बाएँ हाथ से बजाता था इसलिए वायलिन भी बाएँ हाथ के हिसाब से बँधा था, जिसमें बास-बार और साउंडिंग पोस्ट उलट दिए गए थे। मेरी बड़ी इच्छा थी कि संगीत समारोह का कलाकार बनूंगा या ये नहीं कर पाया तो रंगारंग कार्यक्रम में बजाऊँगा। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, मेरी समझ में आ गया कि इसमें कभी माहिर नहीं हो पाऊँगा, सो मैंने इसे छोड़ दिया।

1910 का शिकागो अपनी कुरूपता, भयावहता और कालिमा में एक आकर्षण लिए हुए था। एक ऐसा शहर जिसमें अभी भी शुरुआती दिनों के मिजाज थे। कार्ल सैंडलिंग के शब्दों में धूंए और इस्पात का एक फलता-फूलता साहसी महानगर। मुझे इसके चारों ओर फैले समतल मैदान रूस के घास के मैदानों जैसे लगते हैं। कुछ नया करने का इसमें प्रचण्ड उल्लास था जो तन-मन को अनुप्राणित करता था। लेकिन इसके भीतर एक पौरुषी एकाकीपन धड़कता था। इस जिस्मानी बीमारी के काट के रूप में मौजूद था एक राष्ट्रीय मनोरंजन जिसे बर्लेस्क शो (प्रहसन/पैरोडी) कहा जाता था। इसमें बेहरतीन कॉमेडियनों का एक गुट होता था और साथ में बीस या कुछ अधिक कोरस लड़कियां होती थीं। कुछ सुंदर, कुछ घिसी-पिटी। कामेडियन मज़ेदार थे। ज्यादातर शो अश्लील होते थे, जनानखाने की कॉमेडी घटिया और बुराइयों से भरी हुई। पूरा माहौल ही मैन का था। क्षुद्र काम प्रतिद्वंद्विता से भरा हुआ जो देखने वालों को उल्टे किसी भी प्रकार की सामान्य कामेच्छा से अलग कर देता था। झूठ-मूठ की भावुकता दिखाना ही उनकी प्रतिक्रिया होती। ऐसे शो शिकागो में भरे पड़े थे। वाट्सन्स बीफ ट्रस्ट नामक ऐसे ही एक शो में अधेड़ उम्र की भारी-भरकम औरतें चुस्त कपड़ों में प्रदर्शन करती थीं। इस बात का प्रचार किया जाता था कि उन सभी का वजन टनों में है। थिएटर के बाहर शर्माये, सकुचाए पोज़ में उनकी तस्वीरें बड़ी दु:खद और निराशाजनक होती थीं।

शिकागो में हम वाबाश एवेन्यू में एक छोटे होटल में रहते थे। जीर्ण-शीर्ण और मनहूस होने के बावजूद इसमें एक रोमानी आकर्षण था क्योंकि बर्लेस्क की अधिकांश लड़कियां वहाँ रहती थीं। हर शहर में हम उस होटल के बाहर मधुमक्खियों की तरह लाइन लगा देते जहाँ शो वाली लड़कियाँ ठहरती थीं। पर जिस चक्कर में जाया करते थे उसमें कामयाब नहीं हुए। ऊँचाई पर चलने वाली ट्रेनें रात को तेज़ी से निकलतीं और रह-रह कर पुराने बाइस्कोप की तरह मेरे सोने के कमरे की दीवाल को झिलमिला जातीं। फिर भी, मुझे इस होटल से प्यार था, हालांकि कभी कुछ रोमानी घटित हुआ नहीं।

एक जवान लड़की, शांत और सुंदर, किसी कारण से हमेशा अकेली रहती थी, उसे चलते देखकर लगता, जैसे अपने प्रति बेहद सचेत है। होटल की लॉबी में आते-जाते उसके पास से होकर कई बार गुज़रा पर इतनी हिम्मत कभी जुटा नहीं पाया कि परिचय पाऊं। वैसे ये तो कहना ही पड़ेगा कि अपनी तरफ से उसने कभी पत्ता नहीं फेंका।

शिकागो से कोस्ट हम जिस ट्रेन में जा रहे थे, वो लड़की भी उसी में थी। वेस्ट जाने वाली बर्लेस्क कंपनियां आम तौर पर हमारे ही रास्ते होकर जातीं। और उनका कार्यक्रम भी एक ही शहर में पड़ता। गाड़ी में मैंने उसे अपनी कंपनी के एक सदस्य से बात करते देखा। बाद में वह मेरे पास आकर बैठा।

मैंने पूछा, "कैसी लड़की है वो?"

"बड़ी ही प्यारी। बेचारी, अफसोस होता है उसके लिए!"

"क्यों?"

वह झुककर और पास आ गया,"याद है, हवा उड़ी थी कि शो की किसी लड़की को सिफलिस है? बस, यही है।"

सीटल में उसे कंपनी छोड़ने दिया गया। वह अस्पताल में भर्ती हुई। हमने उसके लिए पैसे इकट्ठा किए जिसमें सारी घुमंतू कंपनियों ने योगदान दिया। बेचारी के बारे में सबको पता था। अलबत्ता, वो सबकी शुक्रगुजार थी और बाद में सैलवरसम की सुई, जो उस समय अभी नयी दवा थी, लेकर ठीक हुई। और फिर से अपनी कंपनी में वापस आ गयी।

उन दिनों पूरे अमेरिका में वेश्यावृत्ति बेरोक-टोक फैल रही थी। शिकागो का विशेष नाम हाउस ऑफ ऑल नेशन्स के चलते था जिसे दो अधेड़ उम्र की महिलाएं, ईवरली बहनें चलाती थीं। इसकी ख्याति इस बात में थी कि यहाँ हर देश की औरतें उपलब्ध थीं। कमरों के फर्नीचर भी हर स्टाइल के थे : तुर्की, जापानी, लूइ XVI, यहाँ तक की अरबी तंबू भी। ये दुनिया का सबसे खर्चीला रंडी बाज़ार था। बड़े-बड़े लखपति, उद्योगपति, कैबिनेट मंत्री, सीनेटर और जज, सभी इसके ग्राहक थे। आम तौर पर किसी एक परिपाटी के लोग पूरे रंडी बाज़ार को ही एक शाम के लिए अपने कब्जे में लेने का ठेका कर लेते करते थे। बताते हैं कि एक बहुत बड़े ऐय्याश ने वहाँ ऐसा डेरा जमाया कि तीन हफ्ते तक उसने दिन का उजाला भी नहीं देखा।

जितना ही हम पश्चिम की तरफ बढ़ते गए, उतना ही मुझे यह पसंद आता गया। ट्रेन के बाहर जंगली ज़मीन के विशाल फैलाव को देखकर मेरे मन में आशा का संचार होता, भले ही जगह सुनसान और मटमैली हो। खुली जगह रूह के लिए अच्छी होती है। हृदय को विशाल बनाती है। मेरे देखने का नज़रिया बड़ा होता था।

क्वीवलैंड सेंट लुइ, मिन्निपोलिस, सेंट पॉल, कानसास सिटी, डेनवर, बट, बिलिंग्स, जैसे शहरों में आने वाले कल की हलचल थी जो मेरी नस-नस को तड़का रही थी।

दूसरी रंगारंग कार्यक्रमों वाली कंपनियों से कई सदस्य हमारे दोस्त बने। हर शहर में रेड लाइट इलाकों में हम में से छ: या उस से अधिक लोग इकट्ठे हो जाते। कभी-कभी किसी वेश्यालय की मैडम को हम लोग पटाने में कामयाब हो जाते। वो उस रात के लिए "अड्डा" बंद कर देती और फिर हमारा राज होता। यदा-कदा लड़कियां अभिनेताओं पर फ़िदा हो जातीं और अगले शहर तक उनका पीछा करतीं।

बट्ट, मोन्टाना के रेड-लाइट इलाके लम्बी सड़कों और उनसे लगे अगल-बगल के छोटे रास्तों वाले हुआ करते थे जिसमें सैकड़ों झोपड़ियां थीं, और खाटें लगी होती थीं। इनमें जो लड़कियां मिलती थीं उनकी उम्र सोलह साल से शुरू होती थी - एक डॉलर में उपलब्ध। बट्ट को किसी भी रेड लाइट इलाके के मुकाबले अपने यहाँ ज्यादा सुंदर लड़कियां होने का नाज़ था और ये सच था भी। जहाँ कोई सुंदर-सी लड़की आकर्षक कपड़ों में दिखी, देखने वाला समझ जाता था कि रेड लाइट वाली है, अपनी शॉपिंग कर रही है। धंधे का टाइम न हो तो वो दाएं-बाएं नहीं झाँकती थी और इज़्ज़तदार हो जाती थीं। कई बरस बाद मैं सॉमर सेट मॉम से उनके सेडी थामसन के चरित्र को लेकर उलझ पड़ा था। जहाँ तक मुझे याद है, जीन ईगल्स ने उसे स्प्रिंग साइड बूट वगैरह पहना कर पूरा ऊट-पटांग सा रूप दे दिया था। मैंने उन्हें बताया, जनाब ऐसे कपड़े बट्ट मोन्टाना में कोई भी धंधे वाली पहन ले तो एक अधेला नहीं कमा पाएगी।

1910 में बट्ट, मोन्टाना अभी भी "निक कार्टर" वाला शहर था। लम्बे-लम्बे बूट और दस गैलन वाली टोपियां और लाल गुलूबंद लगाए खान मजदूरों का शहर। बंदूक का खेल मैंने अपनी आँखों से सड़कों पे देखा, जिसमें एक बूढ़ा शैरिफ भगोड़े कैदी के पैरों पर निशाना लगा रहा था। तकदीर से वो बाद में एक बंद गली में फंस गया, और कुछ हुआ नहीं।

हम जैसे जैसे पश्चिम की तरफ बढ़ते जाते, मेरा दिल उतना ही खुश होता जाता। शहर ज्यादा साफ़ थे। रास्ते में विनिपेग, टेकोमा, सीटल, वैंकूवर और पोर्टलैंड पड़ते थे। विनिपेग और वैंकूवर में ज्यादातर दर्शक अंग्रेज थे और अपने अमेरिकी झुकाव के बावजूद उनके सामने अभिनय करने में आनंद आया।

और अंत में केलिफोर्निया! खिली धूप, संतरे और अंगूर के बाग, और प्रशांत महासागर के तट पर हज़ारों मील तक फैले ताड़ के वृक्षों का स्वर्ग! पूर्व का प्रवेश द्वार सैन फ्रांसिस्को अच्छे व्यंजनों और सस्ते दामों का शहर, जिसने मुझे पहली बार मेंढ़क की टांग का जायका दिया। खालिस वहीं की चीज, स्ट्रॉबेरी शॉर्ट केक और एवोकेडो नाशपाती।

हम 1910 में पहुँचे जब शहर 1906 वाले भूकंप से, या उनके शब्दों में कहें तो आग से, उबर चुका था। पहाड़ी रास्तों में अभी एक या दो दरारें थीं लेकिन नुक्सान का कोई अवशेष नहीं। हर चीज़ नयी और चमचमाती हुई थी। मेरा छोटा होटल भी।

हमारा कार्यक्रम एम्प्रेस में था। इसके मालिक थे सिड ग्राउमैन और उनके पिता, बड़े ही मिलनसार और सामाजिक लोग। पहली बार पोस्टर पर मैं अकेला था और कार्नो का नाम तक नहीं था। दर्शक - क्या खूब! "वाऊ वाऊज़" नीरस था किर भी हर शो खचाखच भरा और ठहाकों से गूँजता हुआ होता। ग्राउमैन ने उत्साहित होकर कहा,"कार्नो साहब का काम जब भी निपट जाय, मेरे पास आना, हम लोग मिलकर शो करेंगे।" मेरे लिए यह उत्साह जनक बात थी। सैन फ्रांसिस्को में उम्मीद और मेहनत के ज़ज्बे को महसूस किया जा सकता था।

दूसरी ओर लॉस एंजेल्स, बदसूरत शहर था। गर्म और कष्टदायक। लोग मरियल और कांतिहीन लगते थे। जलवायु ज्यादा गर्म थी पर सैन फ्रांसिस्को वाली ताज़गी नहीं थी; प्रकृति ने उत्तरी कैलिफोर्निया को वो संपदाएं दी हैं जो विल्सायर बोलेवियर वाले प्रागैतिहासिक कोलतार के गड्ढों में हॉलीवुड के गायब हो जाने के बाद भी फलती-फूलती रहेंगी।

मने अपना पहला दौरा मोरमोन्स[1] के गृह नगर साल्ट लेक सिटी में समाप्त किया। मैं मोज़ेज और इज़राएल के बच्चों के बारे में सोचने लगा। शहर काफ़ी फैला और खुला हुआ है जो सूरज की गर्मी में मरीचिका की तरह थर्राता सा दिखता है। सड़कों की चौड़ाई का अंदाज वही लगा सकता है जिसने विशाल मैदानों को पार किया हो। मोरमोन्स की ही तरह शहर अकेला और कठोर है। देखने वाले भी वैसे ही थे।

सलिवान एंड कॉन्सीडाइन सर्किट में "वाउ वाउ'ज" के प्रदर्शन के बाद हम न्यू यार्क वापस आ गए जहाँ से सीधे इंगलैंड लौटने का इरादा था, लेकिन मिस्टर विलियम मॉरिस, जो दूसरे रंगारंग ट्रस्टों से लड़ रहे थे, ने हम लोगों के पूरे दल को न्यू यार्क शहर में फोर्टीथर्ड स्ट्रीट पर स्थित अपने थिएटर में छह हफ्ते के कार्यक्रम के लिए बुक किया। हमने ए नाइट इन एन इंग्लिश म्यूज़िक हॉल से शुरुआत की। इसमें भारी सफलता मिली।

सप्ताह के दौरान एक युवक और उसके दोस्त लड़कियों से मुलाकात होने तक का समय काटने के लिए इधर उधर डोलते हुए विलियम मॉरिस के अमेरिकन म्यूजिक हॉल में घुस गए। यहाँ, उन लोगों ने हमारा शो देखा। उनमें से एक ने कहा, "मैं कभी बड़ा बना तो एक आदमी है जिसे अपने लिए लूँगा।" वो "ए नाइट इन एन इंग्लिश म्यूलिक हॉल" की बात कर रहा था। उस समय वह जी डब्लू ग्ऱिफिथ के लिए प्रति दिन पाँच डॉलर पर बायोग्राफ कंपनी में फिल्म के एक्स्ट्रा के रूप में कार्य कर रहा था। वह व्यक्ति था, मैक सेनेट जिसने बाद में कीस्टोन कंपनी बनायी।

न्यू यार्क में विलियम मॉरिस के लिए छ: सप्ताह का सफल कार्यक्रम करने के बाद एक बार फिर सलिवान एंड कंसिडाइन सर्किट के लिए बीस हफ्तों के दौरे के लिए हमारी बुकिंग हो गयी।

दूसरा दौरा समाप्ति के करीब आने लगा तो मैं उदास हो उठा। तीन ही सप्ताह रह गए थे: सैन फ्रांसिस्को, सैन डिएगो, सॉल्ट लेक सिटी और उसके बाद वापिस इंगलैंड।

सैन फ्रांसिस्को से रवाना होने के एक दिन पहले मार्केट स्ट्रीट पर टहलते हुए मैंने एक छोटी सी दुकान देखी जिसमें पर्दे वाली खिड़कियां थीं। लिखा था, "हाथ और पत्ते देख कर आपकी तकदीर बतायी जाती है - एक डालर।" मैं अंदर गया, जरा झेंपता हुआ। मेरा सामना भीतर के कमरे से निकलती हुई लगभग बयालिस साल की एक सुंदर औरत से हुआ। वह भोजन के बीच में ही उठ कर आ गई थी। खाना चबाते हुए उसने लापरवाही से एक छोटी टेबल की ओर इशारा किया जिसमें दीवार की ओर पीठ और दरवाजे की ओर मुख पड़ता था। मेरी ओर देखे बिना उसने कहा,"बैठ जाइये," और दूसरी तरफ खुद बैठी। उसके तौर तरीके बड़े बेढंगे थे। "पत्तों को इधर उधर करो, और तीन बार मेरी तरफ काटो और टेबल पर अपनी खुली हथेली रखो।" उसने पत्ते उलटे, सामने फैलाया और उनका अध्ययन किया। फिर मेरे हाथ देखे। "लंबी यात्रा के बारे में सोच रहे हो, यानी स्टेट्स छोड़ दोगे। पर जल्द ही वापस लौटोगे और एक नया धंधा शुरू करोगे - जो अभी कर रहे हो उससे कुछ अलग।" इसके बाद वह कुछ हिचकिचाई और भ्रम में पड़ गयी, "लगभग वैसा ही, लेकिन अंतर है। इस नए कारोबार में मुझे भारी सफलता दिखाई दे रही है। तुम्हारे सामने जबर्दस्त कैरियर पड़ा हुआ है। पर मुझे नहीं पता क्या है?" पहली बार उसने नज़रें ऊपर कीं। फिर मेरा हाथ लिया, "अरे, हाँ, तीन शादियाँ हैं: पहली दोनों नहीं चलेंगी, लेकिन अंत में तीन बच्चों के साथ सुखी विवाहित जीवन बिताते हुए आपकी ज़िंदगी कटेगी।" (यहाँ वो गलत थी!)। इसके बाद फिर से उसने मेरा हाथ देखा,"हाँ, पैसा बहुत ज्यादा कमाओगे; कमाने वाला हाथ है।" फिर उसने मेरा चेहरा देखा,"श्वास नली के न्यूमोनिया से मरोगे, बयासी साल की उम्र में। एक डॉलर, प्लीज़। और कुछ पूछना चाहोगे?"

"नहीं," मै हँसा, "मुझे लगता है, मैं अकेला अच्छा खासा जाऊँगा।"

साल्ट लेक सिटी में समाचार पत्र अपहरण और बैंक डकैतियों से भरे रहते थे। नाइट क्लबों और कैफे के ग्राहकों को कतार में दीवार की तरक मुँह किए हुए खड़ा करवा कर नकाबपोश लुटेरे लूट लेते थे। एक ही रात में डकैती की तीन घटनाएं हो गयी थीं और पूरे शहर में आतंक फैल गया था।

शो के बाद हम पीने के लिए पास के किसी सैलून में चले जाते थे, और यदा-कदा ग्राहकों से परिचय हो जाया करता था। एक शाम एक मोटा, खुश-मिजाज़, गोल चेहरे वाला आदमी दो और लोगों के साथ आया। उनमें से उम्र में सबसे बड़ा, वो मोटा आदमी आगे आया, "उस अंग्रेज़ी नाटक में तुम्हीं लोग साम्राज्ञी की भूमिका कर रहे हो?"

हम लोगों ने मुस्करा कर सिर हिलाया,"तभी तो कहूँ मैंने तुम लोगों को पहचान लिया! अरे! आओ आओ!" उसने अपने साथ आए उन लोगों को बुलाया और उनसे परिचय करा कर हमें ड्रिंक ऑकर किये।

मोटा अंग्रेज़ था - वैसे वो उच्चारण अब नाम मात्र को रह गया था - लगभग पचास का, अच्छे स्वभाव का, छोटी चमकती आँखों और लाल सुर्ख चेहरे वाला आदमी।

रात जैसे-जैसे बीतती गयी, उसके दोनों दोस्त और मेरे साथ के लोग बार की ओर चले गए। मैं "मोटू" के साथ अकेला रह गया। उसके दोस्त उसे यही कहकर पुकारते थे।

वह हमराज़ हो गया। "उस पुराने देश में तीन साल पहले मैं गया था।" उसने कहा,"लेकिन ये वैसा नहीं है - यही तो जगह है। यहाँ तीस साल पहले आया। कुछ नहीं था। बस, एक अनाड़ी मोन्टाना कॉपर में स्सालों मेहनत करते-करते चूतड़ घिस जाती थी। फिर दिमाग लगाया। मैं कहता हूं यही तो खेल है, अब अपने पास मुस्टण्डे हैं। काम करने को। उसने नोटों की मोटी गड्डी बाहर निकाली।"

"चलो एक और ड्ऱिंक लेते हैं," "बच के!" मैंने मज़ाक में कहा, "पकड़े जा सकते हो!"

उसने मुझे बड़ी शैतानी, और जानकार मुस्कुराहट से देखा फिर आँख मार कर कहा, "ये नहीं बच्चू!"

जिस ढंग से उसने आँख मारी, मैं अंदर तक सहम गया। इसका मतलब बहुत बड़ा था। वैसे ही मुस्कराते हुए और मुझ पर अपनी नज़रें उसी तरह टिकाए वह बोलता गया,"समझ रहे हो?" उसने कहा। मैंने समझदारी से सिर हिलाया।

इसके बाद गूढ़ भाव से अपना चेहरा मेरे कान के पास लाकर उसने बात शुरू की,"उन दो पट्ठों को देख रहे हो?" वह अपने मित्रों के बारे में फुसफुसाया,"वही अपना लश्कर है, दो उल्लू के पठ्ठे, दिमाग़ जरा भी नहीं, लेकिन जिगर फौलाद का।"

मैंने सावधानी से अपने होठों पर उंगली रखी कि लोग सुन लेंगे, वो आहिस्ता बोले।

"ठीक है, भाईजान, हम लोग आज रात जहाज से निकल रहे हैं।" उसने आगे कहा, "सुनो, हम तो पुराने जहाजी ठहरे, है न? तुम्हें कई बार इलिंगटन एम्पायर में देखा है जाते आते।" मुँह बनाकर उसने कहा,"मुश्किल काम है मेरे भाई।"

मैं हँस पड़ा।

और गहरा राज़दार बनने के बाद उसने मुझसे ताउम्र दोस्ती करनी चाही और मेरा न्यू यार्क का पता माँगा।

"बीते दिनों की खातिर कभी दो-एक लाइन तुम्हें लिखूंगा।"

शुक्र है फिर उसने कभी संपर्क नहीं किया।

…….

नौ

अमेरिका छोड़ते समय मुझे कोई खास अफसोस नहीं हो रहा था, क्योंकि मैंने लौटने का मन बना लिया था। कैसे और कब, मैं नहीं जानता था। इसके बावजूद, मेरा मन अभी से लंदन और अपने छोटे-से सुकून भरे घर में लौटने की राह देखने लगा था। जब से मैं अमेरिका के टूर पर था, ये फ्लैट मेरे लिए मंदिर जैसा हो गया था।

सिडनी का समाचार बहुत दिनों से नहीं मिला था। अपने आखिरी खत में उसने लिखा था कि नानाजी फ्लैट में रह रहे थे। लेकिन मेरे लंदन पहुँचने पर, सिडनी मुझे स्टेशन पर मिला और बताया कि उसने शादी कर ली है, फ्लैट छोड़ दिया है और ब्रिक्सटन रोड पर सजे सजाए घर में रह रहा है। ये सोच कर मुझे बड़ा झटका लगा कि खुशियों से भरा वह छोटा-सा स्वर्ग अब नहीं रहा जिसने मुझे जीवन जीने को एक अर्थ दिया था, और घर पर नाज करना सिखाया था --------। अब मैं बेघर था। ब्रिक्सटन रोड पर मैंने पीछे की ओर एक कमरा लिया। जगह इतनी मनहूस थी कि मैंने जितनी जल्द हो सके, अमेरिका लौटने फैसला कर लिया। किसी खाली स्लॉट मशीन में सिक्का डालने पर जैसे कुछ नहीं होता उस रात लंदन मेरी वापसी पर वैसा ही बेपरवाह लगा।

सिडनी ने चूंकि शादी कर ली थी और हर शाम काम पर रहता, मैं उससे कम ही मिल पाता था; परंतु रविवार को हम मां से मिलने गए। ये बहुत ही हताश करने वाला दिन था क्योकि मां अभी भी ठीक नहीं हुई थी। वह अभी-अभी भजन कीर्तन के शोरगुल वाले दौर से होकर गुज़री थी और उसे गद्देदार दीवारों वाले कमरे में रखा गया था। नर्स हमें पहले ही ताकीद कर चुकी थी। सिडनी ने उसे देखा, लेकिन मैं उससे मिलने की हिम्मत न कर सका, इसलिए इंतज़ार करता रहा। सिडनी वापिस आया तो परेशान लग रहा था। उसने बताया कि इलाज के तौर पर मां को बर्फ़ीले, ठंडे पानी की धार से शॉक दिया गया था और उसका चेहरा बिल्कुल नीला पड़ गया था। इस पर हम लोगों ने उसे एक प्राइवेट संस्थान में रखने का फैसला किया - खर्च अब हम उठा सकते थे - सो, हम उसे उस जगह पर ले आए पागल खाने में जहां इंगलैण्ड के महान कॉमेडियन स्वर्गीय डान लीओ भर्ती किये गये थे।

हर दिन मैं अपने आपको पहले से कहीं ज्यादा बेगाना और जड़ से कटा हुआ महसूस करता था। मेरी समझ से अगर मैं अपने छोटे से फ्लैट में लौटा होता, तो मेरी भावनाएं दूसरी होतीं। तब स्वाभाविक रूप से उदासी मुझ पर पूरी तरह से हावी न हो पाती। अमेरिका से आने के बाद पुराना परिचय, रीति-रिवाज और इंगलैण्ड से मेरा रिश्ता सभी मेरे भीतर उथल-पुथल मचा रहे थे। इंगलैण्ड की गर्मी का मौसम अपने सबसे अच्छे रूप में था जिसके जोड़ की रूमानी और सुहावनी चीज़ मेरी नज़र में कोई दूसरी नहीं थी।

बॉस कार्नो ने मुझे टैग्स आइलैण्ड के अपने हाउस बोट पर सप्ताहांत के लिए बुलाया। काफी लम्बा चौड़ा इंतज़ाम था। सबकुछ बेहद सुव्यवस्थित। महोगनी के पैनल वाले कमरे और मेहमानों के लिए निजी राजसी ठाठ बाठ वाले कमरे। रात में बोट के चारों ओर रंगीन बत्तियों के मनमोहक बंदनवार जगमगा उठे। गर्म और सुंदर शाम थी और डिनर के बाद अपनी कॉफी और सिगरेट लेकर ऊपर वाले डेक में जगमगाती रंगीन रोशनियों के नीचे जाकर बैठे गए। यही वो इंगलैण्ड था जो मुझे किसी भी देश से वापस खींच सकता था।

अचानक कहीं से एक बनावटी आवाज ने पागलों की तरह चीखना शुरू कर दिया; "अरे देखो, क्या प्यारी बोट है मेरी, देखो! मेरी मस्त नाव को! और क्या रोशनी! हा! हा! हा!" आवाज़ मज़ाक उड़ाने वाली हँसी में बदल रही थी। हम लोगों ने यह देखने के लिए नज़र दौड़ायी कि कहां से यह धारा फूट कर आ रही है। हमने खेनेवाली नाव में सफेद फ्लेनल के कपड़े पहने एक आदमी को देखा जिसके पीछे की सीट पर एक औरत लेटी हुई थी। पूरा दृश्य "पंच" पत्रिका के किसी कार्टून चित्र की तरह था। कोर्नो रेलिंग पर झुके और ज़ोर से आवाज़ लगायी लेकिन उसने अपनी पागलों जैसी हँसी नहीं रोकी।

"अब एक ही चीज़ की जा सकती है," मैंने कहा: "हम भी वैसे अश्लील बन जाएं जैसा वो हमें सोचता है।" फिर तो मैंने चुन-चुन कर ऐसी गालियां सुनायी जो उसके साथ की औरत के झेंपने के लिए काफी थी। वो झटपट खिसक लिया।

ये मूर्ख चिल्ला-चिल्लाकर रुचि की आलोचना नहीं कर रहा था, ये तो अहंकार भरा पूर्वाग्रह था उस चीज के खिलाफ जिसे वह निम्न वर्गीय ठाठ बाठ समझ रहा था। बकिंघम पैलेस के सामने वह कभी अट्टहास करते हुए नहीं चिल्लाएगा कि देखो मैं कितने बड़े घर में रहता हूं, या राज्याभिषेक वाले रथ पर नहीं हँसेगा। हमेशा इस तरह होनेवाले वर्गीकरण का इंगलैण्ड में मुझे तीखा अनुभव मिला। ऐसा लगता है जैसे इस तरह के अंग्रेज सामाजिक तौर पर दूसरों की कमियां बड़ी जल्दी ही मापने तौलने लगते हैं।

हमारी अमेरिकी मंडली काम में लग गयी थी और लंदन के हॉलों में हम लोगों ने चौदह सप्ताह तक प्रदर्शन किया। शो ठीक चले, दर्शक भी अच्छे थे लेकिन हमेशा मैं यह सोचता रहता कि कहीं अमेरिका वापिस जा पाऊँगा या नहीं। इंगलैंड से मुझे प्यार था, पर मेरे लिए वहाँ रहना असंभव था; अपनी पृष्ठभूमि के चलते हमेशा ये बात बेचैन किए रहती कि यहाँ रह कर मैं अपनी तुच्छता के दलदल में धंसता चला जा रहा हूं। इसलिए स्टेट्स के अगले टूर के लिए हमारे बुक हो जाने का समाचार पाकर मैं बड़ा खुश हुआ।

रविवार को सिडनी और मैं मां से मिलने गए। उसकी सेहत पहले से बेहतर लगी और सिडनी के प्रदेशों की तरफ जाने से पहले हम लोगों ने साथ खाना खाया। लंदन में अपनी आखिरी रात अपनी भावनाओं से जूझता हुआ, उदासी और कड़वाहट लिए हुए मैं वेस्ट एंड में चहलकदमी कर रहा था और अपने आप से कह रहा था, इन गलियों को आखिरी बार देख रहा हूँ।

इस बार हम ओलंपिक पर सेकंड क्लास में न्यू यॉर्क होते हुए पहुँचे। इंजन की धड़कन धीमी पड़ गयी। उसका मतलब था हम अपनी नियति के करीब पहुँच रहे हैं। इस बार स्टेट्स अपरिचित नहीं लगा। मुझे लगा मैं विदेशियों के बीच विदेशी हूँ, बाकी सबसे जुड़ा हुआ।

न्यू यॉर्क को मैं जितना पसंद करता था, उतनी ही उत्सुकता से मैं वेस्ट की प्रतीक्षा कर रहा था जहाँ फिर उन लोगों से मुलाकात होगी जिन्हें अब मैं अच्छा दोस्त समझता था : मोन्टाना के बट्ट के बार में काम करने वाला आयरिश, मिनेपोलिस का दोस्ताना मेहमाननवाज़ जमीन जायदाद वाला लखपती, सेंट पॉल की सुंदर लड़की जिसके साथ मैंने एक रोमांटिक सप्ताह बिताया था। सॉल्ट लेक सिटी का स्कॉटिश खदान मालिक, टकोमा का मित्रवत डेंटिस्ट और सेन फ्रांसिस्को का ग्रॉमैन्स परिवार।

प्रशांत के तट पर जाने से पहले हमने "स्माल्स" के इर्द गिर्द कार्यक्रम किये। शिकागो और फिलाडेल्फिया के दूरस्थ उपनगरों और फॉल रिवर और ड्यूलुथ जैसे औद्योगिक शहरों के छोटे (स्माल) थिएटरों में।

पहले की तरह मैं अकेले रह रहा था लेकिन इसके लाभ थे, क्योंकि इससे मुझे स्वाध्याय का मौका मिलता था। जिसका संकल्प मैंने महीनों के पहले किया था पर पूरा नहीं कर पाया था।

कुछ ऐसे लोग होते हैं जिनमें कुछ जानने समझने की प्रचण्ड इच्छा होती है। मैं भी उन्हीं में से एक था। पर मेरा उद्देश्य इतना पवित्र नहीं था। मैं जानना चाहता था लेकिन मुझे ज्ञान से प्रेम नहीं था, मेरे लिए यह जाहिलों के प्रति दुनिया की घृणा से बचने के लिए ढाल थी। इसलिए जब मुझे समय मिलता था, मैं सेकेंड हैंड किताबों की दुकानों के चक्कर लगाता था।

फिलाडेल्फिया में यूँ ही एक बार मुझे राबर्ट इंगरसोल्स की किताब एसेज़ एंड लेक्चर्स का एक संस्करण हाथ लग गया। बड़ी उत्साहजनक खोज थी यह; उसकी नास्तिकता से मेरे इस विश्वास को बल मिला कि ओल्ड टेस्टामेंट की भयानक क्रूरता मानवता के लिए शर्मनाक बात थी। फिर मुझे इम़र्सन मिले। "सेल्फ रिलाएन्स" ("आत्मनिर्भरता") पर उनका लेख पढ़ कर लगा जैसे मुझे स्वर्गीय जन्मसिद्ध अधिकार सौंप दिया गया हो। फिर आए शापेनहावर। मैंने द वर्ल्ड एज़ विल एंड आइडिया के तीन खंड खरीदे जिसे चालीस सालों से जब तब पढ़ता रहा हूं पर कभी भी शुरू से अंत तक नहीं। वाल्ट व्हिटमैन की लीव्स ऑफ ग्रास से मुझे चिढ़ हुई और ये च़िढ़ आज तक बरकरार है। उसमें प्यार भरा हृदय कुछ ज्यादा ही उमड़ता है और राष्ट्रीय रहस्यवाद की अति है। शो के बीच मिलने वाले समय में अपने ड्रेसिंग रूम में मैंने ट्वेन, पो, हार्थटन, इर्विंग और हैज़लिट को भी पढ़ने का आनंद लिया। दूसरे दौरे में शास्‍त्रीय शिक्षा उतनी भले ही न आत्मसात कर पाया होऊं जितना मैं चाहता था, पर जिस कारोबार में मैं था उसके निचले स्तर के उबाऊपन से मेरा परिचय हो गया था।

ये सस्ते रंगारंग सर्किट्स बड़े ही मनहूस और निराशाजनक थे और अमेरिका में मेरे भविष्य की आशा सप्ताह के हर दिन तीन और कभी तीन और कभी चार शो की चक्की में पिसने लगी। इसकी तुलना में इंगलैंड का रंगारंग जगत स्वर्ग था। कम से कम वहाँ सप्ताह में छ: दिन ही काम करते थे और एक रात में दो ही शो होते थे। अमेरिका में हमें यही सोच कर संतोष कर लेना पड़ता था कि पैसा कुछ ज्यादा बच रहा है।

लगातार पाँच महीनों तक "कड़ी" मेहनत के साथ काम करने की थकान से मेरी हिम्मत जवाब दे रही थी। इसलिए फिलाडेल्फिया में एक हफ्ते के आराम का जब मौका मिला तो मैंने इसे सहर्ष स्वीकार किया। मुझे बदलाव चाहिए था। दूसरा परिवेश चाहिये था। अपनी पहचान खोकर कोई और बन जाने के लिए मौका चाहिये था। रोज़-रोज़ की इस घटिया दर्जे की रंगारंग प्रस्तुति से उकता गया था और सोचा एक हफ्ते जम कर ऐश़ की जाय। काफी पैसे जमा हो चुके थे और खूँटे से एक बार जो छूटा, दिल खोल कर खरचने लगा। और क्यों नहीं? मैंने इतना जमा करने के लिए फूंक -फूंक कर खर्च किया था और ये सोचा था कि जब काम नहीं होगा, उस समय भी संभाल कर खरचना है, तो फिर अभी क्यूं नहीं जरा सा खर्च कर लिया जाए?

मैंने एक मँहगा ड्रेसिंग गाउन खरीदा और एक शानदार सूटकेस खरीदा जिसकी कीमत पिचहत्तर डालर पड़ी। दुकानदार तो खुशामद में बिछ गया; "सर, कहिए तो आपके घर पर पहुँचा दिया जाये?" उसके इन थोड़े से शब्दों ने मेरा सिर ऊंचा कर दिया, मुझे कुछ विशिष्ट बना दिया। अब न्यूयार्क जाऊंगा और इस घटिया रंगारंग कार्यक्रम का और इसके पूरे अस्तित्‍व का चोला अपने पर से उतार फेकूँगा।

मैंने होटल एस्टॉर में एक कमरा लिया। ये होटल उन दिनों बड़ा आलीशान माना जाता था। मैंने अपना नया कोट और डर्बी टोप पहना, छड़ी ली और हाँ, साथ में अपना छोटा सूटकेस भी ले लिया। लॉबी की तड़क-भड़क और वहाँ आते-जाते लोगों का विश्वास देख कर मैं कुछ डगमगाया। घबड़ाहट में ही डेस्क पर जाकर नाम दर्ज कराया।

कमरे का किराया 4.50 डालर प्रतिदिन। डरते हुए मैंरे पूछा कि किराया एडवांस में दे दूं। क्लर्क ने बड़ी ही विनम्रता और दिलासा भरे अंदाज में कहा, "अरे नहीं, सर, ऐसी कोई ज़रूरत नहीं है।"

लॉबी की चमक-दमक और शानो-शौकत के बीच चलते हुए मेरी भावनाओं को कुछ कुछ होने लगा और कमरे में पहुँच कर मन रोने को करने लगा। कमरे में मैं लगभग एक घंटे तक रहा। बाथरूम में लगे तरह-तरह के आइनों और नलों का मुआयना किया। इसके ठंडे और गर्म पानी के नलों को चलाकर उनका खूब बहाव देखा। नलकों और फव्वारों की बढ़िया किस्में निहारता रहा। कितनी बेहिसाब होती है विलासिता और कितनी आश्वस्त करती है।

मैंने स्नान किया, बालों में कंघी की, नया बाथ रोब पहना। मेरा इरादा था अपने चार डॉलर पचास सेंट की पाई पाई को भोगना। काश, मेरे पास पढ़ने को कुछ होता - अखबार ही सही। लेकिन अखबार मंगाने के लिए फोन करने का आत्मविश्वास नहीं था। सो, कमरे के बीच में एक कुर्सी पर बैठकर अत्यंत उदास मन से हर चीज को निहारने लगा। जितना देखता, उतना ही दु:खी होता जाता।

कुछ देर बाद मैंने कपड़े पहने और नीचे उतरा। मुख्य भोजन कक्ष का रास्ता पूछा। अभी डिनर का समय नहीं हुआ था। जगह खाली-खाली थी। बस, दो एक खाने वाले पहुँचे थे। हेड वेटर मुझे खिड़की के पास वाली एक टेबल की ओर ले गया।

"सर, आप यहाँ बैठना पसंद करेंगे?"

"कहीं भी चलेगा," मैंने अपनी सबसे उम्दा अंग्रेजी आवाज़ में कहा।

अगले ही पल वेटरों की फौज ने मुझे घेर लिया और ठंडा पानी, मेन्यू, मक्खन और ब्रेड पेश करने लगे। भावुकता में मेरी भूख गायब हो चुकी थी। अलबत्ता, मैंने इशारों से काम लिया और शोरबा, रोस्ट किया हुआ चिकेन और मीठी चीज के तौर पर वनीला आइसक्रीम का ऑर्डर दिया। शराबों का एक मेन्यू वेटर ने मुझे दिया। मैंने ध्यान से देखने के बाद आधी बोतल शैम्पेन मँगायी। मैं रईस की भूमिका में इतना डूबा हुआ था कि भोजन और शराब का मज़ा क्या ही लेता। खा पी लेने के बाद मैंने वेटर को एक डॉलर का टिप दिया जो उन दिनों के हिसाब से असाधारण रूप से ज्यादा था। लेकिन बाहर जाते वक्त जो अदब और आदाब मुझ पर बरसाये गये, इतनी टिप देनी बनती थी। अकारण ही, मैं वापस अपने कमरे में गया, दस मिनट तक बैठा, फिर हाथ धोये और बाहर निकल पड़ा।

चुपचाप मुलायम गर्मी की शाम थी। मेरे मूड की तरह। मैं मेट्रोपोलिटन ओपेरा हाउस की ओर जा रहा था। वहाँ "तैन्हॉउज़र" चल रहा था। मैंने कभी भी ग्रैण्ड ओपेरा नहीं देखा था। इसके कुछ अंश रंगारंग कार्यक्रमों में देखे थे और मुझे भयंकर चिढ़ थी इससे। पर अभी मैं इसके मूड में था। मैंने एक टिकट खरीदा और सेकेंड सर्किल में बैठा। ओपेरा जर्मन में था, जिसका एक भी शब्द अपने पल्ले नहीं पड़ा और न ही मुझे इसकी कहानी मालूम थी। लेकिन रानी के मरने के बाद उसे तीर्थ यात्रियों के सामूहिक गान के संगीत के साथ लाया गया तो मैं फूट-फूट कर रो पड़ा। इसमें मेरी जिंदगी का सारा दर्द सिमट आया लगता था। मैं अपने आपको रोक नहीं पाया। मेरे आस पास बैठे लोगों ने क्या सोचा होगा, मुझे नहीं पता, लेकिन बाहर निकला तो बदन में ताकत नहीं रह गई थी और भावनात्मक रूप से चूर-चूर हो गया था।

सबसे अंधेरे रास्तों से होकर मैं शहर की ओर चलने लगा क्योंकि ब्रॉडवे की घूरती रोशनी मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रही थी और मूड ठीक होने तक मैं होटल वाले उस वाहियात कमरे में लौटना भी नहीं चाहता था। ठीक होने पर मेरा सीधा सो जाने का इरादा था। शारीरिक और मानसिक रूप से मैं निढाल हो चुका था।

होटल में घुसने के पहले मैं अचानक हेट्टी के भाई आर्थर केली से टकरा गया। हेट्टी जिस मंडली में थी उसका वह मैनेजर था। उसका भाई होने के नाते हम लोगों में दोस्ती थी। आर्थर को मैंने कई बरसों से नहीं देखा था।

"चार्ली! कहाँ जा रहे हो?" उसने कहा। मैने लापरवाही से एस्टर की दिशा में सिर हिलाया, "सोने जा रहा था।"

आर्थर पर इसका असर पड़ा।

उसके साथ दो दोस्त थे। उनसे मेरा परिचय कराने के बाद उसने प्रस्ताव रखा कि हम सभी मेडिसन एवेन्यू स्थित उसके घर चलें, कॉफी पी जाय और गपशप हो।

फ्लैट आरामदायक था। हम लोगों ने साथ बैठ कर हल्की फुल्की इधर-उधर की बातें कीं। आर्थर इस बात के प्रति सतर्क था कि हमारे अतीत का कोई जिक्र न आने पाए। वैसे, मेरे एस्टर में ठहरने की बात सुनकर वह और जानने को उत्सुक था। लेकिन मैंने कुछ खास बताया नहीं। सिर्फ ये कि मैं दो या तीन दिनों की छुटटी में न्यूयॉर्क आया था।

केंबरवैल में जब आर्थर रह रहा था तब से अब तक उसने लम्बा सफ़र तय कर लिया था। अब वह अमीर व्‍यवसायी बन गया था और अपने जीजा फ्रेंक जे गॉल्ड के लिए काम करता था। उसकी दुनियावी बातें सुन कर मैं और उदास होता गया। अपने दोस्तों में से एक की ओर इशारा करते हुए केली ने कहा, "अच्छा लड़का है वह। अच्छे परिवार का है, मेरी जानकारी में।" खानदान के बारे में उसकी रुचि देखकर मैं अपने आप पर मुस्कुराया और समझ गया कि आर्थर और मेरा मेल नहीं था।

न्यू यार्क में मैं केवल एक दिन रुका। अगली सुबह मैंने फिलाडेल्फिया लौटने का फैसला किया। उस एक दिन में मुझे जो बदलाव चाहिए था, वह मिला पर ये भावनात्मक अकेलेपन का था। मुझे अब संग-साथ चाहिए था। मुझे सोमवार सुबह वाले कार्यक्रम और मंडली के लोगों से मिलने का इंतज़ार था। पुराने कोल्हू में जुतना कितना भी उबाऊ हो, उस एक दिन के ठाट-बाट से मेरा जी भर गया था।

फिलाडेल्फ़िया लौट कर मैं थिएटर गया। रीव्ज़ साहब के नाम एक तार आया था और उन्होंने जब उसे खोला, मैं वहीं था।

"मुझे लगता है कहीं तुम्हारे लिए तो नहीं," उन्होंने कहा।

लिखा था "आपकी कंपनी में चैक़िन या वैसे ही नाम का कोई व्यक्ति है। यदि हो तो वह कैसेल एंड बावमैन, 24 लॉन्गकेयर बिल्डिंग ब्रॉडवे से संपर्क करे।"

कंपनी में उस नाम का कोई नहीं था, लेकिन रीव्ज़ का मानना था कि उस नाम का मतलब चैप्लिन हो सकता है। फिर तो मैं आनंदित हो उठा क्योंकि मुझे, जैसा कि पता चला, लॉन्गकेयर बिल्डिंग ब्रॉडवे के बीचों-बीच पड़ती थी और इसमें वकीलों के दफ्तर भरे पड़े थे; ये याद करके कि स्टेट्स में कहीं मेरी एक अमीर चाची हुआ करती थी, मेरी कल्पना को पंख लग गए; गुज़रने से पहले वो ज़रूर अच्छा-खासा पैसा छोड़ गयी होगी। सो मैंने झटपट केसल एंड बावमैन को तार दिया कि कंपनी में चैप्लिन नामक एक व्यक्ति है और वे शायद उसी के बारे में बात कर रहे हैं। मैं उत्सुकता से जवाब की प्रतीक्षा करने लगा। उसी दिन जवाब मिला। मैंने झट से तार फाड़ा और खोलकर पढ़ा।

लिखा था: "क्या आप चैप्लिन को जल्द से जल्द दफ्तर में मिलने को कह सकते हैं।"

उत्साहित होकर बड़ी आशा से मैंने न्यू यार्क के लिए एकदम सुबह की गाड़ी पकड़ी। फिलाडेल्फ़िया से ढाई घंटे का रास्ता था। क्या होगा मुझे नहीं पता था - मैंने कल्पना की कि किसी वकील के दफ्तर में बैठा हूं और मुझे कोई वसीयत पढ़कर सुनायी जा रही है।

पहुँचने पर कुछ निराशा हुई क्योंकि केसल एंड बावमैन वकील नहीं थे, चलचित्र निर्माता थे। अलबत्ता, ये मामला रोमांचक होने जा रहा था।

चार्ल्स केसल कीस्टोन कंपनी के मालिकों में से एक थे। उन्होंने कहा कि मिस्टर मैक सेनेट ने मुझे फोर्टी सेकेण्ड स्ट्रीट वाले अमेरिकी म्यूज़िक हॉल में पियक्कड़ की भूमिका में देखा था और यदि मैं वही आदमी हूँ तो वो मुझे फोर्ड स्टर्लिंग की जगह रखना चाहेंगे। मेरे मन में कई बार फिल्मों में काम करने का ख्याल आया था, और अपने मैनेजर रीव्ज़ के सामने मैंने प्रस्ताव भी रखा था कि हम लोग मिलकर साझेदारी में कार्नो के स्केचेज के सर्वाधिकार खरीद लें और उनकी फिल्में बनाएं। लेकिन रीव्ज़ को पूरा भरोसा नहीं था, और बात सही भी थी, क्योंकि हम फिल्मों बनाने के बारे में कुछ जानते नहीं थे।

"क्या मैंने कीस्टोन की कोई कॉमेडी देखी है?" केसल साहब ने पूछा। देखी तो मैंने कई थी, लेकिन मैंने ये नहीं बताया कि मुझे वो कहीं का ईंट कहीं का रोड़ा जोड़ के बनायी लगती थी। अलबत्ता, माबेल नार्मेड नामक खूबसूरत लड़की, जो बीच बीच में उन फिल्मों में आती जाती रहती थी, की मौजूदगी के कारण वे अब तक टिके हुए थे। कीस्टोन ढर्रे की कॉमेडी को लेकर मैं कुछ खास उत्साहित नहीं था, लेकिन मुझे इसकी लोकप्रियता का भान था।

इस लाइन में एक साल बिताकर रंगारंग कार्यक्रमों की दुनिया में लौटने पर मैं अंतर्राष्ट्रीय सितारा बन जाऊंगा। इसके अलावा, इसमें एक नयी ज़िंदगी और अच्छा माहौल भी था। कैसल का कहना था कि करार के अनुसार मुझे प्रति सप्ताह तीन फिल्मों में काम करना होगा और वेतन होगा डेढ़ सौ डालर। कार्नो की कंपनी से जितना मिलता था, उससे यह दुगुना था। फिर भी मैंने ना नुकुर करते हुए कहा कि प्रति सप्ताह दो सौ डॉलर से कम नहीं लूँगा। कैसल साहब ने कहा अब ये सेनेट साहब पर है; वो उन्हें केलिफोर्निया में बता देंगे। फिर मुझे सूचना मिल जाएगी।

कैसल के जवाब का इंतज़ार मैंने बड़ी बेचैनी से किया। शायद मैं बहुत ज्यादा मांग बैठा था। आखिरकार खत आया कि वे लोग पहले तीन महीनों के लिए डेढ़ सौ डॉलर और बाकी के नौ महीनों के लिए एक सौ पचहत्तर डॉलर - जिंदगी में अब तक इससे बड़ा ऑफर नहीं मिला था - के हिसाब से साल भर के करार के लिए तैयार थे। सलिवन एंड कंसिडाइन टूर के समाप्त होते ही काम शुरू होना था।

ईश्वर की कृपा से लॉस एंजेल्स में हम लोग एम्प्रेस में खूब चले थे। यह एक कॉमेडी थी। नाम था "ए नाइट एट द क्लब"। मैं एक कमज़ोर बूढ़े पियक्कड़ की भूमिका में था और दिखने में कम से कम पचास बरस का लग रहा था। नाटक समाप्त होने पर सेनेट साहब खुश होकर मुझे बधाई देने आए थे। उस छोटी-सी मुलाकात में मेरा साबका घनी भौंह, भारी अनाकर्षक मुंह, और मजबूत जबड़े वाले एक भारी-भरकम इन्सान से पड़ा था और इस चेहरे मोहरे से मैं प्रभावित हुआ। पर मैं इस उधेड़बुन में था कि अपने भविष्य के रिश्ते में वह कितनी सहृदयता से पेश आएंगे। उस साक्षात्कार में लगातार मैं बेहद नर्वस था और समझ नहीं पा रहा था कि बंदा मुझसे खुश है या नहीं।

मैं कब उन्हें ज्वाइन करूँगा, उन्होंने चलताऊ ढंग से पूछा। मैने बताया सितंबर के पहले हफ्ते में शुरू करूँगा, जब कार्नो कंपनी से मेरा करार खत्म हो रहा है। कन्सास सिटी छोड़ने को लेकर मेरे मन में कुछ खटका था। कंपनी वापस इंग्लैंड जा रही थी और मैं लॉस एंजेल्स, जहाँ मैं अकेला होऊंगा और बात कुछ जम नहीं रही थी। अंतिम कार्यक्रम के पहले मैंने सबके लिए ड्रिंक मंगाया और सबसे विदा लेने के विचार से मैं कुछ ग़मगीन हो गया।

अपनी मंडली के आर्थर डेन्डो, जिसकी मुझसे किसी कारण वश पटती नहीं थी, को मज़ाक सूझा और मुझे कुछ उपहासात्मक ढंग से कसमसा कर बताया कि कंपनी की ओर मुझे तोहफ़ा मिलेगा। ये कबूल करता हूँ कि ये बात मेरे दिल को छू गयी थी। अलबत्ता, कुछ हुआ नहीं। ड्रेसिंग रूम से जब सब जा चुके थे, फ्रेड कार्नो जूनियर ने स्वीकार किया कि डैंडो ने वास्तव में एक विदाई भाषण तैयार किया था और मुझे एक भेंट देने की व्यवस्था की थी, लेकिन ये देखकर कि मैंने सबके लिए पीने का इंतजाम किया है, उसकी वो सब करने की हिम्मत नहीं हुई और वह तथाकथित "उपहार" ड्रेसिंग टेबल के आइने के पीछे छोड़ गया था। टीन की पन्नी में लिपटी हुई तंबाकू की खाली डिबिया थी जिसमें चिकनाई वाले रोगन की पुरानी खुरचन रखी हुई थी।


§ कार्ना ट्रुप में हम सही तरीके से टेम्पो पर महारत हासिल कर सकें, इसमें एक साथ काम करने में हमें छ: महीने लग जाया करते थे तब तक हमें क्रैच क्राउड कहा जाता था।

……

(क्रमशः अगले अंकों में जारी…)

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रचनाकार: चार्ली चैप्लिन की आत्मकथा (5)
चार्ली चैप्लिन की आत्मकथा (5)
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