चार्ली चैप्लिन की आत्मकथा (11)

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मेरी आत्म कथा चार्ली चैप्लिन   चार्ली चैप्लिन की आत्मकथा -अनुवाद : सूरज प्रकाश ( पिछले अंक 10 से जारी …) सत्रह न्यू ...

मेरी आत्म कथा

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चार्ली चैप्लिन

 

चार्ली चैप्लिन की आत्मकथा

-अनुवाद : सूरज प्रकाश

suraj prakash

(पिछले अंक 10 से जारी…)

सत्रह

न्यू यार्क से यात्रा शुरू करने वाली रात से पहले मैंने इलिसी कैफे में लगभग चालीस मेहमानों को एक पार्टी दी। मेहमानों में मैरी पिकफोर्ड, डगलस फेयरबैंक्स और मादाम मातेरलिंक भी थीं। हम चेरेड्स खेलते रहे। डगलस और मैरी ने पहले अक्षर के लिए भूमिका निभायी। डलगस स्ट्रीटकार कन्डक्टर बने और उन्होंने टिकट पंच करके मैरी को दिया। दूसरे अक्षर के लिए उन्होंने जान बचाने के दृश्य का मूक अभिनय किया। मैरी मदद के लिए चिल्लाती है और डगलस तैर कर उसे पास पहुंचते हैं और उसे सुरक्षित नदी के किनारे तक लाते हैं। तय था, हम सब चिल्ला रहे थे - "फेयरबैंक्स।"

जैसे-जैसे शाम में रंगीनियां आने लगीं, मैंने और मादाम मातेरलिंक ने कैमिला का मृत्यु वाले दृश्य का अभिनय किया। मातेरलिंक कैमिला बनीं और मैं बना आर्मांड। जिस वक्त वे मेरी बाहों में दम तोड़ रही थीं, उन्हें खांसी का दौरा पड़ गया। शुरू-शुरू में हल्का, और फिर, खांसने की गति बढ़ गयी। उनकी खांसी का यह हाल हो गया कि मुझे भी खांसी का दौरा पड़ गया। इसके बाद तो हम दोनों के बीच खांसने की प्रतियोगिता ही शुरू हो गयी। आखिरकार, मैंने ही उनकी बाहों में मरने का अभिनय किया।

जिस दिन समुद्री यात्रा करनी थी, उस दिन मैं सुबह साढ़े आठ बजे बहुत तकलीफ के साथ उठा। नहाने के बाद, मैं सारे के सारे उहापोह से मुक्त हो गया और इंगलैंड के लिए रवाना होने के ख्याल से ही रोमांचित हो गया। मेरे दोस्त, किस्मत और दूसरे नाटकों के लेखक एडवर्ड नोब्लॉक भी मेरे साथ ही ओलम्पिक पर यात्रा कर रहे थे।

अखबारवालों का एक हुजूम जहाज पर चढ़ आया और मुझे इस हताशा ने घेर लिया कि ये सब भी हमारे साथ पूरी यात्रा में भी बने रहेंगे। उनमें से दो तो हमारे साथ ही चले, बाकी दूसरे लोग पाइलट के साथ उतर गये।

आखिरकार, मैं अपने केबिन में अकेला था। केबिन मेरे दोस्तों की तरफ से आये फूलों और फलों की टोकरियों से अटा पड़ा था। मुझे इंगलैंड छोड़े दस बरस बीत चुके थे और मैं इसी जहाज से कार्नो कम्पनी के साथ निकला था; उस वक्त हमने दूसरे दर्जे में यात्रा की थी। मुझे याद है कि स्टीवर्ड ने हमें पहले दर्जे का हड़बड़ी में दौरा कराया था ताकि हमें इस बात की झलक मिल सके कि दूसरी तरफ के लोग किस तरह से रहते हैं। उसने प्राइवेट सुइटों की शानो शौकत के और उनके आकाश छूते किराये के बारे में बताया था, और अब मैं उन सुइटों में से एक में था और इंगलैंड वापिस जा रहा था। मैंने लंदन को लैम्बेथ के एक नामालूम से, संघर्षरत युवा के रूप जाना था; अब प्रख्यात और अमीर आदमी के रूप में मैं लंदन को मानो पहली बार देखूंगा।

अभी कुछ ही घंटे बीते थे कि माहौल अंग्रेजी हो चुका था। हर रात हैडी नोब्लॉक और मैं मुख्य डाइनिंग कक्ष के बजाये रिट्ज रेस्तरां में खाना खाते। रिट्ज में भोजन की अ' ला कार्ते व्यवस्था थी। वहां पर शैम्पेन, कैवियर, और दूसरी बीसियों तरह की शराबें और लजीज़ व्यंजन सामने रखे होते। अब समय की कोई कमी नहीं थी इसलिए हर शाम मैं काली टाई लगा कर तैयार होने की वाहियात रस्म निभाता। इस तरह की विलासिता और फिजूलखर्ची से मुझे पैसे की माया का अहसास होता।

मुझे लगता था कि मैं आराम कर पाऊंगा। लेकिन ओलम्पिक के नोटिस बोर्ड पर लंदन में मेरे प्रत्याशित आगमन के बारे में बुलेटिन लग जाते। अभी हमने आधा रास्ता ही पार किया था कि निमंत्रणों और अनुरोधों वाले तारों का तांता-सा लगना शुरू हो गया। उन्माद जो था, तूफान की शक्ल ले रहा था। ओलम्पिक के बुलेटिन में युनाइटेड न्यूज और मार्निंग टेलिग्राफ से आलेख उद्धृत किये जाते। एक आलेख इस तरह का था: "चैप्लिन विजेता की तरह लौट रहा है! साउथम्पटन से लंदन तक की तरक्की रोमन विजय से मेल खायेगी।"

दूसरा लेख इस तरह से था: "जहाज के चलने के बारे में और जहाज पर चैप्‍लिन की गतिविधियों पर दैनिक बुलेटिनों पर अब जहाज से जारी होने वाले हर घंटे के फ्लैश भारी पड़ रहे हैं, और अखबारों के खास संस्करण गली कूचों में धूम मचाते, आड़े तिरछे चलने वाले इस महान नन्हें शख्स के बारे में खबरें दे रहे हैं।"

एक और था: "पुराना जेकोबाई गाना, "चार्ली इज माइ डार्लिंग" चार्ली के प्रति पागलपन को चरितार्थ करता है जो पूरे इंगलैंड को पिछले पूरे हफ्ते से अपनी गिरफ्त में लिये हुए है और जैसे-जैसे चार्ली को घर लाते हुए ओलम्पिक अपने पीछे लहरों के भंवर छोड़ रहा है, ये उन्माद हर घंटे और तेज होता जा रहा है।"

एक अन्य लेख में लिखा था: "आज रात ओलम्पिक साउथम्पटन में कोहरे से घिर गया था और नन्हें कॉमेडियन के स्वागत में जुटी उसके आराधकों की विशाल भीड़ शहर में उसकी राह देख रही थी। डॉक पर तथा उस नागरिक अभिनंदन समारोह के स्थल पर जहां मेयर चार्ली की अगवानी करने वाले हैं, भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस खास इंतजाम करने में व्यस्त है। . . .जैसा कि विजय के दिनों के बाद हुआ करता था, अखबार ये बताने में लगे हुए हैं कि किस स्थल से लोग चार्ली को बेहतर तरीके से देख सकते हैं।"

मैं इस तरह के स्वागत के लिए तैयार नहीं था। यह स्वागत जिस तरह का अचरज भरा और असाधारण था, काश, मैंने इस यात्रा को तब तक के लिए स्थगित कर दिया होता जब तक मैं इसके लायक न हो जाता। मैं जिस चीज़ के लिए तड़प रहा था, वो थी उस पुरानी परिचित जगहों की एक झलक भर देखने को मिल जाये। लंदन में चुपचाप आस-पास घूमना और देखना, केनिंगटन और ब्रिक्स्टन में तफरीह मारना, 3 पाउनॉल टैरेस की खिड़की पर निगाह डालना, उस अंधियारी लकड़ी की टाल में झांकना जहां मैंने लकड़ी चीरने वालों की मदद की थी, 287 केनिंगटन रोड की दूसरी मंज़िल की खिड़की की तरफ देखना जहां मैं लुइसी और अपने पिता के साथ रहा था - ये इच्छा अचानक ही एक तरह की सनक में बदल चुकी थी।

आखिरकार हम चेरबर्ग में पहुंचे! कई लोग नीचे उतर रहे थे और कई लोग सवार हो रहे थे- कैमरामैन और अखबार वाले। "इंगलैंड के लिए मेरे पास क्या संदेश है?" "फ्रांस के लिए क्या संदेश है?" "क्या मैं आयरलैंड जाऊंगा?" "आयरिश सवाल के बारे में मैं क्या सोचता हूं?" अलंकार की भाषा में कहूं तो मुझ पर झपट्टे मारे जा रहे थे।

हम चेरबर्ग से रवाना हुए और अब हम इंगलैंड की राह पर थे, लेकिन ये यात्रा रेंगने की तरह थी। जहाज बहुत धीमी गति से जा रहा था। नींद का तो सवाल ही नहीं उठता था। एक बजता, दो बज जाते, तीन बज जाते और मैं अभी भी जाग रहा होता। इंजिन रुके, विपरीत दिशा में चलने लगे और आखिर पूरी तरह से थम गये। मैं बाहर गलियारे में सामने से पीछे की तरफ और पीछे से सामने की तरफ लोगों के भागने दौड़ने की भारी आवाज़ें सुन पा रहा था। तनावग्रस्त और पूरी तरह से जागे हुए, मैंने झिर्री में से देखा। लेकिन बाहर अंधेरा था; मैं कुछ भी नहीं देख पाया। इसके बावज़ूद मैं अंग्रेज़ी आवाज़ें सुन सका!

प्रभात की किरणें फूटीं और बेहद थकान के मारे मुझे नींद आ गयी, लेकिन ये नींद भी दो घंटे के लिए थी। जिस वक्त स्टीवर्ड मेरे लिए गरमा-गरम कॉफी और सुबह का अखबार ले कर आया, मैं तड़के ही उठ चुका था।

एक हैडलाइन में लिखा था:

विराम संधि दिवस§ के मुकाबले

कॉमेडियन की घर वापसी

दूसरी:

सारा लंदन चैप्लिन के दौरे की बात कर रहा है।

एक और:

चैप्लिन जा रहे हैं लंदन

महान स्वागत की गारंटी

एक और बड़े आकार के फौंट में

देखो हमारे पुत्र!!

अलबत्ता, कुछेक आलोचनात्मक टिप्पणियां भी थीं:

होश में आओ!!

भगवान के नाम अब हमें होश में आ जाना चाहिये। मैं यह कहने की ज़ुर्रत नहीं कर सकता कि मिस्टर चैप्लिन ऐसे व्यक्ति हैं जिन पर सर्वाधिक अनुमान लगाये जाते हैं, और मैं यह जानने में बहुत ज्यादा दिलचस्पी भी नहीं रखता कि क्यों ये घर की याद जो उन्हें इस मौके पर इतनी ज्यादा भावुक बनाये हुए है, उन काले बरसों के दौरान सामने क्यों नहीं आयी जिस वक्त हूणों के काले कारनामों के कारण ग्रेट ब्रिटेन के घर खतरों से जूझ रहे थे। हो सकता है कि ये सच हो, जैसा कि तर्क दिया जा रहा है, कि चार्ली चैप्लिन कैमरे के सामने मसखरी की हरकतें करने में लगे हुए ही बेहतर थे बजाये वे बंदूक के पीछे रहते हुए मरदाने काम करते।

डॉक पर एक तरफ साउथम्पटन के मेयर ने मेरा स्वागत किया और तुरंत मुझे एक रेलग़ाड़ी में बिठा दिया गया। आखिरकार अब हम लंदन की राह पर थे! आर्थर कैली, हैट्टी कैली के भाई भी मेरे ही कूपे में थे। मुझे याद है कि आर्थर और मैं आपस में बातचीत का सिलसिला जमाने के लिए बाहर हरे-भरे खेतों की तेजी से पीछे छूटती दृश्यावली देख रहे थे। मैंने उसे बताया कि मुझे उसकी बहन की तरफ से एक खत मिला था जिसमें उसने पोर्ट स्क्वायर के अपने घर पर रात के खाने के लिए आमंत्रित किया था।

उसने मेरी तरफ हैरानी से देखा और कुछ परेशान सा लगा,"आपको पता है, हैट्टी मर चुकी है!"

मुझे झटका लगा लेकिन उस पल मैं उसकी पूरी त्रासदी को भीतर उतार नहीं कर पाया - बहुत सारी घटनाएं घटती चली जा रही थीं, लेकिन मुझे लगा कि मैं एक अनुभव से वंचित हो गया हूं। मेरे अतीत के दिनों से हैट्टी ही वह अकेली परिचित व्यक्ति थी जिससे दोबारा मिलना मुझे अच्छा लगता, खास तौर पर इन बेहतरीन परिस्थितियों में उससे मिलने का सुख मिलता।

अब हम लंदन के उपनगरों में प्रवेश कर रहे थे। मैं बेसब्री से खिड़की के बाहर देखने लगा। मैं पास से गुज़रती किसी गली को पहचानने की बेकार कोशिश कर रहा था। उत्तेजना के साथ ही एक डर भी घुला हुआ कि शायद युद्ध के बाद लंदन बहुत अधिक बदल गया होगा।

अब उत्तेजना अपने चरम पर थी। कोई भी चीज दिमाग को बांध नहीं पा रही थी, बस सिर्फ प्रत्याशा ही थी। किस चीज की प्रत्याशा? मेरे दिमाग में हाहाकार मचा हुआ था। मेरे सोचने-समझने की शक्ति साथ छोड़ चुकी थी। मैं वस्तुपरक तरीके से सिर्फ लंदन की छतें ही देख पाया, लेकिन वास्तविकता वहां पर नहीं थी। सिर्फ प्रत्याशा थी और कुछ भी नहीं था!

आखिरकार हम पहुंच गये थे। रेलवे स्टेशन की घिरी हुई आवाज़ के दायरे में - वाटरलू स्टेशन! जैसे ही मैं ट्रेन से उतरा, मैंने प्लेटफार्म के दूसरे सिरे पर अपार भीड़ को देखा जैसे रस्से के सहारे रोक कर रखा गया था, और लगी थी पुलिस वालों की लाइनें। हर चीज बेहद तनाव में, हरकत में थी। और हालांकि मैं उत्तेजना के सिवाय किसी भी चीज को जज्ब़ करने की हालत से परे था, मैं इस बात को अच्छी तरह से जानता था कि मुझे प्लेटफार्म पर ही दबोच लिया जायेगा और प्लेटफार्म पर मेरी परेड करा दी जायेगी मानो मुझे गिरफ्तार किया गया हो। जैसे ही हम रस्से से रोकी गयी भीड़ के पास पहुंचे, तनाव ढीला होने लगा, "यहां है वो, वो आ गया! हमारा प्यारा चार्ली!" और इसके बाद वे लोग हर्ष ध्वनि करने लगे। इस सारे हंगामे के बीच मुझे मेरे कज़िन ऑब्रेय के साथ एक लिमोज़िन में ठूंस दिया गया। मैं ऑब्रेय से पन्द्रह बरस से नहीं मिला था। मुझमें सोचने-समझने की इतनी ताकत भी नहीं रह गयी थी कि उस भीड़ से इस तरह से छुपाये जाने का विरोध ही कर सकूं जो मुझसे मिलने के लिए इतनी देर से मेरा इंतज़ार कर रही थी।

मैंने ऑब्रेय से कहा कि वह पक्के तौर पर देख ले कि हम वेस्टमिन्स्टर ब्रिज से ही हो कर गुज़रें। वाटरलू से निकलते हुए और यॉर्क रोड से गुज़रते हुए मैंने पाया कि पुराने मकान ढहाये जा चुके हैं और उनकी जगह पर नया ढांचा एल सी सी बिल्डिंग खड़ी की दी गयी है। लेकिन जब हम यार्क रोड के कोने से मुड़े तो वेस्टमिन्स्टर ब्रिज चमकते सूर्य की तरह आंखों के सामने आ गया! पुल ठीक वैसा ही था, उसका सौम्य संसद भवन वैसा ही सदाबहार खड़ा था। पूरा का पूरा परिदृश्य ठीक वैसा ही था जैसा मैं छोड़ कर गया था। मेरी आंखों से आंसू ढरकने को थे।

मैंने रिट्ज होटल चुना क्योंकि यह उसी वक्त बनाया गया था जिस वक्त मैं छोटा बच्चा था और, उसके प्रवेश द्वार के पास से गुज़रते हुए मैंने उसके भीतर की शानो-शौकत की एक झलक देखी थी और तब से मुझे ये जानने की उत्सुकता थी कि बाकी सब कैसा लगता है!

होटल के बाहर बेइन्तहा भीड़ मेरी राह देख रही थी। मैंने एक छोटा-सा भाषण दिया। और आखिरकार जब मैं अपने कमरों में व्यवस्थित हो गया तो अकेले बाहर निकलने की मेरी बेसब्री ज़ोर मारने लगी। लेकिन कंधे से कंधा भिड़ाती भीड़ अभी भी बाहर जुटी हुई थी, चिल्ला-चिल्ला कर मेरा अभिवादन कर रही थी और इस चक्कर में मुझे कई बार बाल्कनी में आना पड़ा और राजसी मेहमानों की तरह उनके अभिवादन को स्वीकार करना पड़ा। इस बात को बयान कर पाना मुश्किल है कि ऐसी असाधारण परिस्थितियों में क्या चल रहा होता है।

मेरा सुइट दोस्तों से भरा हुआ था, लेकिन मेरी इच्‍छा यही थी कि इन सबसे छुटकारा पाया जाये। इस समय दोपहर के चार बज रहे थे, इसलिए मैंने उनसे कहा कि मैं थोड़ी झपकी लेना चाहूंगा और उनसे डिनर के वक्त शाम को मिलूंगा।

जैसे ही वे लोग गये, मैंने फटाफट कपड़े बदले, सामान ले जानी वाली लिफ्ट पकड़ी और पिछले दरवाजे से चुपचाप सरक लिया। तुरंत ही मैं जर्मिन स्ट्रीट के दूसरे सिरे की तरफ लपका। मैंने एक टैक्सी पकड़ी और ट्रैफेल्गार स्क्वायर, संसद भवन और वेस्टमिन्स्टर ब्रिज के ऊपर से होते हुए हेय मार्केट की तरफ फूट लिया।

टैक्सी ने एक मोड़ काटा और आखिर, केनिंगटन स्ट्रीट पर आ पहुंची! मेरे सामने थी केनिंगटन स्ट्रीट! अविश्वसनीय सी लगती! कुछ भी तो नहीं बदला था। वेस्टमिन्स्टर ब्रिज रोड के कोने पर क्राइस्ट चर्च था। ब्रुक स्ट्रीट के कोने पर टैन्कार्ड बार था।

मैंने टैक्सी को 3 पाउनॉल टैरेस से थोड़ा सा पहले ही रुकवा लिया। मैं जैसे ही घर की तरफ बढ़ा, एक अजीब-सी शांति मुझ पर तारी हो गयी। मैं एक पल के लिए ठिठका रहा, और दृश्य को अपने भीतर उतारता रहा। 3 पाउनॉल टैरेस! सामने नज़र आ रहा था पाउनॉल टैरेस। किसी उदास पुरानी खोपड़ी की तरह। मैंने सबसे ऊपर की मंज़िल की दो खिड़कियों की तरफ देखा - वो परछत्ती जहां पर मां बैठा करती थी, कमज़ोर और कुपोषण की शिकार, धीरे-धीरे उसका दिमाग साथ छोड़ रहा था। खिड़कियां मज़बूती से बंद थीं। वे कोई भेद नहीं खोल रही थीं और उस आदमी की तरफ पूरी तरह से उदासीन थीं जो इतनी देर से नीचे खड़ा उनकी तरफ घूर रहा था, इसके बावजूद उनके मौन ने मुझसे इतना कुछ कह दिया जोकि शायद शब्द भी न कह पाते। तभी कुछ छोटे-छोटे बच्चे वहां आ गये और उन्होंने मुझे घेर लिया, और मुझे मजबूरन वहां से हटना पड़ा।

मैं कैनिंगटन रोड के पिछवाड़े में घुड़साल की तरफ बढ़ा। वहां पर मैं लकड़ी चीरने वालों की मदद किया करता था। लेकिन घुड़साल में ईंटें चढ़ा दी गयी थीं, और लकड़ी चीरने वालों का वहां कोई नामो-निशान नहीं था।

तब मैं 287 केनिंगटन रोड की तरफ बढ़ा जहां पर सिडनी और मैं अपने पिता और लुइसी और उनके नन्हें मुन्ने बेटे के साथ रहा करते थे। मैंने कमरे की दूसरी मंज़िल की खिड़की की तरफ निगाह दौड़ायी। ये कमरा हमारे बचपन की हताशाओं का कितना हमजोली हुआ करता था। अब ये सारी चीजें कितनी निश्छल सी दिखती हैं। शांत और स्थिर।

अब मैं केनिंगटन पार्क की तरफ चला। उस डाकखाने के आगे से गुज़रते हुए जहां पर मेरा साठ पाउंड का एक बचत खाता हुआ करता था - ये वो राशि थी जो मैं 1908 से बचाने के लिए कितनी कंजूसी किया करता था और ये राशि अभी भी वहीं थी।

केनिंगटन पार्क! इतने बरसों के बाद भी वह उदासी भरी हरियाली से लहलहा रहा था। अब मैं केनिंगटन गेट की तरफ मुड़ा। ये वही जगह थी जहां पर हैट्टी से मेरी पहली मुलाकात हुई थी। मैं एक पल के लिए थमा। तभी एक ट्राम कार आ कर रुकी। उसमें कोई चढ़ा लेकिन उतरा कोई भी नहीं।

अब मेरा अगला पड़ाव था ब्रिक्सटन रोड में 15 ग्लेनशॉ मैन्सन। यहां पर वह फ्लैट था जिसे सिडनी और मैंने सजाया था। लेकिन मेरी संवेदनाएं सूख चुकी थीं, मात्र उत्सुकता बाकी रह गयी थी।

वापिस आते समय मैं एक ड्रिंक लेने के लिए हॉर्न्स बार में रुक गया। अपने अच्छे दिनों में ये बहुत भव्य हुआ करता था। इसका पॉलिश से दमकता महोगनी बार, शानदार दर्पण और बिलियर्ड रूम। वहां एक बड़ा-सा एसेम्बली रूम था जहां पर पिता के लिए आखिरी बार सहायतार्थ आयोजन रखा गया था। अब हॉर्न्स थोड़ा थोड़ा अस्त व्यस्त लग रहा था लेकिन सब कुछ वैसा का वैसा ही था। पास ही में वह जगह थी जहां पर मैंने दो बरस तक पढ़ाई की थी, केनिंगटन रोड काउंटी काउंसिल स्कूल। मैंने खेल के मैदान में झांक कर देखा; डामर का उसका धूसर मैदान सिकुड़ चुका था और उस जगह पर और इमारतें आ गयी थीं।

मैं जैसे-जैसे केनिंगटन में भटकता रहा, वो सब कुछ जो मेरे साथ हुआ था, सपने की मानिंद लगने लगा और जो कुछ मेरे साथ स्टेट्स में हुआ था, वास्तविकता प्रतीत होने लगा। इसके बावजूद मुझे कुछ-कुछ असहजता का अहसास होने लगा कि शायद गरीबी की अपनी सी उन गलियों में अभी भी इतनी ताकत है कि मुझे अपनी हताशा की फिसलती रेत में धंसा लेंगी।

मेरी गम्भीर उदासी और तन्हाई के बारे में बहुत कुछ बकवास लिखा जा चुका है। शायद मुझे कभी भी बहुत ज्यादा दोस्तों की ज़रूरत नहीं रही - आदमी जब किसी ऊंची जगह पर पहुंच जाता है तो दोस्त चुनने में कोई विवेक काम नहीं करता। जब मैं मूड में होता हूं तो मैं दोस्तों को वैसे ही पसंद करता हूं जैसे संगीत को पसंद करता हूं। ज़रूरत के वक्त किसी दोस्त की मदद करना आसान होता है लेकिन आप हमेशा इतने खुशनसीब नहीं होते कि उसे अपना समय दे पायें। जब मैं लोकप्रियता के शिखर पर था तो मेरे दोस्तों और परिचितों का हुजूम मुझे ज़रूरत से ज्यादा घेरे रहता था। मैं एक साथ ही बहिर्मुखी और अंतर्मुखी हूं लेकिन जब मेरा अंतर्मुखी पक्ष हावी होता तो मुझे इस सारे ताम-झाम से दूर भाग जाना पड़ता। शायद यही वज़ह रही होगी कि मेरे बारे में इस तरह के आलेख लिखे गये कि मैं बचता फिरता हूं, अकेला रहता हूं और सच्ची दोस्ती के काबिल नहीं हूं। ये सब बकवास है। मेरे एक-दो बहुत ही अच्छे दोस्त हैं जो मेरे क्षितिज को रौशन बनाये रहते हैं और जब भी मैं उनके साथ होता हूं, आम तौर पर उनके साथ का आनंद उठाता हूं।

इसके बावजूद मेरे व्यक्तित्व को लेखक के स्वभाव के अनुसार ऊपर उठाया गया है और नीचे गिराया गया है।

उदाहरण के लिए, सॉमरसेट मॉम ने लिखा है:

चार्ली चैप्लिन . . . उसका मज़ाक सरल और मिठासभरा और सहज है। और इसके बावजूद आपको यह अहसास होता है कि इन सबके पीछे एक गहरी उदासी है। वह मूड का प्राणी है और इसके लिए उसे परिहासयुक्त स्वीकृति की ज़रूरत नहीं होती। ""हेय, कल रात मुझे हताशा का ऐसा दौरा पड़ा कि मुझे बिल्कुल भी पता नहीं चला कि मैं अपने आप के साथ क्या करूं!!" मैं आपको चेताता हूं कि उसका हास्य उदासी के साथ-साथ चलता है। वह आपको खुश आदमी की छवि नहीं देता। मुझे तो ये लगता है कि वह झोपड़पट्टियों की आसक्त करने वाली याद से पीड़ित है। जिस तरह के वैभव को वह भोगता है, उसकी दौलत, उसे इस तरह की ज़िंदगी में कैद कर लेते हैं जिसे वह अड़चनों की तरह ही पाता है। मुझे लगता है कि वह अपनी संघर्षशील जवानी की आज़ादी की तरफ मुड़-मुड़ कर देखता है, उसकी मुफलिसी और कड़वे अभावों के साथ, उस चाहत के साथ जिसे बारे में उसे पता है कि कभी भी संतुष्ट नहीं की जा सकती। उसके लिए दक्षिणी लंदन की गलियां मौज मस्ती, ऐशो आराम और बेइन्तहां रोमांच के ठिकाने हैं . .. मैं इस बात की कल्पना कर सकता हूं कि वह अपने खुद के घर में जाता है और हैरान होता है कि आखिर वह अजनबी आदमी के घर पर कर ही क्या रहा है!! मुझे शक है कि वह सिर्फ एक ही घर को अपने घर की तरह देख सकता है और वह है केनिंगटन रोड की दूसरी मंज़िल पर पिछवाड़े की तरफ का घर। एक रात मैं उसके साथ लॉस एंजेल्स में घूम रहा था और चलते चलते हमारे कदम शहर के गरीब तबकों के इलाके की तरफ मुड़ गये। वहां पर मुफलिसी में जीने वालों के घर थे और गंदी, भड़कीली दुकानें थीं जिनमें गरीब आदमी अपनी रोज़ाना की ज़रूरत की चीजें खरीदते हैं। चार्ली का चेहरा दमक उठा और जब उसने अपनी बात कही तो उसकी आवाज़ में एक जोशीला स्वर आ मिला था, "देखो तो, यही है असली ज़िंदगी, नहीं क्या? बाकी सब कुछ तो मक्कारी है!!"*

किसी दूसरे व्यक्ति के लिए गरीबी को आकर्षक बनाने की चाह रखने का यह नज़रिया कोफ्त में डालता है। मैं अब तक ऐसे एक भी गरीब आदमी से नहीं मिला हूं जो अपनी गरीबी के प्रति आसक्त हो या उसमें आज़ादी ढूंढता हो। न ही मिस्टर मॉम किसी गरीब आदमी को इस बात का यकीन ही दिला पाये कि प्रसिद्धि के शिखर पर होने और बेइन्तहां दौलत का मतलब रुकावट होता है- इसके विपरीत मुझे तो प्रसिद्ध और बेइन्तहां दौलत में आज़ादी महसूस होती है। मुझे नहीं लगता कि मिस्टर मॉम अपने किसी उपन्यास में अपने किसी चरित्र को इस तरह के झूठे अर्थ देंगे, उनमें से किसी को भी नहीं। इस तरह के शब्द जाल,"दक्षिणी लंदन की गलियां मौज मस्ती, ऐशो आराम और बेइन्तहां रोमांच के ठिकाने" हैं, में फ्रांस की महारानी मैरी एंटोइनेटे की काल्पनिक दिल्लगी की तंज नज़र आती है।

गरीबी मुझे न तो आकर्षक और न ही कलात्मक लगती है। इसने मुझे और कुछ नहीं, बल्कि मूल्यों को विकृत करना, अमीरों तथा तथा कथित सम्पन्न वर्गों की विशेषताओं और गरिमा को बढ़ा चढ़ा कर बताना ही सिखाया है।

इसके विपरीत धन-दौलत और प्रसिद्धि ने मुझे दुनिया को सही नज़रिये से देखना, और यह पता लगाना सिखाया है कि खास जगहों पर बैठे हुए लोगों के सम्पर्क में जब मैं आया तो अपने तरीके से वे भी उतने ही कमज़ोरियों के पुतले थे जितने बाकी हम सब लोग हैं।

धन दौलत और प्रसिद्धि ने मुझे ये भी सिखाया कि तलवार, छड़ी और उठे हुए कोड़े के महत्त्व को कैसे भुनाना है और उन्हें घमंड के अर्थ के नजदीक पड़ता है। कॉलेज वाले उच्चारण के मद में आदमी के गुणों और बौद्धिकता का अनुमान लगाना और इस झूठ ने अंग्रेजी मध्यम वर्गों पर जो लकवा मारने वाला असर छोड़ा है उसे जानना और ये जानना कि मेधा जरूरी नहीं कि शिक्षा से या पुराने महाकाव्य पढ़ कर ही आती हो।

मॉम के अनुमानों के बावजूद मैं और सब लोगों की तरह वही हूं जो मैं हूं। एक व्यक्ति, अनूठा और अलग। जिसमें प्राम्पट करने का भीतरी भावों को सामने लाने का थोड़ा सा रेखीय इतिहास रहा है। सपनों का, इच्छाओं का, और खास अनुभवों का इतिहास, और मैं इन सबका जोड़ हूं।

लंदन में पहुंचने के बाद मैं अपने-आपको लगातार हॉलीवुड के दोस्तों के संग-साथ में ही पा रहा था। मैं परिवर्तन चाहता था, नये लोग, नये अनुभव; मैं प्रसिद्ध शख्सियत होने के इस कारोबार की कीमत वसूलना चाहता था। मैं अब तक सिर्फ एक ही व्यक्ति से मिला था और ये थे एच जी वेल्स। उसके बाद मैं अलमस्त घूम रहा था और हिचकिचाहट भरी उम्मीद कर रहा था कि और लोगों से मुलाकात हो।

"मैंने तुम्हारे लिए गैरिक क्लब में एक डिनर का इंतज़ाम किया है।" ऐडी नोब्लॉक ने बताया।

"फिर वही अभिनेता, कलाकार और लेखक," मैंने मज़ाक में कहा,"लेकिन वो इंगलिश माहौल, वो देहातों वाले घर और घरेलू पार्टियां कहां हैं जहां का मुझे न्यौता नहीं दिया गया है?" मैं ड्यूकों जैसे जीवन के दुर्लभतम माहौल के लिए छटपटा रहा था। ये बात नहीं है कि मैं घमंडी था, बल्कि मैं तो एक पर्यटक था और सैर सपाटे को निकला व्यक्ति था।

गैरिक क्लब में माहौल बेहद लुभाने वाला था, धूप छांही ओक की गाढ़े रंग की दीवारें और तैल चित्र। यहीं पर मैं सर जेम्स बैरी, ई वी लुकास, वाल्टर हैकेट, जॉर्ज फ्रैम्पटन, सर एडविन लुट्येन्स, स्क्वायर बैनक्रोफ्ट और अन्य गणमान्य विभूतियों से मिला। हालांकि ये पार्टी कुछ हद तक फीकी ही थी, मैं इन महान विभूतियों की मौजूदगी से मिले सम्मान से ही बहुत ज्यादा अभिभूत था।

लेकिन मुझे लगता है कि उस शाम को जितना रंगीन होना चाहिये था, उतनी हुई नहीं। जब महान विभूतियां एक जगह पर एकत्रित होती हैं, तो मौके का मांग यह होती है कि आपस में प्रेम से घुला-मिला जाये और ये हो पाना कुछ हद तक इस वज़ह से मुश्किल था क्योंकि सम्मानित मेहमान जो थे, वे एक विख्यात नव धन कुबेर थे जिन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया था कि डिनर के बाद वाली कोई भाषणबाजी नहीं होगी; शायद इसी बात की कमी खल रही थी। डिनर के दौरान फ्रैम्पटन, वास्तुशिल्पी ने कुछ हँसी मज़ाक का प्रयास किया और वे खूब जमे, लेकिन वे गैरिक क्लब में छायी मनहूसियत को कम करने में मुश्किल पा रहे थे, क्योंकि हम सब बाकी लोग उबले हैम और ट्रिकल पुडिंग खाने में लगे हुए थे।

अंग्रेज़ी प्रेस के साथ अपने पहले साक्षात्कार में मैंने अनजाने में यह कह दिया था कि मैं अपने इंगलिश स्कूली दिनों को फिर से जीने, रसेदार ईल मछली और ट्रिकल पुडिंग का स्वाद लेने के लिए आया हूं। इसका नतीजा ये हुआ कि इन लोगों ने मुझे गैरिक क्लब में, रिट्ज में, एच जी वेल्स के यहां और यहां तक कि सर फिलिप सैसून के यहां छप्पन भोग वाले डिनर में भी जो स्वीट डिश खिलायी, वह ट्रिकल पुडिंग ही थी।

पार्टी जल्द ही बिखर गयी। तब ऐडी नोब्लॉक मेरे कान में फुसफुसाये कि सर जेम्स बैरी चाहते हैं कि हम एडेल्फी टैरेस स्थित उनके अपार्टमेंट में एक कप चाय के लिए चलें।

बेरी का अपार्टमेंट चित्रशाला की तरह था। एक बहुत बड़ा-सा कमरा जहां से टेम्स नदी का नज़ारा दिखायी देता था। कमरे के बीचों-बीच एक गोलाकार अंगीठी थी जिसमें से चिमनी का एक पाइप ऊपर छत तक चला गया था। वे हमें उस खिड़की तक ले गये जो एक तंग गली की तरफ खुलती थी और उसके ठीक सामने एक दूसरी खिड़की थी।

"ये बर्नार्ड शॉ का सोने का कमरा है।" उन्होंने अपने स्कॉटिश लहजे में शरारतपूर्ण तरीके से कहा,"जब भी मैं बत्ती जली हुई देखता हूं तो मैं उनकी खिड़की पर चेरी या आलूचे के बीज फेंक कर मारता हूं। अगर वे गप्पबाजी करना चाहते हैं तो वे खिड़की खोल देते हैं, और हम थोड़ी देर निठल्ली औरतों की तरह गपशप कर लेते हैं और अगर वे बात नहीं करना चाहते तो मेरी तरफ कोई ध्यान नहीं देते या फिर बत्ती बुझा देते हैं। आम तौर पर मैं तीन बार बीज उनकी खिड़की पर मारता हूं और उसके बाद छोड़ देता हूं।"

पैरामाउंट हॉलीवुड में पीटर पैन फिल्माने जा रहे थे। "पीटर पैन" मैंने बेरी से कहा,"में नाटक से भी ज्यादा फिल्म में संभावनाएं हैं।" और वे मुझसे सहमत थे। उस शाम बैरी ने ये पूछा,"आपने द किड में एक स्वप्न की दृश्यावली को क्यों पिरोया है? इससे कथा के विकास में बाधा आती है।"

"चूंकि मैं ए किस ऑफ सिंड्रेला से प्रभावित था।" मैंने बेधड़क हो कर कहा।

अगले दिन ऐडी और मैं खरीदारी के लिए निकल गये। उसके बाद उन्होंने सुझाव दिया कि क्यों न हम बर्नार्ड शॉ से मिलते चलें! कोई समय तय नहीं किया गया था। "हम बस उनसे यूं ही मिल लेंगे।" कहा ऐडी ने। दोपहर चार बजे के करीब ऐडी ने एडेल्फी टैरेस में दरवाजे की घंटी बजायी। जिस वक्त हम इंतज़ार कर रहे थे कि तभी अचानक मेरा मूड उखड़ गया,"किसी और समय।" कहा मैंने और वहां से गली में सरपट दौड़ लिया। ऐडी मेरे पीछे-पीछे दौड़ रहे थे। वे बेकार में मुझे आश्वस्त कर रहे थे कि सब कुछ ठीक हो जायेगा।

1931 में ही यह संभव हो पाया था जब मुझे बर्नार्ड शा से मिलने का सौभाग्य मिला।

अगली सुबह मेरी नींद बैठक में बज रही टेलिफोन की घंटी से खुली और मैंने अपने अमरीकी सचिव की गुरू गम्भीर आवाज़ सुनी: "कौन? प्रिंस ऑफ वेल्स!!"

ऐडी भी वहीं पर थे और चूंकि वे अपने आपको प्रोटोकॉल के जानकार समझते थे, फोन सचिव से ले लिया। मैं ऐडी की आवाज़ सुन पा रहा था, वे कह रहे थे,"तो आप हैं! हां हां, जी हां, आज रात? धन्यवाद!!"

ऐडी ने उत्तेजित होते हुए मेरे सचिव को बताया कि प्रिंस ऑफ वेल्स चाहते हैं कि चैप्लिन आज रात उनके साथ भोजन करें और वे खुद मेरे बेडरूम की तरफ लपके।

"उन्हें अभी मत जगाइये।" मेरे सचिव ने कहा।

"अरे भाई, समझा करो। ये प्रिंस ऑफ वेल्स हैं।" ऐडी ने नाराज़ होते हुए कहा और ब्रिटिश तौर तरीकों पर हल्ला बोल दिया।

एक ही पल बाद मैंने अपने बैडरूम के दरवाजे के हैंडल को घूमते हुए सुना तो मैंने यही जतलाया मानो मैं जाग रहा था। ऐडी भीतर आये और दबी हुई उत्तेजना के साथ और नकली उदासीनता के साथ बताने लगे," आज रात अपने आपको फ्री रखना। तुम्हें प्रिंस ऑफ वेल्स के साथ खाना खाने के लिए न्यौता मिला है।"

उसी तरह की उदासीनता ओढ़ते हुए मैंने उन्हें बताया कि ये खराब लगेगा क्योंकि मैं आज की शाम एच जी वेल्स के साथ डिनर करने के बारे में पहले ही तय कर चुका हूं। मैंने जो कुछ कहा उस पर ऐडी ने कोई ध्यान नहीं दिया और प्रिंस के संदेश को दोहराया। बेशक मैं रोमांचित था - बकिंघम पैलेस में प्रिंस ऑफ वेल्स के साथ भोजन करने का ख्याल ही रोमांचित करने वाला था!

"लेकिन मेरा ख्याल है, ज़रूर कोई हमें बुद्धू बना रहा है।" कहा मैंने,"क्योंकि मैंने कल रात ही पढ़ा था कि प्रिंस स्कॉटलैंड में हैं, शिकार के लिए!"

ऐडी अचानक मूरख नज़र आने लगे, "शायद यही बेहतर होगा कि मैं महल में फोन करके पता करूं!"

वे वापिस आये तो उनके चेहरे पर गूढ़ भाव थे। उन्होंने चेहरे पर कोई भी संवेदना लाये बगैर कहा,"ये सच है। वे अभी भी स्कॉटलैंड में ही हैं।"

उसी सुबह खबर आयी कि कीस्टोन कम्पनी में मेरे सहयोगी रोस्को ऑरबक्कल पर कत्ल का इल्ज़ाम लगाया गया है। ये अविश्वसनीय खबर थी। मैं रोस्को को जानता था। वे बहुत ही नेक, मिलनसार आदमी थे और वे इतने सज्जन थे कि कभी किसी मक्खी को भी नहीं मार सकते थे। जब प्रेस ने इस बारे में मेरा साक्षात्कार लिया तो मैंने यही राय जाहिर की थी। बाद में ऑरबक्कल को पूरी तरह से दोष मुक्त कर दिया गया था लेकिन इस मामले ने उनका कैरियर ही चौपट कर दिया: हालांकि उन्हें फिर से जनता में अपनी पुरानी जगह मिल गयी थी, इस दुखद प्रसंग ने उन पर अपना असर छोड़ा और वे एकाध बरस के भीतर ही गुज़र गये थे।

मुझे ऑसवाल्ड स्टॉल थियेटर के दफ्तर में दोपहर के वक्त वेल्स महोदय से मिलना था। हमें वहां पर उनकी एक कहानी पर आधारित बनी हुई फिल्म देखनी थी। जैसे ही हम निकट पहुंचे तो देखते क्या हैं कि वहां पर अपार भीड़ जुटी हुई है। जल्दी ही मुझे धकियाया गया, उछाला गया और एक लिफ्ट में एक तरह से धकेल दिया गया। और इस तरह से मैं एक छोटे-से दफ्तर में पहुंचा जहां पर और भी कई लोग थे।

मैं इस बात को ले कर हैरान-परेशान था कि हमारी पहली ही मुलाकात इस तरह के मुहूर्त में हो रही है। वेल्स एक डेस्क के पास शांत मुद्रा में बैठे हुए थे। दयालुता से भरी उनकी बैंजनी नीली आंखें चमक रही थीं। वे भी थोड़े परेशान लग रहे थे। इससे पहले कि हम हाथ ही मिला पाते, चारों तरफ से फ्लैशलाइटों और फोटाग्राफरों के हुजूम ने हमें घेर लिया। वेल्स झुके और फुसफुसाये,"आप और मैं बकरियां हैं!"

तब हमें प्रोजेक्शन रूम में ले जाया गया। फिल्म खत्म होने को थी कि तभी वेल्स मेरे कान में फुसफुसाये,"आपको कैसी लगी फिल्म?"

मैंने स्पष्ट उत्‍तर दिया कि फिल्म अच्छी नहीं थी। जब रौशनियां जल गयीं तो वेल्स तेजी से झुके,"नायक के बारे में तो दो भले शब्द कह दो!"

दरअसल, नायक जॉर्ज के आर्थर ही थे जो अकेले फिल्म की जान थे।

फिल्मों के प्रति वेल्स का नज़रिया अप्राकृतिक रूप से सहन करने वालों की तरह का था। "बुरी फिल्म नाम की कोई चीज नहीं होती।" कहा उन्होंने,"बात यही है कि उनकी गति शानदार होती है।"

उस अवसर पर एक दूसरे को जान पाने का मौका नहीं था लेकिन, बाद में उसी दिन मुझे उनका संदेश मिला।

डिनर के बारे में मत भूलना। अगर आपको ठीक लगे तो अपने आपको ओवरकोट में छुपाते हुए आ जाना। 7.30 बजे सरक कर आ जाना और हम शांति से खाना खा पायेंगे।

उस शाम रेबेका वेस्ट भी वहीं थी। बातचीत थोड़ी उखड़ी-उखड़ी चल रही थी। लेकिन आखिरकार हमने पिघलना शुरू किया। वेल्स रूस के बारे में बातें करने लगे। वे हाल ही में रूस हो कर आये थे।

"प्रगति धीमी है।" वे बोले,"आदर्शवादी फतवे जारी करना आसान होता है लेकिन उन्हें अमल में लाना मुश्किल होता है।"

"उपाय क्या है?" मैंने पूछा।

"शिक्षा"

मैंने उन्हें बताया कि मैं समाजवाद से बहुत अच्छी तरह से वाकिफ नहीं हूं और मैंने मज़ाक में कहा कि मैं ऐसी व्यवस्था का हामी नहीं हूं जहां पर जीवन जीने के लिए आदमी को काम करना ही पड़े। "सच कहूं तो मैं ऐसी व्यवस्था को पसंद करूंगा जहां आदमी को काम किये बिना भी जीने दिया जाये।"

वे हँसे,"तो भई, आपकी फिल्में क्या हैं?"

"वो तो कोई काम थोड़े ही है, वह तो बच्चों का खेल है।" मैंने मज़ाक में कहा।

उन्होंने पूछा कि यूरोप में छुट्टियों में मैं क्या करने वाला हूं। मैंने बताया कि पहले तो मैं पेरिस जाने की सोच रहा हूं और फिर सांडों के साथ लड़ाई, बुल फाइट देखने स्पेन जाने का मन है।

"मुझे बताया गया है कि तकनीक ड्रामाई और सुंदर होती है।"

"हां, सो तो है, लेकिन घोड़ों के लिए ये सब बहुत क्रूरतापूर्ण है," कहा उन्होंने।

"लेकिन घोड़ों के लिए क्या भावुक होना?" मैंने इस मूर्खतापूर्ण जुमले के लिए मैंने अपना सिर पीट लिया होता!! ये मेरी दिलेरी थी। लेकिन मैं देख पाया कि वेल्स समझ गये थे। अलबत्ता, घर आते समय सारे समय मैं अपने-आपको इस बात के लिए कोसता रहा कि मैंने इतनी हल्की बात कैसे कह दी।

अगले दिन ऐडी नोब्लॉक के दोस्त, सर एडविन लुट्येंस, प्रसिद्ध वास्तुशिल्पी होटल में मिलने आये। वे दिल्ली में नयी सरकारी इमारत के लिए नक्शों पर काम कर रहे थे और बकिंघम पैलेस में किंग जॉर्च V के साथ अभी-अभी मुलाकात करके लौट रहे थे। वे अपने साथ एक छोटा-सा घुमंतू टायलेट ले कर गये थे; ये लगभग छ: इंच ऊंचा था और इसमें एक छोटी सी टंकी लगी हुई थी जिसमें शराब के गिलास जितना पानी आ जाता था। जिस वक्त जंजीर खींची जाती थी, उसका फ्लश नियमित टायलट की तरह चलता था। राजा और रानी दोनों ही इसे देख कर इतने आनंदित हुए और जंजीर का खींचना और फ्लश का चल पड़ना उन्हें इतना भाया कि लुट्येंस ने सुझाया कि इसके चारों तरफ एक गुड़िया घर बना दिया जाये। बाद में उन्होंने इस बात की व्यवस्था की कि कई ख्यातिनाम अंग्रेज़ कलाकारों ने प्रधान कक्षों के लिए मिनिएचर तस्वीरें पेंट कीं। प्रत्येक घरेलू वस्तु मिनिएचर में ही बनायी गयी थी। जब काम पूरा हो गया तो महारानी ने इस बात की अनुमति दी कि इन्हें जनता के प्रदर्शन के लिए रखा जाये और इस तरह से उन्होंने सहायतार्थ बड़ी राशियां जुटायीं।

कुछ ही अरसे बाद मेरी सामाजिक गतिविधियों का ज्वार नीचे उतरने लगा। मैं साहित्यकारों से और गणमान्य व्यक्तियों से मिल चुका था और अपने बचपन की जगहों पर जा चुका था; अब मेरे लिए और कुछ नहीं रह गया था सिवाय इसके कि भीड़ से बचने के लिए टैक्सियों में घुसता और उनमें से निकलता रहूं; और अब चूंकि ऐडी नोब्लॉक ब्राइटन के लिए जा चुके थे, मैंने अचानक ही तय किया कि बोरिया-बिस्तर बांध लिया जाये और इस सबसे मुक्ति पायी जाये।

हम बिना किसी प्रचार के चले थे, ये मेरा ख्याल था, लेकिन कालाइस पर बहुत बड़ी भीड़ ने हमारा स्वागत किया। जैसे ही मैं जहाज के रास्ते से नीचे आया, वे चिल्लाये, "जुग जुग जीओ चैर्लोट¨।" हमारी समुद्री यात्रा बहुत ही दुरूह रही थी और मेरा आधा तन तो चैनल में ही रह गया था; इसके बावजूद मैंने अपना कमज़ोर हाथ हिलाया और मुस्कुराया। मुझे धक्का दिया गया, खींचा गया और दबा कर ट्रेन के हवाले कर दिया गया। पेरिस पहुंचने पर बहुत बड़ी संख्या में लोगों ने और पुलिस बंदोबस्त ने हमारा स्वागत किया। एक बार फिर उत्साहपूर्वक मुझे धकियाया गया, रगेदा गया और पुलिस की मदद से मुझे उठाया गया और एक टैक्सी में ठूंस दिया गया। ये सब बहुत मज़ेदार रहा और सच कहूं तो मुझे इस सबमें मज़ा आया। लेकिन ये सब उससे ज्यादा था जितने का मैं हकदार था। हालांकि जिस तरह से मेरी अगवानी की जा रही थी, इसकी उत्तेजना ने मुझे निचोड़ कर रख दिया था।

क्लेरिज होटल में हर दस मिनट बाद फोन लगातार घनघनाना शुरू कर देता। मिस ऐन मोर्गन का सचिव बात करना चाहता था। मैं जानता था कि ये फोन किसी न किसी अनुरोध को ले कर ही होगा, क्योंकि ऐन जे पी मोर्गन की पुत्री थीं। इसलिए हमने सचिव की तरफ तवज्जो देना छोड़ दिया लेकिन सचिव महाशय हमें छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे।

"क्या मैं मिस मोर्गन से मिलूंगा? वे मेरा ज्यादा वक्त नहीं लेंगी।"

मैंने हार मान ली और ये वादा किया कि मैं अपने होटल में दोपहर को पौने चार बजे मिलूंगा। लेकिन मिस मोर्गन को देर हो गयी इसलिए मैंने चार बजने से दस मिनट पहले जाने की तैयारियां शुरू कर दीं। जिस वक्त मैं लॉबी में से जा रहा था, होटल का प्रबंधक मेरे पास लपकता हुआ आया और परेशान हाल बोला,"मिस मोर्गन आपसे मिलने के लिए आ पहुंची हैं सर!"

मैं मिस मोर्गन के पक्के इरादे और आश्वस्ति का मुरीद हो गया था। और फिर ऊपर से देरी! मैंने मुस्कुराते हुए उनका स्वागत किया,"मुझे खेद है कि चार बजे मुझे किसी से मिलना है।"

"ओह, सचमुच!" कहा उन्होंने,"तो ठीक है, मैं आपके पांच मिनट से ज्यादा नहीं लूंगी।"

मैंने अपनी घड़ी देखी। चार बजने में पांच मिनट बाकी थे।

"क्या हम दो घड़ी के लिए बैठ कर बात कर सकते हैं!" उन्होंने कहा और जब लॉबी में बैठने के लिए जगह के लिए तलाश कर रहे थे, हमने बात करना शुरू कर दिया।

"मैं बरबाद हो चुके फ्रांस के पुनर्निर्माण के लिए निधियां जुटाने में मदद कर रही हूं और अगर हम ट्रोकारडो में आपकी फिल्म द किड का भव्य प्रदर्शन रखें और आप उसके साथ मंच पर आ सकें तो हम हज़ारों डॉलर जुटा सकते हैं।"

मैंने उन्हें बताया कि वे इस मौके पर फिल्म का प्रदर्शन तो कर सकती हैं लेकिन मैं उसके साथ उपस्थित नहीं रहूंगा।

"लेकिन आपकी मौजूदगी से हम कुछ हज़ार डॉलर अतिरिक्त जुटा पायेंगे!" उन्होंने ज़ोर दिया, "और मुझे विश्वास है कि आपका सम्मान किया जायेगा।"

मुझ पर जैसे शैतान हावी हो गया और मैंने सीधे उनकी तरफ देखा,"यकीन है आपको?"

मिस मोर्गन हँसी,"अब आदमी सरकार से सिफारिश ही तो कर सकता है।" वे बोलीं, "और मैं अपनी ओर से पूरी कोशिश करूंगी।"

मैंने घड़ी की तरफ देखा और अपना हाथ बढ़ा दिया,"मुझे बेहद अफसोस है कि मुझे जाना ही होगा। अलबत्ता, मैं अगले तीन दिन के लिए बर्लिन में होऊंगा और शायद आप मुझे बता देंगी।" और इस भेद भरे जुमले के साथ मैंने उनसे विदा ली। मैं जानता था कि ये मेरी ज्यादती थी और जिस वक्त मैं होटल से जा रहा था, मुझे अपनी इस हिमाकत पर अफसोस होता रहा।

सामाजिक ढांचे से आपका परिचय आम तौर पर अचानक ही किसी घटना के कारण होता है और वह आग से किसी चिन्गारी की तरह सामाजिक गतिविधियों का सिलसिला शुरू कर देता है और आप पाते हैं कि आप उसके "भीतर" हैं।

मुझे वेनेजुएला की दो लड़कियों की याद है - सीधी सादी लड़कियां। उन्होंने मुझे बताया था कि किस तरह से न्यू यार्क के सोसाइटी में उन्होंने अपनी पैठ बनायी थी। एक समुद्री जहाज पर उनकी मुलाकात रॉकफैलर्स में से एक से हुई थी जिसने उन्हें अपने दोस्तों के नाम परिचय की चिट्टी दे दी थी और यहीं से परिचयों का सिलसिला शुरू हुआ। बहुत बरसों के बाद उनमें से एक ने मुझे बताया था कि उनकी सफलता का राज़ ये रहा कि उन्होंने कभी भी शादीशुदा आदमियों पर लाइन नहीं मारी; और इसका नतीजा ये हुआ कि मेज़बान महिलाएं उन्हें पसंद करती थीं और उन्हें हर कहीं बुलाती थीं और उनके लिए यहां तक किया कि उनके लिए पति भी तलाशे।

जहां तक मेरा सवाल है, अंग्रेजी समाज में मेरा प्रवेश अचानक ही हुआ। मैं क्लेरिज होटल में स्नान कर रहा था। जॉर्जेस कारपेंटियर, जिनसे मैं न्यू यार्क में जैक डेम्प्से के साथ उनकी लड़ाई से पहले मिल चुका था, के आने के बारे में बताया गया और वे बाथरूम में चले आये। गर्मजोशी से मिल लेने के बाद वे मेरे कान में फुसफुसाये कि बैठक में उनका एक दोस्त बैठा हुआ है जिससे वे मुझे मिलवाना चाहते हैं। ये अंग्रेज शख्स अंग्रेजी समाज में बहुत खास जगह रखता है। ये सुन कर मैंने फटाफट बाथरोब डाला, और सर फिलिप सैसून से मिला। ये एक बहुत ही प्यारी दोस्ती की शुरुआत थी जो अगले तीस बरस तक चलती रही। उस शाम हमने सर फिलिप सैसून और उनकी बहन के साथ भोजन किया। वे उस वक्त लेडी रॉकसैवेज हुआ करती थीं। अगले ही दिन मैं बर्लिन के लिए रवाना हो गया।

बर्लिन में जनता की प्रतिक्रिया मज़ेदार थी। वहां पर मेरे व्‍यक्तित्‍व के अलावा मुझसे मेरा सब कुछ उतरवा लिया गया और हालत ये हो गयी कि एक नाइट क्लब में मुझे ढंग की मेज़ तक नसीब नहीं हुई। इसकी वजह ये थी कि वहां पर मेरी कोई भी फिल्म अब तक प्रदर्शित नहीं हुई थी। शुरुआत तब हुई जब एक अमेरिकी अधिकारी ने मुझे पहचाना और हैरान परेशान मालिक को उदासीनता के साथ बताया कि मैं कौन हूं और कम से कम हम अपरिचय के दायरे से बाहर आ पाये थे। होटल के प्रबंधन की उस प्रतिक्रिया देखना तो और भी मज़ेदार था जब हमारी मेज़ के आस पास उन लोगों की भीड़ लग गयी जिन्होंने मुझे पहचान लिया था। उनमें से एक जर्मन, जो इंगलैंड में कैद में रह चुका था, और वहां पर उसने मेरी दो तीन कॉमेडी फिल्में देख रखी थीं, अचानक चिल्लाया, "शार्ली ई ई ई!" और हक्के-बक्के खड़े ग्राहकों की तरफ मुड़ कर बोला,"आपको पता है ये कौन है? शार्ली ई ई ई!" तब जैसे उसे पागलपन का दौरा पड़ गया हो, उसने मुझे गले लगाया और मुझे चूमा। लेकिन उसके उस उत्साह से ज्यादा कुछ हंगामा नहीं हुआ। लेकिन तभी जर्मन फिल्म अदाकारा, पोला नेगरी, जो सबकी आंखों का तारा थी, ने मुझसे पूछा कि क्या मैं उनकी मेज पर आना पसंद करूंगा, तभी जा कर थोड़ी बहुत दिलचस्पी पैदा हो पायी थी।

मेरे पहुंचने के दिन ही मुझे एक रहस्यमय संदेश मिला। इसमें लिखा था:

प्यारे दोस्त चार्ली, पिछली बार जब हम डुडले फील्ड मालोने के यहां न्यू यार्क में पार्टी में मिले थे, उसके बाद बहुत कुछ घट चुका है। इस समय मैं अस्पताल में बहुत बीमार पड़ा हुआ हूं, इसलिए मेहरबानी करके आओ और मुझसे मिलो। मुझे बहुत बहुत खुशी होगी. ..।

लेखक ने अस्पताल का अपना पता दिया था और हस्ताक्ष किये थे: "जॉर्ज"

पहले तो मुझे याद ही नहीं आया कि ये शख्स है कौन!! तभी मुझे सूझा: हां, ये वही बुल्गारियाई जॉर्ज है जिसे अट्ठारह बरस के लिए दोबारा जेल में जाना था।

पत्र की भाषा से ही साफ़ जाहिर हो रहा था कि मामला दिल को छूने वाला ही होगा इसलिए मैंने सोचा कि अपने साथ पांच सौ डॉलर लेता चलूं। मेरी हैरानी का ठिकाना न रहा जब अस्पताल में मुझे एक बहुत बड़े से कमरे में ले जाया गया जिसमें एक डेस्क रखी थी और उस पर दो टेलिफोन रखे हुए थे। वहां पर दो अच्छे-खासे कपड़े पहने दो सिविल अधिकारियों ने मेरा स्वागत किया जिनके बारे में बाद में मुझे पता चला कि वे जॉर्ज के सचिव थे। उनमें से एक मुझे साथ वाले कमरे में लिवा ले गया जहां पर जॉर्ज बिस्तर पर लेटा था। "मेरे दोस्त!" वह भावुक हो कर मेरा स्वागत करते हुए बोला, "तुम आये, ये देख कर मुझे कितनी खुशी हो रही है। मैं डुडले की पार्टी में तुम्हारी सहानुभूति और मेहरबानी कभी भी भूल नहीं सकता!" उसने तब अपने सचिव को यंत्र चालित तरीके से आदेश दिया और हम दोनों को अकेला छोड़ दिया गया। चूंकि उसने अमेरिका से चले जाने के बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया, तो मुझे यही ठीक लगा कि इस बारे में उससे बात न करना ही उचित रहेगा; इसके अलावा, वह न्यू यार्क के अपने दोस्तों के बारे में जानने के लिए बहुत ज्यादा उत्सुक था। मैं हैरान था। मुझे परिस्थिति का सिर पैर समझ में नहीं आ रहा था। ये सब किसी किताब के कई अध्याय एक साथ पलट लेने जैसा लग रहा था। रहस्य से पर्दा उठने की घड़ी तब आयी जब उसने बताया कि आजकल वह बोल्शेविक सरकार के लिए खरीद करने वाला एजेंट है और इस समय वह बर्लिन में रेलवे इंजिन और इस्पात के पुल खरीदने के लिए आया हुआ है।

मैं वापिस लौटा तो मेरे पांच सौ डॉलर मेरी जेब में सुरक्षित थे।

बर्लिन हताश करने वाला शहर था। वहां पर अभी भी हार वाला माहौल पसरा हुआ था और लगभग हर गली के कोने पर भीख मांगते लूले लंगड़े सैनिक युद्ध के बाद की त्रासद कहानी कह रहे थे। अब मुझे मिस मोर्गन के सचिव से तार मिलने शुरू हो गये जिनमें चिंता झलकती लगती क्योंकि पेस ने पहले से ही शो के समय ट्रोकाडेरो में मेरे उपस्थित होने की घोषणा प्रसारित करनी शुरू कर दी थी। मैंने वापसी तार भेजा कि मैंने मौजूद रहने का कोई वादा नहीं किया है और कि फ्रांसीसी जनता का विश्वास बनाये रखने के लिए मुझे उन्हें सच से अवगत कराना ही पड़ेगा।

आखिरकार एक तार आया: पूरा आश्वासन मिला कि अगर आप मौजूद रहते हैं तो आपको सम्मानित (डेकोरेट) किया जायेगा, लेकिन इसे पीछे कोशिशों और संकटों की लम्बी कड़ी रही है- ऐन मोर्गन। इसलिए बर्लिन में तीन दिन बिता कर मैं पेरिस वापिस आ गया।

ट्रोकाडेरो में प्रीमियर की रात मैं बॉक्स में सिसिल सोरेल, ऐन मोर्गन, और कई अन्य लोगों के साथ था। सिसिल मेरे कान में कोई गहरा भेद खोलने के लिए मेरे नज़दीक आये,"आज की रात आपका सम्मान किया जा रहा है।"

"कितनी शानदार बात है, नहीं क्या?" मैंने विनम्रता से कहा।

इंटरवल तक कोई वाहियात डॉक्यूमेंटरी चलती रही, चलती रही। तब तक मैं बीच बीच में काफी ऊब झेल चुका था कि तभी बत्तियां जल गयीं और दो अधिकारी आये और मेरी अगवानी करके मंत्री महोदय के बॉक्स तक ले गये। कई पत्रकार भी हमारे साथ लग लिये।

एक काइंया अमेरिकी संवाददाता लगातार मेरी गर्दन के पीछे से फुसफुसाता रहा,"आपको लीजन ऑफ ऑनर मिल रहा है, दोस्त।" जिस वक्त मंत्री अपना भाषण दे रहे थे, मेरे इस दोस्त ने मेरे कान में लगातार फुसफुसाना जारी रखा,"इन लोगों ने आपको डबल क्रॉस किया है, दोस्त। ये गलत रंग है। इस रंग के रिबन से तो वे अपने स्कूल के टीचरों का सम्मान करते हैं। इस सम्मान को पा लेने से आप कोई तोप नहीं हो जायेंगे। आप लाल रंग से अपना सम्मान करने के लिए कहिये। मेरी मानो दोस्त।"

सच तो ये था कि मैं स्कूल टीचरों के वर्ग के साथ सम्मानित किये जाने से बहुत खुश था। प्रमाण पत्र में लिखा था: चार्ल्स चैप्लिन, नाटककार, कलाकार, ऑफिशियल द ल इलस्टेशन पब्लिक ।

मुझे ऐन मोर्गन की तरफ से आभार का बहुत ही खूबसूरत खत मिला और साथ में मिला - विला ट्रायनन, वर्सेलेस में खाना खाने का न्यौता। ऐन ने बताया कि वे मुझे वहीं पर मिलेंगी। ये कुछ खास हस्तियों का ही जमाव़ड़ा था। प्रिंस जॉर्ज ऑफ ग्रीस, लेडी साराह विल्सन, द मार्कुस द टालेरेंड पेरीगोल्ड, कमांडर पॉल लुइस वैल्लर, इल्सा मैक्सवेल तथा अन्य। उस मौके पर जो कुछ भी हुआ या जो भी बातें हुईं, मुझे उनकी याद नहीं है क्योंकि मैं तो अपने आकर्षण को ही भुनाने में लगा हुआ था।
अगले दिन मेरे मित्र वाल्डो फ्रैंक जैकस कोपीउ के साथ मेरे होटल में आये। जैकस फ्रांसीसी थियेटर में नये आंदोलन के अगुआ थे। हम उस शाम एक साथ सर्कस देखने गये और हमने कुछ बेहद शानदार जोकर देखे। इसके बाद हमने लैटिन क्वार्टर में कोपीउ की मंडली के साथ खाना खाया।

अगले दिन मुझे लंदन में होना चाहिये था। वहां पर मुझे सर फिलिप सासून और लार्ड और लेडी रॉकसैवेज के साथ लंच लेना था और लॉयड जॉर्ज से मुलाकात करनी थी। लेकिन चैनल पर खूब अधिक धुंध होने के कारण जहाज को फ्रांसीसी तट पर ही उतरना पड़ा और इस तरह से हम तीन घंटे देर से पहुंच पाये।

सर फिलिप सासून के बारे में दो शब्द। वे युद्ध के समय लॉयड जॉर्ज के आधिकारिक सचिव रह चुके थे। वे लगभग मेरी ही उम्र के थे और बहुत ही शानदार व्यक्तित्व के मालिक थे। वे देखने में सुदर्शन थे और आंखों को भा जाने वाले नज़र आते थे। वे संसद सदस्य थे और वहां ब्राइटन और होव का प्रतिनिधित्व करते थे। हालांकि वे इंगलैंड के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक थे, उन्हें खाली बैठे रहना पसंद नहीं था। वे कड़ी मेहनत करते थे और उन्होंने अपने लिए बहुत ही रोचक ज़िंदगी का रास्ता चुना था।

जब मैं उनसे पहली बार पेरिस में मिला तो मैंने उन्हें बताया था कि मैं थक चुका हूं और भीड़ भाड़ से दूर चले जाना चाहता हूं। इसके अलावा मैं बहुत नर्वस हो गया हूं और मैंने उनसे ये शिकायत तक कर डाली थी कि मेरे होटल के कमरे की दीवारों के रंग भी मेरी कोफ्त बढ़ा रहे हैं।

वे हँसे थे,"आपको कौन सा रंग पसंद है?"

"पीला और सुनहरी," मैंने मज़ाक में कहा।

उन्होंने तब मुझे सुझाव दिया कि मैं उनकी इस्टेट लिम्पने में चला जाऊं जहां मुझे भरपूर शांति मिलेगी और मैं लोगों से दूर रह पाऊंगा। मेरी हैरानी का ठिकाना न रहा जब मैंने वहां पहुंच कर पाया कि मेरे कमरे में पीले और सुनहरी रंग के पेस्टल परदे थे।

उनकी इस्टेट असाधारण रूप से खूबसूरत थी। घर को चमक दमक से सजाया गया था। फिलिप इसे कर पाये क्योंकि उनकी अभिरुचि बहुत ऊंची थी। मुझे याद है कि मैं ये देख कर कितना प्रभावित हुआ था कि मेरा सुइट विलासिता की सभी सुविधाओं से लैस था। अगर रात को कहीं मुझे भूख लगे तो सूप गरम रखने के लिए आग से गरम रखी जाने वाली तश्तरी। सवेरे के वक्त दो अनुभवी बटलर तरह तरह के व्यंजनों से लदी एक ट्राली ले कर आते जिस में तरह तरह के पकवान होते: अमेरिकी सीरियल, फिश कटलेट, बैकन और अंडे। मुझे ख्याल आया था कि जब से मैं यूरोप में था, मैं अमेरिकी व्हीटकेक की कमी महसूस कर रहा था और अब ये मेरे सामने थे। मेरे बिस्तर के बगल में ही ले आये गये थे। एकदम गरमा गरम, और साथ में मक्खन और मैपल का शोरबा। लगता था ये सब अरेबियन नाइट्स से चल कर आया है।
सर फिलिप घूम घूम कर घर के काम काज निपटाते और उनका एक हाथ कोट की जेब में होता। वे उस हाथ से मां की मोतियों की माला फेर रहे होते। ये लगभग एक गज लम्बी माला थी और मोतियों का आकार अंगूठे के नाखून के बराबर था। उन्होंने बताया,"मैं मोतियों को जीवित रखने के लिए हमेशा अपने पास रखता हूं।"

जब मैं अपनी थकान से उबर गया तो उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं उनके साथ ब्राइटन में अस्पताल तक चला चलूंगा जहां पर कुछ ऐसे असाध्य मरीज हैं जो युद्ध में घायल हो गये थे। उन युवा चेहरों को देखना बेहद तकलीफदेह था, खास कर एक ऐसे नौजवान को देखना जिसके हाथ पांव बेकार हो चुके थे और वह मुंह में ब्रश ले कर पेंट कर रहा था क्योंकि यही वह इकलौता अंग था उसके शरीर का जो काम कर रहा था। एक अन्य सैनिक की मुट्ठियां इतनी भिंच गयी थीं कि उसके नाखून काटने के लिए उसे बेहोश करना पड़ा था ताकि उनके नाखून कहीं उसकी हथेलियों में ही न घुस जायें। कुछ मरीज तो इतनी दयनीय हालत में थे कि मुझे उन्हें देखने ही नहीं दिया गया। अलबत्ता, सासून उनसे मिले। लिम्पने के बाद हम एक साथ ड्राइव करते हुए लंदन में उनके पार्क स्ट्रीट स्थित घर में आ गये जहां पर उन्होंने सहायतार्थ पेंटिंगों की अपनी वार्षिक फोर जॉर्ज प्रदर्शनी का आयोजन किया हुआ था। ये बहुत ही शानदार घर था और उसमें एक बहुत बड़ी पौधशाला थी जिसमें नीले हाइसिंथ के फूल बिछे हुए थे। अगले दिन जब मैंने वहां पर लंच लिया तो पाया कि हाइसिंथ के फूल बदल दिये गये थे और अब किसी और रंग के थे।

हम सर विलियम ऑर्पेन के स्टूडियो में गये जहां पर हमने फिलिप की बहन लेडी रॉकसैवेज का पोर्ट्रेट देखा। ये बेहद खूबसूरती से सजाया गया था। मैंने तो अपनी तरफ से ऑर्पेन को नकारात्मक प्रतिक्रिया ही दी थी क्योंकि उन्होंने गूंगे की तरह विश्वास न करने जैसे भाव दिखाये थे और मैं समझा था कि ये भाव नकली हैं।

हम एक बार फिर एच जी वेल्स के गांव वाले घर में गये। ये वारविक इस्टेट के काउटेंस पर था और यहां पर वे अपनी पत्नी और अपने दोनों बेटों के साथ रहते थे। उनके बेटे हाल ही में कैम्ब्रिज से आये थे। मुझे रात भर वहां ठहरने का न्यौता दिया गया था।

दोपहर के आसपास कैम्ब्रिज संकाय के तीस से भी ज्यादा लोग आ गये और बगीचे में इस तरह से सट कर बैठ गये मानो स्कूल ग्रुप की फोटो ली जा रही हो। वे गूंगे हो कर मुझे देखे जा रहे थे मानो वे किसी दूसरे नक्षत्र से आये किसी विचित्र प्राणी को देख रहे हों।

शाम के वक्त वेल्स परिवार ने एक खेल खेला जिसका नाम था जानवर, सब्जी या खनिज। ये खेलते हुए मुझे लगा मानो मैं सामान्य ज्ञान की कोई परीक्षा दे रहा हूं। मेरी स्मृति में सबसे ऊपर है वहां की बरफ जैसी ठंडी चादरें और मोमबत्ती ले कर बिस्‍तर पर सोने जाना। इंगलैंड में बितायी गयी ये मेरी सबसे ठंडी रात थी। सारी रात मैं ठिठुरता रहा था और सुबह जब उठा तो एच जी वेल्स ने मुझसे पूछा कि रात नींद आयी थी क्या।

"हां, ठीक से सोया मैं," मैंने विनम्रता से जवाब दिया।

"हमारे कई मेहमान कहते हैं कि कमरा ठंडा होता है?" उन्होंने भोलेपन से पूछा।

"मैं ये तो नहीं कहूंगा, ठंडा था, हां बर्फीला ज़रूर था।"

वे हँसे।

एच जी वेल्स के घर उस बार जाने की कुछ और स्मृतियां हैं मेरे पास। उनका छोटा सा अध्ययन कक्ष था जो बाहर लगे दरख्तों के कारण अंधेरा सा लगता था। उसकी खिड़की के पास पुराने ढब की एक ढलुवां लिखने की डेस्क थी। उनकी प्यारी सी, सुंदर पत्नी ने मुझे ग्यारहवीं शताब्दी का गिरजाघर दिखाया था। हमने एक नक्काशी करने वाले से बात की थी जो कुछ समाधि शिलाओं से पीतल की छाप ले रहा था। घर के पास झुंड के झुंड हिरण घूम रहे थे। लंच के वक्त सेंट जॉन इर्विन ने रंगीन फोटोग्राफी के रोमांचकारी पहलुओं के बारे में बताया था और मैंने उनके प्रति अपनी नापसंदगी जाहिर की थी। एच जी ने कैम्ब्रिज के प्रोफेसर के व्याख्यान में से एक पन्ना पढ़ कर सुनाया था और मैंने कहा था कि इसकी पुरातन शैली यही आभास देती है मानो पन्द्रहवीं शताब्दी के किसी भिक्षु ने इसे लिखा हो। और फ्रैंक हैरिस के बारे में वेल्स का किस्सा। वेल्स ने बताया कि संघर्षरत युवा लेखक के रूप में उन्होंने चौथे आयाम को छूते हुए अपनी पहली विज्ञान कहानियों में से एक लिखी थी और उसे उन्होंने कई पत्रिकाओं के सम्पादकों को भेजा था लेकिन सफलता कहीं नहीं मिली थी। आखिर उन्हें फ्रैंक हैरिस से एक पर्ची मिली जिसमें अनुरोध किया गया कि मै उनके दफ्तर में आ कर मिलूं।

"हालांकि उन दिनों मैं कड़की में था," वेल्स ने बताया,"मैंने इस मौके के लिए एक पुराना टॉप हैट खरीदा । हैरिस ने मेरा इन शब्दों के साथ स्वागत किया: 'हे भगवान, तुमने ये हैट कहां से पा लिया और खुदा खैर खरे, तुम पत्रिकाओं में इस तरह के लेख बेचने के बारे में सोच ही कैसे सकते हो।' उन्होंने पांडुलिपि मेज पर पटक दी,'इस कारोबार में बौद्धिकता के लिए कोई जगह नहीं है।' मैंने अपना हैट सावधानी से डेस्क के कोने पर रखा हुआ था और बात करते समय फ्रैंक बार बार अपना हाथ डेस्क पर मार रहे थे और मेरा हैट बार बार इधर उधर उछल रहा था। मैं भयभीत था कि किसी भी पल उनकी मुट्ठी सीधे ही मेरे हैट पर पड़ेगी। अलबत्ता, उन्होंने वह लेख ले लिया था और मुझे और भी काम दिये थे।"

लंदन में मैं लाइम लाइट्स के लेखक थॉमस बर्के से मिला। वे शांत, अभेद्य, छोटे कद के आदमी थे जिनका चेहरा मुझे कीट्स के पोट्रेट की याद दिलाता था। वे बिना हिले डुले बैठे रहते और जिस व्यक्ति से बात कर रहे होते, शायद ही उससे आंखें मिलाते, लेकिन फिर भी उन्होंने मुझे बहुत प्रभावित किया। मुझे लगा कि मैं इस आदमी के सामने अपनी आत्मा का बोझ हल्का करना चाहता हूं और मैंने किया भी। मैं बर्के के साथ अपने सर्वश्रेष्ठ रूप में था। वेल्स की तुलना में भी अधिक। बर्के और मैं लाइमहाउस और चाइनाटाउन की गलियों में चहलकदमी करते रहते और आपस में एक शब्द भी न बोलते। जगहें घुमाने का उनका यही तरीका था। वे अलग ही तरह के आदमी थे और मैं कभी भी ये समझ नहीं पाया कि वे मेरे बारे में क्या सोचते थे। तीन या चार बरस के बाद ही उन्होंने मुझे अपनी अर्ध आत्मकथात्मक किताब द विंड एंड द रेन भेजी थी तभी मुझे पता चल पाया था कि वे मुझे पसंद करते थे। उनकी युवावस्था भी मेरी अपनी जवानी की तरह रही थी।

जब उत्तेजना की कलई उतरने लगी तो मैंने अपने कज़िन ऑब्रे और उसके परिवार के साथ डिनर लिया। एक दिन बाद मैं कार्नो के दिनों के जिम्मी रसेल से मिलने गया। उसका एक पब था। तब मैं स्टेट्स में वापिस लौटने के बारे में सोचने लगा।

अब मैं ऐसे पलों में पहुंच चुका था जब मुझे लगा कि अगर मैं लंदन में और अधिक रहा तो मैं अपने आपको निकम्मा महसूस करने लगूंगा। मैं इंगलैंड छोड़ने में हिचकिचकाहट महसूस कर रहा था लेकिन प्रसिद्धि के पास अब मुझे देने के लिए और कुछ नहीं बचा था। मैं पूरी संतुष्टि के साथ इंगलैंड से वापिस लौट रहा था हालांकि थोड़ा सा उदास था, क्योंकि मैं अपने पीछे न केवल अमीर और प्रसिद्ध लोगों के द्वारा दिये गये सम्मान और खातिरदारी और प्यार के शोर को पीछे छोड़ कर जा रहा था बल्कि वाटरलू और गरे दू नोर्ड स्टेशनों पर मेरा इंतज़ार करके स्वागत करने के लिए जुटी इंगलैंड और फ्रांस की जनता द्वारा ईमानदारी और प्यार से दिये गये स्नेह और उत्साह भी अब पीछे छूट रहे थे। इस बात की कोफ्त कि आप उनके पास से ले जाये जाये रहे हैं और टैक्सी में ठूंसे जा रहे हैं और इस हालत में भी नहीं हैं कि आप उनकी तरफ हाथ भी हिला सकें, तकलीफ देता है। मानो मैं फूलों को कुचलते हुए चला होऊं। मैं अपना अतीत भी पीछे छोड़ का जा रहा था। केनिंगटन, और 3 पाउनाल टैरेस में जाने से मेरे भीतर कुछ भर गया सा लगता था। अब मैं कैलिफोर्निया लौटते हुए और खुद को काम में झोंक देने के लिए संतुष्ट था क्योंकि काम ही मेरी मुक्ति थी। बाकी सब कुछ दोगलापन था।

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अट्ठारह

जब मैं न्यू यार्क में पहुंचा तो मैरी डोरो ने फोन किया। मैरी डोरो का फोन करना - इस फोन का मतलब कुछ बरस पहले क्या हो सकता था!

मैं उन्हें लंच के लिए ले गया और उसके बाद हम उस नाटक का मैटिनी शो देखने गये जिस में वे अभिनय कर रही थीं: लिलीज़ ऑफ द फील्ड।

शाम को मैंने मैक्स ईस्टमैन, उनकी बहन, क्रिस्टल ईस्टमैन, और जमाइका के कवि और जहाजी मज़दूर क्लाउड मैके के साथ खाना खाया।

न्यू यार्क में अंतिम दिन। मैं फ्रैंक हैरिस के साथ सिंग सिंग जेल गया। रास्ते में उन्होंने बताया कि वे अपनी आत्म कथा पर काम कर रहे हैं लेकिन उन्हें लगता है कि शुरू करने में बहुत देर हो गयी है,"मैं बूढ़ा हो रहा हूं।" कहा उन्होंने।

"उम्र अपने तरीके से क्षतिपूर्ति भी करती है।" मैंने चुटकी ली,"विवेक के हाथों मार खाना कम ही तकलीफदेह होता है।"

जिम लार्किन, आइरिश विद्रोही और मज़दूरों की यूनियन का संगठनकर्ता सिंग सिंग जेल में पांच बरस की सज़ा काट रहा था और फ्रैंक उससे मिलना चाहते थे। लार्किन बेहद मेधावी वक्ता था और उसे एक पूर्वाग्रही न्यायाधीश और जूरी द्वारा सरकार का तख्ता पलटने के झूठे जुर्म में सज़ा दी गयी थी, ऐसा फ्रैंक का कहना था और बाद में यह उस वक्त सिद्ध भी हो गया था जब गवर्नर अल स्मिथ ने उसकी सज़ा माफ़ कर दी थी लेकिन तब तक लार्किन अपनी सज़ा के अधिकांश बरस काट चुका था।

जेलों का एक अजीब-सा माहौल होता है। मानो वहां पर मानवीय आत्मा को स्थगित कर दिया गया हो। सिंग सिंग जेल में पुरानी कोठरियों के ब्लॉक बाबा आदम के ज़माने के थे। छोटी, संकरी, पत्थर की कोठरियां और हर कोठरी मे चार से छ: तक कैदी एक साथ सोते थे। इस तरह की हौलनाक इमारतें बनाने की सोचने वालों का दिमाग कितना खुराफाती होता होगा। कोठरियां इस वक्त खाली थीं क्योंकि कैदी इस वक्त बाहर एक्सरसाइज वाले अहाते में थे। वहां पर सिर्फ़ एक ही जवान आदमी था जो अपनी खुली कोठरी की दीवार से टिका बैठा उदासी में अपने ही ख्यालों में खोया हुआ था। वार्डन ने समझाया कि लम्बी सज़ा के लिए आने वाले नये कैदियों को पहले बरस के लिए पुरानी कोठरियों वाले ब्लॉक में ही रखा जाता है और उसके बाद ही उन्हें अधिक आधुनिक कोठरियों में डाला जाता है। मैं नौजवान के आगे से कदम रखता हुआ उसकी कोठरी में गया और वहां की तंग जगह के आतंक को देख घबरा उठा,"हे मेरे भगवान," मैंने बाहर कदम रखते हुए तेजी से कहा,"ये तो अमानवीय है।"

"आपका कहना सही है," युवा कैदी कड़ुवाहट के साथ फुसफुसाया।

वार्डन बेचारा भला आदमी था, बताने लगा कि सिंग सिंग जेल में ज़रूरत से ज्‍यादा भीड़ है तथा और कोठरियां बनाने के लिए पैसे चाहिये लेकिन किसे फुर्सत,"हम पर सबके बाद ही विचार किया जाता है। कोई भी राजनेता जेल की स्थितियों को सुधारने के लिए सोचता नहीं।"

जिस कमरे में मौत की सज़ा दी जाती थी, वह स्कूल के कमरे की तरह था, लम्बोतरा और संकरा, जिसकी छत नीची थी और दोनों तरफ पत्रकारों के लिए लम्बी बेंचें और डेस्क लगे हुए थे और उनके सामने एक सस्ता-सा लकड़ी का ढांचा, बिजली की कुर्सी रखी हुई थी। कुर्सी पर, ऊपर से बिजली की एक नंगी तार लटक रही थी। कमरे में सबसे ज्यादा आतंकित करने वाली बात उसकी सादगी थी। वहां किसी किस्म का कोई ड्रामा नहीं था और ये बात निर्दयता से मुंह ढक कर मारने से भी ज्यादा पापमय थी। कुर्सी के ठीक पीछे लकड़ी का एक पार्टीशन बना हुआ था जहां पर आदमी को मारने के तुरंत ले जाया जाता था और वहां पर उसकी चीर-फाड़ की जाती थी। "अगर कुर्सी ने अपना काम पूरी तरह से नहीं किया होता तो शरीर को शल्य क्रिया द्वारा काट-पीट दिया जाता है।" डॉक्टर ने हमें बताया। और आगे कहा कि खत्म कर दिये जाने के तुरंत बाद मानव शरीर के दिमाग में खून का तापमान 212 डिग्री फारेनहाइट के आस-पास होता है। हम मौत के कमरे से भागते हुए बाहर निकले।

फ्रैंक ने जिम लार्किन के बारे में पूछा तो वार्डन इस बात के लिए तैयार हो गया कि हम उससे मिल सकते हैं। हालांकि ये नियमों के खिलाफ था, वह हमारे लिए ये काम भी कर देगा। लार्किन जूते बनाने की फैक्टरी में था। वहां पर उसने हमारा स्वागत किया। वह एक लम्‍बा, सुंदर, लगभग छ: फुट चार इंच का शख्स था और उसकी नीली बेधती हुई आंखें लेकिन मोहक मुसकान थी।

हालांकि वह फ्रैंक से मिल कर खुश हुआ लेकिन वह नर्वस और व्यथित था और अपनी बेंच पर वापिस जाने के लिए लालायित था। यहां तक कि वार्डन के आश्वासन से भी उसकी बेचैनी दूर नहीं हुई। "नैतिक रूप से ये दूसरे कैदियों के हक में गलत होगा अगर मुझे काम के घंटों के दौरान अपने मेहमानों से मिलने दिया जाये," लार्किन ने कहा। फ्रैंक ने जब उससे पूछा कि वहां पर उसके साथ कैसा बरताव होता है और क्या वह उसके लिए कुछ कर सकता है तो उसने बताया कि उसके साथ ठीक-ठाक व्यवहार होता है, बस, वह आयरलैंड में अपनी बीवी और बच्ची के लिए परेशान है। उनके बारे में उसने सज़ा मिलने के बाद से नहीं सुना है। फ्रैंक ने वायदा किया कि वह उसकी मदद करेगा। जब हम वहां से चले तो फ्रैंक ने कहा कि जिम लार्किन जैसे इस बहादुर, जांबाज चरित्र को जेल के कैदी में बदल दिये जाने से उन्हें बहुत हताशा होती है।

जब मैं हॉलीवुड लौटा तो मां से मिलने के लिए बीच में रुक गया। वह बहुत खुश नज़र आ रही थी और उसे मेरी लंदन की विजय यात्रा की सारी खबरें मिल गयी थीं।

"बताओ तो मां, अपने बेटे और इन सारी बेवकूफियों के बारे में तुम क्या सोचती हो?" मैंने शरारतन पूछा।

"ये सब हैरान करने वाला है। लेकिन क्या ये अच्छा नहीं होगा कि तुम अपने असली रूप में रहो बजाये नकली की ड्रामाई दुनिया में रहने के!"

"इसका जवाब तो मां, तुम्हें ही देना चाहिये," मैं हँसा, "इस नकलीपने के लिए तुम्हीं जिम्मेवार हो।"

वह एक पल के लिए रुकी,"काश, तुमने अपने आपको परम पिता परमात्मा की सेवा में लगा दिया होता तो तुम हज़ारों लोगों की ज़िंदगी बचा सकते थे।"

मैं मुस्कुराया,"मैंने आत्माओं को तो बचा लिया होता लेकिन धन न बचा पाता।"

घर की तरफ जाते समय मिसेज रीव्ज़, मेरे प्रबंधक की पत्नी, जोकि मां की देखभाल करती थी, बताने लगीं कि जब से मैं बाहर था, मां की सेहत बहुत अच्छी रही है और उन्हें कोई भी मानसिक दौरा नहीं पड़ा है। वे खुश रहीं और उन्हें जिम्मेवारी का कोई अहसास नहीं था। मिसेज रीव्ज़ को मां के पास जाना अच्छा लगता था क्योंकि मां हमेशा सब का दिल बहलाये रखती थी और अपने अतीत के रोचक किस्से सुना-सुना कर उन्हें हँसी से लोट-पोट कर देती थी। हां, ऐसे भी वक्त आते जब मां जिद पकड़ बैठती।

मिसेज़ रीव्ज़ ने मुझे एक दिन का किस्सा बताया। वे और नर्स उन्हें शहर ले जाना चाहती थीं ताकि उनकी कुछ नयी पोशाकों की नाप जांच सकें। अचानक मां जिद पकड़ बैठीं। वे कार से बाहर ही न आयें। "उन्हें ही मेरे पास आने दो।" मां ने ज़िद पकड़ ली,"इंगलैंड में वे आपकी गाड़ी तक आते हैं।"

आखिरकार वे बाहर आयीं, एक प्यारी-सी लड़की उनकी हाजरी में थी और उन्हें कपड़ों के कई थान दिखा रही थी। उनमें से एक गहरे भूरे रंग का था जो रीव्ज़ और नर्स को अच्छा लगा लेकिन मां ने उसे हिकारत से सरका दिया, और तब बेहद सुसंस्कृत अंग्रेजी स्वर में बोलीं,"नहीं नहीं, ये तो गू के रंग का है, मुझे कोई ज्यादा खिला हुआ रंग दिखाओ।"

उस हक्की-बक्की लड़की ने तुरंत मां की बात मान ली लेकिन उसे अभी भी अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था।

मिसेज़ रीव्ज ने मुझे ये भी बताया कि वे मां को ऑस्ट्रिच फार्म में ले कर गयी थीं। वहां का कीपर, जो एक भला और विनम्र आदमी थी, उन्हें अंडे सेने की जगह दिखा रहा था। "ये वाला," ऑस्ट्रिच के एक अंडे को हाथ में ले कर कहा उसने,"एकाध हफ्ते में से लिया जायेगा।" तभी उसका फोन आ गया और उसे बुलवा लिया गया और जाते-जाते क्षमा मांगते हुए वह अंडा नर्स को थमा गया। जैसे ही वह वहां से गया, मां ने नर्स के हाथ से अंडा छीना और कहा,"इसे उस बेचारे ऑस्ट्रिच को वापिस लौटा दो।"

और मां ने अंडे को अहाते में फैंक दिया। अंडा वहां पर ज़ोर की आवाज़ के साथ फूट गया। इससे पहले कि कीपर वापिस आता उन्होंने तुरंत ही मां को थामा और सीधे ही आस्ट्रिच पार्क से बाहर ले आयीं।

"एक गर्म, धूप भरे दिन की बात है," मिसेज रीव्ज़ ने बताया,"वे शोफर और हम सबके लिए आइसक्रीम कोन दिलाने की ज़िद पर अड़ गयीं। एक बार वे कार से एक मैनहोल के पास गुज़र कर जा रहे थे कि एक कामगार का चेहरा ऊपर उभरा। मां कार से बाहर झुकीं ताकि वह कोन उस आदमी को दे सकें, लेकिन कोन को सीधे ही उसके मुंह पर उछाल दिया, "लो बेटे, ये तुम्हें वहां पर ठंडा रखेगा।" कार से उसकी तरफ हाथ हिलाते हुए मां ने कहा।

हालांकि मैं अपने व्यक्तिगत मामले मां से अलग ही रखता था, ऐसा लगता था कि उसे सारी घटनाओं के बारे में खबर मिल जाती थी। मेरी दूसरी पत्नी के साथ घरेलू समस्याओं के दौरान, शतरंज के खेल के बीच उसने अचानक ही कहा, (वैसे वह हर बार जीतती ही थी।) "तुम अपनी इन सारी मुसीबतों से अपने-आप को मुक्त क्यों नहीं कर लेते। पूरब की तरफ निकल जाओ और मौज़-मज़ा करो।"

मैं हैरान हुआ और पूछने लगा कि उसके कहने का मतलब क्या है।

"तुम्हारी निजी ज़िंदगी के बारे में प्रेस में ये बस किस्से!"

मैं हँसा,"मेरी व्यक्तिगत ज़िंदगी के बारे में तुम जानती ही क्या हो?"

उसने कंधे उचकाये,"अगर तुम इतने अलग न होते तो शायद मैं तुम्हें कुछ सलाह दे पाती।"

इस तरह के जुमले वह उछाल दिया करती थी और आगे कुछ नहीं कहती थी।

वह अक्सर बेवरली हिल्स वाले घर में मेरे बच्चों, चार्ली और सिडनी से मिलने के लिए चली आती थी। मुझे उसका पहली बार का आना याद है। मैंने अपना घर तभी बनाया ही था। घर अच्छी तरह से सजाया गया था और वहां पर पूरा स्टाफ था, बटलर, नौकरानियां वगैरह। वह कमरे में चारों तरफ देखती रही। फिर खिड़की में से चार मील दूर प्रशांत महासागर का दिखायी दे रहा नज़ारा देख रही थी। हम उसकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार कर रहे थे।

"शांति भंग करना कितनी खराब बात है," कहा उसने।

वह मेरी धन-दौलत और सफलता को मान कर ही चल रही थी और उन पर उसने कभी भी कोई टिप्पणी नहीं की। एक दिन लॉन पर हम दोनों अकेले थे। वह बगीचे की तारीफ कर रही थी और इस बात को सराह रही थी कि इसे कितनी अच्छी तरह से रखा गया है।

"हमारे पास दो माली हैं।" मैंने उसे बताया।

वह एक पल के लिए रुकी और मेरी तरफ देखने लगी,"इसका मतलब तुम काफी अमीर होगे!" मां ने कहा।

"मां, मेरी हैसियत इस वक्त पचास लाख डॉलर की है।"

मां ने सोचते हुए सिर हिलाया,"तभी तक जब तक तुम अपनी सेहत बनाये रख पाते हो और इसे भोग पाते हो।" मां की सिर्फ यही टिप्पणी थी।

अगले दो बरस तक मां की सेहत अच्छी बनी रही। लेकिन द सर्कस के निर्माण के समय मुझे तार मिला कि मां बीमार है। उसे पहले पित्ताशय का दौरा पड़ चुका था और वह उससे उबर गयी थी। इस बार डॉक्टरों ने मुझे चेताया कि इस बार का उसका दौरा गम्भीर है। उसे ग्लेंडले अस्पताल ले जाया गया था। लेकिन डॉक्टरों ने यही बेहतर समझा कि उसके दिल की कमज़ोर हालत को देखते हुए ऑपरेशन न करना ही ठीक होगा।

जब मैं अस्पताल में पहुंचा, उस वक्त वह अर्ध मूर्छा की हालत में थी। उसे दर्द कम करने की दवा दी गयी थी।

"मां, ये मैं हूं चार्ली," मैं फुसफुसाया, और धीमे से उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया। उसने कमज़ोरी से मेरा हाथ दबा कर अपनी भावना को मुझ तक पहुंचाया और फिर अपनी आंखें खोलीं। वह बैठना चाहती थी लेकिन बहुत ही कमज़ोर हो गयी थी। वह बेचैन थी और दर्द की शिकायत कर रही थी। मैंने उसे तसल्ली देने की कोशिश की कि वह एकदम चंगी हो जायेगी।

"शायद," उसने थकान के मारे कहा। और एक बार फिर मेरा हाथ दबाया। इसके बाद उसे बेहोशी आ गयी।

अगले दिन, काम के बीच, मुझे बताया गया कि मां गुज़र गयी है। मैं इसके लिए तैयार था क्योंकि डॉक्टर पहले ही जवाब दे चुके थे और मुझे बता चुके थे। मैंने अपना काम रोका, मेक-अप उतारा, और अपने सहायक निदेशक हैरी क्रोकर के साथ अस्पताल के लिए रवाना हो गया।

हैरी बाहर इंतज़ार करता रहा और मैं कमरे के भीतर गया और खिड़की और बिस्तर के बीच एक कुर्सी पर बैठ गया। धूप के पर्दे आधे गिरे हुए थे। बाहर धूप तीखी थी। कमरे का मौन भी उतना ही तीखा था। मैं बैठा रहा और बिस्तर पर पड़ी कमज़ोर काया को देखता रहा। उसका चेहरा ऊपर उठा हुआ था और आंखें बंद थीं। यहां तक कि मृत्यु में भी उसके चेहरे पर पीड़ा दिखायी दे रही थी मानो उम्मीद कर रही हो कि कितनी तकलीफें उसके हिस्से में और लिखी हैं। कितनी अजीब बात है कि उसका अंत यहां पर हुआ, हॉलीवुड के माहौल में, उसके सारे वाहियात मूल्यों के साथ, लैम्बेथ, उसके दिल टूटने की जगह से सात हज़ार मील दूर। इसके बाद उसके आजीवन संघर्षों की, उसकी बहादुरी की और उसकी त्रासद, बेकार गयी ज़िंदगी की स्मृतियां मुझ पर हावी हो गयीं और मैं रो पड़ा।

एक घंटे के बाद कहीं मैं अपने आप को संभाल पाया और कमरे से बाहर आया।

हैरी क्रोकर अभी भी वहीं था। मैंने उससे माफी मांगी कि उसे इस तरह से इतनी देर तक इंतज़ार करना पड़ा। लेकिन वास्तव में, वह स्थिति समझता था। हम चुपचाप ड्राइव करके घर आ गये।

सिडनी यूरोप में था और उस वक्त बीमार था। वह अंतिम संस्कार में नहीं आ सकता था। मेरे बेटे चार्ली और सिडनी अपनी मां के पास थे लेकिन मैं उनसे नहीं मिला। मुझसे पूछा गया कि क्या मैं मां का दाह संस्कार किया जाना पसंद करूंगा। इस तरह के ख्याल ने ही मुझे डरा दिया। नहीं, मैं चाहूंगा कि उसे हरी-भरी धरती में दफ़नाया जाये, जहां वह अभी भी मौजूद है - हॉलीवुड सिमेट्री में।

मैं नहीं जानता कि मैं अपनी मां का वैसा चित्र प्रस्तुत कर पाया हूं जिसकी वह हकदार थी। लेकिन मैं इतना जानता हूं कि वह अपना बोझ खुशी-खुशी ढो कर ले गयी। दयालुता और सहानुभूति उसकी उत्कृष्ट खूबियां थीं। हालांकि वह धार्मिक थी, वह पापियों को प्यार करती थी और हमेशा अपने-आपको उनमें से ही एक मानती थी। उसकी प्रकृति में अश्लीलता का रंच मात्र भी नहीं था। जो भी विद्रोही व्यवहार वह किया करती थी, वह हमेशा आलंकारिक रूप में सही ही होता था। और उस गंदे माहौल, जिसमें हम रहने को मज़बूर थे, के बावजूद उसने सिडनी और मुझे गलियों से हमेशा बाहर रखा था और हमें यह महसूस कराया था कि हम गरीबी की आम संतानें नहीं हैं, बल्कि खास और अनूठे हैं।

क्लेयर शेरिडन, मूर्तिकार, जिसने अपनी किताब फ्रॉम मेफेयर टू मॉस्को से अच्छा-खासा हंगामा मचाया था, जब हॉलीवुड आयीं तो सैम गोल्डविन ने उनके सम्मान में रात्रि भोज दिया तो मुझे भी आमंत्रित किया।

छरहरी और सुंदर चेहरे-मोहरे वाली क्लेयर विन्स्टन चर्चिल की भतीजी थीं और रिचर्ड ब्रिन्स्ले शेरिडन की सीधी वंश परम्परा में आती थीं। वे क्रांति के बाद रूस जाने वाली पहली अंग्रेज महिला थीं और उन्हें बोल्शेविक क्रांति की प्रमुख हस्तियों की आवक्ष प्रतिमाएं, बस्ट बनाने का काम सौंपा गया था। इनमें लेनिन और ट्राटस्की भी शामिल थे।

हालांकि वे बोल्शेविक की पक्षधर थीं फिर भी उनकी किताब ने केवल मामूली-सा ही विरोध पैदा किया। अमेरिकी लोग इससे भ्रम में पड़ गये थे क्योंकि क्लेयर को अंग्रेजी राजसी परिवार से होने का गौरव प्राप्त था। न्यू यार्क का समाज उनकी आवभगत करता था और उन्होंने वहां पर कई विभूतियों की आवक्ष प्रतिमाएं बनायीं। उन्होंने हरबर्ट बेयार्ड स्वोप तथा बर्नार्ड बरूच तथा अन्य हस्तियों की भी मूर्तियां बनायी थीं। जिस वक्त मैं उनसे मिला था, वे पूरे देश में घूम-फिर कर व्याख्यान दे रही थीं और उनका छ: बरस का बेटा डिकी उनके साथ ही यात्राएं कर रहा था। उन्होंने शिकायत की थी कि अमेरिका में मूर्तियां बना कर रोज़ी-रोटी कमाना मुश्किल है। अमेरिकी आदमी इस बात का बुरा नहीं मानते कि उनकी बीवियां बैठ कर अपनी मूर्तियां बनवायें, लेकिन वे खुद इतने विनम्र होते हैं कि अपने खुद के लिए बैठने में उन्हें हिचक होती है।

"मैं विनम्र नहीं हूं," मैंने कहा।

इस तरह से उनके लिए मिट्टी और उनके औज़ार वगैरह मेरे घर लाने का इंतज़ाम किया गया और दोपहर के वक्त लंच के बाद मैं उनके सामने देर तक बैठा रहता। क्लेयर में ये खासियत थी कि वे बातचीत को जीवंत रख सकती थीं और मैंने पाया कि मैं भी अपनी बौद्धिकता बघार रहा हूं। प्रतिमा पूरी होने के आस-पास मैंने उसकी जांच की।

"ये किसी अपराधी का सिर हो सकता है," मैंने कहा।

"इसके बजाये, ये एक मेधावी आदमी का सिर है।" उन्होंने नकली गम्भीरता के साथ कहा।

मैं हँसा और मैंने ये सिद्धांत गढ़ लिया कि चूंकि जीनियस और अपराधी एक-दूसरे से निकटता से जुड़े होते हैं, इसलिए दोनों ही एकदम व्यक्तिवादी होते हैं।

एक बार उन्होंने मुझे बताया कि जब से उन्होंने रूस के बारे में व्याख्यान देना शुरू किया है, वे अपने-आपको बिरादरी बाहर पा रही हैं। मैं जानता हूं कि क्लेयर पैम्फलेटबाजी करने वाली या राजनैतिक कट्टरपंथी नहीं थीं।

"आपने तो रूस के बारे में एक बहुत ही रोचक किताब लिखी है, उसे भी उसी खाते में जाने दीजिये ना, क्यों राजनैतिक झमेलों में पड़ती हैं," कहा मैंने,"इससे तो आप ही को तकलीफ होगी।"

"मैं ये व्याख्यान अपनी रोज़ी-रोटी के लिए देती हूं," उन्होंने बताया,"लेकिन लोग हैं कि सच सुनना ही नहीं चाहते, और जब मैं बिना तैयारी के, सहज रूप से बोलती हूं तो मुझे सिर्फ सच ही तो दिशा देता है। इसके अलावा," उन्होंने आगे जोड़ा,"मैं अपने प्रिय बोल्शेविकों को प्यार करती हूं।"

"मेरे प्रिय बोल्शेविक," मैंने दोहराया और हँसा, इसके बावजूद मुझे ये भी महसूस हुआ कि क्लेयर भीतर ही भीतर अपनी परिस्थितियों के बारे में साफ और यथार्थवादी नज़रिया रखती हैं। इसकी वज़ह ये रही है कि जब मैं उनसे बाद में 1931 में मिला तो उन्होंने बताया कि वे ट्यूनिस के बाहरी इलाके में रह रही हैं।

"लेकिन आप वहां पर क्यों रह रही हैं?" मैंने पूछा।

"वहां पर सस्ता पड़ता है," उन्होंने तत्‍काल जवाब दिया,"लंदन में मेरी सीमित आय है, उससे मैं ब्लूम्सबरी में दो छोटे कमरों के कमरों में ही रह पाती, जबकि ट्यूनिस में मेरा घर है, और नौकर चाकर हैं और डिक्की के लिए खूबसूरत बगीचा भी है।"

डिक्की की उन्नीस बरस की उम्र में मृत्यु हो गयी थी। ये एक ऐसा दुखदायी और भयावह झटका था जिससे वे कभी भी उबर नहीं पायीं। वे कैथोलिक बन गयीं और कुछ अरसे तक कॉन्वेंट में भी रहीं, धर्म की तरफ मुड़ गयीं। मेरा ख्याल है, राहत पाने के लिए उन्होंने ऐसा किया होगा।

मैंने एक बार दक्षिणी फ्रांस में एक समाधि शिला पर चौदह बरस की मुस्कुराती हुई एक लड़की की फोटो देखी जिस पर लिखा था, "क्यों?" पीड़ा के ऐसे पागल कर देने वाले पलों में कोई जवाब मांगना बेमानी होता है। ये आपको झूठे उपदेश देने और पीड़ा की तरफ ही ले जाता है और इसके बाद भी इसका ये मतलब नहीं होता कि आपको जवाब मिल ही जायेगा। मैं इस बात में विश्वास नहीं कर सकता कि हमारा अस्तित्व बिना किसी मतलब के या दुर्घटनावश है, जैसे कि कुछ वैज्ञानिक हमें बतायेंगे। ज़िंदगी और मौत बहुत अधिक तयशुदा और बहुत अधिक बेरहम हैं और कि ये दुर्घटनावश तो नहीं ही हो सकते।

ज़िदंगी और मृत्यु के ये तरीके, किसी जीनियस को बीच में से ही उठा लेना, दुनिया में उतार-चढ़ाव, महाविनाश और तबाहियां, ये सब बेमतलब और निर्रथक लगते हैं। लेकिन ये तथ्य कि ये बातें होती हैं, इस बात का प्रमाण हैं कि कुछ है जो हमारे त्रिविमीय मस्तिष्क के दायरे से परे एक दृढ़, निर्धारित प्रयोजन के साथ होता रहता है।

कुछ ऐसे दार्शनिक हैं जो यह दावा करते हैं कि सभी कुछ गति के किसी न किसी रूप में तत्व ही है। और सारे के सारे अस्तित्व में न तो कुछ जोड़ा जा सकता है और न ही घटाया ही जा सकता है। यदि तत्व गति है तो इस पर कार्य और कारण के कोई तो नियम लागू होते ही होंगे। अगर मैं इस बात को मान लूं तो हर गतिविधि पूर्व नियोजित है और यदि ऐसा है तो मेरा अपनी नाक का खुजाना भी उतना ही पूर्व निर्धारित है जितना की किसी तारे का टूटना। बिल्ली घर-भर में घूमती रहती है, पत्ते पेड़ से गिरते रहते हैं, बच्चा ठोकर खा कर गिरता है। क्या इन सारी की सारी गतिविधियों को किसी अनंत में तलाशा जा सकता है। क्या ये शाश्वत रूप में पूर्व निर्धारित और निरंतर चलने वाली क्रियाएं नहीं हैं। हम पत्ती के गिरने, बच्चे के ठोकर खाने का तत्काल कारण जानते हैं लेकिन हम उसकी शुरुआत और अंत का पता नहीं लगा सकते।

मैं दकियानूसी अर्थ में धार्मिक नहीं हूं। मेरे विचार ठीक वैसे ही हैं जैसे मैकाले के हैं, जिन्होंने इस आशय की बातें लिखी हैं कि सोलहवीं शताब्दी में ऐसी ही दार्शनिक विद्वता के साथ इन्हीं धार्मिक तर्कों पर बहस की जाती थी जैसी कि आज की जाती है और संचित ज्ञान और वैज्ञानिक प्रगति के बावज़ूद न तो अतीत में और न ही वर्तमान में किसी दार्शनिक ने इस मामले पर उससे आगे कोई आध्यात्मिक योगदान दिया है।

मैं किसी चीज़ में न तो विश्वास करता हूं और न ही अविश्वास ही करता हूं। यह कि जिसकी कल्पना की जा सकती है, सच का उतना ही अनुमान लगाने की तरह होता है जिस तरह से गणित से सिद्ध किये जाने वाली कोई बात होती है। आदमी हमेशा सच तक तर्क के ज़रिये ही नहीं पहुंच सकता। ये हमें सोच के ज्यामितिक ढांचे में बांध लेता है और इसके लिए तर्कसंगति और विश्वसनीयता की ज़रूरत होती है। हम अपने सपनों में मृतकों को देखते हैं और ये स्वीकार कर लेते हैं कि वे जीवित हैं जबकि उसी समय हम ये भी जानते हैं कि वे अब इस दुनिया में नहीं हैं। और हालांकि यह स्वप्न मस्तिष्क बिना किसी तर्क के नहीं है, क्या इसकी अपनी विश्वसनीयता नहीं है? तर्क के परे भी कई च़ीज़ें हुआ करती हैं। हम एक सेकेंड के लाखों-करोड़ोंवें हिस्से के होने से कैसे इन्कार कर सकते हैं जबकि वास्तव में वह गणित की गणनाओं के अनुसार अवश्य होगा ही।

मैं जैसे-जैसे बूढ़ा हो रहा हूं, मैं विश्वास से और ज्यादा घिरता जा रहा हूं। हम जितना सोचते हैं, उससे ज्यादा इसके साथ जीते हैं और जितना महसूस करते हैं, उससे ज्यादा इससे पाते हैं। मैं यह मानता हूं कि विश्वास हमारे सभी विचारों के लिए पूर्व पीठिका है। अगर विश्वास न होता तो न तो हमने मूल कल्पना की खोज की होती, न सिद्धांत, न विज्ञान और न ही गणित हमारे जीवन में आये होते। मेरा ये मानना है कि विश्वास मस्तिष्क का ही विस्तार है। ये वो कुंजी है जो असंभव का नकार करती है। विश्वास को न मानने का मतलब अपने आपको तथा उस शक्ति को नकारना है जो हमारी सारी सृजनात्मक शक्तियों को संचालित करती है।

मेरा विश्वास अज्ञात में है। उस सब में जिसे हम तर्क के ज़रिये नहीं समझ सकते। मैं यह विश्वास करता हूं कि जो कुछ हमारी सोच के दायरे से परे है, वह दूसरी दिशाओं में साधारण तथ्य होता है और अज्ञात की सत्ता के अंतर्गत एक ऐसी शक्ति होती है जो बेहतरी की असीम शक्ति के रूप में होती है।

हॉलीवुड में मैं अभी भी छड़ा ही था। मैं अपने खुद के स्टूडियो में काम करता था इसलिए दूसरे स्टूडियो में काम करने वालों से मिलने-जुलने के कम ही मौके मिलते। इसलिए मेरे लिए नये दोस्त बना पाना मुश्किल होता था। डगलस और मैरी ही मेरी सामाजिक मुक्ति थे।

अपनी शादी के बाद दोनों बेहद खुश थे। डगलस ने अपने पुराने घर को नये सिरे से बनवा लिया था और उसकी खूबसूरती से साज-सज्जा की थी और उसमें मेहमानों के लिए कई कमरे जोड़े थे। वे भव्य तरीके से रहते थे और उनके पास उत्कृष्ट सेवा, उत्कृष्ट खान-पान थे और सबसे बड़ी बात, डगलस और मैरी उत्कृष्ट मेजबान थे।

स्टूडियो में ही उनका विशालकाय क्वार्टर था। टर्किश बाथ के साथ ड्रेसिंग रूम और साथ में एक स्विमिंग पूल। यहीं पर वे अपने अत्यंत विशिष्ट मेहमानों की खातिरदारी करते, उन्हें स्टूडियो में लंच कराते, आस-पास का साइट सीइंग टूर कराते, और उन्हें दिखाते कि फिल्में किस तरह से बनती हैं और फिर उन्हें भाप स्नान कराते और तैरने के लिए आमंत्रित करते। इसके बाद मेहमान लोग उनके ड्राइंग रूम में रोमन सिनेटरों की तरह कमर पर तौलिया लपेटे बैठ जाते।

ये वाकई बेहूदगी भरा लगता कि आप भाप स्नान से निकल कर तरण ताल में छलांग लगाने के लिए उस तरफ लपक रहे होते कि बीच में सियाम नरेश (अब थाइलैंड अऩु) से आपका परिचय कराया जाता। आपको मैं बताऊं कि मैं कितनी ही विख्यात विभूतियां से टर्किश तौलिया बांधे मिला हूं। इनमें से कुछ, आल्बा के ड्यूक, ड्यूक ऑफ सूदरलैंड, आस्टेन चैम्बरलिन, द मार्केस ऑफ वियेना, द ड्यूक ऑफ पानारांडा और कई अन्य थे। जब किसी आदमी से उसके सभी सांसारिक अधिकार चिह्न उतरवा लिये जाते हैं तभी आप उसकी सच्ची तारीफ कर सकते हैं कि उसकी असली औकात क्या है। ड्यूक ऑफ आल्बा मेरे अनुमान पर बहुत कुछ खरे उतरे।

जब भी इन महान हस्तियों में से कोई पधारता तो डगलस मुझे ज़रूर बुलवा भेजते क्योंकि मैं उसके शो पीसों में से एक था। वहां पर ये रिवाज़ था कि स्टीम लेने के बाद आदमी आठ बजे के आस-पास पिकफेयर में पहुंचेगा, साढ़े आठ बजे डिनर लेगा और डिनर के बाद फिल्म देखेगा। इसलिए कभी इस बात का मौका ही नहीं मिल पाया कि मैं किसी से अंतरंगता स्थापित कर पाऊं। अलबत्ता, कभी-कभार, मैं फेयरबैंक्स दम्पत्ति को उनके खूब सारे मेहमानों से मुक्ति दिला देता और उनमें से कुछ को अपने घर पर टिका देता। लेकिन मैं इस बात को स्वीकार करता हूं कि मेरी मेहमाननवाजी फेयरबैंक्स दम्पत्ति की मेहमाननवाजी की तुलना में कहीं नहीं ठहरती थी।

प्रतिष्ठित हस्तियों की मेज़बानी करते समय फेयरबैंक्स दम्पत्ति अपने सर्वोत्तम रूप में होते। वे उनके साथ सहज अनुकूलता स्थापित कर लेते जो कि मेरे लिए मुश्किल होती। हां, ड्यूकों की आवभगत करते समय पहली रात तो महामहिम जैसे संबोधन लगातार सुनायी देते रहते लेकिन जल्दी ही ये महामहिम अपनापन लिये जॉर्जी और जिम्मी बन चुके होते।

डिनर के वक्त डगलस का प्रिय छोटा-सा दोगला कुत्ता अक्सर आ जाता और डगलस सहज, ध्यान बंटाने के तरीके से कुत्ते से बेवकूफी भरी ट्रिक करवाते जिससे माहौल जिसके बंधा-बंधा और औपचारिक होने का डर था, थोड़ा अनौपचारिक और आत्मीय हो जाता। मैं कई बार डगलस की शान में मेहमानों द्वारा फुसफुसा कर कही गयी तारीफों का गवाह रहा हूं। "क्या शानदार व्यक्ति है!" महिलाएं गोपनीय तरीके से फुसफुसातीं। और हां, वे थे भी शानदार व्यक्ति। महिलाओं को उनसे बेहतर तरीके से और कोई आकर्षण में बांध ही नहीं सकता था।

लेकिन एक बार ऐसा हुआ कि डगलस भी झमेले में फंस गये। मैं स्पष्ट कारणों से नामों का उल्लेख नहीं कर रहा हूं लेकिन जो लोग आये थे, वे खास थे, उनकी ऊंची ऊंची पदवियां थीं और डगलस ने उनकी तीमारदारी में और उन्हें हर तरह से प्रसन्न रखने में पूरा हफ्ता खपा दिया। जो मेहमान आये थे, वे हनीमून पर निकले दम्पत्ति थे। जिस चीज़ की भी कल्पना की जा सकती थी, उससे उनकी आवभगत की गयी थी। कैटेलिना में उनके लिए निजी याच पर मछली मारने के अभियान की व्यवस्था थी, जहां पर मैंने और डगलस ने एक बछड़ा कटवाया था और समुद्र में नीचे जाने दिया था ताकि वह मछलियों का चुग्गा बन सके (लेकिन मेहमानों ने कोई मछली नहीं पकड़ी।) इसके बाद स्टूडियो के ग्राउंड पर एक मोटर साइकिलों के खास प्रदर्शन का इंतज़ाम किया गया था। लेकिन खूबसूरत, छरहरी दुल्हन, हालांकि विनम्र थी, बेहद चुप रहने वाली लड़की थी और ज़रा-सा भी उत्साह नहीं दिखा रही थी।

हर रात डिनर के समय डगलस इस बात की कोशिश करते कि उसे खुश कर सकें लेकिन उनके सारे हँसी-मज़ाक और जोश मोहतरमा को उनके ठंडे बरताव से बाहर नहीं निकाल पाये।

चौथी रात डगलस मुझे एक तरफ ले गये,"वह मुझे हैरान कर रही है। मैं उससे बात ही नहीं कर सकता," कहा उन्होंने,"इसलिए आज की रात मैंने इस तरह का इंतज़ाम किया है कि तुम उसकी बगल वाली सीट पर बैठोगे।" वे हँसी दबा कर बोले,"मैंने उसे बताया है कि तुम कितने मेधावी और मज़ेदार हो।"

डगलस की योजना के बाद डिनर के लिए अपनी सीट पर बैठने से पहले मैं अपने आपको वैसे ही सहज महसूस करने लगा जैसे कोई पैरा ट्रूपर छलांग लगाने से पहले महसूस करता है। अलबत्ता, मैंने यही सोचा कि मैं पहले रहस्यपूर्ण नज़रिया अपनाऊंगा। इसलिए मेज़ पर अपना नैपकिन लेते हुए मैं झुका और मोहतरमा के कान में फुसफुसाया,"हिम्मत मत हारो।"

वह मुड़ी, वह समझ नहीं पायी कि मैंने क्या कहा है,"माफ करना मैं समझी नहीं!"

"हिम्मत मत हारो।" मैंने दोबारा रहस्यपूर्ण तरीके से कहा।

वह हैरान हो कर देखने लगी, "हिम्मत मत हारो!"

"हां," मैंने अपने घुटनों पर अपना नैपकिन ठीक से लगाते हुए कहा, और सीधा सामने की तरफ देखने लगा।

वह एक पल के लिए रुकी, मुझे देखती रही, और फिर बोली,"आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?"

मैंने एक मौका लिया,"क्योंकि आप बहुत उदास हैं।" और इससे पहले कि वह जवाब दे सके, मैंने अपनी बात जारी रखी,"देखिये आप, मैं आधा जिप्सी हूं और इन सारी बातों को जानता हूं। आप किस महीने में पैदा हुई थीं?"

"अप्रैल!"

"बेशक, ऐरीज, मुझे पता होना चाहिये था।"

वह सतर्क हो गयी, और उसे स्वाभाविक रूप से होना भी चाहिये था।

"क्या जानना चाहिये था?" वह मुस्कुरायी।

"ये महीना आपकी ऊर्जस्विता के नीचे रहने का महीना है।"

वह एक पल के लिए सोचने लगी,"ये तो बहुत हैरानी की बात है कि आप ये कह रहे हैं!"

"ये बहुत आसान है अगर आदमी में अंतर्दृष्टि हो। ठीक इस वक्त आपका प्रभा मंडल नाखुशी वाला है।"

"क्या ये इतना स्पष्ट है?"

"शायद दूसरों को नहीं!"

वह मुस्कुरायी और एक पल के लिए रुकने के बाद सोचते हुए कहने लगी,"कितनी हैरानी की बात है कि आप ये कह रहे हैं। हां, ये सच है, मैं बहुत हताश हूं।"

मैंने सहानुभूति से सिर हिलाया,"ये आपका सबसे खराब महीना है।"

"मैं कितनी उपेक्षित हूं! मैं बहुत हताशा महसूस करती हूं।" उसने अपनी बात जारी रखी।

"मेरा ख्याल है, मैं इस बात को समझता हूं।" मैंने कहा, यह जाने बिना कि आगे क्या होने जा रहा है।

वह उदासी से कहती रही,"काश, मैं भाग पाती, हर चीज़ और हर व्यक्ति से दूर, मैं कुछ भी करूंगी, मैं नौकरी करूंगी, फिल्मों में एक्स्ट्रा की भूमिका करूंगी, लेकिन इससे उन सबको तकलीफ होगी जो मुझसे जुड़े हैं और वे इतने अच्छे हैं कि उन्हें ये तकलीफ नहीं दी जानी चाहिये।"

वह बहुवचन में बात कर रही थी लेकिन मैं बेशक इस बात को जानता था कि वह अपने पति के बारे में ही बात कर रही है। अब मैं सतर्क हो गया। इसलिए मैंने रहस्यवाद का सारा जामा उतार दिया और उसे एक गम्भीर सलाह देने की कोशिश की, बेशक ये सलाह मामूली सी ही थी,"भागना बेकार है। जिम्मेवारियां हमेशा आपका पीछा करेंगी।" कहा मैंने, "ज़िंदगी चाहतों की अभिव्यक्ति होती है। आज तक कोई संतुष्ट नहीं हो सका है। इसलिए जल्दीबाजी में कोई भी काम मत कीजिये। ऐसा कोई भी कदम मत उठाइये जिससे ज़िंदगी-भर पछताना पड़े।"

"मेरा ख्याल है आप सही कह रहे हैं।" उसने सोचते हुए कहा,"अलबत्ता, मैं किसी ऐसे व्यक्ति से बात करके कितनी राहत महसूस कर रही हूं जो समझता है।"

दूसरे मेहमानों के साथ बात करते हुए भी डगलस बीच-बीच में हमारी दिशा में निगाह फेर रहे थे। अब मोहतरमा ने उनकी तरफ देखा और मुस्कुरायी।

डिनर के बाद, डगलस मुझे एक तरफ ले गये,"आखिर तुम दोनों क्या बातें कर रहे थे? मुझे तो ऐसा लगा कि तुम दोनों एक दूसरे के कान ही कुतर डालोगे।"

"अरे नहीं, ऐसी कोई बात नहीं, बस मूलभूत सिद्धांतों की बातें।" मैंने अकड़ के साथ कहा।


§ 11 नवम्बर 1918 जो कि प्रथम विश्व युद्ध की विराम संधि के वार्षिक दिवस के रूप में मनाया जाता है।

* ये मान्यताप्राप्त जुमला सही नहीं है। हम उस वक्त मैक्सिन क्वार्टर में थे और मेरा जुमला ये था, "यहां पर बेवरली हिल्स की तुलना में कहीं ज्यादा जीवंतता है।"

¨ फ्रांस की जनता द्वारा चार्ली चैप्लिन को दिया गया प्यार भरा नाम। अनु.

(क्रमशः अगले अंकों में जारी…)

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BLOGGER: 1
  1. ५ दिन की लास वेगस और ग्रेन्ड केनियन की यात्रा के बाद आज ब्लॉगजगत में लौटा हूँ. मन प्रफुल्लित है और आपको पढ़ना सुखद. कल से नियमिल लेखन पठन का प्रयास करुँगा. सादर अभिवादन.

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रचनाकार: चार्ली चैप्लिन की आत्मकथा (11)
चार्ली चैप्लिन की आत्मकथा (11)
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