अनुज खरे का व्यंग्य : शरशैय्या पर भीष्म … एक मॉडर्न वर्जन

SHARE:

व्यंग्य शरशैय्या पर भीष्म...एक मार्ड्न वर्जन - अनुज खरे ( दृश्य आधुनिक काल के एक खेल ग्राउंड का है , जो प्राचीनकाल में महाभारत का ...

व्यंग्य

शरशैय्या पर भीष्म...एक मार्ड्न वर्जन

-अनुज खरे

(दृश्य आधुनिक काल के एक खेल ग्राउंड का है, जो प्राचीनकाल में महाभारत का युद्ध स्थल था। यहां पितामह भीष्म अपनी इच्छामृत्यु के वरदान के कारण बाणशैय्या पर हैं। सीन सुबह का है। सुहानी हवा चल रही है। मौसम बैकग्राउंड में रूमानियत भर रहा है, हालांकि यह बात अलग है कि यह रूमानियत भीष्म के किसी काम की नहीं है।)

पितामह कुछ देर पूर्व ही कुल्ला-मंचन करके निवृत हुए हैं कि लोग भीड़ की शक्ल में चारों ओर पहुंच गए। अंदर से दिमाग घूमा जा रहा है, बिना नॉक करे आ जाते हैं, कोई कायदा-एटीकैटस नहीं, जाहिल हैं पूरे जाहिल। फिर याद आया ग्राउंड में तो पड़े हैं, कहां नॉक करेंगे बेचारे। खैर, परंपरागत यशस्वी भवः का आशीर्वाद प्रदान किया, तिरछी नजरों से देखा भी कि किसी ने आशीर्वाद के प्रति सद्भावना नहीं दिखाई है। घोर कलियुग है, कारण जानकर मन ही मन कुछ निश्चिंत हुए। फिर जिज्ञासायुक्त निगाहों से लोगों को देखा, हालांकि भीड़ देखते ही भांप तो गए थे कि फोकट में तो ये आने से रहे, जरूर कोई बात तो है। क्या बात है, की अर्थपूर्ण निगाहों से फिर उन्होंने भीड़ की तरफ देखा अब एक नेतानुमा व्यक्त ने आगे बढ़कर बात शुरू की- पितामह, हम आफ पास एक विनय निवेदन लेकर आए हैं। पितामह ने मन ही मन सोचा, निवेदन के बिना तो आते ही क्यों? इतने दिनों से यहां पड़े हैं किसी ने चाय-पानी तक का तो पूछा नहीं है, अब देखो कैसे निवेदन-आवेदन के सुर लगा रहे हैं, ढोंगी कही के। खैर, दायित्वों का स्मरण हो आया। मुख-मुद्रा को संयत बनाके आगे बोलो किस्म की पलकें झपकाईं।

उसी नेताटाइप आदमी ने आगे कहना शुरू किया- पितामह, ये कालू, बंशी, दिनेश सभी मान्यवर की प्रजा सरीखी हैं, नई कॉलोनी में रहते हैं वहां, बिजली के पोल लगे नहीं हैं, घर में बहुत मच्छर काटते हैं, आप से इसी बाबत अभ्यर्थना करने आए हैं कि श्रीमान की बिजली विभाग में जबर्दस्त घौंस-धमक है, अपने दस्तखत का एक पत्र भेजेंगे कि खुद चीफ इंजीनियर साहब दौडे-दौडे पोल लगाने को आ जाएंगे। अच्छा तो ये मामला है, पितामह ने मन ही मन सोचा, बिजली नहीं है, मच्छर काट रहे हैं, हम यहां सर्दी-गर्मी में पड़े हैं हमारी चिंता नहीं है, बस बिजली लगवा दो। देख भी नहीं रहे हैं कि ऐसी हालत में कहां से तो भाग-दौड कर पाऊंगा, पुराना जमाना होता तो एक-एक को विद्युत पोल की जगह गड़वा देता। खैर, फिर विचार किया कोई तो आया, नहीं तो आजकल तो बोरियत ही बहुत हो जाती है, कोई आता-जाता तो है नहीं, अब ये आए हैं इन्हें भी भगा दिया तो...

फिर बोले-‘‘एप्लीकेशन लेकर आए हो या वो भी मुझसे ही लिखवाओगे’’

हें...हें...हें...वो ही नेताटाइप आदमी, दांत निपोरते हुए बोला नहीं पितामह, एप्लीकेशन रेडी है, बस आफ साइन की कमी थी।

सारी तैयारी करके आए हैं, मन ही मन सोचा। खैर, ‘‘कहां करना है दस्तखत’’ पितामह ने कहा।

दस्तखत करवाकर सारी भीड़ बिना उन्हें प्रमाण किए, नहीं किए ही बिजली दफ्तर की ओर निकल ली। घोर कलियुग है, उन्होंने दोबारा सोचा।

लोग एप्लीकेशन लेकर बिजली विभाग के बड़े बाबू के पास पहुंचे, उससे जैसे-तैसे मामला जमाया, कुछ दोस्ती-यारी कुछ रिश्तेदारी जैसा कुछ बताया तब जाकर बड़े साहब तक पहुंचने का रास्ता मिला। साहब भी घाघ एक दिन में काम कर दे तो साहब काहै का उन्हें एप्लीकेशन रखकर तीन दिन बाद आने को कह दिया। लोग खुश हैं कि पितामह की धौंस से काम बन गया, ठीक ही वे उनके पास चले गए थे अन्यथा तो वो वार्ड पार्षद ही पीछे पड़ा था, गुरु पुराना सामान तो होता ही बड़े काम का है, एक ने तो कह भी दिया था, जब वे विमर्श कर रहे थे कि किसके माध्यम से हो सकता है काम। अब दिल बल्लियों उछल रहा है कि तीन दिन में उन्हें समस्या से निजात मिल जाएगी। जैसे-तैसे करके तो पहाड जैसे तीन दिन बीत रहे हैं, मच्छरों को भी लोग घर में बर्दाश्त कर रहे हैं कि पी लो बेटा तीन दिन और खून फिर तो नालियों में ही पड़े-पड़े मर जाओगे। हालांकि जैसा सदियों से सरकारी विभागों में देखा जा रहा है, वहां तीन दिन क्या तीन सालों में कुछ नहीं होना था, सो होता भी कुछ नहीं है। चिंतित लोग फिर बिजली ऑफिस पहुंचते हैं। वहां से उन्हें बताया जाता है कि एप्लीकेशन में रिकमंडेशन वाले साइन मैच नहीं कर रहे हैं, दोबारा करवाओ।

सरकारी प्रक्रियाओं से अन्जान लोग कर्मचारियों को पितामह का परिचय देते हैं लेकिन बाबू ठहरे बाबू, जो फाइल में एक बार नोटिंग हो गई सो हो गई। ऐसी ही नहीं हजारों सालों से दफ्तर चल रहा है। कायदा है कायदा, दस्तखत मैच नहीं कर रहे हैं तो नहीं कर रहे हैं, लकीर के फकीर बाबुओं ने लोगों को तन्यमयता से समझाया, कुल मिलाकर नतीजतन फिर कुछ नहीं हुआ। लोग फिर टल्ले खाते पितामह के पास पहुंचते हैं। प्रजा की पीड़ा देखकर अबकी बार वे दस्तखत के साथ जांघ में धंसा एक बाण निकालकर नत्थी करते हैं, ताकि माकूल प्रभाव पड़े और पांव को भी हिलाने-डुलाने की जगह मिले, सदियों से ऐसे ही धरा है। फिर देखो बाण की नोक भी जाने किस लोहे से बनाते थे कमबख्त, इतने वर्षों में भी जंग नहीं लगी है, अभी का होता जो टिटनिस से ही इच्छामृत्यु से पहले ही काम हो गया होता। लोग तो खैर एप्लीकेशन लेकर बिजली विभाग जाकर फिर उसे साहब को थमाते हैं। विभाग में फिर वही प्रक्रिया दोहराई जाती है। लोग फिर तीन दिन मच्छरों के अंतिम चेतावनी सी देने में गुजारते हैं। फिर कुछ नहीं होता तो वापस दफ्तर पहुंचते है,ं जहां बताया जाता है कि भीष्म आदि नाम का रिकार्ड विभाग के पास नहीं हैं, नाम में कुछ गड़बड़ी है, फिर वापस जाकर लोग पितामह को बताते हैं, जिस पर वे अत्यधिक विचार करके बात के मूल तक पहुंचते हैं, फिर अपना मूल नाम देवव्रत लिखते हैं।

तदुपरांत मामला फिर बड़े साहब के पास पहुंचता है, जहां साहब विचार करते हैं तथा फाइल को तीन दिन की व्यवस्था के हवाले कर लोगों को पुनः तीन दिन बाद आने को कहते हैं। लोगों के इस बार के तीन दिन घबराहट के साथ मच्छरों को कोसते हुए बीतते हैं। फिर ऑफिस पहुंचते है तो उन्हें बताया जाता है कि देवव्रत नाम तो मिल रहा है लेकिन पुराने रिकार्डों में, अब अगर वे इतने दिनों तक जिंदा हैं तो एक प्रमाण-पत्र उनके जिंदा रहने के वैरीफिकेशन का बनेगा। जनता सीधे नगर निगम पहुंचती है जहां बताया जाता है कि संबंधित वार्ड के पार्षद से लिखवाओ तथा व्यक्त को वैरीफिकेशन के लिए यहां लेकर आओ। जनता जैसे-तैसे समझाकर पार्षद से प्रमाण पत्र बनवाती है और पितामह के लिए यथायोग्य एक ट्रेक्टर सजवाकर उन्हें लेने पहुंचती है, वहां उन्हें बताया जाता है कि उन्हें अपने जिंदा रहने का वैरीफिकेशन करवाना होगा तभी उनके दस्तखत मान्य होंगे। उन्हें सशरीर विभाग के साहब के पास चलना होगा, जहां से उनके जिंदा रहने का प्रमाण-पत्र मिलेगा।

पितामह गुर्राते हैं-‘‘मूर्खों हम अमर हैं, जब तक चाहें जिंदा रह सकते हैं, इस बारे में प्राचीन शास्त्रों में लिखा हैं, वहीं पढ़ लो।’’ जनता भेड़ की शक्ल में फिर एक के पीछे एक विभाग पहुंचकर बताती है कि वे जिंदा हैं, शास्त्रों में लिखा है, वे अमर हैं। विभाग कहता है कि ये प्रमाण तो सपोर्टिंग डाक्यूमेंट के रूप में मान्य होंगे, विभागीय प्रक्रिया के लिए तो उन्हें यहां ही लाना होगा। लोग फिर कदमताल करते हुए पितामह के पास पहुंचकर उन्हें बताते हैं, जिस पर वे उन्हें अपने धर्म से बंधा रहने की बात कहते हुए डांटते हैं कि इस बाण शैय्या से कहीं नहीं जा सकते। अब क्या करें की समस्या पर नेताटाइप का आदमी मोर्चा संभालकर बताता है कि अफसर को ही रिश्वत देकर यहां लाना होगा। रिश्वत का जुगाड़ भी पितामह को ही करना होगा, क्योंकि प्रजा तो गरीब-गुरबा है, पैसे होते तो छोटी सी कॉलोनी में क्यों रहते, बंगले न खरीद लेते।

पितामह की तरफ से उन्हें अपनी लाचार स्थिति के बारे में बताया जाता है। इस पर लोग कुछ विमर्श करके कहते हैं कि वे कान का कुंडल निकालकर दे दें, तो मामला जम सकता है। भीष्म महादानी हैं, आदि बातों के बारे में भी उन्हें याद दिलाया जाता है, जिस पर मजबूरी में वे कुंडल उतारकर देते हैं, जिसे लेकर लोग पहुंचते हैं अफसर के पास, फिर उसे लेकर आते हैं। अफसर वैरीफिकेशन तो कर देता है, लेकिन साथ ही हैल्थ चैकअप का भी रिकमंडेशन कर देता है। इस पर भारी सेटिंग कर बड़े अस्पताल से बड़े डॉक्टर को लाया जाता है, एक कुंडल उसमें चला जाता है। इतनी व्यवस्थाओं के बाद एप्लीकेशन बिजली विभाग पहुंचाई जाती है तो अब वहां के साहब की तरफ से उन्हें सूचित किया जाता है कि देवव्रत का जन्म प्रमाण पत्र एवं मूल निवास प्रमाण-पत्र भी चाहिए। जिस व्यवस्था में पितामह के दोनों हाथों के कडे शहीद होते हैं। वे भी प्रजावत्सलता में फिर महान त्याग करते हैं। तत्पश्चात, एप्लीकेशन फिर बिजली विभाग पहुंचाई जाती है। कई दिनों तक कोई उत्तर नहीं मिलने पर वही नेताटाइप आदमी पता लगाता है तो पता चलता है कि बिजली विभाग में ऊपर से नीचे तक भेंट की व्यवस्था नहीं की गई है। इस व्यवस्था में पितामह को कमरबंध वीरगति को प्राप्त होता है।

प्रजावत्सलता-त्याग की भावना आदि कारणों को दृष्टिगत पितामह यह भी सदमा सहन करते हैं। इसके पश्चात फिर एप्लीकेशन लगाई जाती हैं जिस पर कुछ दिनों में जानकारी प्राप्त होती है कि उनकी कॉलोनी तो ग्रामीण क्षेत्र में आती है, अतः वहां के विभाग में नए सिरे से एप्लीकेशन लगाएं। सारे कागजात से लदी-फदी एप्लीकेशन ग्रामीण कार्यालय में पहुंचाई जाती है। प्रजापितामह के पास पहुंचती है, जहां फिर कार्रवाई आगे बढ़वाने आदि के नाम पर पितामह का स्वर्ण कवच अंतिम सांसें ले लेता है। बीच-बीच में लोग पितामह की दानवीरता का बारंबार ईको करते रहते हैं। उधर घटनाएं चल रही हैं इधर, इस सबके बीच मैदान में श्रीहीन पितामह फिर अकेले हैं, लोगों का कई दिनों से आना-जाना नहीं हो रहा है। पितामह को बोरियत हो रही है। टाइपपास के लिए दोनों युगों की तुलना कर रहे हैं। लोगों की प्रवृतियों में आए मूलभूल परिर्वतन की विवेचना कर रहे हैं। भविष्यदृष्टा की हैसियत से कलियुग में आगे घटित होने वाली घटनाओं पर विचार कर रहे हैं, उन्हें कुछ क्षोभ भी है कि ऐसी भविष्य दृष्टि का क्या लाभ जब सारा कुछ जानते हुए भी महाभारत युद्ध रोक नहीं पाए थे।

एकाएक फिर कोलाहल सुनाई देने लगता है, नजरें घुमाते हैं तो देखते है लोग बड़े उत्साह से चले आ रहे हैं, आगे वही नेताटाइप आदमी गले में मालाएं डाले चला आ रहा है। भीड़ उनके पास पहुंचती है। उनके जयकारे लगाकर सूचना देती है कि घरों में बिजली आ गई, अब मच्छर नहीं काटेंगे। एक-दो मालाएं भी निकालकर उन्हें जबर्दस्ती पहनायी जाती हैं। सारे शुभ प्रंसगों हर कोण से विश्लेषण सहित उन्हें सुनाए जाने लगते हैं। जय-जयकार की ध्वनियां गूजने लगती हैं। फिर भी भीड़ जाने का नाम नहीं ले रही है, अब पितामह को कुछ चिंता सी हो रही हैं। एकाएक वो नेताटाइप आदमी फिर हाथ जोडकर निवेदन सा करना शुरू करता है-‘‘ पितामह आपकी कृपा से बिजली तो आ गई। सुना है पीडब्ल्यूडी में भी आपकी खासी धौंस-धमक है। कॉलोनी में कच्ची सड़क है, गाडियां खराब हो रही हैं। आपकी कृपा से सड़क और बन जाती ....! एक एप्लीकेशन और लाए हैं हुजूर ....!’’

पितामह के दिमाग में पहले कलियुग... फिर विचार आया कि अब तो उनके पास बाणों की शैय्या और पहने हुए कुछ वस्त्र ही बचे हैं। गंभीर वाणी में बोले-‘‘एक दिन विचार करने के लिए दो, कल आना।’’ दूसरे दिन फिर लोग उत्साह में वहां पहुंचे तो देखा। पितामह मौन लेटे हैं। निशब्द...गर्दन एक और लुढकी हुई है...तत्क्षण हाहाकार मच जाता है एक महान आत्मा के त्याग बलिदान के संक्षिप्त किस्से आदि सुनाए जाते हैं, इन सबके पश्चात लोग अपनी मूल समस्या पर विवेचन-विमर्श प्रारंभ करते हैं, फिर एप्लीकेशन में नीचे से पितामह का नाम काटा जाता है, उन्हें सरकारी कागजों से भी मुक्त दी जाती है। वहां वार्ड पार्षद का नाम लिखा जाता है और उत्साह से लोग पार्षद के घर की ओर चल देते हैं।

तो बंधुओ कथा तो हुई खत्म... छूट गए कुछ सवाल...जिनका विवेचन आगे...

शाश्वत सवाल ः सदियों से रहस्य के गर्त में छुपा है यह प्रश्न कि क्या पितामह ने अपने इच्छामृत्यु के वरदान का इस्तेमाल इनपरिस्थितियों में किया था?

जवाबः सड़क की एप्लीकेशन कई विभागों से पास होनी थी, जबकि पितामह के पास केवल वस्त्र ही बचे थे, हां लोगों के पास पार्षद से लेकर विधायक, चुनाव-मतदान तक कई विकल्प थे। हां यहां इतना जरूरी होता है कि पबि्लक को पता हो कि वह पबि्लक है। स्पष्ट है कि एक भविष्यदृष्टा वीर ऐसी परिस्थितियों में अपने सम्मान की रक्षा के लिए क्या निर्णय लेता।

अब इस सबसे दूर कथा का मार्ड्न सबक ः 1. सरकारी विभागों से काम करवाना हो, तो कई सदियों का पैशेंस चाहिए, पैसा चाहिए, पॉवर चाहिए, पोजिशन चाहिए। ऐसे कई चाहिएहोने चाहिए तब कहीं जाकर चाहा काम बनता है। चाहिए की समझ आते ही लोग जब पबि्लक में बदलते हैं तो अमरबेल हो जाते हैं फिर खोज करते हैं ऐसे ही किसी चाहिए संपृक्त वीरकी, जो एक बार मिलभर जाए। फिर क्या होता है? ऊपर लिखा दोबारा देख लें...

2. फुरसतिया किस्म के समाज सेवियों के पास हमेशा विकल्पों का अभाव होता है। इसलिए आधुनिक काल में किसी काम में टांग डालने के फैसले से पहले यह देख लिया जाना चाहिए कि कही वह काम किसी सरकारी विभाग से सबंधित तो नहीं है... अन्यथा जब ऐसे काम का जिम्मा ले लिया जाता है तो फिर इसकी परिणिती किन हालातों में होती है जानना हो तो फिर ऊपर लिखा तिबारा देख लें...

इति।

------

सम्पर्क:

अनुज खरे

सी-175, मॉडल टाउन,

जयपुर ।

COMMENTS

BLOGGER: 3
  1. वाह ! जबरदस्त स्टोरी है.
    युग विवेचन संग सरकारी व्यवस्था विवेचन एकदम सत्य और लाजवाब है.

    जवाब देंहटाएं
  2. बेनामी10:33 pm

    एकदम सटीक व्यंग्य! बहुत-बहुत बधाई!!
    -सुधीर सक्सेना 'सुधि'

    जवाब देंहटाएं
  3. खरे साहेब /दीपावली की शुभकामनाएं /व्यंग्य पढ़ कर आनंद आगया /व्यंग्य वह भी कथा के रूप में /जहाँ तक मुझे याद है जब भीष्मजी शैया पर पड़े थे तब उन्हें प्यास लगी थी और पानी मांगने पर कोई चांदी के बर्तन में कोई सोने के बर्तन में लाया उन्होंने नहीं पिया /अर्जुनकी और देखा /अर्जुन ने धरती में तीर मारा पानी की धारा निकली /भीष्म ने पानी पिया /

    दूसरे दिन अर्जुन को नगरपालिका ने नोटिस देदिया के हमारी पाईप लाइन फोड़ दी भरपाई करो

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: अनुज खरे का व्यंग्य : शरशैय्या पर भीष्म … एक मॉडर्न वर्जन
अनुज खरे का व्यंग्य : शरशैय्या पर भीष्म … एक मॉडर्न वर्जन
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2008/10/blog-post_22.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2008/10/blog-post_22.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content