अनुज खरे का व्यंग्य : एक नेता का पॉलिग्राफिक टेस्ट

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व्यंग्य एक नेता का पॉलिग्रॉफ़िक टेस्ट   -- अनुज खरे   आजकल देश में झूठ पकड़ने के पॉलिग्राफिक टेस्ट के बड़े हूल दिए जा रहे हैं। ड...

व्यंग्य

एक नेता का पॉलिग्रॉफ़िक टेस्ट

 

-- अनुज खरे

 

आजकल देश में झूठ पकड़ने के पॉलिग्राफिक टेस्ट के बड़े हूल दिए जा रहे हैं। डराया जा रहा है कि कुछ छुपाया नहीं जा सकेगा। चाहे जिसको लेकर इस मशीन के सामने बैठा दिया जाता है कि बेटा सच बोल। सच का कैमिकल खोपड़े में जाकर खदबदाता नहीं है कि आदमी बोलना शुरू कर देता है, कम से कम सरकारी एजेंसियां तो मान के बैठती ही हैं कि जो बोला है वो सच ही होगा, क्योंकि पी के बोलने और सच ही बोलने के संदर्भ में सदियों से हम कन्विन्स हैं। हमारे यहां माना ही जाता है कि भले ही शपथ खाके झूठ बोल दें, लेकिन दो लोग पीके सच ही बोलते हैं। फिर तो इस गरीब को खुद सरकारी हाथों से कैमिकलपिलाई जा रही है। महकमा सेवा-टहल में जुटा है। चढ़ेगी कैसे नहीं, रंग गहरा ही आएगा, फिर इस भावना से मुग्ध सामने वाला दनादन सच उगलने लगेगा। इस तरह चलता है पॉलिग्राफिक टेस्ट। फिर एक बात अपन समझ नहीं पा रहे हैं, किस की भावनाओं को काबू करके उससे सच बुलवाया जा रहा है, लेकिन भाया अगर भावनाएं होती तो क्या बनते वे दुर्दांत अपराधी। अच्छा फिर हौसला तो देखो किन्हें कैमिकल पिला रहे हैं, जो सैकड़ों बोतलें डकारें बैठे हैं सांस तक नहीं खींचते। कैमिकल-सेमिकल उनका क्या बिगाड़ लेगा, समझते नहीं हैं, लगता है कच्चे खिलाड़ी हैं। अच्छा फिर देखिए मशीन से चैक किया जा रहा है, भावनात्मक स्तर, झूठ बोलते समय बढ़ने वाली पसीने की मात्रा, जो बताएगी कि सामने वाला सच बोल रहा है कि नहीं। लोजी, इन आधारों पर दनादन बैठाए जा रहे हैं किसिम-किसम के जीवोंमशीन पर। अब देखिए एक नेता को लाए हैं। बैठा रहे हैं, मामला है करोड़ों के घोटाले का, कहते हैं पता लगा लिया जाएगा।

ठीक है भैइया, पर मशीन पर तो कुछ रहम करो, उसे तो लाए हो विदेश से। वहां वो पकड़ती है अपराधियों के झूठ जो यहां-वहां के लगभग एक से ही होते हैं, लेकिन नेतागिरी में वे हमारे बाएं पैर के अंतिम अंगुली के नाखून के बराबर भी मेधानहीं रखते। वहां का नेता किसी भी मायने में नेता के अलावा अंततः इंसान भी तो होता ही है, यहां के नेता का मायना है, जो नेता ही हो, यानी लगभग दुर्लभ प्रजाति का हो। यहां की सदियों से चली आ रही परिभाषा तो यही कहती है, जो इस परिभाषा को ठीक से नहीं समझते, वे नेता हो ही नहीं सकते हैं, लिख लो। यकीन नहीं आता तो हमारे यहां कई सालों में विकसित हुई नेता बनने की घोर कष्टशील सुदीर्घ परंपरा को ही देख लो, जिसके तहत नेता बनने की कई विशेषताओं की बात सामने आती है।

नेता बनने के लिए सबसे महत्वपूर्ण आत्मज्ञान यही होता है कि संबंधित शरीर की सभी खिड़कियां खोलकर जान ले कि वो नेता मैटैरियल है। हालांकि सावधानी के नाते यह चैक कर लेना भी जरूरी होता है कि कहीं आत्मा किसी बोझ तले दबा हुआ सा तो नहीं महसूस कर रही है, क्योंकि यदि ऐसा हो रहा है तो वही बात की आप नेता नहीं बन सकते। क्योंकि नेता की आत्मा किसी भी ऐरी-गैरी बात पर दमित-बोझित महसूस करे तो हो लिए नेता, चल चुकी नेतागिरी। आत्मा यदि बुलबुला रही है तो निश्चित जान लीजिए कि अभी आफ नेता बनने की स्टैज नहीं आई है। पहले आपको इस आत्मानामक जीव का माइंड सैटपरिवर्तित करवाना होगा। हालांकि ये भी इतना आसान काम नहीं है क्योंकि आत्मा का सदियों से एक सैट पैटर्न में काम रहा है टोकने का, आदमी जरा खाल से बाहर जाता दिखे और उसे कोंचने का, पहले का आदमी भी नेता बनने से पहले इस बात को तवज्जो दे देता था, अब तो आम इनसान तक आत्मा की नहीं सुनता, नेता तो हर वक्त उसका गला घोंटने को उद्यत रहता है। अच्छा एक बात और खास आत्माके साथ नेता पूर्व से ही शरीर में उत्पन्न हो जाने वाले अल्पज्ञात तंतु जमीरका भी पूर्णरूपेण पोस्टमार्टम कर शवठिकाने लगा चुका होता है। जीभ को अपने अनुकूल कर लेता है और दिमाग होता तो भाई साहब क्यों नेता होता। गुर्दे-पिस्ते-तिल्ले आदि-आदि आइटमों पर सैकडों बोतल अल्कोहल डालकर आदत का अलजाईमर्स लगा देता है। फिर आता है दिमाग का नंबर तो इस बारे में जान लें कि दिमाग होता तो क्यों...बिलकुल सही...। यानी खुद को झांसे देने में सफल होने पर ही नेतागिरी की शुरुआत हो पाती है। अब आप खुद ही सोचिए कहां एक भारतीय नेता बनने की इतनी सुदीर्घ-सुपोषित-सुस्पष्ट-सुपाच्य परंपरा कहां, कलपुर्जों के जोड़ से बनी एक टटपुंजियां मशीन। कहीं कोई मुकाबला नहीं, और देखिए कि पिले पड़े हैं मशीन की धौंस पर नेता से सच बुलवाने के लिए। खैर, आप भी देखिए नेता को मशीन पर बैठाकर किया क्या जा रहा है। मशीन चला दी गई है। अधिकारी चारों तरफ खड़े पूछताछ में जुटे हैं, विशेषज्ञ मशीन से माप-तौल ले रहे हैं। नजारा गजब का है। देखें-

नेता कुछ-कुछ मदहोशी के आलम में हैं, दिमाग में कैमिकल खड़खड़ा रहा है। अधिकारी उनसे पूछ रहे हैं।

‘‘आप कौन हैं’’

‘‘सरकार ’’ नेताजी ने उसी आलम में जवाब दिया।

अधिकारी कड़के- ‘‘सच बताइए’’

‘‘सत्ता-अधिकार-भ्रष्टाचार-बोटियां-तंदूरी रोटियां’’

‘‘अपना नाम बताइए, अपने ढाबे का विवरण नहीं दें’’

‘‘वही बता रहा हूं, आदमी की खाल मंढी कुर्सी पर बैठी सरकार’’

‘‘ठीक है जी, तो सरकार आपने ये घोटाला कैसे किया’’

‘‘अब ठीक है तुमको मैं नौसेनाध्यक्ष बना दूंगा, पुलिस में कमांडर भी बनवा सकता हूं, घोटाले की जांच जरूर होगी, कमीशन बैठाऊंगा, घोटाला तो उस साले रामदयाल ने ही किया होगा, विरोधियों की चाल है आरोप हम पर मंढने के लिए तुमको इस्तेमाल कर रही है। एक-एक को कालापानी ट्रांसफर करवा दूंगा, नेता पर रौब गांठते हो’’

- उधर मशीन के कई बल्ब एक साथ चमक रहे हैं। स्क्रीन पर सन्नाटा छाया है।

अधिकारी ने विशेषज्ञ से पूछा, उसने बताया मशीन कुछ समझ नहीं पा रही है। विशेषज्ञ लगातार जांच कर रहे हैं। हालांकि अधिकारी भी सरकारी हैं। ऐसी मशीनों से सच बुलवाना अच्छी तरह से जानते हैं। सो पिले पड़े हैं। मशीन को ठोंक रहे हैं, हिला रहे हैं, ठोकरें मार रहे हैं कि कुछ तो बता, एटीएम मशीन की तरह कोई तो पर्ची बाहर फेंक। मशीन से कुछ झुंझलाता हुआ अधिकारी फिर नेता से पूछना शुरू कर देता है।

- ‘‘घोटाले में कितने लोग शामिल थे, कैसे किया था घोटाला, जल्दी बता’’

-‘‘ काहै का घोटाला, झुग्गी बस्ती खड़ी थी, हमसे देखा नहीं गया गरीबों का दुख, एक बिल्डर से कहकर वहां बिल्डिंगें बनवा दी, गरीबी हटाने के लिए इतना अच्छा काम किया। मान लिया सरकारी जमीन थी, तो क्या हुआ। हमने कुछ की गरीबी तो हटा दी ना, इसमें क्या घोटाला है। गरीब आराम से फ्लैटों में रह रहे हैं। विरोधियों से थोड़ी देखी जा रही होगी हमारी उपलब्धि।’’

मशीन का हरा बल्ब जलने लगा। अधिकारी ने फिर पूछा।

‘‘घोटाला अकेले किया या कई लोग शामिल थे’’

‘‘काहै का घोटाला, कैसी धांधली, हमने कोई करोड़ों नहीं खाए हैं। हम नेता हैं जनता के सेवक, जो थोड़ा बहुत बन पड़ता है लोगों के लिए कर देते हैं। फिर गरीब हैं बेचारे, एक-एक, दो-दो कोठी, दो-चार गाड़ियां, इतने से भला आज क्या होता है, कर दिया उद्धार, दे दी रहने की जगह। अब इसमें कोई बुरा माने तो ये तो अच्छी बात नहीं है ना।’’

‘‘यानी’’ अधिकारी ने फिर कहा।

‘‘यानी कुछ नहीं, जनता की सेवा ही सेवा, कहीं कुछ गलत नहीं, सब सही, एकदम कायदे से, कानून से, जनता की सौगंध’’ नेता ने कहा।

मशीन फिर हरा बल्ब जलाने लगी। अधिकारी ने विशेषज्ञ की तरफ देखा, विशेषज्ञ ने बताया मशीन बता रही है। सही बता रहा है। अधिकारी चौंके, लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है। विशेषज्ञ ने बताया मशीन झूठ नहीं बोलती। खैर, अधिकारी आगे पूछने लगा।

‘‘आपने जिंदगी में कोई गलत काम, घपला-घोटाला किया है’’

‘‘कभी नहीं। हम तो जनता के जन्मजात सेवक हैं।’’

मशीन ने फिर हरा बल्ब जला दिया।

अधिकारी के साथ अब विशेषज्ञ भी चौंका, उसने मशीन को फिर चैक किया। सारे पुर्जे ठीक, मशीन एकदम दुरुस्त हालत में। दोबारा सारे तार नेता की बॉडी में लगाए। इतने में अधिकारी ने कुछ सोचा और पूछना शुरू किया।

‘‘आपने कभी किसी चुनावी सभा में भाषण दिया है।’’

‘‘हां’’। मशीन का लाल बल्ब जलने लगा। अधिकारी ने पूछा।

‘‘कभी लाल बत्ती की गाड़ी में घूमने की तमन्ना रखी है।’’

‘‘हां’’। मशीन फिर लाल बल्ब जलाने लगी। अधिकारी ने अगला प्रश्न पूछा।

‘‘किसी पद के लिए टिकट मांगा है।’’

‘‘हां’’। फिर लाल बल्ब। प्रश्न अनवरत पूछे जा रहे हैं।

‘‘कोई गलत आरोप आप पर लगता है तो बुरा लगता है।’’

‘‘हां’’। अबकी बार मशीन के सारे लाल बल्ब चमकने लगे।

मशीन से ढेर सारे कागज निकलना शुरू हो गए। विशेषज्ञ उनके अध्ययन में लग गए। कुछ समय पश्चात् उन्होंने अधिकारी को बताया कि शुरुआत में जो उत्तर इन्होंने दिए वे सही हैं, क्योंकि उन पर ही हरा बल्ब जला। बाद के उत्तरों पर लाल बल्ब जला अर्थात् वे गलत हैं।

अधिकारी ने कहा- ऐसा कैसे हो सकता है। एक बच्चा भी बता सकता है कि नेता माने घोटाला। फिर मशीन से कैसे कह दिया फिर देखो जो सच बता रहे हैं, उन्हें मशीन झूठ बता रही है।

विशेषज्ञों ने बताया कि झूठ बोलते समय बढ़ने वाली पसीने की मात्रा, घबराहट आदि शारीरिक कारकों में परिवर्तन के आधार पर मशीन तय करती है कि आदमी सच बोल रहा है या झूठ।

‘‘याने लिख दें कि इस नेता ने कोई घोटाला नहीं किया’’-अधिकारी ने कहा।

‘‘’बिल्कुल। विशेषज्ञ ने कहा।

... तो मित्रों ऐसे हुआ एक देसी नेता और विदेशी मशीन के मुकाबले का अंत।

आपको भी जानने की दिलचस्पी होगी कि आखिर मशीन ने ऐसा विश्लेषण कैसे किया? वो तो मशीन थी। आप तो नेताओं को जानते हैं ना, लगता है नेता बनने की शुरू में दी गई सुदीर्घ परंपरा का ख्याल नहीं है आपको। नेता यानी झूठा। जिंदगी भर एक नेता इतना झूठ बोलता है कि वो गुण तो उसकी आत्मा तक में रच-बस जाता है। अब को बेचारी मशीन कहां से पकड़ती उनके झूठ-सच को। हां, बेचारी उसके सच को झूठ इसलिए बता रही थी कि उसे आदत ही नहीं है सच बोलने की। सच बोलते समय नेता सहज नहीं रहता। इस कारण पसीना-पसीना होने लगता है, ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है।

‘‘... तो मित्रों, पूरी कहानी से सरल सबक तो ये ही हाथ लगता है कि विदेशी मशीन से झूठ पकड़वाते समय किसी नेता को उस पर नहीं बैठाना चाहिए। है, ना...। ’’

इति.

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संपर्क:

 

अनुज खरे

सी-175 माडल टाउन

जयपुर।

COMMENTS

BLOGGER: 4
  1. एक नेता का पॉलिग्रॉफ़िक टेस्ट
    kya khub likha h janab.
    Theek Baat yaha to jugad kaam kar sakta h koi machine nahi.
    Ramesh Sachdeva
    Director
    HPS Sr. SEc. School
    Mandi Dabwali 125104
    9896081327

    जवाब देंहटाएं
  2. एक नेता का पॉलिग्रॉफ़िक टेस्ट
    BAHUT KHUB LIKHA H. JIS DESH MEIN JUGAD KAAM AATA H WAHA MACHINE KYA KAAM KAR SAKTI H.
    THANKS
    RAMESH SCHDEVA
    DIRECTOR
    HPS SR. SEC. SCHOOL
    MANDI DABWALI - 125104
    09896081327

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  3. नेता बनाना सिखाया आपने

    जवाब देंहटाएं
  4. ‘‘यानी कुछ नहीं, जनता की सेवा ही सेवा, कहीं कुछ गलत नहीं, सब सही, एकदम कायदे से, कानून से, जनता की सौगंध’’ नेता ने कहा।
    बहुत उम्दा व्यंग्य लिखा है आपने.
    -सुधीर सक्सेना 'सुधि'
    जयपुर

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रचनाकार: अनुज खरे का व्यंग्य : एक नेता का पॉलिग्राफिक टेस्ट
अनुज खरे का व्यंग्य : एक नेता का पॉलिग्राफिक टेस्ट
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