यश का शिकंजा -यशवन्त कोठारी (पिछले अंक से जारी…) राव साहब रूके नहीं , बोलते चले गये, मैं जानता हूं कि पिछले दिनों विरोधी दलों ने य...
यश का शिकंजा
-यशवन्त कोठारी
राव साहब रूके नहीं , बोलते चले गये, मैं जानता हूं कि पिछले दिनों विरोधी दलों ने यहां पर सभाएं कीं, धरने दिये, रैलियां निकालीं। लेकिन एक बात आप भी याद रखिये, धरनों और रैलियों से समस्याओं का हल नहीं निकलता। समस्याओं को क्रियान्वित करना पड़ता है। .........
‘‘ विरोधियों के पास केवल एक काम है, सरकार की आलोचना करना। लेकिन आलोचना से क्या होता है ! हमने पिछले वर्षों में जो कार्य किये हैं, वे हमारी प्रगति के प्रमाण हैं।
‘‘ मैं आपसे फिर निवेदन करता हूं कि आप भूरी के हत्यारों को पकड़ने में हमारी मदद करें। साथ ही आपको आज से ही ऋण्ा-योजना का लाभ मिलना भी शुरू हो जाएगा। ''
राव साहब ने मीटिंग में ही कुछ गरीबों को अपने हाथ से ऋण-योजना के कागज और रूपये बांटे। तलियों की गड़गड़ाहट और कैमरों की चकाचौंध के बीच ग्रामीणों का दुःख पता नहीं कहां खो गया। मीटिंग की समाप्ति के बाद राव साहब एक बार फिर गांव के लोगों से मिले, बतियाये और शहर की ओर चल पड़े।
दूसरे दिन सभी प्रमुख अखबारों में प्रथम पृष्ठ पर राव साहब ग्रामीणों को ऋण वितरित कर रहे थे। समर्थक अखबारों ने सभा की सफलता को बढ़ा-चढ़ाकर बताया और विपक्षी अखबार चुप्पी साध गये थे। इन समाचारों से विरोधी दलों के नेताओं का प्रभाव और हवा जो गांव में बनी थी, सब साफ हो गयी। विपक्षी राव साहब के इस चोंचले को नहीं समझ पाये।
राव साहब की कोठी के लान में राव साहब और मदनजी विचरण कर रहे हैं। राव साहब शान्त और गम्भीर, मदनजी वाचाल-
‘‘ कमाल कर दिया साहब आपने ! विपक्षियों को वो धोबीपाट मारा है कि आपका जवाब नहीं ! गांव का बच्चा-बच्चा आपके गुण गा रहा है। हरेक की जबान पर केवल आपका नाम है।
‘‘ हूं.............!''
‘‘ इस ऋण-योजना ने तो गजब ढा दिया ! लगभग सभी परिवारों को ऋण मिल गया। हर एक ने कोई-न-कोई धन्धा शुरू कर दिया........''
‘‘ होना भी चाहिए। गरीबों का उदय होगा, तभी तो सभी का उदय होगा ! ''
‘‘ सर, एक बात है-गांव में आपके जाने से तो पूरा माहौल ही बदल गया। अब विपक्षी दलों के लोग तो उधर जाने में भी कतराते हैं। ''
‘‘ हां, हो सकता है ! लेकिन तुम ये बताओ कि पूरे क्षेत्र की हालत कैसी है ?''
‘‘ बिलकुल फस्ट किलास सर ! अब ये उपचुनाव तो आपकी जेब में आया समझिये। ''
‘‘ और वहां के गांववाले बयान के लिए तैयार हुए या नहीं ?''
‘‘ हो जाएंगे ! ऋण-योजना में परोक्ष रूप से ऐसी शर्त लगा देने पर सब ठीक हो जाएगा। ''
‘‘ अच्छा अब तुम जाओ ! ''
राव साहब अन्दर आए। कुछ जरूरी फाइलें निपटाई, गोली खाई और सो रहे।
उदा बा के झोंपड़े के बाहर फिर रात के समय गांव के बड़े-बूढ़ों ने इकठ्ठा होना शुरू किया। राव साहब के गांव से वापस चले जाने के बाद यह तीसरा दिन था। कुछ परिवारों को ऋण मिल गया था। मिले चेक को भुनाने में गांव के लोगों को दिक्कत हो रही थी। कुछ गांववालों को शहर आकर तहसील से रूपया ले जाने को कहा गया था।
‘‘ कारे खुमाण, थने कतरा रिप्या मिल्या ? ''
‘‘ काका, अंगोठों तो मैं एक हजार रिप्या पे लगायो, पण काट-कुटं ने मने आठ सौ रिप्याइजदीदा। ''
‘‘ अरे, भागता चोर री लंगोटी भली ! ''
‘‘ हां काका, जो आया वोई पाया ! ''
‘‘ अबे थू अणा रिप्या रो कई करेगा ? '' उदा ने सवाल उछाला।
‘‘ कई करूंगा ? अरे अबे क्यूं पूछो हो, वो रिप्या तो वणी दन वाण्या रा आदमी लेइग्या। वो नराइ दनाउ मांगतो हो। मारे पां तो अबे कई नी बच्चो। थोड़ा-घणा रिप्या रो धान लायो। अकाल रो वकत है। खावा ने तो छावे ! ''
‘‘ हां खूमा, या बात तो है। मारी भी हालत असीज है। '' उदा बोला।
‘‘ थारी- मारी न सबकी हालत असी है ! ये राव साहब तो अणी वास्त रिप्या बांट गया कि आपांरो ध्यान भूरी पू हट जावे। '' पता नहीं कहां से हरिया कुम्हार आ गया और उसने उपरोक्त बात कही।
‘‘ अरे छोरा, जो मर ग्यी वा तो ग्यी। आंपा सारी उमर रोवां तो भी कई नी वेई सके। देख्यो वण्डो काको राव साहब रा कत्या गुण गाई रयो। ''
‘‘ हां, पांच हजार रिप्या रो मरहम वण्डा जखम पे लाग गयो है।''- हरिया ने कहा।
‘‘ अणी वास्तेइर्ज़ तो केउं कि आंपा सब अबे कईं कर सकां ! '' खुमा ने कहा। फिर उसने चिलम सुलगाई , सब पीने लगे।
रात धीरे-धीरे गहराने लगी और गांव को अपनी गिरफ्त में लेने लगी।
11
राव साहब की मीटिंग और उसकी सफलता का जो खाका राष्ट्रीय, प्रान्तीय व स्थानीय अखबारों ने खींचा था, उसे पढ़ सुनकर विरोधी दल के नेताओं के पैरों के नीचे से जमीन निकल गयी। कहां तो वे सोच रहे थे कि यह उपचुनाव भूरी बाई की कृपा से अब उनकी जेब में हैं ; लेकिन राव साहब ने पूरा पासा ही पलट दिया।
विपक्षी दलों के संयुक्त उम्मीदवार दोषी ने फिर राजधानी में अपने आकाओं के द्वार खटखटाये। रामास्वामी और उसके मित्र दोषी के साथ विचार करने लगे।
‘‘ हां तो दोषी, राव साहब ने गांववालों में पैसा बांट दिया ? ''
‘‘ हां, बांटा तो अनुदान है, लेकिन उन्होंने गांववालों के पास बैठकर उनसे बात की। एक के घर पानी पिया। इन बातों से काफी फरक पड़ा है। '' -दोषी बोले।
‘‘ तो क्या पूरे क्षेत्र में इसकी चर्चा है ? ''
‘‘ हां और क्या ! अखबारों, रेडियो, टेलीविजन की मदद से इन बातों का ऐसा प्रचार-प्रसार किया जा रहा है, जैसे राव साहब बड़े देवता आदमी हैं और उन्होंने पूरे क्षेत्र का उद्धार कर दिया । ''
‘‘ अच्छा..........''
‘‘ और तो और, एक निर्दलीय उम्मीदवार भी राव साहब के उम्मीदवार जोशी के समर्थन में बैठ गया। ''
‘‘ अरे यह तो गजब हो गया ! '' रामास्वामी के मित्र ने कहा।
‘‘ अरे साहब, गजब तो तब होगा, जब मेरी जमानत भी नहीं बचेगी ! ''
‘‘ देखो दोषी, जब ओखली में सिर दे दिया है तो मूसल से मत डरो। रामास्वामी ने कहा।
‘‘ वो तो ठीक है स्वामी साहब, लेकिन मैं तो अच्छा-भला कमा-खा रहा था, कहां राजनीति में फंस गया ! ''
‘‘ जब फंस ही गए हो तो धीरज रखो। और शान्ति से आगे का कार्यक्रम बनाओ। ''
अब रामास्वामी आराम से पसर गए। थोड़ी देर चुप रहे और फिर कहने लगे-
‘‘ उस गांव में किसका प्रभाव ज्यादा है ? ''
‘‘ एक लड़का है हरिया कुम्हार, वही कुछ पढ़ा-लिखा है ; लेकिन थोड़ा सनकी है।''
‘‘ हूं.....तो क्या उसे अपने पक्ष में किया जा सकता है ? ''
‘‘ मुश्किल ही है ! वो राजनीति से बहुत दूर रहता है। ''
‘‘ दूर को तो पास लाना पड़ेगा। ''
‘‘ दोषी, तुम एक काम करो-येन-केन प्रकारेण उसे अपने पक्ष में करो, और उसी से भूरी-हत्याकाण्ड वापस उछलवाओ। ''
‘‘ अच्छा, ठीक है ! ''
‘‘ और मुझे सूचित करो ! '' रामास्वामी ने कहकर दोषी को रवाना कर दिया।
अब कमरे में रामास्वामी और उसके मित्र अकेले ही रह गये।
‘‘ उस हत्याकाण्ड का क्या हुआ ? ''
‘‘ कौन-सा ? ''
‘‘ अरे वही, जो लड़की तुम्हारी कोठी के बाहर मरी पायी गयी थी। ''
‘‘ कुछ नहीं यार, स्वयं स्वामी असुरानन्द ने कोई केस नहीं किया। ''
‘‘ मैंने भी ज्यादा मगजपच्ची नहीं की। ''
‘‘ अच्छा ? ''
‘‘ पुलिस के पास पुख्ता सबूत तो थे नहीं, इस कारण वह भी कुछ नहीं कर सकी। ''
‘‘ मैंने गृहमंत्री से भी बात कर लीं अब कुछ नहीं होगा ! ''
‘‘ नहीं, मैंने सोचा-यह केस तुम्हें दिक्कत करेगा। ''
‘‘ नहीं-नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। ''
‘‘ तब तो ठीक है ? '' मित्र बोल पड़े।
रामास्वामी ने एक उबासी ली। दवाखाई और मित्र के साथ सुरा देवी का आनन्द लेने लगे।
गांव का पश्चिमी भाग है यह। दूर तक छोटे-छोटे खेत। कभी इनमें हरियाली लहराती है, लेकिन इस बार अकाल है। अनावृष्टि के कारण पूरा क्षेत्र अकालग्रस्त है।
पहाड़ सब नंगे हो गए है। इधर-उधर मुंह मारते जानवर और सूखे पड़े कुओं को देखकर कलेजा मुंह को आता है। ऐसे स्थान पर, खेत की मेड़ पर हरिया कुम्हार कुछ शहरी लोगों से घिरा हुआ बातें कर रहा है।
‘‘ देखो हरिया, भूरी बाई की हत्या का राज अगर नहीं खुला, तो लानत है तुम्हारी जिन्दगी पर ! ''
‘‘ मैं अकेला क्या कर सकता हूं ? ''
‘‘ अरे तुम बहुत कुछ कर सकते हो! गांववालों को समझाओ, जिला मुख्यालय पर धरना दो, रैली करो ! ''
‘‘ लेकिन इन सबसे क्या होता है ? ''
‘‘ अरे, हम सभी विरोधी भी तो तुम्हारे साथ हैं। ''-दोषी बोला, ‘‘ अगर राव साहब ने कुछ पैसा बांट दिया तो क्या तुम लोगों का जमीर ही मर गया ? ''
‘‘ सवाल जमीर का नहीं है। अब भूरी तो वापस आएगी नहीं हम सभी चाहे कुछ भी कर लें ! ''- हरिया ने निराश भाव से कहा ।
‘‘ अरे भाई, तुम बात को समझने की कोशिश क्यों नहीं करते कल भूरी की हत्या हुई, परसों और किसी की होगी।'' दोषी ने फिर उसे उखाड़ने की कोशिश की-
‘‘ अगर तुम इस गांव के लोगों में असंतोष फैला दो, तो हम विधानसभा और लोकसभा में आवाज उठाएंगे। बिना यहां कुछ हुए, हम भी क्या कर सकते हैं ! '' क्षेत्रीय विधायक ने कूटनीति दिखाई ।
‘‘ हां, ये बात तो है ! अगर यहां पर कुछ हो तो हम लोग भी देर-सबेर आवाज उठा सकते हैं। ''- हरिया बोला।
‘‘ रामास्वामी भी हमारे साथ हैं।'' दोषी ने कहा।
‘‘ अच्छा......'' हरिया शान्त ही रहा।
‘‘ और सत्ताधारी पक्ष का एक गुट भी वैसे इस चुनाव के कारण राव साहब से नाराज है। हरिया, तुम चाहो तो तुम्हारी किस्मत चमक सकती है ! '' दोषी ने अब चारा फेंकना शुरू किया। थोड़ी देर की ना-नुच के बाद दोषी और उसके साथी हरिया को शहर ले गए, और वहां उसे अच्छी तरह से समझा-बुझाकर वापस गांव छोड़ गए।
ल्ोकिन राव साहब के अनुचर मदनजी ने ये स्कीम भी फेल कर दी। हरिया का शव गांव के एक सूखे कुएं में बरामद हुआ। पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया।
रामास्वामी ने हरिया की मौत की समस्त जिम्मेदारी सत्ताधारी पक्ष पर थोप दी। उन्होंने अपने प्रेस-वक्तव्य में कहा-
‘‘ इस चुनाव के नाजुक समय में, इस क्षेत्र में एक के बाद एक मौत ने गांव वालों का मनोबल तोड़ दिया है। हरिया एक सक्रिय और समझदार कार्यकर्ता था ; वह हमारे प्रत्याशी दोषी के लिए काम कर रहा था। यह एक राजनीतिक हत्या है। ''
इतना ही नहीं, रामास्वामी और उसके समर्थकों ने संसद में भी बहस की मांग की। सत्ताधारी पक्ष इस हमले से बौखला गया, लेकिन राव साहब शान्त रहे ; और अन्त में बहस का जवाब देते हुए उन्होंने कहा-
‘‘ सभी जानते हैं, हरिया एक सनकी और मानसिक रूप से विकृत लड़का था। शहर में फेल हो जाने के बाद वह गांव चला गया। गांव में उसकी उल-जलूल हरकतों से गांववाले परेशान थे। किसी सनक के कारण ही वह कुएं में गिर गया और उसकी मृत्यु हो गयी-पुलिस और पोस्टमार्टम की रपटों से यही साबित होता है। ''
इतना कहने के बाद राव साहब तनिक रूके और फिर बोले-
‘‘ उपचुनाव कौन जीतता है, यह महत्वपूर्ण नहीं ; लेकिन यह आरोप कि हरिया की हत्या राजनीतिक है, बिलकुल बेबुनियाद हैं ! ''
इसके समर्थन में राव साहब के सांसदों ने हर्षध्वनि की। रामास्वामी के समर्थकों ने वाक्आउट करना पसन्द किया।
इधर विधानसभा चुनाव के परिणामों में सत्ताधारी पक्ष मात खा गया। पांच में से तीन प्रदेशों में विरोधी दलों की सरकारें बन गयीं। इसी आधार पर लोकसभा में भी उम्मीद थी। भूरी हत्या-काण्ड, हरिया की मौत आदि कारण उनकी और भी मदद कर रहे थे। ऐसी विकट स्थिति में राव साहब को राष्ट्रपति ने बुलवाया।
‘‘ देश की हालत दिन-दिन खराब हो रही है। '' -मितभापी राष्ट्रपति बोले।
‘‘ नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं है ! ''
‘‘ अल्पसंख्यकों पर अत्याचार बढ़ रहे हैं। ''
‘‘ ..................''
‘‘ विश्वविद्यालय बन्द हैं। मिलें और फैक्टरियां बन्द हैं। चारों तरफ अराजकता है। क्यों, आखिर ऐसा क्यों हो रहा है ? ......जहां राष्ट्रपति शासन है, वहां सब ठीक चलता है। क्यों नहीं आपवलोग कुछ समय के लिए राजनीति से हट जाते हैं। कुछ समय के लिए राष्ट्रपति शासन लागू कर दें, सब ठीक हो जाएगा ! ''
‘‘ ये कैसे हो सकता है ? ऐसे कोई कारण नहीं हैं कि राष्ट्रपति शासन लागू हो। मेरी सरकार पूर्ण बहुमत में ठीक तरह से काम कर रही है। ''
‘‘ तो फिर यह अराजकता क्यों ? ''
‘‘ इतने बड़े देश में थोड़ी-बहुत तो चलता ही है ! '' राव साहब ने कहा।
‘‘ नहीं, राव साहब, स्थिति ठीक नहीं है। आप कुछ कीजिए, नहीं ंतो मैं ही कोई कदम उठाउंगा। '' यह कहकर राष्ट्रपति अन्दर चले गए।
राव साहब बाहर आए। पत्र-प्रतिनिधियों से बात नहीं की राव साहब ने, और अपनी कोठी पर आ गए।
पता नहीं किन कारणों से, राव साहब और राष्ट्रपति की भ्ोंट की खबर रानाडे और अन्य लोगों को मिल गयी। उन्होंने राव साहब को आगाह किया कि इस स्थिति में हमें तुरन्त कुछ सख्त कदम उठाने चाहिए। लेकिन राव साहब इस स्थिति में नहीं थे कि कुछ करते। अपनी कोठी पर उन्होंने केबिनेट की मीटिंग बुलाई। रानाडे ने इस मीटिंग का बहिष्कार किया। मीटिंग की समाप्ति के पूर्व ही रानाडे और उनके समर्थकों ने अपना इस्तीफा भेज दिया।
राव साहब की सरकार अल्पमत में हो गयी। इधर राव साहब कुछ समझें, तब तक रानाडे ने नयी पार्टी गठित कर ली। और राव साहब ने अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को भेज दिया।
राष्ट्रपति ने राव साहब का इस्तीफा मंजूर कर लिया। राजधानी में तेजी से बदलते हुए घटना-क्रम पर पूरे विश्व की आंखें लगी हुई थीं।
रानाडे और उसके समर्थकों ने एक पार्टी का गठन कर उसे विधिवत् मान्यता दिला दी।
ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति ने कानूनी सलाहकारों की राय लेकर विपक्ष के नेता रामास्वामी को सरकार बनाने हेतु आमंत्रित किया। इस समाचार के प्रसारित होते ही राजनीतिक गतिविधियां अत्यधिक तीव्र हो गयीं।
12
राष्ट्रपति भवन से जब रामास्वामी बाहर निकले तो रात्रि प्रारम्भ हो चूंकि थी। बाहर मंडराते प्रेस-फोटोग्राफरों और संवाददाताओं ने उन्हें घेर लिया।
मुस्कराते हुए वे उनसे बचकर निकल गए। अपनी लम्बी गाड़ी में बैठकर रामास्वामी कोठी पर आए। कोठी में उनके आने से पूर्व ही यह समाचार पहुंच चुका था, अतः चारों तरफ हर्ष की लहरें हिलोरें ले रही थीं। बाहर लान में, सड़क पर और आगुन्तकों हेतु जो कक्ष बनाए गए थे, सभी तरफ भीड़ थी। रामास्वामी अपने सचिव सहित अन्दर वाले कमरे की ओर चल पड़े।
कमरे में पहुंचकर रामास्वामी ने रानाडे तथा अन्य विरोधी दलों के नेताओं को आज रात के भोज हेतु आमन्त्रित किया। तेजी से सचिव ने टेलीफोन मिलाए और आनन-फानन में सभी प्रबन्ध होते चले गए।
आज रामास्वामी को लगा, शायद उनका बरसों का सपना पूरा होने वाला है। अगर रानाडे और कुछ अन्य दल साथ दे दें, तो वे इस बार प्रधानमंत्री का ताज पहन लेंगे।
रात्रि के भोज पर उन्होंने नेताओं से वार्तालाप प्रारंभ किया। रानाडे को लेकर वे अपने एकान्त शयनागार में आए।
‘‘ बधाई ! '' रानाडे ने कहा, ‘‘ अब तो आप ही पी.एम. होंगे !''
‘‘ अगर आपका सहयोग मिला तो । ''
‘‘ ऐसी क्या बात है ! मैं तो हमेशा ही आपके साथ हूं। पहले भी मैं इस सम्बन्ध में आपसे कह चुका हूं।
रामास्वामी कुछ देर तो चुप रहे, फिर बोले-
‘‘ तो क्या आप और आपके सभी समर्थक मेरे साथ हैं ? ''
‘‘ देखिये, औपचारिक रूप से हम आपके साथ तभी होंगे, जब आपके पास सरकार बनाने लायक एम.पी. हो जाएंगे। ''
‘‘ लेकिन अभी तो आपने सहयोग का वादा किया था । ''
‘‘ वो तो मैं कह ही रहा हूं। लेकिन जब तक अन्य दल और एम.पी. आपको पी.एम. के रूप में स्वीकार नहीं करते, मैं अकेला कैसे सपोर्ट कर सकता हूं ! ''
‘‘ इसका मतलब, आपका सपोर्ट बेकार ही है ! ''
‘‘ आप कुछ भी समझिये ! हां अगर अन्य लोग आपके साथ आ गए तो हम भी आपके साथ होंगे। ''
यह कहकर रानाडे ने खाली गिलास रखा और बाहर की ओर चल पड़े।
रानाडे के जाने के बाद रामास्वामी कुछ देर तक सोचते रहे, फिर वापस आकर सुराणा और मनसुखानी आदि से बातचीत करने लगे। लेकिन कोई भी सहयोग हेतु तत्काल तैयार नहीं हुआ।
रामास्वामी ने अपने समर्थक मुख्य मंत्रियों को भी राजधानी बुलवा लिया।
तीन दिन तक वे लगातार जोड़-तोड़ करते रहे, लेकिन शायद सफलता उनके भाग्य में नहीं लिखी थी। रामास्वामी ने अपनी सरकार बना सकने की असफलता से राष्ट्रपति को अवगत करा दिया।
इस सूचना से राजनीतिक स्थिति और भी अधिक खराब हो गयी। सत्ताधारी पक्ष में विघटन और ध्रुवीकरण एक साथ चलता रहा। उधर विरोधी पक्ष भी असंगठित रहा। रामास्वामी अपनी असफलता के कारण परेशान, उदास और टूटे हुए रहने लगे।
राष्ट्रपति ने सभी सम्भावनाओं को देखते हुए, संसद में सबसे बड़े गुट के नेता को सरकार बनाने की दावत दे दी। सत्ताधारी पक्ष में विघटन के बाद रानाडे का गुट सबसे बड़ा बन गया था।
रानाडे स्वयं राष्ट्रपति से मिलकर इस सम्बन्ध में कोशिश कर रहे थे। इस आमन्त्रण से रानाडे को मन की मुराद मिल गयी।
उन्होंने विरोधी दलों में से कुछ का सहयोग प्राप्त किया, कुछ खरीदा-बेचा, एक नेता को उप-प्रधानमंत्री बनाने का लालच दिया और अपनी सरकार बनाने की घोषणा कर दी।
सुराणा, मनसुखानी, हरनाथ और स्वामी असुरानन्द, सभी रानाडे के मंत्रिमण्डल में आ गए।
रानाडे शपथ-ग्रहण समारोह के बाद संसद के सत्र हेतु तैयारी करने लगे। इस पूरे चक्र में रानाडे का साथ बाहर से भी कुछ दलों ने दिया।
संसद सत्र के आने से कुछ समय पूर्व सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा, लेकिन धीरे-धीरे रानाडे के समर्थकों में असंतोष पैदा होने लगा। जिन एम.पी. को कुछ नहीं मिल पाया, वे अलग होने की धमकी देने लगे।
आिखर में संसद सत्र के दिन तक रानाडे की सरकार अल्पमत में हो गयी। रानाडे इस समाचार को नहीं सह सके। उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा।
राष्ट्रपति ने विरोधी दलों के नेताओं से विचार-विमर्श किया। कुछ लोगों ने सरकार बनाने का दावा भी किया। समर्थक एम.पी. की सूचियां भी प्रस्तुत की गयीं।
लेकिन जांच होने तक राष्ट्रपति ने शासन की बागडोर पूर्ववर्ती कैबिनेट को ही सौंप दी। तमाम जांचों के बाद और दावों की सत्यता तथा देश की स्थिति को देखते हुए, राष्ट्रपति ने आकाशवाणी से अपने प्रसारण में कहा-
‘‘ मेरे देशवासियो !
अभी स्थिति इतनी नाजुक है कि कुछ भी नहीं कहा जा सकता। कोई भी दल सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है।
अतः मैं मध्यावधि चुनावों की घोषणा करता हूं। सभी दल जनता के पास से नया जनादेश लेकर आएं, ताकि हमारा लोकतन्त्र सुरक्षित रहे ! ''
(समाप्त)
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यह रचना 1983 में सत्साहित्य प्रकाशन-प्रभात प्रकाशन दिल्ली द्वारा प्रकाशित है।
-पात्र व घटनाएं काल्पनिक-
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-यशवन्त कोठारी, 86, लक्ष्मी नगर, ब्रह्मपुरी बाहर, जयपुर - 2, फोन - 2670596
e-mail ID - ykkothari3@yahoo.com
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