गरमी के दिन । सड़ी गरमी के दिन । पसीने के दिन । लपलपाती लू के दिन । उफ! ये गरमी के दिन । कौन चाहता है गरमी । लेकिन हर एक को सताती है गरमी...
गरमी के दिन । सड़ी गरमी के दिन । पसीने के दिन । लपलपाती लू के दिन । उफ! ये गरमी के दिन । कौन चाहता है गरमी । लेकिन हर एक को सताती है गरमी । काश गरमी के दिन जल्दी बीत जाये । बारिश आये ।
जेठ की गरमी के सामने आबाल वृद्व नत मस्तक । तेज लू के थपेडे । ऊपर से आग बरस्ज्ञाती है इच्छा होती है कोई ठण्डी छांव मिल जाये कहीं एक लोटा मटके का ठण्डा. पानी मिल जाये । किसी पनघट के किनारे पर दो मिनट सुस्ताने को मिल जाये । मगर हाय गरमी । पंछी तक घोसलों से निकलने की हिम्मत नहीं करते । सड़के सुनसान ,बाजार बियाबान । ऐसी गरमी । वैसी गरमी । गरमी के किस्से थर्मामीटर से उछल उछल कर बाहर आते । बतियाते । थर्मामीटर में छुप जाते । कुछ के लिए हाय गरमी । कुछ के लिए वाह गरमी और कुछ के लिए आह गरमी । कहते है गरमी तो ए․सी․ वालो के लिए । ए․सी․ मकान से निकले,ए․सी․ कार में बैठे और ए․सी․ ,दफ्तर में जम गये । यात्रा करनी पड़ी. तो ए․सी․ ,रेल । ए․सी․ ,बस ।ए․सी․ प्लेन । कहाँ है , गरमी । मुझे तो नहीं लगती ,एक उद्योगपति ने कहा था मुझे ।
मजदूर ,किसान ,ठेलेवाले ,रिक्शे वाले ,सब्जी वाले से पूछो गरमी । उसे लगती है गरमी ,वो भुगतता है गरमी को । गरमी को ओढ़ता है । बिछाता है , खाता और पीता है ।छाछ-राबडी के लिए भी तरस जाता है गरमी में गरीब । गरीब की गरमी अलग । अमीर की गरमी अलग । अमीरी की गरमी प्राकृतिक गरमी को मात दे देती हैं ।
गरमी की सुबह क्या और गरमी की साझं क्या । सुबह कुछ घूमने वाले बड़े बुजुर्ग जल्दी उठ कर पार्क में चले जाते है । शाम को लड़के क्रिकेट खेलने लग जाते । लड़कियां फूलों को देखकर गरमी में भी खिलखिलाने लग जाती है और महिलाएं बतियाने लग जाती हैं । गरमी में फूलों का बड़ा सहारा होता है यदि पानी की इफरात हो तो कोठी में रेन ड़ांस का आयोजन हो जाता है। लोन में ठण्डे पानी का छिड़काव कर नेता-अफसर , उद्योगपति नई कोठी की योजना बनाने लग जाते है। गरमी में नई कोठी की कल्पना बड़ी ठण्डक देती हैं।
गरमी के दिनों में रिसोर्ट ,फार्म हाउसों के क्या कहने । घूमने फिरने का आनन्द आ जाता है। पैसा पूरा हो तो गरमी के दिन पहाड़ों पर , झरनों और झीलों के किनारे काटे जा सकते है। गरमी के दिन हो ,डल झील में शिकारा हो और कश्मीर की वादियों का नजारा हो तो गरमी क्यों सताये । मगर सब की किस्मत ऐसी कहां होती है ?गरमी के दिन ,बिजली गुल होने के दिन परेशानी के दिन । तेज गरमी ,लू की चपेट में बड़े बूढे. ऊपर की राह पकड़ लेते है। जवानों को उल्टी ,दस्त ,मच्छर ,मक्खी परेशान करते हैं।
बीमारियों की शुरूआत है उमस वाली गरमी । आंखों की बीमारियाँ है गरमी के दिन । मंहगाई की मार से गरमी भी त्रस्त हो जाती है मगर गरमी में कुछ सुकून भी है । अमलतास गुलमोहर के फूल दिल ,दिमाग ,आंख और मौसम को सुकून देते हैं ।
गरमी के दिन ही है जो हमारे को फलों के राजा आम तक पहुंचाते है । आम तेरे कितने नाम । आम का जिक्र आते ही गालिब की याद सताने लगती हे।
आम से ध्यान हटे तो फालसे ,तरबूज ,खरबूज ,लीची ,जामुन ,शहतूत और ककड़ी. पर नजर जा टिकती है। लैला की पसलियों की तरह खुबसूरत ककड़ी. मीठा लाल तरबूज ,सेकरीन सा खरबूजा और खट्टा-मीठा फालसा । गरमी में खूब सुकून देते हैं।
भांग ,ठण्डाई ,खसखस के दाने ,काली मिर्च और बगीची में सिलबट्टा ,गरमी को कृतार्थ करते हैं। गुलाब ,खसखस ,केवड़ा ,कैरी ,के शरबतों का क्या कहना । गरमी पास भी नहीं फटकती । गरमी के दिनों में ही तो गोल गप्पे,पानी पूरी ,आईसक्रीम , केण्डी ,बर्फ का गोला आदि चीजों की याद आती है। वाह गरमी के दिन । बिना कुल्फी के कैसे गुजारे गरमी के दिन ।गरमी की छुटि्टयॉ है नाना ,दादा के जाना है। गरमी गांव में गुजारनी है। दादी ,नानी के किस्से कहानियां सुनते सुनते गरमी कब बीत जाती पता ही नहीं चलता । लेकिन अब गरमी में मल्टीप्लेक्स ,शॉपिंग मॉल , और बड़े चौराहे है।
गरमी के दिन । सुबह जल्दी होती है शाम देर से होती है। पन्द्रह घंटों का दिन । सूरज के ओवर टाइम के दिन । उसके रथ से आग बरसने के दिन ।
अम्मा कच्ची कैरी का पना बना कर सबको पिला रही है। बाहर मत निकलना । निकलो तो खूब पानी पीकर जाना । हाथ-पांव ,सिर ,आंख बचाकर रखना । ये गरमी के दिन । लाटसाहबों के पहाड़ पर राजधानी बनाने के दिन । राष्ट्रपति शिमला । राज्यपाल माउन्टआबू । सब के लिए गरमी के दिन । सौगातों के दिन । आलस के दिन धूप का चश्मा लगाकर गरमी में जुगाली के दिन । गरमी के दिन । पैसे वालों के दिन । कुल मिलाकर गरमी के दिनों की याद मुझे बारिश तक रहती है। आम खाने का कोई दूसरा मौसम हो तो आप मुझे बताये वैसे गरमी फलों का रस भी है और ,गन्ने का चूसा हुआ छिलका भी । गरमी में पंखे कूलर भी और गुलाब की पंखुड़ियां भी ।
गरमी सताती भी है और ठण्डाती भी है । आषाढ़ का पहला दिन ,पहला बादल ,मेघदूत सब का कारण हे गरमी के दिन । गरमी से प्यार करने लगा हूं मैं । गरमी के दिनों में शादी ,ब्याह के दिन । हनीमून के दिन । पहाड़ों पर घूमने के दिन । सांय काल पार्क में प्यार से पार्टनर को निहारने के दिन । गरमी के क्या कहने। आह गरमी ! वाह गरमी ! हाय गरमी !
----
0 0 यशवन्त कोठारी 86, लक्ष्मी नगर, ब्रह्मपुरी बाहर, जयपुर-302002 फोनः-2670596
ईमेल: ykkothari3@yahoo.com 0 0
बहुत ही खूबसूरत पोस्ट. एसी वालों के लिए भी हाय हाय, बिजली की कटौती. कुछ हमारे जैसे ए सी वाले जो दिखाने के लिए होता है. चलाने से बिजली बिल की गर्मी. सब तरफ हाय हाय
जवाब देंहटाएं