कविता शर्मा का आलेख : वर्तमान संदर्भ में संगीत चिकित्सा में व्यवसाय की संभावनाएँ

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  कला एवं विज्ञान के समन्‍वय से संगीत चिकित्‍सा का प्रचलन प्रारम्‍भ होता है। संगीत एक कला है और चिकित्‍सा एक विज्ञान है। यह एक वैकल...

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कला एवं विज्ञान के समन्‍वय से संगीत चिकित्‍सा का प्रचलन प्रारम्‍भ होता है। संगीत एक कला है और चिकित्‍सा एक विज्ञान है। यह एक वैकल्‍पिक चिकित्‍सा पद्धति है जिसमें किसी भी व्‍यक्‍ति के रोगों की चिकित्‍सा संगीत के माध्‍यम से की जाती है।

संगीत में निहित ध्‍वनि के विभिन्‍न स्‍वरूपों में आकर्षक ध्‍वनियों से रचित संगीत का सीधा संबंध मानव मन के सूक्ष्‍म एवम्‌ कोमल संवेगों से है। ध्‍वनि तरंगें संवेगात्‍मक रूप से अपने प्रभाव से पीड़ित व्‍यक्‍ति के विशेष रूप से आकर्षित करती हैं। ध्‍वनि का विशेष रूप से किया गया संघात रासायनिक परिवर्तन पैदा करता है। इस प्रकार विशिष्‍ट ध्‍वनियों के मिश्रण से निर्मित संगीत विभिन्‍न प्रकार के भावों का निर्माण कर मानव मन व शरीर पर गहरा असर करता है। इस प्रभावोत्‍पादक क्षमता का प्रयोग जब चिकित्‍सा के रूप में शारीरिक एवम्‌ मानसिक संतुलन को व्‍यवस्‍थित करने के उद्देश्‍य से किया जाता है तो यह प्रभावात्‍मक प्रक्रिया 'Music Therapy' अथवा संगीत चिकित्‍सा के नाम से जानी जाती है।

संगीत जहां मनुष्‍य को मानसिक शांति प्रदान करता है, उसे तनाव मुक्‍त कर उसके अनेक रोगों को दूर करता है वहीं उसे व्‍यवसाय की भी नई राह दिखाता है। भारतीय संस्‍कृति में रोग निवारण की दृष्‍टि से संगीत के प्रयोग की प्राचीनता यह सिद्ध करती है कि संगीत की अपरिमित प्रयोगात्‍मक शक्‍ति, उसकी व्‍यापकता एवम्‌ प्रभावोत्‍पादकता की नींव जितनी सुदृढ़ है उतनी ही व्‍यवसाय की सम्‍भावनाओं से परिपूरित है। चिकित्‍सा एवं संगीत दोनों ज्ञान प्रणालियों को समन्‍वित कर व्‍यवसाय करने की अनेक सम्‍भावनाएं हैं। भारतवर्ष में संगीत चिकित्‍सा से संबंधित कोई विशेष साहित्‍य पुस्‍तकें आदि उपलब्‍ध नहीं हैं। केवल अनुभवों पर आधारित लेख ही पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ने को मिलते हैं जोकि संगीत चिकित्‍सा का प्रचार-प्रसार करने में सक्षम नहीं हैं जबकि जन साधारण ‘संगीत चिकित्‍सा' विषय का ज्ञान प्राप्‍त कर अपने-अपने रोगानुसार स्‍वयं अपनी सांगीतिक चिकित्‍सा कर सकता है तथा संगीत चिकित्‍सा को व्‍यवसाय के रूप में अपना कर दूसरों को भी रोगों से मुक्‍त कर सकता है। क्‍योंकि यह चिकित्‍सा पद्धति बिना किसी दुष्‍परिणाम के समस्‍त प्राणियों जीव-जन्‍तुओं, पेड़-पौधों पर अपना स्‍वास्‍थ्‍यवर्धक प्रभाव उत्‍पन्‍न कर स्‍वास्‍थ्‍य लाभ प्रदान करती है। इतनी विशेषताओं को आत्‍मसात करने के बावजूद भी संगीत चिकित्‍सा को व्‍यवसाय के क्षेत्र में स्‍वतंत्र रूप से सफलता प्राप्‍त नहीं हुई है क्‍योंकि संगीत चिकित्‍सा को लेने वाले तथा अन्‍य चिकित्‍सक इसे एक स्‍वतंत्रता व्‍यवसाय रूप देने के लिए प्रयासरत नहीं है। संगीत चिकित्‍सा को व्‍यवसाय के क्षेत्र में सफलता दिलाने के लिए सबल प्रयास करने होंगे यदि संगीत चिकित्‍सा को एक अदम्‍य शक्‍ति मानकर कार्य किया जाए तथा इसके व्‍यवसायिक पक्ष पर अधिक कार्य किया जाए तो निश्‍चय ही सफलता प्राप्‍त होगी।

भारतीय संगीत चिकित्‍सा ही मुख्‍य रूप से संगीत चिकित्‍सा विषय की जनक है। वर्तमान काल में सन्‌ 1993 से प्रारम्‍भ हुई ‘‘भारतीय संगीत चिकित्‍सा एवं अनुसंधान परिषद'' में संगीत चिकित्‍सा विभिन्‍न वैज्ञानिक दृष्‍टिकोणों को ध्‍यान में रखकर संगीत के माध्‍यम से विभिन्‍न रोगों के मरीजों पर जो प्रयोग किए जा रहे हैं वे बहुत ही चमत्‍कारी तथा सम्‍भावनाओं से परिपूर्ण हैं।[1]

आजकल प्रायः सभी समाचार पत्र-पत्रिकाओं में और अन्‍य प्रचार माध्‍यमों में संगीत चिकित्‍सा विषय में हो रहे शोधकार्य एवं प्रयोगों के समाचार और लेख पढ़ने को मिलते हैं लेकिन ये सभी विदेशों में हो रहे प्रयोग और शोधकार्य के उदाहरण देते हुए नहीं थकते।

डॉ. भास्‍कर खांडेकर जी के अनुसार - ‘‘संगीत चिकित्‍सा सिर्फ लेख लिखने के तौर पर अपनाने का विषय ही नहीं है। विदेशों में तो संगीत चिकित्‍सा को सहर्ष अपनाया जा चुका है। हमारे देश में थोड़ी जागरूकता की कमी है। संगीत चिकित्‍सा में संगीत के विद्यार्थियों के लिए स्‍वरोजगार की पूर्ण सम्भावनाएँ हैं।''[2]

विदेशों में संगीत चिकित्‍सा द्वारा व्‍यवसाय हमारे देश की अपेक्षा अधिक प्रसिद्ध है एवम्‌ वहां इसे अन्‍य चिकित्‍सा पद्धतियों के बराबर का स्‍तर भी प्राप्‍त है। साथ ही साथ वहां संगीत चिकित्‍सक पृथक-पृथक होते हैं जो संगीत द्वारा चिकित्‍सा करते हैं हमारे देश में भी इस दिशा में प्रयास किए जाने चाहिए। विभिन्‍न आयुवर्ग के लोगों के लिए भिन्‍न-भिन्‍न प्रकार के संगीत तैयार करने चाहिए। इस संबंध में किए गए प्रयोग संगीत चिकित्‍सा के व्‍यवसाय में काफी लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं। जैसे कि ‘चीन में एक नई म्‍यूजिक इलैक्‍ट्रोथेरेपी' (संगीत विद्युतीय चिकित्‍सा पद्धति) का प्रयोग आरम्‍भ हो चुका है। इस पद्धति द्वारा कुछ विशेष रोगों को दूर करने में उच्‍च सफलता प्राप्‍त हुई। इस पद्धति में एक्‍यूप्रेशर बिंदुओं के बीच विद्युत प्रवाहित की जाती है तथा साथ ही साथ उसे संगीत भी सुनाया जाता है ... उपरोक्‍त प्रयोगों के दौरान शोधकर्ताओं ने पाया कि संगीत चिकित्‍सा को किसी भी अन्‍य चिकित्‍सा पद्धति के साथ उपयोग करने पर रोगी को जल्‍द रोग मुक्‍त किया जा सकता है। इस प्रकार विभिन्‍न चिकित्‍सा पद्धतियों को संगीत के साथ जोड़कर रोगों का उपचार और भी अधिक प्रभावशाली ढंग से किया जा सकता है।[3]

संगीत का सम्‍बन्‍ध मनोभावों से है तथा मनुष्‍य की समस्‍त शारीरिक क्रियाएं मन से जुड़ी हैं। संगीत न केवल मनुष्‍य अपितु प्रत्‍येक जगत प्राणी के स्‍वास्‍थ्‍य को सुप्रभावित करता है। आज संगीत की आरोग्‍य दायिनी शक्‍ति पर निरन्‍तर शोध किए जा रहे हैं व इसके लाभकारी परिणाम भी हमारे समक्ष आए हैं। डॉ. कविता चक्रवर्ती के अनुसार - ‘‘मनोवैज्ञानिकों का ऐसा विश्‍वास है कि संगीत में अच्‍छी औषधियों के मुकाबले रोग-विनाशक गुण हैं। अमेरिका के लगभग पांच सौ से अधिक डाक्‍टर अपने रोगियों की चिकित्‍सा संगीत द्वारा करने का प्रयास कर रहे हैं। इस सम्‍बन्‍ध में सफलता भी मिली है। उन्‍होंने पता लगाया है कि खास तरह की लय-ध्‍वनि तथा वाद्ययंत्र रोगों के नियंत्रण में सहायक होते हैं।[4] संगीत द्वारा हिस्‍टीरिया जैसे भयानक रोगों के उन्‍मूलन के उदाहरण भी हमारे समक्ष आए हैं। ‘पागलों के अस्‍पताल' (Mental Hospital) में संगीत चिकित्‍सा पद्धति (Musical Therapy) काम में लाते हैं। असामान्‍य व्‍यक्‍ति में मानसिक बीमारियां अधिकतर काल्‍पनिक होती हैं। जिन व्‍यक्‍तियों में ये बीमारियां अधिक हैं उन्‍हें व्‍यवसायिक उपचार (Occupational Therapy) दी जाती है। इस चिकित्‍सा में व्‍यक्‍ति का ध्‍यान दूसरी तरफ किया जाता है। यह नृत्‍य व गीत सीख सकता है।[5]

इस प्रकार संगीत चिकित्‍सा पद्धति से अनेक रोगों का उपचार संभव है जैसे- डायबिटीज, ब्‍लड-प्रेशर, हायपरटेंशन, अनिद्रा, अस्‍थमा, सिरदर्द, कुछ अंशों में माइग्रेन, अपचन, कब्‍ज, हृदय रोग नियंत्रण, यौन मनोरोग, मनःस्‍ताप, मद्यपान और नशीले पदार्थों की आदत से मुक्‍ति मनोरोग, मानसिक भेदता आदि तथा व्‍यक्‍ति में एकाग्रता, इच्‍छाशक्‍ति बढ़ाने, मानसिक संतुलन, कार्यकुशलता, स्‍मरणशक्‍ति एवं अन्‍य दिमागी शक्‍तियों को बढ़ाने के लिए भी संगीत चिकित्‍सा के प्रयोग लाभदायक सिद्ध हुए हैं।[6]

गर्भवती महिलाओं पर भी संगीत के प्रभाव से संबंधित अनेक अनुसंधान किए गए है। इस दिशा में अभी और भी कार्य किया जा कसता है। डॉ. भास्‍कर खांडेकर के अनुसार - ‘‘गर्भवती महिलाओं के लिए पूरे नौ माह का कोर्स तैयार करके करीब 26 महिलाओं पर किया गया परीक्षण सफल रहा और अन्‍य रोगों के अनेक मरीजों पर भी संगीत चिकित्‍सा का प्रयोग परीक्षण जारी है अतः इस प्रकार के कोर्स तैयार करके भी संगीत चिकित्‍सा द्वारा व्‍यवसाय संभव है।

ऐसी भी मान्‍यता है कि संगीत से स्‍वभाव को परिष्‍कृत करने की शक्‍ति होती है। इससे कल्‍पना, सृजनशक्‍ति तथा रचनात्‍मकता बढ़ती है। जीवन का दृष्‍टिकोण परिवर्तित हो जाता है। व्‍यक्‍ति का एकाकीपन दूर होकर आत्‍मविश्‍वास बढ़ता है तनाव, भय, घबराहट, थकान आदि दूर होते हैं। धैर्य और सहिष्‍णुता का संचार होता है।

ऐसी अलौकिक अद्‌भुत क्षमता सम्‍पन्‍न संगीत को जीवन का अभिन्‍न अंग बना लेने पर हम तन मन से स्‍वस्‍थ रह सकेंगे। पर यहां भी ध्‍यान देना जरूरी है कि कौन सा संगीत किस रोगी को और कितनी मात्रा में प्रभावशाली रहेगा।[7] भारतीय शास्‍त्रीय संगीत में अनेक प्रकार के राग होते हैं तथा प्रत्‍येक राग की अपनी अलग-अलग प्रकृति होती है। किसी भी रोग के लिए, किसी एक राग का निर्धारण नहीं किया जा सकता। किसी एक ही रोग के लिए अलग-अलग व्‍यक्‍तियों पर अलग-अलग रागों का प्रयोग हो सकता है। चिकित्‍सीय संगीत या राग का निर्धारण सिर्फ व्‍यक्‍ति परीक्षण करने के बाद ही निश्‍चित किया जाता है, अतः किसी भी राग या संगीत का प्रयोग चिकित्‍सक के निर्देशानुसार ही करें।

इसके अतिरिक्‍त संगीत चिकित्‍सा का महत्‍वपूर्ण पहलू यह है कि यह अन्‍य किसी उपचार प्रक्रिया में बाधक नहीं होती। संगीत चिकित्‍सा का प्रयोग किसी भी पद्धति के साथ भली प्रकार हो सकता है। यह एक सहायक (Supportive Treatment) के रूप में महत्‍वपूर्ण स्‍थान रखती है।[8] दवाइयों के साइड इफेक्‍ट्‌स से बचने के लिए भी इसका प्रयोग किया जा सकता है।

आजकल बाजार में ‘संगीत चिकित्‍सा' या ‘‘म्‍यूजिक थैरेपी' या ‘‘मेडिटेशन म्‍यूजिक' के कैसेट भी उपलब्‍ध हैं। जिनका प्रयोग संगीत चिकित्‍सक के परामर्श करने के बाद ही करना चाहिए क्‍योंकि यह जरूरी नहीं कि इस तरह के कैसेट प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति को लाभप्रद हो। इससे ज्ञात होता है कि संगीत चिकित्‍सा के व्‍यवसाय को सूक्ष्‍म रूप से अपनाया जा रहा है।[9]

संगीत द्वारा स्‍वास्‍थ्‍य वर्धन के क्षेत्र में अनेक शोध प्रयोग व परीक्षण किए जा रहे हैं परन्‍तु इसे व्‍यवहार में चिकित्‍सा के रूप में अपनाने हेतु जागरूकता अभी शैशवकाल में ही दिखाई देती है। हरिद्वार उ.प्र. में स्‍थित शान्‍तिकुंज के ब्रह्मवर्चस्‍व संस्‍थान सांगीतिक चिकित्‍सा के विषय में शोधकार्य कर रही है। इसके अतिरिक्‍त जर्मनी के डॉ. राल्‍क स्‍पिटगें के दर्द निवारक चिकित्‍सालय में नई दिल्‍ली में स्‍थित ‘शक्‍ति विकास प्रकल्‍प' के संस्‍थापक व अध्‍यक्ष ई. कुमार नेशनल इंस्टीट्यूट आफ मेंटल हेल्‍थ एण्‍ड की डॉ. वी.एन. मंजुला आदि जैसे और अधिक संस्‍थान स्‍थापित किए जाए अर्थात संगीत द्वारा उपचार के संदर्भ में अधिक जागरूकता दिखाई जाए तो बिना किसी दुष्‍प्रभाव के असाध्‍य व्याधियों का निवारण हो सकता है।[10] तथा संगीत चिकित्‍सा को व्‍यावसायिक रूप से भी अपनाया जा सकता है।

इस विषय पर जबलपुर विश्‍वविद्यालय से सम्‍बन्‍धित डॉ. वि.वि. गोर कहते हैं - ‘‘स्‍वर चिकित्‍सा से रोग भी हटाये जा सकते हैं। इस कार्य में अब कलाकार और सरकार दोनों ‘कारों' को आगे बढ़ना चाहिए।[11]

संगीत चिकित्‍सा में व्‍यवसाय की अपार सम्भावनाएँ हैं। बशर्ते संगीत चिकित्‍सा का ज्ञान हो सिर्फ व्‍यवसाय की दृष्‍टि से ही कोई प्रयोग नहीं करना चाहिए। संगीत चिकित्‍सा की शिक्षा के लिए देश के विभिन्‍न कालेज महाविद्यालयों और विश्‍वविद्यालयों में संगीत चिकित्‍सा को विषय के रूप में रखा जाना चाहिए जिसमें संगीत चिकित्‍सा से सम्‍बन्‍धित कोर्स करवाए जाए जिनमें संगीत चिकित्‍सा से सम्‍बन्‍धित शिक्षकों व अध्‍यापकों की नियुक्‍ति की जा सकें।

मद्रास के अपोलो अस्‍पताल में संगीत चिकित्‍सा विभाग है जिसमें संगीत चिकित्‍सा की शिक्षा दी जाती है। यह Under Graduate Course तीन साल का होता है जिसमें 6 सेमेस्‍टर होते हैं। एक साल में दो सेमेस्‍टर देने होते हैं तथा अंतिम सेमेस्‍टर में एक प्रोजेक्‍ट वर्क होता है जो 12 हफ्‍ते एक अस्‍पताल में रहकर पूरा किया जाता है। इस कोर्स की फीस 12,500 रुपये प्रति सेमेस्‍टर होती है।

इसके अतिरिक्‍त एक और कोर्स है जिसे Advanced Level Music Therapy Course कहते हैं। यह एक साल का होता है इसमें भी दो सेमेस्‍टर होते हैं तथा छः महीने में एक सेमेस्‍टर देना आवश्‍यक होता है। इसकी पात्रता मनोविज्ञान और शास्‍त्रीय संगीत में एम.ए. होनी चाहिए। इन दोनों विषयों के 4+4 थ्‍योरी पेपर होते हैं तथा दूसरे सेमेस्‍टर में एक प्रोजेक्‍ट वर्क होता है। इस कोर्स की फीस 30,000 रुपये प्रति सेमेस्‍टर है।[12] संगीत की उच्‍च शिक्षण पूर्ण करने पर कोई न कोई व्‍यवसाय अपनाना आवश्‍यक हो जाता है। व्‍यवसाय अर्थात्‌ उदर निर्वाह के साथ अन्‍य आवश्‍यकताओं की पूर्ति हेतु किया जाने वाला ऐसा कार्य, जिससे धन प्राप्‍त किया जा सके।[13] संगीत चिकित्‍सा की विकास यात्रा का अवलोकन करने पर हम समझते हैं कि संगीत चिकित्‍सा में भी व्‍यवसाय के विभिन्‍न क्षेत्र खुले हो गये हैं।

1- Hospital : general, Psychiatric

2- Schools, special schools

3- Outpatient clinics

4- Mental health center

5- Nursing homes

6- Day centers

7- Correctional facilities

8- The Community

9- Hospices[14]

उपर्युक्‍त कार्यों के अलावा और भी कार्यक्षेत्रों की सम्भावनाएँ हो सकती हैं। स्‍वयं के संगीत चिकित्‍सा केन्‍द्र भी चलाये जा सकते हैं। इन सभी क्षेत्रों में व्‍यक्‍ति अपनी व्‍यक्‍तिगत कुशलता व चातुर्य समावेश कर अपनी रुचि अनुसार व्‍यवसाय प्राप्‍त कर सकते हैं।


[1] डॉ. भास्‍कर खांडेकर, संगीत चिकित्‍सा महत्‍वपूर्ण जानकारी, उद्‌ध्‍ृत -संगीत कला विहार,
मई 2005, पृष्‍ठ 38

[2] डॉ. भास्‍कर खांडेकर, संगीत चिकित्‍सा महत्‍वपूर्ण जानकारी, उद्‌ध्‍ृत -संगीत कला विहार,
मई 2005, पृष्‍ठ 38

[3] डॉ. सतीश वर्मा, संगीत चिकित्‍सा (एक शास्‍त्रीय अध्‍ययन), पृष्‍ठ 419

[4] भारतीय संगीत की मनोवैज्ञानिक पृष्‍ठभूमि, डॉ. कविता चक्रवर्ती, पृष्‍ठ 169

[5] वही, पृष्‍ठ 190

[6] संगीत ः रस. परंपरा और विचार, सं. ओमप्रकाश चौरसिया, पृष्‍ठ 284

[7] प्रोफेसर माया टांक, संगीत संकल्‍प, कितना सक्षम है संगीत रोगों के उपचार में, 2009
पृष्‍ठ 27

[8] प्रोफेसर माया टांक, कितना सक्षम है संगीत रोगों के उपचार में, उद्‌ध्‍ृत - संगीत
संकल्‍प, (जयपुर शाखा) 2009, पृष्‍ठ 27

[9] ओम प्रकाश चौरसिया, संगीत ः रस परंपरा और विचार, पृष्‍ठ 284

[10] भारतीय संगीत, शिक्षा और उद्देश्‍य, पूनम दत्ता, पृष्‍ठ 122

[11] वही पृष्‍ठ 122

[12] इंटरनेट से मिली जानकारी द्वारा प्राप्‍त

[13] डॉ. श्री मिलिया छापेकर, व्‍यवसाय के रूप में समाज, संगीत कला विहार, 2005, पृष्‍ठ
25

[14] इंटरनेट से मिली जानकारी द्वारा प्राप्‍त

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(चित्र – इमेजशेयर.वेब से साभार)

COMMENTS

BLOGGER: 4
  1. जानकारी देती ज्ञानवर्धक पोस्ट

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    चर्चा । Discuss INDIA

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  2. नयी जानकारी के लिए आभार।

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  3. गायक बनने की जानकारी दीजिए मैँ जिला शाजापुर म.प्र से हुँ मेरा गावँ से ही ये सपना रहा हे की मे फिल्मो मे गाने गाऊ इसके बाद ये बता दे की 11callas के बाद कौन सा कोर्स लेना पङेगा और इसके बाद क्या करना पङेगा ये जानकारी यहा भेज देँ SUNILKUMARKADWALA@gmail.com पर आपका भगवान भला करेँ thankans sir

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: कविता शर्मा का आलेख : वर्तमान संदर्भ में संगीत चिकित्सा में व्यवसाय की संभावनाएँ
कविता शर्मा का आलेख : वर्तमान संदर्भ में संगीत चिकित्सा में व्यवसाय की संभावनाएँ
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