महावीर सरन जैन का संस्मरण : प्रज्ञा पुरुष - परमानन्‍द भाई पटेल

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श्री कांतिभाई पटेल एवं श्री एस0के0 अमीन का पत्र प्राप्‍त हुआ है जिसमें संस्‍कारधानी जबलपुर के राजर्षि परमानन्‍द भाई पटेल के स्‍वर्गवास ...

श्री कांतिभाई पटेल एवं श्री एस0के0 अमीन का पत्र प्राप्‍त हुआ है जिसमें संस्‍कारधानी जबलपुर के राजर्षि परमानन्‍द भाई पटेल के स्‍वर्गवास होने की सूचना तथा उनकी स्‍मृति की अक्षुण्‍णता के लिए प्रकाश्‍य स्‍मृति ग्रन्‍थ के लिए संस्‍मरण भेजने का आग्रह है। चार दशकों से अधिक कालावधि की स्‍मृतियों को एक छोटे से लेख में कैद करने का प्रयास करना होगा।

पटेल साहब ने अनेक वर्षों के मौन के बाद देह का त्‍याग किया है। मन उनकी मृत्‍यु के समाचार पर विश्‍वास करने के लिए तैयार नहीं है। भारतीय साधना परम्‍परा के अनुसार भी मृत्‍यु यात्रा का एक पड़ाव है - नवीन जीवन प्राप्‍त करने का उपक्रम। गीता का वचन है ः- ‘जातस्‍य हि धु्रवो मृत्‍यु ध्रुवं जन्‍म मृत्‍स्‍य च'।

मन में उनके व्‍यक्‍तित्‍व का जो बिम्‍ब उभर रहा है वह उनके बहुआयामी पहलुओं को रेखांकित करता हैं, उनकी समाज सेवा की प्रतिबद्धता एवं तत्‍परता तथा उनके मनोयोग की मननशीलता एवं आत्‍मबल की तेजस्‍विता को चित्रांकित करता है।

राजनीति के व्‍यक्‍ति को प्रायः विपक्ष के आरोपों की दग्‍धता के ताप को सहन करना पड़ता है। अपने जीवन-आचरण की सौजन्‍यशीलता एवं शुचिता के कारण पटेल साहब विपक्ष के सम्‍मान के भी आलम्‍बन बन सके -राजनीति के क्षेत्र में ऐसा सौभाग्‍य विरल ही होता है।

पटेल साहब से मेरी पहली भेट भोपाल में हुई। इस भेट के पूर्व ही जबलपुर में उनके व्‍यक्‍तित्‍व की शालीनता, भव्‍यता एवं उदात्त उत्‍कृष्‍टता की छाप मेरे मन पर अंकित हो चुकी थी।

जबलपुर के विश्‍वविद्‌यालय के हिन्‍दी विभाग में मेरी नियुक्‍ति सन्‌ 1964 में हुई। मध्‍य प्रदेश शासन द्वारा सन्‌ 1956 में स्‍थापित ‘भाषा एवं शोध संस्‍थान' में आगे जाकर तीन विभाग स्‍थापित किए गए ः (1) संस्‍कृत, पालि एवं प्राकृत विभाग। (2) हिन्‍दी विभाग (3) प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्‍कृति विभाग । एक अप्रैल 1960 से ‘भाषा एवं शोध संस्‍थान' को जबलपुर विश्‍वविद्यालय को सौंप दिया गया। तत्‍पश्‍चात्‌ , इस संस्‍थान के उपर्युक्‍त तीन विभागों में क्रमशः डॉ0 हीरालाल जैन, डॉ0 उदयनारायण तिवारी एवं डॉ0 राजबली पाण्‍डेय की प्रोफेसर पदों पर नियुक्‍तियाँ हुईं। राइट टाउन स्‍थित शहीद स्‍मारक भवन में इन तीनों प्रोफेसरों के बैठने की व्‍यवस्‍था थी। भाषा एवं शोध संस्‍थान इसी शहीद स्‍मारक में स्‍थित था। सन्‌ 1964 में, मैं जब हिन्‍दी विभाग में कार्यभार ग्रहण करने हेतु पहुँचा तो मेरे विभाग के प्रोफेसर डॉ0 उदय नारायण तिवारी ने मेरे आवास की व्‍यवस्‍था भी राइट टाउन के ‘पुरोहित भवन' में कर दी। जब हम पुरोहित भवन से शहीद स्‍मारक जाते थे तो रास्‍ते में पटेल साहब का निवास स्‍थान पड़ता था। पहले ही दिन इस भव्‍य भवन ने मेरा ध्‍यान अपनी ओर आकर्षित किया। डॉ0 तिवारी जी ने मुझे बतलाया कि सड़क के इस ओर का यह भव्‍य भवन भारत के बीड़ी व्‍यवसाय की सबसे बड़ी फर्म के मालिक परमानन्‍द भाई पटेल का निवास स्‍थान है तथा सड़क के दूसरी ओर की इमारत में उनकी फर्म का काम होता है। बाद में पता चला कि परमानन्‍द भाई पटेल अब अपने व्‍यवसाय का काम नहीं देखते; मध्‍य प्रदेश की राजनीति के पुरोधा हैं तथा अधिकांश समय भोपाल में रहते हैं। उनकी फर्म का नाम ‘मोहनलाल हरगोविन्‍ददास' है।

सत्र 1964-65 से विश्‍वविद्‌यालय ने हिन्‍दी में एम.ए. की कक्षायें खोलने का निर्णय किया। विश्‍वविद्‌यालय परिसर में कला संकाय के शिक्षण विभागों का भवन बनकर अभी तैयार नहीं हुआ था। इस कारण यह निर्णय हुआ कि इस सत्र में होम साइंस कालेज में केवल छात्राओं के लिए कक्षायें चलाई जावें। जब प्रोफेसर तिवारी एवं मैं अध्‍यापन कार्य हेतु होम साइंस कालेज गए तो कालेज के भव्‍य भवन को देखकर अच्‍छा लगा। वहाँ की प्राचार्या कुसुम मेहता ने हमें अपने कक्ष में जलपान कराया तथा उनसे पता चला कि इस महाविद्‌यालय का पूरा नाम ‘मोहनलाल हरगोविन्‍ददास गृह विज्ञान महाविद्‌यालय' है तथा इसका निर्माण सन्‌ 1952 में श्री परमानन्‍द भाई पटेल के मुक्‍त दान के कारण सम्‍भव हो सका। प्रोफेसर तिवारी जी ने मेरा ध्‍यान आकृष्‍ट किया कि शहीद स्‍मारक जाते समय इन्‍हीं पटेल साहब के निवास स्‍थान के सम्‍बन्‍ध में आपने अपनी जिज्ञासा व्‍यक्‍त की थी। बाद में जब मैं शहर के विक्‍टोरिया हॉस्‍पिटल गया तो वहाँ पता चला कि सन्‌ 1948 में पटेल साहब की दानशीलता के कारण ‘मोहनलाल हरगोविन्‍ददास वार्ड' स्‍थापित हुआ है। इसी प्रकार जब मैं मेडिकल कॉलेज गया तो वहाँ पता चला कि पटेल साहब की दानशीलता के कारण सन्‌ 1963 में ‘जड़ाव बा केन्‍सर हॉस्‍पिटल' बना है। पटेल साहब की दानशीलता, समाज सेवा तथा जनहित के लिए समर्पणशीलता की यशोगाथा जबलपुर में यत्र तत्र सुनने को मिली। एक दिन डॉ0 राजबली पाण्‍डेय जी ने पटेल साहब के ‘उत्तर ध्रुव से गंगा' ग्रन्‍थ की विचारशीलता की चर्चा की । इस चर्चा से उनके विचारक एवं चिन्‍तक व्‍यक्‍तित्‍व का भी अहसास हुआ।

सन्‌ 1965 में मुझे भोपाल जाने का अवसर मिला। मुख्‍यमंत्री पद पर उस समय पं0 द्वारका प्रसाद मिश्र आसीन थे। जबलपुर में सुन चुका था कि मिश्र जी ने परमानन्‍द भाई पटेल को उनके शुचितापूर्ण व्‍यक्‍तित्‍व के कारण लोक निर्माण विभाग के मंत्री पद का कार्यभार सौंपा है। मिश्र जी के मंत्रीमण्‍डल में महाकवि तुलसीदास के भक्‍त पं0 शम्‍भूनाथ शुक्‍ल वित्त मंत्री थे। उनके संरक्षकत्‍व में भोपाल में अखिल भारतीय तुलसी सम्‍मेलन आयोजित हुआ। मुझे इसमें भाग लेने तथा ‘रामचरितमानस की प्रासंगिकता' विषय पर व्‍याख्‍यान देने का आमंत्रण मिला। मेरे मन में परमानन्‍द भाई पटेल से मिलने की इच्‍छा बलवती हो चुकी थी। पं0 शम्‍भूनाथ शुक्‍ल के सौजन्‍य से मेरी मुलाकात श्री परमानन्‍द भाई पटेल से भोपाल में सन्‌ 1965 में हुई। उनसे यह मेरी सर्वप्रथम मुलाकात थी। इस मुलाकात में उनकी संवेदनशीलता, मानवीयता, उदारता एवं सज्‍जनता का परिचय प्राप्‍त हुआ तथा उनके सम्‍बन्‍ध में जबलपुर में निर्मित धारणाओं की पुष्‍टि हुई। इस मुलाकात में उनसे अनेक विषयों पर चर्चा हुई। पटेल साहब ने मुझसे जानना चाहा कि क्‍या मेरे अध्‍ययन विषय भाषा विज्ञान में किसी नई दृष्‍टि का विकास हुआ है। मैंने उन्‍हें बतलाया कि सन्‌ 1930 से 1960 की कालावधि में भाषा वैज्ञानिकों का चिन्‍तन व्‍यवहारवादी मनोविज्ञान पर आधारित था। ये भाषा वैज्ञानिक भाषा को उद्‌दीपन प्रेरित (Stimulus induced) वाचिक प्रतिक्रिया (Verbal reaction) मानते थे तथा भाषापरक तथ्‍यों का अध्‍ययन रूपात्‍मक व्‍याकरण (Formal grammar) के आधार पर करते थे। सन्‌ 1960 के बाद संज्ञानात्‍मक मनोविज्ञान की संज्ञान (Cognition) की अवधारणा का प्रभाव भाषाविज्ञान पर पड़ना आरम्‍भ हो गया है। मनुष्‍य की संज्ञानात्‍मक शक्‍ति एवं प्रतिभा की भांति भाषिक सामर्थ्‍य को मानसिक वास्‍तविकता के रूप में स्‍वीकार करने की दिशा में चिन्‍तन आरम्‍भ हो गया है। जिस प्रकार संज्ञानात्‍मक मनोविज्ञान की मान्‍यता है कि मनुष्‍य अन्‍य प्राणियों से इस कारण श्रेष्‍ठ है कि वह संज्ञान शक्‍ति के कारण संवेदनों को नाम, रूप, गुण आदि भेदों से सविशेष बनाकर ज्ञान प्राप्‍त करता है उसी प्रकार भाषा वैज्ञानिक भी अब यह मानने लगे हैं कि मनुष्‍य इस जगत के अन्‍य प्राणियों से भाषा की सामर्थ्‍य (Competence) के कारण भिन्‍न एवं विशिष्‍ट है। पटेल साहब ने कहा कि भविष्‍य में मानसिक शक्‍ति सिद्धान्‍त के विकास की भी आवश्‍यकता है। हमने अध्‍यात्‍म एवं दर्शन पर भी चर्चा की। विचार विमर्श के अनन्‍तर इस पर सहमति बनी कि भविष्‍य के धर्म का आधार भारतीय दर्शन परम्‍परा में प्रतिपादित ‘निर्गुण ब्रह्‌म' होगा तथा विज्ञान ने अभी तक भौतिक द्रव्‍य की ही सत्ता स्‍वीकार की है, भविष्‍य में उसे भौतिक क्षितिज के पार की अपार्थिव चिन्‍मय सत्ता का भी संस्‍पर्श करना होगा।

इसके बाद पटेल साहब से भोपाल एवं जबलपुर में भेंट होती रहीं। उनसे मिलने तथा उनसे संपर्क से मैंने इस तथ्‍य को आत्‍मसात्‌ किया कि उद्‌योग, व्‍यापार, राजनीति- सभी क्षेत्रों में स्‍थायी सफलता के लिए निष्‍कपटता, ईमानदारी, शुचिता तथा लोक कल्‍याण की भावना का क्‍या महत्‍व है। विषम परिस्‍थितियों में भी धैर्य, विवेक, संयम, सहिष्‍णुता, उदारता बनाए रखने का कीर्तिमान स्‍थापित कर उन्‍होंने दूसरों के प्रति प्रेमभाव, मैत्रीभाव एवं मानवीय उत्‍कृष्‍टता की सद्‌प्रवृत्तियों का अपने जीवन में विकास किया। विनम्रता, उदारता एवं करुणा के शीतल जल प्रवाह से उनका चित्त आप्‍लावित रहा।

राजनीति से सन्‍यास लेकर पं0 द्वारका प्रसाद मिश्र जबलपुर में पचपेढ़ी स्‍थित ‘उत्तरायण' में रहने लगे तब मेरी उनसे मिलना होता रहता था। उनसे परमानन्‍द भाई पटेल के व्‍यक्‍तित्‍व के सद्‌ पक्ष को प्रामाणिक रूप से जानने का अवसर मिला।

मेरी पटेल साहब से जबलपुर में अन्‍तिम भेंट दिसम्‍बर 1991 में उनके निवास स्‍थान पर हुई। उनकी जननी माता श्री (इच्‍छा बा) का स्‍वर्गवास 9 दिसम्‍बर, 1991 को जबलपुर में हो गया। मैं उनके निवास पर गया, शोक संवेदनाएँ व्‍यक्‍त कीं तथा शोक संदेश पत्र भी उन्‍हें सौंपा। कर्तव्‍य परायणता का साक्षी है - दिनांक 25 दिसम्‍बर 1991 का पटेल साहब का पत्र (परिशिष्‍ट-।)

21 जुलाई 1992 को जबलपुर से आगरा आकर मैंने भारत सरकार के केन्‍द्रीय हिन्‍दी संस्‍थान के निदेशक पद का कार्यभार ग्रहण कर लिया। सन्‌ 1992 में ही एक दिन समाचार पत्र में श्री परमानन्‍द भाई पटेल के आगरा आगमन तथा अपने भाई श्री कांति भाई पटेल के निवास स्‍थान पर आवास के समाचार पढ़ने को मिले। मैंने उनसे मिलने हेतु कार्यक्रम निर्धारित करने के लिए अपने सचिवालय को निर्देश प्रदान किए। निर्धारित समय पर मैं परमानन्‍द भाई पटेल से मिलने श्री कांतिभाई पटेल के निवास स्‍थान पर पहुँचा। इस मुलाकात में परमानन्‍द भाई पटेल की ‘बियांड द माइंड' (हिन्‍दी अनुवाद-अज्ञात की ओर) तथा ‘ब्रहमज्ञान एवं भगवद्‌गीता' कृतियों के संदर्भ में चर्चा हुई।

जबलपुर में, मैं परमानन्‍द भाई पटेल के उद्‌योग एवं व्‍यापार तथा समाज सेवा एवं राजनीति के क्षेत्रों के योगदान से परिचित था; मध्‍य प्रदेश की राजनीति में उन्‍होंने ईमानदारी एवं शुचिता का जो कीर्तिमान स्‍थापित किया था, उसके कारण उनके प्रति नतमस्‍तक था किन्‍तु� आगरा की इस भेंट में मैंने उनके आध्‍यात्‍मिक विचारक, चिन्‍तक एवं मनीषी रूप को पहचाना। मेरी उनसे यह अन्‍तिम मुलाकात थी। इस मुलाकात में उनके प्रबुद्ध चिन्‍तन, संवाद शैली एवं उनकी सहज आत्‍मीय विनम्रता ने जो छाप मेरे मानस-पटल पर अंकित की उससे प्रसूत स्‍मृति-धाराएँ मेरे हृदय-सागर को लहरा एवं गहरा रही हैं।

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संपर्क:

प्रोफेसर महावीर सरन जैन

(सेवानिवृत्‍त निदेशक, केन्‍द्रीय हिन्‍दी

संस्‍थान )

123, हरि एन्‍कलेव,

बुलन्‍दशहर-203001

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रचनाकार: महावीर सरन जैन का संस्मरण : प्रज्ञा पुरुष - परमानन्‍द भाई पटेल
महावीर सरन जैन का संस्मरण : प्रज्ञा पुरुष - परमानन्‍द भाई पटेल
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