भारत के अरूणोदयी साहित्य शिखर पर आत्मनिर्भर चरणों को बढ़ाने वाले भारतीय डाक सेवा के युवा अधिकारी कृष्ण कुमार यादव साहित्य, कला औ...
भारत के अरूणोदयी साहित्य शिखर पर आत्मनिर्भर चरणों को बढ़ाने वाले भारतीय डाक सेवा के युवा अधिकारी कृष्ण कुमार यादव साहित्य, कला और संस्कृति की त्रिपथगा के अभिनव अवगा्रहक हैं। उनके इस अवगाहन कर्तृत्व पर सद्यःप्रकाशित कृति ‘बढ़ते चरण शिखर की ओर‘ न एक जीवनी है, न अभिनंदन ग्रन्थ; फिर भी यदि साहित्य की किसी अभिनव विधा का उल्लेख किया जाय जो आज तक साहित्य जगत के दृष्टि पथ में न आई हो तो यह कहा जा सकता है कि यह व्यक्तित्व की अनुकृति है।
इस कृति के संपादक प्रौढ़ हिन्दी शिल्पी एवं रचनाधर्मी साहित्यकार दुर्गा चरण मिश्र ने स्वीकार किया है साहित्य कि साहित्य की अविरल सुरसरि का प्रवाह निरंतर चल रहा है और वह सहस्त्रधाराओं के रूप में प्रवाहित है। यह आवश्यक नहीं कि यह धारा परम्परागत रूप से साहित्य पढ़ाने वालों के मुखारविन्द से ही निसृत हो रही हो, यह तो भावों की मंथन करने वाली वह धारा है कि जिस किसी को भी अपने रस-भंवर में फांस लेती है, उसको निमग्न करके ही रहती है, चाहे वह व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में कार्यरत हो। श्री मिश्र जी का यह कथन इस समीक्षक के लिए एक निकष का काम कर रहा है और उनका यह कथन मुझे और भी प्रेरित कर रहा है कि डाक विभाग को यह गौरव प्राप्त है कि कला-साहित्य-संस्कृति से जुड़ी तमाम विभूतियाँ इससे जुड़ी रही हैं। इनमें नोबेल पुरस्कार विजेता सी0वी0 रमन, नील दर्पण पुस्तक के लेखक दीनबन्धु मित्र, उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द के पिता अजायबलाल, तमिल उपन्यासकार पी0वी0 अखिलंदम, फिल्म निर्माता राजेन्द्र सिंह बेदी, फिल्म अभिनेता देवानन्द, मशहूर लेखिका महाश्वेता देवी उर्दू, समीक्षक शम्सुर्रहमान फारूकी सहित तमाम मशहूर नामों की सूची में अब कृष्ण कुमार यादव का नाम भी जगमगा रहा है। इस ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में समीक्ष्य कृति निश्चय ही ऐसी अनुकृति है; जिसके अन्दर प्रकृति के सर्वश्रेष्ठ स्पंदनों में मनुष्य के स्पंदन और इनसे भी उत्कृष्ट साहित्य सेवियों के स्पंदन परब्रह्मपरमात्मा के प्रति अमुखर किन्तु मुखर प्रार्थनाएं हैं।
आचार्य श्री सेवक वात्स्यायन ने इस कृति के आभूमि शीर्षक के अन्तर्गत इस तथ्य की ओर इंगित किया है हिन्दी-साहित्य के इतिहास में असंख्य स्त्री-पुरूष तब से लेकर आज तक युवा साहित्यकारों के रूप में हमारे समक्ष उपस्थित होते रहे हैं। जो किसी भी रूप में धर्म-वृद्ध होते हैं उनकी उम्र नहीं देखी जाती; परन्तु इतना निर्विवाद है कि युवा साहित्यकारों में साहित्य-विषयक ऊर्जा अतिशय अधिक धनीभूत होती है। इन सभी तथ्यों के आलोक में संपादक ने गद्य की इस नवीन अनुकृत विधा को सजाने-संवारने में अपनी तूलिका का अद्भुत कौतुक दिखाया है। चतुर्दश शीर्षकों में संरचित अनुकृति श्री कृष्ण कुमार यादव के साहित्य स्वरूप का विग्रह प्रतीत होती है जैसा कि आचार्य श्री सेवक वात्स्यायन मानते हैंं
श्री कृष्ण कुमार यादव का व्यक्तित्व पारदर्शी है और यह उसी प्रकार जैसे चिटि्ठयाँ होती हैं और यह अविछिन्न मनोभावों की अनुकृति होती हैं। जैसा कि संपादक पं0 दुर्गा चरण मिश्र अपनी आलोक भूमि में स्वीकार करते हैं कि पारदर्शी व्यक्तित्व विविध आयामों के साथ जुड़ा होता है। यह विविध आयाम ही उसके व्यक्तित्व की अनुकृति होती है। इस दृष्टि से समीक्षा के निकष पर इस कृति को गद्य विधा में स्थान मिले इस निमित्त यह अनुकृति रूप में ही मान्य है।
इस अनुकृति ‘बढ़ते चरण शिखर की ओर‘ के अन्तर्गत श्री कृष्ण कुमार यादव के जीवन की पारिवारिक पृष्ठभूमि से लेकर उनकी शिक्षा-दीक्षा और संस्कारों के बंधन तथा संघर्षशील वैचारिक प्रखरता तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय के वातावरण ने उन्हें आत्मविश्वास का पर्याय बना कर खड़ा किया है। सिविल सेवा में चयन के साथ ऐसी भारतीय डाक सेवा प्राप्त हुई जिसे संस्कृत के आचार्यों ने अपदो दूरगामी च अर्थात् बिना पैरों के ही डाक बहुत दूर तक चली जाती है। यह बिम्ब-प्रतिबिम्ब का भाव श्री यादव में झलकता है। अनेक स्थानों पर हुई प्रशासनिक दीक्षा के कारण श्री यादव ने भारत दर्शन ही नहीं अपितु उसका अन्तर्दर्शन भी किया है। वह पर्यटन शील यायावर हैं। जन्मभूमि आजमगढ़ होने के कारण राहुल सांंकृत्यायन का प्रभाव उन पर अवश्य पड़ा है। इन सभी वैश्ष्ठिों के कारण उनको जो अनुभव प्राप्त हुए हैं वही उनकी अनुभूति में प्रविष्ट होकर उन्हें रचनाधर्मी बनाने में कारक बने हैं।
इस कृति में कतिपय विद्वानों के विचारों का भी संपादन किया गया है। प्रख्यात गीतकार गोपाल दास ‘नीरज‘ कृष्ण कुमार में बुद्धि और हृदय का अपूर्व सन्तुलन मानते हैं तो प्रो0 सूर्य प्रसाद दीक्षित श्री यादव की रचनाओं को युवा-संवेदना से ओतप्रोत बताते हैं। डॉ0 बद्री नारायण तिवारी साहित्यकार के चरित्र को शीर्ष स्थान पर मानते हैं और वह उन्हें कृष्ण कुमार यादव में दिखाई देता है। सूर्य कुमार पाण्डेय ने श्री यादव की कविताओं में जीवन की समग्रता का दर्शन किया है। डॉ0 सूर्य प्रसाद शुक्ल ने कवि के भाव-विचार की संवेदना की पड़ताल की है। यश मालवीय ने कृष्ण कुमार यादव की कविता के विभिन्न आस्वादों पर दृष्टि डाली है तो डॉ0 गणेश दत्त सारस्वत श्री यादव के पास अनुभूतियों का अक्षय तूणीर और उसे वाणी प्रदान करने के अद्भुत कौशल से प्रभावित हैं। डॉ0 रामदरश मिश्र श्री यादव की कविताओं को सहज, पारदर्शी और अपने समय के सवालों और विसंगतियों से रूबरू देखते हैं। प्रो0 भागवत प्रसाद मिश्र श्री यादव के रचना संसार के आधार पर उन्हें नई पीढ़ी का यथार्थवादी बताते हैं। डॉ0 विद्या भास्कर बाजपेयी श्री यादव को भारत-भारती का जीवंत उपासक तथा श्री रविनन्दन सिंह ने बड़ी संभावनाओं का कवि माना है। जितेन्द्र जौहर श्री यादव के बहुआयामी व्यक्तित्व को विविध दायित्वों के गोवर्धन-धारक रूप में प्रस्तुत करते हैं।
संपादक दुर्गा चरण मिश्र ने कृष्ण कुमार जी की जीवन संगिनी आकांक्षा यादव का आलेख ‘‘रचनाधर्मिता बनी व्यक्तित्व का अभिन्न अंग‘‘ संपादित कर श्रीमती यादव में उनके सकारात्मक व्यक्तित्व को रचना की लालित्य चेतना से जोड़कर आत्म तृप्ति का परिचय कराया है। श्री यादव के जीवन-प्रवाह को छंदबद्ध काव्य में पिरोकर दुर्गाचरण मिश्र ने खूबसूरत रंग भरे हैं। समकालीन परिवेशीय उनकी कहानियाँ, बाल मन को सहेजती कविताएं निश्चय ही इस अनुकृति की बड़ी उपलब्धि हैं। कृष्ण कुमार यादव के काव्य, बाल साहित्य, निबन्ध, कहानी, साक्षात्कार तथा व्यक्तित्व-कृतित्व पर प्रकाशित पत्र-पत्रिकाओं के विश्ोषांक इत्यादि को संपादक ने अत्यधिक विशिष्टता के साथ प्रस्तुत किया है। तमाम प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में श्री यादव की कृतियों की प्रकाशित समीक्षाओं का संचयन अतिशय महत्वपूर्ण तथा उपयोगी है। अन्त में, अभिमत शीर्षक के अन्तर्गत पूरे देश के साहित्यकारों द्वारा प्राप्त कृतिकार कृष्ण कुमार की विविध कृतियों की समालोचना निश्चय ही उनकी तर्कातीत सफलता की पहचान है।
निश्चिततः, प्रस्तुत कृति पठनीय, रोचक, ज्ञानवर्धक व संग्रहणीय है। युवा साहित्यकार कृष्ण कुमार की गुणवत्ता एवं दुर्गाचरण मिश्र की संपादकीय विशिष्टता व नवोन्वेशी प्रज्ञा के कारण ‘बढ़ते चरण शिखर की ओर‘ हिन्दी साहित्य के इतिहास में एक ऐसी गद्य विधा का जन्म है जो साहित्यकारों की परख पर लिखा गया प्रथम पुरश्चरण है। आशा की जानी चाहिए कि यह कृति हिन्दी के अनुरागियों एवं शोधार्थियों में अपना स्थाई स्थान सुनिर्मित करने में सफल होगी।
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कृतिः बढ़ते चरण शिखर की ओर सम्पादकः दुर्गाचरण मिश्र, पृष्ठः 148 मूल्यः रू0 150 संस्करणः 2009
प्रकाशकः उमेश प्रकाशन, 100, लूकरगंज, इलाहाबाद
समीक्षकः डॉ0 रामकृष्ण शर्मा, डी0लिट्0 257, तेजाब मिल कैम्पस, कानपुर
बहुत सुन्दर पुस्तक है...समीक्षा सारगर्भित है. के. के. जी को बधाई !!
जवाब देंहटाएंडॉ. शर्मा जी,
जवाब देंहटाएंनमस्कारम!
आपने इस पुस्तक में संकलित मेरे आलेख से भी एक विचार-बिन्दु को उठाकर अपनी इस समीक्षा में शामिल किया...धन्यवाद!
भाई कृष्ण कुमार यदव जी की कृति की समीक्षा यहाँ पाकर/पढ़कर प्रसन्नता हुई। मेरे अच्छे मित्र हैं वे!