यशवन्‍त कोठारी का व्यंग्य : अश्लीलता के बहाने

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अश्‍लीलता एक बार फिर चर्चा में है। मैं पूछता हूं अश्‍लीलता कब चर्चा में नहीं रहती। सतयुग से कलियुग तक अश्‍लीलता के चर्चे ही चर्चे है। आगे...

अश्‍लीलता एक बार फिर चर्चा में है। मैं पूछता हूं अश्‍लीलता कब चर्चा में नहीं रहती। सतयुग से कलियुग तक अश्‍लीलता के चर्चे ही चर्चे है। आगे भी रहने की पूरी संभावना है। यह बहस ही बेमानी है। श्‍लीलता आज है कल नहीं मगर अश्‍लीलता हर समय रहती है। अश्‍लीलता बिकती है उसका बाजार है, श्‍लीलता का कोई बाजार नही है। इधर एक साथ कुछ ऐसी फिल्‍में दृष्‍टिपथ से गुजरी जिनके नाम तक अश्‍लील लगते हैं। जिस्‍म, मर्डर, फायर, नो एन्‍ट्री, हवस, गर्लफेण्‍ड, खाहिश, जैकपाट, हैलो कौन है, तौबा तौबा, जूली, चेतना और न जाने क्‍या क्‍या । हर तरफ पोर्नोग्राफी का मायाजाल। रील की जिन्‍दगी के हर तरफ बस गरमागरम माल ही माल है। अश्‍लीलता का हमला पूरे युग पर हो रहे सभी हमलों में सबसे ज्‍यादा घातक और खतरनाक है। अश्‍लीलता पर चर्चा हो और देह, देह व्‍यापार, देह के अर्थशास्‍त्र पर चर्चा न हो यह कैसे मुमकिन है। साहित्‍य, कला संस्‍कृति और सभी जगहों पर अश्‍लीलता का जादू सर पर चढ़ कर बोल रहा है। सफलता के लिए कुछ भी करने को तैयार व्‍यापारी हर तरफ से अश्‍लीलता परोस रहे हैं और हर तरफ से अश्‍लीलता को भकोस रहे हैं। नारी विमर्श के नाम पर साहित्‍य में अश्‍लीलता चल रही है। न्‍यूड व नेकेड पेन्‍टिग के नाम पर कला में अश्‍लीलता बिक रही है। संस्‍कृति के साथ सर्वत्र बलात्‍कार हो रहा है। कौन है जो इसे रोके। हर कोई इस बहती नदी में स्‍नान करना चाहता है।

सफलता के लिए सी ग्रेड़ फिल्‍मों से सफर शुरू करने वाली नायिका बोल्‍ड दृश्‍य, कहानी की मांग और निर्देशक की इच्‍छा के नाम पर बिस्‍तर दर बिस्‍तर अश्‍लीलता के सहारे आगे बढ़ रही है।

उपेक्षित, शोषिता, वंचिता, बनकर जीने के बजाय सफल सुन्‍दर, और धनवान बनना ज्‍यादा आसान लगता है। इश्‍क, प्रेम मोहब्‍बत को हमने इबादत से निकम्‍मा और कमीना तक पहुंचा दिया गया है। नवधनाढ्य वर्ग को विकल्‍प और परिवर्तन चाहिये। वो नारी देह से मिले या पुरूष देह से अश्‍लीलता हो या कुछ और, नीला जहर हो या पीला जहर सब पी रहे हैं। इन्‍टरनेट पर अश्‍लीलता की सैकड़ों बेब साइटस हैं, सब पर जबरदस्‍त भीड़। कामुक साहित्‍य सबसे ज्‍यादा बिकते हैं। अश्‍लील साहित्‍य को बेचना सबसे ज्‍यादा आसान है। अश्‍लीलता की बाढ़ कहां नहीं है। घर परिवार से शुरू होने वाला यह सफर रेडियो, टीवी, कम्‍यूप्‍टर वेब साइटस से चलकर सड़को, होटलों सर्वत्र दिखाई दे रहा है। कैबरे, डिस्‍को थ्‍ोक, पब, रेड लाइट एरिया, कोठों क्‍लबों, और रिर्सोटों में पसर कर बैठ गई है अश्‍लीलता। है कोई जो अश्‍लीलता से पंगा ले । सर्वत्र देह के शिकारी डोल रहे हैं। कामुकता की संस्‍कृति के बहाने सब जगहों पर खुला ख्‍ोल हो रहा है। अश्‍लीलता का विस्‍तार कहां नहीं है। विकास की कीमत की तरह है अश्‍लीलता। विकास करो विकास। विकास के साथ अश्‍लीलता मुफ्‍त मिलती है।

अश्‍लीलता नारी की अस्‍भिता से जुड़ी है मगर अस्‍मत के सामने नतमस्‍तक है। अश्‍लीलता की अपनी उलझनें हैं। वे एक षड्यन्‍त्र की तरह व्‍यक्‍ति का अपने में लील लेती है। अखबारों में, खबरों में, टीवी चैनलों में पत्रिकाओं में सर्वत्र है अश्‍लीलता खूब भोगो। भोगते भोगते थक जाओ तो नयी अश्‍लीलता ढूंढो। अश्‍लीलता की परिभाषा बदल दों । छेड़ छाड़ से चलती हुई भदेस गालियों से होती हुई अश्‍लीलता सौन्‍दर्य प्रतियोगिताओं और केट वाक तक चली गई । अश्‍लीलता से पैसा आता है। पैसे से सुख आते है। भौतिक सुविधाएं आती है तो फिर देर किस बात की। चलो अश्‍लीलता की ओर । बलात्‍कार के समाचारों को रोचक तरीके से बार बार प्रस्‍तुत कर उसे बेचा जाता है। कई बार बलात्‍कार, और बलात्‍कारी से ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण हो जाती है विधि। विधि का वर्णन बेहतर तरीका से किया जाता है। मैं पूछता हूं बलात्‍कार घाव है या हथियार। उसे एक हथियार के रूप में क्‍यों प्रयुक्‍त किया जा रहा है ?

समाज में देह शोषण को अलग अलग ढंग से बार बार प्रस्‍तुत करने से समाज में परिवर्तन कैसे हौ सकता है। समाज के ठेकेदार रोज अश्‍लीलता को ओढ़ते हैं, बिछाते हैं खाते हैं, पीते हैं। मजे करते हैं।

सौन्‍दर्य अलग चीज हैं, अश्‍लीलता अलग । अजन्‍ता, एलोरा, एलीफेन्‍टा, कालीदास का कुमार संभव या ऋतसंहार अश्‍लील नहीं है यारों उसकी नकल मत करो। अश्‍लीलता तो तब है जब इस देह को एक प्रोडक्‍ट के रूप में प्रस्‍तुत किया जाता है। प्रोडेक्‍ट मत बनाओ। अश्‍लीलता स्‍वतः समाप्‍त हो जायगी। फिल्‍म हो या टीवी या प्रिन्‍ट मिडिया अश्‍लीलता तो व्‍यवहार में है एक मानसिक बेवाय की तरह है अश्‍लीलता।

अश्‍लीलता अबाल वृद्ध को अनावृत्त कर देती है। देह को भोगना ही पर्याप्‍त नही है, शायद इसलिए देह को अश्‍लीलता के रूप में एक प्रोडक्‍ट बनाया जा रहा है।

सिनेमाघर तोड़ने या किसी लेखक कलाकार के हाथ पैर तोड़ने से अश्‍लीलता श्‍लीलता में नही बदल जाती है। उसके लिए एक पूरी पीढ़ी को बलिदान करना पड़ता है।

ब्‍लू फिल्‍मों का जहर एक पूरी पीढ़ी को बरबाद कर रहा है। सी ग्रेड की फिल्‍मों की नायिका कहां से कहा तक चली गई। बड़े से बड़े नेता अभिनेता, खिलाड़ी का व्‍यक्‍तिगत जीवन अश्‍लीलता से भरकर छलक रहा है।

पोर्नोग्राफी एक बहुत बड़ा व्‍यवसाय है। माल बेचने के लिए इन्‍टरनेट का सहारा लिया जा रहा है। और हम सब बेबस होकर देख रहे है। हर नाचगाने में कामुक मुद्राएं, कैलि क्रीडाएं, रतिरहस्‍य दिखाए जा रहे हैं। और फिर तुर्रा ये की ये सब कामसूत्र में है, मगर कामसूत्र प्रोडक्‍ट नहीं है भाई, इसे रोकें। रिमिक्‍स गानों तक को कोई देख्‍ो तो दांतों तले उंगली दबा ले और यदि मूल निर्देशक, गायक, कलाकार देख ले तो शायद आत्‍महत्‍या कर ले या रिमिक्‍स करने वाले की हत्‍या कर दे।

अश्‍लीलता की परिभाषा कठिन हो सकती हैं, मगर अभिव्‍यक्‍ति बहुत सरल है और बचना बहुत कठिन है। इस बहस को अनन्‍त तक जाना है कोई रोक सके तो रोके ।

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यशवन्‍त कोठारी

86, लक्ष्‍मीनगर, ब्रह्मपुरी बाहर,

जयपुर-302002फोन- 2670596

COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. बहुत सटीक बस्तुस्थिति रखी गई है, सच है-अपने बिस्तर पर सब वही करते हैं,पर बेचने को नहीं,प्रोडक्ट नहीं- वह सामाज़िकता है,प्रेम है,कला है,कर्म है,धर्म है, पूजा है; वही बाज़ार में/प्रोडक्ट्बनकर आये तो अश्लीलता ,अकर्म,अधर्म है। काम-सूत्र,खज़ुराहो के बहाने नहीं चल सकते ।

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मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
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रचनाकार: यशवन्‍त कोठारी का व्यंग्य : अश्लीलता के बहाने
यशवन्‍त कोठारी का व्यंग्य : अश्लीलता के बहाने
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