पानी और कवि पानी! ओ पानी तू ढालते ही ढल जाता है जमाने से जम जाता है और उड़ाते ही उड़ने लगता है- हर बार। आखिर क्यूं? ...
पानी और कवि
पानी!
ओ पानी
तू ढालते ही
ढल जाता है
जमाने से
जम जाता है
और उड़ाते ही
उड़ने लगता है-
हर बार।
आखिर क्यूं?
बता पानी
बता तू
कि
कब तक जिएगा
खुद को
कठपुतली बनाकर।
कवि!
तू क्यों नहीं समझता
कि मैं जल हूं
और केवल जल ही नहीं
जीवन हूं तुम्हारा।
तूने मेरे त्याग को
समझ लिया कठपुतली
और अपना सारा स्वार्थपन
थोप दिया मुझ पर!
तुम कितने स्वार्थी हो
सचमुच-
कवि!
तुम बहुत स्वार्थी हो।
-दीनदयाल शर्मा, हनुमानगढ़ जं., राजस्थान
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अच्छे कर्म का अच्छा फल
हम कहें कि अमुक आदमी मेरा मित्र है। अमुक आदमी मेरा दुश्मन है। लेकिन इसी बात को यदि व्यापक फलक देकर कहें तो, मनुष्य स्वयं ही अपना बंधु है, स्वयं ही अपना शत्रु है, स्वयं ही अपने कार्य और अकर्म का साक्षी है। हम चाहते हैं कि सभी जगहों पर हमारा सम्मान हो। परन्तु सोचना यह चाहिए कि लोग हमें चाहें, इसके लिए हम क्या करते हैं ? कहने का तात्पर्य यह है कि हम घर-परिवार और समाज में ऐसे काम करें कि लोग -स्वतः ही हमें सम्मान की दृष्टि से देखें। हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि समस्त सम्बन्ध तथा पदार्थ क्षणिक है, केवल अपना कर्म ही शेष रहता है। अतः जो कर्म छोडता है, वह गिरता है। कर्म करते हुए भी जो उसका फल छोड़ता है, वह आगे बढ़ता है। जीवन में हमेशा सकारात्मक एवं सहयोगात्मक सोच रखें। यदि आप प्रत्येक कार्य पूर्ण निष्ठा व लगन से करते हैं तो आपको कभी पछताना नहीं पड़ेगा। आप अच्छे कर्म करें और सोचें कि आज का दिन फिर कभी नहीं आएगा।
-दीनदयाल शर्मा, हनुमानगढ़ जं., राजस्थान
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जल
मुझे देखो-
अरे भाई
मुझे देखो
मैं
कितना भोला-भाला
कितना
सहज सरल हूं
मैं
कभी-कभी
होता हूं
नल में
बोतल में
धोता मल
बहता नाली में।
कहता नहीं व्यथा
अपने मन की
घुटता हूं
लेकिन जुटाता हूं
खुशहाली-
जीव-जगत की।
तुमने देखा होगा
मुझे हंसते हुए
जब-
मैं होता हूं
झीलों में
तालाबों में
झरनों में
रहता हूं
कितना खुश।
मुझे होता है
बहुत-
मीठा अहसास
नाचता है-
मेरा मन मोर
जब-
चूमता हूं
धरती को
बूंद-बूंद करके
चमकता हूं
किसी पत्ते पर
मोती बनके।
बुझाता हूं प्यास
जब भी-
मैं किसी की
सच मानो
तब-
अपने मीठेपन का
अहसास-
खुद पाता हूं
लेकिन-
मेरी तरलता
मेरी सरलता का
उठाते हो-
आप-
नाजायज फायदा।
ऐसा न हो
कि
एक दिन
मैं बनूं
आफ-
विनाश का कारण
कहीं लड़ना पड़े
मेरे ही कारण
आपको युद्ध।
कृपया
मुझ पर-
यह इलजाम
न आने दो
मुझे इस इलजाम से
मुक्त करो।
मेरा-
अंधाधुंध उपभोग
बंद करो
मेरे वृक्ष
मुझे लौटाओ।
मैं जल हूं
जल कर भी
जल ही रहूंगा
मगर
तुम जीव हो
जीवित नहीं रहोगे।
-नरेश मेहन
मेहन हाउस,
हनुमानगढ जं., राज.
मो. ॰94143 295॰5
प्रेषक -दीनदयाल शर्मा, हनुमानगढ़ जं., राजस्थान
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संविधान निर्माता डॉ. अम्बेडकर
डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने अस्पृश्य समझी जाने वाली जाति में जन्म लेकर सफलता की सीढ़ियां चढ़ते हुए भारत के संविधान निर्माता बने। डॉ. अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को महाराष्ट्र की महार जाति में हुआ था। भीमराव के पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल तथा माता का नाम भीमा बाई था। 6 वर्ष की अल्पायु में ही भीमराव की माता का देहांत हो जाने पर उनकी अपंग बुआ ने इनका लालन-पालन किया। डॉ. भीमराव बचपन से ही पढ़ाई के प्रति गम्भीर थे। 19॰7 में मेट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की। 19॰7 में मेट्रिक की परीक्षा के बाद 17 वर्ष की आयु में इनका विवाह भिकू वेलगंकर की पुत्री रमा बाई से कर दिया गया, उस समय रमाबाई की आयु मात्र 9 वर्ष की थी। 1912 में भीमराव ने बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1913 में उन्हें बड़ौदा राज्य की सेना में लेपि्*टनेंट के पद पर नियुक्ति का पत्र मिला। डॉ. ने 1913 से 1916 तक न्यूयार्क शहर में रहकर इतिहास, मानववंश शास्त्र, मनोविज्ञान और अर्थशास्त्र का गहन अध्ययन किया। डॉ. अम्बेडकर ने लन्दन से एम.एस.सी. और डी.एस.सी. की उच्च उपाधियां प्राप्त की। डॉ. अम्बेडकर ने जुलाई 1923 में वकालत करना आरम्भ किया। वकालत के साथ-साथ उन्होंने समाज सुधार का भी काम आरम्भ किया।
-- - डॉ. भीमराव ने बहिष्कृत अस्पृश्यों का आन्दोलन मजबूत बनाने के लिए ‘बहिष्कृत भारत’ नायक पाक्षिक समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू किया। 15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ। स्वतंत्र भारत के लिए संविधान का प्रारम्भिक प्रारूप तैयार करने के लिए इन्हें समिति का अध्यक्ष बनाया गया। अन्ततः 26 नवम्बर 1949 को संविधान अंगीकृत किया गया और तत्काल प्रस्ताव को ही लागू कर दिया गया। डॉ. अम्बेडकर ने अपना धर्म परिवर्तन कर बौद्ध धर्म ग्रहण किया। 14 अक्टूबर 1956 को डॉ. अम्बेडकर ने अपनी पत्नी के साथ दीक्षा ली। डॉ. अम्बेडकर का निधन 5 दिसम्बर 1956 को हुआ। भारत सरकार ने इनकी सेवाओं को देखते हुए इन्हें मरणोपरान्त ‘भारत रत्न’ की उपाधि से अलंकृत किया। डॉ. अम्बेडकर द्वारा दलित समाज व देश के प्रति की गई सेवाओं के लिए प्रत्येक भारतवासी उनका सदैव ऋणी रहेगा।
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कमलनारायण पारीक
अध्यापक, रा. उ. प्रा. वि., खुन्जा (डब्बरवाल) हनुमानगढ जं राजस्थान
प्रेषक : दीनदयाल शर्मा, राजस्थान,
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एक गजल
सच का सुख से मेल नहीं है।
पर खाली डिब्बा रेल नहीं है।
बंदिश तो होती है घर में,
देखो फिर भी जेल नहीं है।
तेल लगाना कैसे आता,-
जब खाने का तेल नहीं है।
दांव-पेच में उलझी दुनिया
क्या जीवन फिर खेल नहीं है।
राजा संग प्रजा होती है।
क्या ये जुमला बेमेल नहीं है।
अपने सुर में गाओ चिड़िया,
हाथ मेरे गुलेल नहीं है।
-पवन शर्मा,-
वार्ड नं. 1॰, संजय चौक,
-भादरा, जिला-हनुमानगढ
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रुबाई
हे मधुशाला के शिल्पकार
भर दी शब्दों में हाला
भेज रहा हूँ श्रद्धा के सुमन
भर के तुम्हें प्याला
अंग - अंग में मस्ती भर दी
सपना सा साकार हुआ
करूँगा वंदन में हमेशा
आबाद रहे मधुशाला |
- सतीश गोल्याण, जसाना,
जिला हनुमानगढ़, राजस्थान
प्रेषक : दीनदयाल शर्मा, हनुमानगढ़, राजस्थान
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