अशोक गौतम का व्‍यंग्‍य - बीवी चली मिशेल बनने

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मैं बड़ा आदमी क्‍यों नहीं बना? आज पता चला। अगर पहले पता चल गया होता तो आज कहीं का कहीं होता। न ही आज की तरह व्‍यंग्‍य लिख रहा होता और न...

ashok gautam

मैं बड़ा आदमी क्‍यों नहीं बना? आज पता चला। अगर पहले पता चल गया होता तो आज कहीं का कहीं होता। न ही आज की तरह व्‍यंग्‍य लिख रहा होता और न ही उसके प्रकाशित होने के इंतजार में गलता रहता। तब मजे से कहीं किसीसे अपने नाम से व्‍यंग्‍य लिखवा रहा होता और उसे अपने हिसाब से लिखवाने के लिए उसे दबका रहा होता।

 

पत्‍नी आज फिर मुझे सलाह के मूड में थी। पर उसकी त्रासदी कि मैंने उसकी सलाह को आज तक कभी गंभीरता से नहीं लिया। और अब तो मेरी स्‍थिति यह है कि जिस दिन वह मुझे सलाह नहीं मुझे रोटी ही नहीं पचती। शौचखाने में घंटों बैठना पड़ता है। आम आदमी के लिए रोटी पचाने के लिए जो काम कब्‍जहारी चूर्ण करता है मेरे लिए वह काम पत्‍नी की सलाह करती है। उसकी सलाहों की ही कृपा रही है कि जबसे मेरा उससे विवाह हुआ है घर में कुछ ठीक चला हो या न पर मेरा पेट तबसे बिलकुल ठीक चला है। सुख तो सुख, बड़े बड़े दुःख उससे भी सहज ढ़ंग से पच जाते हैं मानो दुःख दुःख न होकर, साग और मक्‍की की रेाटी हों।

 

‘आप मेरी बात गंभीरता से क्‍यों नहीं लेते?' मुझसे तंग आकर उसने पहली बार दोनों हाथ जोड़कर पूछा।

‘गंभीरता से लेता तो आज को लिखना छोड़ कोई और गति का काम न शुरू कर देता।‘ वैसे अब मुझे भी अपनी गलती का अहसास धीरे धीरे होने लग गया है कि जीने कि मैंने गलत राह चुन ली। जीने के लिए लेखन, नहीं रोटी चाहिए। जीने के लिए लेखन नहीं, मकान चाहिए। लेखन से कागजों का पेट तो भरा जा सकता है पर परिवार का नहीं। जीने के लिए लेखन नहीं,,अपने पास बैठने वाले चार आदमी चाहिएं। और जो लिखता है उसके आसपास आदमी तो छोड़िए, डरके मारे आदमी का साया भी नहीं फटकता। पर लेखक हूं न! टांग लंगड़ी ही क्‍यों न हो,रहेगी तो ऊपर ही। लिखने से बेहतर मूंगफली ही बेच लेता तो भी आज को लख पति हो गया होता,अपने मुहल्‍ले के कोने वाले मूंगफली बेचने वाले की तरह। शान से सौ ग्राम के बदले अस्‍सी ग्राम तोलता है और बीस ग्राम मरने के बाद के सफर को बचा कर रख रहा है। कई बार लगता है कि लेखन से हजार दर्जे बेहतर तो गोल गप्‍पे बचने का काम है। पहले पैसे, बाद में दे मारे मुंह पर गोल गप्‍पे। इधर लिखते रहो ,छपने का इंतजार करते रहो। और अगर आपकी रचना किसीने मारकर अपने नाम से छपवा अमर कर दी तो तड़पते रहो मरते कुत्‍ते की तरह।

 

‘अगर एक बार भी मेरी सलाह मान लेते तो आज को आप भी बड़े आदमी हो जाते और फिर मैं तीनों लोकों पर राज करती। मल्‍लिका-ए तीनों लोक।'

‘ एक लेखक पर राज करना पूरे ब्रह्मांड पर राज करने जैसा होता है और तुम हो कि.... अपनी सोच को विस्‍तार दो ,बड़ी हो जाओगी। अच्‍छा कहो क्‍या है तुम्‍हारी सलाह!'

‘कान खोल कर सुनोगे तो कहूं?'

‘कहो! चलो, आज कान खोल ही देता हूं। ये लो कान से रूई भी निकाल दी।' कह मैंने अपने दोनों कानों से रूई निकाल उसके हाथों पर रख दी,‘ बोलो! अब खुश! अब कहो क्‍या सलाह देना चाहती हो?'

‘मेरी सलाह यही है कि मेरी बात को गंभीरता से लो।'

 

‘क्‍या बात है तुम्‍हारी?'

‘ये लिखना -विखना छोड़ो और राशन के डीपू से चीनी ले आओ वरना वह भी खत्‍म हो जाएगी और फिर सरकार को कोसने के सिवाय कुछ भी हाथ न लगेगा। फिर लिखते रहना सरकार की अव्‍यवस्‍था पर सौ सौ रूपये वाले व्‍यंग्‍य। इधर चीनी पचास हो गई है । कल चाय फीकी दूं तो गालियां मुझे मत देना। तुम्‍हें तो बस लेखन की ही फिक्र पड़ी रहती है। सोते तो सोते, शौच गए भी सोचते ही रहते हो। लेखन से समाज को जगाने की बात करते हो जबकि अब लिखते लिखते खुद भी सोने लग गए हो। ओबामा ने अपनी पत्‍नी की सलाह को माना तो देखा, आज अमेरिका के राष्‍ट्रपति हो पूरे विश्‍व के पति हो गए हैं। जो वे कहते हैं विश्‍व तो विश्‍व, स्‍वर्ग में बैठे देवता भी उसे बिना किसी तर्क के स्‍वीकार करने में ही अपनी भलाई मानते हैं। संसार देवताओं के कथन को असत्‍य मान सकता है पर उनके कथन को किसी की गवाही की जरूरत नहीं। यह सब कैसे हुआ? जरा लेखन से किनारे हटकर सोचो तो पता चले कि पत्‍नी की सलाह से! अगर वे पत्‍नी की सलाह न मानते तो तुम्‍हारी तरह रचनाओं के मेहनताने के इंतजार में रोज डाकिए की बाट जोह रहे होते। पत्‍नी की सलाह मानी तो आज वारे न्‍यारे हैं। वे सोए सोए भी कुछ फुसफुसाते हैं तो संसार के कान खड़े हो जाते हैं। संसार की प्रेस ठकाठक बिन कागज ,बिजली के ही चलना शुरू कर देती हैं। पर तुम मेरी मानो तो बात बने।‘

 

‘पर क्‍या वे मेरी तरह लिख सकते हैं? नहीं न! मैं भी तो इस संसार में अपनी तरह का एकमात्र हूं ! देख तो दरवाजे पर दस्‍तक सी हुई, डाकिए के सिवा और कौन हो सकता है! अब तो कुत्‍ते ने भी हमारे घर का फेरा पाना छोड़ दिया है।' मैंने कहा तो वह अपने बचे बाल धुनती दरवाजे की ओर लपकी। पक्‍के घड़े में कभी बिल लगे हैं भाई साहब क्‍या!! ‘

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डाॅ0 अशोक गौतम

गौतम निवास, अप्‍पर सेरी रोड, सोलन-173212 हि.प्र.

COMMENTS

BLOGGER: 2
  1. Dr.Ashok Gautam ka "Bivi chali Mishel banane"Theek hai. Thoda aur kasaa hota to aur mja ataa.

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  2. बेनामी6:07 pm

    जब जब समय मिलता है कविता पढने की तरफ ही ध्यान ज्यादा रहता है, गद्य कम पढता हूँ. गौतम जी आपका व्यंग लेख पूरा पढ़ा और अच्छा लगा सटीक और सार्थक.

    जवाब देंहटाएं
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रचनाकार: अशोक गौतम का व्‍यंग्‍य - बीवी चली मिशेल बनने
अशोक गौतम का व्‍यंग्‍य - बीवी चली मिशेल बनने
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