नन्दलाल भारती की कहानी : त्याग

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मेरा शरीर जिम्मेदारियों का बोझ समझने लगा है। दर्द से झलनी हो रहे इस कमजोर तन के सहारे पारिवारिक जिम्मेदारियों की वैतरिणी कैसे पार कर सकूंग...

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मेरा शरीर जिम्मेदारियों का बोझ समझने लगा है। दर्द से झलनी हो रहे इस कमजोर तन के सहारे पारिवारिक जिम्मेदारियों की वैतरिणी कैसे पार कर सकूंगी। कोई दवा भी काट नहीं कर रही है। थककर गिर ना जाऊं डर लगने लगा है अभिनन्दन के पापा।

सुशील- गीते तुम ना कभी हार मानी हो न मानोगी। मुझे विश्वास है। तुम कैसे गिर सकती हो तुम्हारे सहारे तो मैं चल रहा हूं। मानता हूं तुम दुखी हो। दर्द की दरिया में डूबकर भी संयुक्त परिवार को ताकत दे रही हो। गीता तुम्हारे त्याग का हमारा खानदान कर्जदार रहेगा। तुम जो कर रही हो वह किसी कठोर तपस्या से कम नहीं है।

गीते-देखो ताड़ पर ना चढाओ गिर पड़ूंगी।

सुशील-सच्चाई है गीते।

गीते-अभिनन्दन के पापा। तुम्हारे अलावा इस परिवार में मुझे कौन समझा है। मैं मौत के मुंह से निकली हूं तो तुम्हारी वजह से। डा.विनोद ने गलत आपरेशन कर मार ही डाला था ना। मेरे जीवित शरीर का चार-चार बार पोस्टमार्टम हो गया डा.विनोद की वजह से। फटे बोरे की तरह सिले इस शरीर के सहारे कैसे तपस्या पूरी होगी। हमारे बच्चे भी अभी छोटे है उपर से परिवार के दूसरे और उनके बच्चों की जिम्मेदारी। घर-परिवार के लोग बस लेना जानते है। तुम्हारी मजबूरी और हमारे दुख को कभी कोई नहीं समझा। सबको हमसे अपेक्षा बनी रहती है अपेक्षा पर पूरी तरह मजबूरी में खरा नहीं उतरने पर नाराजगी की बिजली गरजने लगती है। मैं दिन पर दिन शरीर से अक्षम होती जा रही हूं। घुठने शरीर का बोझ उठाने में आना-कानी करने लगे है और आंख भी रोशनी समेटने लगी है। कैसे जीवन पार होगा ?

सुशील-साहस की ताकत तुम्हारे पास तो है। यही असली ताकत है। नारी कभी नहीं हारी है तुम कैसे हार मान सकती हो ? मुझे तो यकीन ही नहीं होता। नारी परिवार की आत्मा होती है एक नारी की हार में पूरे परिवार की हार है। गीते सही मायने में तुम हमारी तीनो शक्ति हो -धन की बल की और ज्ञान की भी।कई जन्मो के पुण्य के प्रतिफल स्वरूप तुम हमें अर्धांगिनी के रूप में मिली हो।

गीते-उल्टा कह रहे हो।

सुशील-नहीं सच कह रहा हूं। दर्द में कराहते हुए भी परिवार के लिये इतना बड़ा त्याग कौन कर सकता है। जबकि मतलब के लिये लोग एक दूसरे का हक हड़पने में लगे है तुम अपने बच्चों के साथ निःस्वार्थ भाव से कुल का नाम उज्जवल कर रही हो। यह कर्म तुम्हें दैवीय प्रति ठा प्रदान करता है पर लोग समझे तब ना। यहां तो हमारे बाप ही नहीं समझ रहे हैं तो परिवार के और सदस्यों की क्या बात करूं ?

गीते-ससुर जी तो सासू मां को नहीं समझे तो हमें कहां से समझेगे ? बेचारी सासूमां असमय साथ छोड़ गयी। थी तो निरक्षर पर पढे-लिखो को सबक सीखाती थी। दुखी नर को नारायण समझकर सेवा करती थी तंगी की हालत में भी। हमें तो चैन से नहाने खाने भर को तो है, हम क्यों पीछे रहे ?

सुशील-भूल गयी ना तू अपने दर्द को। चल पड़ी ना त्याग के रास्ते। तुम त्याग के रास्ते से दर्द के रोड़े को उखाड़ फेंकोगी।

गीते-तुम साथ हो तो कोई रोड़ा टिक भी कैसे सकता है।

सुशील-गीते अपने त्याग का सेहरा मेरे माथे मत बांधो।

गीते-तुम्हारे सिवाय हमारा क्या ? स्वार्थ परिवार मे दरार पैदा करता है। यह मैं नहीं चाहती। जब तक आखों में ज्योति और घुठने में तन का बोझ उठाने की ताकत है परिवार के लिये जीउंगी।

सुशील-गीते दर्द में झटपटाते हुए जीवन यापन करते हुए भी परिवार के लिये यही तुम्हारा त्याग मेरी असली सफलता है। सच नारी के इस भाव को देखकर कवि ने कहा है-जहां नारी की पूज्य वही भगवान विराजित है। सच गीते परिवार के लोग भले ना माने मैं तुम्हारे समर्पण भाव को नमन् करता हूं।

गीते-नरक का भागीदार मत बनाओ।

सुशील-कैसे ?

गीते-पति परमेश्वर भला ऐसी बात करेंगे तो स्वर्ग का द्वार खुलेगा क्या ?

सुशील-गीते तुम जैसी गृहस्थ तपस्विनी के सामने भगवान तक को हाजिर होना पड़ा है,इतिहास गवाह है।

गीते-अभिनन्दन के पापा तुम्हारे साथ की छांव में दर्द का एहसास कैसे हो सकता है।

सुशील-इतना बड़ा मान ना दो मुझे। हर दुख-सुख में हम बराबर के भागीदार हैं। हां मुझे भी दर्द हुआ है जब अपने मुसीबत के दौर में आंखे तरेरे हैं। इस दर्द से कभी नहीं उबर पाउंगा। मैं शहर की गलियों में पागलों जैसा रोजगार की तलाश में भटक रहा था। तुम्हें मेरे बाप के कड़वे शब्द सुनने को मिल रहे थे। अरे तुम मेरी बेरोजगारी के लिये जिम्मेदार तो ना थी। सही मायने में मेरे बाप ही मेरी मुश्किलों के कारण रहे। कम उम्र में ब्याह नहीं करते तो परिवार का बोझ तो नहीं बढ़ता ना। जब मैं अपने पैर पर खड़ा हो जाता तो ब्याह करते तो। मुझे भी आसानी होती पर नहीं उन्हें तो अपनी नाक ऊंची करनी थी। इस नाक की ऊंचाई में भले ही बेटे का जीवन बर्बाद हो जाये परवाह नहीं।

गीते-बाबूजी को कोसने से क्या फायदा। मां-बाप बच्चों के भले के लिये करते हैं। पुरानी सोच में बंधकर किया जाने वाला काम फायदेमंद नहीं साबित होता। इस बात पर मैं भी सहमत हूं।

सुशील-बात सहमति असहमति की नहीं है। बात है समय के साथ चलने की। आज भी अपनी जिद पर अड़े रहते हैं। पिताजी की वजह से मां को कितनी मुश्किले झेलनी पड़ी। बेचारी असमय चल बसी। पिताजी है कि नाक की सीध में चलने के अलावा और कुछ नहीं सीखे। नशा से तो ऐसा नाता है जैसे भूखे का रोटी से। रोटी की चिन्ता नहीं है। घर परिवार की चिन्ता नहीं है। वे अपनी जिद को पूरा करने के लिये हर नुस्खा अजमा लेते हैं।

गीते-बाबूजी की अच्छाई को देखो। संयुक्त परिवार की विरासत को जिस तरह से बचाये रखा है। पूरे गांव में वैसा किसी ने नहीं किया है।

सुशील-फायदा क्या हुआ ? हम भाई-बहनों का हक उन लोगों पर कुर्बान हो गया जो लोग आज दुश्मन बन बैठे हैं।

गीते-सभी अपने नसीब का खाते है। मान भी ले तुम-भाई बहनों का हक तुम्हारे चाचा-ताउ के बच्चों में बंट भी गया तो क्या हुआ अपने ही तो वे भी है। तुम्हारे पिताजी उनके भी तो अपने है। तुम को जो चाचा-ताउ चाची-ताई,नाना-नानी,मामा-मामी,फुआ-फूफा और कुटुम्ब संबधियो का जो प्यार मिला वह प्यार आज की पीढी को लिए रहा है। एकल परिवार में भले ही भर पेट रोटी मिले शान -शौकत रहे पर संयुक्त परिवार वाला सुख कभी नहीं मिल सकता। मुझे खुशी है कि तुम भी संयुक्त परिवार की राह में मील का पत्थर साबित हो रहे हो। तुम्हारा त्याग व्यर्थ नहीं जायेगा। तुम्हारे त्याग को तुम्हारे भतीजे-भतीजियां समझेंगे। मुझे तुम पर नाज है कि तुम अपने पिताजी की नशापान वाली बुराई का त्याग कर दिये हो पर एक अच्छाई को अपनाये हो। यह तुम्हारा बहुत बड़ा त्याग है लाख कष्ट उठाकर।

सुशील-अब कौन सा तीर चला रही हो भागवान। बात तुम्हारे त्याग से शुरू हुई थी तुम श्रेय का सेहरा मेरे सिर बांध रही हो। परिवार को तो गृहलक्ष्मियां अमरता प्रदान करती हैं।

गीते -बात नहीं बना रही हूं सही कह रही हूं। संयुक्त परिवार को जीवित रखने के लिये तुम त्याग कर रहे।

सुशील-क्या तुम्हारे बिना सहयोग के कुछ सम्भव है। आज की दुल्हन आते अपना चूल्हा रोप लेती है। तुम बेटी दमाद वाली होकर भी सास-ससुर के कपड़े धो लेती हूं। देवर-देवरानी का भाई-बहन की तरह ध्यान रखती हो। भतीजे-भतीजियों को अपना बेटा-बेटी समझती हो। क्या यह त्याग कम है संयुक्त परिवार को जीवित रखने के लिये।

गीते-तुम्हारी तरह और भी लोग सोचने लगे तो संयुक्त परिवार कभी टूटे नहीं। देखो न मंदी का दौर दुनिया को हिलाकर रख दिया। अपने देश पर कोई आंच नहीं आयी क्या नहीं ना। इसकी जड़ में संयुक्त परिवार का हाथ है जिसकी वजह से छोटी-छोटी बचत के महत्व को समझा गया।

सुशील-ठीक कह रही हो संयुक्त परिवार में दुख कम सुख अधिक है लेकिन आज के दौर में तो ग्रहण लगने लगा है। शहर की बात छोड़ो गांव में भी संयुक्त परिवार बिखरने लगा है। ना जाने कौन सी ऐसी बयार चल पड़ी है कि बस खुद के परिवार को छोड़कर सारे बेगाने होते जा रहे हैं। यहां तक की मां बाप भी जबकि संयुक्त परिवार सुख का सागर है और दुख के लिये लुकमान।

गीते-आज के लोग ज्यादा स्वार्थी हो गये हैं। पहले अपना पेट भरने की ललक है,दूसरे भले ही भूख से मर जाये इसकी चिन्ता नहीं। मेरी मां ताउजी के तीनों बच्चों को हम चारों भाई बहनों की तरह ही पाला,जबकि हमारे पिताजी तो सरकारी मुलाजिम थे। मेरी मां के मन में कभी कोई विकार नहीं पनपा ना किसी प्रकार का भेद। ताई आराम की बंशी बजाती रहती थी। मेरे मां बाप के मरते ही सब कुछ बिखर गया। पुराने लोगों में परिवार को साथ लेकर चलने की कला आती थी। आज बस दिखावा है। अरे जरूरत पड़े तो खून भी पी ले। देखो ताउजी के बेटे अपना कमा खा रहे हैं। बेचारे ताउ दो चूल्हों के बीच रोटी के लिये टुकुर-टुकुर ताकते रहते हैं।

सुशील-ये सब पाश्चात्य संस्कृति की नकल है। यही नकल हमारे देश की संस्कृति को वनवास दे रही है। हमारे देश के लोग अपनी विरासत बचाने में गौरव नहीं महसूस कर रहे हैं पश्चिमी खान-पान रहन-सहन को स्टेटस सिम्बल से जोड़कर देख रहे हैं। जबकि अपने देश के लोग भी जानते है पश्चिमी सभ्यता में माम-डैड,ब्रदर-सिस्टर और आंटी-अंकल के अलावा कोई रिश्ता नहीं होता। हमारे यहां मां-बाप,भाई-बहन,फुआ-फूफा,चाचा-चाची,दादा-दादी मौसा-मौसी,मामा-मामी और बहुत सारे पवित्र रिश्ते है पर ये रिश्ते नहीं पश्चिमी रिश्ते मा-डैड ज्यादा अच्छे और आधुनिक लगने लगे हैं।

गीते-ठीक कह रहे ऐसी सोच अपनी संस्कृति सभ्यता और मानवतावादी परम्परा के साथ न्याय कहां कर सकती है।

सुशील-पश्चिमी संस्कृति की नकल महामारी है।

गीते-इस महामारी से बचने के लिये नई पौध को संयुक्त परिवार की विशेषताओं से परिचय करना होगा। उन्हें दादा-दादी,नाना-नानी के सान्निध्य में दीक्षित करना होगा तभी देश की आन संयुक्त परिवार बच सकती है।

सुशील-सभी तो शहर की तरफ भाग रहे हैं।

गीते-परदेस तो लोग पहले भी जाते थे। बात ये नहीं है बात ये है कि आज की जरूरत के अनुसार स्कूल कालेज गांव स्तर पर होंगे तो नौकरीपेशा मां -बाप बच्चों को दादा-दादी,नाना-नानी की देखरेख में पढा लिखा तो सकते हैं। दुर्भाग्यवश आज के इस युग में भी गांव की पहुंच से बहुत दूर सुविधाये हैं। बच्चों के भवि य की चिन्ता में मां-बाप शहर की ओर भाग रहे है और संयुक्त परिवार टूट रहा है। ऐसा नहीं कि इसे बचाया नहीं जा सकता है बचाया जा सकता है।

सुशील-वो कैसे ?

गीते- तनिक अपनी जरूरतों को समिति करना होगा। सगे-सम्बन्धियों के बारे में सोचना होगा,अपनी जन्मभूमि के प्रति कर्तव्य के बारे में सोचना होगा। यही पाठ अपने बच्चों को अपने स्तर पर पढाना होगा और यह सब बिना त्याग के नहीं हो सकता। अरे हम भी तो आज के जमाने के लोग है ना। संयुक्त परिवार को सींच रहे है कि नहीं। साल भर में दो बार गांव जाते हैं। पूरे कुटुम्ब की फिक्र करते हैं। अपनी कमाई से जो हो सकता है सभी के लिये साबुन तेल से लेकर कपड़ा लता तक करते हो। समय-समय पर मनीआर्डर भी करते हो क्योंकि गांव में जो लोग हैं उनसे गहरा नाता है।

सुशील-बात तो सही है पर सभी परदेसी ऐसा सेाचे तब ना। देखने में तो यहां तक आ रहा है कि शहर की हवा लगते ही गांव की जमीन जायदाद बेचकर शहर बस जा रहे हैं। जबकि शहर में पड़ोसी भी नहीं पहचानता। मरने पर किराये के लोग ढूंढे जाते हैं। कंधा देने वाला कोई नहीं मिलता। दुख तकलीफ में कौन किसको पूछता है। गांव में तो दुख-तकलीफ में तो लोग टूट पड़ते हैं। अपनापन सिर चढकर बोलता। यह संयुक्त परिवार की देन है। अभी भी संयुक्त परिवार का असर देश की धड़कन में बसा है। जरूरत है थोड़ा से स्वहितों में कटौती कर परिवारजनों पर न्यौछावर करने की।

गीते-जैसा मेरे मां-बाप और सास-ससुर ने त्याग किया। काश ऐसा सभी करने लगे तो मरणासन्न अवस्था में पड़ी संयुक्त परिवार की परम्परा को संजीवनी मिल जाती। मैं तकलीफ उठाकर भी संयुक्त परिवार को सींचती रहूंगी भले ही परिवारजनों ने मेरे साथ बदसलूकी किया हो। मैं सारी गलतियों को भुलाकर अच्छाईयों को याद रखूंगी क्योंकि संयुक्त परिवार में मान है सम्मान है,सुदृढ पहचान है, कई जोड़ी लाठियों की ताकत, पारिवारिक सुख-संवृध्दि का आनन्द , आत्मिक सकून भी तो है संयुक्त परिवार में। हम इसे टूटने नहीं देंगे। हमारे देश,स्वस्थ पारिवारिक रिश्तों की आन मान पहचान है संयुक्त परिवार अभिनन्दन के पापा।

सुशील-त्याग से ही संयुक्त परिवार का हमारा सपना संवर सकता है। हम तुम्हारे साथ हैं गीते।

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रचनाकार: नन्दलाल भारती की कहानी : त्याग
नन्दलाल भारती की कहानी : त्याग
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