यशवन्त कोठारी का व्यंग्य : ये मोहल्ले वालियाँ

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हमारे यहां एक मोहल्ला है। मोहल्ले में मोहल्लेवालियां रहती है। इनके पति केवल आकर सोते हैं। अब आज ही का उदाहरण लो। शर्माजी के मकान में न...

yashwant kothari new (Mobile)

हमारे यहां एक मोहल्ला है। मोहल्ले में मोहल्लेवालियां रहती है। इनके पति केवल आकर सोते हैं।
अब आज ही का उदाहरण लो। शर्माजी के मकान में नया किरायेदार आ गया। पूरे मोहल्ले ने खिड़कियां खोल-खोल कर आने वालों का मुआयना किया। कुल जमा एक बच्चा और इतना सामान। इतना बड़ा फ्लेट लेकर क्या करेंगे ! मिसेज शर्मा परेशान हैं, इन नये लोगों से। क्या करेंगे ये इन कमरों का ? सोयेंगे, बैठेंगे, पसरेंगे, नाचेंगे, कूदेंगे, फिर भी तीन कमरे ज्यादा पड़ेंगे।

अभी शायद ऊंट पहाड़ के नीचे आया नहीं। उसने सोचा। किराया समय पर दें, तो समझूं। पहले वाला भी साला ऐसा ही था अपने आपको लेखक बताया, एक महीने का किराया मारकर भाग गया।
और ये आज का नया किरायेदार। कहता है, यूनिवसिर्टी में प्रोफेसर हूं। शायद खूब पढ़ा लिखा भी है। चेहरे से ही पढ़ा लिखा लगता है। लेकिन किराया दे, तब न.......पढ़े लिखे होने से क्या होता है - उन्होंने सोचा।
लेकिन अपने वो भी तो सरकारी अफसर है। देखती हूं, कैसे किराया नहीं देगा।

लेकिन इसकी बीबी, राम-राम.....कैसी बणी-ठणी फिरती है। जैसे कल शादी हुई हो। अपने सामने किसी को कुछ समझती ही नहीं। अरे हैं तो कुल मिलाकर किरायेदार ही। मकान मालिक से नहीं दबेगी, डरेगी तो चल जायेगा, लेकिन मकान मालकिन से तो दबना ही पड़ेगा। नहीं तो निकाल बाहर करूंगी साली को। अपने आपको समझती क्या है ? हूं।

चलूं जरा देख आऊं, कैसा घर जमा रहे हैं ?
बहिनजी नमस्ते।
नमस्ते। आइए आइए भाभीजी।
आज भाईसाहब दफ्तर नहीं गये।
नहीं हो आया, आज मेरा एक ही पीरियड था।
अच्छा, तो क्या एक पीरियड के बाद छुट्टी हो जाती है ?
हां, यूनिवर्सिटी में कुछ ऐसा ही होता है।
अरे भगवान। हमारे ये तो सुबह से शाम तक फाइलें जोतते रहते हैं।

हां अपना-अपना भाग्य - किराएदारिन बोल पड़ी और मकान मालकिन को चुप हो जाना पड़ा
उसके जाने के बाद प्रोफेसर साहब ने फरमाया-
अरे बदमाश लगती है। ज्यादा मुंह मत लगाना।
अरे मैं तो मकान मालकिन की छाया से भी बचूंगी जी।
हां यही ठीक है।
प्रिये !
हां
आज दफ्तर से छुट्टी ले लो। पूरा घर ठीक करना है।

ठीक है जी।
आओ सामान सजाएं।
पहले ड्राइंग रूम !
वे दोनों सामान जमाते हैं। किताबें सजाते हैं। एक पेन्टिंग लगाते हैं। ड्राईंग रूम का फर्नीचर ठीक करते है। पति कुछ चिट्टियां लिखता है। पत्नी कहती है-
देखो, पता सही लिखना। नहीं तो सब गड़बड़ हो जायेगा।
क्या गड़बड़ हो जायेगा ? तुम्हारे मायके वाले पत्र पर सही पता लिख दिया है।

मेरे मायके का नाम लिया तो ठीक नहीं होगा।
क्या ठीक नहीं होगा ?
मैं कहती हूं, आप स्वयं को सुधारो।
यू शट आप !
यू शट आप !
तुम पुरुष साले अपने आपको समझते क्या हो ? तुमने नारी का शोषण ही शोषण किया है।
और तुम........बकवास बन्द करो।
नहीं करती हूं, बोलो क्या कर लोगे।
क्यों पड़ोसियों को तमाशा दिखा रही हो। नहीं मानती तो ये लो और चटाक से झापड़ रसीद कर देता है।

मारो और मारो, मेरे हर प्रश्न का अन्तिम जवाब यहीं तो है, तुम्हारे पास।
किरायेदारिन रोने लगती है। प्रोफेसर साहब बाहर निकल जाते हैं। मकान मालकिन यह सब देख सुन कर मन ही मन खुश हो रही है। और हे पाठकों, लोक लाज के डर से आकर किरायेदारिन समझाती है-
क्या बात है बहू ?
कुछ नहीं।
देखो ऐसे गुस्सा मत किया करो। मरद है, कहीं पांव बाहर निकल गया तो मुसीबत हो जायेगी।
किरायेदारिन रोने लगती है। मकान मालकिन सांत्वना देती है।
देखो तुम उस मिसेज शर्मा से सावधान रहना। बड़ी चालू चीज है। पहले वाले किरायेदार पर खूब डोरे डाले। बेचारा आधी रात को भागा। आज तक वापस नहीं आया। ये मिसेज वर्मा थी जो किरायेदारिन को आगाह कर रही थी।
अच्छा, अब से सावधान रहूंगी। कल हमारे घर पर आई थीं।

अरे बड़ी बदमाश औरत है। औरत क्या साली कुतिया है। गली-गली सूंघती फिरती है। कहां क्या पक रहा है। शर्माजी के व इसके तो रात दिन झगड़ा चलता रहता है। ये कुतिया की तरह भौंकती है, और वो पिटाई करते हैं।
मिसेज वर्मा ने आगे कहा, ''साली मुझे बदनाम करती है। कहती है, तुम तो राघवन साहब के लगी हुई हो। अरे भाई वो मेरे पति के बॉस हैं, एक ही मोहल्ले में रहते हैं। हंसना बोलना कोई गुनाह है, तुम्हीं बताओ !''
नहीं जी, हंसना तो आवश्यक है। स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है।
हां, नहीं तो क्या। लेकिन इन मूर्खों को क्या समझाऊं।
अच्छा, ऑपरेशन तो अभी नहीं कराया होगा।
नहीं जी, बस ऐसे ही काम चला लेते हैं।
मैंने तो दो बच्चों के बाद ही काम निपटा दिया, सब खैरियत। और इस मिसेज शर्मा को देखो पांचवा है। पता नहीं किसका है। पति तो मरगिल्ला हो रहा है।
होगा जी, अपना क्या।
किसी से ना कहना, बहना।
हां बहना।

मिसेज गुप्ता और मिसेज राघवन में नहीं बनती है। बनने का प्रश्न ही नहीं पैदा होता। क्योंकि दोनों के पति एक ही दफ्तर में है और इन दोनों का बॉस भी इसी कॉलोनी में रहता है। बॉस के यहाँ पर गुप्ता दम्पत्ति जाते हैं तो राघवन दम्पत्ति नाराज हो जाते है। राघवन दम्पत्ति जाते हैं, तो गुप्ता दम्पत्ति नाराज। इस शास्त्रीय नाराजगी के अलावा गुप्ता सीनियर है और राघवन जूनियर। लेकिन मिसेज राघवन इस बात को कोई महत्व नहीं देतीं। अक्सर सब्जी, दूध या पानी के बिल जमा कराने के चक्कर में आपस में मुठभेड़ें होती रहती है। दोपहर का समय था। पति लोग दफ्तर में थे। बच्चे स्कूल में थे और मोहल्ले में सब्जी वाला आया हुआ था। यही तो वह समय होता है, जब मोहल्लेदारिनें जमादार हो जाती हैं।
मिसेजे राघवन ने सब्जी वाले को अपने सामने ठहरवा लिया। मिसेज गुप्ता वहां नहीं आई।
मिसेज राघवन ने सब्जी तो बहुत कम ली, मगर ठेले वाले को एक घण्टा रोके रखा। बस मिसेज गुप्ता के लिए यही काफी था।
देखो साली मुटल्ली को, सब्जी वाले से ही आंखें लड़ा रही है।
हाँ बहन। यह मिसेज शर्मा थी, जो मकान मालकिन थीं।
शर्म हया तो कुछ रह ही नहीं गयी है।
अरे जवानी हम पर भी आई थी। हाय क्या दिन थे वो भी, लेकिन कसम ऊपर वाले की, अगर ऐसी कोई ओछी हरकत की हो तो।
हां-हां, अपने जमाने में यह बस कहां था भाई।
अब देखो कैसे दीदे मटका रही है। लेगी पाव भर बैंगन और दुनिया जहान की बातें करेगी। जाते-जाते कुछ मिर्च और धनिया भी मांग लेगी।
साले ये मुए मरद होते ही ऐसे हैं जी।
चल भाई ए सब्जी वाले। मिसेज शर्मा ने आवाज दी।

आया मेम साहब। ठेले वाला भी चिल्लाया।
ये बैंगन क्या भाव हैं ?
पचास पैसे पाव।
वहां तो चालीस के दे आया।
नहीं बीबी जी, चालीस के नहीं दिए।
क्या बात करते हो। हमने देखा है।
वो तो चेन्ज नहीं थी न। इसलिए।

अच्छा चालीस के देगा।
नहीं।
नहीं, कैसे नहीं देगा। एक ही मोहल्ले में दो भाव नहीं चलेंगे। देगा न बोल ?
अच्छा ले लो बेनजी।
बेचारा सब्जी वाला।
मिसेज प्रोफेसर मिसेज खन्ना के पास बैठी है। मिसेज खन्ना मोहल्ले की नाक है और अपनी नाक पर मक्खी नहीं बैठने देतीं। कहने लगी इस शर्मा के बच्चे को चाहिए कि अपनी पत्नी को बांध के रखे। साली पता नहीं कहां-कहां मुंह मारती है। उस दिन मेरी बेबी को बुलाकर पूछ रही थी।
क्यों बेटी, पापा ने दौरे से चिट्टी लिखी या नहीं।

अरे नहीं लिखी तो तेरे बाप का क्या जाता है ? तू क्यों रो रही है, कहे तो तुझे प्रेम पत्र लिखवा दूं। कमीनी औरत हैं।
मिसेज प्रोफेसर नई-नई आई हैं लेकिन दुनियादारी से वाकिफ। ऐसे मौके पर क्या कहना चाहिए, जानती है, बोल पड़ती हैं।
आप से क्या कहूं, भाभीजी, किसी से कहना नहीं। एक रोज खिड़की से मेरे उनको देख-देख कर हँस रही थी। मैंने तो तुरन्त खिड़की बन्द करवा दी।
ठीक किया जी, साली का मुंह नोच लेना था।
सुना है, प्रोफेसर साहब विदेश जा रहे हैं ?
हां, चांस आ गया तो चले ही जायेंगे। पोस्ट डाक्टरल वर्क के लिए जाना पड़ेगा।
चलो फिर तो तुम्हारे मजे ही मजे।
क्यों मैं तो यही रहूंगी।
अरे यही तो मैं कह रही हूं।

यहीं होगी तभी तो, साजन घर नहीं, मुझको किसी का डर नहीं।
आप तो भाभीजी बस.........और मिसेज प्रोफसर शरमा कर उठ जाती हैं।
कॉलोनी में शोर मच गया है। प्रोफेसर साहब विदेश जा रहे हैं। हर घरवाला उनसे अपने नाजुक और महत्वपूर्ण संबंधों की घोषणा कर रहा है। मिसेज शर्मा बोल पड़ी -
मेरा मकान बड़ा शुभ है जी, देखो आते ही विदेश जाने का चांस मिल गया।
अरे ऐसा था तो तुम ही क्यों नहीं चली गई, इतने वर्षों से इसी मकान में हो। यह तमाचा मिसेज गुप्ता का था। मिसेज शर्मा कब चुप रहने वाली थीं -
तुम्हारे रहते मैं कैसे जाती ? तुम्हें पहले भेजूंगी, तब जाऊंगी।

कहां भेजोगी ?
स्वर्ग में।
तब तो अपन नहीं मिल सकेंगी, क्योंकि तुम तो वहाँ भी नरक में रहोगी।
मिसेज प्रोफेसर बेचारा हैरान, परेशान। प्रोफेसर साहब के जाने के बाद हमारी देखभाल कौन करेगा ?
शर्माजी ने कहा.........आप चिन्ता मत करिए। मैं किसलिए हूं। आप निश्चिंत रहिए, मैं पीछे से सब देखभाल कर लूंगा।
और प्रोफेसर साहब विदेश चले गये।

शर्माजी, सुबह शाम मिसेज प्रोफेसर के फ्लैट के चक्कर लगाने लगे।
पड़ोसिन को नया मौका मिला।
अरे देखो साला यह शर्मा हर समय यहीं घुसा रहता है।
अपना क्या है।
अरे यह तो मुहल्ले की इज्जत का सवाल है - मिसेज गुप्ता बोलीं।
अरे भाई जब मियां बीबी राजी को क्या करेगा काजी।
वो तो ठीक है, लेकिन ये मुआँ तो रात को भी यहीं रहता है।

दिन में तो मौका नहीं मिलता होगा।
साला बुड्ढा हुआ, पर जरा भी शऊर नहीं। बेटी ब्याहने लायक है।
अरे तुमने नहीं सुना क्या ?
क्या........? आश्चर्य से सभी की आंखें खुली रह गयीं।
यही, उस दिन रात को बेबी मन्दिर गयी तो दूसरे दिन सबेरे आई। बस तब से ही मिसेज शर्मा की बोली बन्द है।

होगा जी किस-किस को रोएं। लंका में सब बावन गज के।
हां, सो तो है।
अब हमारे ये तो बिल्कुल गऊ है जी, बूढ़ा बेचारा कहीं मुंह नहीं मारता।
और मेरे वो, नीचे नजर करके आते हैं और नीची नजर करके जाते हैं।
हां-हां, मैं देखती नहीं। एक रोज बाजार में मिल गए, तो पहचाना भी नहीं, वो तो मैंने ही बताया।

हां जी, आदमी को ऐसा ही होना चाहिए।
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तुम इतनी रात यहां क्या कर रहे हो ?
देखो तुम भी देखो इश्क का चमत्कार। सालों ने लाइट बुझा रखी है और ऐश कर रहे हैं।
अरे तो तुम्हें क्या करना है ?
उसका पति उसे उसी को सौंप गया है, तुम चाहो तो भी वह तुम्हें हाथ नहीं धरने देगी।
मुझे क्या करना है जी उसका, मगर यह शरीफों का मोहल्ला है। वह अन्दर चली जाती है और पति महोदय फिर दरवाजे पर पहरा देने लग जाते हैं।

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टूटी-फूटी खाट ठीक...........करवा लो।
मोहल्ले में खाती, मोची, सब्जी वाला सभी आते और मिसेज खन्ना की आया उन्हें फ्रिज का ठण्डा पानी पिलाती। आंख मारती, मुस्कराती और कुछ न कुछ प्राप्त कर लेती। सब्जी वाले से कहती-
तुम तो गोभी का फूल हो।
नहीं, मैं तो तेरे प्यार में अप्रेल फूल हूं। और आया शरमा जाती या शरमाने का अभिनय करती। एक नींबू उठाती और अन्दर भाग जाती।
सेठी साहब भी इस आया से दुःखी थे। मिसेज सेठी, सेठीसाहब से दुःखी थी। दोनों का दुःख दूर किया इस सब्जी वाले ने, उसने आया को फांसा और सेठी साहब टापते रह गये।
इधर मिसेज सेठी को अंग्रेजी पढ़ने का शौक चर्राया। रेपिडेक्स ले आई और अंग्रेजी में माई हेड इज राउण्डिंग करने लगी।

मिसेज सेठी की इस हरकत से परेशान कॉलोनी की सभी औरतों ने अंग्रेजी पढ़ना शुरू किया। लेकिन बातचीत साड़ी, ब्लाऊज से आगे नहीं बढ़ सकी।
मोहल्ले में मणिहारा आया। साड़ी वाला आया। नाक में लोंग और चूड़ियों वाला आया। सभी आये और गये, लेकिन मोहल्ले में कोई नया परिवर्तन नहीं कर पाये। आखिर यह बीड़ा मिसेज सेठी ने उठाया।
उसने मोहल्लेदारिनों को अपने यहां चाय पर बुलाया और मोहल्ले के साहित्य में व्याप्त सन्नाटे पर चर्चा की। परिचर्चा आयोजन का भार मेजबान के नाते स्वयं उठाया। मगर बात ज्यादा नहीं बनी, इस कारण वार्तालाप इस तरह हुआ-
चाय । केवल चाय
लेकिन तुमने तो कभी चाय भी नहीं पिलाई।

क्या.....क्या। दस बार तुम मेरे फ्रिज से बर्फ ले गयी हो।
दो बार तुम काफी पी चुकी हो।
फ्रीज की बर्फ के पचास पैसे नकद रख दो फिर बात करो।
कॉफी के दो रुपयों में से पचास पैसे काट लो।
बदजात कहीं की।
बदतमीज कहीं की।

तुम चुप रहो।
तुम चुप रहो।
तुम्हारे यहां शर्मा आता है।
और तुम्हारे यहां वर्मा रात को क्या करता है।
तुम्हारी लड़की ड्राइवर के पास क्या करने गई थी।
और तुम्हारी ननद गैराज में माली के साथ क्या कर रही थी।
तुम चुडैल।
तुम डायन।
तू वेश्या।
साली को रगड़ के रख दूंगी।
अरे जा....जा........।

हे पाठकों, पनघट पर पुराने जमाने में पूरे गांव चौपाल के समाचार मिलते थे। पनघट बंद हुए, नल के बम्बे लग गए, कॉलोनियां बन गईं, मोहल्ले और मोहल्लेदारियां खत्म हो गई। लेकिन हम वाटरगेटी जनम-जनम के इससे उबर न सके। ये मोहल्ले वालियां आज भी लड़ रही हैं, अचानक मुझे शहर छोड़ना पड़ा। आगे की कहानी फिर कभी लिखूंगा। आमीन।

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यशवन्त कोठारी
    86, लक्ष्मी नगर, ब्रह्मपुरी बाहर,
जयपुर-302002 फोनः-2670596
   ykkothari3@yahoo.com

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया 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रचनाकार: यशवन्त कोठारी का व्यंग्य : ये मोहल्ले वालियाँ
यशवन्त कोठारी का व्यंग्य : ये मोहल्ले वालियाँ
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