है ये मौसम की चाल ये है मौसम की चाल, एक अंतराल, सुबह शाम हाथों में जाम, लगता, मौसम नशे में है ! कभी ठंडी हवाओं का रुख़, मिलता सुख,...
है ये मौसम की चाल
ये है मौसम की चाल,
एक अंतराल,
सुबह शाम हाथों में जाम,
लगता, मौसम नशे में है !
कभी ठंडी हवाओं का रुख़,
मिलता सुख,
हवा में लू अब बता तू,
मन बेचैन,
उलझा समस्याओं के रस्से में है !
बादलों का शोर,
नील गगन में चारों ओर,
उमड़ घुमड़, अट्टहास,
कहीं दूर कहीं पास,
बरसेंगे बादल,
है विश्वास,
पर ये क्या, बादल भी नशे में है,
आँख मिचौनी खेल,
नन्ने मुन्नों का मेल,
आ गयी बारिश,
छाता ताने भागे बच्चे,
जैसे भाग रही हो रेल,
ऐसे ही होता है हर साल,
है ये मौसम की ही चाल !
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अंजान पर भरोसा न करें
कालोनी के बहुत सारे बच्चे अपने छोटे छोटे बैट बॉल विकेट ग्लब्स लेकर पार्क में क्रिकेट खेलने चले गये ! सारे बबच्चे ७ साल से १० साल के बीच के थे ! पार्क कालोनी से ज़रा दूर था ! चारों तरफ पेड़ों और घनी झाड़ियों से घिरा हुआ था ! समय दिन के १२ बजे का था ! स्कूलों में छुट्टियाँ चल रही थी ! कुछ बच्चों के माँ- बाप दोनों ही सर्विस करते थे, किसी की काम करने वाली तो कोई पड़ोसी की देख रेख में घर में रहते थे ! अमूमन सभी बच्चे कालोनी के अंदर ही जमा होते थे, और वहीं गलियों मे क्रिकेट, व्हॉली बॉल या बच्चों के दूसरे गेम खेलते थे ! सभी शाम को अपने अपने घरों में आ जाते थे ! इस तरह सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था ! लेकिन उस दिन बच्चे बिना अपने गार्जियनों को बताए पार्क में चले गये वो भी दिन में ! उस समय वहाँ कोई नहीं था ! पार्क की निगरानी करने वाले कर्मचारी भी कमरों के अंदर गप्प लगाने या तास बाजी में मशगूल थे ! बच्चे खेल खेलने लगे ! अचानक वहाँ एक आदमी आया, उसने सब बच्चों को बताया की वह किसी जमाने में एक बहुत ही अच्छा क्रिकेटियर था ! और उनको क्रिकेट के ग़ूढ रहस्यों की जानकारी दे सकता है ! वह कभी बच्चों को बॉलिंग करता कभी बैट कैसे पकड़ा जाता है बताने लगा ! कभी कभी बीच बीच में बच्चों को टॉफी भी खिलाने लगा ! उनमें एक लड़का १० साल का अमित उन बच्चों में होशियार बच्चा था ! उसने उसकी दी हुई टॉफी जेब में रख ली ! उसने देखा की पार्क में उस जैसे एक दो आदमी और आ गये हैं ! उसे कुछ अट पटा सा लगा और चुपके से वहाँ से निकल कर घर आ गया !उसके पापा डाक्टर थे, उसने वह टॉफी अपने पापा को दिखलाई और पार्क में बच्चों के साथ आने वाले अंजान लोगों के बारे में बतलाया ! उसके पापा ने टॉफी को चेक किया, पता लगा उसमें बेहोशी की दवा मिली है ! उन्होंने तुरंत सभी बच्चों के माँ- बाप को फ़ोन करके जल्दी इकट्ठा होने को कहा ! सारे लोग इकट्ठे हो गये और अमित के साथ पार्क की तरफ जाने लगे ! उधर टाफी खाते ही बच्चे बेहोश होने लगे और ये तीनों बदमास एक एक करके बच्चों को बाहर खड़े ट्रक में भरने लगे ! उसी समय कालोनी के सारे लोगों ने उन्हें घेर लिया ! ट्रक ड्राइवर ट्रक चलाने के लिए तैयार बैठा था ! पहले उन्होने ट्रक ड्राइवर को ही पकड़ा ! साथ ही किसी ने पुलिस को भी फ़ोन कर दिया ! बदमाशों ने गोली बरसाने शुरू कर दी ! किसी ने पीछे से डंडा मार कर गोली चलाने वाले के हाथ से पिस्टल गिरवा दी, फिर क्या था जनता ने लात घूँसों से उन बदमाशों की वो दुर्गति की की पुलिस के आने तक वे चलने फिरने लायक भी नहीं रहे ! ड्राइवर और सभी चारों छोटे छोटे बच्चों को किडनेप करने वाले पुलिस के हवाले कर दिए गये ! पता लगा की ये एक बहुत बड़ा गंग था और कही बच्चों को उठवा चुका था ! इनके पकड़ने से कही माँ बाप को उनके खोए बच्चे वापिस मिल गये ! अमीत को उसकी सूझ बूझ और होशियारी के लिए विशेष इनाम दे कर सम्मानित गया ! कालोनीवालों को समय पर बच्चों को बचाने और एक ख़तरनाक गंग को पकड़वाने में पुलिस की मदद करने के लिए प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया !
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जनता को क्या चाहिए
इन पत्थरों से फूलों की बौछार चाहिए,
अग्नि से भी ठंडी बयार चाहिए,
शेर में भी प्रेम का प्रभाव चाहिए,
दुश्मनी में दोस्ती का भाव चाहिए,
कालों का गोरों से मेल चाहिए,
हो सभी से मेल ऐसी रेल चाहिए,
आतंक को रोकने को जेल चाहिए,
धर्मों को जोड़े ऐसा खेल चाहिए,
हर कोई निरोग हो योग चाहिए,
देश समृद्ध हो सहयोग चाहिए,
हो नीम करेला मिठास चाहिए,
हर दर्द को मिटा दे दवा ख़ास चाहिए,
हर तरफ मखमली घास चाहिए,
फूलों जैसा हँसता मधु मास चाहिए,
जवान शहीदों को इंसाफ़ चाहिए,
नेताओं का वेतन कट हाफ़ चाहिए,
जंगल में नाचने को मोर चाहिए,
भ्रष्ट मंत्री लूटने को चोर चाहिए,
नारियों की लाज को कटार चाहिए,
इन पत्थरों से रंग की बौछार चाहिए!
संसद में जनता को सीट चाहिए,
मंत्रियों को जनता की हीट चाहिए,
लबों पे गुनगुनाने गीत चाहिए,
वादियों में गूँजे, संगीत चाहिए,
पानी बिजली सड़कें सौगात चाहिए,
मजदूर की मेहनत उपहार चाहिए,
रोटी कपड़ा मकान का जुगाड़ चाहिए,
हर किसी को रक्षा दीवार चाहिए,
इन पत्थरों से रंग की बौछार चाहिए !!
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मेरा उत्तराखंड
जहाँ पहाड़ जल रहे हैं, शराबी पल रहे हैं,
बोतलें शराब की स्वयं चल रहे हैं,
हर तरफ बाजार हैं, रंगीन कार हैं,
कारों के अंदर भी बँट रही शराब है,
न पानी न चाय है सब की यही राय है,
शराब के सामने क्या करेगी चाय है !
हर कोई मदहोश है कहो किसका दोष है,
जो शराब बेच रहा कह रहा निर्दोष है !
बंजर ये खेत हैं, हवाओं में रेत है,
दिल दिलों में काला नाग टोपी सफेद है !
पहाड़ों में जगह जगह हैंड पंप लगे हुए,
पानी की बूँद नहीं जाम से भरे हुए !
बैठकर के शराबी पी रहा जाम है,
ये नशे में चूर है बंदर महिमान है !
जाम पी के हर कोई अब यही है बोलता,
बंद पड़े ओंठो को अपने है खोलता,
"देखना एक दिन मैं मुख्य मंत्री बन जाउँगा,
हर शराबी के घर के बाहर सोने का नल लगाउँगा,
पानी तो आएगा नहीं इसमें शराब निकलेगी,
मेरे आँगन के हर हिस्से में शराब की बूंदे बरशेगी!
पी कर के फिर उताराखंडी ऐसा नाच दिखाएगा,
तांडव नृत्य शिव शंकर का त्रिलोकी हिल जाएगा !
केंद्र सरकार फिर भाग भाग कर उत्तराखंड आएगी,
बिजली पानी सड़कें, राशन गाँव गाँव बटवाएगी !
गाँव गाँव के पढ़े लिखों को मिल जाएगा काम,
हर एक के पास होगा रोटी कपड़ा और मकान !
भ्रष्टाचारी नेता चोर, भागेंगे फिर चारों ओर,
उत्तराखंड भी हिस्सा लेगा,
होगी जब प्रगति की दौड़ !
पानी और जवानी खुश होगी आम की डाली,
इन पहाड़ों में फिर से छा जाएगी हरियाली !"
स्वप्न देखते देखते ही शराबी फिर सो जाता है,
अगले दिन वह उठ नहीं पाता न कोई उसे जगाता है !
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हरेन्द्रसिंह रावत अमेरिका
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