प्रमोद भार्गव का आलेख - कचरा मैदानों से फूटती शैतानी (लैंडफिल)गैसें ?

SHARE:

कचरा मैदानों से फूटती शैतानी (लैंडफिल)गैसें ? केंचुओं से संभव है जहरीली गैसों पर नियंत्रण! प्रमोद भार्गव सॉफ्‍टवेयर इंजीनियर अभिषेक भ...

कचरा मैदानों से फूटती शैतानी (लैंडफिल)गैसें ?

केंचुओं से संभव है जहरीली गैसों पर नियंत्रण!

pramod bhargav

प्रमोद भार्गव

सॉफ्‍टवेयर इंजीनियर अभिषेक भार्गव आज उत्‍साहजनक जल्‍दी में थे। कल ही उनकी कंपनी ने एक परियोजना के लिए नया सॉफ्‍टवेयर बनाने का अनुबंध किया था और आज उन्‍हें उस पर काम शुरु कर देना था। फुर्ती से वे माइंड स्‍पेस कांप्‍लेक्‍स स्‍थित अपने दफ्‍तर में पहंचे। ईश्‍वर का स्‍मरण कर कंप्‍यूटर, एसी और सीलिंग फेन सब एक साथ ऑन किए। लेकिन यह क्‍या ? काम शुरु किए अभी एक घंटा भी नहीं बीता कि कंप्‍यूटर स्‍क्रीन धुंधलाने लगी। की-बोर्ड से दी जाने वाली कमांड कंप्‍यूटर ने नामंजूर कर दीं। वे कुछ सोच पाते इसी बीच एसी बैठने लगा और पंखा घरघराकर गतिहीन हो गया। धमनियों में एकाएक बढ़ते रक्‍त प्रवाह से अभिषेक ने माउस जोर से पटका और माथा पकड़ कर रह गए। इस स्‍थिति से सामना वे पहली बार नहीं कर रहे थे, बल्‍कि कई दिनों से इस विचित्र स्‍थिति से अकेले वही नहीं दफ्‍तर के अनेक इंजीनियर दो-चार हो रहे थे। विज्ञान और प्रौद्योगिक तकनीक विशेषज्ञों में से तमाम ने इस हरकत को शैतानी (भूत-पे्रत) हरकत समझा, तो प्रबंधन ने आलीशान बहुमंजिला इमारत में वास्‍तु दोष ! पंडितो, वास्‍तुकारों और तांत्रिकों से अलौकिक शक्‍तियों के निवारण के उपाय भी कराए गए लेकिन नतीजा ठन-ठन गोपाल !

जी हां मुबंई, दिल्‍ली, बैंगलोर, अहमदाबाद, गुड़गांव और नोएडा में तत्‍काल शैतान की उपज लगने वाली इन हरकतों से कुछ ऐसा ही हो रहा है। लेकिन ऐसा केवल उन स्‍थानों पर ही हो रहा है, जहां कचरा मैदानों (डंपिंग ग्राउंडों) पर बने आलीशान व बहुमंजिला इमारतों में आईटी, वीपीओ, कॉल सेंटर और सायबर कैफे हैं। सीमेंट, कंक्रीट और लोहे से निर्मित इन इमारती भूखण्‍डों में कंप्‍यूटर, लेपटॉप, एसी, टीवी, प्रिंटर, फ्रिज, माइक्रोवेव व अन्‍य इलेक्‍ट्रोनिक उपकरण चलते-चलते एकाएक जबाव देने लग जाते हैं। ऐसा उन भू-खण्‍डों पर ज्‍यादा देखने में आ रहा है, जहां एक दशक-डेढ़ के भीतर इमारती जंगल उगा है। यहां चांदी, पीतल और तांबे के बर्तन व इलेक्‍ट्रोनिक उपकरणों में इस्‍तेमाल होने वाले कल-पुर्जे काले पड़ जाते हैं। नतीजतन इन पुजोंर् की संवेदन-क्षमता (सेंसेविटीज) कुंद हो जाती है, लिहाजा संगणक अभियंता द्वारा दी जाने वाली क्‍लिक का कोई असर नहीं होता।

आखिर में इस अनंग अशरीरी प्रेत की पड़ताल की ‘‘नेशनल सॉलिड वेस्‍ट एसोसिएसन ऑफ इंडिया'' के रसायन वैज्ञानिक विशेषज्ञों ने। इस भयावहता का पर्दाफाश होने पर पता चला कि इलेक्‍ट्रोनिक उपकरणों में पैदा होने वाली हरकतें डंपिंग ग्राउण्‍ड में दफन कचरे से लगातार रिस रहीं लैंडफिल गैसों की देन हैं।

दरअसल लैंडफिल गैसें उन स्‍थलों से उत्‍सर्जित होती हैं, जहां गड्‌ढों-युक्‍त उबड़-खाबड़ जमीन का समतलीकरण शहरी कचरे से किया गया हो। इस कचरे में औद्योगिक और घरों में उपयोग में लाये जाने वाले इलेक्‍ट्रोनिक उपकरणों का कचरा भी शामिल हो तो इसमें प्रदूषण की भयानकता और बढ़ जाती है। नियम-कानूनों को ताक पर रखकर लापरवाही से तैयार किए भू-खण्‍डों पर खड़ी इमारतों में चल रहे सूचना तकनीक के कारोबार में प्रयोग में लाये जाने वाले ई कचरे का अपशिष्‍ट चांदी, तांबा प्‍लेडियम, टिन, सीसा, सोना और पीतल के कल-पुर्जे लैंडफिल गैसों के रूप में रिसकर हवा में तैरने से ये गैसें इन कल-पुजोंर् के संपर्क में आकर इनकी सेहत बिगाड़ देती हैं। इनका हमला निर्जीव यांत्रिक उपकरणों पर ही नहीं मानव स्‍वास्‍थ्‍य पर भी बुरा असर डालता हैं। इनके दुष्‍प्रभाव से कैंसर, ऐलर्जी, गर्भपात और तंत्रिका तंत्र के गड़बड़ा जाने की समस्‍या पैदा हो सकती है।

हमारे देश की महानगर पालिकाएं और भवन-निर्माता कंपनियां गड्‌ढों युक्‍त भूमि के समतलीकरण का बड़ा आसान उपाय खोज लेते हैं कि गड्‌ढों को रोजाना घरों से निकलने वाले घरेलु कचरे और इलेक्‍ट्रोनिक कचरे से मुफत में पाट दिया जाए। वह भी बिना किसी रासयनिक उपाय (ट्रीटमेंट) के। विभिन्‍न तत्‍वों और रसायनों से मिश्रित दफन कचरा परस्‍पर संपर्क में आकर जब पांच-छह साल बाद रासयनिक प्रक्रिया शुरु करता है तो इसमें से जहरीली लैंडफिल गैसें वजूद में आने लगती हैं, जो हाइड्रोजन ऑक्‍साइड, नाइट्रोजन ऑक्‍साइड, मीथेन कार्बन मोनो ऑक्‍साइड और सल्‍फर डाय ऑक्‍साइड होती हैं। कचरे के सड़ने सेे बनने वाली इन गंधाती गैसों को वैज्ञानिकों ने लैंडफिल गैसों के दर्जे में रखकर एक अलग ही श्रेणी बना दी है। दफन कचरे में भीतर ही भीतर कुदरती प्रक्रिया के चलते ‘लीचेड' नामक जहरीला तरल पदार्थ जमीन की दरारों से रिसता है। लीचेड इतना खतरनाक होता है कि यह जमीन के जीव-जगत के लिए उपयोगी सहज गुणों का विनाश भी करता है। भू-गर्भ में निरंतर बहते रहने वाले जल-स्‍त्रोतों में भी लीचेड विलय होकर शुद्ध पानी को जहरीला बना देता है। गंधक के अनेक जीवाणुनाशक यौगिक भूमि में फैलकर इसकी उर्वरा क्षमता को नष्‍ट कर देते हैं। इन यौगिकों को वैज्ञानिक ‘मेरकैप्‍टैंस' कहते हैं।

आधुनिक जीवन शैली, कचरा उत्‍पादक शैली भी है। इसीलिए भारत ही नहीं दुनिया के ज्‍यादातर विकसित और विकासशील देश कचरे को ठिकाने लगाने की समस्‍या से जूझ रहे हैं। लेकिन ज्‍यादातर विकसित देशों ने समझदारी बरतते हुए औद्योगिक-प्रौद्योगिक कचरे को अपने देशों में ही नष्‍ट कर देने की कार्रवाई पर रोक लगा दी है। दरअसल पहले इन देशों में भी इस कचरे को धरती में गड्‌ढे खोदकर दफना देने की छूट थी। लेकिन जिन-जिन क्षेत्रों में यह कचरा दफनाया गया, उन-उन क्षेत्रों में लैंडफिल गैसों के उत्‍सर्जन से पर्यावरण बुरी तरह प्रभावित होकर खतरनाक बीमारियों का जनक बन गया। जब ये रोग लाइलाज बीमारियों के रुप में पहचाने जाने लगे तो इन देशों का शासन-प्रशासन जाग्रत हुआ और उसने कानून बनाकर औद्योगिक-प्रौद्योगिक कूड़े-कचरे को स्‍वदेश में दफन करने पर सख्‍ती से प्रतिबंध लगा दिया। तब इन देशों ने इस कचरे को ठिकाने लगाने के लिए लाचार देशों की तलाश की और आपको हैरानी होगी कि सबसे लाचार देश निकला भारत, जहां दुनिया के 105 से भी ज्‍यादा देश अपना औद्योगिक कचरा समुद्रतटीय इलाकों में जहाजों से भेजकर नष्‍ट करते हैं। इन देशों में अमेरिका, चीन, ब्राजील, आस्‍ट्रेलिया, जर्मनी और ब्रिटेन प्रमुख हैं।

नेशनल एनवायरमेंट इंजिनियरिंग रिसर्च इंस्‍टीट्‌यूट के एक रिसर्च पर्चे के अनुसार वर्ष 1997 से 2005 के बीच भारत में प्‍लास्‍टिक कचरे के आयात में 62 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। यह आयात देश में पुनर्शोधन व्‍यापार को बढ़ावा देने के बहाने किया जाता है। इस क्रम में सोचनीय पहलू यह है कि इस आयातित कचरे में खतरनाक माने जाने वाले आर्गनों मरक्‍यूरी यौगिक निर्धारित मात्रा से 1500 गुणा अधिक पाए गए हैं, जो कैंसर जैसी लाइलाज और भयानक बीमारी को जन्‍म देते हैं। विकसित देशों द्वारा कचरे की निर्बाध चली आ रही निर्यात की मंशा के पीछे भारत को बीमार देश बनाए रखने की दुर्भावना भी लगती है। इससे ये देश भारत में घातक बीमारियों के उपचार हेतु औषधियां, वैक्‍सीन-टीके और एन्‍टी बॉयोटिक दवायें निर्यात कर मुनाफा कमाते रहें।

सर्वोच्‍च न्‍यायालय की मूल्‍यांकन समिति के अनुसार देश में हर साल 44 लाख टन कचरा पैदा होता है। ऑर्गनाइजेशन फॉर कारपोरेशन एण्‍ड डवलपमेंट ने इस मात्रा को 50 लाख टन बताया है। इसमें से केवल 38.3 प्रतिशत कचरे का ही पुनर्शोधन किया जा सकता है, जबकि 4.3 प्रतिशत कचरे को जलाकर नष्‍ट किया जा सकता है। लेकिन इस कचरे को औद्योगिक इकाइयों द्वारा ईमानदारी से पुनर्शोधन न किया जाकर ज्‍यादातर जल स्‍त्रोतों में धकेल दिया जाता है। मेनयूफेक्‍चरर्स ऐसोशियशन ऑफ इनफॉरमेशन टेक्‍नोलॉजी के एक अध्‍ययन में बताया गया है कि इलेक्‍ट्रोनिक उपकरणों के बढ़ते इस्‍तेमाल को देखते हुए अनुमान है कि 2011 में भारत में निकलने वाले ई कचरे की मात्रा 470 हजार टन से भी अधिक हो सकती है। ई कचरा बच्‍चों के खिलौनों, पुराने टीवी, कम्‍प्‍यूटर, माइक्रोवेव, और मोबाइल के रूप में भी निकलता है। कचरा भण्‍डारों को नष्‍ट करने के ऐसे ही फौरी उपायों के चलते एक सर्वे में ‘पर्यावरण नियोजन एवं समन्‍वय संगठन' ने पाया है कि हमारे देश के पेय जल में 750 से 1000 मिली ग्राम तक प्रति लीटर नाइटे्रट पानी में मिला हुआ है और अधिकांश आबादी को बिना किसी केमीकल ट्रीटमेंट के पानी प्रदाय किया जा रहा है, जो लोगों के स्‍वास्‍थ्‍य पर बुरा असर डालता है। एप्‍को के अनुसार नाइट्रेट बढ़ने का प्रमुख कारण औद्यौगिक कचरा, मानव व पशु मल है। ई कचरे का निपटारा भी खतरों से जुड़ा है। क्‍योंकि इनसे खतरनाक व जानलेवा तत्‍व निकलते है। ट्रांजिस्‍टर की पिन में लगा कॉपर अलग करते समय डाई ऑक्‍सिन गैस निकलती है। कंप्‍यूटर के कल पुर्जों से यलो मेटल अगल करते समय साइनाइट गैस निकलती है। ये गैसें मानव स्‍वास्‍थ्‍य के लिए खतरनाक है।

ऐसे ही कारणों से लैंडफिल गैसों का उत्‍सर्जन बढ़ रहा है। नतीजतन बच्‍चों में ब्‍लू बेबी सिंड्रोम जैसी बीमारी फैल रही है। इन गैसों के आंख, गले और नाक में स्‍थित श्‍लेष्‍मा परत ;म्‍यूकोजल लाइनिंग के संपर्क में आने से दमा, सांस, त्‍वचा और एलर्जी की बीमारियां बढ़ रही हैं। कचरा मैदानों के ऊपर बने भवनों में रहने वाले लोगों में मूत्राशय का कैंसर घर कर लेने की आशंका ज्‍यादा बढ़ जाती है, वह भी खास तौर से महिलाओं में। लैंडफिल गैसें इन खतरों को चार गुना ज्‍यादा बढ़ा देती हैं। यह प्रदूषण गर्भ में पल रहे शिशु को भी प्रभावित करता है।

नियमानुसार कचरा मैदानों में भवन निर्माण का सिलसिला 15 साल बाद होना चाहिए। इस लंबी काल अवधि में कचरे के सड़ने की प्रक्रिया पूर्ण होकर लैंडफिल गैसों का उत्‍सर्जन भी समाप्‍त हो जाता है और जल में घुलनशील तरल पदार्थ लीचेड का बनना भी बंद हो जाता है। लेकिन प्रकृति की इस नैसर्गिक प्रक्रिया के पूर्ण होने से पहले ही हम जमीन के समतल होने के तत्‍काल बाद ही आलीशान इमारतों को वजूद में लाने का सिलसिला शुरु कर देते हैं। फिर नतीजा भुगतना होता है उस क्षेत्र में रहने वाली आबादी और इलेक्‍ट्रोनिक उपकरणों को ?

इस औद्योगिक-प्रौद्योगिक कचरे को नष्‍ट करने के अब प्राकृतिक उपाय भी सामने आ रहे हैं। हालांकि हमारे देश में तो घरेलू कचरे व मानव और पशु मल-मूत्र से ग्रामीण अंचलों में घर के बाहर ही ‘घूरे' में कूढ़े को प्रसंस्‍कृत कर खाद बनाने की प्राचीन परंपरा रही है। उपयोगिता और ज्ञान की यह ऐसी परंपरा है जिसके अंतर्गत कचरा महामारी का रुप धारण कर जानलेवा बीमारियों का पर्याय न बनते हुए खेत की जरुरत के लिए ऐसी खाद में रुपांतरित होता है, जो फसल की उत्‍पादकता बढ़ाने के साथ उसकी पौष्‍टिकता भी बढ़ाता है।

अब एक ऐसा ही अनूठा प्रयोग औद्योगिक-प्रौद्योगिक जहरीले कचरे को नष्‍ट करने में सामने आया है। अभी तक हम केंचुओं का इस्‍तेमाल खेतों की उत्‍पादकता बढ़ाने के लिए वर्मी कंपोस्‍ट खाद के निर्माण में कर रहें हैं। हालांकि खेतों की प्राकृतिक रुप से उर्वरा क्षमता बढ़ाने के लिए केंचुओं की उपयोगिता सर्वविदित है, पर अब औद्योगिक जहरीले कचरे को केंचुओं से निर्मित ‘वर्मीकल्‍चर‘ पद्धति चलन में लाए जाने का सफल प्रयोग अस्‍तित्‍व में आया है। अहमदाबाद के निकट मुथिया गांव में एक पायलट परियोजना शुरु की गई है। इसके तहत पिछले एक साल के भीतर जमा 60 हजार टन वजनी कचरे में 50 हजार केंचुऐं छोड़े गए थे। चमत्‍कारिक ढंग से केंचुओं ने इस कचरे का सफाया कर दिया। फलस्‍वरुप यह स्‍थल पूरी तरह प्राकृतिक ढंग से जहर के प्रदूषण से मुक्‍त हो गया। लैंडफिल गैसों से सुरक्षा के लिए कचरे को नष्‍ट करने के कुछ ऐसे ही प्राकृतिक उपाय अमल में लाने होंगे, जिससे कचरा मैदानों में बसी आबादी व इलेक्‍ट्रोनिक उपकरण सुरक्षित रहें।

मो. 09425488224

फोन 07492-232007, 233882

प्रमोद भार्गव

शब्‍दार्थ 49,श्रीराम कॉलोनी

शिवपुरी म.प्र.

लेखक प्रिंट और इलेक्‍ट्रोनिक मीडिया से जुड़े वरिष्‍ठ पत्रकार है ।

COMMENTS

BLOGGER: 2
  1. कचराघर ही तो बना दिया है, धोखेबाज राजनीतिबाजों ने..

    जवाब देंहटाएं
  2. ---सिर्फ़ राजनीतिबाज़ों ने ही क्यों---कचरा तो आप-हम-वे-सब ही उत्पादित कर रहे हैं, अति-सुविधावादी, भौतिकवादी, विलासवादी जीवन-चर्या और विदेशी इम्पोर्टेड-भाव, विचार व वस्तुएं अपनाकर।---पर उपदेश कुशल बहुतेरे--
    ----अच्छा आलेख है---याद करिये रक्तबीज आदि राक्षसों (प्लास्टिक व यह कचरा रक्तबीज़ ही तो है--हमीं बनाते हैं फ़िर अविनाशी होने पर हमही रोते हैं) की पुरा कथाएं हमें क्या बताती हैं-यही तो, सुविधाभोगी संस्क्रिति की हानियां।

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: प्रमोद भार्गव का आलेख - कचरा मैदानों से फूटती शैतानी (लैंडफिल)गैसें ?
प्रमोद भार्गव का आलेख - कचरा मैदानों से फूटती शैतानी (लैंडफिल)गैसें ?
http://lh3.ggpht.com/_t-eJZb6SGWU/TMO8uTqaeLI/AAAAAAAAJMY/PF1Jol8ipro/pramodbhargav2.jpg?imgmax=800
http://lh3.ggpht.com/_t-eJZb6SGWU/TMO8uTqaeLI/AAAAAAAAJMY/PF1Jol8ipro/s72-c/pramodbhargav2.jpg?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2010/10/blog-post_24.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2010/10/blog-post_24.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content