विकीलीक्स द्वारा अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश से जुड़ी एक साथ ढाई लाख गोपनीय सूचनाओं को उजागर करने की घटना को एक ऐसे विचार के रूप में देखने...
विकीलीक्स द्वारा अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश से जुड़ी एक साथ ढाई लाख गोपनीय सूचनाओं को उजागर करने की घटना को एक ऐसे विचार के रूप में देखने की शुरूआत बुद्धिजीवियों द्वारा की जा रही है, जो कभी मरने वाला नहीं है। इस विचार को इसलिए भी बल और समर्थन मिल रहा है क्योंकि विकीलीक्स के संस्थापक-संपादक जूलियन अंसाजे को संदिग्ध और पुराने मामलों में तब गिरफ्तार किया गया जब वे सूचनाओं से जुड़ी फाइल पर क्लिक कर चुके थे। इस गिरफ्तारी से यह संदेश जनमानस में फैल रहा है कि वैश्विक चौधरी बना जो अमेरिका भूमण्डलीय विस्तार के दृष्टिगत जिस उदारवाद के विस्तार और मानवाधिकारों के हनन की पैरवी करता था वह खुद बौखलाकर दमन पर उतर आया है। अब तो अंसाजे के बैंक खातों को भी सील कर दिया गया है। जिस ब्रितानी साम्राज्य को कभी न डूबने वाले सूरज की संज्ञा मिली हुई थी, उसको परतंत्र भारत के एक सिपाही मंगल पाण्डे ने चुनौती तकनीक से ही आविष्कृत बंदूक का घोड़ा दबाकर दी थी। और फिर इस गोली से उपजे शहीदी विचार ने ब्रितानी हुकूमत को आने वाले सौ सालों में पूरे एशिया में नेस्तनाबूद कर दिया था।
कथित आर्थिक उदारवाद के दौर में अमेरिका भी कमोबेश ब्रिटेन जैसा ही एक ऐसा देश है, जिस पर अंगुली उठाना अथवा उसके विरूद्ध जाना कोई आसान काम नहीं है ? कुटिल चतुराई से अमेरिका ने अपनी दोगली कूटनीतिक रणनीतियों को अदृश्य रहने वाली तकनीकी सुरक्षा तंत्र से ढंक लिया, ताकि सवाल उठाने वाले और अमेरिकी नीतियों को चुनौती देने वाले विरोधी तथा असामाजिक तत्व दूर ही रहें। परंतु ये लौह कवच कालांतर में इतने निर्मम और कठोर साबित हुए कि विकासशील देशों के वंचित समाजों की आबादी की भलाई, असमानता की खाई को बढ़ाने के साथ अन्य तमाम आसन्न संकटों के दायरे में आती चली गई। इस संकट निवारण में अंसाजे ने खुद को खतरे में डालकर विश्वहित में अनूठा व अद्वितीय काम किया है। यहां अमेरिका को आत्ममंथन करने की जरूरत है कि शुतुरमुर्ग की तरह मुलायम रेत में आंखें चुरा लेने की बजाय अमेरिका और अन्य मानवाधिकारों के हनन से जुड़े देश अपनी अलोकतांत्रिक नीतियों को थोपने की बजाय स्वयं को लोकतंत्र की कसौटी पर कसकर खरा बनाएं और नीतियों को पारदर्शी बनाते हुए मानवीय सरोकारों व परिणामों के प्रति ज्यादा संवेदनशील बनें। अन्यथा जिस कंप्यूटर और इंटरनेट तकनीक का वह आविष्कारी देश है, वही तकनीक उसे भस्मासुरी भी सिद्ध हो सकती है। यह संकेत अंसाजे की एक मात्र क्लिक से दुनिया को मिल गया है।
कोई विचार शाब्दिक रूपों में अवतरित होने से पहले किसी घटना के रूप में रूबरू होकर मनुष्य की संवेदनशील अंतश्चेतना को झकझोरता है, तब कहीं जाकर अवचेतन में एक नई मौलिक दृष्टि के बीज पनपते हैं और फिर विचार, काल और परिस्थियों के सह अस्तित्व से आत्मसात होता हुए, आक्रोश और प्रतिकार को अभिव्यक्त करते अनन्य रूपों अथवा विधाओं में सामने आते हैं।
आदि ऋषि वाल्मीकि ने जब एक पक्षी युगल क्रोंच को एक पल प्रेम में निमग्न देखा, फिर दूसरे पल बहेलिये के बाण से मादा क्रोंच के वध की क्रूरता देखी और तीसरे पल प्रेयसी के वियोग की व्याकुलता में नर पक्षी को प्राण त्यागते देखा। इस छोटी सी कारूणिक घटना ने वाल्मीकि की जीवन दृष्टि को आद्योपांत बदल दिया। इस क्रूर और कारूणिक साक्षात्कार के बाद वे संस्कृति के उदात्त चरित्रों के अनुपम रचयिता के रूप में सामने आए और ‘रामायण' जैसे महाकाव्य का सृजन कर दुनिया के पहले कवि कहलाए।
दक्षिण अफ्रीका में जब मोहनदास करमचंद गांधी को ‘काले' होने के कारण रेल के डिब्बे से धक्के देकर प्लेटफार्म पर धकेल दिया गया, तब गांधी की सोई अस्मिता जागी और स्वदेश आकर गोरों के खिलाफ अहिंसा के सिद्धांत के साथ समय से मुठभेड़ करते हुए गांधी ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में भरपूर हस्तक्षेप किया। तब कहीं गांधी, महात्मा गांधी कहलाए और आज पूरी दुनिया में अहिंसा का सिद्धांत एक विचार यात्रा के रूप में परवान चढ़ रहा है। गांधी के विचार अहिंसा और असंचय को हिंसा, ईर्ष्या, विद्वेष और वैमनस्यता की गुंजलक में जकड़ती जा रही वैश्विक दुनिया को मुक्ति के सार्थक उपाय के रूप में देखा जा रहा है।
हम फीचर फिल्मों के निर्माण में विश्व में अग्रणी देश हैं। हिन्दी फिल्मों की तूती पूरी दुनिया में बोलती है। दादा साहब फाल्के सम्मान फिल्मकार के लिए जीवन की एक बड़ी उपलब्धि है। फिल्म निर्माण के विचार के जनक घुंडिराज गोविन्दराज फाल्के 1910 में जब मुंबई के एक उद्यान में दोपहर का भोजन ले रहे थे, तब अनायास ही हवा में लहराता एक अखबार की चिंदी उनके टिफिन से अटक गई। अखबार के इसी हिस्से में ‘लाइफ ऑफ क्राइस्ट' नामक फिल्म के आने वाले शुक्रवार को प्रदर्शन होने का विज्ञापन था। अचानक घटे इस पल ने घुंडिराज फाल्के को विचार दिया कि क्यों न सिनेमा के माध्यम से कृष्ण के जीवन चरित्र पर एक फिल्म बनाई जाए। अकस्मात जेहन में कौंधे इस विचार ने फाल्के के जीवन को फिल्म निर्माण में झोंक दिया। एक अखबारी कागज के टुकड़े से अभिप्रेरित विचार बिन्दु ने भारत को दुनिया में सबसे ज्यादा फिल्में बनाने का इतिहास रचने का आधार बना दिया।
आस्ट्रेलियाई पत्रकार जूलियन अंसाजे भी बचपन से ही लोकतांत्रिक सत्ताओं की गोपनीयता भंग करने की जद्दोजहद से जूझते रहे। अंसाजे के अंतर्मन में गोपनीय अभिलेखों को सार्वजनिक करने का विचारी जुनून मन में कौंधा। उसी प्रबल-प्रखर प्रेरणा ने उन्हें अंतर्जाल तकनीक आधारित एक संस्थागत ढांचा खड़ा करने को मजबूर किया। उनका विचार है कि जब संवैधानिक रूप से गठित लोकतांत्रिक देशों की सरकारें वाकई में लोकतांत्रिक हैं तो अपने देश की प्रजा से गोपनीय रखने के लिए उनके पास ऐसे कोई विरोधाभासी साक्ष्य मौजूद नहीं होने चाहिए जिन्हें छिपाने की जरूरत पड़े ? लेकिन शक्तिशाली देशों द्वारा बरती जाने वाली मनमानी राजनीति का अहम् हिस्सा बन चुकी है। इसके बिना विश्वमंच पर राजनीति शतरंज खेली नहीं जा सकती ? विकीलीक्स ने जो रहस्य जग-जाहिर किए हैं, उनसे स्पष्ट है कि अमेरिका की प्रजातांत्रिक राजनीति ऐसे ही जटिल व उलझे प्रश्नों की अजगरी गुंजलक में जकड़ी है। अमेरिका की कूटनीतिक विडंबनाएं काजल की कोठरी में किस तरह गूंथी गई हैं, इनका भयावह सच विकीलीक्स द्वारा उजागर किए गए वे ढाई लाख दस्तावेजी साक्ष्य हैं, जिनके तार अमेरिका द्वारा थोपी गई कथित भूमण्डलीय उदारवादी आर्थिक अवधारणा के विश्वग्राम से जुड़े हैं।
बिल गेट्स ने कहा था कि सशक्तीकरण के लिहाज से अंतरताना (इंटरनेट) सर्वाधिक प्रभावी तकनीक है। इस सूक्ति वाक्य से ही प्रेरित होकर और इसका सार्थक इस्तेमाल कर बराक ओबामा ने 2009 में राष्ट्रपति पद का चुनाव जीता। ओबामा ने फेसबुक और टि्वटर पर अनेक खाते खोलकर अपनी नीतियों से करोड़ों मतदाताओं को आकर्षित किया। परस्पर संवाद भी कायम किए। ओबामा को जब विजयश्री हासिल हुई तब सुनिश्चित हुआ कि निर्वाचन-प्रणाली में यह सूचना-जंजाल कितना प्रभावी व ताकतवर है। लेकिन ओबामा ने भी अंततः अमेरिका की रक्षा और विदेश मंत्रालय से जुड़ी उन्हीं नीतियों का अनुसरण किया जो अमेरिकी कूटनीतियों को टेक्नोक्रेसी के मार्फत अपारदर्शी व पुख्ता बनाते हुए विकासशील देशों का भयादोहन करती रही थीं। लिहाजा टेक्नोक्रेसी ने अमेरिकी चौहद्दी में ऐसी अभेद्य (विकीलीक्स के लीक सामने नहीं आने तक) दीवारें खड़ी कीं, ताकि शंकालु और विरोधी तत्व इन दीवारों को भेद न पाने के कारण बाहर ही रहें। लेकिन जब ये दीवारें गगनचुंबी होने को बेताब होने लगीं तो जूलियन अंसाजे जैसों ने दुनिया की भलाई और मानव जाति के मूलभूत अधिकारों को खतरे में पड़ते देखने का अनुभव किया। फिर मात्र चार साल पहले विकीलीक्स की स्थापना इस उद्देश्यपूर्ति के लिए की कि अमेरिका की दोमुंही कारगुजारियों का खुलासा विश्वमंच पर किया जा सके। और फिर अंसाजे के दुस्साहस ने अमेरिकी कूटनीति को विश्वसनीयता के गहरे संकट में धकेल दिया। दरअसल वैचारिक जज्बे और जुनून से लबरेज अंसाजे की मंशा थी कि लोकतांत्रिक सत्ताएं ज्यादा खुली और पारदर्शी होने के साथ आम जनता के प्रति परिणामोन्मुखी और संवेदी हों। क्योंकि परमाणु बम जैसे घातक हथियारों से संपन्न होते देशों में यदि परमाणु खतरों को समझने व नियंत्रित करने वाले लोगों की संख्या मुट्ठीभर होगी तो आसन्न संकट और गहराएंगे ही।
बहरहाल विकीलीक्स और जूलियन अंसाजे एक ऐसे अद्वितीय वैश्विक नागरिक पत्रकार साबित हुए हैं, जिन्होंने ‘सत्ता के समक्ष सिर झुकाओ और अनुकूल प्रवाह में तैरो' की बजाय विश्वहित में खुद को जोखिम में डाला। क्योंकि अब तक राष्ट्रभक्त स्वदेश की बलिवेदी पर ही शहीद होते रहे हैं। इस ‘विश्वभक्त' को जितने भी दमनकारी तरीकों से तोड़ने की कोशिशें की जाएंगी अमेरिका व ब्रिटेन जैसी शक्तिशाली और पूंजीवादी सरकारों के विरूद्ध अंसाजे का विचार एक संगठित वैचारिक पुंज के रूप में मजबूत होता चला जाएगा। कालांतर में ऐसे हालात भी निर्मित हो सकते हैं कि तकनीक को स्वतंत्रता, स्वायत्तता और समानता की संरचना का पर्याय माना जाने लगे ? तो क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि तकनीक वैचारिक आंदोलन का आधार बिंदु बनेगी ? वैसे भी सैद्धांतिक विचार धाराएं मानवीय मूल्य स्थापित करने में अब तक असफल ही रही हैं। फिर चाहे वह मार्क्सवाद की अवधारणा हो, गांधीवादी की हो अथवा फासीवाद की ! सभी प्रकार की विचार धाराएं धार्मिक व संप्रदायवादी चरमपंथों के समक्ष दम तोड़ती ही नजर आई हैं। ऐसे में क्या लोकतांत्रिक समावेशी समाजवाद के उभरने की उम्मीद तकनीकी क्लिक से की जा सकती है?
प्रमोद भार्गव
शब्दार्थ 49, श्रीराम कॉलोनी
शिवपुरी (म.प्र.) पिन-473-551
असांजे ने बहुत अच्छा काम किया है..
जवाब देंहटाएंजूलियन असान्जे निश्चित ही आज वैश्विक नागरिक बन गए हैं लोकतांत्रिक देशों के पास कुछ भी अपने नागरिकों से छिपाने के लिए नहीं होना चाहिए ....यदि है ....तो निश्चित ही यह उनका दोगलापन है जिसे उजागर करके जूलियन नें एक क्रांतिकारी शुरुआत की है. विश्व नागरिकों को उनकी ससम्मान रिहाई के लिए माँग करनी चाहिए. हम उनके सुरक्षित जीवन के लिए मंगल कामना करते हैं.
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